These comprehensive RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 9 Social Science Notes History Chapter 1 फ्रांसीसी क्रांति
→ अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में फ्रांसीसी समाज
(1) अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में फ्रांसीसी समाज मध्यकालीन सामंती व्यवस्था का अंग था। समाज तीन वर्गों |
(एस्टेट्स) में बंटा हुआ था-
- प्रथम एस्टेट-पादरी वर्ग ।
- द्वितीय एस्टेट-कुलीन वर्ग
- तृतीय एस्टेट - जनसाधारण, जैसे
(a) समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग
(b) किसान और कारीगर
(c) छोटे किसान, भूमिहीन मजदूर, नौकर आदि।
(2) प्रथम दो एस्टेट्स को करों से छूट आदि विशेषाधिकार प्राप्त थे। कुलीन वर्ग को कुछ अन्य सामन्ती विशेषाधिकार भी प्राप्त थे। वह किसानों से सामन्ती कर वसूल करता था। तीसरे एस्टेट के सभी लोगों को सरकार को प्रत्यक्ष कर (टाइल) तथा अनेक अप्रत्यक्ष कर देने होते थे।
(3) चर्च भी किसानों से टाइद नामक एक धार्मिक कर वसूलता था। यह कर कृषि उपज के दसवें हिस्से के बराबर होता था।
- जीने का संघर्ष-फ्रांस की जनसंख्या के बढ़ने से अनाज की बढ़ती माँग, खाद्य पदार्थों की होती वृद्धि, कम मजदूरी आदि से गरीब-अमीर की खाई बढ़ती गई। सूखे व ओले के प्रकोप से पैदावार के गिरने से जीविका संकट पैदा हो जाता था।
- उभरते मध्यम वर्ग ने विशेषाधिकारों के अन्त की कल्पना की-अठारहवीं सदी में एक नये सामाजिक संमूह का उदय हुआ जिसे मध्य वर्ग कहा गया। तृतीय एस्टेट में इस मध्य वर्ग के अलावा प्रशासनिक सेवा व वकील जैसे पेशेवर लोग भी शामिल थे। इन लोगों ने विशेषाधिकारों की व्यवस्था वाले शासन के अन्त की कल्पना की। स्वतंत्रता, समान नियमों तथा समान अवसरों के विचार पर आधारित यह परिकल्पना जॉन लॉक, रूसो जैसे दार्शनिकों ने प्रस्तुत की। मांटेस्क्यू ने शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। फ्रांसीसी चिंतकों के लिए अमेरिकी संविधान और उसमें दिए गए व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत थी। इसी समय राज्य के खर्चों को पूरा करने के लिए फिर से कर लगाए जाने की खबर से विशेषाधिकार वाली व्यवस्था के विरुद्ध गुस्सा भड़क गया।
→ क्रांति की शरुआत
- फ्रांसीसी सम्राट लुई सोलहवें ने 5 मई, 1789 को नये करों के प्रस्ताव के अनुमोदन के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई।
- तृतीय एस्टेट के प्रतिनिधि 'पूरी सभा द्वारा मतदान' की अपनी मांग के अस्वीकार होने पर, विरोध जताते हुए सभा से बाहर चले गये। 20 जून, 1789 को ये लोग वर्साय के इन्डोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। उन्होंने स्वयं को नेशनल असेम्बली घोषित किया तथा शपथ ली कि सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान बनाने तक असेम्बली भंग नहीं होगी।
- महंगाई के कारण जनता भी आंदोलित थी। दूसरी तरफ सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था। ऐसी स्थिति में क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई, 1789 को बास्तील पर धावा बोलकर उसे नेस्तनाबूद कर दिया।
- अन्तत: लुई सोलहवें ने नेशनल असेम्बली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा। 4 अगस्त, 1789 की रात को असेम्बली ने करों, कर्तव्यों तथा बन्धनों वाली सामन्ती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित कर दिया। पादरी वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को छोड़ने के लिए विवश किया गया तथा धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया तथा चर्च के स्वामित्व वाली भूमि जब्त कर ली गई।
→ फ्रांस संवैधानिक राजतंत्र बन गया-नेशनल असेम्बली ने सन् 1791 में संविधान का प्रारूप पूरा कर लिया। सम्राट की शक्तियों को विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में हस्तांतरित कर दिया गया। इस प्रकार फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की नींव पड़ी। इस संविधान ने कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेम्बली को सौंप दिया । संविधान पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र के साथ शुरू हुआ जिसमें जीवन, स्वतन्त्रता तथा कानून के समक्ष समानता के अधिकार प्रत्येक व्यक्ति जन्म से प्रदान किये गए। लेकिन नेशनल असेम्बली के चुनाव में सभी नागरिकों को मतदान अधिकार प्राप्त नहीं था। निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेम्बली का सदस्य होने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना जरूरी था।
→ फ्रांस में राजतंत्र का उन्मूलन और गणतंत्र की स्थापना
- 1791 के संविधान से सिर्फ अमीरों को ही राजनैतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को यह लगने लगा कि क्रांति के सिलसिले को आगे बढ़ाने की जरूरत है। समाज के कम समृद्ध हिस्से के लोगों ने अपने आपको संगठित किया और सन् 1792 की गर्मियों में इन्होंने (जैकोबिनों ने) खाद्य पदार्थों की महँगाई एवं अभाव से क्रुद्ध होकर 10 अगस्त को ट्यूलिरिए के महल पर धावा बोल दिया राजा को कई घंटों तक बंधक बनाए रखा। बाद में असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव किया।
- 1792 में नये चुनाव कराये गये। नवनिर्वाचित असेम्बली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितम्बर, 1792 को इसने फ्रांस में राजतन्त्र का अन्त कर दिया तथा फ्रांस को एक गणतन्त्र घोषित कर दिया।
- लुई सोलहवें को न्यायालय द्वारा देशद्रोह के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई तथा 1793 में प्लेस डी लॉ कॉन्कॉर्ड में उसे सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दी गई।
→ आतंक राज
- सन् 1793 से 1794 तक का काल फ्रांस में आतंक का युग कहा जाता है। जैकोबिन नेता रोबेस्पियर ने अपनी नीतियों को बहुत सख्ती से लागू किया। हजारों व्यक्तियों को मौत के घाट उतारा गया।
- अन्ततः जुलाई, 1794 में न्यायालय द्वारा रोबेस्पियर को दोषी ठहराया गया तथा गिरफ्तार करके अगले ही दिन मृत्युदण्ड दे दिया गया।
→ डिरेक्ट्री शासित फ्रांस
(1) जैकोबिन सरकार के पतन के बाद मध्य वर्ग के सम्पन्न तबके के पास सत्ता आ गई; सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। इस संविधान में दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था जिन्होंने पाँच सदस्यों वाली कार्यपालिका—डिरेक्ट्री--को नियुक्त किया।
(2) डिरेक्ट्री और विधान परिषदों के पारस्परिक झगड़े के कारण डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह -नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।
- क्या महिलाओं के लिए भी क्रांति हुई?-महिलाएं शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में अहम् परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। लेकिन महिलाएँ इस बात से निराश हुईं कि 1791 के संविधान में उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। परिणामतः महिलाओं के अनेक राजनैतिक क्लबों तथा अखबारों के माध्यम से मताधिकार, असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनैतिक पदों की माँग की। प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में कुछ शैक्षिक, वैवाहिक तथा व्यावसायिक सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए। फिर भी राजनैतिक अधिकारों के लिए महिलाओं का संघर्ष जारी रहा। अन्ततः सन् 1946 में फ्रांस की महिलाओं ने मताधिकार हासिल कर लिया।
- दास प्रथा का उन्मूलन-1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित किया। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास प्रथा पुनः प्रारम्भ कर दी। 1848 में दास प्रथा को पूर्णतः समाप्त कर दिया गया।
- क्रांति और रोजाना की जिंदगी - 1789 में 'सेंसरशिप की समाप्ति' का कानून अस्तित्व में आया तथा अधिकारों के घोषणापत्र से भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि अब किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किये जा सकते थे। इससे फ्रांस के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों में अनेक परिवर्तन आए।
- सारांश-स्वतन्त्रता और जनवादी अधिकारों के विचार फ्रांसीसी क्रांति की सबसे महत्त्वपूर्ण विरासत थे। उन्नीसवीं शताब्दी में ये विचार शेष यूरोप में फैले तथा वहाँ सामंती व्यवस्था नष्ट हुई।