RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Geography Solutions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

RBSE Class 11 Geography पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Intext Questions and Answers 

प्रश्न 1. 
भीतरी ग्रह पार्थिव हैं जबकि दूसरे ज्यादातर ग्रह गैसीय हैं। ऐसा क्यों ? 
उत्तर:
सौरमण्डल में सूर्य के निकट भारी तत्वों सिलिका, लोहा, एल्यूमीनियम आदि से निर्मित ग्रह हैं जो भीतरी ग्रह कहलाते हैं। सूर्य से दूर हल्के तत्वों के ग्रह हैं; जैसे उष्ण क्षेत्र बृहस्पति, शनि, वरुण, अरुण आदि। जिस समय गैस के शीतल क्षेत्र धूल-कण तश्तरी के रूप में सूर्य के चारों ओर संगठित हो रहे थे तो सूर्य की किरणें तश्तरी को पारकर (वेधकर) अधिक दूर । गैसों की मुक्ति नहीं जा सकती थीं। अतः तश्तरी के भीतरी भाग की ओर उष्णता की अधिकता से भारी तत्वों वाले भीतरी ग्रहों का निर्माण हुआ। तश्तरी के बाहरी भाग की ओर जहाँ सूर्य की भीतरी ग्रह पृथ्वी बाहरी ग्रह किरणें नहीं पहुंच पाईं वहाँ अत्यन्त न्यून तापमान (-270° बुध सेल्सियस) के कारण हल्के गैसीय पदार्थ रहे जो शीत से जम चित्र-बिग बैंग गये। इस प्रकार सूर्य से दूर बाहर की ओर हल्के तत्वों अर्थात् गैसीय ग्रहों का निर्माण हुआ। 
RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 1

प्रश्न 2. 
पृथ्वी की परतदार संरचना कैसे विकसित हुई ?
उत्तर:
अपने जन्म के समय पृथ्वी अत्यन्त तप्त अवस्था में थी। यह चट्टानी, गर्म एवं वीरान ग्रह थी। इसका वायुमण्डल अत्यन्त विरल था जो हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों से बना हुआ था। अधिक तापमान के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में रह गयी तथा तापमान की अधिकता के कारण हल्के एवं भारी घनत्व के मिश्रण वाले पदार्थ घनत्व के अन्तर के कारण अलग होना प्रारम्भ हो गये। फलस्वरूप लोहा व निकिल जैसे भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र में चले गये तथा हल्के पदार्थ; जैसे-सिलिका, एल्यूमीनियम तथा मैग्नेशियम आदि पृथ्वी की सतह या ऊपरी भाग की तरफ आ गये। समय के साथ-साथ ये पदार्थ ठण्डे हुए और ठोस रूप में परिवर्तित होकर छोटे आकार के होकर पृथ्वी की भूपर्पटी के रूप में विकसित हो गये। चन्द्रमा की उत्पत्ति के दौरान पृथ्वीं के तापमान में पुनः वृद्धि हुई, जिससे पृथ्वी का पदार्थ अनेक परतों में अलग हो गया। विभेदन की इस प्रक्रिया द्वारा पृथ्वी की परतदार संरचना का विकास हुआ। पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पायी जाती हैं जिनमें पर्पटी, प्रावार, बाह्य क्रोड एवं आन्तरिक क्रोड आदि प्रमुख हैं।

RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास  

RBSE Class 11 Geography पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Textbook Questions and Answers 

1. बहुविकल्पीय प्रश्न

(i) निम्नलिखित में से कौन-सी संख्या पृथ्वी की आयु को प्रदर्शित करती है ? 
(क) 46 लाख वर्ष
(ख) 4600 करोड़ वर्ष 
(ग) 13.7 अरब वर्ष
(घ) 13.7 खरब वर्ष। 
उत्तर:
(ग) 13.7 अरब वर्ष

(ii) निम्न में कौन-सी अवधि सबसे लम्बी है ?
(क) इओन (Eons) 
(ख) महाकल्प (Era) 
(ग) कल्प (Period) 
(घ) युग (Epoch)। 
उत्तर:
(क) इओन (Eons) 

(iii) निम्न में से कौन-सा तत्व वर्तमान वायुमण्डल के निर्माण व संशोधन में सहायक नहीं है ?
(क) सौर पवन 
(ख) गैस उत्सर्जन 
(ग) विभेदन 
(घ) प्रकाश संश्लेषण।
उत्तर:
(क) सौर पवन 

(iv) निम्नलिखित में से भीतरी ग्रह कौन से हैं ?
(क) पृथ्वी व सूर्य के बीच पाये जाने वाले ग्रह 
(ख) सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाये जाने वाले ग्रह 
(ग) वे ग्रह जो गैसीय हैं।
(घ) बिना उपग्रह वाले ग्रह। 
उत्तर:
(ख) सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच पाये जाने वाले ग्रह 

(v) 
पृथ्वी पर जीवन निम्नलिखित में से लगभग कितने वर्षों पहले प्रारम्भ हुआ ? 
(क) 1 अरब 37 करोड़ वर्ष पहले
(ख) 460 करोड़ वर्ष पहले 
(ग) 38 लाख वर्ष पहले
(घ) 3 अरब 80 करोड़ वर्ष पहले। 
उत्तर:
(घ) 3 अरब 80 करोड़ वर्ष पहले। 

नोट-पृथ्वी की आयु 4600 करोड़ वर्ष न होकर लगभग 460 करोड़ वर्ष है। अतः प्रश्न 1 (i) में 'ख' विकल्प पाठ्य-पुस्तक में गलत छपा है। सही उत्तर 460 करोड़ वर्ष होना चाहिए। 

2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न (i) 
पार्थिव ग्रह चट्टानी क्यों हैं ?
उत्तर:
सूर्य व छुद्र ग्रहों की पट्टी के बीच स्थित चार ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल भीतरी ग्रह कहलाते हैं। इन्हें पार्थिव ग्रह भी कहते हैं। इनकी रचना चट्टानी है। इन ग्रहों के चट्टानी होने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. पार्थिव ग्रहों का निर्माण सूर्य के निकट हुआ जहाँ अत्यधिक तापमान के कारण गैसों का संघनन नहीं हो सका और वे घनीभूत नहीं हो सकी। 
  2. सूर्य के समीप सौर वायु के अधिक शक्तिशाली होने के कारण यह पार्थिव ग्रहों से अधिक मात्रा में गैस व धूलिकण उड़ा ले गयी।
  3. पार्थिव ग्रहों के आकार में छोटे होने के कारण इनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति अपेक्षाकृत कम थी इसलिए ये ग्रह निकली हुई गैसों को रोकने में असमर्थ रहे।

प्रश्न (ii) 
पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित दिये गये तर्कों में निम्न वैज्ञानिकों के मूलभूत अन्तर बताएँ
(क) काण्ट व लाप्लेस
(ख) चेम्बरलेन व मोल्टन।
उत्तर:
काण्ट व लाप्लेस का पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्त एक तारक परिकल्पना (Parental Hypothesis) कहलाता है, क्योंकि इसमें पृथ्वी की उत्पत्ति उस एक नीहारिका से मानी गयी है जिसका अवशिष्ट भाग बाद में सूर्य बना। जबकि चेम्बरलेन एवं मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना द्वैतारक परिकल्पना (Bi-parental Concept) . कहलाती है, क्योंकि इसमें पृथ्वी की उत्पत्ति दो तारों (सूर्य एवं उसके साथी तारे) के सहयोग से हुई मानी गयी है।

प्रश्न (iii) 
विभेदन' प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी में हल्के व भारी घनत्व वाले पदार्थों के पृथक् होने की प्रक्रिया को विभेदन (Differentiation) कहा जाता है। विभेदन की क्रिया के फलस्वरूप अधिक घनत्व वाले भारी पदार्थ (जैसे लोहा और निकिल) पृथ्वी के क्रोड में चले गये और हल्के पदार्थ पृथ्वी की ऊपरी परतों में आ गये। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में विभिन्न घनत्व वाली परतों की अवस्थिति का प्रमुख कारण विभेदन की प्रक्रिया ही है।

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प्रश्न (iv) 
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप क्या था ?
उत्तर:
प्रारम्भिक काल में पृथ्वी के धरातल का स्वरूप चट्टानी, गर्म एवं वीरान था। धरातल पर वायुमण्डल बहुत विरल था जिसका निर्माण हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों से हुआ था। यह आज की पृथ्वी के वायुमण्डल से बिल्कुल भिन्न था। आज से लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी के धरातल पर जीवन के विकास से सम्बन्धित अवस्थाएँ उत्पन्न हुईं और इस पर जीवन का विकास हुआ।

प्रश्न (v) 
पृथ्वी के वायुमण्डल को निर्मित करने वाली प्रारम्भिक गैसें कौन-सी थीं ?
उत्तर:
पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर वायुमण्डल स्थित है। यह वायुमण्डल पृथ्वी के केन्द्र में स्थित गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही उस पर टिका हुआ है। पृथ्वी के वायुमण्डल का निर्माण करने वाली प्रारम्भिक गैसें हाइड्रोजन व हीलियम थीं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न (i)
'बिग बैंग' सिद्धान्त का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
बिग बैंग सिद्धान्त ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में आधुनिक सर्वमान्य सिद्धान्त 'बिग बैंग सिद्धान्त' है। इसे 'विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना' भी कहा जाता है, क्योंकि इस सिद्धान्त की मान्यता है कि ब्रह्माण्ड का निरन्तर विस्तार हो रहा है। इस सिद्धान्त को प्रतिस्थापित करने का श्रेय एडविन हब्बल को है जिन्होंने प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध किया कि ब्रह्माण्ड विस्तृत हो रहा है और समय के साथ-साथ आकाश-गंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि आकाश-गंगाओं के बीच की दूरी बढ़ रही है किन्तु प्रेक्षण द्वारा आकाश-गंगाओं का विस्तार प्रमाणित नहीं होता है। ब्रह्माण्ड के विस्तार की अवस्थाएँ–बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड का विस्तार निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ

(1) ब्रह्माण्ड निर्माणकारी पदार्थ का एक ही स्थान पर स्थित होना-प्रारम्भिक अवस्था में ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाले सभी पदार्थ अत्यन्त छोटे गोलक के रूप में एक ही स्थान पर केन्द्रित थे। इन सूक्ष्म पदार्थों का आयतन कम तथा तापमान एवं घनत्व अनन्त था।

(2) विस्फोट प्रक्रिया द्वारा ब्रह्माण्ड का तीव्र गति से विस्तार होना-
बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार कालान्तर में इन छोटे कणों में तीव्र गति से विस्फोट हुआ। इस विस्फोट के कारण ब्रह्माण्ड का तीव्र गति से विस्तार हुआ। यह विस्तार आज भी जारी है। विस्तार की घटना एक सैकेण्ड के अल्पांश में ही बड़ी तीव्र गति से हुई। इसके पश्चात् विस्तार की गति मन्द हुई। बिग बैंग होने के प्रारम्भिक तीन मिनट में ही पहले परमाणु का निर्माण हुआ। विस्फोट , की यह घटना आज से लगभग 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी।

RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 2

(3) तापमान में तीव्र गति से कमी आना-
बिग बैंग की घटना के घटित होने से तीन लाख वर्षों के दौरान तापमान में तीव्र गति से ह्रास हुआ। यह लगभग 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थों का निर्माण हुआ। इसी के फलस्वरूप पारदर्शी ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ। संक्षेप में, ब्रह्माण्ड में आकाशगंगाओं का निर्माण इसी प्रक्रिया के द्वारा हुआ। प्रारम्भ में आकाशगंगाएँ छोटी थीं। इनके बीच की दूरियाँ कम थीं। बिग बैंग प्रक्रिया के कारण आकाशगंगाओं के मध्य स्थित छोटे गोलकों में विस्फोट हुआ, जिससे आकाशगंगाओं के बीच की दूरी बढ़ने लगी अर्थात् ब्रह्माण्ड का विस्तार होने लगा। ब्रह्माण्ड का विस्तार पहले तीव्र गति से और बाद में मन्द गति से हुआ। इस प्रकार तारों के विस्फोट और पदार्थों के घनीभूत होने से ग्रहों का निर्माण हुआ। इसी प्रक्रिया की पुनरावृत्ति ग्रहों पर हुई और उपग्रहों का निर्माण हुआ। इस प्रकार सौरमण्डल एवं ग्रहों की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न (ii) 
पृथ्वी के विकास सम्बन्धी अवस्थाओं को बताते हुए प्रत्येक अवस्था/चरण को संक्षेप में वर्णित करें।
उत्तर:
पृथ्वी का प्रारम्भिक स्वरूप चट्टानी, गर्म एवं वीरान था। वायुमण्डल विरल था जो हाइड्रोजन व हीलियम गैसों से बना था।
पृथ्वी की संरचना परतदार है। धरातल से लेकर पृथ्वी के क्रोड तक कई परतें प्राप्त होती हैं, जिनके घनत्व में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। धरातलीय भाग का घनत्व बहुत कम है किन्तु जैसे-जैसे केन्द्र में जाते हैं, चट्टानों का घनत्व क्रमशः बढ़ता जाता है। पृथ्वी के विकास को निम्नलिखित अवस्थाओं/चरणों में विभाजित किया जा सकता है

(1) स्थलमण्डल का विकास-
ग्रहाणुओं की संरचना अधिकांशतः घने एवं हल्के पदार्थों से हुई है। ग्रहाणुओं के एकत्रीकरण से ही ग्रहों का निर्माण हुआ। गुरुत्व बल के कारण जब पदार्थों का एकत्रीकरण हो रहा था तो पिण्डों ने पदार्थ को प्रभावित किया जिससे अत्यधिक ताप की उत्पत्ति हुई। अत्यधिक ताप के कारण पृथ्वी आंशिक रूप से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो गयी। तापमान की अधिकता के कारण ही चट्टानों के हल्के एवं भारी पदार्थों का स्तरीकरण होने लगा। भारी पदार्थ केन्द्र की ओर चले गये और हल्के पदार्थ धरातलीय भाग की ओर आने लगे। अन्ततः पृथ्वी का वर्तमान स्वरूप प्राप्त हो गया। यही प्रक्रिया पृथ्वी के धरातल पर हुई। चन्द्रमा की उत्पत्ति के दौरान भीषण टकराव के कारण पृथ्वी का तापमान पुनः बढ़ा तथा ऊर्जा उत्पन्न हुई। यह विभेदन का दूसरा चरण था। इसके फलस्वरूप धरातल से लेकर क्रोड तक कई परतों की उत्पत्ति हो गयी। ये परतें मुख्यतः इस प्रकार हैं- 

  1. पर्पटी या क्रस्ट, 
  2. प्रावार या मैण्टल 
  3. बाह्य क्रोड व आन्तरिक क्रोड।

(2) वायुमण्डल व जलमण्डल का विकास वायुमण्डल की वर्तमान संरचना में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन की प्रधानता (लगभग 99%) है। वायुमण्डल का विकास निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में हुआ

  1. आदिकालिक वायुमण्डलीय गैसों का ह्रास, 
  2. पृथ्वी के आन्तरिक भाग से भाप व जलवायु का उत्सर्जन, तथा 
  3. जैवमण्डल की 'प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया' द्वारा संशोधन।

आदिकालिक वायुमण्डल जिसमें हाइड्रोजन व हीलियम की अधिकता थी, सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। द्वितीय अवस्था में पृथ्वी के आन्तरिक भाग से गैसें धरातल के ऊपर आईं और लगातार ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमण्डल में जलवाष्प व गैसें बढ़ने लगीं। जलवाष्प के संघनन के कारण वर्षा हुई और पृथ्वी के धरातल पर जल गों में भरने लगा, जिससे महासागरों की उत्पत्ति हुई। लगभग 250 से 300 करोड़ वर्ष पहले प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा ऑक्सीजन में वृद्धि हुई। धीरे-धीरे महासागर ऑक्सीजन से संतृप्त हो गये और वायुमण्डल में भी ऑक्सीजन की वृद्धि से वर्तमान स्थिति प्राप्त हुई। 

RBSE Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास  

(3) जीवन की उत्पत्ति-पृथ्वी की उत्पत्ति के अन्तिम चरण में जीवन की उत्पत्ति हुई। यह माना जाता है कि धरातल पर जीवन का विकास लगभग 380 करोड़ वर्षों पहले आरम्भ हुआ। रासायनिक प्रक्रिया द्वारा पहले जटिल जैव अणु बने और उनका समूहन तथा पुनर्समूहन हुआ, जिससे निर्जीव पदार्थ जीवित तत्वों में परिवर्तित हो गये। पहले एककोशीय जीवाणु बने और कालान्तर में आज के विकसित मानव का विकास हुआ।

परियोजना कार्य

'स्टार डस्ट' परियोजना के बारे में निम्नलिखित पक्षों पर वेबसाइट से सूचना एकत्रित कीजिए : (www. Sci.edu/public.html and www.Nasm.edu)

(अ) इस परियोजना को किस एजेंसी ने शुरू किया था? 
उत्तर:
नासा के द्वारा। 

(ब) 'स्टार डस्ट' को एकत्रित करने में वैज्ञानिक इतनी रुचि क्यों दिखा रहे हैं? 
उत्तर:
वैज्ञानिक धूमकेतुओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने, उल्का पिण्डों के धरती पर गिरने व पृथ्वी के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए तथा सौरमंडल से विभिन्न प्रकार के टुकड़ों को इकट्ठा करने के लिए रुचि ले रहे हैं ताकि पृथ्वी व सौरमंडल से सम्बन्धित दशाओं का विशद् अध्ययन करके नवीन जानकारियाँ प्राप्त की जा सकें। 

(स) स्टार डस्ट कहाँ से एकत्र की गई है? 
उत्तर:
धूमकेतु वाइल्ड 2 व हमारे सौरमंडल 

Prasanna
Last Updated on Aug. 3, 2022, 4:19 p.m.
Published Aug. 2, 2022