These comprehensive RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
→ वाइमर गणराज्य का जन्म|
- जर्मनी ने आस्ट्रिया के साथ मिलकर रूस, फ्रांस व इंग्लैंड के विरुद्ध प्रथम विश्व युद्ध-सन् 1914-1918 लड़ा था जिसमें जर्मनी की पराजय हुई।
- प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की हार के बाद सम्राट ने पदत्याग कर दिया। वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई तथा संघीय आधार पर एक लोकतांत्रिक संविधान पारित किया गया। इस प्रकार 9 नवम्बर, 1918 को वाइमर गणराज्य की स्थापना की घोषणा कर दी गई।
- 28 जून, 1919 को जर्मनी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर कर दिये। यह शांति-संधि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर तथा अपमानजनक थी। बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस पराजय बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए वाइमर गणराज्य को ही जिम्मेदार ठहराया।
→ युद्ध का असर
- इस युद्ध ने पूरे यूरोप-महाद्वीप को मनोवैज्ञानिक और आर्थिक दोनों ही स्तर पर तोड़कर रख दिया। युद्ध खत्म होते-होते यह कर्जदारों का महाद्वीप बन गया।
- पुराने साम्राज्य द्वारा किए गए अपराधों का हर्जाना नवजात वाइमर गणराज्य से वसूल किया जा रहा था। पराजय के अपराध बोध, राष्ट्रीय अपमान के साथ-साथ हर्जाने के कारण जर्मनी आर्थिक स्तर पर भी अपंग हो चुका था।
→ राजनीतिक रैडिकलवाद ( आमूल परिवर्तनवाद) और आर्थिक संकट
- वाइमर गणराज्य की स्थापना के बाद जर्मनी में स्पार्टकिस्ट लीग अपने क्रांतिकारी विद्रोह की योजनाओं को | अंजाम देने लगी।
- वाइमर गणराज्य के समर्थकों-समाजवादियों, डेमोक्रेट्स और कैथोलिक गुटों ने इसके विरोध में एक लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की तथा फ्री कोर नामक संगठन की मदद से इस विद्रोह को कुचल दिया।
- इसके बाद स्पार्टकिस्टों ने जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव डाली। इसके बाद कम्युनिस्ट और समाजवादी वहाँ एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हो गए।
- 1923 में जर्मनी में भयानक आर्थिक संकट फैल गया। जर्मनी की मुद्रा मार्क का मूल्य बहुत अधिक गिर गया। अमेरिकी हस्तक्षेप से 1924 से 1928 तक जर्मनी में कुछ स्थिरता रही।
→ मंदी के साल
- 1929 से 1932 के काल में पूरा विश्व आर्थिक मन्दी की चपेट में आ गया। इस मंदी का सबसे बुरा प्रभाव जर्मन अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
- राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था। अपनी कुछ कमियों के कारण यह कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था।
- लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।
→ हिटलर का उदय
- वाइमर गणराज्य के नाजुक दौर में वहाँ हिटलर का उदय हुआ।
- 1889 में जन्मे हिटलर ने 1919 में जर्मन वर्कर्स पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। शीघ्र ही वह इस दल का प्रमुख नेता बन गया। उसने इसका नाम बदलकर 'नेशनल सोशलिस्ट पार्टी' रख दिया। इसे ही बाद में नात्सी पार्टी के नाम से जाना गया।
→ लोकतंत्र का ध्वंस
- 30 जनवरी, 1933 को हिटलर जर्मनी का चांसलर बना।
- 3 मार्च, 1933 को हिटलर ने प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) पारित कर जर्मनी में | तानाशाही स्थापित कर दी।
→ पुनर्निर्माण
- हिटलर ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को सुधारने का जिम्मा अर्थशास्त्री ह्यालमार शाख्त को सौंपा। उसने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को सुधारा किन्तु मतभेदों के कारण हिटलर ने कुछ वर्षों के बाद उसे पद से हटा दिया।
- विदेश नीति के मोर्चे पर भी प्रारम्भ में हिटलर को अनेक कामयाबियाँ मिलीं। 1933 में उसने 'लीग ऑफ नेशंस' से पल्ला झाड़ लिया। इसके बाद राईनलैण्ड, आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया आदि पर कब्जा कर लिया।
- सितम्बर, 1939 में जर्मनी द्वारा पोलैण्ड पर हमले के कारण द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया। प्रारम्भ में हिटलर ने अनेक विजयें प्राप्त की किन्तु बाद में उसकी पराजय होने लगी।
- मई, 1945 में हिटलर की पराजय तथा जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिकी परमाणु बम गिराने के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ।
→ नात्सियों का विश्व दृष्टिकोण
- नात्सी विचारधारा हिटलर के विश्व दृष्टिकोण की पर्यायवाची थी। हिटलर नस्लवादी था। इस क्रम में वह ब्लॉन्ड, नीली आँखों वाले, नॉर्डिक जर्मन आर्यों को सबसे ऊपर तथा यहूदियों को सबसे नीचे रखता था।
- पूरब में हिटलर जर्मन सीमाओं को और फैलाना चाहता था ताकि सारे जर्मनों को भौगोलिक दृष्टि से एक ही जगह इकट्ठा किया जा सके।
→ नस्लवादी राज्य की स्थापना
- सत्ता में पहुँचते ही नात्सियों ने 'शुद्ध' जर्मनों के विशिष्ट नस्ली समुदाय की स्थापना के सपने को लागू करना शुरू कर दिया।
- इसके लिए उन्होंने साम्राज्य में मौजूद उन समाजों या नस्लों को खत्म करना शुरू किया जिन्हें - वे 'अवांछित' मानते थे। सबसे बुरा हाल यहूदियों का किया गया।
→ नस्ली कल्पना लोक
- युद्ध के साये में नात्सी अपने कातिलाना, नस्लवादी आदर्शलोक के निर्माण में लग गए।
- उसने पराजित पोलैण्ड को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया गया। वहाँ यूरोप में रहने वाले जर्मनों को बसाया गया।
- पोलैण्ड के समाज को बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर गुलाम बनाने की चाल चली गयी।
- सन् 1933 से 1938 तक नात्सियों ने यहूदियों को तरह-तरह से आतंकित किया। 1939-1945 के दौर में यहूदियों को कुछ खास इलाकों में इकट्ठा करने तथा अन्ततः पोलैण्ड में बनाये गये गैस चैम्बरों में ले जाकर मार देने की रणनीति अपनाई गई।
→ नात्सी जर्मनी में युवाओं की स्थिति
हिटलर ने शिक्षा के माध्यम से युवाओं में नाजी विचारों को सुदृढ़ किया। इसके लिए उसने स्कूलों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया। स्कूली पाठ्यपुस्तकों को नये सिरे से लिखा गया। 10 साल की उम्र के बच्चों को 'युंगकोफ' में भर्ती करा दिया जाता था। यह 14 वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों के लिए नात्सी युवा संगठन था।
→ मातृत्व की नात्सी सोच
- महिलाओं के प्रति भी नात्सी सोच भेदभाव पर आधारित थी।
- नात्सी महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के विरुद्ध थे।
- नात्सी महिलाओं का मुख्य कर्तव्य शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना तथा उनका पालन-पोषण करना ही मानते थे।
- नस्ली तौर पर वांछित दिखने वाले बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को इनाम दिये जाते थे जबकि अवांछित बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को दण्डित किया जाता था।
- निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली 'आर्य' औरतों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी और उन्हें कड़ा दण्ड दिया जाता था।
→ प्रचार की कला
- नात्सी प्रचार कला में माहिर थे। उन्होंने भाषा तथा मीडिया का बहुत चतुराई से प्रयोग किया तथा इसका लाभ उठाया। उन्होंने अपने तौर-तरीकों को व्यक्त करने के लिए भ्रामक तथा दिल दहला देने वाले शब्दों का प्रयोग किया। सामूहिक हत्याओं को विशेष व्यवहार, अन्तिम समाधान (यहूदियों के सन्दर्भ में), यूथनेज़िया (विकलांगों के लिए), चयन और संक्रमण मुक्ति आदि शब्दों से व्यक्त करते थे।
- पोस्टरों में जर्मनों के दुश्मनों का मजाक उड़ाया जाता था, उन्हें शैतान के रूप में पेश किया जाता था।
- समाजवादियों और उदारवादियों को कमजोर और पथभ्रष्ट के रूप में प्रस्तुत किया जाता था।
- प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था।
- पूरे समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उन्होंने लोगों को इस बात का एहसास कराया कि उनकी समस्याओं को सिर्फ नात्सी ही हल कर सकते हैं।
→ आम जनता और मानवता के खिलाफ अपराध-
- नात्सियों ने जर्मन जनता के सामने ऐसा आकर्षक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जो सभी वर्ग के लोगों के लिए रुचिकर था। उन्हें पक्का विश्वास था कि नात्सीवाद ही देश को तरक्की के रास्ते पर लेकर जायेगा।
- जर्मन आबादी का एक बड़ा हिस्सा पुलिस दमन और मानवता के विरुद्ध किये जा रहे अपराधों का मूकदर्शक व उदासीन साक्षी बना रहा।
→ महाध्वंस के बारे में जानकारियाँ
- जर्मनी में होने वाले भीषण रक्तपात तथा बर्बर दमन का पता दुनिया को युद्ध खत्म होने के बाद तथा जर्मनी की हार के बाद लगा।
- दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में स्मृति लेखों, साहित्य, वृत्तचित्रों, शायरी, स्मारकों तथा संग्रहालयों में इस महाध्वंस का इतिहास और स्मृति आज भी जिंदा है।