RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा Textbook Exercise Questions and Answers.

The questions presented in the RBSE Solutions for Class 10 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 10 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Students who gain good command in class 10 hindi kritika chapter 4 question answer can easily score good marks.

RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा

RBSE Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते थे?  
उत्तर: 
सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन इसलिए कहते थे, क्योंकि उसके मन में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वह चश्मे वाला न तो सेनानी था, न नेताजी का साथी था फिर भी वह नेताजी सुभाषचन्द्र का बहुत सम्मान करता था। वह सुभाषचन्द्रजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति देखकर आहत था, इसलिए वह अपनी ओर से नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाता था। उसकी इसी भावना को देखकर लोग उसे सुभाषचन्द्र का साथी या सेना का कैप्टन कहकर पुकारते थे। चाहे वे मजाक उड़ाने की मुद्रा में उसे कैप्टन कहते हों लेकिन वह कस्बे का अगुआ था। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 2. 
हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के लिए मना किया था, लेकिन बाद में तुरन्त रोकने को कहा - 
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे? 
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है? 
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे? 
उत्तर:
(क) हालदार साहब यह जानकर मायूस हो गये थे कि कैप्टन की मृत्यु हो गयी है। अब नेताजी की मूर्ति पर चश्मा पहनाने वाला कोई भी नहीं रहा। अब मूर्ति बिना चश्मे के ही खड़ी होगी। 
 
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि देश के नागरिक अपने-अपने ढंग से देश के निर्माण में अपना योगदान देकर देशभक्ति का परिचय देते हैं। इसमें बड़े ही नहीं बच्चे भी शामिल हैं, क्योंकि यह सरकंडे का चश्मा किसी गरीब बच्चे ने ही बनाया है। 
 
(ग) हालदार साहब के लिए सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति पर चश्मा लगाना 'इतनी सी बात' नहीं थी। वह उनके लिए बहुत बड़ी महत्त्वपूर्ण बात थी, क्योंकि यह बात उनके मन में आशा जगाती थी कि अब भी हमारे देश के कस्बे कस्बे में देशभक्ति की भावना जीवित है। इसी खुशी और आशा से वे भावुक हो उठे थे। 
 
प्रश्न 3. 
आशय स्पष्ट कीजिए 
"बार-बार सोचते, क्या होगा कौम का जो अपने देश के खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।" 
उत्तर: 
आशय-जो कौम अपने देश के बलिदानियों का सम्मान करना नहीं जानती, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं हो सकता। जिन लोगों ने देश की खातिर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया निश्चित ही वे सम्मान के पात्र हैं, लेकिन देश के बहुत से लोग उन पर भी हँसते हैं। एक छोटे से कस्बे में यदि कैप्टन नामक एक चश्मे वाला वृद्ध व्यक्ति सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाता रहा तो भी लोग उसकी देश-भक्ति पर हँसते रहे और उसे पागल एवं सनकी कहते रहे। जहाँ ऐसे स्वार्थी लोग रहते हों, उस देश का भविष्य कैसे सँभलेगा, क्योंकि वे अपने प्रचार-प्रसार में ही रुचि लेते हैं। 
 
प्रश्न 4. 
पान वाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए। 
उत्तर: 
पान वाले की दुकान चौराहे पर थी। वह दुकान पर आने वाले को जहाँ पान खिलाता था वहीं स्वयं भी अपने मुँह में पान लूंसे रहता था। वह काला, मोटा और खुश-मिजाज आदमी था। उसकी तोंद निकली हुई थी। जब भी कोई व्यक्ति आकर उससे कोई बात पूछता था तो वह बताने से पहले पीछे मुड़कर थूकता था। फिर बताता था। 
बताने के साथ-साथ वह हँसता भी जाता था जिससे उसकी तोंद भी थिरकने लगती थी और उसके पान वाले लाल-काले दाँत खिल उठते थे। वह बात बनाने और हँसी उड़ाने से भी उस्ताद था। इसके साथ ही वह भावुक भी था। कैप्टन की मृत्यु का समाचार सुनाकर स्वयं उदास हो गया था और उसकी आँखों में आँसू भी आ गये थे। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 5.
"वो लँगड़ा क्या जायेगा फौज में। पागल है पागल!" कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए। 
उत्तर: 
कैप्टन देशभक्त था। हालदार साहब उसकी देशभक्ति के प्रति नतमस्तक थे। जब उन्होंने कैप्टन के बारे में जानना चाहा कि क्या वह व्यक्ति नेताजी का साथी है अथवा आजाद हिन्द फौज का सिपाही है, तब पानवाला उपेक्षापूर्ण ढंग से जवाब देता है कि "वो लंगडा क्या जायेगा फौज में। पागल है पागल!" कैप्टन के प्रति पान वाले की इस टिप्पणी पर मेरी प्रतिक्रिया यह है कि उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए, क्योंकि कैप्टन एक देशभक्त था। 
 
वह देशभक्ति की भावना से पूरित होकर ही सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति की आँखों पर चश्मा लगाता रहता था, ऐसे व्यक्तियों की कमियाँ या कुरूपता को नहीं देखना चाहिए और न उनकी हँसी उड़ानी चाहिए। यदि हम उसकी तरह देशभक्ति न कर सकें तो भी हमें उसका कम से कम सम्मान तो करना ही चाहिए। अतः पान वाले की वह टिप्पणी उचित नहीं थी। 
 
रचना और अभिव्यक्ति -
 
प्रश्न 6. 
निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौनसी विशेषता की ओर संकेत करते हैं - 
(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते। 
(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ बोला-साहब ! कैप्टन मर गया।
 (ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था। 
उत्तर:
(क) यह वाक्य हालदार साहब की देशभक्ति की भावना को प्रकट करता है। उनके मन में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के प्रति अपार सम्मान और श्रद्धा व्याप्त थी। इसके साथ ही उन्हें सुभाषजी की मूर्ति में गहरी रुचि थी। सुभाषजी की मूर्ति में चश्मे का न होना, फिर बार-बार चश्मा लगाने वाले के बारे में जानकारी प्राप्त करना-ये सब बातें उनकी देशभक्ति की भावना का ही बोध कराती हैं। 
 
(ख) पानवाला यद्यपि कैप्टन के प्रति उपेक्षा दर्शाता था, फिर भी वह संवेदनशील व्यक्ति था। उसे कैप्टन की मृत्यु पर अत्यधिक दुःख हुआ था। उसे अनुभूति हुई थी कि कस्बे में कैप्टन जैसा देश-प्रेमी और कोई नहीं था। इसीलिए वह कैप्टन को याद करके उदास हो गया था और उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। 
 
(ग) कैप्टन के मन में अपार देशभक्ति की भावना थी। वह देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले नेताजी के प्रति अत्यधिक सम्मान रखता था। इसी कारण वह बिना चश्मे वाली नेताजी की मूर्ति पर बार-बार आकर चश्मा लगा देता था। इससे उसकी. देशभक्ति का परिचय मिलता था। 
 
प्रश्न 7. 
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था, तब तक उनके मानस पटल पर उसका कौन सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना से लिखिए। 
उत्तर: 
जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था, तब तक उनके मन में कैप्टन की मूर्ति कुछ और ही रही होगी। उन्होंने सोचा होगा कि कैप्टन सेना का कोई भूतपूर्व कैप्टन होगा अथवा नेताजी की आजाद हिन्द फौज में कैप्टन रहा होगा। वह हट्टा-कट्टा अनुशासित और दबंग मनुष्य होगा। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 8. 
कस्बों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है 
(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं? 
(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किस व्यक्ति की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे और क्यों? 
(ग) उस मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने चाहिए? 
उत्तर: 
(क) इस तरह की मूर्ति लगवाने के यही उद्देश्य हो सकते हैं कि लोग उस महान् व्यक्ति के बारे में जानें। जनता के मन में उस महान् व्यक्ति के प्रति आदर-सम्मान जागृत किया जाए और उसके योगदान से सभी को परिचित . कराया जाए। जिससे नयी पीढ़ी उसके महान् कार्यों से प्रेरणा लेती रहे। 
 
(ख) हम अपने इलाके के चौराहे पर ऐसे व्यक्ति की मूर्ति लगाना चाहेंगे, जिसने देश व समाज के हितार्थ कोई उल्लेखनीय कार्य किया हो। इस दृष्टि से हम भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री की प्रतिमा स्थापित करवाना चाहेंगे, क्योंकि आज के स्वार्थी और भ्रष्टाचारी युग में उनका जीवन सरलता एवं ईमानदारी का जीवन सभी के लिए प्रेरणादायी रहेगा। 
 
(ग) उस मूर्ति के प्रति हमारे व अन्य लोगों के उत्तरदायित्व होंगे कि उस मूर्ति की नित्यप्रति सफाई होती रहे। इस मूर्ति के बारे में लोगों को जानकारी मिलती रहे और उस मूर्ति वाले व्यक्ति के जन्मदिन एवं पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते रहें। 
 
प्रश्न 9. 
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं। जैसे-सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान न पहुँचाना, पर्यावरण संरक्षण आदि। अपने जीवन-जगत् से जुड़े ऐसे और कार्यों का उल्लेख कीजिए और उन पर अमल भी कीजिए। 
उत्तर: 
सामान्य जीवन-जगत् से जुड़े देश-प्रेम को प्रकट करने वाले कई प्रकार के कार्य हो सकते हैं, जैसे-पानी को व्यर्थ न बहने देना, बिजली का सदुपयोग करना, इधर-उधर गन्दगी न फैलाना, प्लास्टिक के प्रयोग को रोकना, साम्प्रदायिक सद्भाव बनाये रखने हेतु प्रयास करना, राष्ट्र-ध्वज का सम्मान करना, देशभक्तों और शहीदों के स्मारकों का सम्मान करना, जनता में राष्ट्रभावना को विकसित करना, देश की एकता और अखण्डता के लिए प्रयत्न करना आदि। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थानीय बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। आप इन पंक्तियों को मानक हिन्दी में लिखिए -
कोई गिराक आ गया समझो। उसको चौड़े चौखट चाहिए। तो कैप्टन किदर से लाएगा? तो उसको मूर्तिवाला दे दिया। उदर दूसरा बिठा दिया। 
उत्तर: 
कोई ग्राहक आ गया। उसे चौड़ा फ्रेम चाहिए। कैप्टन कहाँ से लाएगा? तो उसे मूर्ति वाला फ्रेम दे देता। मूर्ति पर कोई दूसरा फ्रेम लगा देता था। 
 
प्रश्न 11. 
"भई खूब ! क्या आइडिया है।" इस वाक्य को ध्यान में रखते हुए बताइए कि एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों के आने से क्या लाभ होते हैं? 
उत्तर: 
एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्द आ जाने से भाषा और अधिक ग्रहण करने योग्य बन जाती है तब इसे और अधिक सरलता से समझा जा सकता है। जैसे उपर्युक्त वाक्य में दो शब्द हैं. 'खूब' तथा 'आइडिया'। ये दोनों शब्द क्रमश: उर्दू और अंग्रेजी भाषा के हैं। 'खूब' शब्द से यहाँ गहरी प्रशंसा का भाव है। यह भाव हिन्दी भाषा के 'सुन्दर' या 'अद्भुत' शब्द में नहीं है।
 
इसी प्रकार 'आइडिया' शब्द में जो भाव है वह हिन्दी भाषा के शब्द 'विचार', 'युक्ति' या 'सूझ' में नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि अन्य भाषाओं के प्रयुक्त होने वाले शब्द हमारी भाषा को समृद्ध करते हैं। यदि उनका प्रयोग कथन की स्वाभाविक रीति के आधार पर होता है तो वे वक्ता और श्रोता दोनों को ही प्रभावित करते हैं। 
 
भाषा अध्ययन - 
 
प्रश्न 12. 
निम्नलिखित वाक्यों से निपात छाँटिए और उनसे नए वाक्य बनाइए 
(क) नगरपालिका थी तो कुछ न कुछ करती भी रहती थी। 
(ख).किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा। 
(ग) यानी चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था। 
(घ) हालदार साहब अब भी नहीं समझ पाये। 
(ङ) दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे। 
उत्तर:
(क) तो-मैंने तुम्हें जो काम लिखने को दिया था, वह लिख तो दिया। भी-मेरे साथ वह भी चलेगा। 
(ख) ही-मैं घर जाने के लिए ही यहाँ आया हूँ। 
(ग) तो-मेरे पास कोट तो है, परन्तु पुराना पड़ गया है। 
(घ) भी-उस सज्जन को तुम भी मना नहीं सकोगे। 
(ङ) तक-उसके आने तक, तुम यहीं ठहरो। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 13. 
निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदलिए 
(क) वह अपनी छोटी सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। 
(ख) पानवाला नया पान खा रहा था। 
(ग) पानवाले ने साफ बता दिया था। 
(घ) ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे। 
(ङ) नेताजी ने देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया। 
(च) हालदार साहब ने चश्मे वाले की देशभक्ति का सम्मान किया। 
उत्तर: 
(क) उसके द्वारा अपनी छोटी सी दुकान पर उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से नेताजी की मूर्ति पर फिट कर दिया जाता है। 
(ख) पान वाले के द्वारा नया पान खाया जा रहा था। 
(ग) पान वाले द्वारा साफ बता दिया गया था। 
(घ) ड्राइवर द्वारा जोर से ब्रेक मारे गये। 
(ङ) नेताजी द्वारा देश के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया गया। 
(च) हालदार साहब द्वारा चश्मेवाले की देशभक्ति का सम्मान किया गया। 
 
प्रश्न 14. 
नीचे लिखे वाक्यों को भाववाच्य में बदलिए जैसे-अब चलते हैं-अब चला जाए।
(क) माँ बैठ नहीं सकती। 
(ख) मैं देख नहीं सकती। 
(ग) चलो, अब सोते हैं। 
(घ) माँ रो भी नहीं सकती। 
उत्तर:
(क) माँ से बैठा नहीं जाता। 
(ख) मुझ से देखा नहीं जाता।
(ग) चलो, अब सोया जाए। 
(घ) माँ से रोया भी नहीं जाता।
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
पाठेतर सक्रियता - 
 
प्रश्न 1.
लेखक का अनुमान है कि नेताजी की मूर्ति बनाने का काम मजबूरी में ही स्थानीय कलाकार को दिया गया 
(क)मूर्ति बनाने का काम मिलने पर कलाकार के क्या भाव रहे होंगे? 
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम को कैसे महत्त्व और प्रोत्साहन दे सकते हैं? लिखिए। 
उत्तर: 
(क) नेताजी की मूर्ति बनाने वाला स्थानीय विद्यालय का चित्रकला का अध्यापक था। जब उसे मूर्ति बनाने का काम सौंपा गया, तो एक बार वह कुछ हिचका होगा, लेकिन साथ ही उसे अपनी कला पर गर्व भी हुआ होगा। वह सोचने लगा होगा कि अब उसकी कला को सभी लोग देखेंगे और उसकी कला की प्रशंसा करेंगे। सबकी जुबान पर एक कलाकार के रूप में अब उसका ही नाम होगा। उसकी प्रसिद्धि अब चारों ओर फैलेगी। उसे और काम मिलेगा। अब उसके पास खूब सारा धन आयेगा। उसका जीवन खुशियों से भर जायेगा। 
(ख) हम अपने इलाके के शिल्पकार, संगीतकार, चित्रकार एवं दूसरे कलाकारों के काम की प्रशंसा करके उनको प्रोत्साहन दे सकते हैं एवं उन्हें दूसरी जगहों पर उचित पारिश्रमिक के साथ काम दिलाकर उनको महत्त्व दे सकते हैं और उन्हें पुरस्कार देकर या दिलवाकर सम्मानित कर या करवा सकते हैं। 
 
प्रश्न 2.
आपके विद्यालय में शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थी हैं। उनके लिए विद्यालय परिसर और कक्षा कक्ष में किस तरह के प्रावधान किए जाएँ, प्रशासन को इस सन्दर्भ में पत्र द्वारा सुझाव दीजिए। 
उत्तर :
सेवा में, श्रीमान् निरीक्षक महोदय, जिला शिक्षा निरीक्षणालय, 
भरतपुर। 
विषय-शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों के प्रबन्ध के संबंध में महोदय, 
उपर्युक्त विषय क्रम में निवेदन है कि मैं आपका ध्यान हमारे विद्यालय के शारीरिक रूप से विकलांग चुनौतीपूर्ण विद्यार्थियों की ओर.आकर्षित करना चाहता हूँ। हमारे विद्यालय में अध्ययनरत कुछ साथी शारीरिक रूप से लाचार हैं, फिर भी वे अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के आधार पर विद्यालय में रोज पढ़ने आते हैं। उनकी अपंगता और लाचारी देखकर यह मानवीय कर्त्तव्य बनता है कि उनके लिए कुछ व्यवस्थाएँ की जावें। बरामदों में जहाँ सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, वहीं बीच-बीच में उनके लिए रैंप बनवाये जाने चाहिए तथा उन्हें विद्यालय आने-जाने के लिए व्हील चेयर की बहुत आवश्यकता है। इसके साथ ही इन छात्रों के लिए कृत्रिम टाँगें भी उपलब्ध करवायी जानी चाहिए। 
आशा है कि आप मेरे सुझावों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने की कृपा करेंगे और सहानुभूतिपूर्वक विचार कर . यथोचित प्रबन्ध करेंगे। 
सधन्यवाद ! 
दिनांक 13-3-20XX 
 
भवदीय
राहुल परिहार 
कक्षा दशम 'क' 
राज. उ.मा. विद्यालय, भरतपुर। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 3.
कैप्टन फेरी लगाता था। 
फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान बना देते हैं। फेरी वालों के योगदान व समस्याओं पर एक सम्पादकीय लेख तैयार कीजिए। 
उत्तर: 
हमारे देश में परम्परागत व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेरी वालों के हाथ में रहा है। ये फेरी वाले व्यापारी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं। ये घूम-घूम कर अपना सामान बेचते हैं। घूम-घूम कर सामान बेचना इनकी मजबूरी होती है, इनका शौक नहीं। हमारी सरकारें समय-समय पर व्यापारियों की भलाई के लिए अनेक सुविधाएँ जुटाती हैं, परन्तु फेरी वाले उपेक्षित रह जाते हैं। 
 
ये बेचारे रोज अपना माल गठरियों में बाँधकर साइकिलों और कन्धों पर रखकर गली-गली बेचते फिरते रहते हैं। सरकार चाहे तो इनके लिए रियायती दरों पर वाहनों की व्यवस्था कर सकती है और इन्हें बैंकों आदि से आसान ब्याज दरों पर कर्ज दिला सकती है। इनके साथ ही सामान रखने के केन्द्र खुलवा सकती है। ये फेरी वाले गांव-गांव घूमकर ग्रामीणों को अपना सामान बेचते हैं और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। एक तरह से ये फेरी वाले चलते-फिरते बाजार हैं। इसलिए इनकी समस्याओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। 
 
प्रश्न 4.
अपने घर के आस-पास देखिए और पता लगाइए कि नगरपालिका ने क्या-क्या काम करवाए हैं? हमारी भूमिका उसमें क्या हो सकती है? 
उत्तर: 
नगरपालिका ने हमारे लिए जल, सीवर, सड़क, बिजली और पार्कों की व्यवस्था की है। हमारी गलियों में प्रकाश व्यवस्था के लिए 'स्ट्रीट लाइट' रहती है। आवश्यकतानुसार हमारे यहाँ जल-आपूर्ति होती है। नित्य प्रति सुबह शाम सड़कों और गलियों की सफाई होती है। नगरपालिका ने जो पार्क बनवा रखा है, उसमें बच्चों को झूलने के लिए झूले, बड़ों को बैठने के लिए सीमेंट की बैंचें बनवा रखी हैं। पेड़-पौधे और घास की सिंचाई के लिए यह बागवान भी रख छोड़ा है। हमारा कर्त्तव्य बनता है कि हम इन व्यवस्थाओं को बनाए रखने में नगरपालिका का सहयोग करें। यदि व्यवस्था सम्बन्धी कोई कमी महसूस हो तो उसकी उचित शिकायत उचित कार्यालय में ही करें।

RBSE Class 10 Hindi नेताजी का चश्मा Important Questions and Answers

सप्रसंग व्याख्याएँ 
 
1. पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध बजट से कहीं बहुत ज्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी पत्री में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया गया होगा, और अंत में कस्बे के इकलौते हाई स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर - मान लीजिए मोतीलाल जी को ही यह काम सौंप दिया गया होगा, जो महीने-भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे। 
 
कठिन शब्दार्थ : 
  • लागत = खर्चा, मूल्य। 
  • ऊहापोह = उलझन। 
  • शासनावधि = शासन की अवधि। 
  • इकलौता = केवल एक। 
  • पटक देना = (भावार्थ) कार्य पूरा करना। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। इसमें शहर के मुख्य चौराहे पर लगी सुभाषचन्द्र बोस की संगमरमर की प्रतिमा के बारे में चर्चा है। जिसे हाई-स्कूल के ड्राइंग-मास्टर ने बनाई थी। 
 
व्याख्या - लेखक स्वयंप्रकाश ने सुभाषचन्द्र बोस की बनी प्रतिमा पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस मूर्ति के बनने और लगने के पीछे की पूरी बात तो पता नहीं किन्तु मूर्ति की बनावट देखकर प्रतीत होता है कि देश के अच्छे मूर्तिकारों की जानकारी यहाँ के स्थानीय लोगों को नहीं थी या फिर इस मूर्ति को बनाने में लगने वाले खर्चे का अनुमान कर, उपलब्ध बजट से ज्यादा का खर्चा होने पर, काफी उलझन भरी स्थिति में तथा शासन द्वारा दिए गए समय तथा उनको चिट्ठी-पत्री में हुए समय बरबाद के कारण किसी स्थानीय कलाकार को ही मूर्ति बनाने का जिम्मा दे दिया होगा। अंत में यही सब सोचकर कस्बे के एक स्कूल के इकलौते ड्राइंग मास्टर मोतीलाल जी को सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति बनाने का काम सौंप दिया गया होगा। और मोतीलाल जी द्वारा अवश्य यह विश्वास दिलाया गया होगा कि महीने भर में इस मूर्ति को बनाकर 'पटक' दिया जायेगा। 
 
विशेष : 
  1. लेखक ने सुभाषचन्द्र बोस की मूर्ति की अनगढ़ता पर विचार लगाया है कि जरूर किसी स्थानीय कलाकार द्वारा मजबूरी में बनाई गई है। 
  2. खड़ी बोली हिन्दी का सफल प्रयोग है। 'पटक देने' जैसी स्थानीय कहावत का प्रयोग है। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
2. जीप कस्बा छोड़कर आगे बढ़ गई तब भी हालदार साहब उस मूर्ति के बारे में सोचते रहे और अन्त में इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि कुल मिलाकर कस्बे के नागरिकों का यह प्रयास सराहनीय ही कहा जाना चाहिए। महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप, कद का नहीं, उस भावना का है वरना तो देशभक्ति भी आजकल मजाक की चीज होती जा रही है। 
 
कठिन शब्दार्थ : 
  • निष्कर्ष = परिणाम। 
  • प्रयास = कोशिश। 
  • सराहनीय = सराहना या प्रशंसा करने योग्य। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित कहानी 'नेताजी का चश्मा' से लिया गया है। इस अवतरण में हालदार साहब ने नेताजी की मूर्ति एवं उसके पीछे छिपे देशभक्ति के भाव-विचार के बारे में सोच रहे हैं।

व्याख्या - हालदार साहब हर पन्द्रहवें दिन कस्बे से गुजरते थे। उन्होंने चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति देखी किंतु उसके आँखों पर चश्मा नहीं होने से तनिक उदास हुए। दूसरी बार फिर उधर से गुजरे तो काले फ्रेम का मोटा चश्मा मूर्ति की आँखों पर लगा देखकर मुस्कुराए। उन्होंने सोचा यह भी ठीक है मूर्ति संगमरमर की और चश्मा वास्तविक। यह देख संजीव पास बुक्स जीप आगे बढ़ गई। इसके बाद भी हालदार साहब मूर्ति के बारे में सोचते रहे और अंत में उनकी सोच का यही परिणाम निकला कि कुल मिलाकर कस्बे के स्थानीय नागरिकों का मूर्ति को चश्मा पहनाने का प्रयास प्रशंसा के योग्य है। 
 
महत्त्व मूर्ति के रूप, रंग, कद का नहीं होता है बल्कि उस भावना का होता है, जो सबके दिलों में मौजूद रहती है। उस देशभक्ति की भावना के मन में प्रदीप्त होने के कारण ही यह मूर्ति लगी और सामर्थ्यनुसार उस पर चश्मा भी लगाया गया। वरना तो देशभक्ति की सोच व उसके प्रति कर्त्तव्य-भावना भी लोगों के मध्य मजाक का विषय बनती जा रही है। लोग देशभक्तों का मजाक बनाते हैं। 
 
विशेष : 
  1. लेखक ने इसके माध्यम से कस्बे के लोगों के दिलों में स्थित देशभक्ति के जज्बे को बता रहे हैं। 
  2. भाषा भावाभिव्यक्ति से पूर्ण एवं खड़ी बोली हिन्दी युक्त है। 
 
3. अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मर्ति बरी लगती है। बल्कि आहत करती है, मानो च असुविधा हो रही हो। इसलिए वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की मूर्ति पर फिट कर देता है। लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसे ही फ्रेम की दरकार होती है जैसा मूर्ति पर लगा है तो कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा फ्रेम-संभवतः नेताजी से क्षमा माँगते हुए-लाकर ग्राहक को दे देता है और बाद में नेताजी को दूसरा फ्रेम लौटा देता है। वाह ! भई खूब! क्या आइडिया है। 
 
कठिन शब्दार्थ : 
 
  • बगैर = बिना। 
  • दरकार = जरूरत। 
  • फ्रेम = चौखटा, चश्मे का चौखटा। 
प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। इसमें हालदार साहब की चश्मों के बदलने के पीछे छिपी जिज्ञासा का वर्णन है। वे पान वाले से चश्मे बदलने वाले व्यक्ति के बारे में पूछते हैं। 
 
व्याख्या - हालदार साहब जब भी उस चौराहे से गुजरते उन्हें नेताजी की मूर्ति का चश्मा बदले हुए मिलता। उन्होंने समीप की दुकान जो कि पान की थी उसके मालिक से इसका कारण पूछा। पान व हालदार साहब को कुछ कुछ समझ में आया कि एक चश्मे बेचने वाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बिना चश्मा लगी हुई मूर्ति बेकार लगती है, या यूँ कहे उसके दिल को चोट पहुँचाती है। 
 
उसके अनुसार नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के बड़ी असुविधा हो रही हो इसलिए वह अपनी छोटी-सी चश्मे की दुकान से गिने-चुने चश्मे के फ्रेमों से एक कोई चश्मा नेताजी की मूर्ति को पहना देता है। लेकिन जब कोई ग्राहक मूर्ति पर पहने जश्मे जैसा समान चश्मा चाहता है तो कैप्टन मूर्ति पर से उतार कर. वह ग्राहक को दे देता है तथा मूर्ति को अन्य चश्मा पहना हुए संभवतः वह नेताजी की मूर्ति से माफी माँग कर अपनी मजबूरी जता देता है। किन्तु श्रद्धा व प्रेम वश वह उन्हें दूसरा फ्रेम पहना देता है। यह भी खूब आइडिया है। 
 
विशेष :  
  1. लेखक ने चश्मा पहनाने वाले पात्र कैप्टन की विवशता एवं नेताजी तथा देश के प्रति उत्पन्न प्रेम को अभिव्यक्त किया है। 
  2. भाषा खड़ी बोली हिन्दी है तथा भावों की सफल प्रस्तुति करती है। 
  3. फ्रेम, आइडिया जैसे अंग्रेजी शब्द भी मौजूद हैं। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
4. पानवाले के लिए यह एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा 'मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल' वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने-भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदशी चश्मा कैसे बनाया जाए-काँच वाला-यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा। या बनाते-बनाते 'कुछ और बारीकी' के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उफ.....! 
 
कठिन-शब्दार्थ :
 
  • द्रवित = दया से पूर्ण। 
  • पारदर्शी = आर-पार दिखने वाली। 
 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। हालदार साहब पान वाले से नेताजी की मूर्ति एवं उस पर न लगे ओरिजनल चश्मे (पत्थर का चश्मा) के बारे में पूछते हैं। 
 
व्याख्या - हालदार साहब जब चश्मे की वास्तविकता पान वाले से पूछते हैं तो पान वाला भी अत्यन्त खुश होकर उन्हें बताता है मानो यह बात उसके लिए बहुत मजेदार थी। उसने बताया कि मूर्ति बनाने वाला कस्बे के स्कूल का मास्टर था, जो चश्मा बनाना भूल गया। यह बात हालदार साहब को चकित भी करती है और द्रवित भी। क्योंकि उन्हें लगा इस मूर्ति के बनने की कहानी जो वह सोच रहे थे वह ठीक ही थी। मूर्ति के नीचे कस्बे के मास्टर मोतीलाल का नाम भी खुदा था। 
 
जो कि हर मूर्तिकार मूर्ति बनाने पर उसके नीचे लिखता है। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बनाकर देने का वादा किया होगा और बना कर भी दे दी होगी, लेकिन पत्थर की मूर्ति में पारदर्शी चश्मा बनाया जाये या काँच वाला, वो यह तय नहीं कर पाया होगा। यह कार्य तो बड़े सफल मूर्तिकारों द्वारा ही संभव हो सकता था और मोतीलाल ठहरा मास्टर, बेचारे से जैसी मूर्ति बन पड़ी उसने कोशिश की। मूर्ति को बनाने के बाद जरूर मास्टर ने चश्मा बनाने की भी कोशिश की होगी या तो असफल रहा होगा या फिर कुछ और सुन्दर, अद्भुत बनाने के चक्कर में वह टूट गया होगा। या फिर पत्थर का चश्मा बनाया भी होगा और फिर वह निकल गया, हो सकता है। 
 
विशेष : 
  1. हालदार साहब मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल की भावनाओं एवं चश्मे के न होने के कारणों पर विचार कर रहे हैं। 
  2. भाषा एवं भावों की सफल प्रस्तुति हुई है। 
  3. हिन्दी के साथ कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी समावेश है। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
5. हालदार साहब को यह सब कुछ बड़ा विचित्र और कौतुकभरा लग रहा था। इन्हीं खयालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देश-भक्ति के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ चले, फिर रुके, पीछे मुड़े और पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या आजाद हिंद फौज का भूतपूर्व सिपाही? 
 
कठिन शब्दार्थ : 
  • कौतुक = आश्चर्य। 
  • खयाल = विचार। 
  • नतमस्तक = सिर झुकाना। 
  • भूतपूर्व = पुराना। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। हालदार साहब चश्मे एवं कैप्टन की कहानी से काफी प्रभावित थे इसलिए वे पान वाले से कैप्टन की जानकारी लेते हैं। 
 
व्याख्या - पान वाले ने जब हालदार साहब को बताया कि मूर्ति पर चश्मे लगाने वाले का नाम कैप्टन है तो हालदार साहब बहुत प्रभावित हुए। उन्हें सारी घटना आश्चर्य भरी एवं विचित्र लग रही थी। कारण, आज के समय में देश के प्रति या देशभक्तों को लेकर सम्मान व प्रेम की भावना लोगों में कम ही देखने को मिलती है। ऐसे समय में कैप्टन द्वारा मूर्ति को चश्मा लगाये जाने पर उसकी देशभक्ति स्वतः ही प्रकट हो रही थी। 
 
इन्हीं सब बातों पर विचार करते हुए हालदार अपनी जीप की तरफ बढ़ते हैं, फिर कुछ सोच कर रुकते हैं, पीछे मुड़कर पुनः पान वाले के पास जाते हैं और उससे कैप्टन के बारे में पूछते हैं कि चश्मेवाला कैप्टन, नेताजी का साथी है या फिर नेताजी द्वारा बनाई गई आजाद हिंद फौज का कोई पुराना सिपाही है? यह सब हालदार साहब इसलिए पूछते हैं कि आखिर पूरे कस्बे में सिर्फ कैप्टन को ही नेताजी के चश्मे की फिक्र क्यों है? उसकी देशभक्ति के पीछे कहीं उनका नेताजी का साथी या आजाद हिंद फौज का सिपाही होना तो नहीं है?
 
विशेष : 
  1. लेखक ने हालदार साहब के आत्ममंथन द्वारा यह जताने की कोशिश की है कि वर्तमान में देशभक्तों के प्रति लगाव सिर्फ उनके साथ के कारण ही तो नहीं है। 
  2. भाषा की सुगढ़ता एवं स्पष्टता प्रशंसनीय है। हिन्दी-उर्दू-संस्कृत सम्मिलित शब्दों का प्रयोग है। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
6. हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मजाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गांधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टँगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पानवाले ने साफ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। 
 
कठिन शब्दार्थ :  
  • अवाक् = मौन, चकित। 
  • मरियल-सा = मरे हुए के समान, कमजोर। 
  • फेरी लगाना = घूम-घूम कर सामान बेचना।
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया हुआ है। हालदार साहब ने कैप्टन चश्मे वाले के बारे में सुना ही था लेकिन जब उसे देखा तो चक्कर में पड़ गये। इसमें इसी बात का वर्णन किया गया है। 
 
व्याख्या - हालदार साहब ने जब पान वाले से कैप्टन की वास्तविकता जाननी चाही कि वह नेताजी का साथी था या आजाद हिन्द फौज का सिपाही, तो पान वाले ने कैप्टन की शारीरिक असमर्थता की हंसी उड़ायी। हालदार साहब को पान वाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मजाक उड़ाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने जब मुड़कर कैप्टन को देखा तो मौन रह गए। कैप्टन मरियल-सा लंगड़ा बूढ़ा आदमी था। सिर पर सफेद गाँधी टोपी, आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में छोटी-सी संदूकची लिए और दूसरे हाथ से पकड़े बाँस पर बहुत सहारे चश्मे लटकाए अभी-अभी गली से निकला था। 
 
गली से निकल कर बूढ़ा लंगड़ा कैप्टन एक बंद दुकान के सहारे चश्मे वाला बाँस टिका रहा था। हालदार साहब ने कैप्टन की ऐसी दशा देखकर सोचा कि इस बेचारे की तो अपनी कोई दुकान भी नहीं है! फेरी लगाता है अर्थात् घूम-घूम कर आवाजें दे दे कर अपने चश्मे बेचता है। हालदार साहब उसकी ऐसी दयनीय स्थिति देख कर पूछना चाहते प्टन क्यों कहते हैं? इसका वास्तविक या असली नाम क्या है? लेकिन पान वाले ने हालदार साहब को साफ कह दिया कि वो अब कैप्टन के बारे में कोई भी बात नहीं करेगा। 
 
विशेष : 
  1. लेखक ने कैप्टन की शारीरिक स्थिति से अवगत कराया है। 
  2. भाषा सरल-सहज है तथा भावाभिव्यक्ति प्रकट करने में सक्षम है। 
7. दो साल तक हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुजरते रहे और नेताजी की मूर्ति में बदलते हुए चश्मों को देखते रहे। कभी गोल चश्मा होता, तो कभी चौकोर, कभी लाल, कभी काला, कभी धूप का चश्मा, कभी बड़े कांचों वाला गोगो चश्मा, पर कोई न कोई चश्मा होता जरूर, उस धूल भरी यात्रा में हालदार साहब को कौतुक और प्रफुल्लता के कुछ क्षण देने के लिए। 
 
कठिन शब्दार्थ : 
  • गोगो चश्मा = धूप का बड़ा काला चश्मा। 
  • कौतुक = आश्चर्य। 
  • प्रफुल्लता = खुशी। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। इसमें हालदार साहब द्वारा बताया गया है कि निरन्तर दो साल तक नेताजी की मूर्ति के चश्मे किस प्रकार बदलते रहे। 
 
व्याख्या - दो साल तक हालदार साहब उस कस्बे से अपने काम के सिलसिले में गुजरते रहे और हर बार देखते कि नेताजी की मूर्ति पर लगा उनका चश्मा हमेशा बदलता रहा। मूर्ति पर लगा चश्मा कभी गोल फ्रेम का होता, तो कभी चौकोर फ्रेम का होता। कभी लाल काँच का बना होता तो कभी काले कांच का, कभी धूप का चश्मा लगा होता तो कभी बड़े-बड़े काले काँच का गोगो चश्मा लगा होता, कुल मिलाकर नेताजी की मूर्ति पर कोई न कोई चश्मा अवश्य ही लगा होता था। हालदार साहब कस्बे के बीच से निकलते हुए सदैव मूर्ति को जरूर निहारा करते थे क्योंकि उस धूलभरी यात्रा के मध्य नेताजी की मूर्ति व चश्मे की कौतूहलता उन्हें सदैव आनन्दित कर देती थी। 
 
विशेष : 
  1. लेखक ने इसमें चश्मों के प्रकार द्वारा कैप्टन की चश्मे की आवश्यकता एवं उसकी देशभक्ति पर प्रकाश डाला है। 
  2. भाषा प्रवाहयुक्त है। खड़ी बोली हिन्दी का प्रयोग है। अर्थ प्रकटीकरण सहज एवं सरल है। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
8. और कुछ नहीं पूछ पाये हालदार साहब। कुछ पल चुपचाप खड़े रहे, फिर पान के पैसे चुकाकर जीप में आ बैठे और रवाना हो गए। बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुःखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। 
 
कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया। और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएंगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे।
 
कठिन शब्दार्थ :
  • रवाना होना = निकलना। 
  • चुकाना = अदा करना, मूल्य देना। 
  • कौम = जाति। 
  • खातिर = के लिए। 
  • होम करना = अर्पित, बलिदान करना। 
  • मौका = अवसर। 
  • प्रतिमा = मूर्ति। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित कहानी 'नेताजी का चश्मा' से लिया गया है। इसमें हालदार साहब को पता चलता है कि कैप्टन की मृत्यु हो गई है और इस कारण मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं है जिससे वे अत्यन्त दुःखी होते हैं। 
 
व्याख्या - हालदार साहब ने कस्बे से गुजरते हुए देखा कि नेताजी की मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं है तो उन्होंने पान वाले से पूछा, पान वाले ने बताया कि कैप्टन की मृत्यु हो गई है इसलिए मूर्ति पर अब कोई चश्मा नहीं है। यह सुन हालदार साहब बार-बार एक ही बात सोचने लगे कि इस देश के लोगों का क्या होगा जो उन स्वतंत्रता सेनानियों पर हँसते हैं जिन्होंने अपने देश के लिए घर-गृहस्थी, जवानी-जिन्दगी, सब कुछ बलिदान कर दिया और जो स्वयं को बेचने के लिए अर्थात् अपने मूल्यों को, देशप्रेम, स्वाभिमान को किसी भी कीमत पर दूसरों को बेचने के लिए तैयार हैं। 
 
आज कैप्टन के न रहने पर किसी और के मन में देशभक्ति की भावना नहीं है, इसी कारण नेताजी की मूर्ति आज बिना चश्मे के है। हालदार साहब सब सोचकर दु:खी हो गये। पन्द्रह दिनों बाद फिर उसी कस्बे से उनका गुजरना हुआ लेकिन उन्होंने तय कर लिया था कि कस्बे में नेताजी की मूर्ति अवश्य लगी होगी लेकिन सुभाषचन्द्र की आँखों पर चश्मा नहीं होगा, क्योंकि मूर्तिकार मास्टर चश्मा बनाना भूल गया और देशभक्त कैप्टन की मृत्यु हो गई, इसलिए वे अब उस चौराहे पर रूकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएंगे और ना ही मूर्ति की तरफ देखेंगे, सीधे निकल जाएंगे।
 
विशेष : 
  1. हालदार साहब के विचारों द्वारा देश की तरफ लोगों की सोच एवं उत्तरदायित्व पर प्रकाश डाला गया है। 
  2. भाषा सरल-सहज व प्रवाहमय है। भावों का अभिव्यक्ति देने में पूर्ण सक्षम है। 
9. आदत से मजबूर आँखें चौराहा आते ही मूर्ति की तरफ़ उठ गईं। कुछ ऐसा देखा कि चीखे, रोको ! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे। रास्ता चलते लोग देखने लगे। जीप रुकते-न-रुकते हालदार साहब जीप से कूदकर तेज-तेज कदमों से मूर्ति की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटेंशन में खड़े हो गए। मूर्ति की आँखों पर सरकंडे से बना छोटा-सा चश्मा रखा हुआ था, जैसा बच्चे बना लेते हैं। हालदार साहब भावुक हैं। इतनी-सी बात पर उनकी आँखें भर आईं। 
 
कठिन शब्दार्थ : 
  • मजबूर = बेबस, विवश। 
  • स्पीड = तेज गति।
  • अटेंशन = सावधान मुद्रा। 
  • सरकंडा = गाँठदार सरपत का एक पौधा। 
प्रसंग - प्रस्तुत अवतरण लेखक स्वयंप्रकाश द्वारा लिखित 'नेताजी का चश्मा' कहानी से लिया गया है। कस्बे से गुजरते हुए हालदार साहब ने देखा कि कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् भी मूर्ति पर चश्मा लगा है उसी का वर्णन किया गया है। 
 
व्याख्या - कैप्टन की मृत्यु होने के बाद नेताजी की मूर्ति से चश्मा गायब हो गया था और पूरे कस्बे में किसी को उस देशभक्त की मूर्ति की कोई चिन्ता नहीं थी। सबके दिलों में देश और स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आदर सम्मान की भावना खत्म होती जा रही थी। ऐसे में हालदार साहब दुःखी और चिंतित अवस्था में कस्बे से यह सोचकर गुजरते हैं कि वे मूर्ति को बिना देखे, बिना पान खाएँ, वहाँ से सीधे निकल जाएंगे किन्तु आदत से विवश हालदार साहब जैसे ही कस्बे के मध्य से निकले; उनकी आँखें स्वतः ही मूर्ति की तरफ घूम गईं, उन्होंने जो दृश्य देखा उसे देखकर चीख पड़े और ड्राइवर से कहा जीप रोको। जीप तेज गति में थी। 
 
ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे जिसके कारण तेज आवाज हुई और रास्ते चलते लोग उन्हें रुक कर देखने लगे। जीप पूरी तरह रुक भी नहीं पाई थी कि हालदार साहब जीप से कूद कर तेज तेज कदमों से मूर्ति की तरफ दौड़ पड़े और ठीक मूर्ति के सामने जाकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए। को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहे हों। उन्होंने देखा मूर्ति की आँखों पर सरकंडे की लकड़ी से बना हुआ छोटा-सा चश्मा लगा हुआ है। जैसा कि गाँव में बच्चे अकसर बना लेते हैं। यह सब देखकर हालदार साहब भावुक हो उठे और उनकी आँखों में पानी भर आया क्योंकि यह इतनी सी या छोटी बात नहीं थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा होना इस बात की ओर संकेत करता है कि देश के प्रति; स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति आज की पीढ़ी के मन में आदर-प्रेम व सम्मान की भावना मौजूद है। 
 
विशेष : 
  1. लेखक ने सरकंडे के चश्मे के माध्यम से नव पीढ़ी की जागरूकता एवं देशप्रेम पर प्रकाश डाला है। 
  2. भाषा भावपूर्ण एवं सरल शब्दों से युक्त है। 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न 
 
प्रश्न 1. 
मूर्ति निर्माण में नगरपालिका को देर क्यों लगी होगी? 
उत्तर:
नगरपालिका को विचार-विमर्श एवं उपलब्ध धन की कमी के कारण देर लगी होगी। 
 
प्रश्न 2. 
स्कूल के ड्राइंग मास्टर को मूर्ति बनाने का काम क्यों सौंपा गया? 
उत्तर:
धन साधनों का अभाव एवं अच्छे मर्तिकारों की जानकारी न होने के कारण मास्टर को मर्ति बनाने का काम सौंपा गया। 
 
प्रश्न 3. 
नागरिकों का कौनसा प्रयास सराहनीय था? 
उत्तर: 
देशभक्त नेताजी की मूर्ति कस्बे के चौराहे पर लगाने का कार्य सराहनीय था। 
 
प्रश्न 4. 
स्वतंत्रता सेनानियों या देशभक्तों की मूर्ति लगाने का क्या उद्देश्य रहता है?
उत्तर: 
जनमानस के मन में देशभक्तों का सम्मान बना रहे तथा देशभक्ति की प्रेरणा सबके दिलों में जगे। 
 
प्रश्न 5. 
कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर चश्मा क्यों लगाता था? 
उत्तर: 
कैप्टन नेताजी के प्रति सम्मान, आदर की भावना से चश्मा लगाता था। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 6. 
हालदार साहब को नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाया जाना क्यों पसंद था? 
उत्तर: 
चश्मा लगाया जाना, नेताजी के त्याग, बलिदान एवं देश सेवा की कद्र करना व्यक्त करता था। 
 
प्रश्न 7. 
पान वाले की चश्मे के प्रति कैसी सोच थी? 
उत्तर: 
पान वाले की सोच चश्मे के प्रति असंवेदनीय थी। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था, चश्मे के होने या न होने से। . 
 
प्रश्न 8. 
हालदार साहब कैप्टन को देशभक्त क्यों जान रहे थे? 
उत्तर: 
एक तो उसका नाम कैप्टन होना तथा मूर्ति पर सुविधानुसार चश्मा लगाया जाना, देशभक्ति को व्यक्त कर रहा था। 
 
प्रश्न 9. 
कैप्टन की शारीरिक अवस्था किस प्रकार की थी? 
उत्तर: 
कैप्टन बेहद बूढ़ा तथा मरियल या कमजोर लंगड़ा व्यक्ति था, जो फेरी लगाकर चश्मे बेचता था। 
 
प्रश्न 10. 
हालदार साहब सरकंडे के चश्मे को देखकर भावुक क्यों हो गए थे? 
उत्तर: 
इसलिए कि अभी भी कहीं न कहीं लोगों के, बच्चों के मन में देशभक्ति का जज्बा विद्यमान है। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 11.
चश्मा लेखक की नजर में किसका प्रतीक है? 
उत्तर: 
लेखक की नजर में चश्मा देशभक्तों को सम्मान देने एवं देशप्रेम का प्रतीक है।
 
प्रश्न 12. 
'नेताजी की कहानी' किस योगदान की ओर संकेत करती है? 
उत्तर: 
देश के करोड़ों नागरिकों द्वारा देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से सहयोग करने के योगदान को संकेत करती है। 
 
प्रश्न 13. 
लेखक स्वयंप्रकाश के किन्हीं दो कहानी संग्रह के नाम बताइये। 
उत्तर: 
सूरज कब निकलेगा, आदमी जात का आदमी दो कहानी संग्रह हैं। 
 
प्रश्न 14. 
स्वयंप्रकाशजी के उपन्यासों के नाम बताइये। 
उत्तर:
बीच में विनय, जलते जहाज पर, ईंधन, उत्तर जीवन कथा आदि उपन्यास हैं। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 15. 
स्वयंप्रकाशजी की कहानियों का परिवेश अधिकतर कहाँ से लिया गया है? 
उत्तर: 
स्वयंप्रकाशजी की नौकरी का बड़ा हिस्सा राजस्थान में बीता, इसलिए उनकी कहानियों में राजस्थानी परिवेश अधिकतर मिलता है। 
 
लघूत्तरात्मक प्रश्न 
 
प्रश्न 1.
'नेताजी का चश्मा' कहानी के अनुसार देश के निर्माण में बड़े ही नहीं बच्चे भी शामिल हैं। आप देश के नव-निर्माण में किस प्रकार योगदान करेंगे? 
उत्तर: 
देश के नव-निर्माण में हम यह योगदान करेंगे अपने आस-पास के पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे। पढ लिखकर सेना में भर्ती हो जायेंगे या गाँवों में अनपढ़ों को साक्षर बनाने का प्रयास करेंगे, भ्रष्टाचार का विरोध कर कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार नागरिक बनकर नयी चेतना का प्रसार करेंगे। 
 
प्रश्न 2. 
हालदार साहब मूर्ति के बारे में सोचते-सोचते किस निष्कर्ष पर पहुँचे? 
उत्तर:
हालदार साहब मर्ति के बारे में सोचते-सोचते इस निष्कर्ष पर पहँचे कि कस्बे वालों का यह प्रयास सराहना के योग्य है। मूर्ति के रंग रूप या कद का उतना महत्त्व नहीं है जितना उसके पीछे निहित देशभक्ति की भावना का है। देशभक्ति की हँसी न उड़ाकर उसका ऐसा सम्मान करना निश्चय ही सराहनीय कार्य है। 
 
प्रश्न 3. 
'नेताजी का चश्मा' कहानी में निहित देश-भक्ति के सन्देश को अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर: 
कहानी में निहित सन्देश यह है कि देशभक्ति प्रकट करने के लिए फौजी होना और बलवान होना जरूरी नहीं है। हर देशवासी अपनी सोच और सामर्थ्य के आधार पर देश के लिए त्याग कर सकता है। देश से प्रेम करना तथा देशभक्तों का सम्मान करना हम सभी का परम कर्त्तव्य है। 
 
प्रश्न 4. 
'देश-प्रेम किस तरह प्रकट होता है?''नेताजी का चश्मा' कहानी के आधार पर बताइए। 
उत्तर: 
देश-प्रेम प्रकट करने के लिए न तो बड़े-बड़े नारों और न सैनिक होने की आवश्यकता है। देश-प्रेम तो छोटी-छोटी बातों से प्रकट हो सकता है। जैसे नगरपालिका द्वारा नेताजी की मूर्ति स्थापित करने और कैप्टन द्वारा नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाने से देश-प्रेम प्रकट हुआ है। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 5.
सीमा पर तैनात फौजी ही देश-प्रेम का परिचय नहीं देते। हम सभी अपने दैनिक कार्यों में किसी न किसी रूप में देश-प्रेम प्रकट करते हैं। कैसे? अपने जीवन और जगत् से जुड़े ऐसे कार्यों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर: 
सीमा पर तैनात फौज द्वारा देश की रक्षा करना तो देश-प्रेम का परिचायक है। इसके अलावा पूरी निष्ठा व ईमानदारी से कार्य करना और सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना भी देश-प्रेम का परिचायक है। 
 
प्रश्न 6. 
नेताजी की मूर्ति लगाने के कार्य को सफल और सराहनीय प्रयास क्यों बताया गया ? 
उत्तर: 
नेताजी की मूर्ति देखकर लोगों के मन में देश-प्रेम की भावना जगाने के साथ ही 'दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो. ...' आदि देशभक्ति की भावना जगाने वाले नारे याद आने लगते थे। इसलिए यह कार्य सफल और सराहनीय था। 
 
प्रश्न 7. 
हालदार साहब को मूर्ति के सामने से गुजरने पर उन्हें क्या अन्तर दिखाई देता था और क्यों? 
उत्तर: 
हालदार साहब को मूर्ति के सामने से गुजरने पर हर-बार मूर्ति पर लगे चश्मे के फ्रेम के बदल जाने का न्तर दिखाई पड़ता था, क्योंकि कैप्टन अपने ग्राहक की पसन्द पर लगे फ्रेम को बदल कर अन्य फ्रेम वाले चश्मे को लगा देता था। 
 
प्रश्न 8. 
कैप्टन चश्मे वाले को सामने खड़ा देखकर हालदार साहब अवाक् क्यों रह गये थे? 
उत्तर: 
हालदार साहब ने नेताजी के प्रति सम्मान की भावना देखकर सोचा कि शायद कैप्टन चश्मे वाला नेताजी का साथी है, या आजाद हिन्द फौज का सिपाही रहा होगा। लेकिन जब सामने कैप्टन के रूप में बढा, मरियल और लंगड़ा आदमी खड़ा देखा, तो हालदार अवाक् रह गये। 
 
प्रश्न 9. 
कस्बे की स्थिति 'नेताजी का चश्मा' कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर: 
कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। वहाँ कुछ मकान ही पक्के थे तथा एक ही बाजार था। वहाँ लडकों का तथा लड़कियों का एक-एक स्कूल, सीमेन्ट का एक छोटा-सा कारखाना, एक ओपन एयर सिनेमा घर तथा एक नगरपालिका थी। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 10. 
कस्बे की नगरपालिका क्या-क्या काम करती थी? 
उत्तर: 
कस्बे की नगरपालिका कुछ न कुछ काम करती रहती थी। नगरपालिका सड़क पक्की करवाने, पेशाबघर बनवाने, कबूतरों की छतरी बनवाने और कभी कवि सम्मेलन आयोजित करवाने के काम करती रहती थी। 
 
प्रश्न 11. 
कुछ दिनों तक नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के क्यों रही? 
उत्तर: 
कुछ दिनों तक नेताजी की मूर्ति बिना चश्मे के इसलिए रही, क्योंकि चश्मा बदलने और लगाने वाला कैप्टन मर गया था। इसलिए कुछ दिनों तक चश्मा लगाने की फिक्र किसी को नहीं रही और बिना चश्मे के ही मूर्ति रह गयी। . 
 
प्रश्न 12. 
पान वाला कैप्टन चश्मे वाले के प्रति कैसी सोच रखता है? 
उत्तर: 
पान वाला कैप्टन चश्मे वाले को एक अजूबा, सनकी और मनोरंजक आदमी मानता था। उसकी दृष्टि में चश्मे वाला उपेक्षित व्यक्ति था। वह मानता था कि ऐसे आदमी का अखबार में फोटो छपना चाहिए, ताकि लोग उसकी सनक के बारे में पढ़कर हँस सकें। इसीलिए वह उसे पागल तक कह देता था। 
 
प्रश्न 13. 
हालदार साहब किस सोच का आदमी है और कैसे? 
उत्तर: 
देशभक्त हालदार साहब सकारात्मक सोच का आदमी है, इसीलिए नेताजी की मूर्ति पर लगे सरकंडे के चश्मे को देखकर श्रद्धा से पूरित होकर सोचने लगता है कि कहीं तो देशभक्ति बची हुई है। 
 
प्रश्न 14. 
कस्बे के मुख्य चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति हालदार साहब को अधूरी क्यों लगती थी? 
उत्तर: 
कस्बे के मुख्य चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति संगमरमर की थी। वह टोपी से लेकर कोट के दूसरे बटन तक दो फुट ऊँची सुन्दर थी, अर्थात् सुन्दर ढंग से बनी थी, परन्तु मूर्ति पर नेताजी की विशेष पहचान वाला चश्मा नहीं था, जिससे वह मूर्ति अधूरी लग रही थी। 
 
प्रश्न 15. 
नेताजी की मूर्ति के पास से गुजरते हुए अंत में हालदार साहब के भावुक होने के क्या कारण थे? 
उत्तर: 
नेताजी की मूर्ति के पास से गुजरते हुए अन्त में हालदार साहब के भावुक होने के मुख्य रूप से दो कारण थे 
  1. कैप्टन के न रहने पर कस्बे के बच्चों ने नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाकर अपनी देशभक्ति की भावना व्यक्त की थी और 
  2. उनके द्वारा किये गये नेताजी का सम्मान देखकर वे बहुत ही भावुक और प्रसन्न हो उठे थे। 
 
प्रश्न 16. 
कैप्टन मूर्ति का चश्मा बार-बार क्यों बदल देता था? 
उत्तर: 
कैप्टन देशभक्त आदमी था। वह चश्मा बेचता था। इसलिए वह नेताजी की बिना चश्मे वाली मूर्ति पर अपनी ओर से कोई न कोई चश्मा लगा देता था। यदि किसी ग्राहक को मूर्ति की आँखों पर लगा फ्रेम पसन्द आता था तो वह उस फ्रेम को उतारकर उस ग्राहक को दे देता था और दूसरे फ्रेम का चश्मा उस मूर्ति पर लगा देता था। 
 
प्रश्न 17.
पान वाले और हालदार साहब की सोच का अन्तर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर: 
पान वाले और हालदार साहब की सोच में जमीन-आसमान का अन्तर है। पान वाले की सोच जहाँ नकारात्मक है; वहीं हालदार की सोच सकारात्मक है; क्योंकि पान वाला जिस चश्मे वाले को लंगड़ा, मरियल, नाकारा और पागल समझता है, हालदार उसी व्यक्ति को देशभक्त मानकर उसके प्रति श्रद्धा व्यक्त करता है और वह उसके देशभक्ति के भावों को सराहनीय मानकर उसकी प्रशंसा करता है। 
 
निबन्धात्मक प्रश्न 
 
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ 'नेताजी का चश्मा' के आधार पर कैप्टन का चारित्रिक चित्रण कीजिए। 
उत्तर: 
लेखक ने 'नेताजी का चश्मा' पाठ के आधार पर कैप्टन को चारित्रिक एवं शारीरिक दोनों ही दृष्टि से विवेचित किया है। कैप्टन अवस्था में बूढ़ा, एक पैर से असमर्थ यानि लंगड़ा तथा शारीरिक दृष्टि से अत्यन्त ही कमजोर मरियल-सा था। किन्तु देश के प्रति दृढ़ भावनाओं से युक्त था। स्वतंत्रता सेनानियों का आदर-सम्मान करने वाला, नेताजी की मूर्ति को चश्मा पहनाकर श्रद्धांजलि व्यक्त करने वाला व्यक्ति था। वह फेरी लगाकर कस्बे में चश्मे बेचता था। उसे नेताजी का चश्माविहीन चेहरा पसंद नहीं आता था। 
 
उसे लगता कि मूर्ति में अधूरापन है इसलिए नेताजी को श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के लिए उनकी मूर्ति पर सुविधानुसार चश्मे बदलता रहता था। उसकी कमाई का जरिया चश्मे ही थे। अगर किसी ग्राहक को मूर्ति पर लगा चश्मा पसंद आ जाप्ता तो वह उसे उतार कर ग्राहक को तथा दूसरा चश्मा मूर्ति को लगा देता था। वह अपनी सद्भावना प्रकट करने हेतु मूर्ति को बिना चश्मे कभी नहीं रहने देता था। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
प्रश्न 2.
हालदार साहब का सरकंडे का चश्मा मूर्ति पर लगा देख भावुक होने का क्या कारण रहा होगा? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर: 
हालदार साहब काम के सिलसिले में हर पन्द्रह दिनों में कस्बे से गुजरते थे। कस्बे के चौराहे पर लगी नेताजी की मूर्ति को देखकर नागरिकों के स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान को देख अभिभूत होते थे। ऐसे में नेताजी की मूर्ति पर बार-बार बदलते चश्मों की कहानी को जान कर कैप्टन के प्रति आदर एवं सहानुभूति का भाव रखते थे। उनकी सोच के अनुसार देशभक्तों का सम्मान करना बहुत बड़ी बात थी। 
 
मूर्ति के माध्यम से कस्बे के लोग तथा कैप्टन देश के प्रति अपनी भावना प्रकट करते थे। ऐसे में कैप्टन की मृत्यु के पश्चात् मूर्ति पर से चश्मे का गायब हो जाना उन्हें काफी कचोटता था। उन्हें लगता मानो संसार में देशभक्ति का अब कोई अर्थ नहीं रह.गया है। अचानक चश्माविहीन मूर्ति पर गाँव के बच्चों द्वारा बनाया हुआ- सरकंडे का चश्मा लगा देख हालदार साहब द्रवित एवं भावुक हो उठे। वो समझ गये थे कि देशप्रेम का भाव अब भी वर्तमान में लोगों के दिलों में मौजूद है। नयी पीढ़ी भी उन मूल्यों तथा देशप्रेम को समझती है तथा उनका सम्मान करती है। 
 
प्रश्न 3. 
लेखक के अनुसार 'नेताजी का चश्मा' कहानी का क्या उद्देश्य है? 
उत्तर: 
लेखक स्वयंप्रकाशजी ने 'नेताजी का चश्मा' कहानी के माध्यम से सभी को यह संदेश देने की कोशिश की है कि सीमाओं से घिरे भूभाग का नाम ही केवल देश नहीं होता है। देश बनता है उसमें रहने वाले नागरिकों से, वहाँ की प्राकृतिक सम्पदाओं जैसे कि नदियाँ, पहाड़, वनस्पतियाँ, पशुपक्षियों से और इन्हीं सबसे प्रेम करना, आदर-सम्मान की भावना व्यक्त करना, इनकी समृद्धि हेतु किये गए प्रयासों का नाम ही मूलतः देशभक्ति कहलाती है। जो लोग देश के समृद्धि एवं विकास निर्माण में अपने-अपने तरीके से योगदान देते हैं, सहयोग करते हैं, वहीं देशभक्ति का कार्य करते हैं।
 
देशभक्ति का कार्य देश को स्वच्छ रखकर, मजबूरों की सहायता करके, अन्न-जल व वस्त्र की व्यवस्था करके, शान्ति एवं सौहार्द बनाये रखकर तथा सभी धर्मों का सम्मान करके भी किया जा सकता है। इसी को व्यक्त करती कहानी 'नेताजी का चश्मा' में बताया गया है कि बड़े ही नहीं बच्चे भी देशभक्ति का कार्य करने में पीछे नहीं हैं। यथायोग्यतानुसार सभी अपने कार्यों में पूर्णरूप से संलग्न हैं। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न - 
 
प्रश्न 1. 
लेखक स्वयंप्रकाश का परिचय संक्षिप्त में दीजिए। 
उत्तर: 
लेखक स्वयंप्रकाश 20 जनवरी, 1947 को इन्दौर में जन्मे। ये मुख्यतः हिन्दी कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। कहानी के अतिरिक्त इन्होंने उपन्यास एवं अन्य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के पश्चात् भी स्वयंप्रकाश जी ने अपनी रचनाओं में मध्यवर्गीय जीवन के वर्ग-शोषण के विरुद्ध चेतना को प्रकट किया है। 'सूरज कब निकलेगा', 'आएंगे अच्छे दिन भी', 'आदमी जात का आदमी' एवं 'संधान' आदि कहानी संग्रह लिखे। कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से इन्हें सम्मानित किया गया, जिनमें पहल, बनमाली, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार मुख्य हैं। इनकी मृत्यु 7 दिसम्बर, 2019 को हुई।

नेताजी का चश्मा Summary in Hindi

लेखक-परिचय : 
 
कहानीकार स्वयंप्रकाश का जन्म सन् 1947 में इन्दौर (म. प्र.) में हुआ। उन्होंने मेकेनिकल इन्जीनियरिंग में शिक्षा प्राप्त की। नौकरी के लिए वे एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नियुक्त होकर राजस्थान में आ गए। वर्षों तक नौकरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवामुक्ति लेकर वे वर्तमान में भोपाल में रह रहे हैं। आजकल वे 'वसुधा' नामक पत्रिका के सम्पादक मण्डल में हैं। 
 
आठवें दशक से लेकर वर्तमान तक के कहानीकारों में स्वयंप्रकाश को अग्रणी माना जाता है। इनके तेरह कहानी संग्रह अब तक प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें 'सूरज कब निकलेगा', 'आएँगे अच्छे दिन भी', 'आदमी जात का आदमी' और "संधान' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा 'बीच में विनय' और 'ईंधन' उनके चर्चित उपन्यास हैं। उन्हें अब तक पहल सम्मान, बनमाली पुरस्कार, राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि पुरस्कारों से पुरस्कृत किया जा चुका है। 
 
RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 10 नेताजी का चश्मा
 
पाठ-परिचय : 
 
इस कहानी के माध्यम से कहानीकार ने बतलाया है कि चारों ओर से घिरे भूभाग का नाम ही देश नहीं होता है। देश उसमें रहने वाले नागरिकों, नदियों, पहाड़ों, पेड़-पौधों, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों आदि से बनता है। इन सबसे प्रेम करने तथा इनकी समृद्धि के लिए प्रयास करने का ही नाम देशभक्ति है। 'नेताजी का चश्मा' कहानी कैप्टन चश्मे वाले के माध्यम से देश के करोड़ों नागरिकों के योगदान को रेखांकित करती है जो इस देश के निर्माण में अपने-अपने तरीके से सहयोग करते हैं। बड़े ही नहीं बच्चे भी इसमें योगदान करते हैं।
admin_rbse
Last Updated on April 20, 2022, 10 a.m.
Published April 19, 2022