These comprehensive RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे
→ घुमन्तू चरवाहे और उनकी आवाजाही घुमंतू चरवाहे वे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोजी-रोटी के जुगाड़ में एक जगह से दूसरी जगह पर घूमते रहते हैं।
→ पहाड़ों में
- जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। ये सर्दी-गर्मी के अनुसार अलग-अलग चरागाहों में चले जाते हैं।
- हिमाचल प्रदेश के पहाड़ों में रहने वाला चरवाहों का समुदाय 'गद्दी' कहलाता है। ये लोग मौसमी उतार चढ़ाव का सामना करने के लिए सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते हैं। ये लोग गाय-भैंस पालते हैं, जंगलों के किनारे रहते हैं और दूध, घी आदि बेचकर अपना पेट पालते हैं।
- कुमाऊँ तथा गुजर चरवाहे पाये जाते हैं। सर्दियों में ये भाबर तथा गर्मियों में बुग्याल की तरफ चले जाते हैं।
- हिमालय के पर्वतों में भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग भी इसी तरह के चरवाहे हैं।
→ पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में
- पठारों, मैदानों तथा रेगिस्तानों में भी चरवाहे पाये जाते हैं।
- धंगर, गोल्ला, कुरुमा, कुरुबा आदि पठारी प्रदेश के चरवाहे हैं।
- मैदानी प्रदेश का प्रमुख चरवाहा समुदाय 'बंजारा' है।
- राजस्थान के रेगिस्तान में 'राइका' समुदाय चरवाही का काम करता है।
→ औपनिवेशिक शासन और चरवाहों का जीवन
औपनिवेशिक शासन के दौरान चरवाहों की जिन्दगी में अनेक परिवर्तन आये। इसके निम्न कारण थे ।
- अंग्रेज सरकार द्वारा देश के विभिन्न भागों में परती भूमि के विकास के नियम बनाकर गैर-खेतिहर जमीन को अपने कब्जे में लेकर खास लोगों को उसे खेती योग्य बनाने के लिए दी गई। ऐसी अधिकतर जमीनें चरागाहों की थीं। इस तरह खेती के फैलाव से चरागाह सिमटने लगे और चरवाहों के लिए समस्याएँ पैदा होने लगीं।
- वन अधिनियम लागू कर चरवाहों के जंगल में प्रवेश पर रोक लगा दी गई जो पहले बहुमूल्य चारे के स्रोत थे।
- अंग्रेजी सरकार द्वारा घुमंतू लोगों को अपराधी माना जाता था। अपराधी जनजाति अधिनियम द्वारा चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया।
- लगान में वृद्धि तथा चरवाही टैक्स लगाया गया। चरवाहों से चरागाहों में चरने वाले एक-एक जानवर पर टैक्स वसूला जाने लगा।
→ इन बदलावों ने चरवाहों की जिंदगी को किस तरह प्रभावित किया?
- इन बदलावों से चरागाहों का उपलब्ध क्षेत्र सिकुड़ने लगा।
- चरागाह सदा जानवरों से भरे रहने लगे।
- चरागाहों के बेहिसाब इस्तेमाल से चरागाहों का स्तर गिरने लगा तथा जानवरों के लिए चारा कम पडने लगा तथा जानवरों की सेहत और संख्या कम होने लगी।
→ चरवाहों ने इन बदलावों का सामना कैसे किया?
- कुछ चरवाहों ने अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी।
- कुछ चरवाहों ने नए-नए चरागाह ढूँढ़ लिये।
- कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे और खेती या व्यापार करने लगे।
- कुछ चरवाहे मजदूर बन गए। वे खेतों या कस्बों में मजदूरी करते दिखाई देने लगे।
→ अफ्रीका में चरवाहा जीवन|
- अफ्रीका में दुनिया की आधी से भी ज्यादा चरवाहा आबादी रहती है। इनमें बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना जैसे समुदाय शामिल हैं। ये अर्द्धशुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं तथा गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार और यातायात सम्बन्धी कार्य भी करते हैं। कुछ चरवाहे चरवाही के साथ-साथ खेती भी करते हैं।
- इन चरवाहों के जीवन में औपनिवेशिक तथा उत्तर-औपनिवेशिक काल में गहरे बदलाव आए जैसे-इनकी जमीनें छीन ली गईं, इनकी आवाजाही पर पाबंदियाँ लगा दी गईं आदि।
→ चरागाहों का क्या हुआ?
- अफ्रीका के मासाई समुदाय के चरागाह दिनोंदिन सिमटे जा रहे हैं।
- सरकार ने गोरों को बसाने हेतु बेहतरीन चरागाहों को अपने कब्जे में ले लिया। मासाइयों की 60 फीसदी जमीन उनसे छिन गई।
- पूर्वी अफ्रीका में भी खेती के प्रसार के साथ-साथ चरागाह खेती में बदलते गए।
- बहुत सारे चरागाहों को शिकारगाह बना दिया गया। अफ्रीका की अन्य जगहों पर भी चरवाहों को ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
- एक छोटे से क्षेत्र में लगातार चराई से चरागाहों का स्तर गिरने लगा और चारे की कमी से मवेशियों की पेट भरने की समस्या स्थायी बन गई।
→ सरहदें बन्द हो गईं
- औपनिवेशिक काल में मासाइयों की तरह अन्य चरवाहों को भी विशेष आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं में कैद कर दिया गया। अब ये समुदाय इन आरक्षित क्षेत्रों की सीमाओं के पार आ-जा नहीं सकते थे।
- चरवाहों को गोरों के क्षेत्रों में पड़ने वाले बाजारों में दाखिल होने से भी रोक दिया गया।
- नई पाबंदियों और बाधाओं के कारण इनकी चरवाही तथा व्यापारिक दोनों प्रकार की गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा।
→ जब चरागाह सूख जाते हैं
- किसी वर्ष जब बारिश न होने से चरागाह सूख जाते हैं, तो उस साल यदि वे अपने मवेशियों को किसी हरे भरे क्षेत्र में न ले जाएं तो उनके सामने भुखमरी की समस्या आ जाती है।
- औपनिवेशिक काल में मासाइयों को एक निश्चित क्षेत्र में कैद कर दिया गया तथा सूखे के दिनों में उन्हें बेहतरीन चरागाहों में जाने से रोक दिया गया। इसलिए सूखे के सालों में मासाइयों के बहुत सारे मवेशी भूख और बीमारियों के कारण मारे जाते थे। इससे चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई।
→ सब पर एक जैसा असर नहीं पड़ा
- औपनिवेशिक काल में मासाईलैंड में आए बदलावों से सारे चरवाहों पर एक जैसा असर नहीं पड़ा।
- अंग्रेज सरकार ने कई मासाई उपसमूहों के मुखिया तय कर दिए और अपने-अपने कबीले के सारे मामलों की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।
- हमलों और लड़ाइयों पर पाबन्दी लगा दी। इससे वरिष्ठजनों और योद्धाओं, दोनों की परम्परागत सत्ता बहुत कमजोर हो गई। सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मुखियाओं की नियमित आय बन गई थी। वे जानवर, साजो-सामान व जमीन खरीद सकते थे।
- उनमें से ज्यादातर शहरों में बस गए और व्यापार करने लगे। उनकी चरवाही व गैर-चरवाही दोनों प्रकार की आय थी।
- जो चरवाहे सिर्फ चरवाही पर निर्भर थे, बुरे वक्त का सामना करने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं थे। ऐसी स्थिति में वे कच्चा कोयला जलाने, सड़क व भवन निर्माण कार्य में लग जाते थे।
- अब अमीर और गरीब चरवाहों के बीच नया भेदभाव पैदा हुआ।
- फिर भी चरवाहे बदलते समय के हिसाब से स्वयं को ढालते हैं-
- वे अपनी सालाना आवाजाही का रास्ता बदलते हैं,
- जानवरों की संख्या कम कर लेते हैं,
- नये इलाकों में जाने हेतु लेन-देन करते हैं तथा
- रियायत व मदद हेतु सरकार पर राजनीतिक दबाव डालते हैं,
- अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखते