RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

These comprehensive RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Sociology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Sociology Notes to understand and remember the concepts easily. The bhartiya samaj ka parichay is curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 Notes सांस्कृतिक परिवर्तन

→ उपनिवेशवाद से हुए परिवर्तनों ने भारतीय सामाजिक संरचना में बदलाव उत्पन्न किए। औद्योगीकरण और नगरीकरण से भारतीयों की कार्यप्रणालियों में परिवर्तन आया। संस्कृति, जीवनशैली, मूल्य, फैशन तथा लोगों की भाव-भंगिमाओं में गुणात्मक परिवर्तन आया। सामाजिक संरचना से आशय लोगों के सम्बन्धों की सतत व्यवस्था से है जिसे कि सामाजिक रूप से स्थापित प्ररूप अथवा व्यवहार के प्रतिमान के रूप में सामाजिक संस्थाओं और संस्कृति के द्वारा परिभाषित और नियंत्रित किया जाता है। संरचनात्मक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । उपनिवेशिक शासन के प्रभाव के फलस्वरूप भारत में दो घटनाएँ घटीं

  • 19वीं शताब्दी के समाज सुधारकों एवं 20वीं शताब्दी के राष्ट्रवादी नेताओं ने महिलाओं व दलितों के साथ भेदभाव खत्म या कम करने का सुनियोजित व सजग प्रयास किया।
  • संस्कृतीकरण, आधुनिकीकरण, लौकिकीकरण व पश्चिमीकरण के कारण सांस्कृतिक व्यवहारों में निर्णायक तथा सुनिश्चित परिवर्तन हुए।

I. उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुए समाज सुधार आन्दोलन-उपनिवेशवाद के समय भारतीय समाज विभिन्न सामाजिक कुरीतियों से ग्रस्त था, जैसे-सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवा-पुनर्विवाह निषेध और जाति-भेद इत्यादि। उपनिवेशवाद से पूर्व भी इन सामाजिक कुरीतियों को बौद्ध धर्म, भक्ति एवं सूफी आन्दोलनों के द्वारा मिटाने का प्रयत्न भी किया गया था। 19वीं सदी में यह प्रयास पश्चिमी उदारवाद के आधुनिक विचार एवं प्राचीन साहित्य के प्रतीक नयी दृष्टि का मिला-जुला स्वरूप था।

समाजशास्त्री सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों की रूपरेखा से जुड़े निम्नलिखित तीन पहलू बताए हैं

  • संचार माध्यम
  • संगठनों के स्वरूप, तथा
  • विचारों की प्रकृति

प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ, माइक्रोफोन, पानी के जहाज तथा रेल आवागमन ने नवीन विचारों को तीव्र गति देने में सहायता की।
ब्रह्म समाज, आर्यसमाज आदि संगठनों ने सभाओं, गोष्ठियों, अखबार, पत्रिका आदि के माध्यम से सामाजिक विषयों पर वाद-विवाद जारी रखा।

स्वतंत्रता, उदारवाद, परिवार व विवाह सम्बन्धी, शिक्षा सम्बन्धी नये विचार आए। राष्ट्र को आधुनिक बनाने के साथ-साथ प्राचीन विरासत को बनाए रखने पर बल दिया गया।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

→ समाज सुधार आन्दोलनों में विषयगत समानताएँ:

  • महिलाओं की शिक्षा को न्यायोचित ठहराने के विचारों को सभी समाज सुधार आन्दोलनों का समर्थन मिला।
  • सभी ने बौद्धिक तथा सामाजिक उन्नति के प्रश्नों की पुनर्व्यवस्था की।
  • यह समझा गया कि राष्ट्र को आधुनिक बनाना जरूरी है लेकिन प्राचीन विरासत को बनाए रखना भी जरूरी है।

→ समाज सुधार आन्दोलनों में महत्त्वपूर्ण असमानताएँ:

  • हिन्दू समाज सुधारकों में कुछ में सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंता थी, जबकि कुछ ने सच्चे हिन्दुत्व के सच्चे विचारों के कमजोर होने पर चिंता जतायी तथा कुछ के लिए तो धर्म में जाति एवं लैंगिक शोषण अन्तर्निहित था।
  • मुस्लिम समाज सुधारकों ने बहु-विवाह और पर्दा-प्रथा पर सक्रिय स्तर पर बहस की।
  • समुदायों के भीतर बहस आम बात थी-ब्रह्म समाज ने सती प्रथा का विरोध किया तो धर्म सभा ने इसका समर्थन किया।

II. संस्कृतीकरण, आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण तथा पश्चिमीकरण
औपनिवेशिक आधुनिकता में आंतरिक विरोधाभास था। आधुनिकता के कारण न केवल नए विचारों को राह मिली बल्कि परम्परा पर भी पुनर्विचार हुआ और उसकी पुनर्विवेचना हुई । भारत में संरचनात्मक व सांस्कृतिक विविधता है। यह विविधता उन विभिन्न तरीकों को आकार देती है जिसमें आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण या पंथनिरपेक्षीकरण आदि विभिन्न समूहों के लोगों को अलग-अलग प्रभावित करते हैं। 

→ सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न प्रकार
(1) संस्कृतीकरण-संस्कृतीकरण एक सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया है जो उपनिवेशवाद के प्रादुर्भाव के पहले से है और ये बाद में भी भिन्न रूपों में जारी रही। श्रीनिवास के अनुसार, संस्कृतीकरण का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसमें निम्न जाति या जनजाति या अन्य समूह उच्च जातियों विशेषकर, द्विज जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान, मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करते हैं। संस्कृतीकरण के बहुआयामी प्रभाव हैं। इसके प्रभाव भाषा, साहित्य, विचारधारा, संगीत, नृत्य, नाटक, अनुष्ठान व जीवन पद्धति आदि में देखे जा सकते हैं।

संस्कृतीकरण की प्रमुख विशेषताएँ

  • मूलतः संस्कृतीकरण की प्रक्रिया हिन्दू समाज के अन्तर्गत विद्यमान है।
  • संस्कृतीकरण की प्रक्रिया देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग ढंग से होती है।
  • किसी भी समूह का संस्कृतीकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है।
  • सामान्यतः संस्कृतीकरण सम्बन्धित समूह की आर्थिक अथवा राजनीतिक स्थिति में सुधार है अथवा हिन्दुत्व की महान परम्पराओं के किसी स्रोत के साथ उसका सम्पर्क होता है जिससे उसमें उच्च चेतना का भाव उभरता है। यह स्रोत कोई तीर्थस्थल, कोई मठ अथवा कोई मतांतर वाला संप्रदाय हो सकता है।
  • इसमें व्यक्ति सांस्कृतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित समूहों के रीति-रिवाजों एवं नामों का अनुकरण कर अपनी प्रस्थिति को उच्च बनाते हैं।

→ संस्कृतीकरण की आलोचना: संस्कृतीकरण की अवधारणा की अनेक स्तरों पर आलोचना की गई है

  • इसमें दलितों की सामाजिक स्तरीकरण में ऊर्ध्वगामी परिवर्तन करने की सामाजिक गतिशीलता को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है।
  • इसमें उच्च जाति के लोगों की जीवनशैली का अनुकरण करने की इच्छा को वांछनीय और प्राकृतिक मान लिया गया है।
  • यह अवधारणा असमानता और अपवर्जन पर आधारित प्रारूप को सही ठहराती है।
  • इसने लड़कियों और महिलाओं को असमानता की सीढ़ी में सबसे नीचे धकेल कर दहेज प्रथा को बढ़ावा दिया है।
  • इसमें दलित संस्कृति व दलित समाज के मूलभूत पक्षों को पिछड़ापन मान लिया जाता है। 20वीं सदी में पिछड़े वर्गों के आन्दोलनों के कारण जातीय समूह एवं व्यक्तियों की ऊर्ध्वगामी गतिशीलता में पंथनिरपेक्ष कारकों की भूमिका पर बल दिया जाने लगा है। अब प्रभुत्व जातियाँ प्रतिष्ठा की सूचक बन गई हैं।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन

(2) पश्चिमीकरण:
(i) अर्थ-पाश्चात्य देशों के सांस्कृतिक लक्षणों तथा तत्त्वों के अपनाने की प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत उन प्रयत्नों को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा हम अपने सामाजिक, नैतिक तथा आर्थिक व्यवहार को पाश्चात्य जीवन पद्धति के अनुरूप ढालते हैं । साधारणतया इस शब्द का प्रयोग पाश्चात्य संस्कृति के भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है । यह भारतीय समाज और संस्कृति में लगभग 150 सालों के ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं, जैसे-प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा और मूल्य इत्यादि।

(ii) पश्चिमीकरण का प्रभाव
(अ) चिंतन शैली पर प्रभाव-सर्वप्रथम पश्चिमीकरण का प्रभाव भारतीयों के उस छोटे समूह ने अपनाया जो पहली बार पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आए। इन्होंने न केवल पश्चिमी प्रतिमान, चिन्तन के प्रकारों, स्वरूपों एवं जीवन शैली को स्वीकारा बल्कि इनका समर्थन भी किया। 19वीं सदी के अनेक समाज सुधारक इसी प्रकार के थे।
(ब) जीवन शैली पर प्रभाव-मध्य वर्ग, जो पश्चिमी सांस्कृतिक तत्त्वों, उपकरणों, पोशाकों, खाद्य पदार्थ और तौर-तरीकों को अपना रहा था, इसमें किसी संस्कृति विशेष के बाह्य तत्त्वों के अनुकरण की प्रवृत्ति भी होती थी।
(स) कला व साहित्य पर प्रभाव-भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पडा।
(द) पीढ़ियों के संघर्ष पर प्रभाव-आज के युग में पीढ़ियों के बीच संघर्ष और मतभेद को भी पश्चिमीकरण के प्रभाव के रूप में देखा जाता है।

(3) आधुनिकीकरण पंथनिरपेक्षीकरण: आधुनिकीकरण शब्द का एक लम्बा इतिहास है। प्रारम्भिक वर्षों में आधुनिकीकरण का आशय प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रक्रियाओं में होने वाले सुधार से था। परन्तु समय के साथ इस शब्द का मतलब वृहद् हो गया। यह ऐसी प्रक्रिया है जिससे धर्म के प्रभाव में कमी आती है। आधुनिक समाज में ज्यादा पंथनिरपेक्षीकरण होता है। जैसे-जैसे आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई और विकास की गति बढ़ी, धर्म तथा विभिन्न प्रकार के उत्सवों, त्यौहार को मनाना, विभिन्न धार्मिक कृत्यों, विभिन्न समारोह के आयोजनों, इन समारोह से जुड़े निषेध, विभिन्न प्रकार के दान एवं उनके मूल्य इत्यादि में कमी आई है।

Prasanna
Last Updated on June 7, 2022, 3:13 p.m.
Published June 7, 2022