RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

Rajasthan Board  RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 1.
विश्वभर में बड़ी संख्या में विद्यार्थी तथा कार्यालयकर्मी अपने काम पर जाते हैं
(क) पाँच या छः दिन 
(ख) सात दिन 
(ग) चार दिन 
(घ) तीन दिन
उत्तर:
(क) पाँच या छः दिन 

प्रश्न 2. 
अधिकांश कार्यालयों में कार्यदिवस होता है
(क) पाँच घंटे का 
(ख) छः घंटे का 
(ग) सात घंटे का
(घ) आठ घंटे का
उत्तर:
(घ) आठ घंटे का

प्रश्न 3. 
निम्न में से सामाजिक आन्दोलन के विरोध का साधन कौनसा है ? 
(क) मोमबत्ती जलाना
(ख) काले कपड़े का प्रयोग 
(ग) नुक्कड़ नाटक
(घ) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी 

RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 4. 
केरल के इजहावा समुदाय के लोगों ने नारायण गुरु के नेतृत्व में अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला–यह किस प्रकार के सामाजिक आन्दोलन का उदाहरण है?
(क) प्रतिदानात्मक 
(ख) सुधारवादी 
(ग) क्रांतिकारी 
(घ) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(क) प्रतिदानात्मक 

प्रश्न 5. 
हाल के सूचना के अधिकार का अभियान किस सामाजिक आन्दोलन का उदाहरण है?
(क) प्रतिदानात्मक 
(ख) सुधारवादी 
(ग) क्रांतिकारी 
(घ) अन्य 
उत्तर:
(ख) सुधारवादी 

प्रश्न 6. 
20वीं सदी के अधिकांश भाग में सामाजिक आन्दोलन निम्न में से किस पर आधारित थे? 
(क) जाति 
(ख) वर्ग 
(ग) धर्म
(घ) व्यवसाय 
उत्तर:
(ख) वर्ग

प्रश्न 7. 
पुराने सामाजिक आन्दोलन निम्न में से किस दायरे में काम करते थे? (क) धर्म के
(ख) राजनीतिक दलों के 
(ग) जाति के 
(घ) वर्ग के 

प्रश्न 8. 
पुराने सामाजिक आन्दोलनों में किसकी केन्द्रीय भूमिका होती थी?
(क) सामाजिक दल 
(ख) धार्मिक नेता 
(ग) जातीय नेता 
(घ) अन्य 
उत्तर:
(क) सामाजिक दल 

प्रश्न 9. 
अश्वेत लोगों के समान अधिकार के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में आंदोलन चलाया गया
(क) 1947 तथा 1957 के दशक में
(ख) 1839 तथा 1849 के दशक में 
(ग) 1950 तथा 1960 के दशक में
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं 
उत्तर:
(ग) 1950 तथा 1960 के दशक में

प्रश्न 10. 
'द लॉजिक ऑफ क्लैक्टिव एक्शन' के लेखक हैं
(क) मनकर ओल्सन 
(ख) कार्ल मार्क्स 
(ग) ई.पी. थॉमसन 
(घ) दुर्खाइम 
उत्तर:
(क) मनकर ओल्सन 

प्रश्न 11.
संसाधन गतिशीलता का सिद्धान्त प्रस्तावित किया
(क) ई.पी. थॉमसन 
(ख) ओल्सन 
(ग) दुर्खाइम 
(घ) मैकार्थी ओरजेल्ड 
उत्तर:
(घ) मैकार्थी ओरजेल्ड 

प्रश्न 12. 
रीइन्वेंटिंग रिवोल्यूशन के लेखक हैं
(क) गेल ऑमवेट
(ख) रामचंद्र गुहा 
(ग) रजनी कोठारी
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) गेल ऑमवेट

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

प्रश्न 1. 
अनक्वाइट वुड्स के लेखक ......................हैं।
उत्तर:
रामचंद्र गुहा

प्रश्न 2.
............. सामाजिक आंदोलन का लक्ष्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाना होता है। 
उत्तर:
प्रतिदानात्मक

प्रश्न 3. 
केरल के ................. समुदाय के लोगों ने ................... के नेतृत्व में अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला। 
उत्तर:
इजवाहा, नारायण गुरु 

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प्रश्न 4. 
जेम्स स्काट ने अपनी पुस्तक ...................... में मलेशिया के किसानों और मजदूरों के जीवन का विश्लेषण किया है।
उत्तर:
वैपन्स ऑफ द वीक 

प्रश्न 5. 
चीन की.......................पार्टी ने चीनी क्रान्ति का नेतृत्व किया। 
उत्तर:
साम्यवादी 

प्रश्न 6. 
भारत की पारिस्थितिकी में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में....................तथा स्वच्छ भारत अभियान को प्रारम्भ किया। 
उत्तर:
एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन

प्रश्न 7.
...................... आंदोलन हिमालय की तलहटी में पारिस्थितिकीय आंदोलन का उदाहरण है। 
उत्तर:
चिपको

प्रश्न 8. 
1859-62 का विद्रोह.....................की खेती के विरुद्ध था।
उत्तर:
नील

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
दलित सामाजिक आन्दोलन के दो उदाहरण दीजिये। 
उत्तर:

  1. सतनामी आन्दोलन (पंजाब में), 
  2. महार आन्दोलन (महाराष्ट्र में)। 

प्रश्न 2. 
प्रति आन्दोलन का एक उदाहरण दीजिए। 
उत्तर:
राजा राममोहन राय द्वारा सती प्रथा का विरोध करना। 

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प्रश्न 3. 
भारत में जाति आधारित सामाजिक आन्दोलन के दो उदाहरण दीजिये। 
उत्तर:

  1. महाराष्ट्र में महार आन्दोलन 
  2. दक्षिण भारत में ब्राह्मण विरोधी आन्दोलन। 

प्रश्न 4. 
सामाजिक आन्दोलन सामान्य सामाजिक बदलाव से भिन्न क्यों होते हैं? 
उत्तर:
क्योंकि ये किसी विशिष्ट उद्देश्य की ओर निर्देशित होते हैं। 

प्रश्न 5. 
बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के दो महिला संगठनों के नाम लिखिये। 
उत्तर:

  1. वीमेन्स इण्डिया एसोसियेशन। 
  2. ऑल इण्डिया वीमेन्स कान्फ्रेंस। 

प्रश्न 6. 
सफ्रागेट्स का क्या अर्थ है ? 
उत्तर:
सफ्रागेट्स महिला आन्दोलनकारी के लिए लिया गया था। 

प्रश्न 7. 
सामाजिक आन्दोलनों के तीन प्रकारों के नाम लिखिये। 
उत्तर:

  1. प्रतिदानात्मक 
  2. सुधारवादी 
  3. क्रांतिकारी। 

प्रश्न 8. 
सर्वप्रथम मजदूर संघ की स्थापना कब व किसने की? 
उत्तर:
सन् 1918 में बी.पी. वाडिया ने। 

प्रश्न 9. 
महात्मा गाँधी ने किस मजदूर संघ की स्थापना की? 
उत्तर:
टेक्सटाइल लेबर एसोसियेशन की। 

प्रश्न 10. 
एटक का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
'ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन काँग्रेस'। 

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प्रश्न 11. 
1958 और 1914 के बीच किसान आन्दोलन के क्या कारण थे? 
उत्तर:
इस अवधि के किसान आन्दोलन के कारण थे:

  1. स्थानीयता, 
  2. विभाजन 
  3. विशिष्ट शिकायतें। 

प्रश्न 12. 
प्राकृतिक जंगलों को काटा जाना पर्यावरणीय विनाश का कारण क्यों है? 
उत्तर:
क्योंकि इसके कारण क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ तथा भूस्खलन होते हैं। 

प्रश्न 13. 
तेलंगाना आन्दोलन किन दशाओं के विरुद्ध था? 
उत्तर:
यह प्रिंसली राज्य हैदराबाद की सामन्ती दशाओं के विरुद्ध था। 

प्रश्न 14. 
गेल आमवेट की पुस्तक का नाम क्या है? 
उत्तर:
रीइन्वेन्टिंग रिवोल्यूशन।

प्रश्न 15. 
मैकार्थी और जेल्ड ने सामाजिक आन्दोलन के किस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया? 
उत्तर:
गतिशीलता के सिद्धान्त का। 

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प्रश्न 16. 
समानान्तर विस्तार किसे कहा जाता है ? 
उत्तर:
समान रूप से अवस्थित जाति समूहों पर स्वयं को संगठित करने को। 

प्रश्न 17. 
किसी एक पारिस्थितिकीय आन्दोलन का नाम लिखिये। 
उत्तर:
चिपको आन्दोलन। 

प्रश्न 18. 
चार्टरवाद किस देश से सम्बन्धित सामाजिक आन्दोलन था? 
उत्तर:
इंग्लैण्ड से।

प्रश्न 19. 
अश्वेत लोगों के समान अधिकार के लिए कौनसा आन्दोलन चलाया गया था? 
उत्तर:
नागरिक आन्दोलन।

प्रश्न 20. 
राजा राममोहन राय के सती प्रथा के विरोध में ब्रह्म समाज की स्थापना की प्रतिक्रिया में सती-प्रथा प्रतिरक्षकों ने किस सभा की स्थापना की थी?
उत्तर:
धर्म सभा की। 

प्रश्न 21. 
भारत में नक्सली आन्दोलन किस प्रकार के सामाजिक आन्दोलन का उदाहरण है? 
उत्तर:
क्रांतिकारी सामाजिक आन्दोलन का। 

प्रश्न 22. 
ऐसे दो देशों के नाम लिखिये जहाँ साम्यवादी समाजवादी राज्यों का गठन हुआ? 
उत्तर:

  1. चीन 
  2. सोवियत संघ। 

प्रश्न 23. 
किसान आन्दोलन कब शुरू हुए। 
उत्तर:
1958 और 1914 के बीच। 

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प्रश्न 24. 
1859-62 के किसान आन्दोलन का मुख्य कारण क्या था? 
उत्तर:
नील की खेती। 

प्रश्न 25. 
बारदोली सत्याग्रह अभियान किस जिले में शुरू हुआ? 
उत्तर:
सूरत जिले में। 

प्रश्न 26. 
तिभागा आन्दोलन को किस पार्टी का समर्थन प्राप्त था? 
उत्तर:
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का। 

प्रश्न 27. 
आसाम में चाय बागानों को लगाने का काम किस सन् में शुरू हुआ? 
उत्तर:
सन् 1839 में। 

प्रश्न 28. 
बम्बई में ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना कब हुई ? 
उत्तर:
सन् 1920 में।

प्रश्न 29. 
सामाजिक आन्दोलन समाज में क्या भूमिका निभाते हैं? 
उत्तर:
ये समाज को बदलने तथा अन्य सामाजिक आन्दोलन को प्रेरणा देते हैं। 

प्रश्न 30. 
क्रांतिकारी सामाजिक आन्दोलन किस बात का प्रयास करते हैं ?
उत्तर:
सामाजिक सम्बन्धों के आमूल रूपान्तरण का। 

प्रश्न 31. 
आपकी पाठ्य पुस्तक में उल्लिखित रामचन्द्र गुहा की पुस्तक का नाम लिखिये। 
उत्त:
'अनक्वाइट वुड्स'। 

प्रश्न 32. 
1857 का दक्कन विद्रोह किसके विरुद्ध हुआ? 
उत्तर:
साहूकारों के विरुद्ध। 

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प्रश्न 33. 
बारदोली सत्याग्रह क्या था? 
उत्तर:
वारदोली सत्याग्रह एक लगान विरोधी आन्दोलन था।

प्रश्न 34. 
उन किसान आन्दोलनों के नाम बताइये जो बाद में गाँधीजी के नेतृत्व में आंशिक रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये थे।
उत्तर:

  1. बारदोली सत्याग्रह 
  2. चम्पारन सत्याग्रह। 

प्रश्न 35. 
नक्सली आन्दोलन किस क्षेत्र में शुरू हुआ? 
उत्तर:
बंगाल में। 

प्रश्न 36. 
1970 के दशक में नए किसान आन्दोलन किन दो राज्यों में प्रारम्भ हुए? 
उत्तर:

  1. पंजाब और 
  2. तमिलनाडु में। 

प्रश्न 37. 
भारत में सर्वप्रथम मजदूर संघ की स्थापना कब और किसने की? 
उत्तर:
सन् 1918 में बी.पी. वाडिया ने। 

प्रश्न 38. 
गाँधीजी ने किस आंदोलन के एक भाग के रूप में अपना प्रतिरोध जताते हुए नमक कानून तोड़ा?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन। 

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प्रश्न 39. 
औपनिवेशिक राज्य अपनी संरक्षिता का वितरण किस आधार पर करते थे? 
उत्तर:
जाति के आधार पर। 

प्रश्न 40. 
झारखण्ड राज्य की स्थापना किस राज्य से काटकर की गई है? 
उत्तर:
बिहार राज्य से काटकर।

प्रश्न 41. 
झारखण्ड के लिए सामाजिक आन्दोलन के आदिवासी नेता का नाम क्या था? 
उत्तर:
बिरसा मुण्डा। 

प्रश्न 42. 
कौनसा मुद्दा देश के विभिन्न भागों की जनजातियों को जनजातीय आन्दोलन से जोड़ता है? 
उत्तर:
जनजातीय लोगों को वन - भूमि से विस्थापन का मुद्दा। 

प्रश्न 43. 
दो महिला संगठनों के नाम लिखिये। 
उत्तर:

  1. अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस। 
  2. भारत में महिलाओं की राष्ट्रीय काउंसिल। 

प्रश्न 44. 
पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आन्दोलन के दो नाम बताइये। 
उत्तर:

  1. अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग लीग। 
  2. हिन्दू पिछड़ा वर्ग लीग। 

प्रश्न 45. 
समानान्तर विस्तार किसे कहा जाता है? 
उत्तर:
समान रूप से अवस्थित जाति समूहों पर स्वयं को संगठित करना। 

प्रश्न 46. 
संसाधन गतिशीलता का सिद्धान्त किसने प्रस्तावित किया? 
उत्तर:
मैकार्थी और जेल्ड ने। 

प्रश्न 47. 
जेम्स स्काट ने 'वैपन्स ऑफ द वीक' में किसका विश्लेषण किया है? 
उत्तर:
मलेशिया के किसानों और मजदूरों के जीवन का। 

प्रश्न 48. 
चिपको आंदोलन का आधार क्या था? 
उत्तर:
अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकीय तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व। 

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प्रश्न 49. 
ऑल इण्डिया किसान सभा का उदय कब हुआ? 
उत्तर:
936 में। 

प्रश्न 50. 
भारत में कारखानों से उत्पादन कब शुरू हुआ? 
उत्तर:
1860 के प्रारम्भिक भाग में। 

प्रश्न 51. 
आसाम में चाय बागानों को लगाने का काम कब प्रारम्भ हुआ? 
उत्तर:
1839 के आसपास। 

प्रश्न 52. 
टी.एल.ए. से आपका क्या आशय है? इसकी स्थापना किसने की? 
उत्तर:
टैक्सटाइल लेबर एसोसिएशन। इसकी स्थापना महात्मा गाँधी ने की। 

प्रश्न 53. 
चौथा कारखाना अधिनियम कब पारित किया गया? 
उत्तर:
1922 में। 

प्रश्न 54. 
मजदूर संघ अधिनियम कब पारित किया गया? 
उत्तर:
सन् 1926 में। 

प्रश्न 55. 
जनजातीय बेल्ट से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
छोटानागपुर व संथाल परगना में स्थित संथाल, हो, ओरांव व मुंडा को जनजातीय बेल्ट कहते हैं। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
हम स्वयं अपने द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के अतिरिक्त किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा शासित नहीं हो सकते हैं।

प्रश्न 2. 
नए सामाजिक आन्दोलन पुराने सामाजिक आन्दोलनों से भिन्न हैं, क्योंकि ?
उत्तर:
नए सामाजिक आन्दोलन पुराने सामाजिक आन्दोलनों से भिन्न हैं, क्योंकि नये सामाजिक आन्दोलन समाज में सत्ता के वितरण को बदलने के बारे में न होकर स्वच्छ पर्यावरण व जीवन की गुणवत्ता के बारे में थे।

प्रश्न 3. 
19वीं सदी और 20वीं सदी के प्रारम्भ में समाज सुधार आन्दोलन के द्वारा उठाये गये दो मुद्दे कौनसे थे?
उत्तर:

  1. महिला कल्याण तथा राजनीति परस्पर असम्बद्ध हैं। 
  2. क्या भारतीय पुरुष अथवा स्त्री आजाद हो सकते हैं यदि भारत गुलाम रहे। 

प्रश्न 4.
सामाजिक आंदोलनों के प्रारूप की दो विशेषताएँ लिखिए। 
उत्तर:

  1. सामाजिक आंदोलन में एक लम्बे समय तक निरन्तर सामूहिक गतिविधियों की आवश्यकता होती है।
  2. ऐसी गतिविधियाँ प्रायः राज्य के विरुद्ध होती हैं तथा राज्य की नीति तथा व्यवहार में परिवर्तन की माँग करती हैं।

प्रश्न 5. 
दलित सामाजिक आन्दोलनों का अन्य आन्दोलनों से भिन्न एक विशेष चरित्र क्यों था?
उत्तर:
दलित सामाजिक आन्दोलन मानव के रूप में पहचान प्राप्त करने का तथा आत्मविश्वास और आत्मनिर्णय का स्थान हासिल करने का संघर्ष है, न कि शोषण या राजनीतिक दबाव के विरुद्ध संघर्ष।

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प्रश्न 6. 
सामाजिक आंदोलन के उद्देश्य क्या होते हैं? कोई एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक आंदोलन प्रायः किसी जनहित के मामले में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण-जनजातीय लोगों के लिए जंगल के उपयोग का अधिकार अथवा विस्थापित लोगों के पुनर्वास तथा क्षतिपूर्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए।

प्रश्न 7. 
सुधारवादी आन्दोलन और क्रांतिकारी आन्दोलन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुधारवादी आन्दोलन वर्तमान सामाजिक व राजनीतिक विन्यास को धीमे व प्रगतिशील चरणों द्वारा परिवर्तन लाने का प्रयास करता है, जबकि क्रांतिकारी आन्दोलन सामाजिक सम्बन्धों के आमूल रूपान्तरण का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 8. 
किसी सामाजिक आन्दोलन को कौन-सी विशेषताएँ चिन्हित या निर्धारित करती हैं? उत्तर:

  1. सामाजिक आन्दोलन किसी विशेष उद्देश्य की तरफ निर्देशित होते हैं। 
  2. सामाजिक आन्दोलन में दीर्घ तथा निरन्तर सामाजिक प्रयास तथा व्यक्तियों की गतिविधियाँ शामिल होती हैं। 

प्रश्न 9. 
सामाजिक आन्दोलनों में विरोध के विभिन्न साधन कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलनों में विरोध प्रकट करने के विभिन्न साधन हैं

  1. मोमबत्ती या मशाल जुलूस, 
  2. काले कपड़े का प्रयोग, 
  3. नुक्कड़ नाटक, गीत, कविताएँ इत्यादि।

प्रश्न 10. 
डांडी यात्रा के माध्यम से गाँधीजी ने किसका विरोध किया?
उत्तर:
डांडी यात्रा अंग्रेजों की कर नीतियों, जिसमें उपभोग की मूलभूत सामग्री के उपभोक्ताओं पर साम्राज्य को लाभ पहुंचाने के लिए बहुत अधिक भार डाला गया था, के खिलाफ एक विरोध था।

प्रश्न 11. 
फ्रांसीसी क्रान्ति का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
फ्रांसीसी क्रान्ति राजतंत्र को उखाड़ फेंकने तथा 'स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुता' स्थापित करने के उद्देश्य से चलाया गया।

प्रश्न 12. 
सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त की सीमा क्या है?
उत्तर:
सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त की सीमा यह है कि हालाँकि वंचन का आभास सामूहिक गतिविधि के लिए एक आवश्यक दशा है फिर भी यह स्वयं में एक पर्याप्त कारण नहीं है।

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प्रश्न 13. 
दलित शब्द का प्रयोग आमतौर पर क्यों किया जाता है?
उत्तर:
दलित शब्द का प्रयोग आमतौर पर मराठी, हिन्दी, गुजराती तथा अन्य भारतीय भाषाओं में गरीब तथा उत्पीड़ित लोगों के अर्थ में किया जाता है।

प्रश्न 14. 
कृषक आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
कृषक आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य अपने उत्पादन हेतु बेहतर मूल्य तथा कृषि सम्बन्धी सहायता के हटाए जाने के विरुद्ध लोगों को गतिशील करना था।

प्रश्न 15. 
महिला आन्दोलन के क्या कारण थे?
उत्तर:
महिला आन्दोलन के लिंग-भेद के मुद्दों पर, कार्यस्थल तथा परिवार के अन्दर यौन शोषण तथा दहेज हत्याएँ जैसे विभिन्न कारण रहे हैं।

प्रश्न 16. 
तिभागा आन्दोलन के क्या कारण थे?
उत्तर:
तिभागा आन्दोलन का मुख्य कारण बंगाल और उत्तरी बिहार की पट्टेदारी का था जिसमें उसकी पैदावार का दो-तिहाई हिस्सा देना होता था, न कि प्रथागत आधा हिस्सा।

प्रश्न 17. 
किसानों से सम्बन्धित कुछ मुद्दों को बताइये जो औपनिवेशिक काल में बहुत प्रभावी थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद परिवर्तित हो गए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में किसानों के प्रभावी मुद्दे थे-भूमि सुधार, जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि कर। ये मुद्दे स्वतंत्रता के बाद समाप्त हो गये।

प्रश्न 18. 
किसान किसे कहते हैं ? 
उत्तर:
किसान उन्हें कहा जाता है जो कि वस्तुओं के उत्पादन और खरीद दोनों रूपों में बाजार से जुड़े होते

प्रश्न 19. 
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के दशकों में राष्ट्रीय आन्दोलन का भारत, मिस्र और इण्डोनेशिया पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के दशकों में राष्ट्रीय आन्दोलन के परिणामस्वरूप भारत, मिस्र, इण्डोनेशिया आदि देशों में विदेशी साम्राज्य का अन्त तथा नए स्वतंत्र राष्ट्र राज्यों का गठन हुआ।

प्रश्न 20. 
गेल ऑमवेट ने अपनी पुस्तक रीइन्वेंटिंग रिवोल्यूशन में क्या दर्शाया है ?
उत्तर:
गेल ऑमवेट ने अपनी पुस्तक रीइन्वेंटिंग रिवोल्यूशन में दर्शाया है कि सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के असामान्य वितरण के बारे में चिंताएँ इन आंदोलनों में भी आवश्यक तत्व बने हुए हैं।

प्रश्न 21. 
सामाजिक आंदोलन क्या है ?
उत्तर:
किसी समाज या जनहित के मामले में परिवर्तन लाने अथवा यथास्थिति बनाए रखने के सामूहिक प्रयास को सामाजिक आन्दोलन कहते हैं।

प्रश्न 22. 
किसी एक पारिस्थितिकीय आन्दोलन के बारे में संक्षेप में बताएँ।
उत्तर:
'चिपको आन्दोलन' उत्तराखण्ड गढ़वाल के क्षेत्र से प्रारम्भ होने वाला एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकीय आन्दोलन है। इसका प्रारम्भ सर्वोदयी नेता चण्डी प्रसाद भट्ट ने किया और राष्ट्रीय स्तर पर इसका नेतृत्व सुन्दरलाल बहुगुणा कर रहे हैं।

प्रश्न 23. 
वाणिज्यीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
वाणिज्यीकरण से आशय है-किसी वस्तु का एक उत्पाद के रूप में रूपान्तरण करना, ऐसी सेवा या क्रियाकलाप जिसका आर्थिक मूल्य हो और जिसका बाजार में व्यापार किया जा सकता है।

प्रश्न 24. 
गाँधीजी ने स्वतंत्रता आन्दोलन में किन साधनों को अपनाया था?
उत्तर:
गाँधीजी ने स्वतंत्रता आन्दोलन में अहिंसा, सत्याग्रह तथा चरखे के प्रयोग जैसे नये साधनों को अपनाया था।

प्रश्न 25. 
नये महिलाओं के सामाजिक आन्दोलन में कौनसी महिलाएं शामिल होती हैं ?
उत्तर:
नए महिला सामाजिक आन्दोलनों में नगरीय, मध्यवर्गीय महिलाएँ तथा गरीब कृषक महिलाएँ सभी शामिल होती हैं।

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प्रश्न 26. 
सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त के अनुसार सामाीजक संघर्ष कब उत्पन्न होता है?
उत्तर:
सापेक्षिक वंचन सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब एक सामाजिक समूह यह महसूस करता है कि वह अपने आस - पास के अन्य लोगों से खराब स्थिति में है।

प्रश्न 27. 
प्रतिदानात्मक सामाजिक आन्दोलन का लक्ष्य क्या होता है?
उत्तर:
प्रतिदानात्मक सामाजिक आन्दोलन का लक्ष्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में सामाजिक परिवर्तन लाना होता है।

प्रश्न 28. 
सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन किसका प्रयास करता है?
उत्तर:
सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे तथा प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलने का प्रयास करता है, न कि आमूल - चूल परिवर्तन का।

प्रश्न 29. 
उपनिवेश - विरोधी आन्दोलनों ने सभी लोगों को किस आधार पर एकजुट किया?
उत्तर:
उपनिवेश विरोधी आन्दोलनों ने सभी लोगों (कामगार वर्गों तथा कृषकों) को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्षों में तथा उनके अधिकारों की लड़ाई के लिए एकत्रित किया।

प्रश्न 30. 
औपनिवेशिक काल की प्रारम्भिक अवस्था में मजदूरी सस्ती थी। क्यों?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल की प्रारम्भिक अवस्था में मजदूरी सस्ती थी क्योंकि औपनिवेशिक सरकार ने उनके वेतन और कार्य दशाओं के लिए कोई नियम नहीं बनाए थे।

प्रश्न 31. 
पिछड़ी जाति के मुद्दों के आस - पास एकजुट होकर कौन-कौन से संगठन खड़े हुए?
उत्तर:
पिछड़ी जाति के मुद्दों के आस - पास एकजुट होकर 'हिन्दू पिछड़ा वर्ग लीग' तथा 'अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग लीग' नामक संगठन खड़े हुए।

प्रश्न 32. 
किन्हीं पाँच किसान आन्दोलनों के नामों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:

  1. दक्कन विद्रोह 
  2. बारदोली सत्याग्रह 
  3. चम्पारन सत्याग्रह 
  4. तेलंगाना आन्दोलन 
  5. तिभागा आन्दोलन आदि। 

प्रश्न 33. 
चिपको आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा 
चिपको आन्दोलन की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर:
उत्तराखण्ड में सरकारी जंगल के ठेकेदार ओक तथा रोहोडेंड्रोन के पेड़ों को काटने के लिए आए तो गाँववासी, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएँ शामिल थीं, आगे बढ़े और कटाई रोकने के लिए पेड़ों से चिपक गए, क्योंकि गाँववासियों का जीवन-निर्वहन का प्रश्न दाँव पर था। इसी ने आगे चिपको आन्दोलन का रूप ले लिया। इस आंदोलन में ग्रामवासियों ने सामाजिक असमानता, पारिस्थितिकीय सुरक्षा तथा राजनीतिक प्रतिनिधित्व की उदासीनता के मुद्दे उठाए।

प्रश्न 34. 
सामाजिक परिवर्तन और सामाजिक आन्दोलन में अन्तर बताइये।
उत्तर:
सामाजिक परिवर्तन लगातार आगे की तरफ बढ़ता रहता है, जबकि सामाजिक आन्दोलन किसी विशिष्ट उद्देश्य की तरफ निर्देशित होते हैं। सामाजिक परिवर्तन की वृहद् ऐतिहासिक प्रक्रियायें असंख्य व्यक्तियों तथा सामूहिक गतिविधियों का परिणाम होती हैं, जबकि सामाजिक आंदोलन में लम्बा और निरन्तर सामाजिक प्रयास तथा लोगों की गतिविधियाँ शामिल होती हैं।

प्रश्न 35. 
कृषक व नव - किसान आन्दोलन के मध्य अन्तर बताइये।
उत्तर:
कृषक आन्दोलन कृषकों के आर्थिक शोषण के विरोध में हुए थे। ये भूमि सुधार, भूमि कर अर्थात् लगान कम करने, जमींदारी उन्मूलन के मुद्दों को लेकर हुए थे। नव - किसान आन्दोलन क्षेत्रीय आधार पर संगठित दल रहित थे तथा इनमें कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे। इनकी माँगों के केन्द्र में 'मूल्य' और इससे सम्बन्धित मुद्दे थे।

प्रश्न 36. 
नव किसान आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नव - किसान आन्दोलन पंजाब और तमिलनाडु में 1970 के दशक में प्रारम्भ हुए। ये आन्दोलन क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे, दलरहित थे और इनमें कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे। आन्दोलन की मौलिक विचारधारा मजबूत राज्य-विरोधी और नगर-विरोधी थी। इसकी माँगों के केन्द्र में लाभप्रद कीमतें, कृषि निवेश की कीमतें, टैक्स और उधार वापसी के मुद्दे थे।

प्रश्न 37. 
पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आन्दोलन के प्रति उच्च जातियों ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की है ? चर्चा कीजिये।
उत्तर:
पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आन्दोलन के प्रति उच्च जातियों के कुछ वर्गों में यह धारणा उत्पन्न की है कि उनकी उपेक्षा हो रही है। उन्हें लगता है कि उनके अल्पसंख्यक होने के कारण सरकार उनकी कोई परवाह नहीं करती।

प्रश्न 38. 
'पारिस्थितिकी आन्दोलन' का स्पष्टीकरण चिपको आन्दोलन से विशेष संदर्भ देते हुए कीजिये।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन में जीवन निर्वाह की अर्थव्यवस्था लाभ की अर्थव्यवस्था के विपरीत खडी थी। सामाजिक असमानता के इस मुद्दे के साथ चिपको आन्दोलन ने पारिस्थितिकीय सुरक्षा के मुद्दे को भी उठाया। प्राकृतिक जंगलों को काटने के कारण पर्यावरण का विनाश हुआ जिसके कारण विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुए।

प्रश्न 39. 
"नए किसान आन्दोलन को विश्व स्तर पर हो रहे नए सामाजिक आन्दोलनों के अंग के रूप में देखा जा सकता है।" इस कथन की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
नए किसान आन्दोलन की मौखिक विचारधारा मजबूत राज्य - विरोधी और नगर-विरोधी है। इसकी माँगों के केन्द्र में मूल्य और इससे सम्बन्धित मुद्दे हैं। साथ ही इन आन्दोलनों में पर्यावरण और महिला मुद्दों सहित इनके मुद्दों में विस्तार हुआ है। अतः उन्हें नए सामाजिक आन्दोलनों के एक भाग के रूप में विश्वस्तर पर देखा जा सकता है।

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प्रश्न 40. 
'नए किसानों के आंदोलन का चरित्र क्या था?
उत्तर:
'नए किसानों' का आंदोलन पंजाब और तमिलनाडु में 1970 के दशक से प्रारंभ हुआ। ये आंदोलन क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे, दल-रहित थे, और इसमें कृषक के स्थान पर किसान जुड़े थे। आंदोलन की मौलिक विचारधारा मजबूत, राज्य-विरोधी और नगर-विरोधी थी। माँगों के केंद्र में मूल्य और संबंधित मुद्दे थे। 

प्रश्न 41. 
सामाजिक आन्दोलन के तीन लक्षण बताइये।
अथवा 
किसी सामाजिक आन्दोलन को कौन - सी विशेषताएँ चिन्हित या निर्धारित करती हैं?
उत्तर:

  1. सामाजिक आन्दोलन में एक लम्बे समय तक निरन्तर सामूहिक गतिविधियाँ आवश्यक होती हैं जो प्रायः राज्य की नीति तथा व्यवहार में परिवर्तन की माँग करती हैं।
  2. सामाजिक आन्दोलन में भाग लेने वाले लोगों के उद्देश्य तथा विचारधाराओं में समानता होती है। 
  3. सामाजिक आन्दोलन में कुछ हद तक संगठन, नेतृत्व और संरचना होती है।

प्रश्न 42. 
तथाकथित 'नए किसानों' ने उपद्रव के कौनसे नए तरीके अपनाए? इन आंदोलनों के पीछे क्या तर्क दिया जाता है?
उत्तर:
'नए किसानों' ने उपद्रव के नए तरीके अपनाए, जैसे-सड़कों एवं रेलमार्गों को बंद करना, राजनीतिज्ञों और प्रशासकों के लिए गाँव में प्रवेश की मनाही इत्यादि। यह तर्क दिया जाता है कि किसान आंदोलनों के वातावरण एवं महिला मुददों सहित उनकी कार्यसूची एवं विचारधारा में विस्तार हुआ है।

प्रश्न 43. 
औपनिवेशिक शासन में कारखानों को बंदरगाह वाले शहरों में क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन में व्यापार का एक सामान्य तरीका था, जिसके अनुसार कच्चे माल का उत्पादन भारत में किया जाता था और सामान का निर्माण 'युनाइटेड किंगडम' में होता और उसे उपनिवेश में बेचा जाता था। इसीलिए इन कारखानों को बंदरगाह वाले शहरों कलकत्ता और बंबई में स्थापित किया गया।

प्रश्न 44. 
सामाजिक आन्दोलनों का अध्ययन समाजशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण है। समझाइये। 
उत्तर:
समाजशास्त्र में सामाजिक आंदोलनों के अध्ययन का महत्त्व

  1. सामाजिक आन्दोलन समाज में क्यों होते हैं, इनका क्या प्रभाव पड़ता है, इसके अध्ययन के आधार पर समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था का गहराई से अध्ययन कर पाता है।
  2. सामाजिक आंदोलनों को समाजशास्त्र में समाज में अव्यवस्था फैलाने वाली शक्तियों के रूप में अध्ययन किया जाता है।
  3. समाजशास्त्र में सामाजिक आंदोलनों की व्याख्या का सापेक्षिक वंचन का सिद्धान्त इसके मनोवैज्ञानिक कारकों को स्पष्ट करता है।

प्रश्न 45. 
AITUC पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
ऐटक (AITUC)-ऐटक भारत की प्राथमिक ट्रेड यूनियन थी। इसकी स्थापना मुम्बई में 31 अक्टूबर, 1920 को हुई थी। इसका प्रमुख जनरल सेक्रेटरी कहलाता है। लाला लाजपत राय इसके प्रथम अध्यक्ष थे। इससे सम्बद्ध यूनियनें हैं-टैक्सटाइल, इंजीनियरिंग, कोयला, स्टील, सड़क परिवहन, विद्युत बोर्ड तथा अनेक असंगठित क्षेत्रों के श्रमिक संघ।

प्रश्न 46. 
नक्सली आन्दोलन क्या है ?
उत्तर:
नक्सली आन्दोलन - बंगाल के नक्सलवादी क्षेत्र में सामन्ती दशाओं के विरुद्ध किसानों द्वारा किया गया आन्दोलन नक्सली आन्दोलन कहा जाता है। इसमें बनी किसान समितियाँ सशस्त्र गार्ड में रूपान्तरित हो गईं। इन्होंने जमीनों को किसान समितियों के नाम से अधिगृहीत कर प्रलेखों को जला दिया तथा क्षेत्र में समान्तर प्रशासन का गठन किया।

प्रश्न 47. 
पर्यावरण संरक्षण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से छुटकारा पाने के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जो उपाय किये हैं, उन्हें पर्यावरण संरक्षण के नाम से जाना जाता है। पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित प्रमुख कानून हैं:

  1. जल और वायु प्रदूषण निवारण और नियंत्रण अधिनियम, 
  2. फैक्ट्री अधिनियम और 
  3. कीटनाशक अधिनियम आदि।

प्रश्न 48. 
"भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान विदेशी सत्ता तथा पूँजी का मेल सामाजिक विरोधों का केन्द्रबिन्दु था।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान विदेशी सत्ता तथा पूँजी का मेल सामाजिक विरोधों का केन्द्रबिन्दु था। महात्मा गाँधी ने भारत में कपास के किसानों तथा बुनकरों की जीविका के समर्थन में हाथ से कता और बना खादी वस्त्र पहना। नमक बनाने के लिए डांडी यात्रा अंग्रेजों की कर नीतियों के खिलाफ थी। ये दोनों इस प्रतिरोध के प्रतीक बन गये थे।

प्रश्न 49. 
स्वतंत्र भारत का वयस्क मताधिकार औपनिवेशिक शासन के मतदान के अधिकार से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:

  1. स्वतंत्र भारत का वयस्क मताधिकार में निर्वाचित प्रतिनिधियों का ही शासन है, जबकि औपनिवेशिक शासन के मतदान से निर्वाचित प्रतिनिधियों को ब्रिटिश राजसत्ता द्वारा नियुक्त अधिकारियों के समक्ष झुकना पड़ता था।
  2. औपनिवेशिक शासन में सभी को मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं था, जबकि स्वतंत्र भारत का वयस्क मताधिकार सबको प्राप्त है।

प्रश्न 50. 
चौथा कारखाना अधिनियम तथा मजदूर संघ अधिनियम द्वारा मजदूरों को किस प्रकार की राहत मिली?
उत्तर:
सन् 1922 में सरकार ने चौथा कारखाना अधिनियम पारित किया जिसने कार्य अवधि के घंटों को घटाकर 10 घंटे का कर दिया। सन् 1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ जिसने मजदूर संघों के पंजीकरण का प्रावधान किया, और कुछ नियम बनाए।

प्रश्न 51. 
नए सन्दर्भ में दलित शब्द का प्रयोग कब हुआ था? इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दलित शब्द का नए संदर्भ में प्रथम प्रयोग मराठी में 1970 के दशक के प्रारंभ में बाबा साहब अंबेडकर के अनुयायियों ने नव-बौद्ध आंदोलनकारियों के संदर्भ में किया था। इसका अभिप्रायः उन लोगों से था जिन्हें उनके ऊपर के लोगों द्वारा जानबूझकर तोड़ा और धराशायी किया गया। इस शब्द में ही प्रदूषण, कर्म तथा न्यायोचित जाति संस्तरण की स्वाभाविक अस्वीकृति है।

प्रश्न 52. 
'पिछड़े वर्गों' की संज्ञा का प्रयोग कब से किया जा रहा है?
उत्तर:
'पिछड़े वर्गों' की संज्ञा का प्रयोग देश के विभिन्न भागों में 19वीं सदी के अंत से किया जा रहा है। इसका अधिक विस्तृत प्रयोग मद्रास प्रेसीडेंसी में 1872 से, मैसूर के राजशाही राज्य में 1918 से तथा बंबई प्रेसीडेंसी में 1825 से किया जा रहा है।

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प्रश्न 53. 
अधिकाधिक भागीदारी और सूचना के लिए सामाजिक आन्दोलनों और संगठनों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1970 के दशक में भारत में राज्य की संस्थाओं पर अभिजात लोगों का अधिकार हो गया। औपचारिक राजनीतिक व्यवस्था से छूट गये व्यक्ति सामाजिक आन्दोलनों तथा गैर दलीय राजनीतिक संगठनों में सम्मिलित हो गये। इनके माध्यम से उन्होंने अधिकाधिक भागीदारी और सूचना के लिए राज्य पर बाहर से दबाव डाला। महिला आन्दोलनों तथा संगठनों ने भी अपनी अधिकाधिक भागीदारी के लिए आरक्षण की मांग की।

प्रश्न 54. 
'जब विरोध सामूहिक गतिविधि का सर्वाधिक मूर्त रूप होता है तब सामाजिक आन्दोलन अन्य तरीकों से भी कार्य करता है।' स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जब विरोध सामूहिक गतिविधि का सर्वाधिक मूर्त रूप होता है तब सामाजिक आन्दोलन अन्य तरीकों से भी काम करता है, जैसे

  1. सामाजिक आन्दोलनकारी लोगों से सम्बन्धित मुद्दों पर सभाएँ करते हैं। 
  2. ये प्रचार योजनाएँ बनाकर सरकार पर दबाव बनाने वाले जनमत को तैयार करते हैं। 
  3. ये मशाल या मोमबत्ती जुलूस, काले कपड़े का प्रयोग, नुक्कड़ नाटकों व गीतों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 55. 
पुराने सामाजिक आन्दोलन और नए सामाजिक आन्दोलनों में अन्तर बताइये।
उत्तर:

  1. पुराने सामाजिक आन्दोलन राजनीतिक दलों के दायरे में काम करते थे जबकि नये आन्दोलन राजनीतिक दलों से अलग हैं।
  2. पुराने सामाजिक आन्दोलन समाज में सत्ता के वितरण को बदलने से सम्बन्धित थे, जबकि नये आन्दोलन जीवन की गुणवत्ता के बारे में हैं।
  3. नये सामाजिक आन्दोलनों का विस्तार पुरानों से अधिक है। 

प्रश्न 56. 
दलित शब्द का नए संदर्भ में प्रयोग किसने किया एवं इसका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दलित शब्द का नये संदर्भ में प्रथम प्रयोग 1970 के दशक में डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों ने नवबौद्ध आन्दोलनकारियों के संदर्भ में किया। इसका अभिप्राय उन लोगों से था जिन्हें ऊपर के लोगों द्वारा जानबूझकर तोड़ा और धराशायी किया गया। इसमें प्रदूषण तथा जाति संस्तरण की स्वाभाविक अस्वीकृति है।

प्रश्न 57. 
दलितों के सामाजिक आन्दोलन के क्या कारण हैं ? 
उत्तर:
दलितों के सामाजिक आन्दोलन के प्रमुख कारण ये हैं

  1. दलितों का सामाजिक आन्दोलन मानव के रूप में पहचान प्राप्त करने का संघर्ष है। 
  2. यह आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्णय का स्थान पाने का संघर्ष है। 
  3. यह अस्पृश्यता को समाप्त करने का संघर्ष है। इसे स्पर्श के लिए संघर्ष भी कहा जाता है। 

प्रश्न 58. 
औपनिवेशिक शासन में व्यापार का एक सामान्य तरीका कौनसा था?
उत्तर:
औपनिवेशिक शासन में कच्चे माल का उत्पादन भारत में किया जाता था और सामान का निर्माण 'यूनाइटेड किंगडम' में होता था और उसे उपनिवेशों में बेचा जाता था। इसीलिए बंदरगाह वाले शहरों, जैसे कलकत्ता, मुम्बई और चेन्नई में कारखानों को स्थापित किया गया।

प्रश्न 59. 
सन् 1966-67 में आई अर्थव्यवस्था में भारी मंदी के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
सन् 1966-67 में आई भारी मंदी के कारण उत्पादन और रोजगार में कमी हुई। सभी ओर असंतोष फैल गया तथा रेल-कर्मचारियों की बहुत बड़ी हड़ताल हुई। सरकार और मजदूर संघों के बीच प्रतिरोध तीव्र हो गया।

प्रश्न 60. 
किन-किन मुद्दों पर झारखण्ड नेताओं ने प्रदर्शन किए थे? 
उत्तर:
झारखण्ड नेताओं ने निम्नलिखित मुद्दों पर प्रदर्शन किए थे

  1. सिंचाई परियोजनाओं तथा गोलाबारी क्षेत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण। 
  2. रुके हुए सर्वेक्षण तथा पुनर्वास की कार्यवाही एवं बंद कर दिए गए कैम्प। 
  3. ऋणों, किराए तथा सहकारी कों का प्रतिरोध तथा वन उत्पाद के राष्ट्रीयकरण का बहिष्कार। 

प्रश्न 61. 
क्या महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का व्यवहार जाति से प्रभावित होता है ? यदि हाँ, तो कैसे?
उत्तर:
हाँ, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का व्यवहार जाति से प्रभावित होता है। उच्च जातियों में जहाँ दहेजहत्या तथा परिवार द्वारा गतिशीलता पर उग्र प्रतिबंध व लिंग भेद की घटनाएँ अधिक होती हैं, वहाँ निम्न जातियों की महिलाओं के साथ बलात्कार, शारीरिक हिंसा की चुनौती का सामना अधिक करना पड़ता है।

प्रश्न 62. 
वर्तमान सूचना युग में क्या सामाजिक आन्दोलन भूमण्डलीय हो गए हैं ? उदाहरण द्वारा बताइये।
उत्तर:
हाँ, वर्तमान सूचना युग में सामाजिक आन्दोलन भूमण्डलीय हो गए हैं क्योंकि अब विश्वभर के सामाजिक आन्दोलन एक विशाल क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संजाल में एकजुट होने में सक्षम हैं। उदाहरण के लिए सिएटल में विश्व व्यापार संगठन के विरुद्ध हुए विशाल विरोध का संगठन इंटरनेट आधारित संजाल द्वारा किया गया था।

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प्रश्न 63. 
झारखण्ड में आंदोलनकारी नेताओं ने किन मुददों के विरुद्ध प्रदर्शन किया? 
उत्तर:
झारखंड में आंदोलनकारी नेताओं ने निम्न मुददों के विरुद्ध प्रदर्शन किया

  1. सिंचाई परियोजनाओं तथा गोलीबारी क्षेत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण। 
  2. रुके हुए सर्वेक्षण तथा पुनर्वास की कार्यवाही, बंद कर दिए कैंप, आदि। 
  3. ऋणों, किराए तथा सहकारी कों का संग्रह, जिसका प्रतिकार किया गया। 
  4. वन उत्पाद का राष्ट्रीयकरण, जिसका उन्होंने बहिष्कार किया। 

प्रश्न 64. 
यूरोप के पूँजीवादी राष्ट्रों में साम्यवादी तथा समाजवादी आन्दोलन का प्रभाव बताइये।
उत्तर:
पश्चिम यूरोप के पूँजीवादी राष्ट्रों में कामगारों के अधिकारों का संरक्षण तथा सार्वभौमिक शिक्षा देने वाले, स्वास्थ्य की देखभाल व सामाजिक सुरक्षा देने वाले कल्याणकारी राज्यों की स्थापना साम्यवादी और समाजवादी आन्दोलनों द्वारा उत्पन्न किए गए राजनीतिक दबाव के कारण संभव हुई।

प्रश्न 65. 
प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग से जो विकास हो रहा है, उसकी आलोचना क्यों हुई?
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के अनियंत्रित उपयोग से जो विकास हो रहा है, उसकी आलोचना इसलिए हुई क्योंकि इस विकास से सभी वर्ग लाभान्वित नहीं हो रहे थे। उदाहरण के लिए बाँधों ने अनेक लोगों को घरों और जीवनयापन के स्रोतों से अलग किया तो उद्योगों ने कृषकों को उनके घरों व आजीविका से अलग किया।

प्रश्न 66. 
'सामाजिक आन्दोलन भिन्न-भिन्न वर्गों में भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है।' स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन भिन्न-भिन्न वर्गों में भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। उदाहरण के लिए, 1857 का विद्रोह ब्रिटिश शासकों के लिए 'गदर या विद्रोह' था, वहीं भारतीयों के लिए 'स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम' था। गदर से आशय वैध सत्ता के विरुद्ध एक अवज्ञा की कार्यवाही है तो स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का आशय ब्रिटिश राजसत्ता की वैधानिकता को चुनौती से है।

प्रश्न 67. 
मैकार्थी और जेल्ड के सामाजिक आन्दोलन के 'संसाधन गतिशीलता के सिद्धान्त' का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैकार्थी और जेल्ड के अनुसार सामाजिक आन्दोलन की सफलता संसाधनों को गतिशील करने की क्षमता पर निर्भर होती है। यदि एक आन्दोलन का नेतृत्व संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं जैसे संसाधनों को एकत्र कर प्रयोग कर सकता है, तो वह प्रभावशाली हो सकता है।

प्रश्न 68. 
गुरिल्ला आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
गुरिल्ला आन्दोलन 24 नवम्बर, 1968 को गोडापादु के निकट के मैदानी क्षेत्र में एक अमीर भ-स्वामी की फसल को जबरन कटवाने से प्रारम्भ हुआ। अगले दिन पार्वतीपुरम एजेंसी क्षेत्र के पैडागोतिली गाँव में बहुत से गाँवों के लगभग 250 पहाड़ी लोगों ने भू-स्वामी व साहूकार के घर पर धावा बोल दिया तथा खाद्य-पदार्थ व सम्पत्ति व प्रलेखों पर कब्जा कर लिया।

प्रश्न 69. 
पारदी समुदाय के प्रति विमल दादा साहेब मोरे के क्या विचार हैं?
उत्तर:
मोरे के अनुसार पारदी बहुत कुशल शिकारी होते हैं। फिर भी समाज उन्हें केवल अपराधियों (चोर) के रूप में ही पहचानता है। पुलिस उनकी जाति की महिलाओं का शोषण करती है। इस समाज ने ही पारदी समाज को चोर बनने के लिए मजबूर किया है क्योंकि वह उन्हें काम नहीं देता।

प्रश्न 70. 
कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित विद्वानों ने सामूहिक हिंसात्मक गतिविधि का कौनसा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है ?
उत्तर:
कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित विद्वानों ने बताया कि 'जनसंकुल तथा भीड़' समाज को नष्ट करने के लिए अराजक गुंडों द्वारा बनाई हुई नहीं होती; बल्कि उनमें भी नैतिक अर्थव्यवस्था होती है। नगरीय क्षेत्रों में गरीब लोगों के पास विरोध करने के उपयुक्त कारण होते हैं और अपने वचन के विरुद्ध गुस्सा तथा क्षोभ को प्रकट करने के लिए उनके पास सार्वजनिक विरोध के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं होता है।

प्रश्न 71. 
सामाजिक आन्दोलन के प्रकारों के बारे में व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलनों के प्रकार

  1. प्रतिदानात्मक सामाजिक आंदोलन: इसका लक्ष्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाना होता है।
  2. सुधारवादी आंदोलन: यह वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास धीमें प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलने का प्रयास करता है।
  3. क्रांतिकारी आन्दोलन: ये आन्दोलन सामाजिक सम्बन्धों के आमूल-चूल परिवर्तन का प्रयास करते हैं। 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
झारखण्ड का विशेष संदर्भ देते हुए आदिवासी आन्दोलन की व्याख्या कीजिये।
अथवा
वे क्या मुद्दे थे जिनके विरुद्ध झारखण्ड आन्दोलन के नेता संघर्ष कर रहे थे ? 
उत्तर:
आदिवासी आन्दोलन (झारखण्ड के विशेष संदर्भ में)

  • आदिवासी आन्दोलनों में से कई अधिकांश रूप से मध्य भारत की तथाकथित 'जनजातीय बेल्ट' में हुए हैं, जैसे-संथाल, हो, ओरांव व मुण्डा आन्दोलन । नया गठित हुआ झारखण्ड प्रदेश का मुख्य भाग इन्हीं से बना है।
  • बिरसा मुंडा ने झारखण्ड में सामाजिक आन्दोलन का नेतृत्व अंग्रेजों के खिलाफ किया था। अपनी मृत्यु के बाद बिरसा इस आन्दोलन का प्रमुख प्रतीक बन गया।पृथक् झारखण्ड राज्य के निर्माण का आन्दोलन पृथक् झारखण्ड राज्य के निर्माण के आन्दोलन के कारण निम्नलिखित रहे हैं।

1. झारखण्ड की एक साझी पहचान का निर्माण साक्षर आदिवासियों ने अपने इतिहास, मिथकों, अपनी पृथाओं और सांस्कृतिक व्यवहारों के बारे में लिखकर झारखंडियों की एक संगठित संजातीय चेतना तथा साझी पहचान बनायी।

2. दिक्कुओं द्वारा उनकी संपदा पर अधिकार कर लेना - प्रवासी व्यापारियों तथा महाजनों (दिक्कुओं) ने वहाँ बसकर उनकी सम्पदा पर अधिकार कर लिया तथा वहाँ की खनिज तथा औद्योगिक परियोजनाओं के अधिकांश लाभ भी इन्हीं को मिलते थे।

3. अलग - थलग किया जाना - आदिवासी भूमि को अलग - थलग कर दिया गया।सामूहिक कार्यवाही करना - आदिवासियों ने अलग - थलग किये जाने के अनुभव तथा अन्याय के बोध ने उन्हें सामूहिक कार्यवाही के लिए गतिशील किया, जिसके परिणामस्वरूप पृथक् राज्य का निर्माण हुआ। 

झारखण्ड आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे झारखण्ड में आन्दोलन के प्रमुख मुद्दे ये:

  1. सिंचाई परियोजनाओं तथा गोलाबारी क्षेत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण। 
  2. रुके हुए सर्वेक्षण तथा पुनर्वास की कार्यवाही, बंद कर दिए गए कैंप आदि। 
  3. ऋणों, किराए तथा सहकारी कों का संग्रह, जिसका प्रतिकार किया गया। 
  4. वन उत्पाद का राष्ट्रीयकरण, जिसका बहिष्कार किया गया। 

प्रश्न 2. 
पारिस्थितिकीय अवक्रमण के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर:
आधुनिक विश्व में आर्थिक विकास के कारण विस्थापन तथा पारिस्थितिकीय अवक्रमण की समस्या मुखरित हुई। पारिस्थितिकीय अवक्रमण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. वनोन्मूलन - वनों के कटाव के कारण वन क्षेत्र निरन्तर कम होता जा रहा है। आज जितने पेड़ लगाये जाते हैं, उससे कहीं अधिक संख्या में काटे जाने से वन क्षेत्र सिकुड़ रहा है। वनों के कटाव से भूस्खलन होने के साथसाथ वर्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा वायुमण्डल में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।

2. भूमि कटाव - जब भूमि पर से पेड़-पौधों का प्राकृतिक आवरण कम होने लगता है तो भूमि का कटाव प्रारम्भ हो जाता है। भूस्खलन होने तथा नदी-नालों में मिट्टी तथा गाद भरने से पारिस्थितिकीय अवक्रमण होता है।

3. जल स्रोतों की कमी - भारत में जल स्रोतों की निरन्तर कमी होती जा रही है। भूमिगत जल के स्तर में गिरावट आ रही है। रासायनिक खादों के प्रयोग तथा औद्योगिक दूषित जल से नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा है। पीने के पानी की किल्लत बढ़ रही है तथा मरुस्थल का निरन्तर विस्तार होता जा रहा है। जल स्तर का घटना, पानी की किल्लत और मरुस्थलों की वृद्धि आदि पारिस्थितिकीय अवक्रमण के ही द्योतक हैं।

4. खतरनाक उद्योग - विकास के नाम पर खतरनाक उद्योगों की स्थापना से भी पारिस्थितिकीय अवक्रमण उत्पन्न होता है। इन उद्योगों की भट्टियों से निकलने वाली हानिकारक गैसों से वायुप्रदूषण हो रहा है।

5. नदियों के बाँध - विकास के नाम पर नदियों पर बनाए जाने वाले बड़े-बड़े बाँध भी पारिस्थितिकीय अवक्रमण विकसित करते हैं। उदाहरण के लिए टिहरी बाँध से उपजाऊ भूमि का एक बहुत बड़ा भाग नष्ट हो जाता है। बहुत अधिक संख्या में पेड़-पौधे जलमग्न होकर नष्ट हो गये हैं। पुराना टिहरी शहर पूर्ण रूप से डूब जाने के कारण वहाँ के निवासियों को विस्थापित होना पड़ा है।

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प्रश्न 3. 
चार्टरवाद (चार्टरिज्म ) से आप क्या समझते हैं ? चार्टरवाद की उपलब्धि भी बताइए।
उत्तर:
चार्टरवाद से आशय - ब्रिटेन में सभी को मतदान का अधिकार नहीं था। मतदान का अधिकार सम्पत्ति के स्वामियों तक ही सीमित था। चार्टरवाद (चार्टरिज्म) इंग्लैण्ड में संसदीय प्रतिनिधित्व से सम्बन्धित एक सामाजिक आन्दोलन था। सन् 1839 में 12.50 लाख से अधिक व्यक्तियों ने जन चार्टर (पीपुल्स चार्टर) पर हस्ताक्षर करके सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, मतपत्र द्वारा मतदान तथा सम्पत्तिहीन होने पर भी चुनाव में खड़े होने के अधिकार की माँग की। सन् 1842 में उक्त आन्दोलन ने 3,25,000 हस्ताक्षर एकत्रित किए जो एक छोटे देश के लिए बहुत बड़ी संख्या थी। फिर भी सन् 1839 में लोगों को यह अधिकार नहीं मिला, यह अधिकार उन्हें प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही मिल सका।

चार्टरवाद की उपलब्धि - प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ही, सन् 1918 में, 21 वर्ष से अधिक आयु के सभी पुरुषों, 30 वर्ष से अधिक आयु की विवाहिताओं, गृहस्वामिनियों तथा विश्वविद्यालयी स्नातक महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। जब 'सफ्रागेट्स' (महिला आन्दोलनकारियों) ने सभी वयस्क महिलाओं के लिए मताधिकार का मामला उठाया तो उनका कड़ा विरोध हुआ तथा उनका आन्दोलन निर्ममता से कुचल दिया गया।

प्रश्न 4. 
सामाजिक आन्दोलन के लक्षण/विशेषताएँ बताइए। 
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन के लक्षण सामाजिक आन्दोलन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

1. निरन्तर सामूहिक गतिविधियों का होना - सामाजिक आन्दोलन में एक लम्बे समय तक निरन्तर सामूहिक गतिविधियों की आवश्यकता होती है। ऐसी गतिविधियाँ प्रायः राज्य के विरुद्ध होती हैं तथा राज्य की नीति तथा व्यवहार में परिवर्तन की माँग करती हैं।

2. संगठित आन्दोलन - सामूहिक गतिविधियों में कुछ हद तक संगठन होना आवश्यक है। इस संगठन में नेतृत्व तथा संरचना होती है जिसमें सदस्यों का पारस्परिक सम्बन्ध, निर्णय प्रक्रिया तथा उनका अनुपालन परिभाषित होता है।

3. उद्देश्य तथा विचारधाराओं में समानता का होना - सामाजिक आन्दोलन में भाग लेने वाले लोगों के उद्देश्य तथा विचारधाराओं में भी समानता होती है।

4. एक सामान्य अभिमुखता का होना - सामाजिक आन्दोलन में एक सामान्य अभिमुखता अथवा किसी परिवर्तन को लाने (या रोकने) का तरीका होता है। ये विशिष्ट लक्षण स्थायी नहीं होते। ये सामाजिक आन्दोलन की जीवन अवधि में बदल सकते हैं।

5. सामाजिक परिवर्तन के आकांक्षी - सामाजिक आन्दोलन प्रायः किसी जनहित के मामले में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से उत्पन्न होते हैं, जैसे कि जनजातीय लोगों के विस्थापित लोगों के पुनर्वास तथा क्षतिपूर्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए।

6. विरोध के कुछ निश्चित तरीके व साधन - सामाजिक आन्दोलन समान रूप से विरोध के जिन तरीकों को काम में लेता है, वे हैं

  1. सभाएँ करना, ताकि लोगों के बीच आम सहमति बनाकर उन्हें प्रेरित किया जा सके; 
  2. प्रचार योजनाएँ बनाना, ताकि आन्दोलन के पक्ष में जनमत का निर्माण किया जा सके। सामाजिक आन्दोलन विरोध के विभिन्न साधनों का भी प्रयोग करते हैं, जैसे - मशाल जुलूस, काले कपड़े का प्रयोग, नुक्कड़ नाटक, गीत, कविताएँ, धरना आदि।

प्रश्न 5. 
सामाजिक आन्दोलनों का अध्ययन समाजशास्त्र के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर:
समाजशास्त्र में सामाजिक आन्दोलनों के अध्ययन का महत्त्व-सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन समाजशास्त्र के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। यथा
1. सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन के लिए आवश्यक - प्रारम्भ से ही समाजशास्त्र विषय सामाजिक आन्दोलनों में रुचि लेता रहा है। सामाजिक व्यवस्था समाजशास्त्र का मुख्य विषय रहा है। ये सामाजिक आन्दोलन समाज में क्यों होते हैं ? इन सामाजिक आन्दोलनों के पीछे कौनसे तत्त्व होते हैं, वे क्यों सामाजिक आन्दोलन करते हैं ? इन आन्दोलनों का समाज पर क्या सकारात्मक/नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ? इन सभी बिन्दुओं पर समाजशास्त्र गहराई से अध्ययन करता है। इसके आधार पर समाज की व्यवस्था कैसे बनी रहे, यह सुझाव भी प्रस्तुत करता है।

2. सामाजिक आन्दोलनों को अव्यवस्था फैलाने वाली शक्तियों के रूप में देखा जाना - चूँकि सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन समाजशास्त्र का प्रमुख विषय है। दुर्थीम आदि समाजशास्त्री सामाजिक आन्दोलनों को इसी दृष्टि से देखते रहे। इसीलिए दुर्थीम की चिन्ताएँ इस बात की रहीं कि सामाजिक संरचनाएँ सामाजिक व्यवस्था में एकीकरण की स्थापना कैसे करें। दुर्थीम के सिद्धान्त, समाज में श्रम विभाजन, आत्महत्या इसी धारणा पर आधारित रहे हैं।

3. आन्दोलनकारियों में नैतिक अर्थव्यवस्था होती है। मार्क्सवादी विद्वानों का मत है कि आन्दोलनकारियों में भी 'नैतिक अर्थव्यवस्था' होती है अर्थात् उनमें भी अपनी गतिविधियों के विषय में सही और गलत की साझी समझ होती है। नगरीय क्षेत्रों में गरीब लोगों के पास विरोध करने के उपयुक्त कारण होते हैं। वे प्रायः सार्वजनिक रूप से विरोध करते हैं क्योंकि उनके पास वंचन के विरुद्ध अपना गुस्सा और क्षोभ प्रकट करने का कोई दूसरा तरीका नहीं होता।

4. समाजशास्त्र में सामाजिक आन्दोलनों की व्याख्या सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त के आधार पर दी गई है। यह सिद्धान्त सामाजिक आन्दोलन के मनोवैज्ञानिक कारकों को स्पष्ट करता है।उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन समाजशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण है। 

प्रश्न 6. 
सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन के सिद्धान्त सामाजिक आन्दोलन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
1. सापेक्षिक वंचन का सिद्धान्त:
सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त के अनुसार, सामाजिक संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब एक सामाजिक समूह यह महसूस करता है कि वह अपने आस- पास के अन्य लोगों से खराब स्थिति में है। ऐसा संघर्ष सफल सामूहिक विरोध के रूप में परिणित हो सकता है। यह सिद्धान्त सामाजिक आन्दोलनों को भड़काने में मनोवैज्ञानिक कारकों जैसे क्षोभ तथा रोष की भूमिका पर बल देता है। सापेक्षिक वंचन के सिद्धान्त की आलोचना - सामाजिक आन्दोलन के सापेक्षिक वंचन सिद्धान्त की निम्न प्रमुख आलोचनाएँ की गई हैं

  1. इस सिद्धान्त की सीमा यह है कि हालांकि वंचन का आभास सामूहिक गतिविधि के लिए एक आवश्यक दशा है फिर भी यह स्वयं में एक पर्याप्त कारण नहीं है। ऐसी सभी घटनाएँ जहाँ लोग सापेक्षिक वंचन का अनुभव करते हैं, सामाजिक आन्दोलनों में परिणित नहीं होती।
  2. सापेक्षिक वंचन तथा सामूहिक गतिविधि के बीच स्वत: कोई कारण-सम्बन्ध नहीं है। दूसरे कारक जैसे कि नेतृत्व तथा संगठन भी हैं जो कि समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं।

(2) विवेकी या अधिकतम उपयोगिता का सिद्धान्त:
मनकर ओल्सन का मत है कि सामाजिक आन्दोलन में स्वहित चाहने वाले विवेकी, व्यक्तिगत अभिनेताओं का पूर्ण योग होता है। एक भी व्यक्ति सामाजिक आन्दोलन में तभी शामिल होगा जब वह उससे कुछ प्राप्त कर सके। वह तभी भाग लेगा जब जोखिम कम हो और लाभ अधिक। आलोचना - ओल्सन का यह तर्क सही नहीं है क्योंकि लोग सामूहिक कार्य करने से पहले व्यक्तिगत लाभहानि की गणना नहीं करते हैं।

(3) संसाधनों की गतिशीलता का सिद्धान्त:
मैकार्थी और जेल्ड ने संसाधन गतिशीलता का सिद्धान्त प्रस्तावित किया। उनका तर्क था कि सामाजिक आन्दोलनों की सफलता संसाधनों अथवा विभिन्न प्रकार की योग्यता को गतिशील करने की क्षमता पर निर्भर होती है। अगर एक आन्दोलन नेतृत्व, संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं जैसे संसाधनों को एकत्र कर सकता है तथा उन्हें उपलब्ध राजनीतिक अवसर संरचना में प्रयोग कर सकता है तो वह प्रभावशाली हो सकता है। संसाधन गतिशीलता सिद्धान्त की आलोचना-आलोचक तर्क देते हैं कि सामाजिक आन्दोलन उपलब्ध संसाधनों द्वारा सीमित नहीं होता है। यह नए प्रतीक तथा पहचानों जैसे संसाधनों की रचना कर सकता है।

RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 7. 
सामाजिक आन्दोलन के प्रकारों की व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:
सामाजिक आन्दोलन के प्रकार सामाजिक आन्दोलन कई प्रकार के होते हैं। उन्हें निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. प्रतिदानात्मक अथवा रूपान्तरणकारी; 
  2. सुधारवादी, तथा 
  3. क्रांतिकारी। यथा

1. प्रतिदानात्मक सामाजिक आन्दोलन:
प्रतिदानात्मक सामाजिक आन्दोलन का लक्ष्य अपने व्यक्तिगत सदस्यों की व्यक्तिगत चेतना तथा गतिविधियों में परिवर्तन लाना होता है। उदाहरण के लिए, केरल के इज़हावा समुदाय के लोगों ने नारायण गुरु के नेतृत्व में अपनी सामाजिक प्रथाओं को बदला।

2. सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन:
सुधारवादी सामाजिक आन्दोलन वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक विन्यास को धीमे, प्रगतिशील चरणों द्वारा बदलने का प्रयास करता है। सन् 1960 के दशक में भारत के राज्यों को भाषा के आधार पर पुनर्गठित करने अथवा हाल के सूचना के अधिकार का अभियान सुधारवादी आन्दोलनों के उदाहरण हैं।

3. क्रांतिकारी सामाजिक आन्दोलन:
क्रांतिकारी सामाजिक आन्दोलन सामाजिक सम्बन्धों के आमूल रूपान्तरण का प्रयास करते हैं, प्रायः राजसत्ता पर अधिकार के द्वारा। रूस की बोल्शेविक क्रांति, जिसने जार को अपदस्थ करके साम्यवादी राज्य की स्थापना की तथा भारत में नक्सली आंदोलन, जो दमनकारी भू-स्वामियों तथा राज्य अधिकारियों को हटाना चाहते हैं, की क्रान्तिकारी आंदोलनों के रूप में व्याख्या की जा सकती है।

आन्दोलनों के उक्त प्रकारों का मिश्रित रूप-व्यवहार में सभी आन्दोलनों को स्पष्ट रूप से इन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाना मुश्किल होता है, क्योंकि

  1. बहुत से आन्दोलनों में ये तीनों तत्त्व एक साथ मिले होते हैं। 
  2. एक सामाजिक आन्दोलन की अभिमुखता समय के साथ एक प्रकार से दूसरे प्रकार में भी बदलती है।

प्रश्न 8. 
भारत में महिलाओं, कृषकों, दलितों, आदिवासियों तथा अन्य सभी प्रकार के सामाजिक आन्दोलन हुए हैं। क्या इन आन्दोलनों को 'नए सामाजिक आन्दोलन' समझा जा सकता है ? समझाइए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं, कृषकों, दलितों, आदिवासियों तथा अन्य सभी प्रकार के जो सामाजिक आन्दोलन हुए हैं, इन आन्दोलनों को नए सामाजिक आन्दोलन समझा जा सकता है। गेल ऑमवेट ने अपनी पुस्तक रीइन्वेटिंग रिवोल्यूशन में बताया है कि सामाजिक असमानता तथा संसाधनों के असामान्य वितरण के बारे में चिन्ताएँ इन आन्दोलनों में भी आवश्यक तत्त्व बने हुए हैं। कृषक आन्दोलनों ने अपने उत्पादन हेतु बेहतर मूल्य तथा कृषि सम्बन्धी सहायता के हटाए जाने के विरुद्ध लोगों को गतिशील किया है। दलित मजदूरों ने सामूहिक प्रयास करके सुनिश्चित किया है कि उच्च जाति के भू-स्वामी तथा महाजन उनका शोषण न कर पाएँ। महिलाओं के आन्दोलनों ने लिंग - भेद के मुद्दों पर कार्यस्थल तथा परिवार के अन्दर जैसे विभिन्न दायरों में काम किया है।

लेकिन ये नए सामाजिक आन्दोलन आर्थिक असमानता के 'पुराने' मुद्दों के बारे में ही नहीं हैं, न ही ये वर्गीय आधार पर संगठित हैं। पहचान की राजनीति, सांस्कृतिक चिन्ताएँ तथा अभिलाषाएँ सामाजिक आन्दोलनों की रचना करने के आवश्यक तत्त्व हैं तथा इनकी उत्पत्ति वर्ग-आधारित असमानता में ढूँढ़ना कठिन है। प्रायः ये सामाजिक आन्दोलन वर्ग की सीमाओं के आर-पार से भागीदारों को एकजुट करते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं के आन्दोलन में नगरीय, मध्यवर्गीय महिलावादी तथा गरीब कृषक महिलाएँ सभी शामिल होती हैं। पृथक् राज्य के दर्जे की माँग करने वाले क्षेत्रीय आन्दोलन व्यक्तियों के ऐसे विभिन्न समूहों को अपने साथ शामिल करते हैं जो एक सजातीय वर्ग की पहचान नहीं रखते। सामाजिक आन्दोलन में सामाजिक असमानता के प्रश्न, दूसरे समान रूप से महत्त्वपूर्ण मुद्दों के साथ शामिल हो सकते हैं।
अतः स्पष्ट है कि ये आन्दोलन नए सामाजिक आन्दोलन हैं। 

प्रश्न 9. 
एटक क्या है ? एटक की स्थापना से औपनिवेशिक सरकार पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
एटक का पूरा नाम ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस है। इसकी स्थापना सन् 1920 में बम्बई में हुई। एटक वृहद् आधारों और विभिन्न विचारधाराओं वाला संगठन था। साम्यवादी लोग इसकी मुख्य विचारधारा वाले समूह में थे जिनकी अगुआई एस.ए. डांगे और एम.एन. राय ने की। नरम दल की अगुआई एम. जोशी और वी.वी. गिरी ने की तथा राष्ट्रवादियों में लाला लाजपत राय और जवाहरलाल नेहरू जैसे लोग शामिल थे। एटक की स्थापना का औपनिवेशिक सरकार पर प्रभाव-एटक की स्थापना के औपनिवेशिक सरकार पर अग्रलिखित प्रभाव पड़े

  1. एटक की स्थापना ने औपनिवेशिक सरकार को मजदूरों के प्रति व्यवहार में अधिक सतर्क कर दिया। इसने मजदूरों को कुछ रियायतें देकर असंतोष को सीमित करने का प्रयास किया।
  2. सन् 1922 में सरकार ने चौथा कारखाना अधिनियम पारित किया जिसने कार्य अवधि के घंटों को घटाकर 10 घंटे का कर दिया।
  3. सन् 1926 में मजदूर संघ अधिनियम पारित हुआ जिसने मजदूर संघों के पंजीकरण का प्रावधान किया और कुछ नियम बनाए।
  4. सन् 1920 के मध्य तक करीब 200 संघ एटक से सम्बद्ध हो गए और इसकी सदस्यता लगभग 2,50,000 तक पहुँच गई, जो एटक की लोकप्रियता को दर्शाता है।

प्रश्न 10. 
दलित आन्दोलन को सुधारवादी के साथ ही मुक्तिप्रद तथा क्रांतिकारी भी क्यों कहा जाता है ? उदाहरण द्वारा बताइए।
उत्तर:
दलित आन्दोलन सुधारवादी के साथ ही मुक्तिप्रद तथा क्रांतिकारी भी होते हैं। जाति-विरोधी आन्दोलन, जो 19वीं सदी में ज्योतिबा फुले की प्रेरणास्वरूप गैर-ब्राह्मण आन्दोलन के रूप में महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में आगे बढ़ाया गया तथा फिर डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में विकसित हुआ, जिसमें सभी प्रकार की विशेषताएँ थी। हालांकि अपनी सर्वोत्तम दशा में यह समाज के संदर्भ में क्रांतिकारी तथा व्यक्तियों के संदर्भ में मुक्तिप्रद (प्रतिदानात्मक) था। आंशिक संदर्भ में, 'अम्बेडकरोत्तर दलित आन्दोलनों' में क्रांतिकारी परिपाटी रही है।

1. यह मुक्तिप्रद था: यह मुक्तिप्रद था क्योंकि इसने जीवन के वैकल्पिक तरीके दिए, जिससे व्यवहार में परिवर्तन जैसे कि गौ-मांस भक्षण का त्याग से लेकर धर्म परिवर्तन तक सभी कुछ शामिल था।

2. यह क्रांतिकारी था: यह आन्दोलन क्रांतिकारी था क्योंकि यह सम्पूर्ण समाज के परिवर्तन पर केन्द्रित था, जाति उत्पीड़न तथा आर्थिक शोषण को समाप्त करने के मौलिक क्रांतिकारी लक्ष्य से लेकर अनुसूचित जाति के सदस्यों को सामाजिक गतिशीलता प्रदान करवाने के सीमित लक्ष्यों तक।

3. यह सुधारवादी था: यह आन्दोलन एक सुधारवादी आन्दोलन रहा है। इसने जाति के आधार पर गतिशीलता प्रदान की परन्तु जाति को नष्ट करने के लिए केवल आधे मन से प्रयास किए। इसने प्रयास करके कुछ वास्तविक किन्तु सीमित सामाजिक बदलाव प्राप्त किए, विशेषतः दलितों में शिक्षित वर्गों के लिए, परन्तु यह अब तक भी संतोषप्रद रूप से विश्व में सर्वाधिक गरीब आम जनता के गरीबी उन्मूलन के लिए समाज को परिवर्तित करने में असफल रहा है।

प्रश्न 11. 
चिपको आन्दोलन क्या है? पर्यावरण के विकास में यह किस प्रकार सहायक है ?
अथवा
चिपको आन्दोलन ने सरकार व आम जनता के समक्ष किस मुद्दे को उठाया?
अथवा 
चिपको आन्दोलन का आधार क्या था? 
उत्तर:
चिपको आन्दोलन में उठाये गये प्रमुख मुद्दे हिमालय की तलहटी में पारिस्थितिकीय आंदोलन मिश्रित हितों तथा विचारधाराओं का अच्छा उदाहरण है। चिपको आन्दोलन में निम्नलिखित प्रमुख मुद्दे उठाये गए
1. सामाजिक असमानता का मुद्दा - गाँववासी अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं, जैसे ईंधन के लिए लकड़ी, चारा तथा अन्य दैनिक आवश्यकताओं के लिए जंगलों पर निर्भर थे। चिपको आन्दोलन ने गरीब गाँववासियों को आजीविका की आवश्यकताओं को बेचकर राजस्व कमाने की सरकार की इच्छा के समक्ष खड़ा कर दिया। जीवन-निर्वहन की अर्थव्यवस्था, मुनाफ़े की अर्थव्यवस्था के विपरीत खड़ी थी।

2. पारिस्थितिकीय सुरक्षा का मुददा - सामाजिक असमानता के इस मुद्दे के साथ चिपको आन्दोलन ने पारिस्थितिकीय सुरक्षा के मुद्दे को भी उठाया। प्राकृतिक जंगलों का काटा जाना पर्यावरणीय विनाश का एक रूप था जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ तथा भूस्खलन हुए। गाँववासियों के लिए ये 'लाल' तथा 'हरे' मुद्दे अन्तःसम्बद्ध थे। जबकि उनकी उत्तरजीविता जंगलों के जीवन पर निर्भर थी। वे जंगलों का सबको लाभ देने वाली पारिस्थितिकीय सम्पदा के रूप में भी आदर करते थे।

3. राजनीतिक प्रतिनिधित्व की उदासीनता का मुद्दा - इसके साथ ही चिपको आन्दोलन ने सुदूर मैदानी क्षेत्रों में स्थित सरकार के मुख्यालय जो उनकी चिंताओं के प्रति उदासीन तथा  विरुद्ध थे, के विरुद्ध पर्वतीय गाँववासियों के रोष को भी प्रदर्शित किया। इस प्रकार अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकीय एवं राजनीतिक प्रतिनिधित्व की चिन्ताएँ चिपको आन्दोलन का आधार थीं।

RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 12. 
निम्न पर टिप्पणी लिखिए

  1. जनजातीय आन्दोलन 
  2. महिलाओं का आन्दोलन 

उत्तर:
1.जनजातीय आन्दोलन:

1.जनजातीय आन्दोलनों में से कई अधिकांश रूप से मध्य भारत की तथाकथित 'जनजातीय बेल्ट' में स्थित रहे हैं, जैसे - छोटा नागपुर व संथाल, हो, ओरांव व मुंडा आदि।

2.जनजातीय आन्दोलन के कारण हैं

  • ऋणों, किराए तथा सहकारी कों का संग्रह, जिसका प्रतिकार किया गया। 
  • वन उत्पाद का राष्ट्रीयकरण, जिसका उन्होंने बहिष्कार किया। 

3.जनजातीय आन्दोलन के उदाहरण हैं-झारखंड आन्दोलन, उत्तराखंड आन्दोलन आदि।
4.झारखंड आन्दोलन - अलग राज्य बनाने की माँग, सिंचाई परियोजनाओं तथा गोलीबारी क्षेत्र के लिए भूमि का अधिग्रहण, रुके हुए सर्वेक्षण तथा पुनर्वास की कार्यवाही, बन्द कर दिए कैंप इत्यादि मुद्दों के विरुद्ध था।
5.पूर्वोत्तर के जनजातीय आंदोलन अपनी पृथक् पहचान और पारम्परिक स्वायत्तता को लेकर हुए।
6. एक मुख्य मुद्दा जो देश के सभी जनजातीय आन्दोलनों को जोड़ता है, वह है-जनजातीय लोगों का वन भूमि से विस्थापन।

2. महिलाओं का आन्दोलन:

  1. 19वीं सदी के समाज-सुधार आन्दोलनों ने महिलाओं से सम्बन्धित अनेक मुद्दे उठाये थे। 
  2. 20वीं सदी के प्रारम्भ में राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर महिलाओं के संगठनों में वृद्धि हुई।
  3. भारत के महिला संगठनों में प्रमुख हैं-अखिल भारतीय महिला कॉन्फ्रेंस, भारत में महिलाओं की राष्ट्रीय काउंसिल इत्यादि।
  4. इन आन्दोलन की शुरुआत सीमित कार्यक्षेत्र से शुरू हुई। इनका कार्यक्षेत्र समय के साथ विस्तृत हुआ।
  5. 1970 के दशक के मध्य में भारत में स्वायत्त महिला आन्दोलन का नवीनीकरण हुआ। इसे भारतीय महिला आन्दोलन का दूसरा दौर भी कहते हैं।
  6. महिला आन्दोलन के मुख्य मुद्दे भू-स्वामित्व व रोजगार के मुद्दों की लड़ाई, यौन उत्पीड़न तथा दहेज के विरुद्ध अधिकारों की माँग के साथ लड़ी गई।
  7. इनमें संगठन, विचारधारा, नेतृत्व, एक साझी समझ तथा जन-मुद्दों पर परिवर्तन लाने का लक्ष्य था। 

प्रश्न 13. 
भारत में किसान आन्दोलनों के प्रकार बताते हुए किसी एक पर निबन्ध लिखिये। 
उत्तर:
भारत में किसान आन्दोलन भारत में किसान आन्दोलन को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है
(अ) भारत में औपनिवेशिक काल में किसान आन्दोलन-भारत में औपनिवेशिक काल में हुए किसान आन्दोलनों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है
1.1914 से 1920 तक के काल में हुए किसान आन्दोलन-इस काल में भारत में हुए किसान आन्दोलन स्थानीयता, विभाजन और विशिष्ट शिकायतों से सीमित होने की ओर प्रवृत्त हुए। यथा

  1. 1859 - 62 का किसान विद्रोह नील की खेती के विरुद्ध था। 
  2. 1857 का दक्कन विद्रोह साहूकारों के विरोध में था।

इनसे जुड़े हुए कुछ मुद्दे आगे भी विद्यमान रहे और महात्मा गाँधी के नेतृत्व में वे आंशिक रूप से स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गये। बारदोली और चंपारन सत्याग्रह ऐसे ही आंदोलन थे।

2. 1920 से 1940 के मध्य किसान आन्दोलन-1920 से 1940 के बीच भारत में अनेक कारणों से किसान संगठनों ने आन्दोलन किया। पहला किसान संगठन 1929 में 'बिहार प्रोविंसिएल किसान सभा' था और 1936 में 'ऑल इंडिया किसान सभा' का उदय हुआ। इसके नेतृत्व में किसानों की माँग थी-किसानों, कामगारों तथा अन्य सभी वर्गों को आर्थिक शोषण से मुक्ति मिले।

3. स्वतंत्रता के समय (1946-47 ) के किसान आन्दोलन - स्वतंत्रता के समय हमें दो किसान आन्दोलन देखने को मिलते हैं:

  1. तिभागा आन्दोलन (1946-47) और 
  2. तेलंगाना आन्दोलन (1946-51)।

(ब) स्वतंत्रता के बाद किसान आन्दोलन-स्वतंत्रता के बाद भारत में दो बड़े किसान आन्दोलन सामने आये। यथा

  1. नक्सली आन्दोलन-किसानों की केन्द्रीय समस्या भूमि थी। कानू सान्याल के नेतृत्व में सिलीगुडी उपमंडल के किसान जोतदारों के शोषण के विरुद्ध उठ खड़े हुए। उन्होंने जल्दी ही गिरवी रखी जमीनों को किसान समितियों के नाम से अधिग्रहित किया तथा बहीखातों आदि को जला दिया गया। अपने आप को परम्परागत हथियारों-तीर, धनुष, भाला आदि से सुसज्जित कर गाँवों की देखभाल के लिए समानान्तर प्रशासन का गठन किया। यह नक्सली आन्दोलन आज भी एक बढ़ती हुई शक्ति है।
  2. नए किसानों का आन्दोलन-तथाकथित 'नए किसानों' का आन्दोलन पंजाब और तमिलनाडु में 1970 के दशक से प्रारम्भ हुआ। ये आन्दोलन क्षेत्रीय आधार पर संगठित थे, दल रहित थे तथा इनमें बाजार से जुड़े किसान जुड़े हुए थे।

प्रश्न 14. 
भारत में कामगारों के आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
भारत में कामगारों का आन्दोलन भारत में कामगारों के आन्दोलन को मोटे रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
(अ) औपनिवेशिक काल में कामगारों का आन्दोलन-प्रथम विश्व युद्ध से देश में उद्योगों का विस्तार, लेकिन इससे कामगारों की परेशानी बहुत बढ़ गई । वहाँ खाने की कमी हो गई और कीमतें तेज हो गईं। फलतः मुम्बई की कपड़ा मिलों में हड़तालों की एक लहर चली। सितम्बर-अक्टूबर 1917 में करीब 30 प्रामाणिक हड़तालें हुईं। कोलकाता, चेन्नई की कपड़ा मिलों के कामगारों ने वेतन वृद्धि के लिए 'काम रोको आन्दोलन' चलाया। अहमदाबाद की कपड़ा मिल के कामगारों ने 50 प्रतिशत वेतन वृद्धि बढ़ाने की माँग को लेकर बंद कर दिया था।

मजदूर संघों की स्थापना-सर्वप्रथम मजदूर संघ की स्थापना 1918 में बी.पी. वाडिया ने की। इसी वर्ष महात्मा गाँधी ने 'टेक्सटाइल लेबर एसोसिएशन' की स्थापना की तथा सन् 1920 में बम्बई में 'आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस' (AITUC -एटक) की स्थापना हुई। 1920 के मध्य तक करीब 200 संघ एटक से सम्बद्ध हो गये
और इसकी सदस्यता लगभग 2,50,000 तक पहुँच गई। मजदूर संघ की स्थापना के बाद कामगारों ने संगठित ढंग से विरोध प्रदर्शन, हड़तालें आदि कर मजदूर आन्दोलन को गति दी।

(ब) स्वतंत्रता के बाद कामगारों का आन्दोलन-स्वतंत्रता के बाद मजदूर संगठन राजनीतिक दलों से सम्बद्ध हुए। एटक पर साम्यवादियों का नियंत्रण हो गया तो अन्य संघ बने। एटक का विभाजन हुआ तथा 1960 के दशक के अन्त तक क्षेत्रीय दलों ने भी अपने स्वयं के संघों का गठन प्रारम्भ किया।
1966-1990 का काल-1966-67 में अर्थव्यवस्था में भारी मंदी आई जिसमें उत्पादन तथा रोजगार में कमी हुई। सभी ओर असंतोष व्याप्त हो गया था। फलतः 1974 में रेल कर्मचारियों की बहुत बड़ी हड़ताल हुई। राज्य तथा मजदूर संघों के बीच प्रतिरोध तीव्र हो गया था। 1975-77 के आपातकाल की अवधि को छोड़कर यह प्रतिरोध जारी रहा।

भूमण्डलीकरण के दौर में कामगारों के आन्दोलन-भूमण्डलीकरण के वर्तमान संदर्भ में श्रम प्रयोग और श्रम समस्याओं में परितर्वन आया। भूमण्डलीकरण से एक नया अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन उभर कर आया है। इससे 'संविदा' पर कार्य तथा 'बाह्य स्रोतों के उपयोग' की प्रवृत्ति विकसित हो रही है, इससे मजदूर आन्दोलन कमजोर हुआ है।

RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 8 सामाजिक आंदोलन

प्रश्न 15. 
स्वतंत्र भारत में पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत में पिछड़े वर्ग एवं जातियों के आन्दोलन - स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों (दलितों) एवं अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) के लिए आरक्षण की व्यवस्था कर उनके आन्दोलनों के उभार को रोक दिया तथा अन्य पिछड़े वर्गों को विशेष सुविधाएँ या आरक्षण प्रदान करने की बात आगे की सरकारों पर छोड़ दी।
पिछड़े वर्गों के संगठनों ने आरक्षण के लिए विरोध प्रदर्शन जारी रखा। इस हेतु पहले 'काका कालेलकर आयोग' बिठाया गया और फिर 'मण्डल आयोग'। मंडल आयोग ने पिछड़े वर्गों को 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की।

1. उच्च जाति का जवाब:
दलितों तथा अन्य पिछड़े वर्गों के बढ़ते हुए प्रभाव ने उच्च जातियों के कुछ वर्गों में यह धारणा उत्पन्न की है कि उनकी उपेक्षा हो रही है। उन्हें लगता है कि उनके अल्पसंख्यक होने के कारण सरकार उनकी कोई परवाह नहीं करती।

2. मध्यवर्ग में जातिगत दृष्टिकोण:
भारत के शहरी मध्य वर्ग में जाति एक गुजरी वस्तु बन गई थी। यद्यपि शादी-विवाह के कर्मकांडी अवसरों पर इसका अभी भी प्रभाव बना हुआ था, लेकिन दैनिक जीवन में जाति की कोई सक्रिय भूमिका नहीं थी। इस शहरी मध्यवर्ग में जाति के अदृश्य होने का महत्त्वपूर्ण कारक यह था कि इस मध्यवर्ग में उच्च जातियों का जबरदस्त दबदबा था। इस एक सजातीय एकरूपता ने जाति को सामाजिक दृश्यता के देहरी के नीचे दबाकर आँखों से ओझल कर दिया था, लेकिन मंडल के बाद यह 'जाति' पुनः उभकर सामने आ गई और इसने 'अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण' के विरोध में जबरदस्त आन्दोलन भी किये।

3. वर्तमान स्थिति:
आज यद्यपि निम्नतम जाति एवं जनजाति सहित सभी सामाजिक समूहों की दशा में सुधार हुआ; 21वीं शताब्दी के प्रारम्भ में सभी जातीय समूहों में विभिन्न प्रकार के रोजगार और व्यवसाय बहुत विस्तृत हुए हैं, तथापि 'उच्चतम' अथवा सर्वाधिक प्राथमिकता वाले व्यवसायों में उच्च जाति के लोग ज्यादा हैं, जबकि छोटे तथा तिरस्कृत व्यवसायों में बहुमत निम्न जातियों का है।

प्रश्न 16. 
भारत में हुए अधिकांश किसान आन्दोलनों के प्रमुख कारण बताइये। 
उत्तर:
किसान आन्दोलनों के प्रमुख कारण: 
(अ) स्वतंत्रता-पूर्व हुए किसान आन्दोलनों के कारण भारत में स्वतंत्रता-पूर्व हुए अधिकांश किसान आन्दोलनों के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  1.  भू-स्वामियों द्वारा अधिक लगान की माँग - स्वतंत्रता पूर्व हुए अधिकांश आन्दोलनों का कारण भूस्वामियों द्वारा अधिक लगान की माँग करना था।
  2. जमींदारों तथा जागीरदारों द्वारा शोषण - स्वतंत्रता पूर्व अधिकांश कृषक आन्दोलन जमींदारों, जागीरदारों तथा भू-स्वामियों की गलत नीतियों एवं शोषण के विरुद्ध हुए थे।
  3. कृषकों की निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति-कृषक आन्दोलनों का एक अन्य कारण कृषकों की निम्न सामाजिक - आर्थिक स्थिति का होना भी था।
  4. बंधुआ मजदूरी प्रथा का प्रचलन - स्वतंत्रता-पूर्व पश्चिमी देशों के प्लांटर छोटे कृषकों को अपनी पसन्द की फसल उगाने को विवश करते थे। इस प्रकार उनकी स्वतंत्रता सीमित होती थी। इसके परिणामस्वरूप कई स्थानों पर बंधुआ मजदूरी प्रथा का भी प्रचलन हो गया था। किसान इस स्थिति से निजात पाना चाहते थे।
  5. कृषकों के हितों के अधिनियमों का न होना - स्वतंत्रता - पूर्व सरकार ने कृषकों के हितों की रक्षा के लिए कोई विशेष अधिनियम पारित नहीं किये थे। बेदखली और असुरक्षित पट्टे की व्याख्या की स्थिति ने कृषकों को आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। 

(ब) स्वतंत्रता के पश्चात् कृषक आन्दोलनों के कारण स्वतंत्रता के पश्चात् कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  1. स्वतंत्रता के पश्चात् भूमि - सुधारों की क्रियान्विति राज्य सरकारें न्यायपूर्ण ढंग से करने में असफल रहीं। ये सुधार कृषकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊँचा उठाने में असफल रहे। फलतः नक्सलवाद जैसे कृषक आन्दोलन का जन्म हुआ जो अभी तक जारी है।
  2. आज भी किसानों को बिजली, पानी जैसी मूलभूत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जबकि नगरों में ये सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। फलतः किसान आन्दोलनरत होते हैं।
  3. अभी भी सरकार द्वारा कृषि उत्पादों का मूल्य निर्धारित करने की नीति अधिक व्यावहारिक नहीं है। सरकार कृषकों को कृषि उत्पाद का उचित मूल्य समय पर नहीं दे पाती है।
  4. सरकार नए कृषि औजारों, बीजों एवं खादों में आर्थिक सहायता निरन्तर कम कर रही है जिसके परिणामस्वरूप किसानों को अधिक बोझ सहन करना पड़ रहा है। छोटे कृषक इससे अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। फलतः किसानों में असंतोष विकसित हो रहा है।

प्रश्न 17. 
भारत में जनजातीय आन्दोलनों के प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर:
भारत में जनजातीय आन्दोलनों के प्रमुख कारण भारत में जनजातीय आन्दोलनों के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।
1. सभ्य समाजों से सम्पर्क:
जनजातीय आन्दोलनों का प्रमुख कारण जनजातीय लोगों का सभ्य समाजों से सम्पर्क होना है। इसके फलस्वरूप जनजातीय लोगों ने अपने समाज में व्याप्त कमियों का अनुभव किया और उन कमियों को दूर करने की दिशा में संगठित प्रयास के महत्त्व को समझा। फलस्वरूप ये लोग संगठित हुए और इस संगठन ने आन्दोलन को जन्म दिया।

2. अंग्रेज मिशनरियों से सम्पर्क:
भारत के जनजातीय लोगों के सभ्य समाज से सम्पर्क की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी अंग्रेज मिशनरी रहे हैं । ईसाई मिशनरियों के प्रयासों से असंख्य जनजातीय लोगों ने ईसाई धर्म को स्वीकार किया, लेकिन इसके साथ ही उनमें नई जन-जागृति पैदा हुई जिसने आन्दोलन को एक धरातल प्रदान किया।

3. नवीन शासन व्यवस्था:
ब्रिटिश शासन स्थापित होने के बाद से उनकी यह स्थानीय स्वायत्तता समाप्त होने लगी। अनेक प्रकार के सरकारी कानूनों ने उन्हें चारों ओर से जकड़ लिया। इसमें वे छटपटाने लगे। छटपटाहट और बेचैनी ने जनजातीय आन्दोलन को जन्म दिया।

4. आर्थिक शोषण:
भारत में जनजातीय आन्दोलन का प्रमुख कारण सरकारी और गैर-सरकारी तौर पर जनजातीय लोगों का आर्थिक शोषण है। जनजातीय क्षेत्रों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर अपने व्यावसायिक लाभ हेतु सरकारी नियंत्रण स्थापित कर दिया गया। दूसरे, अनेक व्यापारी, साहूकार, ठेकेदार आदि भी बाहर से आकर जनजातीय क्षेत्रों में बस गये हैं। ये लोग जनजातियों के भोलेपन, पिछड़ेपन एवं उनकी निरक्षरता का पूरा फायदा उठाकर उनका निरन्तर आर्थिक शोषण करते रहते हैं।

5. दोषपूर्ण वन-नीति:
केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा गलत व दोषपूर्ण वन - नीति लागू करना भी जनजातीय आन्दोलन का एक महत्त्वपूर्ण कारण रहा है। सरकारी वन-नीति ने वन-सम्पदा पर जनजातीय लोगों के एकाधिकार को एकदम समाप्त कर दिया। इसीलिए प्राकृतिक अधिकारों से वंचित जनजातीय लोगों ने विद्रोह के रूप में आन्दोलन का रास्ता पकड़ लिया है।

6. धर्म परिवर्तन:
जनजातीय समाजों में धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया ने भी जनजातीय आन्दोलन को बढ़ावा दिया है। वे फिर से अपने मूल धर्म व संस्कृति को पाने के लिए छटपटाने लगे। इससे अपने धर्म व संस्कृति को पुनर्स्थापित करने सम्बन्धी आन्दोलनों का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 18. 
नए सामाजिक आंदोलनों की पुराने सामाजिक आंदोलनों से भिन्नता स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
नए सामाजिक आंदोलनों की पुराने सामाजिक आंदोलनों से भिन्नता पुराने और नये सामाजिक आंदोलनों की भिन्नता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है

1. पुराने सामाजिक आंदोलनों का वह काल था जब राष्ट्रीय आंदोलन औपनिवेशिक शक्तियों को उखाड़कर फेंक रहे थे तथा पूँजीवादी पश्चिम में कामगार वर्ग के आंदोलन राज्य से बेहतर वेतन, बेहतर जीवन दशा, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु संघर्षरत थे। यह वह काल था जब सामाजिक आन्दोलन नए प्रकार के राज्यों और समाजों की स्थापना कर रहे थे। नए सामाजिक आंदोलन 20वीं सदी के उत्तर्राद्ध तथा 21वीं सदी के आंदोलन हैं जो सहभागियों के आंदोलन हैं। ये आंदोलन सामाजिक विषमता तथा पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध हैं।

2. पुराने सामाजिक आंदोलन वर्ग आधारित अथवा राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थे जबकि नये सामाजिक आंदोलन युद्ध-विरोधी, विषमता विरोधी तथा पर्यावरण प्रदूषण जैसे साझा पहचान के आंदोलन हैं। पुराने सामाजिक आंदोलन प्रायः वर्ग सम्बन्धी मुद्दों जैसे मजदूर संघ अथवा कृषक आंदोलन पर आधारित थे जबकि नये सामाजिक आंदोलन पर्यावरण अथवा महिलाओं या जनजातीय आंदोलन हैं।

3. पुराने सामाजिक आंदोलन राजनीतिक दलों के दायरे में काम करते थे, उनमें राजनीतिक दलों की केन्द्रीय भूमिका थी, जबकि नए सामाजिक आंदोलन गैर-सरकारी संगठनों, महिलाओं के समूहों, पर्यावरण के समूहों तथा जनजातीय आंदोलनकारियों द्वारा किये जाते थे।

4. पुराने सामाजिक आन्दोलन समाज में सत्ता के वितस्थ को बदलने के बारे में थे जबकि नए सामाजिक आंदोलन जीवन की गुणवत्ता जैसे स्वच्छ पर्यावरण के बारे में है।

Prasanna
Last Updated on June 16, 2022, 5:12 p.m.
Published June 8, 2022