RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 5 आधुनिक विश्व में चरवाहे

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. 
गुज्जर समुदाय का निवास का क्षेत्र है-
(अ) गढ़वाल तथा कुमाऊँ 
(ब) छोटा नागपुर क्षेत्र 
(स) कोटा तथा बारां क्षेत्र 
(द) बस्तर क्षेत्र 
उत्तर:
(अ) गढ़वाल तथा कुमाऊँ

प्रश्न 2. 
जम्मू और कश्मीर में पाये जाते हैं- 
(अ) गद्दी 
(ब) गुज्जर बकरवाल 
(स) गोल्ला 
(द) धंगर 
उत्तर:
(ब) गुज्जर बकरवाल

प्रश्न 3. 
गढ़वाल और कुमाऊँ के गुज्जर चरवाहे सर्दियों में किस ओर चले जाते हैं? 
(अ) भाबर 
(ब) बुग्याल 
(स) तटवर्ती क्षेत्र 
(द) रेगिस्तान की ओर 
उत्तर:
(अ) भाबर 

प्रश्न 4. 
महाराष्ट्र का जाना-माना चरवाहा समुदाय है- 
(अ) बंजारे 
(ब) राइका 
(स) धंगर 
(द) गुज्जर 
उत्तर:
(स) धंगर 

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प्रश्न 5. 
राजस्थान के रेगिस्तानों में मुख्य चरवाहा समुदाय रहता है- 
(अ) बंजारे 
(ब) गोल्ला 
(स) गुज्जर बकरवाल 
(द) राइका 
उत्तर:
(द) राइका 

प्रश्न 6. 
निम्न में अफ्रीका का चरवाहा समुदाय है- 
(अ) मासाई 
(ब) राइका 
(स) संथाल 
(द) गोंड 
उत्तर:
(अ) मासाई 

प्रश्न 7. 
बंजारे रहते थे- 
(अ) उत्तरप्रदेश में 
(ब) पंजाब में 
(स) मध्यप्रदेश में 
(द) उपरोक्त सभी में 
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी में 

प्रश्न 8. 
गद्दी किस प्रदेश का चरवाहा समुदाय है- 
(अ) हिमाचल का 
(ब) पंजाब में 
(स) महाराष्ट्र का 
(द) राजस्थान का 
उत्तर:
(अ) हिमाचल का

प्रश्न 9. 
गढ़वाल और कुमाऊँ के गुज्जर गर्मियों में चले जाते हैं- 
(अ) भाबर में 
(ब) बुग्याल में 
(स) शिवालिक की पहाड़ियों में 
(द) कश्मीर घाटी में 
उत्तर:
(ब) बुग्याल में 

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प्रश्न 10. 
बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहता था- 
(अ) गोल्ला समुदाय 
(ब) कुरुबा समुदाय 
(स) धंगर समुदाय
(द) राइका समुदाय 
उत्तर:
(स) धंगर समुदाय

प्रश्न 11. 
किन स्थानों के चरवाहे सर्दी-गर्मी के हिसाब से एक-स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे- 
(अ) पठारों के 
(ब) मैदानों के 
(स) रेगिस्तानों के 
(द) पहाड़ों के 
उत्तर:
(द) पहाड़ों के 

प्रश्न 12. 
निम्न में किन स्थानों के चरवाहे बरसात और सूखे के मौसम के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे? 
(अ) पठारों के 
(ब) मैदानों के 
(स) रेगिस्तानों के 
(द) उपर्युक्त सभी के 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी के 

प्रश्न 13. 
गोल्ला, कुरुमा और कुरुबा चरवाहा समुदाय के लोग रहते हैं- 
(अ) जम्मू-कश्मीर में 
(ब) कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में 
(स) महाराष्ट्र में 
(द) राजस्थान में 
उत्तर:
(ब) कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में 

प्रश्न 14. 
मालाधारी चरवाहों का गाँव स्थित है- 
(अ) कच्छ के रन में 
(ब) बाड़मेर में 
(स) जैसलमेर में 
(द) जोधपुर में 
उत्तर:
(अ) कच्छ के रन में 

प्रश्न 15. 
किस कानून के तहत अंग्रेज सरकार गैर-खेतिहर जमीन को अपने कब्जे में लेकर कुछ खास लोगों को सौंपने लगी-
(अ) परती भूमि नियमावली 
(ब) वन अधिनियम 
(स) अपराधी जनजाति अधिनियम 
(द) चरवाही टैक्स नियम 
उत्तर:
(अ) परती भूमि नियमावली 

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प्रश्न 16. 
अपनी आय बढ़ाने के लिए अंग्रेजों ने लागू किया-
(अ) वन अधिनियम 
(ब) परती भूमि नियमावली 
(स) अपराधी जनजाति अधिनियम 
(द) चरवाही टैक्स 
उत्तर:
(द) चरवाही टैक्स 

प्रश्न 17. 
जिस कानून के तहत अंग्रेजों ने कई जंगलों को संरक्षित घोषित किया, वह था- 
(अ) परती भूमि कानून 
(ब) वन अधिनियम 
(स) अपराधी जनजाति अधिनियम 
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं 
उत्तर:
(ब) वन अधिनियम 

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-

1. पहाड़ी चरवाहे मौसमी उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए ..................... हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते थे। (सर्दी-गर्मी/बरसात-सूखे मौसम) 
2. पठारी, मैदानी तथा रेगिस्तानी चरवाहे ............ और ............ के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे। (बरसात-मौसम/सर्दी-गर्मी) 
3. हिमाचल प्रदेश के चरवाहा समुदाय को ............ कहते हैं। (गद्दी/राइका)
4. ............... महाराष्ट्र का एक जाना-माना चरवाहा समुदाय है। (सइकाधंगरबंजारा) 
5. मसाई पशुपालन मुख्यत: ................. में रहते हैं। (पूर्वी अफ्रीका/भारत) 
उत्तर:
1. सर्दी-गर्मी 
2. बरसात-मौसम 
3. गद्दी 
4. धंगर 
5. पूर्वी अफ्रीका 

निम्न वाक्यों में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये- 

1. दुनिया की आधी से अधिक चरवाहा आबादी अफ्रीका में रहती है। 
2. मासाई चरवाहा समुदाय मुख्यतः दक्षिणी अफ्रीका का निवासी है। 
3. औपनिवेशिक शासन में मासाइयों से उनकी जमीन का 60 प्रतिशत हिस्सा उनसे छीन लिया गया था। 
4. गढ़वाल और कुमाऊँ के गुजर गर्मियों में भाबर की ओर चले जाते हैं। 
5. राजस्थान के रेगिस्तानों में राइका समुदाय रहता था। 
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. सत्य 
4. असत्य 
5. सत्य। 

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निम्न को सुमेलित कीजिए-

(अ) 

(ब) 

(1) धंगर

कर्नाटक 

(2) गोल्ला 

राजस्थान

(3) राइका 

जम्मू-कश्मीर

(4) गुज्जर बकरवाल

हिमाचल प्रदेश

(5) गद्दी

महाराष्ट्र 

उत्तर:

(अ) 

(ब) 

(1) धंगर

महाराष्ट्र

(2) गोल्ला 

कर्नाटक

(3) राइका 

राजस्थान

(4) गुज्जर बकरवाल

जम्मू-कश्मीर 

(5) गद्दी

हिमाचल प्रदेश। 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
घुमंतू किसे कहते हैं? 
उत्तर:
घुमंतू ऐसे लोग होते हैं जो किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि रोटी-रोजी के जुगाड़ में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। 

प्रश्न 2. 
चरवाहे एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों घूमते रहते थे? 
उत्तर:
चरवाहे जलवायु परिवर्तन के कारण तथा अच्छे चारे तथा रोजी-रोटी की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे। 

प्रश्न 3. 
गुज्जर गडरिये कैसे घरों में रहते हैं? 
उत्तर:
गुज्जर गडरिये बुग्याल में मिलने वाले रिंगल (एक तरह का पहाड़ी बाँस) तथा घास से बने मंडपों में रहते हैं। 

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प्रश्न 4. 
पहाड़ों में रहने वाले कोई दो चरवाहा समुदायों के नाम दीजिये। 
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर में गुज्जर बकरवाल, हिमाचल प्रदेश में गद्दी। 

प्रश्न 5. 
भाबर किसे कहते हैं? 
अथवा 
भाबर क्या है? 
उत्तर:
गढ़वाल और कुमाऊँ के इलाके में पहाड़ियों के निचले हिस्से के आसपास पाये जाने वाले शुष्क या सूखे जंगल के इलाके को भाबर कहते हैं। 

प्रश्न 6. 
बुग्याल किसे कहते हैं? 
उत्तर:
ऊँचे पहाड़ों में स्थित घास के मैदानों को बुग्याल कहते हैं। 

प्रश्न 7. 
कोंकणी किसानों से धंगर चरवाहा समुदाय किस प्रकार लाभान्वित होता है? 
उत्तर:

  • कोंकणी किसान धंगरों के मवेशियों के लिए चरागाह उपलब्ध कराते हैं। 
  • कोंकणी किसान धंगरों को चावल देते हैं। 

प्रश्न 8. 
पहाड़ी चरवाहों तथा पठारी चरवाहों की चक्रिक आवाजाही में क्या भिन्नता है? 
उत्तर:
पहाड़ी चरवाहों की चक्रिक आवाजाही सर्दी-गर्मी से तय होती है, जबकि पठारी चरवाहों की चक्रिक आवाजाही बरसात और सूखे मौसम से तय होती है। 

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प्रश्न 9. 
बंजारों के मुख्य इलाके बतलाइये। 
उत्तर:
बंजारों के मुख्य इलाके उत्तरप्रदेश, पंजाब, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र हैं। 

प्रश्न 10. 
'राइका' समुदाय कौनसा पशुधन पालता है? 
उत्तर:
राइकाओं का एक वर्ग ऊँट पालता है, जबकि दूसरा वर्ग भेड़-बकरियाँ पालता है। 

प्रश्न 11. 
जैसलमेर इलाके के ऊँट पालकों तथा उनकी बस्ती को क्या कहा जाता है? 
उत्तर:
जैसलमेर इलाके के ऊँट पालकों को मारु राइका तथा उनकी बस्ती को ढंडी कहा जाता है। 

प्रश्न 12. 
अंग्रेज इंग्लैण्ड के लोगों के लिए किन कृषि उत्पादों का उत्पादन बढ़ाना चाहते थे? 
उत्तर:
अंग्रेज इंग्लैण्ड के लोगों के लिए जूट (पटसन), कपास, गेहूँ तथा अन्य खेतिहर वस्तुओं का उत्पादन बढ़ाना चाहते थे। 

प्रश्न 13. 
औपनिवेशिक सरकार ने अपनी आय बढ़ाने हेतु किन वस्तुओं पर कर लगाया? 
उत्तर:
औपनिवेशिक सरकार ने अपनी आय बढ़ाने हेतु जमीन, नहरों के पानी, नमक, खरीद-फरोख्त की चीजों तथा मवेशियों पर टैक्स लगाया। 

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प्रश्न 14. 
औपनिवेशिक सरकार के नये कानूनों ने चरवाहों को किस प्रकार प्रभावित किया? कोई दो बिन्दु दीजिये। 
उत्तर:

  • सीमित चरागाहों के उपयोग से उनका स्तर गिरने लगा तथा चारे की कमी होने लगी। 
  • चारे की कमी से जानवरों की सेहत तथा तादाद भी गिरने लगी। 

प्रश्न 15. 
चरवाहों ने अपने जीवन में आये बदलावों का सामना कैसे किया? 
उत्तर:

  • कुछ चरवाहों ने अपने पशुओं की संख्या कम कर दी। 
  • कुछ चरवाहों ने नये-नये चरागाह ढूँढ़ लिए। 

प्रश्न 16. 
अफ्रीका के कुछ चरवाहा समुदायों के नाम लिखिए। 
अथवा 
अफ्रीका के किन्हीं दो चरवाहा समुदायों के नाम लिखिये। 
उत्तर:
बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान तथा तुर्काना। 

प्रश्न 17. 
मासाई का अर्थ स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर:
मासाई शब्द का शाब्दिक अर्थ 'मेरे लोग' है। 

प्रश्न 18. 
मासाई चरवाहे कहाँ निवास करते हैं? 
उत्तर:
मासाई मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रीका के देश कीनिया एवं तंजानिया के अर्द्ध-शुष्क घास स्थलों में निवास करते हैं। 

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प्रश्न 19. 
मासाई के चरागाहों को किस रूप में बदल दिया गया? 
उत्तर:
मासाई के बहुत सारे चरागाहों को शिकारगाहों में बदल दिए गए, उदाहरणस्वरूप-कीनिया में मासाई मारा एवं साम्बरू नेशनल पार्क तथा तंजानिया में सेरेनगेटी पार्क। 

प्रश्न 20. 
उपनिवेश बनने से पहले मासाई समाज किन श्रेणियों में बँटा हुआ था? 
उत्तर:
दो श्रेणियों में-(1) वरिष्ठ जन (ऐल्डर्स) (2) योद्धा (वॉरियर्स)। 

प्रश्न 21. 
वरिष्ठ जन का क्या कार्य था? 
उत्तर:
वरिष्ठ जन शासन चलाते थे। समुदाय से जुड़े मामलों पर विचार-विमर्श करने तथा अहम फैसले लेने के लिए वे समय-समय पर सभा करते थे। 

प्रश्न 22. 
चरवाहों के घुमंतूपन के स्वभाव का क्या लाभ है? 
उत्तर:
घुमंतूपन के स्वभाव के कारण चरवाहे बुरे वक्त का सामना कर पाते हैं तथा संकट से बच निकलते हैं। 

प्रश्न 23. 
कलांग कौन थे? 
उत्तर:
जावा में कलांग लोग कुशल लकड़हारे और घुमन्तू लोग थे। 

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प्रश्न 24. 
ढंडी क्या है? 
उत्तर:
मारु राइकाओं का निवास ढंडी कहलाता है। 

प्रश्न 25. 
सेरेन्गेटी नेशनल पार्क कहाँ स्थित है? 
उत्तर:
तंजानिया में। 

प्रश्न 26. 
तंजानिया के घास के मैदानों को क्या कहते हैं? 
उत्तर:
स्तेपीज़। 

प्रश्न 27. 
औपनिवेशिक सरकार द्वारा 'अपराधी जनजाति अधिनियम' कब पारित किया गया? 
उत्तर:
सन् 1871 में। 

प्रश्न 28. 
गढ़वाल-कुमाऊँ के गुज्जर चरवाहे सर्दियों और गर्मियों में किस तरफ चले जाते थे? 
उत्तर:
ये चरवाहे सर्दियों में भाबर के सूखे जंगलों की तरफ तथा गर्मियों में ऊपरी घास के मैदानों-बुग्याल-की तरफ चले जाते थे। 

प्रश्न 29. 
हिमालय के किन्हीं पाँच चरवाहा समुदायों के नाम लिखिये। 
उत्तर:
हिमालय के पाँच प्रमुख चरवाहा समुदाय ये हैं-

  • गुज्जर बकरवाल 
  • गद्दी 
  • गढ़वाल व कुमाऊँ के गुज्जर 
  • भोटिया तथा 
  • शेरपा। 

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प्रश्न 30. 
महाराष्ट्र का धंगर चरवाहा समुदाय कहाँ रहते थे? 
उत्तर:
महाराष्ट्र का धंगर चरवाहा समुदाय महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहते थे। 

प्रश्न 31. 
अक्टूबर से मानसून आने तक धंगर चरवाहा समुदाय कहाँ चला जाता था? 
उत्तर:
अक्टूबर से मानसून आने तक धंगर चरवाहा समुदाय सूखे पठारों से कोंकण और तटीय इलाकों में चला जाता था। 

प्रश्न 32. 
धंगर चरवाहे मानसून के आने पर कोंकण और तटीय इलाकों से सूखे पठारों की तरफ क्यों लौट जाते थे? 
उत्तर:
मानसून में कोंकण और तटीय क्षेत्र के गीले हालात को भेड़ें बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इसलिए वे सूखे पठारों की तरफ लौट जाते थे। 

प्रश्न 33. 
गोल्ला, कुरुमा और कुरुबा चरवाहा समुदाय के लोग क्या पालते थे? 
उत्तर:
गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते थे और कुरुमा व कुरुबा समुदाय के लोग भेड़-बकरियाँ पालते थे। 

प्रश्न 34. 
पठारी, मैदानी और रेगिस्तानी चरवाहा समुदाय के लोग किस हिसाब से अपनी जगह बदलते थे?
उत्तर:
पठारी, मैदानी और रेगिस्तानी चरवाहा समुदाय के लोग बरसात और सूखे मौसम के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे। 

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प्रश्न 35. 
राइका समुदाय के लोग क्या पालते थे? 
उत्तर:
राइकाओं का एक तबका ऊँट पालता था जबकि कुछ तबके भेड़-बकरियाँ पालते थे। 

प्रश्न 36. 
अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ में राइकाओं को क्या-क्या काम करने पड़ते थे? 
उत्तर:
अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ में राइकाओं को खेती, व्यापार तथा चरवाही के कार्य करने पड़ते थे। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
भारत में पहाड़ी चरवाहे समुदायों के पहाड़ों में आवागमन का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
(i) भारत के प्रमुख पहाड़ी चरवाहे. समुदाय ये हैं-(1) जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल (2) हिमाचल प्रदेश के गद्दी (3) गढ़वाल-कुमाऊँ के गुज्जर तथा (4) हिमालय के पर्वतों में रहने वाले अन्य चरागाह समुदाय, जैसे-भोटिया, शेरपा, किन्नौरी आदि। 

(ii) ये सभी पहाड़ी चरवाहे समुदाय मौसमी उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते रहते हैं। जैसे-(1) गुज्जर बकरवाल और गद्दी समुदाय के लोग सर्दियों में जब ऊँची पहाड़ियाँ बर्फ से ढक जाती हैं तो ये शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आकर अपने मवेशियों को झाड़ियों में चराते हुए सर्दी बिताते हैं और गर्मियों में उत्तर की तरफ जाकर वहाँ के चरागाहों में समय बिताते हैं। (2) इसी प्रकार गढ़वाल व कुमाऊँ के गुज्जर चरवाहे सर्दियों में भाबर तथा गर्मियों में बुग्याल की तरफ चले जाते हैं। (3) गर्मी एवं सर्दी के चरागाहों के मध्य बारी-बारी से आने-जाने की यह विशेषता भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदायों सहित हिमालय के सभी चरवाहा समुदायों में पायी जाती है। 

प्रश्न 2. 
बंजारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
बंजारे उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते थे। चरवाहों में बंजारा एक जाना पहचाना नाम है। ये लोग बहुत दूर-दूर तक चले जाते थे तथा रास्ते में अनाज और चारे के बदले गाँव वालों को खेती में काम आने वाले जानवर तथा दूसरी वस्तुएँ बेचते थे। ये अपने जानवरों के लिए हमेशा अच्छे चरागाहों की खोज में रहते थे। 

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प्रश्न 3. 
चरागाहों की कमी से क्या समस्याएँ उत्पन्न हुईं? 
उत्तर:

  • चरागाहों की कमी से बचे-खुचे चरागाहों में चरने वाले जानवरों की संख्या बढ़ने लगी। 
  • पहले चरवाहे अपने मवेशियों को साथ लेकर इलाके बदलते रहते थे जिससे पिछले चरागाह पुनः हरे-भरे हो जाते थे किन्तु अब सीमित चरागाहों के बेहिसाब इस्तेमाल से उनकी गुणवत्ता गिरने लगी थी। 
  • चारे की कमी से जानवरों की सेहत तथा संख्या में कमी आने लगी थी। 

प्रश्न 4. 
गज्जर कौन थे? वे अपनी आजीविका कैसे प्राप्त करते थे? 
उत्तर:
गुज्जर-काँगड़ा के गुज्जर शुद्ध चरवाहा कबीले के लोग थे। ये मुख्यतः गाय-भैंस तथा कुछ भेड़-बकरियाँ भी पालते थे। इनकी अनेक शाखाएँ हैं, जैसे-जम्मू-कश्मीर के गुजर-बकरवाल, काँगड़ा के गुज्जर, गढ़वाल और कुमाऊँ के गुज्जर आदि। ये लोग पहाड़ियों में जंगलों के किनारे रहते थे। 

गुज्जर लोग अपनी आजीविका दूध, घी और मवेशियों से मिलने वाली दूसरी चीजें बेच कर चलाते थे। घर के मर्द मवेशियों को चराने ले जाते थे और कई बार हफ्तों तक घर नहीं लौटते थे। इस बीच वे जंगल में अपने रेवड़ के साथ ही रहते थे। औरतें सिर पर टोकरियाँ और कंधे पर हाँडियाँ लटका कर रोज बाजार चली जाती थीं। उनकी हाँडियों में दूध, मक्खन और घी आदि होता था। वे सिर्फ इतनी चीजें ही बाजार में ले जा पाती थीं जितनी घर चलाने के लिए काफी हों। 

प्रश्न 5. 
चरवाहा समाज को किन तीन बातों का विशेष ख्याल रखना पड़ता था? उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
चरवाहा समाज को निम्न तीन बातों का विशेष ख्याल रखना पड़ता था- 

  • उन्हें यह ध्यान रखना पड़ता था कि उनके रेवड़ एक इलाके में कितने दिन तक रह सकते हैं तथा उन्हें कहाँ पानी और चारागाह मिल सकते हैं। 
  • उन्हें एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने का सही समय चुनना पड़ता था तथा साथ ही यह भी देखना होता था कि उन्हें किन इलाकों से गुजरने की छूट मिल पायेगी और किन इलाकों से नहीं? 
  • उन्हें सफर के दौरान रास्ते में पड़ने वाले गाँवों के किसानों से अच्छे सम्बन्ध बनाने पड़ते थे ताकि उनके मवेशी किसानों के खेतों में चर सकें तथा उन्हें उपजाऊ बना सकें। 

प्रश्न 6. 
घुमन्तू समुदायों के बार-बार एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने से पर्यावरण को क्या लाभ हैं? 
उत्तर:
घुमन्तू समुदायों के बार-बार एक जगह से दूसरी जगह आने-जाने से पर्यावरण को निम्नलिखित लाभ हैं- 

  • इससे एक चरागाह जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से बच जाता है तथा उनमें दुबारा हरियाली व जिंदगी लौट आती है। 
  • इससे कृषि भूमि की उर्वरता में भी वृद्धि होती है क्योंकि घुमन्तू समुदाय के मवेशी खेतों में घूम-घूम कर गोबर देते रहते हैं। 

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प्रश्न 7. 
हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय की वार्षिक आवाजाही का वर्णन कीजिये। 
उत्तर:
हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय की वार्षिक आवाजाही का वर्णन निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता- 

  • गद्दी सर्दी-गर्मी के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे। वे सर्दियाँ शिवालिक की श्रृंखलाओं की निचली पहाड़ियों पर बिताते थे तथा झाड़-झंझाड़ वाले शुष्क वनों में अपने पशु चराते थे। 
  • अप्रैल तक, वे उत्तर की ओर आ जाते थे तथा लाहौल तथा स्पीति में गर्मियाँ बिताते थे। जब बर्फ पिघलती थी और दर्रे साफ हो जाते थे तो अनेक गद्दी अपने पशुओं को चराने के लिए फिर से ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में पहुँच जाते थे। सितम्बर तक वे अपनी वापसी की यात्रा आरम्भ कर देते थे। 
  • मार्ग में वे फिर से लाहौल तथा स्पीति के गाँवों में रुकते, गर्मी की फसल काटते तथा सर्दियों की फसल बोकर आगे बढ़ जाते थे। 

प्रश्न 8. 
धंगर चरवाहा समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ लिखिये। 
उत्तर:
धंगर चरवाहा समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • धंगर महाराष्ट्र का एक प्रमुख चरवाहा समुदाय है। 
  • यह समुदाय बरसात के समय महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहता है। यहाँ वर्षा बहुत कम होती है। 
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में इस समुदाय की जनसंख्या लगभग 4,67,000 थी। 

प्रश्न 9. 
महाराष्ट्र के धंगर चरवाहा समुदाय की वार्षिक आवाजाही के प्रमुख बिन्दु बताइये। 
उत्तर:
धंगर महाराष्ट्र का एक महत्त्वपूर्ण चरवाहा समुदाय है। इसकी वार्षिक आवाजाही के प्रमुख बिन्दु अग्र प्रकार हैं- 

  • धंगर समुदाय मानसून के समय महाराष्ट्र के अर्ध-शुष्क मध्यवर्ती पठार में रहते थे। 
  • कम वर्षा के कारण यहाँ केवल शुष्क फसलें ही उगाई जा सकती थीं। मानसून में, यह क्षेत्र धंगर समुदायों के लिए एक विस्तृत चरागाह बन जाते थे।
  • अक्टूबर के आसपास धंगर अपनी शुष्क फसलों को काटते थे। इस मौसम में चरागाहों की कमी हो जाती थी इसलिए धंगरों को पश्चिम की ओर जाना पड़ता था। 
  • करीब महीने भर चलने के बाद वे कोंकण पहुँच जाया करते थे। 
  • मानसून के आने पर वे कोंकण से वापस चल देते थे। 

प्रश्न 10. 
कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश के गोल्ला, कुरुमा तथा कुरुबा चरवाहा समुदायों की जीवन शैली की विशेषताएँ बतलाइये। 
उत्तर:
कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश के गोल्ला, कुरुमा तथा कुरुबा चरवाहां समुदायों की जीवन शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं- 

  • गोल्ला समुदाय के लोग गाय-भैंस पालते थे जबकि कुरुमा और कुरुबा समुदाय भेड़-बकरियाँ पालते थे। 
  • ये लोग जंगलों और छोटे-छोटे खेतों के आसपास रहते थे। 
  • ये अपने जानवरों की देखभाल के साथ-साथ कई दूसरे काम-धंधे भी करते थे। 
  • ये लोग बरसात और सूखे मौसम के हिसाब से अपनी जगह बदलते थे। 

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प्रश्न 11. 
राजस्थान में राइका समुदाय पर एक लेख लिखो। 
अथवा 
राजस्थान के राइका समुदाय के बारे में आप क्या जानते हैं? 
अथवा 
राजस्थान के राइका समुदाय पर एक टिप्पणी लिखें। 
उत्तर:
राइका समुदाय राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में रहता है। राइका खेती के साथ-साथ चरवाही का भी काम करते थे। राइकाओं का एक समुदाय ऊँट तथा दूसरा समुदाय भेड़-बकरियां पालता था। बरसात में तो बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर और बीकानेर के राइका अपने पैतृक गाँवों में ही रहते थे क्योंकि इस दौरान उन्हें वहीं चारा मिल जाता था। पर, अक्टूबर आते-आते ये चरागाह सूखने लगते थे। फलतः ये लोग नए चरागाहों की तलाश में दूसरे इलाकों की तरफ निकल जाते थे और अगली बरसात में ही वापस लौटते थे। 

प्रश्न 12. 
चर्चा कीजिए कि औपनिवेशिक सरकार ने भारत में परती भूमि नियमावली क्यों लागू की? 
अथवा 
अंग्रेजी सरकार चरागाह की समस्त जमीन को खेती की जमीन में क्यों बदलना चाहती थी? 
अथवा 
अंग्रेजों ने बेकार भूमि नियम क्यों लागू किये? 
उत्तर:
अंग्रेजी सरकार चरागाहों की समस्त जमीन को खेती की जमीन में तब्दील कर देना चाहती थी। इसके निम्न कारण थे- 

  • जमीन से मिलने वाला लगान उसकी आमदनी का एक बड़ा स्रोत था। खेती का क्षेत्रफल बढ़ाकर सरकार अपनी आय में और बढ़ोतरी करना चाहती थी। 
  • इसके अलावा इससे जूट (पटसन), कपास, गेहूँ और अन्य खेतिहर चीजों के उत्पादन में भी इजाफा हो जाता, जिनकी इंग्लैंड में बहुत ज्यादा जरूरत रहती थी। 
  • अंग्रेज अफसर बिना खेती की जमीन, जिससे न तो लगान मिलता था और न ही उपज, को 'बेकार' मानते थे। अतः वे उसे खेती के लायक बनाना चाहते थे। 

प्रश्न 13. 
चरवाहों ने बदलते नियमों का सामना किस प्रकार किया? 
उत्तर:
चरवाहों ने बदलते नियमों का सामना निम्न प्रकार किया- 

  • कुछ चरवाहों ने तो अपने जानवरों की संख्या ही कम कर दी क्योंकि अब अधिक जानवरों के चराने के लिए पहले की तरह बड़े-बड़े और बहुत सारे चरागाह नहीं बचे थे। 
  • जब पुराने चरागाहों का इस्तेमाल करना मुश्किल हो गया तो कुछ चरवाहों ने नए-नए चरागाह ढूँढ़ लिए। उदाहरण के लिए 1947 के बाद राइकाओं ने सिंधु नदी के किनार के चरागाहों के स्थान पर हरियाणा के खेतों में अपने . मवेशियों को ले जाना शुरू कर दिया। 
  • समय गुजरने के साथ कुछ धनी चरवाहे जमीन खरीद कर एक जगह बस कर रहने लगे तथा खेती या व्यापार करने लगे। 
  • कुछ चरवाहों ने सूदखोरों के चक्कर में अपनी मवेशी खो दी और वे अब खेतों या कस्बों में मजदूरी करने लगे। 

प्रश्न 14. 
ब्रिटिश अधिकारियों के घुमन्तू लोगों के बारे में क्या विचार थे? 
उत्तर:
ब्रिटिश अधिकारियों के घुमन्तू लोगों के बारे में विचार-

  • ब्रिटिश अधिकारी घुमंतू किस्म के लोगों को शक की नजर से देखते थे। 
  • वे गाँव-गाँव जाकर अपनी चीजें बेचने वाले कारीगरों व व्यापारियों और अपने रेवड़ के लिए हर मौसम में अपनी रिहाइश बदल लेने वाले चरवाहों पर यकीन नहीं कर पाते थे। 
  • ब्रिटिश अधिकारी घुमंतुओं को अपराधी मानते थे अतः 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) पारित किया। 

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प्रश्न 15. 
1871 के अपराधी जनजाति अधिनियम के दो प्रावधान लिखें। 
उत्तर:
सन् 1871 में औपनिवेशिक सरकार ने अपराधी जनजाति अधिनियम पारित किया। 
अपराधी जनजाति अधिनियम के प्रावधान-

  • इस कानून के तहत दस्तकारों, व्यापारियों और चरवाहों के बहुत सारे समुदायों को अपराधी समुदायों की सूची में रख दिया गया। उन्हें कुदरती और जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया गया। 
  • इस कानून के अनुसार ऐसे सभी समुदायों को कुछ खास अधिसूचित गाँवों/बस्तियों में बस जाने का हुक्म सुना दिया गया। उनकी बिना परमिट आवाजाही पर रोक लगा दी गई। ग्रामीण पुलिस उन पर सदा नजर रखने लगी। 

प्रश्न 16. 
अफ्रीका के चरवाहा समुदायों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
अफ्रीका के चरवाहा समुदायों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है-

  • अफ्रीका में दुनिया की आधी से ज्यादा चरवाहा आबादी रहती है। 
  • आज भी अफ्रीका के लगभग सवा दो करोड़ लोग रोजी-रोटी के लिए किसी न किसी तरह की चरवाही गतिविधियों पर ही आश्रित हैं। 
  • बेदुईन्स, बरबेर्स, मासाई, सोमाली, बोरान और तुर्काना अफ्रीकी चरवाहा समुदाय के जाने-माने समुदाय हैं। 
  • इनमें से ज्यादातर अब अर्द्ध-शुष्क घास के मैदानों या सूखे रेगिस्तानों में रहते हैं जहाँ वर्षा आधारित खेती करना बहुत मुश्किल है। 
  • यहाँ के चरवाहे गाय-बैल, ऊँट, बकरी, भेड़ व गधे पालते हैं और दूध, माँस, पशुओं की खाल व ऊन आदि बेचते हैं। कुछ चरवाहे व्यापार तथा परिवहन का काम तथा खेती भी करते हैं। 

प्रश्न 17. 
अफ्रीका में चरवाहों पर लगाये गये विभिन्न प्रतिबन्धों का वर्णन कीजिये। 
अथवा 
औपनिवेशिक सरकार द्वारा अफ्रीकी चरवाहों पर क्या प्रतिबंध लगाए गए? 
उत्तर:
अफ्रीका में चरवाहों पर निम्न प्रतिबन्ध लगाये गये-

  • चरवाहों को एक सीमित एवं विशेष आरक्षित इलाकों में ही रहने को बाध्य किया गया। 
  • केवल विशेष परमिट लेकर ही चरवाहे जानवरों सहित बाहर जा सकते थे। लेकिन परमिट प्राप्त करना एक कठिन काम था तथा नियमों के उल्लंघन पर कड़ी सजा दी जाती थी। 
  • चरवाहों को गोरों के इलाकों में पड़ने वाले बाजारों में दाखिल होने पर प्रतिबन्ध लगाया गया। बहत सारे इलाकों में तो वे कई तरह के व्यापार भी नहीं कर सकते थे। 

प्रश्न 18. 
औपनिवेशिक प्रतिबन्धों के बाद चरवाहों के जीवन पर सूखे का क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:
प्रतिबन्धों से पहले सूखा पड़ने पर चरवाहे अपने जानवरों को अन्यत्र हरे-भरे इलाके में ले जाते थे। औपनिवेशिक प्रतिबन्धों के बाद वे ऐसा नहीं कर सकते थे। अतः उन पर निम्न प्रभाव पड़े-

  • धुमंत चरवाहों की गतिविधियों पर प्रतिबंधों के कारण, वे एक स्थायी क्षेत्र तक ही सीमित रहे। वे बेहतर चरागाहों से वंचित रहे तथा उन्हें उन अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा जो सूखे से प्रभावित रहते थे। 
  • अब ये लोग संकट के समय भी उन स्थानों तक नहीं जा सकते थे जहाँ चरागाह उपलब्ध थे। इसी कारण सूखे के सालों में चारे की कमी हो गई और भूख तथा बीमारी के कारण बड़ी संख्या में मासाई चरवाहों के मवेशी मर गए। 
  • जैसे-जैसे चरने की जगहें सिकुड़ती गईं, सूखे के दुष्परिणाम भयानक रूप लेते गए। बार-बार आने वाले बुरे सालों की वजह से चरवाहों के जानवरों की संख्या में लगातार गिरावट आती गई। 

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प्रश्न 19. 
पूर्व-औपनिवेशिक काल में मासाई समाज की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें। 
उत्तर:
पूर्व औपनिवेशिक काल में मासाई समाज की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार थीं-

  • पूर्व औपनिवेशिक काल में मासाई समाज दो श्रेणियों में विभाजित था-(i) वरिष्ठ जन तथा (ii) योद्धा। 
  • वरिष्ठ जन शासक वर्ग था, जो समुदाय के कार्यों का निर्णय करता तथा झगड़ों को निपटाने के लिए नियतकालिक सभाओं में मिलता था। 
  • योद्धा युवा लोग थे, जो मुख्यतः कबीले की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी थे। वे समुदाय तथा पशुओं की हमले से रक्षा करते थे और दूसरे कबीलों के मवेशी छीन कर लाते थे। 
  • चरवाहा समुदाय में हमले का अर्थ था-पशुओं का चुराना या छीन लेना। जहाँ पशु ही सम्पत्ति होते थे, इन हमलों के द्वारा ही विभिन्न चरवाहा वर्गों की शक्ति का अनुमान लगता था। 
  • युवाओं को योद्धा वर्ग का हिस्सा तभी माना जाता था जब वे दूसरे समूह के मवेशियों को छीन कर तथा युद्ध में बहादुरी का प्रदर्शन कर अपनी मर्दानगी साबित कर देते थे। 

प्रश्न 20. 
चरवाहे बदलते वक्त के हिसाब से खुद को ढालते हैं। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
चरवाहे बदलते वक्त के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं, यह निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-

  • चरवाहे आवश्यकतानुसार अपनी सालाना आवाजाही का रास्ता बदल लेते हैं। 
  • आवश्यकतानुसार वे अपने जानवरों की संख्या कम कर लेते हैं। 
  • नये इलाकों में दाखिल होने के लिए हरसंभव लेन-देन करते हैं। 
  • राहत, रियायत एवं मदद पाने के लिए सरकार पर राजनीतिक दबाव डालते हैं। 
  • वे उन इलाकों में अपने अधिकारों को बचाये रखने के लिए अपना संघर्ष जारी रखते हैं जहाँ से उन्हें खदेडने की कोशिश की जाती है। 
  • वे जंगलों के रख-रखाव तथा प्रबन्धन में अपना हिस्सा माँगते हैं। 

प्रश्न 21. 
अफ्रीका में गरीब चरवाहों और मुखियाओं के जीवन में क्या भिन्नता थी? 
उत्तर:
मुखियाओं का जीवन-

  • औपनिवेशिक सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मुखियाओं के पास नियमित आमदनी थी जिससे वे जानवर, साजो-सामान और जमीन खरीद सकते थे। 
  • वे अपने गरीब पड़ोसियों को लगान चुकाने के लिए कर्ज पर पैसा देते थे। 
  • उनमें से ज्यादातर बाद में शहरों में जाकर बस गए और व्यापार करने लगे। उनके बीवी-बच्चे गाँव में ही रहकर जानवरों की देखभाल करते थे। इस तरह उन्हें चरवाही और गैर-चरवाही दोनों तरह की आय होती थी। 

गरीब चरवाहों का जीवन-

  • जो चरवाहे सिर्फ अपने जानवरों के सहारे जिंदगी बसर करते थे, उनके पास बुरे वक्त का सामना करने के लिए साधन नहीं होते थे।
  • यद्ध और अकाल के दौरान उनका सब कछ खत्म हो जाता था, तब उन्हें काम की तलाश में आस-पास के शहरों में शरण लेनी पड़ती थी और कोयला जलाने, सड़क या भवन निर्माण कार्य में मजदूरी करनी पड़ती थी। 

दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
भारत के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले खानाबदोश चरवाहों के बारे में संक्षेप में लिखिए। 
उत्त:
भारत के विभिन्न भागों-पहाड़ों, पठारों, मैदानों तथा रेगिस्तान में घुमन्तू चरवाहे पाये जाते थे। यथा- 
(1) पहाड़ों में-(i) जम्मू-कश्मीर के गुज्जर बकरवाल बकरियों और भेड़ों के रेवड़ रखते थे। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग भटकते रहते थे। जाड़ों में ये ऊँची पहाड़ियों से शिवालिक की नीची पहाड़ियों में आ जाते थे और गर्मियों में पुनः ऊँची पहाड़ियों पर चले जाते थे। 
(ii) हिमाचल के गद्दी समुदाय के लोग भी गुज्जर बकरवालों की तरह गर्मी व सर्दियों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते-जाते रहते थे। 
(iii) गढ़वाल और कुमाऊँ के गुज्जर चरवाहे सर्दियों में भाबर के सूखे जंगलों की तरफ तथा गर्मियों में ऊपरी घास के मैदानों—बुग्याल-की तरफ चले जाते थे। 
(iv) अन्य पहाड़ी घुमन्तू चरवाहे, जैसे- भोटिया, शेरपा और किन्नौरी समुदाय के लोग भी गर्मी-सर्दी के मौसम के अनुसार चारागाहों की तलाश में क्रमशः ऊँची पहाड़ियों व निचली पहाड़ियों में आते-जाते रहते हैं। 

(2) पठारों में-(i) धंगर महाराष्ट्र का एक जाना-माना चरवाहा समुदाय है। इनमें कुछ भेड़ें तथा कुछ भैंसे पालते थे। ये बरसात के दिनों में महाराष्ट्र के मध्य पठारों में रहते थे क्योंकि यह क्षेत्र मानसन में जानवरों के लिए एक विशाल चरागाह बन जाता था। अक्टूबर से चरागाहों की तलाश में पश्चिम की तरफ चल पड़ते थे और अपने रेवड़ों के साथ कोंकण के क्षेत्र में रहते हैं। बरसात के दिनों में पुन: मध्य महाराष्ट्र चले जाते थे। 

गोल्ला, कुरुमा और कोरबा समुदाय कर्नाटक में रहते थे जो क्रमशः गाय-भैंस और भेड़-बकरियाँ पालते थे और हाथ के कम्बल बेचते थे। बरसात के दिनों में ये यहीं रहते थे, लेकिन सूखे महीनों में तटीय इलाकों की तरफ चले जाते थे तथा जंगलों व छोटे-छोटे खेतों के आस-पास रहते थे। 

मैदानों में-उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान और मध्यप्रदेश के मैदानी इलाकों में बंजारे चरवाहे पाये जाते थे, जो अपने जानवरों के लिए अच्छे चारे की खोज में दूर-दूर तक चले जाते थे। रास्ते में अनाज व चारे के बदले ये खेत जोतने वाले बैल व दूसरी चीजें बेचते थे। 

मरुस्थल में-राजस्थान के मरुस्थल में राइका नामक चरवाहा समुदाय रहता था जो मानसून के दौरान बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर के पैतृक गाँवों में रहते थे और अक्टूबर के बाद ये अन्य चरागाहों की तलाश में निकल जाते थे और मानसून में लौटते थे। ये प्रायः भेड़-बकरियाँ व ऊँट पालते थे। 

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प्रश्न 2. 
जम्मू-कश्मीर के गुजर-बकरवाल समुदाय पर एक टिप्पणी लिखिये। 
उत्तर:
गुजर बकरवाल समुदाय एक घुमंतू चरवाहा समुदाय है। इस समुदाय के लोग भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े रेवड़ रखते हैं। इस समुदाय के अधिकतर लोग अपने मवेशियों के लिए चरागाहों की तलाश में भटकते-भटकते उन्नीसवीं सदी में जम्मू-कश्मीर आए थे। समय बीतने के साथ-साथ वे यहीं के होकर रह गए। 

ये लोग सर्दी-गर्मी के हिसाब से अलग-अलग चरागाहों में जाते हैं। जाड़ों में जब ऊँची पहाड़ियाँ बर्फ से ढक जाती तो वे शिवालिक की निचली पहाड़ियों में आकर डेरा डाल लेते। जाड़ों में निचले इलाके में मिलने वाली सूखी झाड़ियाँ ही उनके जानवरों के लिए चारा बन जातीं । अप्रैल के अंत तक गर्मियों के चरागाहों के लिए वे उत्तर दिशा में जाने लगते। 

इस सफर में कई परिवार काफिला बनाकर साथ-साथ चलते थे। वे पीर पंजाल के दरों को पार करते हुए कश्मीर की घाटी में पहुँच जाते। जैसे ही गर्मियाँ शुरू होतीं, जमी हुई बर्फ की मोटी चादर पिघलने लगती और चारों तरफ हरियाली छा जाती। इन दिनों में यहाँ उगने वाली तरह-तरह की घास से मवेशियों का पेट भी भर जाता था और उन्हें सेहतमंद खुराक भी मिल जाती थी। 

सितंबर के अंत में बकरवाल एक बार फिर अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लगते। इस बार वे वापस अपने जाड़ों वाले ठिकाने की तरफ नीचे की ओर चले जाते। जब पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ जमने लगती तो वे निचली पहाड़ियों की शरण में चले जाते।

प्रश्न 3. 
उपनिवेशी शासन काल के अन्तर्गत चरवाहों के जीवन में क्या परिवर्तन आये? 
उत्तर:
उपनिवेशी शासन काल के अन्तर्गत चरवाहों के जीवन में निम्न परिवर्तन आये- 

  • औपनिवेशिक सरकार ने चरागाहों की भूमि को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित कर दिया। इसका प्रभाव यह हुआ कि चरागाहों की कमी हो गई। चरागाहों का इलाका सिकुड़ गया। 
  • वन अधिनियम पारित करके वनों को 'आरक्षित' एवं 'संरक्षित वन घोषित कर दिया गया। इससे चरवाहों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई। अब उन्हें नये चरागाह तलाशने के लिए मजबूर होना पड़ा। सीमित चरागाहों का इस्तेमाल अधिकाधिक बढ़ गया जिससे उनकी गुणवत्ता में कमी आयी। 
  • सरकार ने घुमंतू चरवाहों को नियंत्रित करने के लिए 'अपराधी जनजाति अधिनियम' बनाकर कई समुदायों को अपराधी जाति घोषित करके कई इलाकों में उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया जिससे इनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। 
  • सरकार ने अपनी राजस्व वृद्धि करने के लिए 19वीं सदी के मध्य में 'चराई टैक्स' लगा दिया, जिससे चरवाहों की स्थिति दयनीय होने लगी।  
  • इन परिस्थितियों में अनेक चरवाहे सूदखोरों के चक्कर में फँस गये तथा कर्ज एवं ब्याज न चुकाने पर उनके हाथ से उनकी मवेशी चली गई और वे मजदूर बन कर रह गये। 

प्रश्न 4. 
औपनिवेशिक शासन के दौरान आये बदलावों का चरवाहों ने किस प्रकार सामना किया ?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान आये बदलावों का चरवाहों ने निम्न प्रकार से सामना किया- 
(1) पशुओं की संख्या में कमी-जब चरागाहों पर अधिकार कर उन्हें खेतों में बदल दिया गया तो अनेक घुमंतू चरवाहों ने अपने झुंडों में पशुओं की संख्या कम कर दी। 

(2) नये चरागाह-चरागाहों की कमी ने अनेक घुमंतू चरवाहों को नए चरागाह खोजने के लिए मजबूर किया। उदाहरण के लिए, 1947 में भारत के विभाजन के बाद, ऊँटों तथा भेड़ों के मालिक राइका, सिंध में नहीं जा सकते थे तथा न ही सिन्धु नदी के तट पर अपने ऊँटों को चरा सकते थे, जैसा कि वे पहले किया करते थे। भारत तथा पाकिस्तान के मध्य नई राजनैतिक सीमाओं ने उनकी गतिविधियों पर रोक लगा दी। उन्हें अब नए स्थान खोजने पड़े। हाल के वर्षों में वे हरियाणा की ओर जाने लगे हैं, जहाँ फसल काटने के बाद, भेड़ें उनके खेतों में चर सकती हैं। यही समय होता है, जब खेतों को खाद की जरूरत होती है तथा पशु उन्हें खाद प्रदान करते हैं। 

(3) नये व्यवसाय-समय गुजरने के साथ कुछ सम्पन्न चरवाहों ने जमीन खरीदकर घुमंतू चरवाहों के जीवन को त्याग कर स्थायी जीवन बिताना आरम्भ किया। कुछ तो जमीन पर कृषि करने लगे तथा अन्यों ने विस्तृत व्यापार को अपनाया। दूसरी ओर गरीब चरवाहे, साहूकारों से ऋण लेकर जीवन व्यतीत करने लगे। समय के साथ-साथ उन्होंने अपने मवेशी खो दिए तथा मजदूर बन गए तथा खेतों में अथवा छोटे शहरों में काम करने लगे। 

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प्रश्न 5. 
औपनिवेशिक काल में अंग्रेज सरकार द्वारा लिये गये मासाइयों के मामलों की देखभाल सम्बन्धी फैसलों का उनके समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में अंग्रेज सरकार द्वारा लिये गये मासाइयों सम्बन्धी फैसलों का उनके समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा- 
(1) परम्परागत सत्ता का पतन-अंग्रेजों के फैसलों के बाद मासाइयों की सामाजिक व्यवस्था में बहत परिवर्तन आया। पहले मासाई समाज वरिष्ठ जनों तथा योद्धाओं में बंटा हुआ था। अंग्रेजों ने कई मासाई उपसमूहों के मुखिया तय कर दिए और अपने-अपने कबीले के सारे मामलों की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी। इसके बाद उन्होंने हमलों और लड़ाइयों पर पाबंदी लगा दी। इस तरह वरिष्ठ जनों और योद्धाओं, दोनों की परंपरागत सत्ता बहुत कमजोर हो गई। 

(2) अमीर वर्ग-औपनिवेशिक सरकार द्वारा नियुक्त किए गए मुखिया नियमित आमदनी के कारण धन इकट्ठा करने लगे, जिससे वे जानवर, साजो-सामान और जमीन खरीद सकते थे। वे अपने गरीब पड़ोसियों को लगान चुकाने के लिए कर्ज पर पैसा देते थे। उनमें से ज्यादातर बाद में शहरों में जाकर बस गए और व्यापार करने लगे। उनके बीवी-बच्चे गाँव में ही रहकर जानवरों की देखभाल करते थे। उन्हें चरवाही और गैर-चरवाही दोनों तरह की आमदनी होती थी। अगर उनके जानघर किसी वजह से घट जाएँ तो वे और जानवर खरीद सकते थे। 

(3) गरीब वर्ग-केवल अपने जानवरों के सहारे जिंदगी बसर करने वाले चरवाहों की स्थिति खराब थी। उनके पास बुरे वक्त का सामना करने के लिए अक्सर साधन नहीं होते थे। युद्ध और अकाल के दौरान उनका सब कुछ खत्म हो जाता था। तब उन्हें काम की तलाश में आसपास के शहरों की शरण लेनी पड़ती थी। कोई कच्चा कोयला जलाने का काम करने लगता था तो कोई कुछ और करता था। जिनकी तकदीर ज्यादा अच्छी थी उन्हें सड़क या भवन निर्माण कार्यों में काम मिल जाता था। 

इस तरह मासाई समाज में दो स्तरों पर बदलाव आए। पहला, वरिष्ठजनों और योद्धाओं के बीच उम्र पर आधारित परंपरागत फ़र्क बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया। दूसरा, अमीर और गरीब चरवाहों के बीच नया भेदभाव पैदा हुआ। 

admin_rbse
Last Updated on May 24, 2022, 8:58 p.m.
Published May 24, 2022