Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Geography Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Geography Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
धरातल असमतल क्यों है ?
उत्तर:
धरातल का रूप कभी एक जैसा नहीं रहा। इसके रूप में परिवर्तन होता रहा है। यह परिवर्तन पृथ्वी की बाह्य और आन्तरिक शक्तियों के योग से होता है। इसमें भू-गर्भ की आन्तरिक हलचलें विशेष महत्वपूर्ण और प्रभावशाली होती हैं। आन्तरिक शक्तियाँ धरातल को लगातार ऊपर उठाने में लगी रहती हैं जबकि बाहरी शक्तियाँ धरातल को सम करने में लगी रहती हैं परन्तु पूर्णतः सफल नहीं हो पाती इसलिए धरातल असमतल है। दूसरे शब्दों में, भू-तापीय प्रवणता एवं अन्दर के ऊष्मा प्रवाह, भू-पर्पटी की मोटाई एवं कठोरता में अन्तर के कारण अन्तर्जात बलों के कार्य समान नहीं होते हैं। अतः विवर्तनिक क्रिया द्वारा नियन्त्रित मूल भू-पर्पटी की सतह असमतल होती है।
प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं ? भू-आकृतिक कारकों एवं भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में अन्तर करना आवश्यक है?
उत्तर:
बहिर्जनिक तत्व जल, हिम, वायु जो धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण (Acquire) तथा परिवहन करने में सक्षम होते हैं, उन्हें भू-आकृतिक कारक कहा जाता है। जब ये बहिर्जनिक तत्व ढाल प्रवणता के कारण गतिशील हो जाते हैं तो यह पदार्थों को दूसरे स्थान पर निक्षेपित (जमा) कर देते हैं। भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ तथा भू-आकृतिक कारक विशेषतः बहिर्जनिक तत्वों में एक ही हैं परन्तु अन्तर्जनित प्रक्रियाओं में इनमें भू-तापीय प्रवणता, उष्मा प्रवाह, भू-पर्पटी की मोटाई एवं दृढ़ता के कारण अन्तर पाया जाता है। धरातल का विशद् अध्ययन करने हेतु इन दोनों में अन्तर करना आवश्यक होता है क्योंकि भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ जहाँ कारण पक्ष होती हैं वहीं भू-आकृतिक कारक सम्पन्नमूलक कारक होते हैं।
प्रश्न 3.
ज्वालामुखीयता एवं ज्वालामुखी शब्दों में भेद बताइए।
उत्तर:
ज्वालामुखी उद्गार के समय पिघले हुए पदार्थों, लावा व गैसों आदि का भूतल की ओर संचालन ज्वालामुखीयता कहलाता है एवं जिस स्थान पर यह लावा निकल आता है उसे ज्वालामुखी कहते हैं।
प्रश्न 4.
आप क्यों सोचते हैं कि ढाल या प्रवणता बहिर्जनिक बलों से नियन्त्रित विवर्तनिक कारकों द्वारा निर्मित होते हैं?
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमण्डलीय ऊर्जा एवं अन्तर्जनिक शक्तियों से नियन्त्रित विवर्तनिक (Tectonic) कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। अतः ढाल विवर्तनिक बलों से नियन्त्रित विवर्तनिक कारकों द्वारा निर्मित होते हैं। .
प्रश्न 5.
सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल क्या होता है ?
उत्तर:
सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल गुरुत्वाकर्षण बल होता है।
प्रश्न 6.
क्या अपक्षय के कारण कभी-कभी होने वाली यह धीमी गति परिवहन का पर्याय है ? यदि नहीं, तो क्यों ?
उत्तर:
मौसम एवं जलवायु के कार्यों के माध्यम से शैलों के यान्त्रिक विखण्डन (Mechanical) एवं रासायनिक वियोजन/अपघटन (Decomposition) के कारण अपक्षय होता है। चूँकि अपक्षय में पदार्थों का बहुत ही थोड़ा या नगण्य संचलन होता है। यह एक ही स्थान पर होने वाली प्रक्रिया है इसलिए यह परिवहन का पर्याय नहीं है।
प्रश्न 7.
वृहत् क्षरण एवं वृहत् संचलन में से आपके अनुसार कौन-सी शब्दावली अधिक उपयुक्त है एवं क्यों ? क्यों मृदा सर्पण को तीव्र प्रवाह संचलन (Rapid flow movement) के अन्तर्गत सम्मिलित किया जा सकता है ? ऐसा क्यों हो सकता है या क्यों नहीं ?
उत्तर:
वृहत् संचलन हमारे लिए उपयुक्त शब्दावली है क्योंकि इसके अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं, जिनमें शैलों का वृहत् मलबा (Debris) गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है। वृहत् संचलन अपरदन के अन्तर्गत नहीं आता है। मृदा सर्पण को तीव्र प्रवाह संचलन के अन्तर्गत सम्मिलित किया जा सकता है क्योंकि तीव्र संचलन आर्द्र जलवायु प्रदेशों में निम्न से लेकर तीव्र ढालों पर घटित होते हैं। संतृप्त चिकनी मिट्टी या गादी धरातल-पदार्थों का निम्न अंशों वाली वेदिकाओं या पहाड़ी ढालों (Sides) के सहारे निम्नामुख संचलन मृदा-प्रवाह (Earth flow) कहलाता है। प्रायः पदार्थ सीढ़ी के समान वेदिकाएँ बनाते हुए अपसर्पण कर जाते हैं तथा अपने शीर्ष के पास चापाकार कगार तथा पदांगुलि के पास एकत्रित उभार छोड़ जाते हैं।
प्रश्न 8.
क्या आप जलवायु के इन तीन नियंत्रित कारकों की तुलना कर सकते हैं ? (पा. पु. पृष्ठ संख्या-54)
उत्तर:
विशालकाय हिमानी बहुत ही मन्द गति से संचलित होते हैं परन्तु अपरदन की दृष्टि से ये बहुत प्रभावकारी होते हैं। दूसरा कारक हवा जो गैसीय रूप में होती है, कम प्रभावी होती है। तीसरा प्रवाहित नदियों का जल अपरदन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। ये जल स्थानान्तरण और निक्षेपण द्वारा नवीन भू-आकृतियों का निर्माण करने में सक्षम होता है।
प्रश्न 9.
वृहत् संचलन एवं अपरदन दोनों में पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है। अतः दोनों एक ही माने जा सकते हैं या नहीं ? यदि नहीं, तो क्यों ? .
उत्तर:
वृहत् संचलन एवं अपरदन दोनों में पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है परन्तु वृहत् संचलन बहुत ही मन्द गति से होते हैं जबकि जलवायु के तत्वों द्वारा अपरदन कार्य तीव्र गति से होते हैं साथ ही अपरदित पदार्थ तीव्र गति से स्थानान्तरित होते हैं। नवीन भू-आकृतियों को जन्म देते हैं। इसलिए दोनों को एक नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 10.
क्या शैलों के अपक्षय के बिना पर्याप्त अपरदन सम्भव हो सकता है ? (पा. पु. पृष्ठ संख्या -54)
उत्तर:
शैलों के अपक्षय के बिना पर्याप्त अपरदन सम्भव नहीं हो सकता है क्योंकि अपरदन द्वारा उच्चावच का निम्नीकरण होता है, अर्थात् भू-दृश्य विघर्षित होते हैं। इसका तात्पर्य है कि अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। लेकिन अपक्षय अपरदन के लिये अनिवार्य दशा नहीं है।
प्रश्न 11.
क्या अपक्षय मिट्टी निर्माण के लिए पूर्णरूप से उत्तरदायी है ? यदि नहीं, तो क्यों ?
उत्तर:
अपक्षय मिट्टी निर्माण के लिए पूर्णरूप से उत्तरदायी नहीं है क्योंकि मिट्टी का निर्माण मूल पदार्थ, स्थलाकृति, जलवायु, जैविक क्रियाओं तथा समयावधि आदि कारकों द्वारा नियन्त्रित होता है।
प्रश्न 12.
क्या मृदा निर्माण प्रक्रिया एवं मृदा निर्माण नियन्त्रक कारकों को अलग करना आवश्यक है ?
उत्तर:
मृदा निर्माण प्रक्रिया एवं मृदा निर्माण नियन्त्रक कारकों को अलग करना आवश्यक है क्योंकि मृदा निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत मृदा जनन अपक्षयित पदार्थों पर निर्भर करती है, जबकि मृदा निर्माण पाँच मूल कारकों द्वारा नियन्त्रित होता है
प्रश्न 13.
मृदा निर्माण प्रक्रिया में कालावधि, स्थलाकृति एवं मूल पदार्थ निष्क्रिय नियन्त्रक कारक क्यों माने जाते हैं ?
उत्तर:
मृदा निर्माण प्रक्रिया में कालावधि, स्थलाकृति एवं मूल पदार्थ निष्क्रिय नियन्त्रक कारक इसलिए माने जाते हैं क्योंकि मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएँ लम्बे काल तक पार्श्विका विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं और स्थलाकृतियाँ मूल पदार्थ के अनाच्छादन को सूर्य की किरणों के सम्बन्ध में प्रभावित करती हैं तथा स्थलाकृति धरातलीय एवं उप-सतही अप्रवाह की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के सम्बन्ध में भी करती है। तीव्र ढालों पर मृदा छिछली (Thin) तथा सपाट उच्च क्षेत्रों में गहरी/मोटी (Thick) होती है। निम्न ढालों जहाँ अपरदन मन्द तथा जल का परिश्रवण (Precolation) अच्छा रहता है, मृदा निर्माण अनुकूल होता है।
1. बहुविकल्पीय प्रश्न
(i) निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है ?
(क) निक्षेप
(ख) ज्वालामुखीयता
(ग) पटल विरूपण
(घ) अपरदन।
उत्तर:
(घ) अपरदन।
(ii) जलयोजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है ?
(क) ग्रेनाइट
(ख) क्वार्ट्ज
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(घ) लवण।
उत्तर:
(घ) लवण।
(iii) मलवा अवधाव को किस श्रेणी में सम्मिलित किया जा सकता है ?
(क) भूस्खलन
(ख) तीव्र प्रवाही वृहत् संचलन
(ग) मन्द प्रवाही बृहत् संचलन
(घ) अवतलन/धसकन।
उत्तर:
(क) भूस्खलन
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i)
अपक्षय पृथ्वी पर जैव-विविधता के लिए उत्तरदायी है, कैसे ?
उत्तर:
जैव विविधता (Bio-diversity) धरातल पर किसी क्षेत्र में पाये जाने वाले विविध जैविक तत्वों की उपस्थिति को प्रदर्शित करता है। जैव विविधता पर अपक्षय का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। जैव मात्रा एवं जैव विविधता वनस्पति द्वारा पूर्णतया प्रभावित होती है। अपक्षय द्वारा चट्टानों एवं खनिजों का स्थानान्तरण होता है तथा नई सतहों का निर्माण होता है। इससे रासायनिक प्रक्रिया द्वारा सतह में नमी एवं वायु प्रवेश में सहायता मिलती है। इसके द्वारा मिट्टी में ह्यूमस, कार्बनिक एवं अम्लीय पदार्थों का प्रवेश होता है जिससे जैव विविधता प्रभावित होती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अपक्षय धरातल पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है।
प्रश्न (ii)
बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं ? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्रों में गुरुत्वाकर्षण के कारण बहुत अधिक मात्रा में मलबा धरातल के अनुरूप स्थानान्तरित हो जाता है, इसे बृहत् संचलन कहा जाता है। अपरदन एवं वृहत् संचलन दोनों अलग-अलग प्रक्रियाएँ हैं। बृहत् संचलन में असम्बद्ध कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली शैलें, भ्रंश, तीव्र ढाल, मूसलाधार वर्षा तथा वनस्पति की कमी आदि इसके सहायक कारक हैं। बृहत् संचलन के दो प्रमुख प्रकार हैं
मन्द संचलन इतनी धीमी गति से होता है कि इसका आभास करना कठिन होता है। दीर्घकाल में ही इसका पता चलता है। तीव्र संचलन आर्द्र जलवायु प्रदेशों में ढालू भागों में घटित होता है।
प्रश्न (iii)
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य सम्पन्न करते हैं ?
उत्तर:
अपरदन के कारकों को गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारकों में सम्मिलित किया जाता है। प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं
बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारकों का प्रधान कार्य धरातल पर उत्पन्न विषमताओं को कम करना है। जैसे ही कोई भू-भाग ऊपर उठता है, अपक्षय तथा अपरदन की शक्तियाँ उस पर अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती हैं और अन्ततः उस भाग की विषमताओं में कमी आने लगती है। एक तरफ कटाव द्वारा ऊँचाई में कमी होती है और दूसरी ओर भराव (निक्षेपण) की क्रिया द्वारा निम्न भाग ऊपर उठता है। इस प्रकार बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारकों का प्रधान कार्य धरातलीय विषमताओं को कम करना है।
प्रश्न (iv)
क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है ?
उत्तर:
मृदा निर्माण में अपक्षय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अपक्षय को नियन्त्रित करने वाले कारकों में जलवायु, चट्टानों की संरचना, उच्चावच एवं जैविक तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये सभी तत्व मिलकर अपक्षयी प्रावार की मूल विशेषताओं को उत्पन्न करते हैं और यही मृदा निर्माण के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ बनाती हैं। अपक्षय द्वारा प्राप्त चट्टान चूर्ण मृदा निर्माण का आधार है। वनस्पतियाँ एवं जीव-जन्तु तथा उनके अवशेष मिट्टियों में मूल उत्पादक तत्व ह्यूमस के आधार हैं। अतः स्पष्ट है कि अपक्षय मृदा निर्माण के लिए मौलिक आधार के रूप में काम करता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i)
"हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्षों के खेल का मैदान है" विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर अन्तर्जात एवं बहिर्जात बलों द्वारा भौतिक दशाओं एवं रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं।
धरातल के निर्माण में दो प्रकार की शक्तियाँ कार्य करती हैं
अन्तर्जनित शक्तियाँ धरातल के नीचे गहराई से उत्पन्न होती हैं और बहुत ही मन्द गति से कार्य करती हैं। इनसे पर्वत निर्माण होता है तथा धरातल पर विषमताओं का सृजन होता है। कुछ अन्तर्जात बलों द्वारा आकस्मिक घटनाएँ भी घटित होती हैं, जैसे-ज्वालामुखी उद्गार, भूकम्प आदि। बहिर्जनित शक्तियाँ धरातल के ऊपर उत्पन्न होती हैं और अन्तर्जात बलों के ठीक विपरीत कार्य करती हैं अर्थात् उच्चावच को कम करने का प्रयास करती हैं। इस प्रक्रिया में कहीं-कहीं वे अपरदन करती हैं और कहीं-कहीं जमाव का कार्य करती हैं। इस प्रकार बाह्य शक्तियों द्वारा धरातल की विषमताएँ कम होती हैं। अतः इन शक्तियों को 'समतल स्थापक बल' भी कहा जाता है। दोनों शक्तियों के ये विपरीत कार्य तब तक बने रहते हैं जब तक कि अन्तर्जात एवं बहिर्जात बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है।
प्रश्न (ii)
"बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।" व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सौर्यिक ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं। पृथ्वी के धरातल पर उत्पन्न होने वाली शक्तियों को बहिर्जनित शक्तियाँ कहते हैं। इन शक्तियों की उत्पत्ति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमण्डलीय ऊर्जा एवं अन्तर्जनित शक्तियों से नियंत्रित कारकों से उत्पन्न प्रवणता से होती है। सौर्यिक ऊर्जा द्वारा धरातल पर विभिन्न तापमण्डलों की रचना होती है। विभिन्न तापमण्डलों में जलवायु तत्वों की विभिन्नता के कारण अनेक जलवायु प्रदेशों का निर्माण होता है, जिसमें तापक्रम एवं वर्षण में पर्याप्त विभिन्नता मिलती है। इन जलवायु तत्वों की भिन्नता के कारण धरातल पर विभिन्न क्षेत्रों में रासायनिक, भौतिक एवं जैविक प्रक्रियाओं में भी भिन्नता मिलती है जिससे विभिन्न क्षेत्रों में भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ गतिशील होती हैं। इनके परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्रों में अपक्षय, बृहत् संचलन एवं अपरदन की क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं।
बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होती हैं। पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण ही विभिन्न जलवायु प्रदेश निर्मित होते हैं जो कि अक्षांशीय, मौसमी एवं जल-थल के विस्तार में विभिन्नता के कारण उत्पन्न होते हैं। तापक्रम एवं वर्षण दो ऐसे प्रेरक बल हैं जो विभिन्न भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं। वनस्पति का घनत्व, प्रकार एवं वितरण मुख्यतः तापक्रम द्वारा निर्धारित होता है जो बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं।
ऊँचाई, सूर्य के अभिमुख ढाल आदि के कारण सूर्यातप की प्राप्ति में भिन्नता मिलती है। इसके साथ ही वायु वेग एवं दिशा, वर्षण की मात्रा एवं प्रकार, वर्षण एवं वाष्पीकरण में सम्बन्ध, तापक्रम में दैनिक परिवर्तन, हिमकरण एवं पिघलन की आवृत्ति, तुषार आदि में अन्तर के कारण किसी भी जलवायु प्रदेश में भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में भिन्नता मिलती है। इस प्रकार बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर जलवायु कारकों विशेषकर तापक्रम का विशेष नियन्त्रण होता है। अतएव बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्यातप से ही प्राप्त करके संचलित होती हैं।
प्रश्न (iii)
क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र हैं ? यदि नहीं, तो क्यों ? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय चट्टानों के टूट-फूट की वह प्रक्रिया है जिसमें चट्टानें विघटन एवं वियोजन द्वारा कमजोर होकर बिखरने लगती हैं। अपक्षय के अन्तर्गत चट्टानों के कमजोर होने का कार्य दो प्रकार से होता है
भौतिक कारकों-तापक्रम, वर्षा, दबाव आदि के द्वारा चट्टानों के कमजोर पड़ने की प्रक्रिया को विघटन कहते हैं। इस प्रकार के अपक्षय को भौतिक अपक्षय कहा जाता है। रासायनिक प्रक्रियाओं-ऑक्सीकरण, कार्बोनेशन, जलयोजन आदि द्वारा चट्टान के कमजोर होने की प्रक्रिया को रासायनिक वियोजन कहते हैं। इस प्रकार के अपक्षय को रासायनिक अपक्षय भी कहा जाता है। भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय को प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से अलग हैं किन्तु दोनों प्रकार के अपक्षय एक-दूसरे से स्वतन्त्र नहीं हैं। भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय में भाग लेने वाले कारकों के प्रभावों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए तापमान जो भौतिक अपक्षय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसके कारण चट्टानों का विस्तारण एवं संकुचन होता है और चट्टानें कमजोर होती हैं, चट्टानों की रासायनिक संरचना द्वारा पूर्णतया प्रभावित होता है।
जब तक वह चट्टानों की रासायनिक संरचना के साथ अभिक्रिया नहीं करता, सक्रिय नहीं हो सकता। रासायनिक संरचना के आधार पर चट्टानों में ताप ग्रहण की क्षमता भी प्रभावित होती है। इसी प्रकार जल किसी चट्टान से तब तक अभिक्रिया नहीं करेगा जब तक कि उसे ताप या दाब के कारण ऊष्मा की प्राप्ति नहीं होती। रासायनिक अपक्षय की क्रियाएँ सभी तापमण्डलों में एक जैसी सक्रिय नहीं होती। उष्ण कटिबन्धीय जलवायु प्रदेशों में जहाँ वर्षभर तापमान अधिक होता है वहाँ रासायनिक अपक्षय ज्यादा क्रियाशील रहता है। - स्पष्ट है कि भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय एक-दूसरे से स्वतन्त्र नहीं हैं बल्कि वायुमण्डलीय तापक्रम के कारण नियन्त्रित हैं।
प्रश्न (iv)
आप किस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अन्तर ज्ञात करते हैं ? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है ?
उत्तर:
मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का वह समुच्चय है जिसमें जैविक कारकों को पोषित करने एवं पौधों को उगाने की क्षमता है।
अपक्षय से प्राप्त पदार्थ मृदा निर्माण का मूल स्रोत है। अपक्षय की क्रिया द्वारा प्राप्त पदार्थों का परिवहन एवं निक्षेपण होता है तत्पश्चात् उसमें बैक्टीरिया एवं अन्य छोटे पौधों का समायोजन होता है। उपर्युक्त तत्वों के अलावा अन्य बहुत से छोटे-छोटे जीव-जन्तुओं की समायोजिता मृदा में प्राप्त होती है। इन पदार्थों के अवशेष कालान्तर में मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा को बढ़ाते हैं। जीव-जन्तुओं तथा वायु द्वारा लाये गये विभिन्न प्रकार के पौधों के बीज मिट्टी में वनस्पति की वृद्धि करते हैं। बिल बनाने वाले जीव-जन्तु मिट्टी का स्थानान्तरण करते हैं। इससे मिट्टी खोखली हो जाती है और उसमें जल तथा वायु का प्रवेश आसानी से हो जाता है। इस प्रकार उक्त प्रक्रिया द्वारा मिट्टी का निर्माण सम्पन्न होता है। मिट्टी निर्माण के कारकों में
ये सभी कारक संयुक्त रूप से मिट्टी के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मिट्टी निर्माण में मिट्टी निर्माण प्रक्रियाओं से अभिप्राय उन माध्यमों या तत्वों से है जो मिट्टी में पहुँचकर उसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं और उसमें पोषण का गुण उत्पन्न करते हैं। जबकि मिट्टी निर्माण कारकों में उन तत्वों को सम्मिलित किया जाता है जो मिट्टी निर्माण के आवश्यक तत्वों का सृजन करने में सहायक होते हैं। इस प्रकार मिट्टी निर्माण प्रक्रिया एक कार्य है जबकि मिट्टी निर्माण के कारक वे साधन हैं जिनसे कार्य सम्पन्न होता है। इस प्रकार मिट्टी निर्माण का कार्य कारकों एवं प्रक्रिया पर संयुक्त रूप से निर्भर करता है। मृदा निर्माण में जलवायु एवं जैविक कारकों की भूमिका मृदा निर्माण में जलवायु एक महत्वपूर्ण घटक है।
जलवायु मृदा निर्माण प्रक्रियाओं को नियन्त्रित करती है। जलवायु की भिन्नता के आधार पर ही पॉडजाल, कैल्शियम युक्त तथा लैटेराइट मिट्टियों का निर्माण होता है। जलवायु कारकों में प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारम्बारता व अवधि तथा आर्द्रता, तापक्रम में दैनिक एवं मौसमी भिन्नता आदि महत्वपूर्ण हैं। मृदा में ह्यूमस की प्राप्ति जैविक कारकों द्वारा सम्भव होती है। विभिन्न जैविक कारक अपने कार्यों द्वारा मिट्टी की उत्पादकता को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैव पदार्थ मिट्टियों में नमी धारण क्षमता तथा नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाते हैं। मिट्टी में कुछ आवश्यक खनिज जीवों द्वारा ही प्राप्त होते हैं।
जीव-जन्तु मिट्टियों में नाइट्रोजन निर्धारण करते हैं। चींटी, दीमक, केंचुए आदि मिट्टी निर्माण में सहायक होते हैं। इस प्रकार मिट्टी निर्माण में जलवायु तथा जैविक तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जलवायु संभव अपक्षय प्रक्रियाओं एवं मृदा के तत्वों व विशेषताओं को परखिए व अंकित कीजिए। उत्तर-हमारे चारों ओर जो भू-आकृति उच्चावच मिलते हैं उनमें समतल मैदानी क्षेत्र व छोटी-छोटी पहाड़ियों की स्थिति देखने को मिलती है। हमारे क्षेत्र की जलवायु भी मुख्यतः उपार्द्र प्रकार की है। यहाँ मिलने वाली जलवायु की इन दशाओं के कारण यहाँ अपक्षय की संभावित दशाएँ देखने को मिलती हैं। उनमें ग्रीष्मकाल के दौरान तापान्तर के कारण भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया अहम् योगदान निभाती है।
शीतकालीन अवधि में तापमान में अधिक अन्तर नहीं मिलता है, इसके कारण यहाँ तुषारजन्य प्रक्रियाएँ प्रभावहीन मिलती हैं। भौतिक अपक्षय के साथ-साथ इस क्षेत्र में जैविक अपक्षय की भी प्रचुर सम्भावनाएँ देखने को मिलती हैं। मृदा के तत्व व विशेषता-इस क्षेत्र में मिलने वाली मृदाएँ मुख्यतः मैदानी प्रकार की हैं जिनमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं। हालाँकि चूना व फास्फोरस के साथ नाइट्रोजन की कमी देखने को मिलती है। इन मृदाओं की संरचना भंगुर है तथा जल धारण क्षमता कम मिलती है। इन मृदाओं के निर्माण में मृदा निर्माण के तत्वों जलवायु, उच्चावच, आधारशैल, कार्बनिक पदार्थों व समय का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1.
अपने चतुर्दिक विद्यमान भू-आकृति उच्चावच एवं पदार्थों के आधार पर जलवायु संभव अपक्षय प्रक्रियाओं एवं मृदा के तत्वों व विशेषताओं को परखिए व अंकित कीजिए।
उत्तर:
हमारे चारों ओर जो भू-आकृति उच्चावच मिलते हैं उनमें समतल मैदानी क्षेत्र व छोटी-छोटी पहाड़ियों की स्थिति देखने को मिलती है। हमारे क्षेत्र की जलवायु भी मुख्यतः उपार्द्र प्रकार की है। यहाँ मिलने वाली जलवायु की इन दशाओं के कारण यहाँ अपक्षय की संभावित दशाएँ देखने को मिलती हैं। उनमें ग्रीष्मकाल के दौरान तापान्तर के कारण भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया अहम् योगदान निभाती है। शीतकालीन अवधि में तापमान में अधिक अन्तर नहीं मिलता है, इसके कारण यहाँ तुषारजन्य प्रक्रियाएँ प्रभावहीन मिलती हैं। भौतिक अपक्षय के साथ-साथ इस क्षेत्र में जैविक अपक्षय की भी प्रचुर सम्भावनाएँ देखने को मिलती हैं।
मृदा के तत्व व विशेषता-
इस क्षेत्र में मिलने वाली मृदाएँ मुख्यतः मैदानी प्रकार की हैं जिनमें पर्याप्त मात्रा में कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं। हालाँकि चूना व फास्फोरस के साथ नाइट्रोजन की कमी देखने को मिलती है। इन मृदाओं की संरचना भंगुर है तथा जल धारण क्षमता कम मिलती है। इन मृदाओं के निर्माण में मृदा निर्माण के तत्वों जलवायु, उच्चावच, आधारशैल, कार्बनिक पदार्थों व समय का स्पष्ट प्रभाव देखने को मिलता है।