Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 18 हस्तक्षेप Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
मगध के माध्यम से 'हस्तक्षेप' कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है ?
उत्तर :
'मगध' हमारे देश के एक विशाल साम्राज्य की राजधानी रहा है। कवि ने वर्तमान जनतंत्रीय व्यवस्था को निरंकुश होने से रोकने के लिए जनता द्वारा हस्तक्षेप आवश्यक माना है। जब तन्त्र शांति-व्यवस्था की ओट में निरंकुशता धारण कर ले तो हस्तक्षेप करना आवश्यक होता है। अतः लोकतन्त्र में जनता का हस्तक्षेप स्वस्थ शासन व्यवस्था के लिय आवश्यक होता है। मगध के माध्यम से कवि ने एक निरंकुश होती शासन व्यवस्था की ओर संकेत किया है। जनतंत्रीय शासन में जनता का हस्तक्षेप उसका अधिकार होता है। अत: लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए जनता का हस्तक्षेप आवश्यक होता है।
प्रश्न 2.
व्यवस्था को 'निरंकुश' प्रवृत्ति से बचाए रखने के लिए उसमें 'हस्तक्षेप' जरूरी है कविता को दृष्टि में रखते हुए अपना मत दीजिए।
उत्तर :
लोकतान्त्रिक-व्यवस्था संसार को आदर्श- व्यवस्था है, जिसमें साधारण से साधारण व्यक्ति को अपनी बात कहने का अधिकार होता है। इसके विपरीत तानाशाही या राजतंत्र निरंकुश शासन-व्यवस्था है। इस व्यवस्था का दमन-चक्र ता की आवाज को कचलकर उन्हें घटन भरी जिन्दगी जीने को विवश करता है। अत: इस निरंकुशता से बचने के लिए लोकतान्त्रिक प्रणाली की जनता को सदा जागरूक रहना चाहिए। निरंकुश शासन में जनता की सुख-समृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। अतः कवि ने 'हस्तक्षेप' कविता के माध्यम से संकेत दिया है कि शासन में सार्थक हस्तक्षेप आवश्यक है तभी जनता सुखी रह सकती है।
प्रश्न 3.
मगध निवासी किसी भी प्रकार से शासन-व्यवस्था में हस्तक्षेप करने से क्यों कतराते हैं ?
उत्तर :
मगध निवासियों को झूठे और दिखावटी आत्मगौरव की शिक्षा दी गई है। वहाँ का निरंकुश शासन लोगों की इसी धारणा के कारण हर प्रकार का अत्याचार करके भी लोगों को विरोध न करने को विवश करता है। उन्हें यह सिखाया गया है कि मगध का अस्तित्व तभी तक है जब तक जनता द्वारा उसकी शासन व्यवस्था में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। इसलिये वहाँ की जनता शासन में हर प्रकार के हस्तक्षेप से बचती है।
प्रश्न 4.
'मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं' के आधार पर मगध की स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर :
मगध भारत का एक आदर्श राज्य रहा है, वहाँ पौराणिक काल में जरासंध और ऐतिहासिक काल में मौर्य साम्राज्य था। अशोक, वृहद्रथ तथा शुंग काल में मगध की शासन व्यवस्था जगत-प्रसिद्ध थी। लेकिन अब वह नाममात्र का मगध रह गया है। वहाँ के निरंकुश शासकों ने जनता की स्वतन्त्रता को छीन लिया है। अब वहाँ छींकने, टोकने और चीखने तक की छूट नहीं है। इस प्रकार अब मगध केवल नाममात्र का मगध रह गया है, वहाँ रहना बड़ा कठिन हो गया है। कवि ने लोकतंत्रीय भारत में आपातकाल के थोपे जाने पर व्यंग्य किया है।
प्रश्न 5.
मुर्दे का हस्तक्षेप क्या प्रश्न खड़ा करता है ? प्रश्न की सार्थकता को कविता के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
व्यावहारिक रूप से मुर्दा कुछ भी नहीं कर सकता लेकिन कवि ने यहाँ प्रतीकात्मक रूप में मुर्दा शब्द का प्रयोग किया है, जिसका अर्थ ऐसे लोगों से है जो हर प्रकार का अन्याय सहन करके भी उसका प्रतिकार नहीं करते। किसी भी शासन-व्यवस्था में यदि निरंकुशता आ जाती है तो वहाँ के प्रबद्ध नागरिकों को उसका विरोध करना चाहिए, लेकिन कई बार नागरिकों को राष्ट्र के अतीत की महानता का ध्यान दिलाकर उनके विरोध करने के अधिकार को छीन लिया जाता है।
अतः ऐसी व्यवस्था में सामान्यजन जिनको कवि ने मुर्दा कहा है सत्ता के विरुद्ध खड़े होकर अपनी दुरवस्था के बारे में प्रश्न कर सकता है। वह अपने मरने का कारण पूछ सकता है अर्थात् दुख-दर्द का कारण पूछ सकता है। कवि ने शहर में से गुजरते हुए मुर्दे के इस प्रश्न से शासन के अन्याय के विरुद्ध सामान्यजन की प्रतिक्रिया को प्रतीक रूप में बताया है।
प्रश्न 6.
"मगध को बनाए रखना है, तो मगध में शान्ति रहनी चाहिए"-भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
निरंकुश शासन सदैव इसी प्रकार के तर्क दिया करता है कि इस शासन-व्यवस्था से अच्छी कोई और। शासन-व्यवस्था नहीं हो सकती। अतः इसकी सुख-शान्ति की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक के हित में ही होगी। देश बिखर जायेगा, चारों ओर अराजकता फैल जायेगी, जनता को अनेक कष्ट भोगने पड़ेंगे। यहाँ कवि ने 'शांति' शब्द का व्यंग्यात्मक कया है। शांति अर्थात जनता का मुँह बंद रहना। कष्ट सहते हए भी शांति के नाम पर वसा को निरंकशला लहते रहना। मुर्दा बने रहना। एक जनतंत्र में जनता का हस्तक्षेप बना रहना परम आवश्यक है।
प्रश्न 7.
'हस्तक्षेप' कविता सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध की कविता है।' स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि श्रीकान्त वर्मा ने 'हस्तक्षेप' कविता के माध्यम से भारत की शासन-व्यवस्था के उस काल की ओर संकेत किया है, जबकि नागरिक अधिकारों को छीन लिया प्रया था। लोगों को किसी भी प्रकार का विरोध करने की अनुमति नहीं थी। यह सब भारत में शांति बनाए रखने और देश को बनाए रखने के नाम पर किया गया था।
कवि की हस्तक्षेप कविता में जनता को छींककर हल्का विरोध अर्थात् समाचार-पत्रों में अपनी बात कहकर विरोध प्रकट करना, चीख-पुकारकर अपने अभावों का दुख अभिव्यक्त करना और टोककर सत्ता की व्यवस्था में हस्तक्षेप करना आदि का संकेत दिया है। यह सत्ता की क्रूरता के विरुद्ध जनता की प्रतिक्रिया है। मगध के शासन के विरुद्ध ऐसा करने की अनुमति नहीं थी। अन्त में मुर्दे द्वारा किये गये प्रश्न के माध्यम से सत्ता की क्रूरता के विरुद्ध सामान्यजन की प्रतिक्रिया है। अतः हस्तक्षेप सत्ता की क्रूरता और उसके प्रतिरोध की कविता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रयोगों को स्पष्ट कीजिए -
(क) कोई छींकता तक नहीं
(ख) कोई चीखता तक नहीं
(ग) कोई टोकता तक नहीं।
उत्तर :
(क) 'छींकना' एक साधारण-सा विरोध है अर्थात् गली, मौहल्लों का चौराहों पर शासन की अव्यवस्था की कमियाँ निकालना, आपस में चर्चा करना। लेकिन शासन का भय उन्हें ऐसी साधारण प्रतिक्रिया करने की अनुमति नहीं देती।
(ख) 'चीखना' अर्थात् असहनीय कष्ट को अपनी चीख-पुकार से अभिव्यक्त करना। सत्ता के क्रूर अत्याचारों के विरुद्ध धरना, आन्दोलन या सभाएँ आदि के द्वारा प्रकट करना। मगध की शासन-व्यवस्था को क्रूर अत्याचारों को जनता चुपचाप सहन करने को विवश है, किसी प्रकार का मुखर विरोध नहीं कर सकती। कवि ने इस विरोध को चीखना कहा है।
(ग) 'टोकना' हस्तक्षेप का प्रतीक है। मगध की शासन-व्यवस्था चाहे कितनी ही क्रूर, अत्याचार कर जनता को कष्ट पहुँचाए पर कोई भी उसके इन अन्यायों के विरुद्ध हस्तक्षेप नहीं कर सकता। अक्सर निरंकुश सत्ता जनता द्वारा किये गये किसी हस्तक्षेप को सहन नहीं करती। कवि ने 'टोकना' शब्द का प्रयोग इसी रूप में किया है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पद्यांशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए:-
(क) मगध को बनाए रखना है तो ............... मगध है, तो शांति है।
(ख) मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए ............ क्या कहेंगे लोग?
(ग) जब कोई नहीं करता ................ मनुष्य क्यों मरता है?
उत्तर :
(क) मगध को बनाए ............... शांति है।
सन्दर्भ - कवि श्रीकान्त वर्मा की कविता 'मगध' से पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' में 'हस्तक्षेप' नाम से संकलित काव्यांश में कवि निरंकुश शासक शांति के नाम पर जनता से शासन-व्यवस्था को ज्यों का त्यों बनाए रखने की कह रहा है।
व्याख्या - शासक वर्ग अपने कुशासन और अन्याय, अत्याचार को छिपाने के लिए जनता को शांति बनाये रखने का प्रलोभन देता है। वह जनता पर शांति बनाए रखने के लिए दबाव डालता है कि जनता शासन के हर कदम का समर्थन करे, किसी भी प्रकार का प्रतिरोध नहीं करे। क्योंकि अत्याचारों के विरोध में खड़े होने से व्यवस्था की शांति भंग हो जायेगी। अतः सब कुछ को भूलकर सत्ता की हर भूल को भूलना सीखो। विरोध करना नहीं सीखना चाहिए। मगध साम्राज्य स्थित रहेगा तो शांति रहेगी, मगध नहीं रहा तो शांति नहीं रहेगी। अतः शांति के लिए सत्ता की गलतियों पर ध्यान देना उचित नहीं है।
(ख) मगध में व्यवस्था ............... क्या कहेंगे लोग।
सन्दर्भ - यह काव्यांश कवि श्रीकान्त वर्मा के काव्य संग्रह 'मगध' से लिया गया है, जो पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' में 'हस्तक्षेप' नाम से संकलित है। मगध की व्यवस्था में हस्तक्षेप करने के लिए जो तर्क दिये गये हैं वे इस अंश से संकलित हैं।
व्याख्या - मगध की जनता को इसलिये कष्ट सहना चाहिए कि प्रतिरोध करने से मगध की शासन-व्यवस्था भंग हो जायेगी। किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया अथवा चीख-पुकार व्यवस्था में हस्तक्षेप माना जायेगा। लोगों को झूठा और दिखावटी आत्मगौरव का भाव सिखाया जाता है। मगध एक महान् राष्ट्र रहा है।
अत: यहाँ शांति-व्यवस्था रहना आवश्यक है। यदि इस महान राष्ट्र में शांति नहीं रहेगी तो कहाँ रहेगी ? लोगों को ऐसा कहकर डरा दिया जाता है कि मगध की शासन-व्यवस्था एक आदर्श व्यवस्था है अतः यह कायम रहनी चाहिए। इसका किसी भी तरह से विरोध नहीं होना चाहिए। वर्तमान शासक भी शांति बनाए रखने के लिए जनता, की लोकतांत्रिक क्रियाओं को प्रतिबन्धित कर देते हैं। कवि ने मगध-शासन से यही संकेत दिया है।
(ग) जब कोई नहीं करता ............... मनुष्य क्यों मरता है।
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्यांश कवि श्रीकान्त वर्मा के काव्य संग्रह 'मगध' से हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' में 'हस्तक्षेप' नाम से संकलित है। कवि कहता है कि अत्याचारी शासन का विरोध जब कोई नहीं करता तो मुर्दा जैसा सामान्यजन ही प्रश्न खड़े करके शासन-व्यवस्था का विरोध किया करता है। कवि आगे कहता है कि -
व्याख्या - जब शासन-व्यवस्था का भय के कारण कोई विरोध करने को तैयार नहीं होता तब कोई मुर्दा जैसा सामान्य व्यक्ति ही विरोध में खड़ा हो जाता है और शासन-व्यवस्था से अनेक प्रश्न करके ही विरोध व्यक्त करता है। इस प्रकार अत्याचारी शासन का विरोध करने के लिए कोई-न-कोई खड़ा भी हो सकता है। व्यवस्था को इस घमण्ड में नहीं रहना चाहिए कि उसका विरोध करने वाला कोई नहीं है। मुर्दा उन लोगों का प्रतीक है जो कभी प्रतिरोध नहीं चाहते।
योग्यता विस्तार -
प्रश्न 1.
“एक बार शुरू होने पर,
कही नहीं रुकता हस्तक्षेप"
इस पंक्ति को केन्द्र में रखकर परिचर्चा आयोजित करें।
उत्तर :
संसार में अनेक क्रूर, निरंकुश एवं तानाशाहीपूर्ण शासक हुए हैं, जिन्होंने जनता की आवाज को कुचला है। भारत में सैकड़ों वर्षों तक विदेशी शासक रहे जिन्होंने हर तरह से जनता का शोषण किया, अनेक अत्याचार किये लेकिन अन्त में जीत सामान्यजन की ही हुई। आज भारत पूरी तरह स्वतन्त्र है। एक बार स्वतन्त्र भारत में ही इस तरह का शासन रहा है। लेकिन जनता के विरोध के सामने उसे झुकना पड़ा है। बस एक बार जनता शासन के कार्यों में हस्तक्षेप प्रारम्भ कर दे, बाद में यह हस्तक्षेप बढ़कर एक आन्दोलन बन जाता है। जनता अधिक समय तक अत्याचार सहन नहीं कर सकती।
प्रश्न 2.
'व्यक्तित्व के विकास में प्रश्न की भूमिका' विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
'प्रश्न' का वास्तविक अर्थ जिज्ञासा है। जिज्ञासा से ही व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता है। किशोर एवं युवावस्था में से अधिक होती है। इसलिये ज्ञानार्जन भी इसी उम्र में होता है। अतः व्यक्तित्व-विकास के लिए बुद्धि एवं विवेक का विकास आवश्यक होता है, जो कि प्रश्नों द्वारा अर्थात् जिज्ञासा से ही विकसित होता है। अत: व्यक्तित्व विकास के लिए प्रश्न परमावश्यक है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'हस्तक्षेप' कविता में 'मगध' प्रतीक है -
(क) राजतंत्रीय शासन का
(ख) स्वेच्छाचारी शासन का
(ग) मगध साम्राज्य का
(घ) देश की वर्तमान शासन व्यवस्था का
उत्तर :
(घ) देश की वर्तमान शासन व्यवस्था का
प्रश्न 2.
'छींकता तक नहीं' में छींकने का आशय है -
(क) छोकने की क्रिया
(ख) न्यूनतम प्रतिरोध
(ग) अपशकुन
(घ) बाधा डालना
उत्तर :
(ख) न्यूनतम प्रतिरोध
प्रश्न 3.
"मगध कहने को है, रहने को नहीं" ऐसा कहते हैं -
(क) मगध को छोड़ गए लोग
(ख) मगध की जनता
(ग) मगध के शत्रु
(घ) राज कर्मचारी
उत्तर :
(ख) मगध की जनता
प्रश्न 4.
लोग टोकने से डरते हैं ताकि -
(क) टोकना रिवाज न बन जाए।
(ख) टोकना विद्रोह न मान लिया जाए।
(ग) टोकना हस्तक्षेप माना जाए।
(घ) टोकने पर कठोर दंड दिया जाए।
उत्तर :
(क) टोकना रिवाज न बन जाए।
प्रश्न 5.
'मुर्दा' शब्द प्रतीक है
(क) मृत व्यक्ति का
(ख) भयभीत व्यक्ति का
(ग) उदासीन व्यक्ति का
(घ) शांतिप्रिय व्यक्ति का
उत्तर :
(ग) उदासीन व्यक्ति का
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
मगध में लोग छींकते हुए भी क्यों डरते हैं?
उत्तर :
लोग छींकने या न्यूनतम प्रतिरोध से भी बचना चाहते हैं ताकि इसे अशांतिजनक न माना जाए।
प्रश्न 2.
मगध को बनाए रखने के लिए क्या आवश्यक माना गया है?
उत्तर :
मगध की कुशल-क्षेम के लिए आवश्यक है कि प्रजा अपना मुँह बंद रखे।
प्रश्न 3.
'चीखता तक नहीं' का आशय क्या है?
उत्तर :
आशय है कि जनता शासन के अत्याचारों को चुपचाप सहन कर लेती है।
प्रश्न 4.
मगध की शासन व्यवस्था के बारे में लोगों का क्या कहना है?
उत्तर :
लोग कहते हैं कि अब मगध नाम मात्र का मगध रह गया है। राजकीय निरंकुशता के कारण रहने योग्य नहीं रहा है।
प्रश्न 5.
सत्ता को टोके जाना क्यों स्वीकार नहीं है?
उत्तर :
सत्ता को भय है कि एक बार टोकना या हस्तक्षेप करना क्षमा किया जायेगा तो जनता बार-बार व्यवस्था में हस्तक्षेप करने लगेगी।
प्रश्न 6.
जब कोई भी निरंकुश शासन तंत्र का विरोध नहीं करता तब क्या होता है?
उत्तर :
तब शासन की क्रूरता को चुपचाप सहने वाले लोग भी विरोध में बोलने या हस्तक्षेप करने लगते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'हस्तक्षेप' कविता में व्यक्त कवि की पीड़ा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'हस्तक्षेप' कविता में कवि ने मगध के प्रतीक द्वारा अपनी पीड़ा व्यक्त की है। मगध निरंकुश शासन व्यवस्था का प्रतीक है। निरंकुश शासन-व्यवस्था जनता की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा देती है। मगध की शासन व्यवस्था ने छींकने और चीखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। शान्ति की आड़ में जनता के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। कवि को पीड़ा है कि यह व्यवस्था कब तक चलती रहेगी। कब तक व्यक्ति की वाणी पर नियंत्रण रहेगा। उसे क्रूर शासन-व्यवस्था का विरोध करने की स्वतंत्रता कब मिलेगी। जनता की इसी पीड़ा को कविता में व्यक्त किया गया है।
प्रश्न 2.
'हस्तक्षेप' का प्रतीकार्थ स्पष्ट करते हुए उसकी आवश्यकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'हस्तक्षेप' का प्रतीकार्थ है विरोध करना, किसी कार्य पर टीका-टिप्पणी करना या रोकना। कविता में विरोध के अर्थ में ही इसका प्रयोग हुआ है। कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि शासन-व्यवस्था निरंकुश हो गई है, दमन की नीति अपना रही है। जनता के छींकने अर्थात् स्वाभाविक रूप में किए गए छोटे कार्यों पर भी रोक लगा दी जाय तो उस व्यवस्था का विरोध आवश्यक है। जब जनता की पीड़ा को कोई व्यवस्था न सुने और उसकी चीख-पुकार की उपेक्षा की जाय तो हस्तक्षेप आवश्यक है। निरंकुशता का विरोध करने के लिए कवि ने 'हस्तक्षेप' शब्द का प्रयोग किया है और उसकी आवश्यकता बताई है। जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए हस्तक्षेप आवश्यक है।
प्रश्न 3.
'हस्तक्षेप' कविता में कवि ने 'मुर्दा शब्द के प्रतीक से किन भावों की अभिव्यक्ति की है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता में छींकना, चीखना, टोकना वे शब्द हैं जो हस्तक्षेप अर्थ देते हैं। कविता के अन्त में 'मुर्दा' कविता का चरम बिन्दु है। कवि कहना चाहता है कि जिस समाज में जब उच्चवर्ग या प्रबुद्ध वर्ग निरंकुश शासन-तंत्र के अत्याचार को सहन कर लेता है तब वे प्राणी जिनकी जबान पर ताला लगा है, वे ही विरोध करते हैं और निष्ठुर शासन-तंत्र से प्रश्न करते हैं तुम्हारी व्यवस्था में मनुष्य मुर्दा क्यों बन गया है। वास्तव में जिनमें अन्याय, अत्याचार का विरोध करने की क्षमता नहीं है वे मुर्दा के समान ही हैं।
प्रश्न 4.
'हस्तक्षेप' कविता बिम्ब प्रधान कविता है। समझाइए।
उत्तर :
'हस्तक्षेप' कविता बिम्ब प्रधान है। मगध से एक ऐसे शासन-तंत्र का बिम्ब उभरता है जो क्रूर है और जनता की आवाज को कुचल देता है। 'मुर्दा' शब्द से उन लोगों का बिम्ब उभरता है जो गूंगे बनकर अत्याचार सहन करते हैं और दबी जबान से शासन से मानव की मृत्यु का कारण पूछते हैं। 'मगध है, तो शान्ति है' पंक्ति से उन दम्भी शासकों का बिम्ब उभरता है जो स्वयं को अपने शासन को ही श्रेष्ठ मानते हैं। पूरी कविता बिम्बों से भरी पड़ी है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1.
'हस्तक्षेप' कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'हस्तक्षेप' कविता में कवि ने दो विरोधी भावनाओं को एक साथ खड़ा किया है। एक ओर शासन-व्यवस्था की क्रूरता है दूसरी ओर उसका विरोध करने की भावना है। निरंकुश शासन व्यक्ति की छींक, चीख और टोकने पर प्रतिबन्ध लगाता है। उसे भ्रमित करने का प्रयत्न करता है। किन्तु जनतांत्रिक व्यवस्था को स्थिर रूप प्रदान करने के लिए जनता का हस्तक्षेप आवश्यक है। यदि विरोध न किया जाय तो शासन-व्यवस्था दमनकारी रूप धारण कर लेती है और उसे किसी भी प्रकार रोका नहीं जा सकता।
इसलिए व्यक्ति और समाज मुर्दा बने, इससे पहले ही क्रूरता का विरोध करके उसे रोकने का प्रयास किया जाय। यदि शासन व्यवस्था अनीति को अपना ले और उसका विरोध न किया जाय, रोकने का प्रयत्न न किया जाय तो शान्ति सम्भव नहीं है। कवि का मूल भाव यही है कि दमनकारी शासन-व्यवस्था का विरोध किया जाय और जनतांत्रिक भावना को जाग्रत किया जाय।
प्रश्न 2.
'कोई छींकता नहीं, कोई चीखता नहीं, कोई टोकता नहीं' पंक्तियों के प्रयोग का प्रयोजन क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'हस्तक्षेप' कविता लिखने का कवि का मुख्य उद्देश्य शासन-तंत्र की क्रूरता, अन्याय, शोषण और दमनकारी नीति का जनता द्वारा प्रतिरोध करने का संदेश देता है। दमनकारी शासन-तंत्र शान्ति की बात करके निरीह जनता को दबाता है और उसके विरोध को कुचल देता है। कोई छींकता, चीखता और टोकता नहीं शब्दों का प्रयोग करके कवि यह प्रकट करता है कि निरंकुश शासन-तंत्र जनता की स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं को भी शंका से देखता है, उसकी पुकार और विरोध को शासन के पैर उखाड़ने के रूप में लेता है।
तब प्रश्न उठता है कि लोग चुप क्यों हैं विरोध क्यों नहीं करते। कवि इन शब्दों के प्रयोग से स्पष्ट करता है कि जनता इतनी भयभीत है कि विरोध की कल्पना भी नहीं करती है। 'कोई टोकता नहीं, टोकने की रिवाज न बन जाये' कथन से व्यंग्य किया है और भयभीत जनता की मानसिकता को प्रदर्शित किया है। कवि की मूल भावना यह है कि जनता को चीखना भी चाहिए और टोकना भी चाहिए तभी शासन-तंत्र ठीक से कार्य करेगा।
प्रश्न 3.
श्रीकान्त वर्मा की कविता 'हस्तक्षेप' एक व्यंग्य प्रधान रचना है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
वर्माजी की 'हस्तक्षेप' कविता में गुम्फित व्यंग्य है। आरम्भ से लेकर अन्त तक हर पंक्ति में व्यंग्य छिपा है। व्यंग्य शैली बड़ी प्रभावोत्पादक होती है। इसलिए कवि ने मगध के माध्यम से निरंकुश शासन-तंत्र पर व्यंग्य किया है। 'हस्तक्षेप' शीर्षक में ही व्यंग्य छिपा है जो यह स्पष्ट करता है कि निरंकुश शासन अपना विरोध स्वीकार नहीं करता। छींकना नहीं, चीखना नहीं, टोकना नहीं प्रयोगों से दमनकारी शासन- व्यवस्था पर व्यंग्य किया है जो हर तरह से जनता को कुचलना चाहती है। 'मुर्दा' द्वारा प्रश्न पूछना कि 'मनुष्य क्यों मरता है ?' उस शासन-व्यवस्था पर बहुत करारा व्यंग्य है जो यह कहती है 'मगध है, तो शान्ति है।' अर्थात् जो यह दावा करती है कि हमारे शासन में ही शान्ति रह सकती है और देश बच सकता है। हमारे शासन के अतिरिक्त और कहीं शान्ति नहीं रह सकती, क्रूर शासन-तंत्र के अहंकार पर व्यंग्य है। अतः यह स्वीकार करने में अत्युक्ति नहीं होगी कि 'हस्तक्षेप' कविता व्यंग्य प्रधान है।
प्रश्न 4.
'हस्तक्षेप' कविता के काव्य-सौन्दर्य को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य पर विचार करने के लिए हमें कविता के भावपक्ष और कलापक्ष पर पृथक-पृथक विचार करना चाहिए।
भावपक्ष - यह कविता एक राजनीतिक व्यंग्य प्रधान कविता है। इसमें शासन की क्रूरता का वर्णन है। दूसरी ओर जनता के विरोध को दर्शाया है। क्रूर शासन तंत्र सभी प्रकार से जनता की भावनाओं को कुचलने का प्रयत्न करता है। उसकी समस्याओं पर उसका ध्यान नहीं होता। अपने विरोध को सहन नहीं करता। विद्रोह को कुचल देता है। छींकने, चीखने और टोकने जैसे साधारण विरोध भी उसे सहन नहीं होते। शासन को बचाओ और शान्ति रखो की प्रेरणा देकर जनता को भ्रमित किया जाता है। कवि ने यह भी प्रकट किया है कि यदि जनतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करनी है तो प्रतिरोध करना आवश्यक है। जब तक हस्तक्षेप नहीं होगा शासन-तंत्र निरंकुश हो जाएगा। इन्हीं भावों को कविता में व्यक्त किया है।
कलापक्ष-कलापक्ष कविता का शरीर है उसका सौन्दर्य भी आवश्यक है। 'हस्तक्षेप' कविता का कलापक्ष भी श्रेष्ठ है। कविता की भाषा सरल, सहज और बोलचाल की है। प्रतीकात्मक शैली है और लक्षणा, व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है। प्रसाद गुण है। मुक्त छंद है। अतुकान्त शैली है। बिम्ब योजना सुन्दर है। कम शब्दों में अधिक भावों को भरने का प्रयास किया है। कविता अलंकारों से बोझिल नहीं है।
कवि परिचय :
श्रीकान्त वर्मा का जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 18 दिसम्बर 1931 ई. को हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा बिलासपुर में हई। सन् 1956 में आपने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया। सन् 1986 ई. में आप दिवगत हो गए। श्रीकान्त वर्मा ने एक पत्रकार के रूप में अपना साहित्यिक जीवन आरम्भ किया। आप श्रमिक, कृति, दिनमान और वर्णिका पत्रों से सम्बद्ध रहे।
आपकी कृतियों से समाज की विसंगतियों और विद्रूपताओं के प्रति क्षोभ झलकता है। आपकी रचनाओं के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि वे आस-पास के मानव-जीवन और संघर्षरत मानव से गहराई तक जुड़े रहे। उन्होंने गर्हित परम्पराओं को तोड़ने का प्रयास किया। आपने ग्राम्य जीवन को लेकर प्रारम्भिक रचनाएँ लिखी हैं, किन्तु 'जलसा घर' तक आते-आते शहरीकृत अमानवीयता के खिलाफ एक संवेदनात्मक बयान में बदल जाती हैं।
भटका मेघ, दिनारंभ, मायादर्पण, जलसाघर और मगध काव्य ग्रन्थ हैं; 'झाड़ी संवाद' कहानी संग्रह; 'दूसरी बार' उपन्यास; 'जिरह' आलोचना; 'अपोलो का रथ' यात्रा-वृतांत हैं। आपको तुलसी पुरस्कार, आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी पुरस्कार और शिखर सम्मान से सम्मानित किया। केरल का कुमारन आशान राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
पाठ परिचय :
हस्तक्षेप' कविता में शासक वर्ग की हृदय-हीनता और क्रूरता का वर्णन है, उसके प्रति जनता के आक्रोश का वर्णन है। कवि ने संकेत किया है कि शासन को निरंकुश होने से रोकने के लिए जनता का हस्तक्षेप आवश्यक होता है। भगध जनतांत्रिक व्यवस्था का एक राष्ट्र है। उसके अस्तित्व के बचने पर ही जनता बचेगी। मगध की शान्ति बनाए रखने और व्यवस्था के लिए न तो कोई छींकता है और न चीखता है। धीरे-धीरे मगध की जनतांत्रिक व्यवस्था समाप्त हो जाती है और वह रहने योग्य नहीं रहता। कोई हस्तक्षेप नहीं करता। कवि संकेत रूप में एक मुर्दे को भी सत्ता की क्रूरता के विरुद्ध हस्तक्षेप करना दिखाकर हस्तक्षेप की प्रेरणा देता है।
काव्यांशों की सप्रसंग व्यारव्याएँ -
1. कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाये,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है।
शब्दार्थ :
सन्दर्भ - प्रस्तुत काव्यांश कवि श्रीकान्त वर्मा के काव्य संग्रह 'मगध' से पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' (काव्यखण्ड) में 'हस्तक्षेप' के नाम से संकलित है।
प्रसंग - मगध को शासन-व्यवस्था का प्रतीक मानकर किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप न करके मगध में शांति बनाये रखने का अनुरोध करते हुए डरे हुए लोगों पर व्यंग्य कर रहा है।
व्याख्या - मगध की शासन-व्यवस्था से लोग इतने डरे हुए हैं कि किसी प्रकार अनायास आई 'छींक' को भी रोक लेते हैं, क्योंकि इससे मगध की शांति व्यवस्था भंग हो सकती है। कवि व्यंग्य करता है कि शांति बनाए रखने के लिए मगध का बना रहना आवश्यक है। इस प्रकार मगध और शांति दोनों का ही अस्तित्व आवश्यक है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वास्तव में निरंकुश शासन-तन्त्र अपने विरुद्ध उठने वाले साधारण से विरोध को भी सहन नहीं करता।
विशेष :
2. कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाये
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
शब्दार्थ :
सन्दर्भ - अंतरा (काव्यखण्ड) से उद्धृत उक्त काव्य पंक्तियाँ कवि श्रीकान्त वर्मा द्वारा रचित 'मगध' नामक काव्य संग्रह से हमारी पाठ्य पुस्तक में 'हस्तक्षेप' शीर्षक से संकलित हैं।
प्रसंग - कवि ने मगध को आज के निरंकुश शासन-तन्त्र का प्रतीक मानकर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं -
व्याख्या - मगध के शासन-तन्त्र में रहने वाला कोई भी नागरिक किसी भी प्रकार से अपने दुख को अभिव्यक्त नहीं कर सकता। चाहे कितना भी अत्याचार किया जाये लेकिन वह चीख-पुकारकर भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकता, इसलिये शांति के लिए अपनी भावनाओं को दबाना पड़े तो वह भी करके नागरिक मगध की शासन-व्यवस्था को बनाए रखें। शासन तन्त्र की ओर से यह प्रचार किया जाता है कि मगध में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी सभी नागरिकों की है। कोई भी मगध की शांति-व्यवस्था में हस्तक्षेप न करे। शासन में हस्तक्षेप से शांति भंग होती है। यदि मगध में शांति नहीं रहेगी तो और कहाँ रहेगी ? यदि मगध में शांति व्यवस्था नहीं रही तो दुनिया के लोग क्या करेंगे ? अर्थात् लोगों द्वारा मगध की निंदा की जायेगी। अतः शासन-व्यवस्था के विरुद्ध किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप उचित नहीं है।
विशेष :
3. लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाये।
शब्दार्थ :
सन्दर्भ - यह पद्यांश 'अंतरा' (काव्यखण्ड) में 'हस्तक्षेप' शीर्षक से संकलित कवि श्री कान्त वर्मा की 'मगध' नामक प्रसिद्ध काव्य कृति से अवतरित है
प्रसंग - कवि निरंकुश शासन-व्यवस्था के विरुद्ध जनता की किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया पर अंकुश लगाये जाने पर व्यंग्य कर रहा है।
व्याख्या - शासक जनता के मन में झूठा आत्मगौरव उत्पन्न करती है कि यदि लोग व्यबस्था में हस्तक्षेप करेंगे तो लोग मगध की व्यवस्था पर हँसेंगे। कवि कहता है कि लोगों की बात पर अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि लोग तो अब यह कहने लगे हैं कि मगध अब केवल कहने का ही मगध रह गया है, रहने योग्य नहीं रह गया है। कवि संकेत रूप में यही कहना चाहता है कि धीरे-धीरे शासन के प्रति विद्रोह की भावना पनपने लगती है।
जनतंत्रीय व्यवस्था बनी रहे, इसके लिए जनता का हस्तक्षेप आवश्यक है। लोग आपस में इस निरंकुश शासन-व्यवस्था को बनाए रखने की बात करते हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि यदि लोग इस व्यवस्था को टोकना शुरू कर देंगे तो फिर लोगों में व्यवस्था को टोकने की आदत पड़ जायेगी, इसलिये सब कुछ सहकर भी लोग निरंकुश शासन को सहन करते रहते हैं।
विशेष :
4. एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप
वैसे तो मगध निवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है
मनुष्य क्यों मरता है ?
शब्दार्थ :
सन्दर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' (काव्यखण्ड) में संकलित 'हस्तक्षेप' कविता से लिया गया है। यह कविता कवि श्रीकान्त वर्मा द्वारा रचित 'मगध' नामक काव्य संग्रह से अवतरित है।
प्रसंग - इस काव्यांश में कवि हस्तक्षेप की अनिवार्यता को बताते हुए कह रहे हैं कि -
व्याख्या - यदि एक बार शासन की क्रूरता या निरंकुशता के विरुद्ध जनता एकजुट हो जाती है तो फिर यह एक परंपरा बन जाती है। शासन के खिलाफ विरोधों की श्रृंखला प्रारम्भ हो जाती है। निरंकुश शासक इस परंपरा से घबराते हैं। वे जनता का हस्तक्षेप सहन नहीं कर पाते हैं। हस्तक्षेप प्रारम्भ होना शासन-व्यवस्था के लिए उसके अन्त का संकेत होता है। जब कोई हस्तक्षेप करने का साहस नहीं जुटा पाता तो एक सामान्य या आम व्यक्ति कवि ने जिसे मुर्दा कहा है शहर के बीच से गुजरता हुआ प्रश्न कर सकता है। कवि शासन-व्यवस्था से अच्छे शासन की अपेक्षा करता है। शासन में हस्तक्षेप आवश्यक है, इसके बिना शासन निरंकुश हो जाता है। अतः एक 'शव' भी शासन तन्त्र में अपना हस्तक्षेप प्रदर्शित कर सकता है।
विशेष :