RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

Rajasthan Board RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

बहुविकल्पीय प्रश्न 

प्रश्न 1. 
औपनिवेशिक काल में भारत में वन विनाश का मुख्य कारण है- 
(अ) कृषि का विस्तार 
(ब) रेलों का विस्तार 
(स) बागानों का विकास 
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

प्रश्न 2. 
सन् 1890 तक भारत में कितने किमी. लम्बी लाइनें बिछायी गई थीं? 
(अ) 25,500 किमी. 
(ब) 35,500 किमी. 
(स) 7,65,000 किमी. 
(द) 1000 किमी. 
उत्तर:
(अ) 25,500 किमी.

प्रश्न 3. 
खाल से चमड़ा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है- 
(अ) तेंदू पत्ते 
(ब) टैनिन 
(स) गोंद 
(द) शहद 
उत्तर:
(ब) टैनिन 

प्रश्न 4. 
भारतीय वन सेवा की स्थापना कब की गयी? 
(अ) 1864 
(ब) 1865 
(स) 1878 
(द) 1927 
उत्तर:
(अ) 1864 

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प्रश्न 5. 
1878 के वन अधिनियम में सबसे अच्छे जंगलों को कहा गया- 
(अ) सुरक्षित वन 
(ब) ग्रामीण वन 
(स) आरक्षित वन 
(द) इनमें से कोई नहीं 
उत्तर:
(स) आरक्षित वन

प्रश्न 6. 
जावा में वन सम्बन्धी 'भस्म कर भागो नीति' किन लोगों ने अपनायी थी? 
(अ) जापानियों ने 
(ब) डचों ने 
(स) पुर्तगालियों ने 
(द) अंग्रेजों ने 
उत्तर:
(ब) डचों ने 

प्रश्न 7. 
औद्योगीकरण के दौर में सन् 1700 से 1995 के बीच दुनिया के कुल क्षेत्रफल का कितने प्रतिशत भाग जंगल साफ कर दिया गया? 
(अ) 9.3 प्रतिशत 
(ब) 5.3 प्रतिशत 
(स) 3.9 प्रतिशत 
(द) 7 प्रतिशत 
उत्तर:
(अ) 9.3 प्रतिशत 

प्रश्न 8. 
सन् 1600 में हिन्दुस्तान के कुल भूभाग के कितने हिस्से पर खेती होती थी? 
(अ) पाँचवें हिस्से पर 
(ब) छठे हिस्से पर 
(स) चौथे हिस्से पर
(द) आठवें हिस्से पर 
उत्तर:
(ब) छठे हिस्से पर 

प्रश्न 9. 
वर्तमान में हिन्दुस्तान के कुल भू-भाग के कितने हिस्से पर खेती हो रही है? 
(अ) पाँचवें हिस्से पर 
(ब) छठे हिस्से पर 
(स) आधे हिस्से पर 
(द) तिहाई हिस्से पर 
उत्तर:
(स) आधे हिस्से पर 

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प्रश्न 10. 
हिन्दुस्तान में 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में बढ़त हुई- 
(अ) 11 लाख हैक्टेयर की 
(ब) 27 लाख हैक्टेयर की 
(स) 47 लाख हैक्टेयर की 
(द) 67 लाख हैक्टेयर की 
उत्तर:
(द) 67 लाख हैक्टेयर की 

प्रश्न 11. 
भारतीय वन अधिनियम को लागू किया गया- 
(अ) 1765 में 
(ब) 1865 में 
(स) 1820 में 
(द) 1965 में 
उत्तर:
(ब) 1865 में 

प्रश्न 12. 
दक्षिण-पूर्व एशिया में झूम खेती का नाम है- 
(अ) लादिंग 
(ब) मिलपा 
(स) तावी 
(द) चेना। 
उत्तर:
(अ) लादिंग 

प्रश्न 13. 
ब्रिटिश काल में झारखंड के संथाल और उरांव व छत्तीसगढ़ के गौंड आदिवासियों की भर्ती की गई थी- 
(अ) फैक्ट्रियों में 
(ब) खदानों में 
(स) चाय बागानों में 
(द) सरकारी नौकरी में 
उत्तर:
(स) चाय बागानों में 

प्रश्न 14. 
छोटा नागपुर में अपने ऊपर थोपे गए वन अधिनियमों के खिलाफ बगावत की थी- 
(अ) बिरसा मुंडा ने 
(ब) सीधू ने 
(स) कानू ने 
(द) सीताराम राजू ने 
उत्तर:
(अ) बिरसा मुंडा ने 

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प्रश्न 15. 
वन आरक्षण के विरुद्ध बस्तर में हुए आंदोलन का नेतृत्व किया-
(अ) बिरसा मुंडा ने 
(ब) सीधू ने 
(स) गुंडा धूर ने 
(द) कानू ने 
उत्तर:
(स) गुंडा धूर ने 

प्रश्न 16. 
एक डच उपनिवेश था- 
(अ) भारत 
(ब) श्रीलंका 
(स) इण्डोनेशिया 
(द) चीन 
उत्तर:
(स) इण्डोनेशिया 

प्रश्न 17.
जावा में कलांग समुदाय के लोग थे- 
(अ) कुशल लकड़हारे तथा घुमन्तू किसान 
(ब) कुशल जादूगर 
(स) कुशल योद्धा 
(द) कुशल धनुर्धर 
उत्तर:
(अ) कुशल लकड़हारे तथा घुमन्तू किसान 

प्रश्न 18. 
1882 में जावा से स्लीपरों का निर्यात किया गया- 
(अ) 1,80,000 
(ब) 2,80,000 
(स) 80,000 
(द) 5,80,000 
उत्तर:
(ब) 2,80,000 

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये-

1. रेल की पटरियों को जोड़े रखने के लिए .............. के रूप में लकड़ी की भारी जरूरत थी। 
2. चैंडिस ने ............... में भारतीय वन सेवा की स्थापना की। 
3. घुमन्तू खेती को श्रीलंका में ............... के नाम से जाना जाता है। 
4. जावा में वन प्रबंधन .............. के अधीन था। 
5. वर्तमान में जावा ........... "उत्पादक द्वीप के लिए प्रसिद्ध है। 
उत्तर:
1. स्लीपरों 
2. 1864 
3. चेना 
4. डचों 
5. चावल 

निम्न वाक्यों में से सत्य/असत्य कथन छाँटिये- 

1. इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में हुई। 
2. दक्षिण पूर्व एशिया में धुमन्तू खेती को मिलपा कहा जाता था। 
3. जात्रा पर जापानियों के कब्जे से ठीक पहले डचों ने 'भस्म कर भागो' नीति अपनायी। 
4. बिरसा मुंडा नेथानार गाँव का एक आंदोलनकारी था। 
5. जावा के कलंग कुशल वन काटने वाले और घूमन्तू खेती करने वाले थे। 
उत्तर:
1. सत्य 
2. असत्य 
3. सत्य 
4. असत्य 
5. सत्य 

निम्न को सुमेलित कीजिए-

(अ)

(ब) 

1. सीधू और कानू 

जावा

2. बिरसा मुंडा 

संथाला परगना 

3. अल्लूरी सीताराम राजू 

छोटा नागपुर 

4. गुंडा धूर 

आंध्रप्रदेश 

5. कलंग  

नेथानार गाँव 

उत्तर:

(अ)

(ब) 

1. सीधू और कानू 

संथाला परगना

2. बिरसा मुंडा 

छोटा नागपुर

3. अल्लूरी सीताराम राजू 

आंध्रप्रदेश

4. गुंडा धूर 

नेथानार गाँव

5. कलंग  

जावा

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
वन विनाश किसे कहते हैं? 
उत्तर:
वनों के लुप्त होने को सामान्यतः वन विनाश कहते हैं। 

प्रश्न 2. 
औपनिवेशिक काल में वन विनाश के मुख्य कारण बतलाइये। 
उत्तर:

  • जमीन की बेहतरी करना 
  • रेल की पटरियों के स्लीपर हेतु लकड़ी की आवश्यकता 
  • बागानों का विकास।

प्रश्न 3. 
खेती के विस्तार को क्या माना जाता है? इससे क्या नुकसान है? 
उत्तर:
खेती के विस्तार को विकास का सूचक माना जाता है। इससे वन क्षेत्र में कमी आती है। 

प्रश्न 4. 
स्लीपर किसे कहते हैं? 
उत्तर:
रेल की पटरी के आर-पार लगे लकड़ी के तख्ने जो पटरियों को उनकी जगह पर रोके रखते हैं, स्लीपर कहलाते हैं। 

प्रश्न 5. 
भारत का पहला वन महानिदेशक कौन था? 
उत्तर:
जर्मन विशेषज्ञ डायट्रिच बॅडिस। 

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प्रश्न 6. 
हम विकास का सूचक किसे मानते हैं? 
उत्तर:
खेती के विस्तार को। 

प्रश्न 7. 
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना कब और कहां की गई? 
उत्तर:
इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना 1906 में देहरादून में की गई। 

प्रश्न 8. 
प्रथम भारतीय वन अधिनियम कब लागू हुआ? 
उत्तर:
1865 में। 

प्रश्न 9. 
भारतीय वन अधिनियम 1865 को कब संशोधित किया गया? 
उत्तर:
भारतीय वन अधिनियम 1865 को दो बार पहले 1878 में और फिर 1927 में संशोधित किया गया। 

प्रश्न 10. 
वनों को कितनी श्रेणियों में बाँटा गया? 
अथवा 
1878 के अधिनियम में जंगलों को कितनी श्रेणियों में बाँटा गया? 
उत्तर:
1878 के अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बांटा गया-(1) आरक्षित, (2) सुरक्षित, (3) ग्रामीण। 

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प्रश्न 11. 
आरक्षित वन से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
सबसे अच्छे जंगलों को आरक्षित वन कहा जाता है। गाँव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते हैं। 

प्रश्न 12. 
वन-विभाग द्वारा सागौन और साल वृक्षों को क्यों प्रोत्साहन दिया गया? 
उत्तर:
वन-विभाग ने जहाजों और रेलवे के लिए इमारती लकड़ी मुहैया कराने के लिए सागौन और साल वृक्षों को प्रोत्साहन दिया। 

प्रश्न 13. 
वैज्ञानिक वानिकी से क्या आशय है? 
उत्तर:
वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई का तरीका जिसमें पुराने पेड़ काटकर उनकी जगह नये पेड़ लगाये जाते हैं, वैज्ञानिक वानिकी कहलाता है। 

प्रश्न 14. 
भारत में घुमंतू खेती को किन नामों से पुकारा जाता है? 
उत्तर:
भारत में घुमंतू खेती को धया, पेंदा, बेवर, नेवड़, झूम, पोडू, खंदाद और कुमरी नामों से पुकारा जाता है। 

प्रश्न 15. 
औपनिवेशिक शासन काल के दौरान भारत में शिकार की आजादी किसे थी? 
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन काल के दौरान भारत में राजाओं, नवाबों तथा अंग्रेज अफसरों को शिकार की आजादी थी। 

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प्रश्न 16. 
भारत में वन्य समुदायों द्वारा किये गये विद्रोहों के किन्हीं तीन नायकों तथा सम्बन्धित क्षेत्रों के नाम लिखिये। 
उत्तर:

नायक

क्षेत्र

1. सीधू

संथाल परगना 

2. बिरसा मुंडा 

छोटा नागपुर

3. अल्लूरी सीताराम राजू

आंध्रप्रदेश। 

प्रश्न 17. 
घुमंतू खेती को श्रीलंका में क्या कहते हैं? 
उत्तर:
घुमंतू खेती को श्रीलंका में 'चेना' कहते हैं। 

प्रश्न 18. 
बस्तर का विद्रोह कब हुआ? 
उत्तर:
सन् 1910 में। 

प्रश्न 19. 
बस्तर कहाँ स्थित है? 
उत्तर:
बस्तर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित है। 

प्रश्न 20. 
कलांग कौन थे? 
अथवा 
जावा के कलांग समुदाय की प्रमुख विशेषता बताइये। 
उत्तर:
जावा में कलांग समुदाय के लोग कुशल लकड़हारे तथा घुमंतू किसान थे। 

प्रश्न 21. 
जावा पर जापानियों के कब्जे से ठीक पहले डचों ने कौनसी नीति अपनाई? 
उत्तर:
भस्म कर भागो नीति (Scorched Earth Policy)। 

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लघूत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
'देवसारी' अथवा 'दांड' किसे कहते हैं? 
उत्तर:
बस्तर क्षेत्र में यदि एक गांव के लोग दूसरे गांव के जंगल से थोड़ी लकड़ी लेना चाहते हैं तो इसके बदले में वे एक छोटा शुल्क अदा करते हैं, जिसे 'देवसारी' अथवा 'दांड' अथवा 'मान' कहा जाता है। 

प्रश्न 2. 
बस्तर में वन ग्राम किसे कहा गया? 
उत्तर:
बस्तर में कुछ गांवों को आरक्षित वनों में इस शर्त पर रहने दिया गया कि वे वन विभाग के लिए पेड़ों की कटाई और ढुलाई का काम मुफ्त में करेंगे और जंगल को आग से बचाये रखेंगे। इन्हीं गांवों को वन ग्राम कहा गया। 

प्रश्न 3. 
वैज्ञानिक वानिकी से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
वैज्ञानिक वानिकी प्रणाली-वन विभाग द्वारा पेड़ों की कटाई का वह तरीका जिसमें पुराने पेड़ काटकर उनकी जगह नये पेड़ लगाये जाते हैं, वैज्ञानिक वानिकी प्रणाली कहलाती है। इम्पीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट में इसकी शिक्षा दी जाती थी। 

प्रश्न 4. 
भारत में बस्तर क्षेत्र कहाँ स्थित है? यहाँ कौन-कौन से आदिवासी समुदाय रहते हैं? 
उत्तर:
भारत में बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित आंध्रप्रदेश, उड़ीसा व महाराष्ट्र की सीमाओं से लगा क्षेत्र है। बस्तर में मारिया और मुरिया, गोंड, धुरवा, भतरा, हलबा आदि अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं। 

प्रश्न 5. 
मनुष्य के लिए वनों की आवश्यकता के कारण बताइये। 
अथवा 
वन क्षेत्र को बढ़ावा क्यों आवश्यक है ? कोई तीन कारण दीजिये। 
उत्तर:
निम्न कारणों से वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है- 

  • वन उत्पादों की प्राप्ति-वनों से हमें उद्योगों के लिए कच्चा माल, इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, बांस, गोंद, शहद, घास, फल-फूल, जड़ी-बूटियां, मसाले, रेशम तथा अन्य कच्चा माल प्राप्त होता है। 
  • पर्यावरण संरक्षण तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन-वन पर्यावरण का संरक्षण करते हैं तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाये रखने में सहायक होते हैं। 
  • प्रजाति संरक्षण-वनों से हमें वन्य जीवों तथा वनस्पति की हजारों प्रजातियाँ मिलती हैं। ऐमेजॉन या पश्चिमी घाट के जंगलों के एक ही टुकड़े में पौधों की 500 अलग-अलग प्रजातियाँ मिल जाती हैं। 

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प्रश्न 6. 
उपनिवेशी काल में खेती के तीव्र प्रसार के कोई तीन कारणों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
उपनिवेशी काल में खेती के तीव्र प्रसार के तीन कारण निम्न प्रकार हैं- 

  • बढ़ती आबादी-उपनिवेशी काल में आबादी में तेजी से वृद्धि हुई। इस बढ़ती आबादी के लिए खाद्य पदार्थों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए जंगलों को साफ करके खेती का विस्तार किया गया। 
  • व्यावसायिक फसलों को प्रोत्साहन-अंग्रेजों ने यूरोप के औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की पूर्ति हेतु व्यावसायिक फसलों, जैसे-पटसन, गन्ना, गेहूँ व कपास के उत्पादन को जम कर प्रोत्साहित किया। अतः खेती का तीव्र प्रसार हुआ। 
  • जंगलों को अनुत्पादक समझना-औपनिवेशिक सरकार ने प्रारम्भ में जंगलों को अनुत्पादक समझा। अतः जंगलों में खेती करके कृषि उत्पाद तथा राजस्व प्राप्ति हेतु खेती का प्रसार किया। 

प्रश्न 7. 
वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर वन-प्रबन्धन के लिए क्या-क्या कदम उठाये गये? 
उत्तर:
वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर वन-प्रबन्धन के लिए निम्न कदम उठाये गये-

  • वैज्ञानिक वानिकी के नाम पर भारत में विविध प्रजाति वाले प्राकृतिक वनों को काट डाला गया। 
  • इनकी जगह सीधी पंक्ति में एक ही किस्म के पेड़ लगा दिए गए। इसे बागान कहा जाता है। 
  • वन विभाग के अधिकारियों ने जंगलों का सर्वेक्षण किया, विभिन्न किस्म के पेड़ों वाले क्षेत्र की नाप-जोख की। 
  • वन-प्रबंधन के लिए उन्होंने योजनाएँ बनायीं। 
  • उन्होंने यह भी तय किया कि बागान का कितना क्षेत्र प्रतिवर्ष काटा जाएगा। कटाई के बाद खाली जमीन पर कितने पेड़ लगाए जाएं। 

वर्तमान में पारिस्थितिकी विशेषज्ञों सहित ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह पद्धति कतई वैज्ञानिक नहीं है। 

प्रश्न 8. 
जर्मन विशेषज्ञ डायट्रिच बैंडिस द्वारा वनों के संरक्षण के लिए दिये गये तीन सुझाव बतलाइये। 
उत्तर:

  • भेंडिस ने जंगलों के प्रबंधन के लिए व्यवस्थित तंत्र विकसित करने का सुझाव दिया। 
  • उन्होंने पेड़ों की कटाई और पशुओं को चराने जैसी गतिविधियों पर पाबंदी लगाकर वनों को आरक्षित करने का सुझाव दिया। 
  • इस तंत्र की अवमानना करके पेड़ काटने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा का भागी बनना होगा। 

प्रश्न 9. 
1850 के दशक में अंग्रेजों द्वारा रेल लाइनों का जाल क्यों फैलाया गया? रेलों के विस्तार के लिए जंगली लकड़ी की आवश्यकता क्यों थी? 
उत्तर:
1850 के दशक में अंग्रेजों द्वारा रेल लाइनों का जाल निम्न कारणों से फैलाया गया-

  • कम समय के अन्दर शाही सेना, हथियारों तथा औजारों को एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले-जाने के लिये। 
  • औपनिवेशिक व्यापार की सुविधा के लिए। 
  • रेलों के विस्तार के लिए जंगली लकड़ी की आवश्यकता स्लीपरों और ईंधन की पूर्ति के लिये थी। 

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प्रश्न 10. 
भारत में 1878 के वन अधिनियम के किन्हीं तीन सुधार प्रावधानों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
भारत में 1878 के वन अधिनियम के सुधार प्रावधान निम्न प्रकार हैं- 

  • 1878 के वन अधिनियम में जंगलों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया-(i) आरक्षित, (ii) सुरक्षित व (iii) ग्रामीण। 
  • सबसे अच्छे जंगलों को 'आरक्षित वन' कहा गया। गाँव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे। वे घर बनाने या ईंधन के लिए केवल सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे। 
  • इस अधिनियम का उल्लंघन करने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था की गई थी। 

प्रश्न 11. 
अच्छे जंगल के बारे में वनपालों तथा ग्रामीणों के विचार में क्या भिन्नता थी? 
उत्तर:
अच्छे जंगल के बारे में वनपालों तथा ग्रामीणों के विचार में निम्न भिन्नताएँ थीं-
(1) वनपाल वैज्ञानिक वानिकी के पक्ष में थे तो ग्रामीण अपनी पारंपरिक वानिकी के पक्ष में थे। 

(2) ग्रामीण अपनी अलग-अलग जरूरतों, जैसे-ईंधन, चारे व पत्तों की पूर्ति के लिए वन में विभिन्न प्रजातियों चाहते थे, जबकि वन-विभाग को ऐसे पेड़ों की जरूरत थी जो जहाजों और रेलवे के लिए इमारती लकड़ी मुहैया करा सकें, ऐसी लकड़ियाँ जो सख्त, लंबी और सीधी हों। इसलिए वनपालों ने सागौन और साल जैसी प्रजातियों को प्रोत्साहित किया और दूसरी किस्में काट डाली गईं। 

प्रश्न 12. 
घुमन्तू कृषि किसे कहते हैं? 
अथवा 
घुमंतू कृषि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। 
उत्तर:
घुमंतू कृषि एशिया, अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के अनेक भागों में खेती का एक परंपरागत तरीका है। इसमें किसी स्थान पर स्थायी रूप से कृषि नहीं की जाती है। 

घुमंतू कृषि के लिए जंगल के कुछ भागों को बारी-बारी से काटा और जलाया जाता है। मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर-नवंबर में फसल काटी जाती है। इन खेतों पर दो-एक साल खेती करने के बाद इन्हें 12 से 18 साल तक के लिए परती छोड़ दिया जाता है जिससे वहाँ फिर से जंगल पनप जाएं। घुमंतू कृषि में मिश्रित फसलें उगायी जाती हैं जैसे मध्य भारत और अफ्रीका में ज्वार-बाजरा, ब्राजील में कसावा और लैटिन अमेरिका के अन्य भागों में मक्का व फलियाँ। 

प्रश्न 13. 
औपनिवेशिक सरकार ने घुमंत खेती पर प्रतिबंध क्यों लगाया ? 
उत्तर:
घुमंतू खेती पर प्रतिबन्ध के कारण-

  • उनकी नजर में घुमंतू खेती का तरीका जंगलों के लिए नुकसानदेह था। उन्होंने महसूस किया कि जहाँ कुछेक सालों के अंतर पर खेती की जा रही हो ऐसी जमीन पर रेलवे के लिए इमारती लकड़ी वाले पेड़ नहीं उगाए जा सकते। 
  • जंगल जलाते समय बाकी बेशकीमती पेड़ों को भी फैलती लपटों की चपेट में आ जाने का खतरा बना रहता था। 
  • घुमंतू खेती के कारण सरकार के लिए लगान का हिसाब रखना भी मुश्किल था। 

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प्रश्न 14. 
वनों के नियमन से खेती कैसी प्रभावित हुई? 
उत्तर:
वनों के नियमन से झूम या घुमन्तू खेती प्रभावित हुई। घुमन्तू कृषि के लिए जंगल के कुछ भागों को बारी बारी से काटा जाता और जलाया जाता है। मानसून की पहली बारिश के बाद इस राख में बीज बो दिए जाते हैं और अक्टूबर में फसल काटी जाती है। इन भूखण्डों में मिश्रित फसलें उगायी जाती हैं, जैसे-ज्वार-बाजरा, कसावा, मक्का आदि। 

सरकार द्वारा वनों के नियमन द्वारा घुमन्तू खेती पर रोक लगा दी। अनेक कृषक समुदायों को जंगलों के घर से जबरन विस्थापित कर दिया गया। इससे खेती प्रभावित हुई। 

प्रश्न 15. 
डच उपनिवेशिकों द्वारा लागू किये गये वन कानूनों का जावा के स्थानीय निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:
वन कानूनों का जावा के स्थानीय निवासियों पर निम्न प्रभाव पड़ा-

  • ग्रामीणों की जंगल तक पहुँच पर अनेक बन्दिशें लगा दी गईं। 
  • ग्रामीणों द्वारा केवल चुने हुए जंगलों से ही नाव व घर बनाने जैसे विशेष उद्देश्यों के लिए लकड़ी काटी जा सकती थी और वह भी कड़ी निगरानी में। 
  • ग्रामीणों को मवेशी चराने, बिना परमिट लकड़ी ढोने या जंगल से गुजरने वाली सड़क पर घोड़ा गाड़ी अथवा जानवरों पर चढ़कर आने-जाने के लिए दण्डित किया जाने लगा। 
  • डचों द्वारा जंगलों में खेती की जमीनों पर लगान लगा दिया गया और बाद में लकड़ी ढोने के लिए मुफ्त भैंसें उपलब्ध कराने की शर्त पर इसे मुक्त कर दिया गया। 
  • वन-ग्रामवासियों के वन-भूमि पर खेती करने के अधिकार सीमित कर दिए गए। 

प्रश्न 16. 
सामिन की चुनौती पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
सामिन का पूरा नाम सुरोन्तिको सामिन था। वह जावा के सागौन के जंगलों में स्थित रान्दुब्लातुंग गाँव का रहने वाला था। उसने डचों के जंगलों पर राजकीय मालिकाने पर सवाल खड़ा किया। उसका तर्क था कि हवा, पानी, जमीन और लकड़ी राज्य की बनायी हुई नहीं हैं इसलिए उन पर उसका अधिकार नहीं हो सकता। जल्दी ही उसके नेतृत्व में एक व्यापक आंदोलन खड़ा हो गया। 1907 तक 3,000 परिवार उसके विचारों को मानने लगे थे। डच जब जमीन का सर्वेक्षण करने आए तो कुछ सामिनवादियों ने अपनी जमीन पर लेट कर इसका विरोध किया जबकि दूसरों ने लगान या जुर्माना भरने या बेगार करने से इनकार कर दिया। 

प्रश्न 17. 
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध द्वारा भारत तथा जावा के वनों के प्रभावित होने के तीन प्रकार लिखिए। 
उत्तर:
प्रथम तथा द्वितीय विश्व युद्ध में भारत तथा जावा के वन निम्न प्रकार प्रभावित हुए- 

  • दोनों विश्व युद्धों में भारत तथा जावा में युद्ध की जरूरतों को पूरा करने के लिए औपनिवेशिक सरकार द्वारा जमकर वृक्ष काटे गये। 
  • युद्ध के चलते वन संरक्षण की कार्य योजनाओं को स्थगित कर दिया गया। सरकार का ध्यान बंटने से स्थानीय निवासियों ने भी वनों में खेती का विस्तार किया। 
  • जावा पर जापानियों ने कब्जे के बाद वनों का निर्मम दोहन किया, जबकि भारत में ब्रिटिश सरकार ने ही जमकर वनों का दोहन किया। 

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दीर्घउत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
औपनिवेशिक शासन में भारत में वन-विनाश के प्रमुख कारण बतलाइये। 
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में वन-विनाश के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं- 
(1) कृषि क्षेत्र का विस्तार-औपनिवेशिक काल में भारत की आबादी में वृद्धि हुई। फलतः कृषि उत्पादों की माँग में भी तेजी से वृद्धि हुई। किन्तु, सीमित कृषि भूमि के कारण बढ़ती आबादी की माँग को तेजी से पूरा नहीं किया जा सकता था। ऐसी स्थिति में औपनिवेशिक सरकारों ने कृषि भूमि में वृद्धि करने की सोची। 1880 से 1920 के बीच खेती योग्य जमीन के क्षेत्रफल में 67 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई। इसके लिए वनों का सफाया किया गया तथा वन क्षेत्र में कमी आई। 

(2) व्यावसायिक खेती-व्यावसायिक खेती ने भी भारत में वन क्षेत्रों को प्रभावित किया। अंग्रेजों ने व्यावसायिक फसलों जैसे—पटसन, गन्ना, गेहूँ व कपास के उत्पादन को बढ़ावा दिया। इस तरह की खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि की आवश्यकता थी। उपलब्ध भूमि पर पारम्परिक तरीके से वर्षों से की जा रही खेती के कारण वह खास उपजाऊ नहीं रह गई थी। अतः नई उपजाऊ भूमि के लिए जंगलों को साफ किया जाने लगा। फलतः वनों का तेजी से ह्रास हुआ। 

(3)चाय-कॉफी के बागान-यूरोप में चाय, कॉफी और रबड़ की बढ़ती माँग के कारण इनके बागानों के विकास को प्रोत्साहित किया गया। इसके लिए यूरोपीय लोगों को परमिट दिया गया तथा हर सम्भव सहायता दी गई। बाड़ाबन्दी करके जंगलों को साफ कर बागान विकसित किये गये। वनवासियों को न्यूनतम मजदूरी पर पेड़ काटकर बागान के लिए जमीन तैयार करने के साथ-साथ बागान के विकास सम्बन्धी अन्य कार्यों में लगाया गया। इस तरह वन तथा वनवासी दोनों को ही नुकसान पहुंचाया गया।

(4) रेलवे-1860 के दशक से भारत में रेल लाइनों का जाल तेजी से फैला। अतः रेल की पटरियाँ बिछाने के लिए आवश्यक स्लीपरों के लिए अत्यधिक संख्या में पेड़ काटे गये। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 1 मील लम्बी पटरी बिछाने के लिए 1760-2000 स्लीपरों की जरूरत होती थी जिसके लिए लगभग 500 पेड़ों की आवश्यकता होती थी। 1890 तक लगभग 25,500 कि.मी. लम्बी लाइनें बिछायी जा चुकी थीं। इस कार्य को बहुत तेजी से किया गया क्योंकि रेलवे सैनिकों तथा वाणिज्यिक वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह तक लाने-ले जाने में सहायक था। फलतः वनों का तेजी से ह्रास हुआ। 

(5) जहाज निर्माण-जहाज निर्माण उद्योग वन क्षेत्र में कमी के लिए दूसरा सबसे बड़ा कारण था। उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक इंग्लैण्ड में ओक के वन लगभग समाप्त हो चुके थे अतः भारतीय वनों की कठोर तथा टिकाऊ लकड़ियों पर अंग्रेजों की नजर पड़ी। उन्होंने इसकी अंधाधुन्ध कटाई शुरू की। फलतः वनों का तेजी से ह्रास हुआ।
 
प्रश्न 2. 
ग्रामीणों द्वारा जंगलों को विभिन्न प्रकार से प्रयोग करने को दर्शाने के लिए चार उदाहरण दीजिए। 1878 के वन अधिनियम ने भारत में ग्रामीणों को कैसे प्रभावित किया? 
अथवा 
वन क्षेत्र में रहने वाले लोग वन उत्पादों का प्रयोग किस प्रकार से विभिन्न तरीकों से करते थे? भारत में वन अधिनियम के कारण देश के ग्रामीणों को परेशानियों का सामना क्यों करना पड़ा? 
उत्तर:
ग्रामीणों द्वारा वन उत्पादों का प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है-

  • फल और कंद को पोषक खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है। 
  • दवाओं के लिए जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है। 
  • लकड़ी का प्रयोग हल जैसे खेती के औजार बनाने में किया जाता है। 
  • बाँस से बेहतरीन बाडें बनायी जाती हैं और इसका उपयोग छतरी तथा टोकरी बनाने के लिए भी किया जा सकता है। 
  • सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग पानी की बोतल के रूप में किया जाता है। 
  • पत्तों को जोड़-जोड़ कर 'खाओ-फेंको' किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं। 
  • सियादी (Bauhiria vahili) की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है। 
  • सेमूर (सूती रेशम) की काँटेदार छाल पर सब्जियाँ छीली जा सकती हैं। 
  • महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है। 

1878 के वन अधिनियम ने ग्रामीणों को निम्न प्रकार प्रभावित किया-

  • इस कानून के बाद ग्रामीणों द्वारा घर के लिए लकड़ी काटना, पशुओं को चराना, कंद-मूल-फल इकट्ठा करना आदि रोजमर्रा की गतिविधियाँ गैर कानूनी बन गईं। 
  • आवश्यकता पूर्ति हेतु उनके पास जंगलों से लकड़ी चुराने के अलावा कोई चारा नहीं बचा और पकड़े जाने की स्थिति में वे वन-रक्षकों की दया पर होते जो उनसे घूस ऐंठते थे। 
  • जलावनी लकड़ी एकत्र करने वाली औरतें विशेष तौर से परेशान रहने लगीं। 
  • पुलिस और जंगल के चौकीदार मुफ्त खाने-पीने की माँग करके लोगों को तंग करने लगे थे। 

RBSE Class 9 Social Science Important Questions History Chapter 4 वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद

प्रश्न 3. 
वन हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण हैं? 
अथवा 
मनुष्यों के लिए वन क्यों आवश्यक हैं? 
उत्तर: 
वनों का महत्त्व वन हमारे लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) वन उत्पादों की प्राप्ति-वनों से हमें निम्नलिखित वस्तुएँ प्राप्त होती हैं-(i) वनों से हमें उद्योगों के लिए कच्चा माल प्राप्त होता है। (ii) वनों से हमें इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। (iii) वनों से पेंसिल में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी प्राप्त होती है। (iv) वनों से हमें गोंद, रबर, शहद, चाय, कॉफी आदि प्राप्त होते हैं। (v) वनों से हमें दवाइयाँ बनाने हेतु काम में ली जाने वाली जड़ी-बूटियाँ मिलती हैं। (vi) वनों से हमें बांस. ईंधन के लिए लकडी, घास. कच्चा कोयला. फल-फल आदि मिलते हैं। 

(2) पर्यावरण संरक्षण तथा पारिस्थितिकी संतुलन-वन पर्यावरण का संरक्षण करते हैं तथा पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं । वन क्षेत्र की कमी के कारण ही आज विश्व को ग्लोबल वार्मिंग का सामना करना पड़ रहा है। 

(3) प्रजाति संरक्षण-वनों में हमें वन्य जीवों तथा वनस्पति की हजारों प्रजातियाँ मिलती हैं। अतः प्रजाति संरक्षण की दृष्टि से वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 

प्रश्न 4. 
जंगलों पर वन विभाग के नियंत्रण का व्यापार तथा अन्य रोजगारों पर क्या प्रभाव पड़ा? 
उत्तर:
जंगलों पर वन विभाग के नियंत्रण का व्यापार तथा अन्य सेवाओं पर निम्न प्रभाव पड़ा- 
(1) नये व्यवसाय-जंगलों पर वन विभाग के नियंत्रण ने नये व्यवसायों को जन्म दिया। कई समुदाय अपने परम्परागत पेशे छोड़कर वन उत्पादों का व्यापार करने लगे। उदाहरणार्थ ब्राजीली ऐमेजॉन के मुनदुरुकु समुदाय के लोगों द्वारा व्यापारियों को रबड़ की आपूर्ति हेतु जंगली रबड़ के वृक्षों से 'लैटेक्स' एकत्रित करना। 

(2) यूरोपीय कम्पनियों का एकाधिकार-अंग्रेजों के आने के बाद वन-उत्पादों का व्यापार पूरी तरह सरकारी नियंत्रण में चला गया। ब्रिटिश सरकार ने कई बड़ी यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को विशेष इलाकों में वन-उत्पादों के व्यापार का एकाधिकार सौंप दिया। इससे इन कम्पनियों को बहुत लाभ पहुंचा। 

(3) परम्परागत जीवनयापन पर प्रतिबन्ध-लोगों द्वारा शिकार करने और पशओं को चराने पर बंदिशें लगा दी गईं। इस प्रक्रिया में मद्रास प्रेसीडेंसी के कोरावा, कराचा व येरुकुला जैसे अनेक चरवाहे और घुमंतू समुदाय अपनी जीविका ठे। इनमें से कुछ को 'अपराधी कबीले' कहा जाने लगा और ये सरकार की निगरानी में फैक्ट्रियों, खदानों व बागानों में काम करने को मजबूर हो गए। 

(4) काम के नये अवसर-यूरोपियों के आने से पूर्व स्थानीय लोग अपने रोजगार के लिए प्रकृति पर निर्भर करते थे, परन्तु अब उन्हें नियमित रोजगार मिलने लगे। कइयों ने वन विभाग में श्रमिकों तथा पहरेदारों की नौकरी कर ली। 

(5) कम मजदूरी तथा खराब कार्यदशाएँ-लोगों को काम के नये अवसर मिले किन्तु उनकी जीवन दशाएँ खराब हुईं। जैसे असम के चाय बागानों में काम करने के लिए झारखंड के संथाल और उराँव व छत्तीसगढ़ के गोंड जैसे आदिवासी पुरुषों व औरतों, दोनों की भर्ती की गयी। उनकी मजदूरी बहुत कम थी और कार्य परिस्थितियाँ उतनी ही खराब। उन्हें उनके गाँवों से उठा कर भर्ती तो कर लिया गया था लेकिन उनकी वापसी आसान नहीं थी। 

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प्रश्न 5. 
बस्तर के विद्रोह पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
बस्तर का विद्रोह-बस्तर के विद्रोह का वर्णन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है- 
1. विद्रोह के कारण-

  • औपनिवेशिक सरकार ने 1905 में, वनों का दो-तिहाई हिस्सा आरक्षित करने का प्रस्ताव रखा। 
  • घुमंतू कृषि पर प्रतिबंध लगाया। 
  • शिकार करने तथा वन उत्पादों को एकत्र करने पर प्रतिबंध लगाया। 
  • गाँवों के लोगों को बगैर किसी सूचना या मुआवजे के गाँवों से हटा दिया गया। 
  • लोग बढे हए लगान. औपनिवेशिक अफसरों के हाथों बेगार तथा चीजों की निरन्तर मांग से त्रस्त थे। 

इन सब कदमों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए स्थानीय लोगों को मजबूर किया। 

2. विद्रोह का विकास-

  • लोगों ने बाजारों तथा त्यौहारों के मौके पर अथवा जहाँ कहीं भी कई गाँवों के मुखिया व पुजारी इकट्ठे होते थे, इन सब विषयों पर चर्चा करनी आरम्भ कर दी। कांगेर वनों के धुरवा समुदाय द्वारा इस सम्बन्ध में पहल की गई, जहाँ सबसे पहले आरक्षण लागू हुआ। इस विद्रोह का मुख्य नेता नेथानार गाँव का गुंडा धूर था। 
  • 1910 में, गाँवों में आम की टहनियों, मिट्टी के ढेलों, मिर्ची तथा तीर- कमानों को घुमाना आरम्भ हुआ। वास्तव में, ये ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध बगावत करने के लिए, ग्रामीणों को आमंत्रित करने के संदेश थे। 
  • प्रत्येक गाँव ने बगावत के खर्चे के लिए कुछ योगदान दिया। 
  • बाजारों को लूटा गया, अधिकारियों तथा व्यापारियों के घरों, स्कूलों तथा पुलिस स्टेशनों को जलाया गया तथा अनाज बाँटा गया। जिन पर आक्रमण किया गया, उनमें से अधिकतर औपनिवेशिक शासन तथा दमन के कानूनों से सम्बन्ध रखते थे। 

3. विद्रोह का दमन-अंग्रेजों ने बगावत को दबाने के लिए सेना भेजी। आदिवासी नेताओं ने समझौता करने का प्रयास किया, परन्तु अंग्रेजों ने उनके शिविरों को घेर कर उन पर गोली चलाई। इसके बाद उन्होंने गाँव की ओर मार्च किया तथा बगावत में भाग लेने वालों को सजा दी। अधिकतर गाँव खाली हो गए क्योंकि लोग जंगलों में भाग गए। अंग्रेजों को फिर से नियंत्रण करने के लिए तीन महीने (फरवरी-मई) लग गए, परन्तु वे गुंडा धूर को कभी पकड़ न पाए। 

4. बगावत के परिणाम-(i) आरक्षण पर कार्य कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया। (ii) आरक्षित करने वाला क्षेत्र 1910 से पहले की योजना से लगभग आधा रह गया। (iii) इस विद्रोह ने अन्य कबीले के लोगों को भी ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों के विरुद्ध बगावत करने के लिए प्रोत्साहित किया।

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Last Updated on May 24, 2022, 4:42 p.m.
Published May 24, 2022