RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

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RBSE Class 12 Sociology Chapter 1 Notes भारतीय समाज : एक परिचय

→ समाजशास्त्र का परिचय: समाजशास्त्र अन्य सभी विषयों से अलग है। इसका ज्ञान औपचारिक और अनौपचारिक रूप से प्राप्त हो जाता है। अन्य विषयों की भाँति इसे पढाने की प्रायः आवश्यकता नहीं होती है। इसका ज्ञान स्वाभाविक या अपने आप प्राप्त किया सा प्रतीत होता है। अन्य समाज विज्ञानों को जहाँ बालक को पढ़ाने की आवश्यकता होती है वहीं एक बालक समाज और सामाजिक सम्बन्धों के बारे में बिना पढ़े ही बहुत कुछ जानता है।

→ समाजशास्त्र के बारे में ज्ञान: समाजशास्त्र के बारे में पूर्व में ही ज्ञान प्राप्त रहता है। सहज ज्ञान या सहज बोध समाजशास्त्र के लिए बाधक और सहायक दोनों ही हैं। सहायक इसलिए क्योंकि छात्रों को इसकी विषयवस्तु के बारे में पहले से ही पता होता है और बाधक इसलिए क्योंकि समाजशास्त्र समाज के व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित होता है। समाजशास्त्र के ज्ञान के लिए पूर्व अवधारणाओं को देखना पड़ता है।

→ समाजशास्त्र को सीखने का प्रारम्भिक चरण: इसमें प्रायः भूलने की प्रक्रियाओं को शामिल किया जाता है, क्योंकि समाज के बारे में यह सहज बोध विशिष्ट दृष्टिकोणों से प्राप्त किया हुआ होता है। समाज, सामाजिक सम्बन्ध के बारे में हमारे मत, आस्थायें गलत भी हो सकती हैं। समाज के बारे में हमारा सीखा हुआ ज्ञान एकपक्षीय होता है जो कि प्रायः हमारे सामाजिक समूह और हितों के प्रति झुका रहता है।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 1 भारतीय समाज : एक परिचय

→ समस्या का समाधान: समाजशास्त्र हमें यह सीखने का निमंत्रण. देता है कि हमें विश्व को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखना चाहिये । समस्या का अध्ययन निष्पक्ष और तटस्थ तरीके से करना चाहिये। वैज्ञानिक सत्य को जानने के लिए हमें सत्य के अनेक रूपों को जानना चाहिये। वस्तुतः समाजशास्त्र की प्रकृति तुलनात्मक होती है जिसमें पूर्वाग्रहों को पहचानने की क्षमता को विकसित किया जाता है।

→ समाजशास्त्र एक विस्तृत समाज विज्ञान: समाजशास्त्र सोचने की और दृष्टि को विकसित करने की क्षमता को विकसित करता है। यह समाज में व्यक्ति की स्थिति, सामाजिक संस्थाओं से व्यक्ति के सम्बन्धों तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं और समूहों से व्यक्ति को परिचित करवाता है। यह विभिन्न सामाजिक समस्याओं के कारण और प्रभावों से परिचित करवाता है। समाजशास्त्र आपको यह दिखा सकता है कि दूसरे आपको किस तरह देखते हैं; आपको यह सिखा सकता है कि आप 'स्वयं को बाहर से कैसे देख सकते हैं । सी. राईट मिल्स के अनुसार, 'व्यक्तिगत परेशानियों' एवं 'सामाजिक मुद्दों के बीच की कड़ियों एवं सम्बन्धों को उजागर करने में मदद कर सकता है। 

→ एक परिचय का परिचय:

  • औपनिवेशिक दौर एवं भारतीय समाज: औपनिवेशिक शासन के दौरान सम्पूर्ण भारत एकीकृत हुआ तथा पूँजीवादी आर्थिक परिवर्तन तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रियाओं से भारत का परिचय हुआ। औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत को आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक एकीकरण की उपलब्धि भारी कीमत को चुकाकर प्राप्त हुई थी। एक विरोधाभासी सत्य के रूप में भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म उपनिवेशवाद की ही देन रहा था।
  • औपनिवेशिक काल के अनुभवों ने विभिन्न समुदायों में एकीकरण तथा राष्ट्रवादी सोच को विकसित किया। मध्यम वर्ग ने पाश्चात्य शिक्षा की बदौलत औपनिवेशिक मान्यताओं को चुनौती दी। पाश्चात्य शिक्षा के आधार पर ऐतिहासिक खोजें हुईं जिसके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक पुनरुत्थान हुआ जिससे राष्ट्रवाद की भावना विकसित होने लगी।
  • नये वर्ग तथा समुदायों का उदय हुआ। नगरीय मध्य वर्ग के द्वारा राष्ट्रवाद में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई गई। औपनिवेशिक हस्तक्षेपों ने भी धार्मिक और जाति आधारित समुदायों को निश्चित रूप प्रदान किया।
Prasanna
Last Updated on June 7, 2022, 3:04 p.m.
Published June 7, 2022