Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Exercise Questions and Answers.
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
RBSE Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुस्कान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर :
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर यह प्रभाव पड़ता है कि वह उसे देखकर प्रसन्न हो उठता है। उसका उदास मन सुन्दर कल्पनाओं में डूब जाता है। उसे लगता है कि मानो उसकी झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। मानो पत्थर जैसे दिल में प्यार की धारा उमड़ पड़ी हो या बाँस और बबूल के पेड़ जैसे नीरस जीवन में प्रफुल्लता और कोमलता रूपी शेफालिका के फूल झरने लगे हों।
प्रश्न 2.
बच्चे की मुस्कान और बड़े व्यक्ति की मुस्कान में क्या अन्तर है?
उत्तर :
बच्चे की मुसकान निर्मल, निश्छल एवं मोहक होती है। उसमें किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता है। जबकि बड़ों की मुसकान कुटिल और बनावटीपन से पूरित होती है। उसमें स्वार्थ छिपा रहता है।
प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुस्कान के सौन्दर्य को किन-किन बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर :
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौन्दर्य को निम्नलिखित बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है
- बच्चे की मुस्कान से मृतक में भी जान आ जाती है।
- यों लगता है-मानो झोपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों।
- मुस्कराते शिश का स्पर्श पाकर पत्थर-हृदय व्यक्ति भी द्रवित हो जाता है।
- यों लगता है-मानो बबूल और बांस से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर :
भाव - (क) भाव यह है कि दाँत निकलते हुए शिशु की निश्छल मधुर मुस्कान देख कर कवि का मन प्रसन्न हो उठता है। उसे ऐसा लगने लगता है कि मानो उसकी झोंपड़ी में ही कमल खिल उठे हों। आशय यह है कि उस नन्हे से बच्चे को देखकर कवि का मन उल्लास से भर जाता है।
(ख) नन्हे से बच्चे के स्पर्श में रोमांच भरा उल्लास समाया रहता है। उसे स्पर्श करते ही ऐसा लगता है कि मानो बाँस और बबूल के पेड़ से शेफालिका के फूल झरने लगे हों। आशय यह है कि शिशु की मधुर मुसकान को देखकर नीरस और दूँठ हृदय में भी सरस प्रेम का संचार होने लगता है। रचना और अभिव्यक्ति-
प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर :
मुसकान और क्रोध एक-दूसरे से विपरीत भिन्न-भिन्न भाव हैं। मुसकान मन की आन्तरिक प्रसन्नता को प्रकट करने वाला भाव है। इसमें स्वयं ही नहीं, सामने वाला भी प्रसन्न हो उठता है। जबकि क्रोध मन की उग्रता, चिड़चिड़ापन और अप्रसन्नता को व्यक्त करने वाला भाव है। इसको प्रकट करने से सामने वाला व्यक्ति भी झल्ला उठता है और क्रोध करने लगता है।
प्रश्न 6.
दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
'दन्तुरित मुसकान' से स्पष्ट है कि अभी शिशु के दाँत निकलने आरम्भ हुए हैं। अतः उसकी आयु छह से आठ महीने के मध्य होनी चाहिए। क्योंकि इसी अवस्था में बच्चे के दाँत निकलना शुरू हो जाते हैं।
बच्चे से कवि की मलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि बच्चे से मिला तो उसकी दंतुरित मुसकान देखकर उसके थके, उदास मन में नये प्राणों का संचार हो गया। उसे ऐसा लंगने लगा कि मानो उसकी सूनी झोंपड़ी में कमल आकर खिल गये हों, अर्थात् उसका मन खिल गया। उसके थके-माँदे शरीर और उदास मन में इस तरह मधुरता छा गई कि मानो बबूल के पेड़ पर शेफालिका के कोमल फूल झरने लगे हों। कवि को उस नन्हे से बच्चे ने पहली बार देखा था, इसलिए वह उसके लिए अनजान था फिर भी बच्चा उसे पहचानने के लिए बार-बार कनखियों से देखता था और अपना मुँह फेर लेता था। फिर धीरे-धीरे उन दोनों की नजरें मिलीं, जिससे उनमें स्नेह उमड़ा और बच्चा मुस्करा उठा। बच्चे की मधुर मुसकान ने कवि का मन हर लिया। इस प्रकार कवि ने प्रथम मुलाकात का शब्द-चित्र बहुत ही आत्मीयतापूरित भावों में भरकर खींचा है जिसमें अनजान स्नेह साकार हो उठा है।
फसल -
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है?
उत्तर :
कवि के अनुसार फसल पानी, मिट्टी, सूरज की किरण (धूप), हवा की थिरकन और मानव-परिश्रम के सन्तुलित संयोग से उपजती है। इसमें सभी नदियों के जल का जादू समाया हुआ है। सभी प्रकार की मिट्टियों के गुण-धर्म निहित हैं। सूरज की धूप और हवा के झोंकों का प्रभाव समाया हुआ है। इन सबके योगदान के साथ ही किसानों और मजदूरों का भी परिश्रम जुड़ा हुआ है। इन सबके सम्मिलित योगदान का प्रतिफल फसल है।
प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्त्व कौन कौनसे हैं?
उत्तर :
कविता में फसल उपजाने के लिए जिन आवश्यक तत्त्वों की बात कही गई है, वे तत्त्व निम्नलिखित हैं
- नदियों का पानी
- विभिन्न प्रकार की उपजाऊ मिट्टी
- सूरज की किरणें
- मन्द-मन्द बहती हवाएँ तथा
- मानव का श्रम।
प्रश्न 3.
फसल को हाथों के स्पर्श की गरिमा' और 'महिमा' कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर :
इससे कवि यह व्यक्त करना चाहता है कि फसल को उगाने में मानव के हाथों का स्नेहिल श्रम लगा होता है, क्योंकि जब किसान और मजदूर अपने हाथों से श्रम करके फसल को उगाते और बढ़ाते हैं, तभी फसल तैयार होती है। फसल का फलना-फूलना ही किसानों के श्रम की गरिमा और महिमा है जिसके कारण फसलें बढ़कर तैयार होती हैं।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
उत्तर :
भाव-उपर्युक्त पंक्तियों का भाव यह है कि फसल पर सूरज की किरणों (धूप) तथा हवा की थिरकन (झोंकों) का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः ये फसलें और कुछ नहीं हैं, सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं, क्योंकि फसलों में हरियाली सूरज की किरणों के प्रयास के कारण ही आती है और फसलों को बढ़ाने में हवा का भी अपना प्रभावी योगदान रहता है। इसलिए फसलें हवा का सिमटा-संकुचित रूप भी प्रतीत होती हैं।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हजार-हजार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिटटी के गण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर :
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को हम इस तरह परिभाषित करेंगे-मिट्टी में रचे-बसे विभिन्न प्राकृतिक तत्त्व, खनिज पदार्थ और वे पोषक तत्त्व जो मिट्टी में मिलकर उसके उपजाऊपन को विशेष बना देते हैं।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली मिट्टी के गुण-धर्म को बुरी तरह प्रभावित एवं प्रदूषित कर रही है। उसकी उपजाऊ शक्ति को विषैले रसायनों के मिश्रण से समाप्त करती है जिसके कारण धरती की उत्पादन क्षमता घटती है। रसायनों और फैक्ट्रियों आदि से निकले विषैले पदार्थों से मिट्टी के मूल स्वभाव में विकृति आ रही है। भूगर्भ के जल के विदोहन से मिट्टी के पोषक तत्त्व समाप्त हो रहे हैं।
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जब मिट्टी उपजाऊ शक्ति वाला अपना गुण-धर्म ही छोड़ देगी तो ऐसी स्थिति में मिट्टी बंजर हो जायेगी जिसके कारण फसलें उत्पादित नहीं हो सकेंगी। जब फसलें ही नहीं होंगी तो प्राणी क्या खायेगा? ऐसी स्थिति में जीवन की कल्पना कैसे सम्भव हो सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी अहम् भूमिका हो सकती है, क्योंकि हम संज्ञावान् प्राणी हैं इसलिए हमें सबसे पहले मिट्टी के गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों की जानकारी करनी चाहिए। रासायनिक खादों के स्थान पर कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए। प्रदूषित करने वाले कारकों से मिट्टी की रक्षा करनी चाहिए।. अधिक फसल लेने के लालच में हमें कीटनाशक रसायनों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पाठेतर सक्रियता -
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के सम्पादक को पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में,
श्रीयुत् सम्पादक महोदय,
दैनिक भास्कर,
जयपुर।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से देश की सुदृढ़ कृषि व्यवस्था के लिए कुछ सुझाव देना चाहता हूँ। कृपया इन्हें प्रकाशित कर अनुगृहीत करें।
यह सर्वविदित है कि भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है लेकिन कृषि की अनदेखी के कारण यहाँका किसान हमेशा ही उपेक्षित रहा है। अपने हाथों के स्पर्श से फसल उगाने वाल है और स्वयं भूखे रह जाता है। पिछले दिनों हजारों किसानों ने आर्थिक तंगी के कारण आत्महत्या कर ली। यह हमारी कृषि व्यवस्था पर एक तरह से सबसे बड़ा कलंक है। इस स्थिति को रोकने के लिए हमारी सरकार को किसानों के हित में योजनाएँ बनाकर लागू करनी चाहिए जिससे वे अपनी आर्थिक तंगी से उबर सकें। इसके लिए सबसे पहले किसानों को उन्नत बीज, उर्वरक तथा पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। उन्हें सस्ती ब्याज दर पर बैंकों से कर्ज मुहैया करवाया जाना चाहिए। महाजनों के चंगुल से उन्हें मुक्त कराया जाना चाहिए। उनकी फसलों का बीमा कराया जाना चाहिए। उनको बिचौलियों से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि वे अपनी फसलों के उचित दाम प्राप्त कर सकें। इसके साथ ही कृषि के क्षेत्र में शिक्षित युवकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वे नवीन कृषि यन्त्रों एवं नवीन कृषि प्रणाली का प्रयोग उत्साह के साथ कर सकें।
भवदीय
राजेन्द्र मोहन सिंह
कुमावतों की बगीची,
जोबनेर, जयपुर।
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर :
यह कथन सत्य है कि हमारी अर्थव्यवस्था में फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को उचित महत्त्व नहीं दिया जाता है, जबकि किसान की पत्नी का कृषि कार्यों में विशेष योगदान होता है। वे अपने पतियों के साथ मिलकर खेतों पर कार्य करती हैं। पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था करती हैं, फसलें काटती और ढोती हैं। खेतों में पानी देती हैं। खेतों पर रोटी पहुँचाती हैं। फसलों की पक्षियों से रक्षा करती हैं। लेकिन फसल उगने और तैयार कराने में उनका इतना बड़ा सहयोग होने पर भी, उनके कार्यों को उनके पक्ष में गिना नहीं जाता है। इस कारण उनको महत्त्व नहीं दिया जाता है। एक दृष्टि से यह उचित नहीं है। हमें उनके सहयोगी भाव को स्वीकारना चाहिए . तथा उनके योगदान की चर्चा करनी चाहिए और उनके पतियों के समान ही उनके श्रम को भी महत्त्व दिया जाना चाहिए।
RBSE Class 10 Hindi यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Important Questions and Answers
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
'यह दंतुरित मुस्कान' किसके लिए लिखी गई है?
उत्तर :
'यह दंतरित मस्कान' कवि ने अपने बच्चे के लिए लिखी है।
प्रश्न 2.
'पिघल कर जल बन गया होगा कठिन पाषाण' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
बच्चे का कोमल स्पर्श पाकर कठोर पत्थर भी पिघल कर जल बन गया।
प्रश्न 3.
कवि नन्हें शिशु की दंतुरित मुस्कान किसके माध्यम से देख पाया?
उत्तर :
कवि नन्हें शिशु की दंतुरित मुस्कान उसकी माँ तथा अपनी पत्नी के माध्यम से देख पाया।
प्रश्न 4.
'दंतुरित मुस्कान' से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
'दंतुरित मुस्कान' से आशय नन्हें बच्चे की मुस्कान से है, जिसके दाँत अभी निकल रहे हों।
प्रश्न 5.
कवि ने स्वयं को प्रवासी, इतर और अतिथि क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि लम्बे समय तक घर से बाहर रहा इसलिए प्रवासी कहा और प्रवासी होने के कारण बच्चे के लिए इतर (अलग) तथा अतिथि था।
प्रश्न 6.
'फसल' के विकास में किन-किन का सहयोग होता है?
उत्तर :
'फसल' उगाने में नदियों के जल, सूर्य के ताप तथा मानव के हाथों का सहयोग होता है।
प्रश्न 7.
'फसल' काव्यांश में कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
यही कि फसलों को उगाने, बढ़ाने में सभी का सहयोग अपेक्षित होता है।
प्रश्न 8.
प्रकृति किन-किन रूपों में फसलों को आकार देती है?
उत्तर :
प्रकृति हवा, पानी एवं सूर्य के ताप द्वारा फसलों को आकार देती है।
प्रश्न 9.
'नागार्जुन' का मूल नाम क्या है?
उत्तर :
इनका मूल नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था।
प्रश्न 10.
नागार्जुन की काव्य-कृतियों के नाम बताइये।
उत्तर :
युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, हजार-हजार बाँहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आदि कृतियाँ प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 11.
नागार्जुन अपनी मातृभाषा 'मैथिली' में किस नाम से कविता लिखते थे?
उत्तर :
नागार्जुन मैथिली भाषा में 'यात्री' उपनाम से कविता लिखते थे।
प्रश्न 12.
नागार्जुन का स्वभाव किस प्रकार का था?
उत्तर :
नागार्जुन घुमक्कड़ प्रवृत्ति के तथा अख्खड़ स्वभाव के माने जाते थे।
प्रश्न 13.
नागार्जुन किस धर्म में दीक्षित हुए थे?
उत्तर :
नागार्जुन जब श्रीलंका गए तब वहाँ बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि को किसकी 'दन्तुरित मुस्कान' छविमान लगती है और क्यों?
उत्तर :
कवि को छोटे बालक की दन्तुरित मुस्कान छविमान लगती है, क्योंकि उस मुस्कान में जीवन की सुन्दरता, मोहकता और बाँकापन रहता है, उसे देखकर कठोर मन भी पिघल जाता है और अपरिचित व्यक्ति से भी वह अपनत्व स्नेह प्रकट करती है।
प्रश्न 2.
'तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!'
कवि नागार्जुन को दंतुरित मुसकान की छवि बड़ी कब लगती है?
उत्तर :
जब शिशु कवि को तिरछी नजर से देखकर अपनी आँखें फेर लेता है, किन्तु फिर आँखों से आँख मिलाकर मुस्कराता है और दोनों की आँखें परस्पर मिलती हैं, तब कवि को उसकी दंतुरित मुसकान की छवि बड़ी सुन्दर लगती है।
प्रश्न 3.
" 'दंतुरित-मुसकान' पाषाण हृदय को पिघलाकर जल बना देती है।" कथन की सत्यता अथवा असत्यता को तर्क द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
यह सत्य है कि दंतुरित-मुसकान अपनी निश्छलता और मोहकता के कारण सबके मन को हर लेती है। यहाँ तक कि पाषाण-हृदय व्यक्ति भी उसके प्रभाव में आकर पिघल जाता है और उसे आकर्षित कर अपने प्रति सहृदय बना देती है।
प्रश्न 4.
'दंतुरित मुसकान' कविता के आधार पर बताइए कि शिशु कवि को अनिमेष क्यों देखता है?
उत्तर :
शिशु कवि को अनिमेष इसलिए देखता है, क्योंकि शिशु ने अपने अनजान पिता को इससे पहले कभी नहीं देखा। जिसके कारण वह उसे पहचान नहीं पाता है लेकिन बाल मनोविज्ञान के आधार पर उत्सुकता के कारण वह अनिमेष देखता रहता है। .
प्रश्न 5.
'दंतुरित मुसकान' मृतक में भी जान डालने में समर्थ होती है, कैसे?
उत्तर :
कवि के अनुसार 'दंतुरित मुसकान' मृतक तुल्य व्यक्ति में भी जीवन का संचार कर सकती है। एक सर्वदनहान व्यक्ति भी अबोध एवं सुकुमार शिशु की मोहक मुसकान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। उसके भी हृदय में वात्सल्य की तरंग जगा सकती है।
प्रश्न 6.
शिशु के धूल-धूसरित अंगों को देखकर कवि क्या कल्पना करता है?
उत्तर :
शिशु के धूल-धूसरित अंगों को देखकर कवि कल्पना करता है कि मानो उसकी झोंपड़ी में कमल के फूल खिल उठे हों। शिशु के मुख आदि अंगों की सुन्दरता की तुलना कमल के फूल से की गयी है, जिसे देखकर कवि प्रसन्न हो उठता है।
प्रश्न 7.
'झोंपड़ी में खिल रहे जलजात' का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि को अपने दंतुरित मुसकानधारी अनजान बच्चे को देखकर ऐसी अनुभूति हुई कि मानो कमल उसकी झोंपड़ी में खिल उठे हों। आशय यह है कि शिशु की निश्छल और मोहक मुसकान के कारण झोंपड़ी में आनन्द और प्रसन्नता छा गयी।
प्रश्न 8.
कवि ने बाँस और बबूल किसे कहा है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने बाँस और बबूल स्वयं को कहा है, क्योंकि ये दोनों रूखेपन के प्रतीक हैं। कवि प्रवासीपन के कारण पारिवारिक अहसासों और वात्सल्य सुख से अपरिचित हो गया था। शिशु का स्पर्श करते ही वह शेफालिका के फूलों जैसी कोमलता का अनुभव करने लगा था।
प्रश्न 9.
कवि किसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है और क्यों?
उत्तर :
कवि शिशु की माँ के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है, क्योंकि कवि अपने प्रवास से बहुत दिनों बाद घर लौटा था, क्योंकि वह जिससे शिशु उसे पहचान नहीं पाया। माँ ने उसका परिचय पिता से कराया और वह उसकी दंतुरित मुसकान देख सका।
प्रश्न 10.
'आँख लूँ मैं फेर' कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर :
'आँख लूँ मैं फेर' कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि शिशु कवि (पिता) की ओर निरन्तर देख रहा और मुस्करा रहा था। अतः कवि (पिता) को लगा कि वह निरन्तर देखते हुए थक गया होगा।
प्रश्न 11.
कवि ने किस-किस को धन्य कहा है और क्यों?
उत्तर :
कवि ने पहले मोहक छवि धारण करने वाले अपने शिशु को धन्य कहा है और फिर शिशु की माँ को धन्य कहा, क्योंकि वह शिशु का पालन-पोषण करती हुई उसकी मोहक छवि को निहारा करती है। प्रवास से लौटकर अपने शिशु को देखने से कवि ने व्यंग्य रूप में स्वयं को भी धन्य माना।।
प्रश्न 12.
'एक के नहीं, दो के नहीं के द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
कथन के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जिन फसलों का हम उपभोग करते हैं उन फसलों को उगाने तथा आप तक पहुँचाने में अनगिनत लोगों, हजारों खेतों और अनगिनत प्राकृतिक तत्त्वों का योगदान होता है।
प्रश्न 13.
फसल को मिट्टी का गुणधर्म क्यों कहा गया है? .
उत्तर :
फसल को मिट्टी का गुणधर्म इसलिए कहा गया है, क्योंकि प्रत्येक मिट्टी में अनेक प्रकार के खनिज और पोषक तत्त्व होते हैं, जिनसे पौधे रस लेकर अपना पोषण करते हैं, जिससे उनका स्वाद और प्रभाव अलग हो जाता है।
प्रश्न 14.
'फसल' शीर्षक कविता से कवि हमें क्या सन्देश देना चाहता है?
उत्तर :
कवि संदेश देना चाहता है कि फसलें जीवन का आधार हैं। इन्हें उगाने में अनेक मिट्टी, जल, मानव श्रम, हवा तथा प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है। अतः इन्हें पैदा करने के लिए प्रकृति और मानव के मध्य उचित भागीदारी आवश्यक है।
प्रश्न 15.
'फसल' कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तर :
'फसल' कविता में कवि ने बतलाया है कि फसल अनेक सामूहिक प्रयासों की सुखद परिणति है। इसमें अनेक प्राकृतिक स्रोत और मानव-श्रम सम्मिलित प्रयास के रूप में समाहित होते हैं। इनके समुचित सहयोग से ही फसल उगती और बढ़ती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
'यह दंतुरित मुस्कान' कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
'यह दंतुरित मुस्कान' कविता नागार्जुन द्वारा लिखी हुई है। इसमें कवि ने बच्चे की मुस्कान का बड़ा ही। मनमोहक वर्णन किया है। वह बच्चा जिसके अभी-अभी दाँत निकलने शुरू हुए हैं। कवि ने उस मनोहारी मुस्कान के माध्यम से व्यक्ति के हृदय की सरल अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। बच्चे के मुस्कान में इतनी शक्ति होती है कि पाषाण हृदय को भी जल बना देती है। बच्चे को धूल में लिपटा घर के आँगन में खेलता देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है कि मानो किसी झोपड़ी में कमल खिला हो।
कवि ने यहाँ बाल अवस्था के बालक द्वारा की जाने वाली नटखट और प्यारी हरकतों का वर्णन किया है। जैसे बालक जब किसी व्यक्ति को पहचानता नहीं है तो सीधी नजरों से न देखकर तिरछी नजरों से देखता है। और पहचानने के पश्चात् टकटकी लगाकर देखता है। इसमें कवि ने बच्चे की माँ को भी धन्यवाद दिया है कि वह बच्चे व पिता का परिचय करवाती है। पिता प्रवास पर गये होने के कारण प्रथम बार बच्चे को देखते हैं। इस कारण माँ द्वारा किये गये कार्यों को कवि धन्य बताते हैं।
प्रश्न 2.
'फसल' कविता के माध्यम से कवि क्या सन्देश देना चाहते हैं?
अथवा
'फसल' कविता में व्यक्त संदेश-विचार को व्यक्त कीजिए।
उत्तर :
'फ़सल' कविता के माध्यम से कवि ने किसानों के परिश्रम एवं प्रकृति की महानता का गुणगान किया है। उनके अनुसार फसल पैदा करना किसी एक अकेले व्यक्ति के बस की बात नहीं है, यह सबके सहयोग का ही प्रतिफल होता है। इसमें प्रकृति और मनुष्य दोनों का तालमेल होता है। बीज को अंकुरित होने के लिए धूप, वायु, जल, मिट्टी एवं मनुष्य के कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है। तब जाकर फसल पैदा होती है। इसे पैदा करने में एक या दो नदियों का जल ही नहीं होता बल्कि ढेर सारी नदियों का पानी मिला होता है जो बारिश के रूप में खेती पर अमृत बरसाता है।
उसी तरह हर मिट्टी की भी अलग-अलग विशेषता होती है। उनके रूप, रंग, गुण एक समान नहीं होते हैं। सभी मिट्टियों के विभिन्न गुणों का योगदान रहता है। सूर्य की किरणों का प्रभाव एवं मंद हवाओं का स्पर्श सबके सम्मिलित योगदान से ही फसल तैयार होती है। कवि ने कविता में यही भाव प्रस्तुत किया है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न -
प्रश्न 1.
कवि नागार्जुन के व्यक्तित्व और साहित्य-सर्जन का परिचय दीजिए।
उत्तर :
कवि नागार्जु जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन् 1911 में हुआ। उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। ये आधुनिक युग के जनवादी चेतना के प्रमुख कवि थे। इनकी कविताओं में प्रखर व्यंग्य भी है तथा लोक-हित के प्रति रुझान भी है। शासन-तंत्र की विसंगतियों, लोगों के अवसरवादी चेहरों तथा राजनीति की को लक्ष्य करके इनके तीखे प्रखर व्यंग्य है।
नागार्जुन की कविताओं में भावुकता और कल्पना से अलग हटकर यथार्थपरक दृष्टिकोण दिखता है। इनकी साहित्य में रचनाएँ युगधारा', 'प्यासी पथराई आँखें', 'सतरंगें पंखों वाली', 'तुमने कहा था', 'तालाब की मछलियाँ' आदि काव्य कृतियाँ हैं। 'बलचनमा', 'रति नाथ की चाची', 'कुम्भीपाक', 'वरुण के बेटे' आदि उपन्यास हैं। घुमक्कड़ प्रवृत्ति के नागार्जुन का देहांत सन् 1998 में हुआ था।
यह दंतुरहित मुस्कान और फसल Summary in Hindi
कवि-परिचय :
नागार्जुन का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनका जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन् 1911 में हुआ था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई, फिर अध्ययन के लिए वे बनारस और कोलकाता गये। 1936 में वे श्रीलंका गये और वहीं जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। घुमक्कड़ी और अक्खड़ स्वभाव के धनी नागार्जुन ने अनेक बार सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। सन् 1998 में उनका स्वर्गवास हो गया। इनके द्वारा रचित काव्य-कृतियाँ-'युगधारा', 'सतरंगे पंखों वाली', 'हजार-हजार बाँहों वाली', 'तुमने कहा था', 'पुरानी जूतियों का कोरस', 'आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने', 'मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा' आदि हैं।
पाठ-परिचय :
पाठ्यक्रम में नागार्जुन द्वारा रचित दो कविताएँ-(i) 'यह दंतुरित मुसकान' और (ii) 'फसल' संकलित हैं। (i) 'यह दंतुरित मुसकान' कविता में एक छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान देखकर कवि के मन में जो सहज भाव उमड़ते हैं, उन्हें कविता में अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया गया है। (ii) 'फसल' शीर्षक कविता में कवि ने बतलाया है कि फसल शब्द सुनते ही खेतों में लहलहाती फसल आँखों के सामने आ जाती है। परन्तु फसल है क्या, और उसे पैदा करने में किन-किन तत्त्वों का योगदान होता है, इन सब बातों पर इसमें प्रकाश डाला गया है।
सप्रसंग व्याख्याएँ
यह दंतुरित मुसकान
1. तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात...
छोड़कर तालाब मेरी झोपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
कठिन-शब्दार्थ :
- दंतुरित = बच्चों के नए-नए दाँत।
- मृतक = मरे हुए।
- धूलि-धूसर = धूल से सने हुए।
- गात = शरीर, शरीरांग।
- जलजात = कमल के फूल।
- परस = स्पर्श।
- प्राण = जीवन।
- पाषाण = पत्थर।
- शेफालिका = फूलों वाला पौधा।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश नागार्जुन द्वारा रचित "यह दंतुरित मुस्कान' कविता से लिया गया है। कवि ने इसमें छोटे बच्चों की मनोहारी मुस्कान देख मन के भावों को प्रकट किया है।
व्याख्या - कवि नन्हे से बच्चे को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम्हारे नन्हे-नन्हे निकलते दाँतों वाली मुसकान इतनी मनमोहक है कि यह मरे हुए आदमी में भी जान डाल सकती है। कहने का आशय यह है कि यदि कोई निराश-उदास और बेजान व्यक्ति भी तुम्हारी इस दंतुरित मुसकान को देख ले, तो वह भी एक बार प्रसन्नता से खिल उठे। उसके भी मन में इस दुनिया की ओर आकर्षण जाग उठे। कवि कहता है कि तुम्हारे इस धूल से सने हुए नन्हे तन को देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि मानो कमल के फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोंपड़ी में खिल उठे हों।
कहने का आशय यह है कि तुम्हारा सुन्दर-सुकोमल मुख कमल के समान प्रतीत होता है, जिसे देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। ऐसा लगता है कि तुम जैसे प्राणवान का स्पर्श पाकर ये चट्टानें पिघल कर जल बन गई होंगी। कहने का आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुसकान पाषाण हृदय मनुष्य को भी पिघलाकर अति कोमल हृदय वाला बना देती है। नन्हे से बच्चे के शरीर का स्पर्श पाकर बाँस और बबूल वृक्ष भी शेफालिका के फूलों की तरह झरने लगते हैं। आशय यह है कि कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति शुष्क, कठोर और झकरीला हो गया था। बच्चे की मधुर मुसकान को देखकर उसका मन भी पिघलकर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुन्दर हो गया है।
विशेष :
- बच्चों की मुस्कान का सजीव वर्णन हुआ है। बच्चे की मधुर मुस्कान पाषाण हृदय मनुष्य को भी पिघलाकर कोमल बना देती है।
- खड़ी बोली हिन्दी, तत्सम शब्द, उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है।
- भावार्थ सहज एवं सरल है।
2. तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
कठिन-शब्दार्थ :
- अनिमेष = बिना पलक झपकाए।
- परिचित = जाना-पहचाना।
- माध्यम = सहारा, दो को मिलाने वाला।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन द्वारा लिखित 'यह दंतुरित मुस्कान' से लिया गया है। बच्चे के साथ अपने स्नेहशील बंधन को कवि व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या - कवि शिशु को लक्ष्य कर कहता है कि तुम मेरी ओर एकटक होकर देख रहे हो, इससे ऐसा लगता है कि तुम मुझे पहचान नहीं पाये हो। कवि बच्चे से उसके पास खड़ा होकर पूछता है कि तुम मुझे इस तरह लगातार देखते हुए थक गये होगे। इसलिए लो मैं तुम पर से अपनी नजर स्वयं हटा लेता हूँ। तुम मुझे पहली बार देख रहे हो, इसलिए यदि मुझे पहचान भी न पाए तो वह स्वाभाविक ही है। कवि पत्नी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हुआ कहता है कि यदि तुम्हारी माँ माध्यम न बनी होती तो आज मैं तुम्हारी दन्तुरित एवं मनमोहक मुस्कान नहीं देख पाता। तुम्हारी माँ ने ही बताया कि यह दन्तुरित मुसकान वाला शिशु मेरी ही सन्तान है।
विशेष :
- कवि ने माँ को महत्त्व दिया है कि वही बच्चे और पिता के मध्य स्नेह बंधन का माध्यम बनती है।
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।
- 'पाए नहीं पहचान' में अनुप्रास अलंकार है।
- 'मुक्तछन्द' की कविता है।
3. धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
कठिन-शब्दार्थ :
- धन्य = सम्मान के योग्य।
- चिर प्रवासी = लम्बे समय तक बाहर रहने वाला।
- इतर = अन्य।
- सम्पर्क = सम्बन्ध।
- अतिथि = मेहमान।
- मधुपर्क = दूध, दही, शहद, जल और मिश्री के मेल से बना हुआ, पंचामृत।
- कनखीमार = तिरछी निगाह से देखकर आँखें हटा लेना।
- आँखें चार होना = प्यार होना।
- छविमान = बहुत सुन्दर।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन द्वारा लिखित 'यह दंतुरित मुस्कान' कविता से लिया गया है। इसमें कवि माँ की महिमा को व्यक्त कर रहे हैं।
व्याख्या - कवि नन्हे शिशु को सम्बोधित करके कहता है कि तुम अपनी मोहक छवि के कारण धन्य हो। तुम्हारी माँ भी तुम्हें जन्म देकर और तुम्हारी सुन्दर रूप-छवि निहारने के कारण धन्य है। दूसरी ओर एक मैं हूँ जो लगातार लम्बी यात्राओं पर रहने से तुम दोनों से पराया हो गया हूँ। इसीलिए मुझ जैसे अतिथि से तुम्हारा सम्पर्क नहीं रहा। अर्थात् मैं तुम्हारे लिए अनजान ही रहा हूँ। यह तो तुम्हारी माँ है जो तुम्हें अपनी उँगलियों से तुम्हें मधुपर्क चटाती रही, अर्थात् तुम्हें वात्सल्य भरा प्यार देती रही।
अब तुम इतने बड़े हो गये हो कि तिरछी नजर से मुझे देखकर अपना मुँह फेर लेते हो, इस समय भी तुम वही कर रहे हो। इसके बाद जब मेरी आँखें तुम्हारी आँखों से मिलती हैं, अर्थात् तुम्हारा-मेरा स्नेह प्रकट होता है, तब तुम मुस्करा पड़ते हो। इस स्थिति में तुम्हारे निकलते हुए दाँतों वाली तुम्हारी मधुर मुसकान मुझे बहुत सुन्दर लगती है और मैं तुम्हारी उस मधुर मुसकान पर मुग्ध हो जाता हूँ।
विशेष :
- बच्चे की मुस्कान के मध्य छिपी परिचय की भावना व्यक्त हुई है।
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।
- मुक्तछन्द का प्रयोग है।
- अनुप्रास अलंकार तत्सम शब्द का प्रयोग है।
फसल
1. एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हजार खेतों की मिटटी का गणधर्म :
कठिन-शब्दार्थ :
- कोटि = करोड़ों।
- स्पर्श = छुअन।
- गरिमा = गौरव।
- गुण-धर्म = स्वभाव और प्रभाव।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन द्वारा लिखित कविता 'फसल' से लिया गया है। इसमें कवि ने फसल के उत्पन्न होने में सबके सहयोग का वर्णन किया है।
व्याख्या - कवि यहाँ फसल उगाने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में वर्णन करता हआ कहता है कि ये जो खेतों में फसलें फल-फूल रही हैं, इनमें एक नहीं, दो नहीं, बल्कि सैकड़ों नदियों का जल इन फसलों को सींच रहा है जिसके कारण फसलें तैयार हो रही हैं। इन फसलों को तैयार करने में एक नहीं, दो नहीं, लाखों-लाखों और करोड़ों-करोड़ों लोगों के हाथों का स्पर्श मिला है। अर्थात् न जाने कितने किसान-मजदूरों ने इन्हें तैयार किया है। उन सबकी मेहनत इन तैयार फसलों में झलकती है। इसके साथ ही एक नहीं, दो नहीं, न जाने कितने खेतों की मिट्टी का गुण और स्वभाव इन फसलों में आ गया है और इनका विकास हुआ हैं। अतः मिट्टी, मानव का श्रम तथा नदियों का जल ये सभी मिलकर फसल उगाने में अपना-अपना योगदान देते हैं
विशेष :
- मनुष्य और प्रकृति के सहयोग से फसल का उत्पादन होता है, कवि का भाव व्यक्त किया गया है।
- खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है, भाषा सरल, सहज है।
- मुंक्त छन्द का प्रयोग है।
2. फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपान्तर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
कठिन-शब्दार्थ :
- जादू = प्रभाव।
- महिमा = महत्त्व, प्रभाव।
- संदली = एक विशेष प्रकार की मिट्टी।
- रूपान्तर = बदला हुआ रूप।
- संकोच = सिकुड़न, सिमटना।
- थिरकन = नाचना, लहराना।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश कवि नागार्जुन की कविता 'फसल' से लिया गया है। इसमें कवि ने नदी, सूर्य एवं मनुष्य के हाथों के संयोग से फसल होना बताया है।
व्याख्या - कवि फसल को लेकर प्रश्न करते हुए उत्तर देता है कि ये फसलें और कुछ नहीं हैं केवल नदियों के जल के प्रभाव का जादू हैं तथा मनुष्य के हाथों के स्पर्श अर्थात् उसके श्रम का सुखद परिणाम हैं। ये फसलें कहीं भूरी मिट्टी से उपजी हैं, तो कहीं काली मिट्टी से तो कहीं संदली मिट्टी से उपजी हैं। ये फसलें सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि सूरज की किरणों ने ही इन फसलों को अपनी ऊष्मा देकर इस तरह का रूपाकार प्रदान किया है। इसके साथ ही हवाओं की थिरकन सिमट कर इनमें समा गयी है। अर्थात् इन्हें बड़ा करने में हवा की भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अर्थात् फसल प्राकृतिक तत्त्वों और मानव श्रम के सन्तुलित संयोग का प्रतिफल है।
विशेष :
- फसल का होना प्राकृतिक तत्त्वों और मानव श्रम के सन्तुलित संयोग का प्रतिफल होता है।
- भाषा शैली सीधी व सहज है तथा खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है।
- 'मुक्तछन्द' कोटि की रचना है।