Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 5 ज्योतिबा फुले Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
ज्योतिबा फुले का नाम समाज सुधारकों की सूची में शुमार क्यों नहीं किया गया ? तर्क सहित उत्तर लिखिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने समाज सुधार के कार्य किए। उन्होंने दलितों, शोषितों और स्त्रियों के उत्थान के लिए कार्य किया फिर भी उनका नाम पाँच समाज सुधारकों की सूची में सम्मिलित नहीं किया। क्योंकि इस सूची को बनाने वाले उच्चवर्गीय समाज के प्रतिनिधि थे। उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता का विरोध करने के लिए 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की। वे राजसत्ता, ब्राह्मणों और धर्मवादी सत्ता को अपने हित में समाज व्यवस्था और मशीनरी का उपयोग करने वाली मानते थे। उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा और अधिकार दिलाने पर जोर दिया। क्रान्तिकारी साहित्य की रचना की, इसी कारण सर्वांगीण सुधार न चाहने वालों ने उन्हें समाज सुधारकों की सूची में नहीं रखा।
प्रश्न 2.
शोषण-व्यवस्था ने क्या-क्या षड्यंत्र रचे और क्यों ?
उत्तर :
उच्च वर्ग ने पाँच समाज सुधारकों की सूची में ज्योतिबा फुले का नाम नहीं रखा। वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था द्वारा दलितों का शोषण किया। गरीबों से कर के रूप में प्राप्त धन उच्चवर्गीय बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया। स्त्रियाँ अपने अधिकारों के लिए आवाज न उठायें इसलिए स्त्री-शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगाया था। सावित्री पढ़ाने जाती थी तो मार्ग में खड़े लोग गालियाँ देते, पत्थर फेंकते, थूकते, गोबर फेंकते। पुरोहितों ने उन्हें घरे से निकलवा दिया। वे फुले के समाज सुधार के कार्यों को रोक देना चाहते थे। वे ज्योतिबा फुले और सावित्री के मिशन को विफल करना चाहते थे।
प्रश्न 3.
ज्योतिबा फुले द्वारा प्रतिपादित आदर्श परिवार क्या आपके विचारों के आदर्श परिवार से मेल खाता है ? पक्ष-विपक्ष में अपने उत्तर दीजिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के अनुसार आदर्श परिवार की रूपरेखा कुछ भिन्न है। जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुस्लिम और बेटा सत्यधर्मी हो वही आदर्श परिवार है।
पक्ष - फुले की आदर्श परिवार की कल्पना वास्तव में आदर्श है। इससे धार्मिक सहिष्णुता बढ़ेगी। पारस्परिक विद्वेष के भाव समाप्त होंगे। एक दूसरे के धर्म के प्रति आस्था और आदर का भाव बढ़ेगा। धार्मिक कट्टरता दूर होगी।
विपक्ष - सैद्धान्तिक रूप से ज्योतिबा फुले की आदर्श परिवार की कल्पना ठीक है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उचित नहीं है। यदि सभी धर्मावलम्बियों में धार्मिक कट्टरता हुई तो परिवार टूट जाएगा। आपस में विचार नहीं मिलेंगे। आपस में द्वेष बढ़ेगा। दूसरी कठिनाई है भोजन की। मुसलमान और ईसाई जैसा भोजन ग्रहण करते हैं बौद्ध उसे पसन्द नहीं करते। ऐसी स्थिति में भी संघर्ष होगा। आदर्श परिवार में हिन्दू सदस्य को स्थान क्यों नहीं दिया गया। सैद्धान्तिक दृष्टि से कल्पना ठीक है परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से उनका विचार उचित नहीं है।
प्रश्न 4.
स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए ज्योतिबा फुले के अनुसार क्या-क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले की क्रान्ति का : ल लक्ष्य स्त्रियों को अधिकार दिलाना और शिक्षित बनाना था। अत: उन्होंने कई प्रयास किए। स्त्रियों को शिक्षित करने के प्रयास होने चाहिए। समाज ने उनकी शिक्षा के जो मार्ग बन्द कर दिए हैं, उन्हें खोलना चाहिए। कन्याशालाएँ खोली जायें। पुरुषों और स्त्रियों को समाज समझा जाये। दोनों के लिए समान नियम हों। स्त्रियाँ मानवीय अधिकारों को समझें ऐसी सविधा उन्हें दी जाये। स्त्री समाज की प्रतिष्ठा के लिए नई विवाह-विधि की रचना होनी चाहिए। ऐसे मंत्र न हों जो पुरुष को प्रधानता दें और स्त्रियों को गुलाम बनाएँ। विवाह के समय पुरुष शपथ लें कि वह नारी को अधिकार देंगे और स्वतंत्रता प्रदान करेंगे। विवाह में ब्राह्मणों का स्थान न हो।
प्रश्न 5.
सावित्री बाई के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन किस प्रकार आए ? क्रमबद्ध रूप में लिखिए।
उत्तर :
सावित्री बाई फुले के जीवन में जो कुछ परिवर्तन हुआ वह ज्योतिबा फुले के साथ विवाह के पश्चात् हुआ। पति के साथ काम करके वे सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उभरीं। विवाह के बाद ही सावित्री बाई शिक्षित हुईं। उन्होंने मराठी भाषा सीखी और अंग्रेजी लिखना-पढ़ना और बोलना भी सीखा। उन्हें बचपन से ही शिक्षा में रुचि थी। उनकी ग्राह्य-शक्ति
भी तेज थी।
बचपन में वे चलते-चलते रास्ते में खा लेती थी। रिंखल गाँव की हाट से लौटते हुए वे रास्ते में खा रही थीं, एक लाट साहब के मना करने पर उन्होंने हाथ का खाना फेंक दिया। उन्हें एक पुस्तक मिली जिसे उन्होंने शादी के बाद पढ़ा। सावित्री बाई ने पति के साथ मिलकर कई पाठशालाएँ खोली और घर-घर जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह किया। इस कार्य में अड़चनें बहुत आईं। वे स्वयं जब पढ़ाने पाठशाला जाती तब उन्हें गालियाँ सुननी पड़तीं। वे दलितों और शोषित के लिए खड़ी हुईं।
प्रश्न 6.
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई के जीवन से प्रेरित होकर आप समाज में क्या परिवर्तन करना चाहेंगे? ।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई का चरित्र हमारे लिए एक आदर्श है और प्रेरणादायक है। दोनों ने एक प्राण होकर कंधे-से-कंधा मिलाकर सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। हम भी परिवर्तन करना चाहेंगे पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता को समाप्त करना चाहेंगे। वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था को समाप्त करेंगे। शोषण के विरोध में आवाज उठायेंगे। दलितों और स्त्रियों को शोषण के विरुद्ध आन्दोलन करने के लिए प्रेरित करेंगे।
आधुनिक शिक्षा में परिवर्तन करेंगे और स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएँ देंगे। घर-घर जाकर लड़कियों को स्कूल लाएँगे, उनके माता-पिता की मानसिकता बदलेंगे। विवाह-विधि को पूरी तरह बदलना चाहेंगे और पुरुष प्रधान संस्कृति को बदलकर नारी-स्वतंत्रता के लिए लड़ेंगे। सामाजिक रूढ़ियों और धार्मिक अन्धविश्वासों को दूर करने का प्रयास करेंगे। छुआछूत और ऊँच-नीच की भावना को जड़ से समाप्त करेंगे।
प्रश्न 7.
उनका (ज्योतिबा फुले का) दाम्पत्य जीवन किस प्रकार आधुनिक दंपतियों को प्रेरणा प्रदान करता है ?
उत्तर :
आज प्रतिस्पर्धा का युग है। इस युग में प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित दंपत्ति बरसों तक साथ रहते हैं और जब अलग होते हैं तो एक-दूसरे को पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने लगते हैं, एक-दूसरे का सहयोग नहीं करते हैं। किन्तु ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने एक प्राण होकर और कंधे-से-कंधा मिलाकर अपने मिशन को पूरा किया। दोनों ने मिलकर विरोधों का सामना किया। आधुनिक दंपत्तियों को प्रेरणा मिलती है कि वे भी फुले दंपति दो शरीर एक प्राण बनकर रहें। परिवार में समृद्धि के लिए पारस्परिक सहयोग की भावना रखें। दोनों का जीवन आदर्श है और आधुनिक सभ्य कहलाने वालों के लिए एक प्रेरणा है।
प्रश्न 8.
फुले दम्पत्ति ने स्त्री समस्या के लिए जो कदम उठाया था, क्या उसी का अगला बचाओ, बेटी पढ़ाओ' कार्यक्रम है? .
उत्तर :
ज्योतिबा फुले दम्पत्ति ने स्त्री समाज के उत्थान के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया। भारत के पुरुष प्रधान समाज का घोर विरोध सहते हुए, वे अडिग भाव से अपने कार्य में लगे रहे। स्त्री शिक्षा और स्त्री-अधि कार के लिए उन्होंने संघर्ष किया। आज नारी सशक्तता और नारी शिक्षा को लेकर जो कार्यक्रम चल रहे हैं, वे ज्योतिबा दम्पत्ति के प्रयासों का अगला चरण ही माने जाने चाहिए। नारी सुरक्षा और नारी शिक्षा पर बल देने वाला कार्यक्रम 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' बहुत प्रिय हुआ है। इसने समाज में बेटी के महत्व और उसकी शिक्षा के बारे में लोगों की धारणा बहुत बदली है। नारियाँ हर क्षेत्र में अपनी योग्यता का प्रमाण दे रही हैं।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) “सच का सबेरा होते ही वेद डूब गए, विद्या शूद्रों के घर चली गई,भू-देव (ब्राह्मण) शरमा गए।"
आशय वेद ज्ञान का भंडार हैं और ब्राह्मण अपने को वेदों का अध्ययन करने का अधिकारी मानते थे। वे शूद्रों को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं देते थे। फुले ने इसका विरोध किया। उनका विचार था कि शूद्रों को भी शिक्षा ग्रहण करने और
यह देखकर ब्राह्मणों को शर्म आ गई, उन्हें लज्जा की अनुभूति हुई।
(ख) "इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आन्दोलन करना चाहिए।"
आशय - फुले का विश्वास था कि वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था के आधार पर शोषण प्रक्रिया चल रही है। राज-सत्ता और धर्मान्ध ब्राह्मण सामाजिक व्यवस्था और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर रहे हैं और शोषण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि दलितों और स्त्रियों को इस शोषणवादी समाज-व्यवस्था का विरोध करना चाहिए। उन्हें इस परम्परावादी व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए आन्दोलन करना चाहिए। तभी यह शोषण वाली व्यवस्था बदल सकती है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(क) स्वतंत्रता का अनुभव............हर स्त्री की थी।
(ख) मुझे 'महात्मा' कहकर..........अलग न करो।
विशेष : व्याख्याओं को व्याख्या-अंश में देखें।
योग्यता विस्तार -
प्रश्न 1.
अपने आसपास के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं से बातचीत कर, उसके आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर :
परीक्षोपयोगी प्रश्न नहीं।
प्रश्न 2.
क्या आज भी समाज में स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव किया जाता है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
छात्र शिक्षक महोदय के सहयोग से चर्चा करें।
प्रश्न 3.
सावित्री बाई और महात्मा फुले ने समाज-हित के जो कार्य किए, उनकी सूची बनाएँ।
उत्तर :
कुछ सामाजिक सुधार निम्नलिखित हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न -
प्रश्न 1.
ज्योतिबा का नाम किस सूची में नहीं था
(क) विद्वानों की सूची में
(ख) समाज सुधारकों की सूची में
(ग) इतिहासकारों की सूची में
(घ) शिक्षकों की सूची में
प्रश्न 2.
ज्योतिबा ने नई विवाह-विधि की रचना की
(क) विद्वत्ता दिखाने के लिए
(ख) स्त्रियों में लोकप्रियता पाने के लिए
(ग) स्त्री समानता की प्रतिष्ठा के लिए
(घ) ब्राह्मणों से द्वेष भाव के कारण
प्रश्न 3.
ज्योतिबा ने किस उपाधि को अस्वीकार किया
(क) महंत की उपाधि
(ख) महात्मा की उपाधि
(ग) नेता की उपाधि
(घ) जन सेवक की उपाधि
प्रश्न 4.
ज्योतिबा के पिता ने बेटा-बहू को घर से निकाला
(क) समाज के दबाव में
(ख) शासन के दबाव में
(ग) पुरोहितों तथा रिश्तेदारों के दबाब में
(घ) जाति बाहर किए जाने के दबाव में
प्रश्न 5.
भारतीय इतिहास में तीन हजार वर्षों में न होने वाला काम था
(क) स्त्रियों को स्वतंत्रता दिया जाना दिया जाना
(ख) शूद्रों का उत्थान किया जाना
(ग) कन्या पाठशाला की स्थापना
(घ) विवाह की नई विधि बनाया जाना
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
ज्योतिबा फुले को पाँच समाज सुधारकों की सूची में स्थान न देने वाले कौन थे ?
उत्तर :
ये लोग उच्चवर्गीय समाज के प्रतिनिधि थे।
प्रश्न 2.
ज्योतिबा ने किस मानसिकता पर हल्ला बोला ?
उत्तर :
ज्योतिबा ने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोला।
प्रश्न 3.
ज्योतिबा ने किनको एक दूसरे का पूरक बताया ?
उत्तर :
ज्योतिबा ने राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य को एक दूसरे का पूरक बताया।
प्रश्न 4.
ज्योतिबा के मौलिक विचार कहाँ संग्रहीत हैं ?
उत्तर :
ज्योतिबा के मौलिक विचार उनकी 'गुलामगीरी', 'शेतकर यांचा आसूड', 'सार्वजनिक सत्यधर्म' आदि पुस्तकों में संग्रहीत हैं।
प्रश्न 5.
ज्योतिबा के अनुसार आदर्श परिवार का स्वरूप क्या था ?
उत्तर :
ज्योतिबा के अनुसार जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो वो ही आदर्श परिवार था।
प्रश्न 6.
ज्योतिबा ने कैसी शिक्षा व्यवस्था को अस्वीकार किया ?
उत्तर :
ज्योतिबा ने उस शिक्षा व्यवस्था को अस्वीकार किया जिसमें गरीबों के द्वारा दिए गए कर से उच्च वर्ग के बच्चों को ही शिक्षा दी जाए।
प्रश्न 7.
संभ्रान्त समीक्षकों ने शीर्ष पाँच समाज सुधारकों की सूची में ज्योतिबा को स्थान क्यों नहीं दिया?
उत्तर :
ये समीक्षक समाज के विकसित वर्ग के प्रतिनिधि थे और समाज का सर्वांगीण विकास नहीं चाहते थे। इसी कारण उन्होंने शोषित और दलित वर्ग के प्रतिनिधि ज्योतिबा को स्थान नहीं दिया।
प्रश्न 8.
ज्योतिबा द्वारा बनाई गई विवाह की नई विधि की क्या विशेषता थी ?
उत्तर :
इस विधि में स्त्री को समान अधिकार दिए गए थे। इस विधि के मंगलाष्टक में वधू वर से शपथ लेती थी कि वह उसे उसके सभी अधिकार देगा। साथ ही इस पद्धति में ब्राह्मण का कोई स्थान न था।
प्रश्न 9.
लेखिका ने ज्योतिबा फुले के आचरण की सबसे बड़ी विशेषता क्या बताई है ?
उत्तर :
लेखिका ने बताया है कि ज्योतिबा जो भी शिक्षा या संदेश देते थे, उसे अपने आचरण और व्यवहार में उतारते
प्रश्न 10.
सावित्री बाई फुले के पिता उस पर किस कारण अत्यन्त क्रोधित हुए थे ?
उत्तर :
सावित्री मेले में ईसाई धर्म प्रचार की एक पुस्तिका लेकर आई थी। पिता ने जब उसे देखा उसे धर्म विरुद्ध मानकर सावित्री को कड़ी फटकार लगाई।
प्रश्न 11.
ज्योतिबा और सावित्री बाई ने पहली कन्या पाठशाला कहाँ स्थापित की ?
उत्तर :
दोनों ने पुणे के बुधवार पेंठ निवासी भिड़े के बाड़े में पहली कन्या पाठशाला की स्थापना की।
प्रश्न 12.
सावित्री बाई जब कन्या पाठशाला में पढ़ाने जाती थी तो रास्ते में लोग उसके साथ कैसा व्यवहार करते थे ?
उत्तर :
लोग पति-पत्नी को गालियाँ देते, थूकते, पत्थर मारते और गोबर फेंकते थे।
प्रश्न 13.
लेखिका ने ज्योतिबा और सावित्री बाई के दांपत्य जीवन को आदर्श क्यों बताया है ?
उत्तर :
ज्योतिबा और सावित्री बाई ने एक दूसरे के प्रति समर्पण भाव से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संषर्घ किया और सफलता पाई। इसी कारण लेखिका ने उन्हें आदर्श दम्पत्ति बताया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
समाज में फुले दंपत्ति द्वारा किए गए सुधार कार्यों का किस तरह विरोध हुआ ?
उत्तर :
फुले दंपत्ति ने जब पुणे के बुधवार पेठ निवासी भिड़े के बाड़े में कन्याशाला स्थापित की तो उसका विरोध हुआ। धर्मभीरू पिता ने पुरोहितों और रिश्तेदारों के कहने पर पुत्र और बहू को घर से निकाल दिया। सावित्री जब पाठशाला पढ़ाने जाती तो रास्ते में खड़े लोग उन्हें गालियाँ देते, थूकते, पत्थर मारते और गोबर उछालते। उनके इन क्रान्तिकारी कार्यों के कारण ही उच्च वर्ग ने उसका विरोध किया।
प्रश्न 2.
ज्योतिबा फुले ने किस प्रकार की मानसिकता पर प्रहार किया और क्यों ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर करारा प्रहार किया। शिक्षा शूद्रों और स्त्रियों के लिए नहीं है, इस संकीर्ण मानसिकता पर भी प्रहार किया। विवाह-विधि में पुरुष प्रधानता के महत्त्व का भी विरोध किया। ज्योतिबा एक समता प्रधान समाज चाहते थे। इसी कारण उन्होंने उपर्युक्त मानसिकताओं का विरोध किया।
प्रश्न 3.
ज्योतिबा फुले के समय में देश की शिक्षा व्यवस्था कैसी थी?
अथवा
ज्योतिबा फुले के समय शिक्षा-व्यवस्था क्या थी और वे क्या चाहते थे ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले के समय ब्राह्मण वर्चस्व वाली शिक्षा-व्यवस्था थी। शूद्रों और स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नहीं था। गरीबों से कर लेकर उस पैसे को उच्चवर्गीय लोगों के बच्चों की शिक्षा पर व्यय किया जा रहा था। फुले ने इसका विरोध किया। वे पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता को बदलना चाहते थे। वह शूद्रों और स्त्रियों को भी शिक्षा का अधिकार दिलाना चाहते थे।
प्रश्न 4.
ज्योतिबा फुले कालीन समाज व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
फुले के समय में वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था थी और दलित वर्ग का शोषण हो रहा था। पूँजीवादी और स्त्रियों को गुलाम समझा जाता था।
प्रश्न 5.
ज्योतिबा फुले ने 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना क्यों की?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले क्रान्तिकारी विचारधारा के थे। वे ब्राह्मण वर्चस्व और परंपरागत सामाजिक मूल्यों को स्थापित रखने वाली शिक्षा के विरोधी थे। पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता को समाप्त कर देना चाहते थे। वे स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने और गुलामी से मुक्त होने का अधिकार दिलाना चाहते थे। उन्होंने इसी कारण 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
ज्योतिबा फुले ने विवाह-विधि में परिवर्तन क्यों किया ?
उत्तर :
ज्योतिबा फुले ने यह अनुभव किया कि प्रचलित विवाह विधि में स्त्री-पुरुषों को समान अधिकार प्राप्त नहीं है। अतः उन्होंने स्त्री-समानता को प्रतिष्ठित करने के लिए विवाह-विधि में परिवर्तन किया। उस समय की विवाह-विधि में ऐसे मंत्र थे जो पुरुष-प्रधान संस्कृति का समर्थन करते थे और स्त्री को गुलाम सिद्ध करते थे। अत: स्त्री को समान अधिकार दिलाने के लिए नई विवाह-विधि की रचना की। उन्होंने विवाह-विधि में से ब्राह्मण का स्थान ही हटा दिया। उन्होंने विवाह-विधि में से उन मंत्रों को हटा दिया जो पुरुषों को प्रधानता देते थे। अतः उन्होंने ऐसे मंगलाष्टक के मंत्रों को तैयार किया, जिन्हें वर-वधू आसानी से समझ सकें। इन मंत्रों में वधू वर से यह वचन लेती है कि वह स्त्री का अधिकार देगा और स्वतंत्रता का अनुभव करने देगा। इसी कारण फुले ने विवाह विधि में परिवर्तन किया।
प्रश्न 2.
सन् 1888 में सम्मानित किये जाने पर ज्योतिबा फुले ने क्या विचार व्यक्त किए ?
उत्तर :
सन् 1888 में ज्योतिबा फुले को 'महात्मा' की उपाधि से सम्मानित किया गया। सम्मान ग्रहण करते समय उन्होंने कहा कि मुझे 'महात्मा' कहकर मेरे संघर्ष को पूर्ण विराम मत दो अर्थात् मेरे संघर्ष को मत रोको। मठाधीश बनने के बाद व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता। आप सब मुझे साधारणजन ही रहने दें। मुझे आप अपने बीच में ही रहने दें, अपने से अलग न करें। मैं तो शोषितों और दलितों का उत्थान करना चाहता हैं। साधारण व्यक्ति के रूप में ही कार्य क के लिए लड़ना चाहता हूँ।
प्रश्न 3.
महात्मा ज्योतिबा फुले जो कहते थे उसे अपने आचरण में भी उतारते थे। क्या आप इससे सहमत हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
ज्योतिबा फुले की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनके सिद्धान्त और व्यवहार में कोई अन्तर नहीं था। वे जो कहते थे उसे अपने आचरण और व्यवहार में उतार कर दिखाते थे। वे कोरे उपदेशक नहीं थे। वे पहले स्वयं करते फिर दूसरों को करने के लिए प्रेरित करते। उन्होंने स्त्री को शिक्षित करने और अधिकार देने की बात कही थी। इस दिशा में उन्होंने पहला कदम अपने परिवार से ही उठाया।
अपनी पत्नी सावित्री बाई को शिक्षित कराया। उन्हें मराठी भाषा सिखायी, अंग्रेजी लिखना-पढ़ना और बोलना सिखाया। उन्हें समानता का अधिकार दिया। फुले ने सावित्री बाई को कन्याशाला खोलने में अपने साथ लिया। दलितों, शोषितों और स्त्रियों के लिए जो संघर्ष प्रारम्भ किया था, उसमें उन्हें अपना भागीदार बनाया। अतः स्पष्ट है फुले जो कहते थे पहले उसे करते थे।
प्रश्न 4.
सावित्री बाई के बचपन की घटना का उल्लेख करते हुए उनकी विशेषता बताइए।
उत्तर :
सावित्री बाई जब छह-सात वर्ष की श्रीं तब वे एक बार रिखल गाँव के हाट में गई। वहाँ कुछ खरीदकर खाने लगी। उन्होंने देखा एक पेड़ के नीचे कुछ मिशनरी स्त्रियाँ और पुरुष गा रहे थे। एक लाट साहब ने उसे खाते और गाना सुनते देखा तो कहा कि खाते-खाते घूमना अच्छा नहीं। सावित्री ने तुरन्त खाना फेंक दिया। लाट साहब ने उसकी प्रशंसा की और एक पुस्तक देकर उसे पढ़ने के लिए कहा। सावित्री बाई ने वह पुस्तक शादी के बाद पढ़ी। इस घटना से पता लगता है कि सावित्री को हाट-बाजार में जाने का शौक था और बचपन से ही शिक्षा में रुचि थी।
प्रश्न 5.
ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने हर मुकाम पर कंधे-से-कंधा मिलाकर काम किया। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
जोतिबाफुले और सावित्री बाई दो शरीर एक प्राण थे। दोनों ने मिलकर अपने मिशन को पूरा किया। दोनों ने 14 जनवरी, 1848 को पहली कन्याशाला की स्थापना की। किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ी में जाकर लड़कियों को पाठशाला में भेजने का आग्रह किया। बालहत्या प्रतिबंधक गृह में अनाथ बच्चों और विधवाओं के लिए दरवाजे खोले, नवजात बच्चों की देखभाल करना, दलित वर्ग को अपने घर के हौद से पानी की सुविधा प्रदान करना आदि कार्यों को पति-पत्नी ने साथ मिलकर डंके की चोट पर किया। कुरीतियों, अंधविश्वासों, अनीतिपूर्ण रूढ़ियों का विरोध किया और दलितों और शोषितों के हित के लिए खड़े हुए। स्पष्ट है दोनों ने साथ ही काम किया।
प्रश्न 6.
'ज्योतिबा और सावित्री बाई ने अपने मिशन को पूरा किया।' उनका मिशन क्या था और उन्होंने उसे कैसे पूरा किया ?
उत्तर :
शद्रों, दलितों का उत्थान करना और स्त्रियों को गुलामी से मुक्त कराकर अधिकार दिलाना, यही उनका मिशन था। शूद्रों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था। केवल उच्च वर्ग को शिक्षा ग्रहण करने और वेद पढ़ने का अधिकार था। फुले ने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की और क्रान्तिकारी साहित्य की रचना की। पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर करारा व्यंग्य किया। लड़कियों की शिक्षा के लिए कन्याशाला खोली।
किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोंपड़ी में जाकर लड़कियों को पाठशाला भेजने का आग्रह किया। अपने घर के हौद से शूद्रों को पानी की व्यवस्था की। विवाह-विधि में से ब्राह्मणों का वर्चस्व समाप्त किया और स्त्रियों को गुलामी से मुक्त कराने का प्रयास किया। इस प्रकार दोनों ने अपने मिशन को पूरा किया।
प्रश्न 7.
ज्योतिबा फुले का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर :
लेखिका ने प्रस्तुत जीवनी में फुले दंपत्ति के समाज-सुधार सम्बन्धी कार्यों का उल्लेख किया है। ज्योतिबा फुले ने जो कार्य किये उनके आधार पर उनके चरित्र की निम्न विशेषताएँ ज्ञात होती हैं -
समाज सुधारक - ज्योतिबा फुले सच्चे अर्थों में समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में व्याप्त सामाजिक रूढ़ियों और . अन्धविश्वासों का विरोध किया। उन्होंने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना करके पूँजीवादी और पुरोहितवादी मान्यताओं का विरोध किया। विवाह-विधि में भी सुधार करने की आवाज उठाई।
संघर्षशील - ज्योतिबा फुले को कदम-कदम पर संघर्ष का सामना करना पड़ा। कन्याशाला खोलने पर उ अड़चनों को सहन करना पड़ा। पुरोहितों और रिश्तेदारों के विरोध के कारण घर छोड़ना पड़ा।
नारी उत्थान की भावना - ज्योतिबा फुले ने अपने समय में नारियों की दयनीय स्थिति देखकर उनके उत्थान का प्रयत्न किया। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को गुलाम समझा जाता था। उन्होंने विवाह-विधि के मंत्रों को ही बदल दिया। स्त्रियों की शिक्षा की व्यवस्था की। उन्हें विद्यालय में लाने का प्रयास किया। नारी-अधिकार के लिए संघर्ष किया।
आचरण और व्यवहार की एकता - ज्योतिबा फुले केवल उपदेशक नहीं थे। उनके चरित्र की सबसे अच्छी विशेषता यह थी कि वे जो कुछ कहते थे उसे व्यवहार में भी लाते थे। वे स्त्रियों की स्वतंत्रता और अधिकार के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे। उन्होंने यह कार्य अपने घर से ही प्रारम्भ किया। अपनी पत्नी सावित्री बाई को मराठी सिखाई, अंग्रेजी लिखना-पढ़ना और बोलना सिखाया। सामाजिक कार्यों को करने की उन्हें स्वतंत्रता प्रदान की।
दलितोद्धार - ज्योतिबा फुले ने दलितों, शोषितों और स्त्रियों की समानता के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने दलित बालिकाओं की शिक्षा के लिए कन्याशालाएँ खोली। बालहत्या प्रतिबंधक गह में अनाथ बच्चों और विधवाओं के लिए दरवाजे खोले। महार, चमार और मांग जाति के लिए पानी की व्यवस्था की। उपेक्षित स्त्री जाति को अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया।
लेखिका परिचय :
सुधा अरोड़ा का जन्म लाहौर (पाकिस्तान) में सन् 1948 में हुआ। उन्होंने उच्च शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की और इसी विश्वविद्यालय के दो कॉलेजों में सन् 1969 से सन् 1971 तक अध्ययन कार्य किया।
साहित्यिक परिचय - सुधा अरोड़ा मूलतः कथाकार हैं और कहानी साहित्य में उनका नाम चर्चित है। बगैर तराशे, युद्ध-विराम, महानगर की भौतिकी, काला शुक्रवार, काँसे का गिलास कहानी संग्रह हैं। औरत की कहानी संपादित संग्रह है।
पत्र-पत्रिकाओं में भी उनकी भागीदारी है। उन्होंने पाक्षिक पत्रिका 'सारिका' में 'आम आदमी जिंदा सवाल' और 'जन सत्ता' (दैनिक में) में महिलाओं से जुड़े साप्ताहिक स्तंभ 'वामा' लिखा जो बहुचर्चित रहा। उन्होंने महिलाओं को ध्यान में रखकर एक संग्रह तैयार किया, जिसका शीर्षक 'औरत की दुनिया बनाम दुनिया की औरत' है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा उन्हें विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
संक्षिप्त कथानक :
सामाजिक विकास के पाँच समाज सुधारकों में ज्योतिबा फुले का नाम नहीं है। वे ब्राह्मण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा के विरोधी थे। उन्होंने वर्ण व्यवस्था और शोषण प्रक्रिया को एक दूसरे का पूरक बताया। 'सत्य शोधक समाज' नामक संस्था से पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता का विरोध किया। आदर्श परिवार का रूप सामने रखा। विवाह-पद्धति के लिए भी उन्होंने 'मंगलाष्टक नियम' बनाए। स्त्रियों के अधिकार और शिक्षा के लिए संघर्ष किया। 14 जनवरी, 1848 को कन्याशाला की स्थापना की। इन्हें परिवार और समाज का विरोध सहन करना पड़ा।
पाठ का सारांश :
समाज सुधारक - ज्योतिबा फुले समाज सुधारक थे किन्तु भारत के सामाजिक विकास और बदलाव के आन्दोलन में उनका नाम नहीं लिया जाता। केवल पाँच समाज-सुधारकों के नाम ही लिए जाते हैं। कारण यह है कि समाज सुधारकों की सूची बनाने वाले उच्च वर्ग के लोग हैं। विकसित वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग जो सुधार नहीं चाहते थे, उन्होंने
क्रान्तिकारी भावना - उन्होंने पूँजीवादी ओर पुरोहितवादी मानसिकता का विरोध किया। उन्होंने शोषण प्रक्रिया और वर्ण, जाति तथा वर्ग-व्यवस्था का विरोध किया। वे शोषण- प्रक्रिया और वर्ग-व्यवस्था को एक दूसरे का पूरक मानते थे। उनका विचार था कि राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य धर्मवादी सत्ता, सामाजिक व्यवस्था और मशीनरी का दुरुपयोग करते हैं।
आदर्श परिवार की कल्पना - ज्योतिबा फुले की परिवारों के सम्बन्ध में जो परम्परागत मान्यता थी उसको आदर्श नहीं मानते थे। उनका विचार था जिस परिवार में पिता बौद्ध, माता ईसाई, बेटी मुसलमान और बेटा सत्यधर्मी हो वही आदर्श परिवार है।
शिक्षा की धारणा - ज्योतिबा फुले का विचार था कि आधुनिक शिक्षा केवल उच्च वर्ग के लिए ही नहीं होनी चाहिए। उसमें शूद्रों को निम्न वर्ग को भी अधिकार मिलना चाहिए। शिक्षा सबके लिए हो, केवल एक वर्ग के लिए ही नहीं होनी चाहिए। स्त्रियों को भी शिक्षा का अधिकार होना चाहिए। पुरुषों और स्त्रियों के लिए एक ही नियम होना चाहिए।
विवाह-विधि - फुले ने विवाह की नयी पद्धति की रचना की, जिससे स्त्रियों को समानता मिल सके। उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्व को नकार दिया और नए मंगलाष्टक को तैयार किया। उन्होंने स्त्रियों के अधिकार और स्वतंत्रता को ध्यान में रखकर मंगलाष्टकों का निर्माण किया।
महात्मा की उपाधि - 1888 में ज्योतिबा फुले को 'महात्मा' की उपाधि से सम्मानित किया गया। फुले ने उपाधि के सम्बन्ध में कहा कि मुझे साधारण जन ही रहने दो। महात्मा बनने से संघर्ष का कार्य रुक जाएगा। वे सबके बीच में सबके साथ रहना पसन्द करते थे।
स्त्री-शिक्षा का प्रयास - स्त्री शिक्षा की वृद्धि के लिए ज्योतिबा फुले ने सबसे पहले अपनी पत्नी सावित्री को शिक्षित किया। 14 जनवरी 1848 को पुणे के बुधवार पेठ निवासी भिड़े के बाड़े में पहली कन्याशाला की स्थापना की। किसानों और अछूतों की झुग्गी-झोपड़ी में जाकर लड़कियों को शिक्षा के लिए पाठशाला भेजने का आग्रह किया। ज्योतिबा फुले और सावित्री दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर डंके की चोट पर कार्य किया।
दोनों के कार्य - 1840 से 1890 तक दोनों ने एक प्राण होकर अपने मिशन को पूरा किया। छुआछूत के लिए संघर्ष किया। महार, चमार और मांग जाति के लोगों के लिए पानी की सुविधा हेतु अपने घर के पानी का हौद सब के लिए खोलं दिया। दलितों के शोषण के विरुद्ध खड़े हुए। शूद्र और शूद्रातिशूद्र लड़कियों के लिए कई पाठशालाएँ खोली।
विरोध का सामना - उनके सामाजिक कार्यों का सदैव विरोध हुआ। रिश्तेदारों और पुरोहितों के दबाव में आकर पिता ने ज्योतिबा फुले और सावित्री को घर से निकाल दिया। जब सावित्री पढ़ाने जाती तो रास्ते के लोग गालियाँ देते, थूकते, पत्थर मारते, गोबर उछालते। पर दोनों अपने लक्ष्य से हटे नहीं।
कठिन शब्दार्थ :
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ -
1. "ज्योतिबा फुले ब्राह्मण वर्चस्व और सामाजिक मूल्यों को कायम रखने वाली शिक्षा और सुधार के समर्थक नहीं थे। उन्होंने पूँजीवादी और पुरोहितवादी मानसिकता पर हल्ला बोल दिया। उनके द्वारा स्थापित 'सत्यशोधक समाज' और उनका क्रान्तिकारी साहित्य इसका प्रमाण है।"
संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अंतरा भाग-1' के निबन्ध 'ज्योतिबा फुले' से उद्धृत हैं। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं।
प्रसंग - ज्योतिबा फुले समाज सुधारक थे, किन्तु उच्च वर्गीय समाज के प्रतिनिधियों ने पाँच समाज-सुधारकों में उनका नाम सम्मिलित नहीं किया। उन्होंने सामाजिक सुधार के लिए जो प्रयत्न किए उन्हीं का वर्णन उपर्युक्त गद्यांश में है।
व्याख्या - ज्योतिबा फुले समाज सुधारक थे। उन्होंने तत्कालीन समाज में बदलाव लाने और उसके सुधार के लिए कार्य किए। समाज का विरोध सहन किया। किन्तु उच्च वर्ग के लोगों ने उनका नाम पाँच समाज सुधारकों की श्रेणी में नहीं रखा। फुले ने उनकी चिन्ता नहीं की। उन्होंने उस शिक्षा का समर्थन नहीं किया जो ब्राह्मणों को महत्व देने वाली थी, उनके वर्चस्व को बनाये रखने वाली थी।
जो शिक्षा परंपरागत सामाजिक मूल्यों की समर्थक थी और जो विकास में बाधक थी, उसे पूरी तरह नकार दिया। फुले ने पूँजीवाद का विरोध किया, उसके समर्थकों पर करारा प्रहार किया। पुरोहितवादी मानसिकता के विरुद्ध आवाज उठाई, उसके विरोध में अभियान चलाया। ज्योतिबा फुले ने पूँजीवादियों और पुरोहितों की संकीर्ण मनोवृत्ति के विरुद्ध क्रान्तिकारी साहित्य की रचना की और सत्यशोधक समाज की स्थापना की। उनका लक्ष्य नये समाज का निर्माण करना था।
विशेष :
2. "महात्मा ज्योतिबा फुले ने वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था में निहित शोषण-प्रक्रिया को एक-दूसरे का पूरक बताया। उनका कहना था कि राजसत्ता और ब्राह्मण आधिपत्य के तहत धर्मवादी सत्ता आपस में साँठ-गाँठ कर इस सामाजिक व्यवस्था और मशीनरी का उपयोग करती है। उनका कहना था कि इस शोषण-व्यवस्था के खिलाफ दलितों के अलावा स्त्रियों को भी आन्दोलन करना चाहिए।"
संदर्भ - ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणों और उन सामाजिक मूल्यों का घोर विरोध किया जो शूद्रों को शिक्षा देने का विरोध करते थे। वे वर्ग-व्यवस्था के भी विरोधी थे।
व्याख्या - महात्मा ज्योतिबा फुले समाज में व्याप्त वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था को शोषण का मुख्य कारण मानते थे। उन्होंने तत्कालीन समाज-व्यवस्था और शोषण की प्रक्रिया को एक दूसरे का पूरक बताया, दोनों के पारस्परिक संबंधों को प्रकट किया। उनका मानना था कि धर्मवादी सत्ता और राज सत्ता दोनों मिलकर सामाजिक व्यवस्था का लाभ उठाते हैं। फुले ने स्पष्ट किया कि समाज में व्याप्त वर्ण, जाति और वर्ग-व्यवस्था शूद्रों और दलितों का शोषण कर रही है। वर्ण व्यवस्था शोषण का मुख्य कारण है।
उच्च वर्ग अपने हित में राजकीय मशीनरी का उपयोग कर रहा है। धर्म के ठेकेदार ब्राह्मणों का वर्चस्व है, वे मनमाने तरीके से राजसत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। इस सामाजिक अव्यवस्था को देखकर फुले ने कहा कि इस व्यवस्था का विरोध होना चाहिए। शोषण की यह प्रक्रिया तभी समाप्त होगी जब दलितों के साथ स्त्रियाँ भी आन्दोलन करेंगी। दोनों को शोषण के विरुद्ध आन्दोलन करना चाहिए। शोषण की यह परम्परा तभी समाप्त होगी।
विशेष :
3.“विकसित वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले और सर्वांगीण समाज-सुधार न चाहने वाले तथाकथित संभ्रान्त समीक्षकों ने महात्मा फुले को समाज-सुधारकों की सूची में कोई स्थान नहीं दिया यह ब्राह्मणी मानसिकता की असलियत का भी पर्दाफाश करता है।"
संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अंतरा भाग-1' में संकलित निबन्ध 'ज्योतिबा फुले' से ली गई हैं। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं।
प्रसंग - महात्मा फुले सच्चे अर्थ में समाज सुधारक थे, किन्तु तथाकथित उच्च वर्ग के दम्भी समीक्षकों ने उन्हें समाज-सुधारक की श्रेणी में नहीं रखा। यह उच्च वर्ग के प्रतिनिधियों की संकीर्णता थी। इसी का वर्णन इन पंक्तियों में है।
व्याख्या - तथाकथित उच्चवर्ग के समीक्षक फुले के विचारों से सहमत नहीं थे। वे उन्हें समाज-सुधारक नहीं मानते थे, इसी कारण उन्हें पाँच समाज-सुधारकों की श्रेणी में नहीं रखा। उनके विरोध का मुख्य कारण यह था कि ज्योतिबा समाज का सर्वांगीण विकास चाहते थे और उच्चवर्ग के समीक्षक सर्वांगीण विकास के पक्ष में नहीं थे। सर्वांगीण विकास के कारण उनके वर्चस्व का ह्रास होता था। इसी कारण वे फुले के विरोधी थे। उच्चवर्गीय लोगों की संकीर्ण एवं तुच्छ प्रवृत्ति का इससे पता चलता है।
विशेष :
4. स्त्री शिक्षा के दरवाजे पुरुषों ने इसलिए बंद कर रखे हैं कि वह मानवीय अधिकारों को समझ न जाए, जैसी स्वतंत्रता पुरुष लेता है, वैसी ही स्वतंत्रता स्त्री ले तो ? पुरुषों के लिए अलग नियम और स्त्रियों के लिए अलग नियम- यह पक्षपात है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित सुधा अरोड़ा के निबंध 'ज्योतिबा फुले' नामक जीवनी से लिया गया है।
प्रसंग - इस अंश में ज्योतिबा पुरुष प्रधान समाज में स्त्री-शिक्षा की दयनीय स्थिति का परिचय करा रहे हैं।
व्याख्या - ज्योतिबा का मत है कि पुरुषों ने स्त्रियों को शिक्षा से वंचित इस कारण रखा है कि वे स्त्री के रूप में अपने मानवोचित अधिकारों को न समझ पाएँ। यदि स्त्रियाँ शिक्षित होंगी तो वे पुरुषों की गुलामी कभी भी स्वीकार नहीं करेंगी। पुरुषों द्वारा बनाई गई नियमावली में, पुरुषों ने सारे अधिकार अपने ही लिए निश्चित किए हैं, स्त्रियों के अधिकारों की चर्चा भी नहीं की है। ज्योतिबा कहते हैं कि जैसे स्वतंत्रता का उपयोग पुरुष करते हैं वैसी ही स्वतंत्रता स्त्रियाँ भी अपनाने लगे तो क्या होगा ? क्या पुरुषों को यह बात स्वीकार होगी ? कभी नहीं। पुरुषों के लिए अलग नियम बनाना और स्त्रियों के लिए अलग नियम बनाना, सरासर अन्याय है। घोर पक्षपात है। अतः इसे समाप्त किया जाना चाहिए।
विशेष :
5. 'स्वतंत्रता का अनुभव हम स्त्रियों को है ही नहीं। इस बात की आज शपथ लो कि स्त्री को उसका अधिकार दोगे और उसे अपनी स्वतंत्रता का अनुभव करने दोगे।' यह आकांक्षा सिर्फ वधू की ही नहीं, गुलामी से मुक्ति चाहने वाली हर स्त्री की थी। स्त्री के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए ज्योतिबा फुले ने हरसंभव प्रयत्न किया।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित सुधा अरोड़ा द्वारा लिखित जीवनी 'ज्योतिबा फुले' से लिया गया है।
प्रसंग - ज्योतिबा फुले ने विवाह में पढ़े जाने वाले नए मंगलाष्टकों की रचना की। इन अष्टकों में वधू वर से वचन लेती है कि स्त्री को उसके अधिकार देगा। यही बात इस अंश में कही गई है।
व्याख्या - वधू वर से वचन लेती है कि वह उसको उसके अधिकार देगा। स्त्री जानती ही नहीं कि स्वतंत्रता क्या होती है ? पुरुष ने स्त्री को उसके अधिकारों से वंचित रखा है। अतः स्त्री को उसके अधिकार दिए जाएँ। उसे अपनी स्वतंत्रता का सुख अनुभव करने का अवसर दिया जाए। यह इच्छा केवल वधू की ही नहीं थी। पुरुषों की गुलामी से छुटकारा चाहने वाली हर स्त्री भी यही चाहती थी। ज्योतिबा ने स्त्रियों की पीड़ा का अनुभव किया और उन्हें उनके.. अधिकार दिलाने के लिए जो भी आवश्यक हो वह हर प्रयत्न किया।
विशेष :
6. “मुझे 'महात्मा' कहकर मेरे संघर्ष को पूर्णविराम मत दीजिए। जब व्यक्ति मठाधीश बन जाता है तब वह संघर्ष नहीं कर सकता। इसलिए आप अब साधारण जन ही रहने दें, मुझे अपने बीच से अलग न करें।" (पृष्ठ सं. 58)
संदर्भ--प्रस्तुत गद्यावतरण 'अंतरा भाग-1' के 'ज्योतिबा फुले' निबन्ध से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा
प्रसंग-ज्योतिबा फुले ने दलितों, शोषितों और स्त्रियों के उत्थान के लिए कार्य किया, उनके लिए संघर्ष किया। इस कारण उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें यह उपाधि अच्छी नहीं लगी।
व्याख्या - फुले ने कहा कि आपने मुझे 'महात्मा' की उपाधि प्रदान करके जो सम्मान प्रदान किया है, यह मेरे कार्य में व्यवधान डालने वाला है। मैंने जिस मिशन को पूरा करने का बीड़ा उठाया है, यह उपाधि उसे पूर्णरूप से रोक देगी। संघर्ष करने के लिए सक्रिय रहना आवश्यक है। मठाधीश बनकर व्यक्ति संघर्ष नहीं कर सकता। पद और अधिकार पाकर मनुष्य समाज के प्रति अपने दायित्व को भल जाता है। अतः वह इस साधारण व्यक्ति के रूप में ही रहकर शोषित और इस साधारण व्यक्ति के रूप में ही रहकर शोषित और दलित वर्ग की सेवा करना चाहते हैं।
विशेष :
7. "आज के प्रतिस्पर्धात्मक समय में, जब प्रबुद्ध वर्ग के प्रतिष्ठित जाने-माने दंपती साथ रहने के कई बरसों के बाद अलग होते ही एक-दूसरे को संपूर्णतः नष्ट-भ्रष्ट करने और एक-दूसरे की जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक-दूसरे के प्रति और एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन एक आदर्श दाम्पत्य की मिसाल बन कर चमकता है।
संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण 'अंतरा भाग-1' में संकलित निबन्ध 'ज्योतिबा फुले' से उद्धृत है। इसकी लेखिका सुधा अरोड़ा हैं।
प्रसंग - ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले दोनों ने मिलकर दलितों और स्त्रियों के उद्धार के लिए कार्य किया। दोनों ने एक प्राण होकर कार्य किया। इस अंश में लेखिका ने ज्योतिबा और सावित्री बाई के दाम्पत्य जीवन को आज के होड़ से भरे दाम्पत्य जीवन से श्रेष्ठ सिद्ध किया है।
व्याख्या - ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई ने समाज-सुधार और शोषितों के उत्थान के लिए जो मिशन चलाया था उसे निर्भीकता के साथ पूरा किया। जो बाधाएँ और संकट आए उनका साहस के साथ सामना किया। उनका स्नेह और परस्पर सहयोग की भावना एक उदाहरण है। आज पति-पत्नी में स्नेह नहीं है। प्रतिस्पर्धा का युग है। पति-पत्नी में परस्पर सहयोग की भावना के बजाय एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ दिखाई देती है। आज के दम्पत्ति वर्षों तक साथ रहकर भी एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं।
उनका स्नेह और पारस्परिक सम्बन्ध टूट जाता है। उस स्थिति में वे एक दूसरे को नष्ट करने को कटिबद्ध हो जाते हैं। ऐसा केवल अशिक्षित समाज में ही नहीं होता, शिक्षित और प्रबुद्ध वर्ग के पति-पत्नी भी इस प्रकार का व्यवहार करते हैं। एक-दूसरे की जड़ खोदने को आमादा हो जाते हैं। किन्तु फुले दम्पत्ति का सम्बन्ध ऐसा नहीं था। उनका दाम्पत्य जीवन एक आदर्श है। वे एक-दूसरे के प्रति समर्पित थे। दोनों अपने मिशन की पूर्ति के लिए एक प्राण होकर कन्धे मिलाकर कार्य करते थे। उनका जीवन आदर्श पति-पत्नी का जीवन है जो सबके लिए एक आदर्श है। नयी पीढ़ी के दम्पतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
विशेष :