Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Business Studies Chapter 4 व्यावसायिक सेवाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.
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लघूत्तरात्मक प्रश्न-
Class 11 Business Studies Chapter 4 Question Answer In Hindi प्रश्न 1.
वस्तुओं और सेवाओं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वस्तुओं का अर्थ-वस्तुएँ वे भौतिक पदार्थ हैं जिनकी क्रेता को सुपुर्दगी दी जा सकती है तथा जिनके स्वामित्व का विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरण हो सकता है। वस्तुतः वस्तुओं से अभिप्राय सेवाओं को छोड़कर उन समस्त प्रकार के पदार्थों एवं वस्तुओं से है जिनमें व्यापार एवं वाणिज्य होता है।
सेवाओं का अर्थ-सेवाएँ वे आर्थिक क्रियाएँ हैं जिनको अलग से पहचाना जा सकता है, जो अमूर्त हैं, जो आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करती हैं, यह आवश्यक नहीं है कि वे किसी उत्पाद अथवा अन्य सेवा के विक्रय से जुड़ी हों। सेवा एक क्रिया है जिसे घर नहीं ले जाया जा सकता है उसके परिणाम को ही घर ले जाया जा सकता है। सेवा का स्टॉक नहीं किया जा सकता है। सेवाओं की मुख्य विशेषताएँ हैं-अमूर्तता, असंगतता, अभिन्नता, स्टॉक सम्भव नहीं तथा सम्बद्धता।
व्यवसाय अध्ययन के प्रश्न उत्तर Class 11 Chapter 4 प्रश्न 2.
ई-बैंकिंग क्या है? ई-बैंकिंग के लाभ क्या हैं?
उत्तर:
ई-बैंकिंग का अर्थ-सामान्य शब्दों में, इन्टरनेट पर बैंकों की सेवाएं प्रदान करने को ई-बैंकिंग कहते हैं । यथार्थ में, ई-बैंकिंग बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली वह सेवा है जो ग्राहक को अपनी बचतों के प्रबन्धन, खातों का निरीक्षण, ऋण के लिए आवेदन करना, बिलों का भुगतान करना जैसे बैंक सम्बन्धी लेन-देनों को इन्टरनेट पर करने की सुविधा देता है। इसमें ग्राहक व्यक्तिगत कम्प्यूटर, मोबाइल फोन या फिर हाथ के कम्प्यूटर का प्रयोग करता है।
ई-बैंकिंग के लाभ-ई-बैंकिंग के प्रमुख लाभ अग्र प्रकार हैं-
Class 11 Business Studies Chapter 4 Question Answer प्रश्न 3.
व्यवसाय वर्द्धन के लिए कौन-कौनसी दूरसंचार सेवाएँ उपलब्ध हैं? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
व्यवसाय वर्द्धन के लिए दूरसंचार सेवाएँ-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की दूर संचार सेवाएँ किसी भी देश के तीव्र आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए आवश्यक होती हैं। वास्तव में ये सभी व्यावसायिक क्रियाओं की रीढ़ की हड्डी हैं। आज जब सम्पूर्ण विश्व एक गाँव के समान ध्रुवीकृत हो चुका है यदि दूरसंचार का ढाँचा नहीं हो तो सम्पूर्ण विश्व में व्यवसाय करना मात्र एक स्वप्न ही रह जायेगा। वर्तमान समय में दूरसंचार, सूचना प्रौद्योगिकी, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स एवं मीडिया उद्योग में दूरगामी प्रगति हुई है जिसका लाभ निश्चित रूप से व्यवसायियों को प्राप्त हुआ है।
आज व्यवसाय वर्द्धन के लिए जो दूरसंचार सेवाएँ उपलब्ध हैं, वे निम्नलिखित हैं-
Class 11 Bst Chapter 4 Question Answer प्रश्न 4.
उपयुक्त उदाहरण देकर बीमा सिद्धान्तों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बीमा के सिद्धान्त-
1. पूर्ण सद्विश्वास का सिद्धान्त-बीमा पूर्ण सद्विश्वास पर आधारित प्रसंविदा है। यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि बीमाकार तथा बीमित अर्थात् दोनों को प्रसंविदा के सम्बन्ध में एक-दूसरे के प्रति सविश्वास दिखाना चाहिए। विशेषकर बीमा कराने वाले का यह दायित्व है कि वह बीमाकार को अपने बारे में सम्पूर्ण तथ्यों की जानकारी दे तथा बीमाकार को बीमा प्रसंविदा की सभी शर्तों को स्पष्ट करें।
2. बीमायोग्य हित का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार बीमाकृत का बीमा की विषय-वस्तु में बीमायोग्य हित का होना आवश्यक है। बीमायोग्य हित का अर्थ है बीमा प्रसंविदा की विषय-वस्तु में आर्थिक स्वार्थ का होना। यदि बीमाकृत का बीमा की विषय-वस्तु में हित नहीं होगा तो वह बीमा क्यों करवायेगा। बीमाकृत का बीमा विषय में घटना के घटित होने पर बीमा योग्य हित होना चाहिए।
3. क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार बीमाकार हानि होने पर बीमाकृत को उसी स्थिति में लाने का वचन देता है जिस स्थिति में वह बीमा की घटना के घटित होने से पहले था। यह सिद्धान्त जीवन बीमा के अतिरिक्त अन्य सभी बीमाओं पर लागू होता है।
4. निकटतम कारण का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार बीमाकार बीमाकत को होने वाली उसी हानि की क्षतिपूर्ति करने का वचन देता है जो हानि निकटतम कारण से हुई हो या हानि बीमापत्र में वर्णित जोखिमों का परिणाम होती है।
5. अधिकार समर्पण का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार यदि बीमाकार ने बीमाकृत को होने वाली क्षति को पूरा किया है तो क्षतिपूर्ति करने के बाद वह बीमाकृत का स्थान ग्रहण कर लेता है। जिस सम्पत्ति का बीमा बीमाकृत ने कराया है उसकी हानि होने पर अथवा उसे क्षति पहुँचने पर उस हानि या क्षति की पूर्ति हो गई है तो उस सम्पत्ति का स्वामित्व बीमाकार को हस्तान्तरित हो जाता है।
6. योगदान का सिद्धान्त-बीमा के इस सिद्धान्त के अनुसार बीमा के अन्तर्गत दावे का भुगतान कर देने के पश्चात् बीमाकार को अन्य देनदार बीमाकारों से हानि की राशि में उनके भाग को वसूल कर सकता है। इसका अर्थ हुआ कि दोहरे बीमा में बीमाकार हानि को उसके द्वारा की गई बीमा की राशि के अनुपात में बाँटेंगे।
7. हानि को कम करना-यह सिद्धान्त यह बतलाता है कि बीमाकृत का यह कर्तव्य है कि वह बीमा करायी गई सम्पत्ति की हानि अथवा क्षति को न्यूनतम करने के लिए आवश्यक कदम उठाये।
Class 11 Bst Ch 4 Question Answer प्रश्न 5.
भण्डारण की व्याख्या करें और इसके कार्य बतलाइये।
उत्तर:
भण्डारण-भण्डारण अथवा भण्डार-गृह को शुरुआत में वस्तुओं को वैज्ञानिक ढंग से सुरक्षित रखने एवं संग्रहण की एक स्थिर इकाई के रूप में माना जाता था। इससे इनकी मौलिक गुणवत्ता, कीमत एवं उपयोगिता बनी रहती थी। वर्तमान में भण्डार-गृह की भूमिका केवल संग्रहण सेवा प्रदान करने की नहीं रही है वरन् ये कम कीमत पर भण्डारण एवं वहाँ से वितरण की सेवा भी उपलब्ध कराते हैं, अर्थात् ये अब सही मात्रा में, सही स्थान पर, सही समय पर, सही स्थिति में, सही लागत पर माल को उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं। अब तो ये भण्डार-गृह माल को एक स्थान से दूसरे स्थान के हस्तान्तरण के लिए स्वचालित पट्टियाँ, कम्प्यूटर द्वारा संचालित क्रेन एवं फोर्क लिफ्ट का प्रयोग करते हैं।
भण्डारण के कार्य-सामान्यतः भण्डारण या भण्डार-गृहों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न-
Business Services Class 11 Questions And Answers प्रश्न 1.
सेवाएँ क्या हैं? उनके लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सेवा का अर्थ-सेवाएँ वे आर्थिक क्रियाएँ हैं जिनको अलग से पहचाना जा सकता है, जो अमूर्त हैं, जो लोगों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं एवं यह आवश्यक नहीं है कि ये किसी उत्पाद अथवा अन्य सेवा के विक्रय से जुड़ी हों। सेवाओं के क्रय से कोई भौतिक वस्तु प्राप्त नहीं होती है। सेवा देने वाले तथा उपभोक्ता के बीच सेवाओं का आदान-प्रदान होता है। उदाहरण के लिए एक मरीज अपनी बीमारी के लिए डॉक्टर से इलाज करवाता है। डॉक्टर अपने मरीज को अपनी सेवाएँ ही प्रदान करता है।
सेवाओं के लक्षण/विशेषताएँ-सेवाओं के प्रमुख लक्षण या विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अमूर्तता-सेवाएँ अमूर्त हैं अर्थात् इन्हें छुआ नहीं जा सकता है, इनका अनुभव किया जा सकता है। इसकी एक खास बात यह है कि उपभोग से पहले इसकी गुणवत्ता का निर्धारण सम्भव नहीं है, अर्थात् बिना गुणवत्ता की जाँच के इसका क्रय किया जा सकता है।
2. असंगतता-सेवाओं में एकरूपता का अभाव पाया जाता है क्योंकि इनका कोई मानकीय अमूर्त उत्पाद नहीं होता है। प्रत्येक बार इनका निष्पादन अलग से किया जाता है। अलग-अलग ग्राहकों की अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं अतः जरूरी नहीं है कि सेवा प्रदान करने वाला सभी को अपनी सेवाओं से सन्तुष्ट कर सके। मोबाइल सेवाओं में इसका उदाहरण देखने को मिलता है।
3. अभिन्नता-सेवा के उत्पादन एवं उपभोग की क्रियाएँ साथ-साथ सम्पन्न होती हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सेवाओं का उत्पादन एवं उनका उपभोग अभिन्न हैं। इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। यदि आज हम एक संजीव पास बुक्स सोफासेट का निर्माण करते हैं तो एक महीने के बाद भी उसकी बिक्री कर सकते हैं। सेवाओं के लिए यह सम्भव नहीं है क्योंकि इनका उपभोग इनके उत्पादन के साथ ही होता है। सेवा प्रदानकर्ता उस प्रक्रिया में लगे व्यक्ति के स्थान पर उपभोग तकनीक का उपयोग कर सकते हैं लेकिन सेवा की मुख्य विशेषता है ग्राहक से सम्पर्क।
4. स्टॉक सम्भव नहीं-सेवाओं का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है। अतः इनको तैयार कर भविष्य के लिए जमा करना संभव नहीं है। सेवाओं का निष्पादन तो उसी समय किया जा सकता है जबकि ग्राहक उनकी माँग करता है। इनका निष्पादन उपभोग के समय से पहले सम्भव नहीं होता है।
5. सम्बद्धता-सेवा प्रदान करने की प्रक्रिया में ग्राहक का होना एवं उसका सहयोग करना आवश्यक है। ग्राहक ही अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार सेवाओं में सुधार करा सकता है।
Business Studies Class 11 Chapter 4 Question Answers प्रश्न 2.
प्रत्येक वाणिज्यिक बैंक के कार्यों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वाणिज्यिक बैंक के कार्य-वाणिज्यिक बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. जमा स्वीकार करना-वाणिज्यिक बैंक का प्रमुख कार्य जमाएँ स्वीकार करना है। इन जमाओं को ये बैंक चालू खातों, बचत खातों एवं निश्चितकालीन जमा-खातों के रूप में लेते हैं। बैंक इन जमाओं पर रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दर से ब्याज देते हैं। इन खातों में से कितनी राशि एवं एक अवधि में कितनी बार निकाली जा सकती है पर कुछ प्रतिबन्ध होता है। स्थायी जमा खातों पर बचत खातों की तुलना में ब्याज ऊँची दर से दिया जाता है।
2. ऋण प्रदान करना-वाणिज्यिक बैंकों का एक मुख्य कार्य जमा के रूप में प्राप्त राशि में से ऋण एवं अग्रिम देना होता है। यह ऋण एवं अग्रिम अधिविकर्ष, नकद ऋण, व्यापारिक बिलों को बट्टागत करना, अवधिक ऋण, उपभोक्ता ऋण तथा अन्य मिले-जुले अग्रिमों के माध्यम से दिये जाते हैं। वाणिज्यिक बैंकों द्वारा यह ऋण व्यापार, उद्योग, परिवहन एवं अन्य व्यावसायिक क्रियाओं के लिए प्रदान किया जाता है।
3. चैक सविधा प्रदान करना-वाणिज्यिक बैंक अपने ग्राहकों को चैक सुविधा भी प्रदान करते हैं। ग्राहकों द्वारा दूसरे बैंकों पर लिखे चैकों की राशि की वसूली करना; वह सबसे महत्त्वपूर्ण सेवा है जो बैंक अपने ग्राहकों को प्रदान करते हैं। चैक को भर कर ही ग्राहक अपना बैंक में जमा धन जब चाहे तब निकलवा सकते हैं । चैक ही विनिमय का सर्वाधिक सुविधाजनक एवं मितव्ययी माध्यम है। यह सुविधा बैंक अपने ग्राहकों को प्रदान करते हैं।
4. धन का हस्तान्तरण करना-वाणिज्यिक बैंकों का एक प्रमुख कार्य अपने ग्राहकों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान को धन के हस्तान्तरण की सुविधा प्रदान करना है। यह कार्य वे अपनी शाखाओं के जाल द्वारा कर पाते हैं । बैंक द्वारा कोषों का हस्तान्तरण बैंक ड्राफ्ट, भुगतान आदेश (पे-ऑर्डर) या डाक द्वारा हस्तान्तरण के माध्यम से किया जाता है। बैंक यह कार्य नाममात्र का कमीशन वसूल करके करता है। इसके लिए बैंक निश्चित राशि का अपनी स्वयं की अन्य स्थान पर स्थित शाखाओं पर ड्राफ्ट जारी करता है अथवा उन स्थानों पर स्थित अन्य बैंकों पर जारी करता है। भुगतान प्राप्तकर्ता अपने पास के जिस बैंक पर ड्राफ्ट लिखा गया है उससे राशि प्राप्त कर लेता है।
5. सहयोगी सेवाएँ-बैंक अपने ग्राहकों को कुछ सहायक सेवाएँ भी प्रदान करता है। इन सेवाओं में बिलों का भुगतान, लॉकर की सुविधा, अभिगोपन सेवाएँ, निर्देशानुसार अंशों एवं ऋण-पत्रों का क्रय-विक्रय, बीमा की किस्त का भुगतान तथा लाभांश का भुगतान आदि शामिल हैं।
6. चालू साख-पत्र का निर्गमन-बैंक अपने ग्राहकों के लिए चालू साख-पत्र निर्गमित करता है।
7. विदेशी विनिमय-वाणिज्यिक बैंक विदेशी विनिमय के कार्य में भी सहायता करते हैं।
8. व्यापारिक सूचनाएँ प्रदान करना-बैंक अपने ग्राहकों को समय-समय पर आवश्यक व्यापारिक सूचना देकर व्यापारिक जगत की बड़ी सहायता करते हैं।
9. ट्रैवलर्स चैक-बैंक यात्रियों के लिए 'ट्रैवलर्स चैक' के रूप में महत्त्वपूर्ण सेवा प्रदान करते हैं।
Business Studies Class 11 Chapter 4 प्रश्न 3.
भारतीय डाक विभाग द्वारा प्रदत्त विविध सुविधाओं पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय डाक विभाग द्वारा प्रदत्त विविध सविधाएँ
भारतीय डाक विभाग सम्पूर्ण भारत में विभिन्न डाक सेवाएं प्रदान करता है। इस विभाग द्वारा प्रदत्त विभिन्न सुविधाओं को निम्न भागों में वर्गीकृत कर समझाया जा सकता है-
1. वित्तीय सुविधाएँ-भारतीय डाक विभाग अपने ग्राहकों को अर्थात् आम जनता को वित्तीय सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। ये सुविधाएँ डाक-घर की विभिन्न बचत योजनाओं के माध्यम से उपलब्ध करायी जाती हैं। ये योजनाएँ हैं-
पी.पी.एफ., किसान विकास पत्र एवं राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र। इनके अतिरिक्त डाक विभाग मासिक आय योजना, आवर्ती जमा खाता, बचत खाता, सावधि जमा एवं मनी ऑर्डर सुविधा आदि भी प्रदान करता है। भारतीय डाक विभाग ये सुविधाएँ अपने विभिन्न डाक-घरों के माध्यम से प्रदान करता है।
2. डाक सुविधाएँ-डाक विभाग डाक सुविधाएँ भी प्रदान करता है। डाक सेवाएँ जैसे पार्सल सेवा; रजिस्ट्री की सुविधा, जो भेजी गई वस्तुओं की सुरक्षा प्रदान करती है; बीमा सेवा, जो भेजी गई डाक को रास्ते की जोखिमों के विरुद्ध बीमा करती है आदि करता है।
3. अन्य सहायक सविधाएँ-भारतीय डाक विभाग निम्नलिखित सहायक सुविधाएँ भी प्रदान करता है-
Class 11 Business Studies Chapter 4 प्रश्न 4.
विभिन्न प्रकार के बीमों का वर्णन करें। प्रत्येक बीमे द्वारा रक्षित जोखिमों की प्रकृति की जाँच कीजिए।
उत्तर:
बीमा के प्रकार- बीमा के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
1. जीवन बीमा-जीवन बीमा एक ऐसा अनुबन्ध है जिसके अन्तर्गत बीमाकार प्रीमियम की एकमुश्त राशि अथवा समय-समय पर भुगतान की गई राशि के बदले में बीमाकृत को अथवा उस व्यक्ति को जिसके हित में यह पॉलिसी ली गई है, मनुष्य के जीवन से सम्बन्धित अनिश्चित घटना के घटित होने पर अथवा एक अवधि की समाप्ति पर बीमित राशि का भुगतान करने का समझौता करता है। अतः बीमा कम्पनी एक निश्चित राशि (प्रीमियम) के बदले एक व्यक्ति के जीवन का बीमा करती है। प्रीमियम का भुगतान एकमुश्त या प्रतिमाह, तिमाही, छ:माही या वार्षिक किया जा सकता है। जीवन बीमा कराने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि बीमित व्यक्ति को निश्चित आयु की प्राप्ति पर या फिर उसकी मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारियों को एक निश्चित राशि प्राप्त हो जायेगी। जीवन बीमा केवल सुरक्षा ही प्रदान नहीं करता वरन् यह एक प्रकार का विनियोग भी है। क्योंकि बीमाकृत को उसकी मृत्यु पर अथवा एक निश्चित अवधि की समाप्ति पर एक निश्चित राशि लौटा दी जाती है। इस प्रकार जीवन बीमा, बीमाकृत एवं उस पर आश्रित व्यक्तियों में सुरक्षा की भावना पैदा करता है।
जीवन बीमा प्रसंविदा के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-
बीमा कम्पनियाँ बीमाकारों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रकार के बीमापत्रों का निर्गमन करती हैं।
2. अग्नि बीमा-अग्नि बीमा एक ऐसा प्रसंविदा या अनुबन्ध है, जिसमें बीमाकार प्रीमियम के बदले बीमा पत्र में वर्णित राशि तक एक निर्धारित अवधि के दौरान आगे से होने वाली क्षति की पूर्ति का दायित्व लेता है। अग्नि बीमा सामान्यतः एक वर्ष की अवधि के लिए होता है जिसका प्रतिवर्ष नवीनीकरण करवाना आवश्यक होता है। प्रीमियम एकमुश्त भी दिया जा सकता है और किस्तों में भी। अग्नि बीमा में क्षति की राशि का दावा तब ही प्राप्त हो सकता है जबकि हानि वास्तव में हुई हो, तथा आग दुर्घटनावश लगी हो एवं जान-बूझकर नहीं लगायी गई हो। - अग्नि बीमा अनुबन्ध आग के कारण अथवा अन्य किसी निकटतम कारणों से हुई हानि के लिए होता है।
अग्नि बीमा प्रसंविदा के प्रमुख आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
3. सामुदिक बीमा-सामुद्रिक बीमा एक ऐसा बीमा प्रसंविदा है जिसके अन्तर्गत बीमाकार समुद्री जोखिमों के विरुद्ध पूर्व निश्चित रीति से एवं पूर्व निश्चित राशि तक बीमित की क्षतिपूर्ति का वादा करता है। यह बीमा समुद्री मार्ग से यात्रा एवं समुद्री जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। समुद्री बीमा में जो जोखिमें हैं वे हैं जहाज का चट्टान से टकरा जाना, दुश्मनों द्वारा जहाज पर हमला, आग लग जाना, समुद्री डाकुओं द्वारा बन्धक बना लेना या फिर जहाज के कप्तान अथवा अन्य कर्मचारियों की गलती। समुद्री बीमा में जहाज, उसमें लदा सामान एवं भाड़े का बीमा किया जाता है। समुद्री बीमा अन्य बीमों से थोड़ा भिन्न है। इसमें तीन चीजें सम्मिलित हैं-जहाज, माल एवं भाड़ा।
समुद्री बीमा प्रसंविदा के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
Chapter 4 Business Studies Class 11 प्रश्न 5.
भण्डारण सेवाओं की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भण्डारण सेवाएँ-प्रारम्भ में भण्डारण या भण्डार-गृह में वस्तुओं को वैज्ञानिक ढंग से एवं रीति से सुरक्षित रखने एवं संग्रहण की एक स्थिर इकाई के रूप में माना जाता था। भण्डारण से वस्तु की मौलिकता, गुणवत्ता, कीमत एवं उपयोगिता बनी रहती है। वर्तमान समय में ये भण्डारण गृह मात्र संग्रहण सेवा का ही कार्य नहीं करते हैं वरन् ये उन कम कीमत पर भण्डारण एवं वहाँ से वितरण की सेवा भी उपलब्ध कराते हैं। ये अब सही मात्रा में, थान पर, सही समय पर, सही स्थिति में, सही लागत पर माल को उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं।
भण्डार-गृहों के कार्य-सामान्यतः भण्डार-गृह. निम्नलिखित कार्य करते हैं-
1. संचयन-ये उत्पादकों से प्राप्त होने वाले माल एवं वस्तुओं का संचय करते हैं तथा वहाँ से उन सभी को सीधे निश्चित ग्राहकों को एक-साथ भेज देते हैं।
2. भारी मात्रा का विभाजन करना-भण्डार-गृहों को उत्पादकों से भारी मात्रा में माल प्राप्त होता है। भण्डार-गृहों में इनका छोटी-छोटी मात्राओं में विभाजन कर दिया जाता है और ग्राहकों की आवश्यकतानुसार भेज दिया जाता है।
3. संग्रहित स्टॉक-कुछ चुनिंदा व्यवसायों में मौसम के अनुसार माल प्राप्त होता है। इस माल का संग्रहण भण्डार-गृहों में किया जाता है। इन्हें व्यवसायियों को उनके ग्राहकों की मांग के अनुसार माल उपलब्ध कराया जाता है। उदाहरणार्थ, ऐसे कृषि उत्पाद जिनकी फसल एक समय विशेष के दौरान उगायी जाती है लेकिन उनका उपभोग पूरे वर्ष होता है, उनको संचित करना होता है तथा उन्हें फिर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गोदाम से निकाला जाता है।
4. मूल्य-वर्द्धन सेवाएँ-भण्डार-गृह कुछ मूल्यवर्द्धन सेवाएँ जैसे-हस्तान्तरण के पूर्व मिश्रण, पैकेजिंग एवं लेबलिंग आदि की सुविधा प्रदान करते हैं। ये भण्डारगृह पुनः पैकेजिंग एवं लेबलिंग की सुविधा भी प्रदान करते हैं। इसी प्रकार भण्डार-गृह वस्तुओं को छोटे भागों में विभक्त करने एवं उनके श्रेणीकरण की सुविधा भी प्रदान करते
5. मूल्यों में स्थिरता-भण्डार-गृह माल या वस्तु की माँग के अनुसार आपूर्ति का समायोजन कर मूल्यों में स्थिरता लाता है।
6. वित्तीयन-भण्डार-गृहों के स्वामी वस्तुओं या माल की जमानत पर वस्तु या माल के स्वामियों को अग्रिम धन भी प्रदान करते हैं।