RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

These comprehensive RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Sociology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Sociology Notes to understand and remember the concepts easily. The bhartiya samaj ka parichay is curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 Sociology Chapter 2 Notes भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ जनसांख्यिकीय का अर्थ यह जनसंख्या का सुव्यवस्थित अध्ययन है। आंग्ल भाषा में इसे 'डेमोग्राफी' कहा जाता है, जो कि यूनानी भाषा के 'डेमोस' और 'ग्राफीन' शब्दों के मेल से बना है। इसमें जनसंख्या के आकार में परिवर्तन, जन्म, मृत्यु, प्रवसन के स्वरूप तथा जनसंख्या संरचना का अध्ययन किया जाता है।

→ जनसांख्यिकी के रूप: ये कई प्रकार की होती हैं, जैसे

  • आकारिक जनसांख्यिकी
  • सामाजिक जनसांख्यिकी।

→ जनसांख्यिकी अध्ययन का आरम्भ: 18वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों का उदय हुआ। राज्य के कार्यक्षेत्र के विस्तार के कारण जनसंख्या तथा अर्थव्यवस्था सम्बन्धी आँकड़ों की आवश्यकता हुई। आधुनिक अर्थों में जनसंख्या अध्ययन का शुभारम्भ 18वीं सदी में आरम्भ हुआ था। 1790 ई. में अमेरिका में प्रथम आधुनिक जनगणना आरम्भ हुई थी। 19वीं सदी में यूरोप के अन्य देशों के द्वारा इसे अपना लिया गया था। भारत में ब्रिटिश शासनकाल में 1867-72 ई. के मध्य जनगणना कार्य आरम्भ हुआ था। 1881 ई. से हर दस वर्ष के बाद जनगणना होने लगी। 1951 से अब तक सात दसवर्षीय जनगणनाएँ हो चुकी हैं। सबसे नवीन जनगणना सन् 2011 ई. में हुई थी।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ जनसांख्यिकीय अध्ययन का महत्त्व: जनसंख्यात्मक आँकड़े राज्य की नीतियों को बनाने, आर्थिक विकास तथा लोककल्याणकारी नीतियों को बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण होते हैं।

→ आकारिक जनसांख्यिकी और जनसंख्या अध्ययन में अन्तर: आकारिक जनसांख्यिकी मुख्य रूप से जनसंख्या परिवर्तन के संघटनों के विश्लेषण तथा मापन से सम्बन्धित है जबकि जनसंख्यात्मक अध्ययन के अन्तर्गत जनसंख्या की संरचनाओं तथा परिवर्तनों के व्यापक कारणों तथा परिणामों का पता लगाया जाता है।

→ जनसांख्यिकी सम्बन्धी प्रमुख सिद्धान्त एवं संकल्पनायें
1. माल्थस का जनसंख्या वृद्धि का सिद्धान्त-माल्थस के अनुसार मानव जनसंख्या उस दर की तुलना में तीव्र गति से बढ़ती है, जिस दर पर मनुष्य के भरण-पोषण के साधन बढ़ सकते हैं । इसीलिए मानव हमेशा गरीबी के स्तर पर जीवन-यापन करने के लिए दण्डित किया जाता है क्योंकि कृषि उत्पादन की वृद्धि हमेशा जनसंख्या वृद्धि से कम ही रहेगी। अतः आर्थिक संवृद्धि के लिए जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना आवश्यक है। .जनसंख्या नियंत्रण के लिए अधिक उम्र में विवाह तथा आत्मसंयम अथवा ब्रह्मचर्य का पालन करके जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। इस सिद्धान्त की कई आधारों पर आलोचना की जाती रही है।

2. जनसांख्यिकीय संक्रमण का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास के सभी स्तरों से जुड़ी होती है और प्रत्येक समाज विकास से सम्बन्धित जनसंख्या वृद्धि के एक निश्चित स्वरूप का अनुसरण करता है। 
जनसंख्या वृद्धि के तीन चरण होते हैं
(क) अल्पविकसित समाजों में जनसंख्या वृद्धि कम होना
(ख) विकासशील समाजों में जनसंख्या वृद्धि दर का ऊँचा होना
(ग) अन्तिम चरण में विकसित समाजों में जनसंख्या वृद्धि दर का ऊँचा पाया जाना। अतः बीच का संक्रमणकालीन अवस्था में जनसंख्या विस्फोट की समस्या पाई जाती है। 

→ सामान्य संकल्पनायें और संकेतक

  • जन्म दर: प्रति एक हजार की जनसंख्या के पीछे जीवित उत्पन्न हुए बच्चों की संख्या को जन्म दर कहा जाता है।
  • मृत्यु दर: एक निर्धारित अवधि के दौरान लोगों की होने वाली मृत्यु की संख्या को मृत्यु दर कहा जाता है।
  • जनसंख्या संवृद्धि दर: इसका अर्थ है-जन्म दर और मृत्यु दर के बीच का अन्तर। इसे प्राकृतिक वृद्धि दर भी कहा जाता है।
  • प्रजनन दर: इसका अर्थ है-बच्चे पैदा कर सकने की आयु वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्मे बच्चों की संख्या।
  • शिशु मृत्यु दर: यह उन बच्चों की मृत्यु दर को दर्शाती है जो जीवित पैदा हुए 1000 बच्चों में से एक वर्ष | की आयु प्राप्त होने से पहले मौत के मुँह में चले जाते हैं।
  • मातृ मृत्यु दर: यह उन स्त्रियों की संख्या का सूचक है जो जीवित प्रसूति के 1000 मामलों में अपने बच्चे को जन्म देते समय मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं।
  • आयु संभाविता: यह इस बात का सूचक है कि औसत व्यक्ति अनुमानतः कितने वर्षों तक जीवित रहेगा। इसकी गणना किसी निश्चित अवधि के दौरान एक आयु विशेष में मृत्यु दर सम्बन्धी आंकड़ों के आधार पर की जाती है।

→ स्त्री-पुरुष अनुपात: यह इस बात का सूचक है कि किसी क्षेत्र विशेष में एक निश्चित अवधि के दौरान प्रति 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या क्या है ? यदि स्त्री-पुरुष अनुपात स्त्रियों के पक्ष में है तो इसके दो कारण हैं

  • शैशवावस्था में बालिका शिशुओं में बालक शिशुओं की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है।
  • अधिकांश समाजों में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक वर्षों तक जिन्दा रहती हैं।

→ आयु संरचना: इसका अर्थ है-कुल जनसंख्या में विभिन्न आयु वर्गों में व्यक्तियों का अनुपात क्या है ? आयु संरचना विकास के स्तरों और औसत आयु संरचना में होने वाले परिवर्तनों के अनुपात बदलती
रहती है।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ पराश्रितता अनुपात जनसंख्या: इसमें एक ओर वे वृद्ध सम्मिलित किये जाते हैं जो कि अपनी वृद्धावस्था के कारण काम नहीं कर पाते हैं तो दूसरी ओर इसमें ऐसे छोटे बच्चों को भी शामिल किया जाता है जो कि अपनी छोटी आयु के कारण काम नहीं कर पाते हैं।

→ कार्यशील जनसंख्या: इसके अन्तर्गत उन लोगों को शामिल किया जाता है जो कि किसी काम में लगे हुए हैं। इसमें 15 से 64 वर्षों के लोगों को शामिल किया जाता है। 

→ भारत की जनसंख्या का आकार और संवृद्धि

  • सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ है। सन् 1901-1951 के बीच औसत वार्षिक संवृद्धि दर 1.33 प्रतिशत थी जो कि सन् 1961-1981 में 2.2 प्रतिशत हो गई। इसके बाद देश में वार्षिक संवृद्धि में गिरावट तो आई है परन्तु विकासशील देशों में यह सर्वाधिक है।
  • सन् 1931 से पूर्व मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही उच्च रहीं। इसके बाद मृत्यु दर में तेजी से गिरावट आई है। इसका मूल कारण अकाल तथा महामारियों पर नियंत्रण का हो जाना था।
  • भारत में अकाल के लिए वर्षा की कमी के अलावा परिवहन और संचार साधनों की कमी, राज्य के द्वारा किये अपर्याप्त प्रबन्ध भी अकाल के लिए उत्तरदायी रहे हैं। अमर्त्य सेन के अनुसार अकाल अनाज के उत्पादन में कमी आने के कारण नहीं पड़े अपितु 'हकदारी की पूर्ति के अभाव के कारण आये।
  • भारत में जिस गति से मृत्यु दर में गिरावट आई है उसी गति से जन्म दर में भी गिरावट आई है। केरल और तमिलनाडु जैसे कई राज्य प्रजनन दर को 1.7 तक नीचे लाने में सफल रहे हैं। 

→ भारतीय जनसंख्या की आयु संरचना

  • देश में 15 वर्ष से कम आयु वर्ग वाले वर्ग का हिस्सा जो कि 1971 में 42 प्रतिशत था वह सन् 2001 में 35 प्रतिशत पर आ गया है।
  • 15 से 60 के आयु वर्ग का हिस्सा 53% से बढ़कर 59 प्रतिशत तक हो गया है।
  • 60 वर्ष से उच्च आयु वर्ग का हिस्सा केवल 5 से 7 प्रतिशत ही है जो कि सबसे छोटा हिस्सा है। अगले दो दशकों में आयु संरचना में काफी परिवर्तन आने की उम्मीद की जा रही है।
  • प्रजनन दर की दृष्टि से केरल जैसा राज्य विकसित देशों की स्थिति को प्राप्त होने लगा है तो दूसरी ओर उत्तरप्रदेश जैसा राज्य काफी पिछड़ी अवस्था में है।
  • इसी प्रकार छोटी आयु समूह में जनसंख्या का अनुपात सबसे ज्यादा है जबकि वृद्धावस्था का अनुपात काफी कम है। 

→ भारत में गिरता हुआ स्त्री-पुरुष अनुपात
लिंगानुपात:
प्रति 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की औसत संख्या को लिंगानुपात कहा जाता है।

  • 1951 में देश में 1000 पुरुषों के पीछे 946 स्त्रियाँ थीं जो कि 2011 में यह लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 943 हो गया है।
  • भारत में स्त्री-पुरुष अनुपात में गिरावट के लिए निम्न कारण हैं-शैशवावस्था में कन्याओं की देखभाल की घोर उपेक्षा, गर्भपात जिसमें कन्या भ्रूण हत्या किया जाना, बालिका शिशुओं की हत्या, धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों के कारण कन्याओं की हत्या इत्यादि।

साक्षरता: 

  • सन् 2011 के आँकड़ों के अनुसार स्त्रियों में साक्षरता दर पुरुषों की अपेक्षा लगभग 17 प्रतिशत कम है। यद्यपि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा साक्षरता दर अधिक बढ़ रही है।
  • सन् 2001 से 2011 के मध्य स्त्रियों में साक्षरता दर में 10.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि में पुरुषों में साक्षरता की दर 5 प्रतिशत ही बढ़ पाई है।
  • इसी अवधि में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों जैसे सुविधाओं से वंचित लोगों में साक्षरता की दर काफी कम रही है। इनमें महिलाओं में साक्षरता की स्थिति तो और भी कमजोर है।

ग्रामीण-नगरीय भिन्नताएँ:

  • सन् 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या का 68.8 प्रतिशत भाग गाँवों में और 31.2 प्रतिशत भाग शहरों और कस्बों में निवास करता है।
  • पहले जहाँ कृषि देश के समग्र आर्थिक विकास में सर्वाधिक योगदान देती थी परन्तु आज इसका योगदान केवल एक-चौथाई रह गया है। इसका मूल कारण ग्रामीण जनसंख्या का विभिन्न कारणों से शहरों में पलायन कर जाना है।
  • नगरीकरण की प्रवृत्ति नगरों की जनसंख्या वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। नगरों में रोजगार के अवसर, आधुनिक जीवन मूल्य, अनुसूचित जाति और जनजातीय लोगों को सुरक्षा, शहरों में पर्याप्त सुविधायें इत्यादि कारण नगरों की जनसंख्या को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी रहे हैं।

RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 2 भारतीय समाज की जनसांख्यिकीय संरचना

→ भारत की जनसंख्या नीति:
सम्भवतः भारत विश्व का प्रथम देश था जिसके द्वारा सन् 1952 में अपनी जनसंख्या नीति की घोषणा की गई थी। भारत की जनसंख्या नीति के निम्नलिखित उद्देश्य रहे हैं

  • जनसंख्या संवृद्धि की दर और स्वरूप को प्रभावित करके सामाजिक दृष्टि से वांछनीय दिशा की ओर ले जाने का प्रयास करना।
  • जन्म नियंत्रण के विभिन्न उपायों के माध्यम से जनसंख्या संवृद्धि की दर को धीमा करना।
  • जन स्वास्थ्य के मानक स्तरों में सुधार करना।
  • जनसंख्या तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी मुद्दों के बारे में आम लोगों की जागरूकता को बढ़ाना।

1975-76 में आपातकाल के दौरान परिवार नियोजन के कार्यक्रमों को काफी धक्का पहँचा। इस दौरान जोर-जबरदस्ती से लोगों के बन्ध्याकरण कार्यक्रम लागू किये गये। अधिकांशतः गरीब और सरकारी कर्मचारियों पर इसके लिए दबाव डाले गये थे।

Prasanna
Last Updated on June 7, 2022, 2:27 p.m.
Published June 7, 2022