RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

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RBSE Class 12 Sociology Chapter 7 Notes जनसंपर्क साधन और जनसंचार

→ मास मीडिया का अर्थ एवं साधन: मास मीडिया (जनसम्पर्क के साधन) अनेक प्रकार के होते हैं, जैसे-टेलीविजन, समाचारपत्र, फिल्में, पत्रिकाएँ, रेडियो, विज्ञापन, वीडियो, खेल और सीडी आदि। ये एक साथ बहुत बड़ी संख्या में दर्शकों, श्रोताओं एवं पाठकों तक पहुँचते हैं इसलिए इन्हें मास मीडिया कहा जाता है। मास मीडिया हमारे दैनिक जीवन का एक अंग है।

→ मास मीडिया के साधनों की वृद्धि के प्रमुख समाजशास्त्रीय पक्ष: हाल के वर्षों में जनसंचार के साधनों का चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। इस विस्तार के प्रमुख पहलू ये हैं

  • किसी अन्य सामाजिक संस्था की तरह ही मास मीडिया की संरचना और विषय-वस्तु का स्वरूप भी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भो में आए परिवर्तनों से निर्धारित हुआ है।
  • समाज और जनसम्पर्क तथा संचार के साधन एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।
  • जनसंचार, संचार के अन्य साधनों से भिन्न होता है क्योंकि इसे विशाल पूँजी उत्पादन और औपचारिक संरचनात्मक संगठन और प्रबन्धक की आवश्यकता होती है।
  • लोगों के विभिन्न वर्ग के लोग मास-मीडिया का आसानी से प्रयोग कर सकते हैं।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 7 जनसंपर्क साधन और जनसंचार

→ आधुनिक मास मीडिया का प्रारम्भ:

  • पहली आधुनिक मास मीडिया की संस्था का प्रारम्भ प्रिंटिंग प्रेस के विकास के साथ हुआ था। इस क्षेत्र में आधुनिक प्रौद्योगिकियों का प्रयोग सर्वप्रथम 1440 में यूरोप में धार्मिक पुस्तकें छापने के लिए किया गया था।
  • औद्योगिक क्रांति के साथ ही मुद्रण उद्योग का विकास हुआ। कुलीन मुद्रणालय के प्रथम उत्पाद साक्षर अभिजात लोगों तक ही सीमित थे। 19वीं सदी के मध्य भाग में जब प्रौद्योगिकियों, परिवहन और साक्षरता में आगे और विकास हुआ तभी समाचारपत्र जन-जन तक पहुँचने लगे। इसी के फलस्वरूप देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग परस्पर जुड़ने लगे और उनमें हम की भावना आई। इससे राष्ट्रवाद का विकास भी हुआ। इससे अपरिचित लोगों के बीच भी मैत्रीभाव उत्पन्न हुआ।
  • भारतीय राष्ट्रवाद का विकास भी उपनिवेशवाद के विरुद्ध उसके संघर्ष के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका उद्भव भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा लाए गए संस्थागत परिवर्तनों के परिणामस्वरूप हुआ। औपनिवेशिक सरकार में उत्पीड़क उपायों का खुलकर विरोध करने वाली राष्ट्रवादी प्रेस ने उपनिवेश विरोधी जनमत जाग्रत किया और उसे सही दिशा दी।
  • ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत मास मीडिया का फैलाव समाचारपत्रों और पत्रिकाओं तथा फिल्मों और रेडियो तक सीमित था। इस समय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का प्रसार बहुत सीमित था क्योंकि बहुत कम लोग साक्षर थे। फिर भी उनका प्रभाव उनकी वितरण संख्या की तुलना में बहुत अधिक था।

→ स्वतंत्र भारत में मास मीडिया:

  • देश के विभिन्न विकास कार्यों के बारे में आम लोगों को सूचित करने का साधन मीडिया ही था। तब मीडिया को सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था। इन्हें प्रत्येक सिनेमाघर में फिल्मों के प्रारम्भ होने से पहले दिखाया जाता था ताकि दर्शकों को सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास प्रक्रिया के बारे में जानकारी मिल सके।
  • रेडियो रेडियो प्रसारण जो 1920 के दशक में कोलकाता और चेन्नई में अपरिपक्व 'हैम' ब्रॉडकास्टिंग क्लबों के जरिए भारत में शुरू हुआ था, 1940 के दशक में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एक सार्वजनिक प्रसारण प्रणाली के रूप में उस समय परिपक्व हो गया जब वह दक्षिण-पूर्व एशिया में मित्र राष्ट्रों की सेनाओं के लिए प्रचार का एक बड़ा साधन बना।
  • स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय, भारत में केवल 6 रेडियो स्टेशन थे, जो बड़े-बड़े शहरों में स्थित थे और प्राथमिक रूप से शहरी श्रोताओं की आवश्यकताओं को ही पूरा करते थे। 1950 तक समस्त भारत में कुल मिलाकर 5,46,200 रेडियो लाइसेंस थे।
  • आकाशवाणी के कार्यक्रम में मुख्य रूप से समाचार, सामयिक विषय और विकास पर चर्चाएँ होती थीं। इसी समय एक मनोरंजन का चैनल 'विविध भारती' भी था, जो जल्दी ही प्रायोजित कार्यक्रम और विज्ञापन प्रचारित करने से एक कमाऊ चैनल बन गया।
  • प्रारम्भ में रेडियो के प्रचार-प्रसार एवं लोकप्रिय बनने के मार्ग में एक बड़ी बाधा रेडियो सेटों की ऊँची कीमत थी। लेकिन 1960 के दशक में ट्रांजिस्टर आने से रेडियो अधिक सुलभ हो गया, साथ ही उसकी कीमतें भी बहुत अधिक घट गईं। वर्ष 2000 में स्थिति यह थी कि लगभग 11 करोड़ परिवारों में 24 भाषाओं और 146 बोलियों में रेडियो प्रसारण सुने जाते थे। उनमें से एक-तिहाई से भी अधिक घर-परिवार ग्रामीण थे।

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→ टेलीविजन:

  • भारत में ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए 1959 में टेलीविजन के कार्यक्रमों को प्रयोग के तौर पर चालू कर दिया गया था। अगस्त, 1975 से जुलाई, 1976 के बीच उपग्रह की सहायता से शिक्षा देने के प्रयोग (साइट) के अन्तर्गत टेलीविजन ने छह राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक दर्शकों के लिए प्रत्यक्ष रूप से प्रसारण किया। ये शैक्षिक प्रसारण प्रतिदिन चार घंटे तक 2400 टीवी सेटों पर सीधे प्रसारित किए जाते थे। इसी बीच, दूरदर्शन के अन्तर्गत चार (दिल्ली, मुम्बई, श्रीनगर और अमृतसर) में 1975 तक टेलीविजन केन्द्र स्थापित कर दिए गए।
  • तत्पश्चात् एक ही वर्ष में कोलकाता, चेन्नई और जालंधर में तीन और केन्द्र खोल दिए गए। प्रत्येक प्रसारण केन्द्र के अपने बहुत से कार्यक्रम होते थे जिनमें समाचारों, बच्चों और महिलाओं के कार्यक्रम, किसानों के कार्यक्रम और मनोरंजन के कार्यक्रम सम्मिलित थे।
  • जब कार्यक्रम वाणिज्यिक हो गए और उनमें इन कार्यक्रमों के प्रायोजकों के विज्ञापन शामिल किए जाने लगे तो मनोरंजन के कार्यक्रमों में वृद्धि हो गई। दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों के दौरान रंगीन प्रसारण आरम्भ किए जाने के फलस्वरूप टेलीविजन प्रसारण का बहुत तेजी से वाणिज्यीकरण हुआ। इसी समय 'हम लोग', 'बुनियाद', 'रामायण', 'महाभारत' जैसे सीरियल टेलीविजन पर दिखाए गए जिसने भारी मात्रा में राजस्व अर्जित किया था। 

→ मुद्रण माध्यम (प्रिंट मीडिया): स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, प्रिंट मीडिया ने राष्ट्र-निर्माण के कार्य में अपनी भागीदारी निभाने की भूमिका को बराबर जारी रखा और इसके लिए वह विकासात्मक मुद्दों को उठाता रहा तथा बहुत बड़े भाग के लोगों की आवाज को बुलन्द करता रहा। मीडिया को सबसे भयंकर चुनौती का सामना 1975 में करना पड़ा, लेकिन 1977 में पुनः लोकतंत्र की स्थापना से वह समय समाप्त हो गया। भारत अनेक समस्याओं का सामना करते हुए भी अपने स्वतंत्र प्रिंट मीडिया पर तर्कसंगत गर्व कर सकता है।

→ भूमण्डलीकरण और मीडिया: मीडिया के हमेशा अनेक अन्तर्राष्ट्रीय आयाम रहे हैं जैसे कि नए समाचार एकत्र करना और प्राथमिक रूप से पाश्चात्य फिल्मों को दूसरे देशों में बेचना। किन्तु 1970 के दशक तक, अधिकांश मीडिया कम्पनियाँ राष्ट्रीय सरकारों के विनियमों का पालन करते हुए, विशिष्ट घरेलू बाजारों में कार्यरत रहीं। मीडिया उद्योग भी कई अलग-अलग सेक्टरों में विभाजित था, जैसे-सिनेमा, प्रिंट मीडिया, रेडियो और टेलीविजन प्रसारण, जो एक-दूसरे से अलग रहकर स्वतंत्र रूप से अपना काम करते थे। पिछले तीन दशकों में मीडिया उद्योग में अनेक रूपान्तरण हुए हैं, वे निम्नलिखित हैं

  • राष्ट्रीय बाजारों का स्थान अब तरल भूमण्डलीकरण बाजार ने ले लिया है।
  • नवीन प्रौद्योगिकियों ने मीडिया के विभिन्न रूपों को जो पहले अलग-अलग थे, अब आपस में मिला दिया है।

→ मुद्रण माध्यम (प्रिंट मीडिया): ऐसा विश्वास किया जाता था कि टेलीविजन और इंटरनेट के विकास से प्रिंट मीडिया का महत्त्व कम हो जाएगा। लेकिन नयी प्रौद्योगिकियों ने समाचार पत्रों के उत्पादन और प्रसार को बढ़ावा देने में मदद की है। यहाँ समाचारपत्रों का प्रसार बढ़ा है। इन समाचारपत्रों के प्रसार के बढ़ने के निम्न प्रमुख कारण हैं

  • ऐसे साक्षर लोगों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है जो शहरों में प्रवसन कर रहे हैं।
  • छोटे कस्बों और गाँवों में पाठकों की आवश्यकताएँ शहरी पाठकों से भिन्न होती हैं और भारतीय भाषाओं के समाचार पत्र इन आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
  • भारतीय भाषाओं के समाचारपत्रों ने उन्नत मुद्रण प्रौद्योगिकियों को अपनाया और परिशिष्ट, अनुपूरक अंक, साहित्यिक पुस्तिकाएँ प्रकाशित करने का प्रयत्न किया। दैनिक भास्कर समूह की संवृद्धि का कारण उनके द्वारा अपनाई गई अनेक विपणन सम्बन्धी रणनीतियाँ हैं जिसके अन्तर्गत वे उपभोक्ता सम्पर्क कार्यक्रम, घर-घर जाकर सर्वेक्षण और अनुसंधान जैसे कार्य करते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से मुकाबला करने के लिए, समाचार पत्रों ने विशेष रूप से अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्रों ने अपमी कीमतें घटा दी और एक साथ अनेक केन्द्रों से अपने अलग-अलग संस्करण निकालने लगे।

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→ टेलीविजन:

1991 में भारत में केवल एक ही राज्य-नियंत्रित टीवी चैनल 'दूरदर्शन' था। 1998 तक लगभग 70 चैनल हो गए। 1990 के दशक के मध्यभाग से गैर-सरकारी चैनलों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। वर्ष 2000 में जब दूरदर्शन 20 से अधिक चैनलों पर अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहा था, गैर-सरकारी टेलीविजन नेटवर्कों की संख्या 40 के आस-पास थी।

  • गैर-सरकारी उपग्रह टेलीविजन में हुई आश्चर्यजनक वृद्धि समकालीन भारत में हुए निर्णयात्मक विकासों में से एक है। वर्ष 2002 में, औसतन 13.4 करोड़ लोग प्रति सप्ताह उपग्रह टी.वी. देखा करते थे। यह संख्या बढ़कर 2005 में 19 करोड़ हो गई। वर्ष 2002 में उपग्रह टी.वी. की सुविधा वाले घरों की संख्या 4 करोड़ थी जो बढ़कर 2005 में 6.10 करोड़ हो गई। टी.वी. रखने वाले सभी घरों में से 56 प्रतिशत घरों में अब उपग्रह ग्राहकी (सेटेलाइट सब्सक्रिप्शन) पहुँच चुकी है।
  • 1991 के खाड़ी युद्ध से सी.एन.एन. चैनल लोकप्रिय बना। इसी वर्ष हांगकांग के एक समूह द्वारा स्टार टी.वी. का भारत में आगमन हुआ जिसने भारत में गैर-सरकारी उपग्रह चैनलों के आगमन का संकेत दे दिया। 2000 तक आते-आते भारत में 40 गैर-सरकारी केबल और उपग्रह चैनल उपलब्ध हो चुके थे, जिनमें कुछ केवल क्षेत्रीय भाषाओं के प्रसारण पर ही केन्द्रित थे।
  • 1980 के दशक में जहाँ दूरदर्शन का तेजी से विस्तार हुआ वहीं केबल टेलीविजन उद्योग भी तेजी से पनपा। वी.सी.आर. ने भारतीय दर्शकों के लिए मनोरंजन के विकल्पों में कई गुना वृद्धि कर दी। निजी घरों और सामुदायिक बैठक कक्षों में वीडियो कार्यक्रम देखने की सुविधा में तेजी से वृद्धि हुई।
  • स्टार टी.वी., एम.टी.वी., चैनल वी, सोनी जैसे पारराष्ट्रीय टेलीविजन कम्पनियों ने भारतीय दर्शकों के विविध समूहों को आकर्षित करने में चिर-परिचित कार्यक्रमों का प्रयोग किया। इन्होंने हिन्दी फिल्मों तथा हिन्दी भाषा कार्यक्रमों तथा हिन्दी चैनल शुरू किये तथा बड़ी कम्पनियों ने क्षेत्रीय भाषाओं में भी विशिष्ट चैनल शुरू किये हैं। जैसे-स्टार टी.वी. ने अक्टूबर 1996 से सायं 7 से 9 बजे के बीच हिन्दी भाषा के कार्यक्रम देने शुरू किये और फरवरी 1999 से वह पूर्ण रूप से हिन्दी चैनल बन गया। साथ ही अपने अंग्रेजी कार्यक्रमों को छोटे बच्चों के लिए हिन्दी में डब करते रहे।

आज अधिकांश चैनल हफ्ते में सातों दिन और चौबीसों घण्टे चलते हैं। उनमें समाचारों का स्वरूप जीवन्त एवं अनौपचारिक होता है। समाचारों को पहले की अपेक्षा अब बहुत अधिक तात्कालिक, लोकतंत्रात्मक और आत्मीय बना दिया गया है।
हिन्दी और अंग्रेजी में समाचार देने वाले चैनलों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। साथ ही क्षेत्रीय चैनल भी बढ़ रहे हैं। इसके साथ ही रिएलिटी शो, वार्ता प्रदर्शन, बॉलीवुड प्रदर्शन, पारिवारिक नाट्य प्रदर्शन, अंतःक्रियात्मक प्रदर्शन, खेल प्रदर्शन और प्रहसन एवं हँसी-मजाक के प्रदर्शन बड़ी संख्या में हो रहे हैं। मनोरंजन टेलीविजन ने सुपर स्टार्स का एक नया वर्ग पैदा कर दिया है।

रेडियो-वर्ष 2000 में, आकाशवाणी के कार्यक्रम भारत के सभी दो-तिहाई घर-परिवारों में, 24 भाषाओं और 146 बोलियों में, 12 करोड़ से अधिक रेडियो सेटों पर सुने जा सकते थे। सन् 2002 में गैर-सरकारी स्वामित्व वाले एफ. एम. रेडियो की स्थापना से रेडियो पर मनोरंजन के कार्यक्रमों में बढ़ोतरी हुई। गैर-सरकारी तौर पर चलाए जाने वाले एफ. एम. चैनल पर कोई राजनीतिक समाचार बुलेटिन प्रसारित नहीं कर सकता। अतः यह चैनल श्रोताओं के लिए विशेष प्रकार के लोकप्रिय संगीत में अपनी विशेषता रखते हैं। अधिकांश एफ.एम. चैनल, युवा शहरी व्यावसायिकों तथा छात्रों में लोकप्रिय हैं, अक्सर मीडिया समूह के होते हैं। जैसे 'रेडियो मिर्ची' टाइम्स ऑफ इंडिया समूह का है, 'रैड' एफ.एम. लिविंग मीडिया का और 'रेडियो सिटी' स्टार नेटवर्क के स्वामित्व में है।

एफ.एम. चैनलों के प्रयोग की सम्भावनाएँ अत्यधिक हैं, रेडियो स्टेशनों के और अधिक निजीकरण तथा समुदाय के स्वामित्व वाले रेडियो स्टेशनों के उद्भव के परिणामस्वरूप रेडियो स्टेशनों का और अधिक विकास होगा। स्थानीय समाचारों को सुनने की मांग बढ़ रही है। भारत में एफ.एम. चैनलों को सुनने वाले घरों की संख्या | ने स्थानीय रेडियो द्वारा नेटवर्कों का स्थान ले लेने की विश्वव्यापी प्रवृत्ति को बल दिया।

Prasanna
Last Updated on June 7, 2022, 4:37 p.m.
Published June 7, 2022