Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त Textbook Exercise Questions and Answers.
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त
RBSE Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि ने 'श्रीब्रजदूलह' किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मन्दिर का दीपक क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि देव ने 'श्रीब्रजदूलह' शब्द का प्रयोग श्रीकृष्ण के लिए किया है। जिस प्रकार 'दीपक' के जलने से मन्दिर में प्रकाश फैल जाता है, उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से सारे ब्रज प्रदेश में आनन्द और उल्लास का प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण इन्हें संसार रूपी मन्दिर का दीपक कहा गया है
प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
उत्तर:
अनुप्रास अलंकार :
- 'कटि किंकिनि कै' में ('क' वर्ण की आवृत्ति)
- 'साँवरे अंग लसै पट पीत।' में ('प' वर्ण की आवृत्ति)
- 'हिये हुलसै बनमाल सुहाई' में ('ह' वर्ण की आवृत्ति) होने के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
रूपक अलंकार :
- 'हँसी मुखचन्द जुन्हाई मुखचन्द में मुख-रूपी चाँद।
- जग-मन्दिर-दीपक' संसार रूपी मन्दिर के दीपक में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
पाँयनि नपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई॥
उत्तर:
भाव-सौन्दर्य-श्रीकृष्ण के पैरों में सुन्दर घुघुरू बज रहे हैं और कमर में बँधी करधनी मधुर आवाज कर रही है। उनके साँवले शरीर पर पीले वस्त्र और गले में बनमाल शोभायमान हो रही है। कृष्ण का यह रूप अत्यन्त मोहक है। यहाँ 'पायनि नूपुर मंजु बसें' में आनुप्रासिकता है। इसका नाद-सौन्दर्य दर्शनीय है तथा 'कटि किंकिनि कै धुनि' एवं 'पट-पीत' में 'क' व 'प' की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास की छटा निराली बन पड़ी है। ब्रजभाषा का माधुर्य, शृंगार रस एवं प्रसाद गुण की छटा दर्शनीय है। सुगेय सवैया छन्द का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतराज वसंत के बालरूप का वर्णन परम्परागत वसन्त वर्णन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
वसंत के परम्परा वर्णन को प्रेमोद्दीपन के रूप में वर्णित किया जाता है, जैसे-नायक-नायिका का परस्पर मिलना, झूले झूलना, रूठना-मनाना आदि। परन्तु इस कवित्त में ऋतुराज वसंत को कामदेव के नन्हे बालक के समान दिखाया गया है। इस नन्हे से शिशु को पालने में झुलाने, बतियाने, फूलों का झिंगूला पहनाने, नजर उतारने, जगाने आदि का काम प्रकृति के विभिन्न उपादानों द्वारा किया जाना बताया जा रहा है। इसलिए यह वर्णन परम्परागत वसंत-वर्णन से भिन्न है।
प्रश्न 5.
'प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।' इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति का भाव यह है कि नित्य प्रात:काल गुलाब का फूल चटक कर खिलता है। उसका चटकना चुटकी बजाने जैसा है। जिस प्रकार माँ चुटकी बजाकर अपने लाडले को जगाती है, उसी प्रकार गुलाब प्रतिदिन प्रातःकाल चुटकी बजाकर वसंत रूपी नन्हे बालक को जगाता हुआ मालूम पड़ता है।
प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुन्दरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
कवि देव की कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
कवि ने चाँदनी रात की सुन्दरता को निम्नलिखित रूपों में देखा है
- यह स्फटिक शिला से बने मन्दिर के रूप में लगती है।
- यह दही के उमड़ते समुद्र के रूप में दिखाई देती है।
- यह दूध के झाग से बने फर्श के रूप में दिखाई देती है।
- यह स्वच्छ, शुभ्र दर्पण के रूप में दिखाई देती है।
प्रश्न 7.
'प्यारी राधिका को प्रतिबिम्ब सो लगत चंद' इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौनसा अलंकार है?
उत्तर:
इसमें कवि ने राधा की सुन्दरता और उज्ज्वलता अपरम्पार बताई है, जिसके कारण उसके सामने चन्द्रमा भी तुच्छ और छोटा लगता है, जैसे वह उसकी परछाईं हो। अतः यहाँ व्यतिरेक अलंकार है, क्योंकि इसमें उपमान चन्द्रमा के उपमेय राधा के मुख से कम सुन्दर अर्थात् हीच दिखाया गया है।
प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
उत्तर:
चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए कवि ने निम्नलिखित उपमानों का प्रयोग किया है
- स्फटिक शिला
- उदधि दधि
- आरसी
- चन्द्रमा
- सुधा का मन्दिर
- दूध के झाग से बना फर्श
- आभा
- मल्लिका का मकरंद।
प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
रीतिकालीन कवि देव मुख्य रूप से दरबारी कवि थे। अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करना ही उनकी कविता का मुख्य उद्देश्य और यही उनका कवि-कर्म था। इसीलिए उन्होंने अपनी कविताओं में वैभव-विलास और सौन्दर्य के चित्र खींचे हैं। पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताओं को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है
- रीतिकालीन कवियों की भाँति देवरचित काव्य में कल्पना-शक्ति की मनोरम झाँकियाँ देखने को मिलती हैं। वृक्षों का पालना, पत्तों का बिछौना, फूलों का झबला, हवा द्वारा पालने को हिलाना, चाँदनी रात को आकाश में बना सुधा. मन्दिर, दही का समुद्र, दूध का झाग जैसा आँगन का फर्श, आरसी से अम्बर आदि उनकी उर्वर कल्पना-शक्ति के ही परिचायक हैं।
- पठितांश में सवैया और कवित्त छन्दों का प्रयोग किया गया है। भाषा सरस, मधुर, कोमल तथा संगीतात्मकता से पूरित ब्रजभाषा है।
- पठितांश में अनप्रास. रूपक, उपमा. व्यतिरेक आदि अलंकारों का सहज, स्वाभाविक प्रयोग द्रष्टव्य है।
- देव रूप-वर्णन में जहाँ अनोखे हैं वहीं वे प्रकृति-चित्रण में सिद्धहस्त हैं।
रचना और अभिव्यक्ति -
प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिये तथा उसके सौन्दर्य को अपनी कलम से शब्द बद्ध कीजिए।
उत्तर:
आज पूर्णिमा की रात है। घर की छत पर चढ़ कर इसके अप्रतिम मनमोहक सौन्दर्य का अवलोकन कर रहा हूँ। धरती से लेकर आकाश तक स्वच्छ, शीतल चाँदनी बिछी हुई है। सारा वातावरण शान्त है। पवन मन्द गति से चल रहा है। वृक्षों की चोटियाँ मानो अपनी मन्द मुस्कान से स्वच्छ चाँदनी रात का स्वागत कर रही हैं।
पाठेतर सक्रियता -
भारतीय ऋतु चक्र में छह ऋतुएँ मानी गई हैं, वे कौन-कौनसी हैं?
उत्तर:
भारतीय ऋतु चक्र में मानी जाने वाली छह ऋतुएँ-ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त, शिशिर और वसंत हैं।
'ग्लोबल वार्मिंग' के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर:
'ग्लोबल वार्मिंग' की समस्या से निपटने के लिए सरकार को ही नहीं, बल्कि हर नागरिक को अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका व्यक्तिगत दायित्व समझकर निभानी होगी। इसके लिए सर्वप्रथम उसे पर्यावरण के प्रति सचेत रहना चाहिए और अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। इसके साथ ही जिन कारणों से ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है, उनके प्रति जन-मानस को जागरूक कर इसका समा ढ़ने का सफल प्रयास किया जाना चाहिए। इन्हीं सब कार्यों के निर्वहन में मेरी अहम भूमिका हो सकती है।
RBSE Class 10 Hindi सवैया और कवित्त Important Questions and Answers
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ब्रजदलह' किसे सम्बोधित किया गया है?
उत्तर:
'ब्रजदूलह' अर्थात् ब्रज का दूल्हा, श्रीकृष्ण को सम्बोधित किया गया है।
प्रश्न 2.
'पीत' शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
'पीत' शब्द का अर्थ 'पीला' है। .
प्रश्न 3.
'वसन्त' को किसका पुत्र बताया गया है?
उत्तर:
'वसन्त' को सौन्दर्य का देवता 'कामदेव' का पुत्र बताया गया है।
प्रश्न 4.
'वसन्त' को सुबह कौन जगाता है?
उत्तर:
'वसन्त' को गुलाब की कलियां चटकारी देकर जगाती हैं।
प्रश्न 5.
'समन' झिंगला सौहे तन छवि भारी है' पंक्ति का भावार्थ बताइये।
उत्तर:
फूलों रूपी झबला वसंत रूपी पुत्र पर अत्यन्त ही सुन्दर लग रहा है।
प्रश्न 6.
'केकी' शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
'केकी' शब्द का अर्थ 'मोर' है।
प्रश्न 7.
'दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद' पंक्ति में किसके लिए कहा गया है?
उत्तर:
दूध के झाग़ के समान पूरे आँगन में फैली हुई, पूर्णिमा की रात्रि में फैली चाँदनी को कहा गया है।
प्रश्न 8.
'चन्द्रमा को किसका प्रतिबिम्ब बताया गया है?
उत्तर:
चन्द्रमा को राधिका के मुख का प्रतिबिम्ब बताया गया है।
प्रश्न 9.
'आरसी से अंबर में अर्थ एवं अलंकार बताइये।
उत्तर:
आरसी यानि दर्पण के समान आकांश का साम्य है जिसके कारण उपमा अलंकार है।
प्रश्न 10.
कवि देव के काव्य-ग्रंथों के नाम बताइये।
उत्तर:
रसविलास, भावविलास, काव्यरसायन, भवानी विलास आदि।
प्रश्न 11.
कवि देव के आश्रयदाताओं के नाम बताइये।
उत्तर:
औरंगजेब के पुत्र आजमशाह और भोगीलाल प्रमुख थे।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महाकवि देव ने वसन्त का बालक रूप में जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि देव वर्णन करते हैं कि पेड़ों की डालें वसन्त रूपी बालक के लिए पालना हैं और कोमल पत्ते-कोंपलें आदि बिछौना हैं। बालक ने फूलों का झबला पहन रखा है। कोयल मधुर स्वर में लोरी गाती है और कमल-कली रूपी नायिका उसकी नजर उतारती है और प्रतिदिन प्रातः गुलाब उसे चुटकी बजाकर जगाता है।
प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण को जग-मन्दिर का दीपक क्यों कहा गया है?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को जग-मन्दिर का दीपक इसलिए कहा गया है, क्योंकि उनके दिव्य-सौन्दर्य से सारा संसार उसी प्रकार शोभायमान हो रहा है, जिस प्रकार मन्दिर में जलता हुआ दीपक भक्त के मन-मन्दिर को भक्ति-ज्ञान से आनन्दित करता है।
प्रश्न 3.
कवि देव ने सवैये में कृष्ण के किस रूप का वर्णन किया है?
उत्तर:
कवि देव ने सवैये में श्रीकृष्ण के राजसी रूप-सौन्दर्य से मण्डित बाल रूप का वर्णन किया है। उनके पैर में बजते हुए नूपुर, उनकी कमर में करधनी, उनके पीले वस्त्र, गले में वनमाला, माथे पर मुकुट, बड़े-बड़े नेत्र, मुख पर हँसी-ये सब उनके नटखट रूप को व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 4.
कवि ने 'ब्रजदूलह' किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने 'ब्रजदूलह' श्रीकृष्ण को कहा है, क्योंकि उनके पांवों में पाजेब, कमर में करधनी, तन पर पीले वस्त्र, गले में वनमाला और माथे पर मुकुट धारण किए हुए सजे-धजे दूल्हे के समान अतीव मनोरम लग रहे हैं।
प्रश्न 5.
कवि देव ने सवैये में क्या कामना व्यक्त की है?
उत्तर:
कवि देव ने सवैये में कामना व्यक्त की है कि जग-मन्दिर में ब्रजदूलह श्रीकृष्ण अपने इन रूपों में सदा बने रहें और वे सदा सबके सहायक बन कर सब पर हमेशा कपा करते रहें।
प्रश्न 6.
कवि ने पेड़, पत्ते और सुमन की किस-किस रूप में कल्पना की है?
उत्तर:
कवि ने पेड़ और उसकी डालों की वसंत रूपी शिशु के सोने के लिए पालना, पत्तों की शिशु के लिए आरामदायक बिछौना तथा सुमन की शिशु के लिए कामदार झिंगूला की कल्पना की है।
प्रश्न 7.
'उतारो करै राई नोन' में किस लोक-परम्परा और मान्यता का उल्लेख हुआ है?
उत्तर:
ऐसा माना जाता है कि यदि शिशु को किसी की नजर लग जाए तो उसके सिर पर राई और नमक हाथ में लेकर घुमा कर आग में जला दिया जाता है। इससे लगी नजर का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 8.
कवि ने वसंत ऋतु की कल्पना किस रूप में और क्यों की है?
उत्तर:
कवि ने वसंत ऋतु की कल्पना राजा कामदेव के शिशु के रूप में की है, क्योंकि जिस प्रकार शिशु के आगमन पर घर में उल्लास और प्रेम का वातावरण छा जाता है, उसी प्रकार वसंत के आने पर प्रकृति में रागात्मक सम्बन्धों का संचार हो जाता है।
प्रश्न 9.
कवि ने 'उदधि दधि' की कल्पना क्यों की है?
उत्तर:
कवि ने 'उदधि दधि' की कल्पना इसलिए की है कि पूर्णिमा की रात्रि में आकाश और धरती के मध्य उज्ज्वल चाँदनी फैली हुई है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि मानो दही का समुद्र उफन रहा हो, क्योंकि चाँदनी दूधिया होती है।
प्रश्न 10.
देव द्वारा रचित कवित्तों का महत्त्व क्या है?
उत्तर:
कवित्तों में कवि की मनोरम कल्पना उनकी कलात्मक अभिरुचि का बोध कराती है। पहले कवित्त में हम वसंत ऋतु को कामदेव के शिशु के रूप में तथा दूसरे कवित्त में चाँदनी को विभिन्न चमत्कारी काल्पनिक रूपों में निहारते हैं।
प्रश्न 11.
कवि ने स्फटिक शिलाओं का उपमान किसके लिए प्रयुक्त किया है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता और दूधिया चमक को दिखाने के लिए स्फटिक शिलाओं का उपमान प्रयुक्त किया है। इससे चाँदनी का दूधिया प्रकाश सहज ही सामने साकार हो उठता है जो अपने आप में पूर्ण और मनोरथ है।
प्रश्न 12.
कवि ने राधिका का प्रतिबिंब किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने पूर्णिमा के चन्द्रमा को राधिका के मुख का प्रतिबिंब कहा है, क्योंकि चन्द्रमा तो उस प्यारी राधिका की परछाईं-सा जान पड़ता है। अर्थात् राधाजी का मुख चन्द्रमा से भी अधिक सुन्दर प्रतीत हो रहा है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि देव के काव्य में व्यक्त विशिष्ट बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
देव कवि द्वारा रचित पदों में व्यक्त भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रीतिकालीन आचार्य के रूप में कवि देव प्रसिद्ध है। रीतिकालीन कविताओं की प्रमुख सभी विशेषताएँ उनके काव्य में दिखाई पड़ती हैं। इनके काव्य के मुख्य बिन्दु निम्न हैं- शृंगारिकता, भक्ति एवं प्रकृति-चित्रण। कवि देव ने कृष्ण के माध्यम से अपनी भक्ति भावना एवं शृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। कृष्ण का राजसी सौन्दर्य उनके प्रति अनन्य प्रेम-भक्ति को प्रकट करता है। प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से देव ने वसंत ऋतु का भावपूर्ण चित्रण किया है। इन्होंने वसंत का परम्परागत वर्णन न करके उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रस्तुत किया है।
रीतिकालीन अन्य कवियों की भाँति उनकी प्रवृत्ति भी संयोग-शृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने चाँदनी रात में ऐसा रूप निखारा है जिसके सामने राधा के मुख का प्रतिबिम्ब चन्द्रमा लगता है। देव ने काव्य में सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए अभिधा शब्द शक्ति का सरल प्रयोग किया है। माधुर्य, प्रसाद गुणों का प्रयोग तथा अलंकारों की अनुपम छटा बिखेरी हैं। भाषा की कोमलकांत पदावली का सुन्दर, सार्थक प्रयोग तथा काव्य में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है।
प्रश्न 2.
पाठ्यांश के आँधार पर कृष्ण के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
'पायनि नुपूर मंजु बजै' इत्यादि सवैये में कवि ने श्रीकृष्ण के राजसी शृंगार से मण्डित रूप-सौन्दर्य का वर्णन किया है। श्रीकृष्ण ने राजकुमारों की वेशभूषा पहन रखी है। उनके पैरों में सुन्दर पाजेब है जो मधुर गुंजन कर रही है। उनकी कमर में करधनी शोभायमान है। श्रीकृष्ण ने अपने श्यामल शरीर पर पीले वस्त्र धारण कर रखे हैं, जो कि अतीव सुन्दर लग रहे हैं। उनके वक्ष पर वनमाला सुशोभित हो रही है अर्थात् रंग-बिरंगे फूलों की माला शोभायमान है। उनके मस्तक पर मुकुट सुशोभित है।
इस प्रकार वे पूरी तरह राजसी वेशभूषा में सुसज्जित हैं। कवि कहते हैं कि उनके नेत्र बड़े-बड़े और चंचल हैं तथा मुख रूपी चन्द्रमा पर मधुर मुस्कान है, जो चाँदनी के समान निर्मल प्रतीत हो रही है। श्रीकृष्ण ब्रजभूमि के कुलदीपक हैं। उनके शरीर की कुल-कान्ति से सारा ब्रज प्रदेश आनन्द और उल्लास से आलोकित हो रहा है। काव्यांश में कृष्ण को ब्रजभूमि का दूल्हा बताया गया है। जिनके सौन्दर्य पर सारा ब्रज प्रदेश मोहित है।
प्रश्न 3.
'आरसी से अम्बर में आभा-सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥'
इन पंक्तियों के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ये पंक्तियाँ चाँदनी रात से सम्बन्धित हैं। कवि पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरे आकाश की सुन्दर आभा का वर्णन करते हैं। चाँदनी रात बहुत ही उज्ज्वल एवं शोभायमान है। आकाश की उपमा सुन्दर, चमकदार पत्थर स्फटिक से दी गई है। मानो स्फटिक की चमकदार शिलाओं से चाँदनी का भव्य मंदिर बनाया गया हो। उसमें दही के सागर समान चाँदनी उमड़ रही है।
मंदिर में दूध के झाग के समान चाँदनी का विशाल फर्श बना हुआ है। जिस पर खड़ी राधा की सखियाँ तारों के समान झिलमिला रही हैं। साथ ही राधिका का मुख सौन्दर्य, उज्ज्वल कांति से युक्त सुशोभित हो रहा है। आकाश का चन्द्रमा राधा के मुख के समक्ष उसका प्रतिबिम्ब प्रतीत हो रहा है। कवि ने 'दूध को सो फेन', 'आरसी से अंबर में आभा' जैसे ध्वनि बिम्ब एवं शब्द चित्र प्रस्तुत किये हैं। उपमा एवं व्यतिरेक अलंकारों का प्रयोग तथा 'फटिक' में स्फटिक' में तत्सम शब्द का प्रयोग किया है।
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि देव का कृतित्व एवं व्यक्तित्व का संक्षेप में परिचय दीजिए।
अथवा
महाकवि देव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालिए।।
उत्तर:
महाकवि देव रीतिकाल के प्रमुख आचार्य कवि माने जाते हैं। अनेक आश्रयदाताओं के आश्रय में रह कर इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की। इनका जन्म इटावा (उ.प्र.) में सन् 1673 में हुआ। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। रीतिकालीन कवि होने के कारण इनकी कविताओं का संबंध दरबारों एवं आश्रयदाताओं से अधिक था। इनके काव्य-ग्रंथों की संख्या 52 से 72 तक मानी गई है। 'रस-विलास', 'भाव-विलास', 'काव्य-रसायण', 'भवानी-विलास' आदि प्रमुख ग्रंथ हैं। इनके काव्य में भक्ति-प्रेम, श्रृंगार तथा प्रकृति-चित्रण के भाव प्रमुखता से प्राप्त होते हैं। शब्दों की आवृत्ति के जरिये नया सौन्दर्य पैदा करके सुंदर ध्वनि चित्र प्रस्तुत किए हैं।
सवैया और कवित्त Summary in Hindi
कवि-परिचय :
रीतिकाल के प्रमुख कवि देव का जन्म इटावा (उ.प्र.) में सन् 1673 में हुआ था। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। देव ने अनेक शासकों का आश्रय प्राप्त किया, जिनमें से आजमशाह. भवानीदत्त वैश्य, कुशलसिंह, उद्योत सिंह एवं भोगीलाल प्रमुख थे। देव को सबसे अधिक सन्तोष और सम्मान भोगीलाल के आश्रय में रहने से मिला। इन्होंने राज-दरबारों का आडम्बरपूर्ण एवं चाटुकारिता से भरा जीवन निकट से देखा था। बाद में इन्हें उस जीवन से वितृष्णा हो गई। इनका देहान्त सन् 1767 में हुआ। इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की संख्या 52 से 72 तक मानी जाती है। इनमें से 'रसविलास', 'भावविलास', 'काव्य रसायन', 'भवानी विलास' आदि प्रमुख ग्रन्थ माने जाते हैं। आलंकारिकता और शृंगारिकता इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
पाठ-परिचय :
पाठ्यपुस्तक में देव द्वारा रचित एक सवैया और दो कवित्त संकलित हैं। पहले सवैया में कृष्ण के राजसी रूप-सौन्दर्य का वर्णन है। दूसरे कवित्त में वसंत को एक शिशु के रूप में चित्रित किया गया है, वहीं तीसरे कवित्त में कवि ने पूर्णिमा की चाँदनी को एक पारदर्शी मन्दिर का रूप दिया है।
सप्रसंग व्याख्याएँ
सवैया
1. पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह 'देव' सहाई॥
कठिन-शब्दार्थ :
- पाँयनि = पैरों में।
- मंजु = सुन्दर।
- बजै = बजना।
- किंकिनि = करधनी।
- मधुराई = मधुरता।
- साँवरे = कृष्ण।
- लसै = सुशोभित होना।
- पीत = पीला।
- हुलसै = आनन्दित हो रहा है।
- सुहाई = सुशोभित है।
- किरीट = मुकुट।
- मुखचंद = चन्द्रमा जैसा मुख।
- जुन्हाई = चाँदनी।
- ब्रजदूलह = ब्रज के दूल्हे।
- सहाई = सहायक।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश रीतिकाल के कवि देव द्वारा रचित 'सवैया' से लिया गया है। इसमें कवि देव ने सुन्दर शब्दों द्वारा श्रीकृष्ण के सुन्दर रूप एवं वेशभूषा की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की है।
व्याख्या - कवि देव कृष्ण के रूप-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि श्रीकृष्ण के पैरों में सुन्दर नूपुर हैं, जो बजते हुए मधुर ध्वनि कर रहे हैं। उनकी कमर में करधनी शोभायमान हो रही है जिसकी ध्वनि अति मधुर है। कृष्ण के श्यामल शरीर पर पीले वस्त्र अत्यन्त शोभायमान हैं। उनके वक्ष पर वनमाला अर्थात् वन के फूलों की माला शोभित हो रही है।
उनके मस्तक पर मकट विराजमान है और उनके नेत्र बडे-बडे और चंचल हैं तथा उनके मुख रूपी चन्द्रमा पर मधुर मुस्कान रूपी चाँदनी शोभित है। आज ब्रज के दूल्हे कृष्ण विश्व रूपी मन्दिर के सुन्दर प्रज्वलित दीपक के समान शोभाशाली प्रतीत हो रहे हैं। उनकी जय हो। वे अपने इस रूप में सदा बने रहें। कवि देव की यह कामना है कि वे ब्रज दूल्हे के समान सदा सबके सहायक बने रहें।
विशेष :
- श्रीकृष्ण के लावण्यमयी रूप का वर्णन हुआ है। साथ ही कवि की कामना भी व्यक्त हुई है कि कृष्ण सदैव सबके सहायक बने रहें।
- ब्रजभाषा का सुन्दर चित्र, अलंकारों से सज्जित उपमाएँ तथा श्रृंगार रस का समुचित प्रयोग हुआ है।
कवित्त
2. डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरार्दै 'देव',
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै॥
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक वसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै॥
कठिन-शब्दार्थ :
- डार द्रुम = पेड़ की डाल।
- पलना = पालना।
- नव पल्लव = नए पत्ते।
- झिंगूला = झबला, ढीला-ढाला वस्त्र।
- केकी = मोर।
- कीर = तोता।
- उतारो करै राई नोन = राई और नमक से नजर उतारना।
- कंजकली = कमल की कली।
- लतान = लताओं की।
- सारी = साडी।
- मदन = कामदेव।
- म = चुटकी।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश रीतिकाल के कवि देव द्वारा रचित 'कवित्त' से लिया गया है। इसमें वसंत ऋतु को बालक के रूप में दिखाकर प्रकृति के साथ रागात्मक सम्बन्ध की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की गई है।
व्याख्या - कवि देव वसन्त को राजा कामदेव के बालक के रूप में चित्रित करते हुए कहते हैं कि पेड़ और उसकी डालें वसंत रूपी शिशु के लिए पालना हैं। वृक्षों में आई नई कोंपलें (पत्ते) उस पालने पर बिछा हुआ बिछौना है। उस बालक ने फूलों से लदा हुआ झबला पहन रखा है, जो उसके तन को बहुत अधिक शोभा दे रहा है। इस वसन्त रूपी बालक के पालने को स्वयं हवा आकर झुला रही है।
मोर और तोते मधुर स्वर में उससे बातें कर रहे हैं। कोयल आ आकर उसे हिलाती है तथा तालियाँ बजा-बजाकर उसे खुश करती है। बालक को नजर लगने से बचाने के लिए फूलों के पराग से ऐसी क्रिया की जाती है मानो उस पर से राई-नमक उतारा जा रहा हो। कमल की कली रूपी नायिका बेलों रूपी साड़ी को सिर पर ओढ़कर नज़र उतारने का काम कर रही हो। इस प्रकार वसंत मानो कामदेव का नन्हा बालक है, . जिसे प्रतिदिन प्रातः गुलाब चुटकी बजा-बजाकर जगाता है।
विशेष :
- प्रकृति पर मानवी आरोप द्वारा सुन्दर चित्रण किया गया है।
- श्रृंगार रस, ब्रजभाषा का प्रयोग, कवित्त छन्द एवं रूपक अलंकार तथा मानवीकरण अलंकार का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
- वसंत को कामदेव का पुत्र बता कर सुन्दर व्यंजना प्रदर्शित है।
कवित्त
3. फटिक सिलानिं सौं सुधार्यो सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
बाहर ते भीतर लौं भीति न दिखैए 'देव',
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद॥
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद॥
कठिन-शब्दार्थ :
- फटिक = स्फटिक, हीरा।
- सिलानि = शिलाओं से।
- सधारयौ = सँवारा, बनाया।
- सधा = अमृत, चाँदनी।
- उदधि = समुद्र।
- दधि = दही।
- उमगे = उमड़े।
- अमंद = जो मंद न पड़े।
- भीति = दीवार।
- फेन = झाग।
- फरसबंद = फर्श के रूप में बना हुआ ऊँचा स्थान।
- तरुनि = जवान स्त्री।
- मल्लिका = बेले की जाति का एक सफेद फूल।
- आरसी = दर्पण।
- आभा = ज्योति।
- प्रतिबिम्ब = परछाईं।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश रीतिकाल के कवि देव द्वारा रचित 'कवित्त' से लिया गया है। इस पद में पूर्णिमा की रात में चांद-तारों से भरे आकाश की सुन्दरता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या - कवि पूर्णिमा की रात में चाँद-तारों से भरे आकाश की आभा का वर्णन करता हुआ कहता है कि चाँदनी रात बहुत ही उज्ज्वल और शोभायमान है। आकाश को देखकर ऐसा लगता है कि मानो स्फटिक की साफ चमकदार शिलाओं से चाँदनी का कोई भव्य मन्दिर बनाया गया हो। उसमें दही के सागर के समान चाँदनी की शोभा अधिक गति के साथ उमड़ रही हो। इस मन्दिर में बाहर से भीतर तक कहीं भी दीवार दिखाई नहीं दे रही है। आशय यह है कि सारा मन्दिर पारदर्शी है।
मन्दिर के आँगन में दूध के झाग के समान चाँदनी का विशाल फर्श बना हुआ है। उस फर्श पर खड़ी राधा की सजी-धजी सखियाँ अपने सौन्दर्य से जगमगा रही हैं। उनकी मोतियों की माला से निकलने वाली चमक मल्लिका के मकरंद-सी मनमोहक प्रतीत हो रही है। सुन्दर चाँदनी के कारण आकाश दर्पण की तरह साफ, स्वच्छ और उजला लग रहा है। उसमें सुशोभित राधिका ज्योति पुंज के समान उज्ज्वल प्रतीत हो रही है और चाँद तो प्यारी राधिका के सुन्दर मुख की प्रतिबिम्ब सा जान पड़ रहा है।
विशेष :
- पूर्णिमा की सौन्दर्यमयी रात्रि के साथ-साथ राधा एवं उनकी सखियों के सौन्दर्य का मनोरम वर्णन प्रस्तुत है।
- रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण अलंकार, शृंगार रस, कवित्त छन्द तथा प्रसाद गुण से युक्त कवि की सुन्दर रचना है।
- चाँद को राधा के मुख का प्रतिबिम्ब बताया जाना सुन्दर व्यंजना हुई है।