Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ Important Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
इण्डोनेशिया और पाकिस्तान के बाद विश्व का तीसरा बड़ा मुस्लिम देश है
(क) सउदी अरब
(ख) लीबिया
(ग) बांगलादेश
(घ) भारत
उत्तर:
(घ) भारत
प्रश्न 2.
केन्द्र और राज्यों को किस सूची पर समान रूप से कार्य संचालन का अधिकार संविधान के द्वारा दिया गया है
(क) संघ सूची पर
(ख) राज्य सूची पर
(ग) समवर्ती सूची पर
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) समवर्ती सूची पर
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान का 'शिल्पकार' कहा जाता है
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू को
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर को
(ग) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को।
(घ) के. एम. मुन्शी को।
उत्तर:
(ख) डॉ. भीमराव अम्बेडकर को
प्रश्न 4.
संविधान के किस अनुच्छेद में अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार दिया गया है
(क) अनुच्छेद 29 में
(ख) अनुच्छेद 30 में
(ग) अनुच्छेद 31 में
(घ) अनुच्छेद 32 में
उत्तर:
(ख) अनुच्छेद 30 में
प्रश्न 5.
साम्प्रदायिकता की विशेषता नहीं है
(क) यह राजनीति से सरोकार रखती है, धर्म से नहीं।
(ख) धार्मिक पहचान अन्य सभी की तुलना में सर्वोपरि होती है।
(ग) यह तनाव और हिंसा का पुनरावर्तक स्रोत है।
(घ) यह अल्पसंख्यक जातियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक होती है।
उत्तर:
(घ) यह अल्पसंख्यक जातियों के अधिकारों के संरक्षण के लिए आवश्यक होती है।
प्रश्न 6.
धर्मनिरपेक्षता का लक्षण नहीं है
(क) यह साम्प्रदायिकता का विलोम है।
(ख) इसमें किसी विशेष धर्म के लिए अन्य धर्मों का पक्ष नहीं लिया जाता है।
(ग) यह धार्मिक उग्रवाद का विरोधी भाव है।
(घ) इसमें राज्य के द्वारा किसी एक ही धर्म को संरक्षण दिया जाता है।
उत्तर:
(घ) इसमें राज्य के द्वारा किसी एक ही धर्म को संरक्षण दिया जाता है।
प्रश्न 7.
भारतीय नागरिकों को सत्तावादी शासन का अनुभव हुआ था
(क) जून, 1775 से जनवरी, 1777 तक
(ख) जनवरी, 1775 से जून, 1777 तक
(ग) जून, 1776 से जनवरी, 1778 तक
(घ) जनवरी, 1776 से जून, 1778 तक
उत्तर:
(क) जून, 1775 से जनवरी, 1777 तक
प्रश्न 8.
भारतीय नागरिकों को सूचना का अधिकार दिया गया था
(क) सन् 2003 में
(ख) सन् 2004 में
(ग) सन् 2005 में
(घ) सन् 2006 में
उत्तर:
(ग) सन् 2005 में
प्रश्न 9.
भारत एक महान सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है। इसका तात्पर्य है
(क) सांस्कृतिक विविधता कठोर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।
(ख) यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह और समुदाय निवास करते हैं।
(ग) यहाँ एक संस्कृति ही पाई जाती है।
(घ) यहाँ सांस्कृतिक अन्तरों के साथ-साथ आर्थिक अन्तर भी पाये जाते हैं।
उत्तर:
(ख) यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह और समुदाय निवास करते हैं।
प्रश्न 10.
यहूदी जाति के अमेरिकी लोग किन दो देशों के नागरिक हो सकते हैं?
(क) इजराइल और सऊदी अरब
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका और सऊदी अरब
(ग) भारत और इजराइल
(घ) इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर:
(घ) इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रश्न 11.
प्रेसीडेंसी में कौन-कौनसी भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते थे?
(क) मराठी, गुजराती, कन्नड़ और कोंकणी।
(ख) तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम।
(ग) मराठी, कन्नड़, मलयालम और कोंकणी।
(घ) मलयालम, मराठी, गुजराती और कोंकणी।
उत्तर:
(क) मराठी, गुजराती, कन्नड़ और कोंकणी।
प्रश्न 12.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिन्दुओं की आबादी कितनी थी?
(क) 79.8 करोड़
(ख) 88 करोड़
(ग) 96.6 करोड़
(घ) 80 करोड़
उत्तर:
(ग) 96.6 करोड़
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
...................शब्द असमानताओं के बजाय अन्तरों पर बल देता है।
उत्तर:
विविधता
प्रश्न 2.
राष्ट्र एक किस्म का...................होता है, जिसका वर्णन आसान होता है पर परिभाषा कठिन होती है।
उत्तर:
समुदाय
प्रश्न 3.
...................का कानून किसी राज्य विशेष के नागरिकों को एक ही समय में एक दूसरे राज्य का नागरिक बनने की इजाजत देता है।
उत्तर:
दोहरी नागरिकता
प्रश्न 4.
यहूदी जाति के अमेरिकी लोग एक साथ...................और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के नागरिक हो सकते हैं।
उत्तर:
इजराइल
प्रश्न 5.
भारत में लगभग...................भिन्न-भिन्न भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं।
उत्तर:
1,632
प्रश्न 6.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की...................आबादी हिन्दुओं की है।
उत्तर:
80.5%
प्रश्न 7.
...................तथा...................के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा मुसलमान आबादी वाला देश है।
उत्तर:
इंडोनेशिया, पाकिस्तान
प्रश्न 8.
ब्रिटिश-भारतीय व्यवस्था के अन्तर्गत भारत बड़े - बड़े प्रान्तों में बँटा हुआ था जिन्हें...................कहा जाता था।
उत्तर:
प्रेसीडेंसी
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
'भारत एक महान् सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है' का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
इसका तात्पर्य है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय रहते हैं।
प्रश्न 2.
इस संसार में अपना अस्तित्व सक्रिय रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य को किस बात की जरूरत होती है ?
उत्तर:
एक स्थायी पहचान की।
प्रश्न 3.
सामुदायिक पहचान किस पर आधारित होती है?
उत्तर:
सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधारित होती है।
प्रश्न 4.
सामुदायिक पहचानें किससे निर्धारित होती है ?
उत्तर:
सामुदायिकं पहचाने जन्म से निर्धारित होती हैं।
प्रश्न 5.
सामुदायिक पहचानें किस प्रकार की होती हैं ?
उत्तर:
सामुदायिक पहचानें प्रदत्त होती हैं।
प्रश्न 6.
राष्ट्र क्या है?
उत्तर:
राष्ट्र ऐसे समुदाय होते हैं जिनका अपना एक राज्य होता है।
प्रश्न 7.
राष्ट्र-राज्य की अवधारणा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
राष्ट्र-राज्य से आशय एक ऐसे राष्ट्रीय समुदाय से है जिसका अपना राज्य है।
प्रश्न 8.
क्षेत्रवाद क्या है?
उत्तर:
जब किसी क्षेत्र विशेष के लोग राष्ट्रीय हित की तुलना में अपने क्षेत्र विशेष के हितों पर अधिक ध्यान देते हैं जो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं।
प्रश्न 9.
वर्तमान में राष्ट्र और राज्य के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है?
उत्तर:
वर्तमान में राष्ट्र और राज्य के बीच एकैक का सम्बन्ध है।
प्रश्न 10.
जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का स्थान कौनसा है ?
उत्तर:
दूसरा।
प्रश्न 11.
भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
लगभग 80.5 प्रतिशत।
प्रश्न 12.
भारत में मुसलमानों की आबादी कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
लगभग 13.4 प्रतिशत।
प्रश्न 13.
धर्म की दृष्टि से भारत कैसा राज्य है?
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
प्रश्न 14.
भारतीय राष्ट्र-राज्य में इस समय कितने राज्य हैं?
उत्तर:
भारत में इस समय 28 राज्य और 8 संघ राज्य क्षेत्र हैं।
प्रश्न 15.
किस सूची के विषयों पर केन्द्र और राज्य दोनों की सरकारें कानून बना सकती हैं?
उत्तर:
समवर्ती सूची के विषयों पर।
प्रश्न 16.
भारत के धार्मिक समुदायों के मुद्दों को किन दो समूहों के अन्तर्गत बांटा जा सकता है ?
उत्तर:
अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के अन्तर्गत।
प्रश्न 17.
भारतीय राष्ट्रवाद में प्रभावशाली प्रवृत्ति किसके द्वारा चिह्नित रही है?
उत्तर:
समावेशात्मक और लोकतंत्रात्मक दृष्टि द्वारा।
प्रश्न 18.
अल्पसंख्यक शब्द का समाजशास्त्रीय भाव क्या है?
उत्तर:
अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य एक सामूहिकता का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 19.
नृजातीय समूह क्या है?
उत्तर:
नृजातीय समूह वह है जो सामान्य भाषा या संस्कृति के अलावा एक ही वंश परम्परा पर आधारित हो।
प्रश्न 20.
रोजमर्रा की भाषा में 'साम्प्रदायिकता' का क्या अर्थ है ?
अथवा
साम्प्रदायिकता या संप्रदायवाद का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का अर्थ है-धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद।
प्रश्न 21.
साम्प्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है या धर्म से।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है, धर्म से नहीं।
प्रश्न 22.
1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस किस आधार पर पुनर्गठित की गई?
उत्तर:
भाषाई आधार पर।
प्रश्न 23.
हमारा समुदाय हमें क्या प्रदान करता है?
उत्तर:
हमारा समुदाय हमें भाषा और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं।
प्रश्न 24.
राष्ट्र का अन्तर या भेद दर्शाने वाली सबसे नजदीकी कसौटी क्या है ?
उत्तर:
राज्य।
प्रश्न 25.
'प्रेसीडेंसी' से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
प्रारम्भ में भारतीय राज्य बड़े-बड़े राज्यों में बँटा हुआ था जिन्हें 'प्रेसीडेंसी' कहा जाता था।
प्रश्न 26.
ब्रिटिश भारतीय व्यवस्था में तीन बड़ी प्रेसीडेंसियाँ कौन-सी थीं?
उत्तर:
मद्रास, बम्बई और कलकत्ता।
प्रश्न 27.
मद्रास राज्य किन भाषाओं को मिलाकर बना था?
उत्तर:
तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम।
प्रश्न 28.
पाकिस्तान का विभाजन कब हुआ?
उत्तर:
1971।
प्रश्न 29.
सन् 2000 में किन तीन नए राज्यों का गठन हुआ?
उत्तर:
छत्तीसगढ़, उत्तरांचल और झारखण्ड।
प्रश्न 30.
कौनसा समुदाय भारत में सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग है?
उत्तर:
मुसलमान समुदाय।
प्रश्न 31.
भारत में ईसाई बहुल राज्य कौनसे हैं?
उत्तर:
नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, गोवा और केरल।
प्रश्न 32.
सम्प्रदायवाद में किस पहचान को सर्वोपरि रखा जाता है?
उत्तर:
धार्मिक पहचान को।
प्रश्न 33.
धर्मनिरपेक्षता में विभिन्न धर्मों के प्रति किस प्रकार का भाव पाया जाता है?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों के प्रति समान आदर का भाव होता है।
प्रश्न 34.
सूचनाधिकार अधिनियम हमारे देश में कब लागू हुआ?
अथवा
भारत में सूचनाधिकार अधिनियम कब से लागू हुआ?
उत्तर:
13 अक्टूबर, 2005 से।
प्रश्न 35.
संसद द्वारा सूचनाधिकार अधिनियम किस दिन पारित किया गया था?
उत्तर:
15 जून, 2005 को।
प्रश्न 36.
राष्ट्र के निर्माण के सहायक तत्वों के नाम लिखो।
उत्तर:
भाषा, धर्म, संस्कृति, इतिहास और नृजातियाँ।
प्रश्न 37.
केन्द्र और राज्यों के बीच राजस्व के बंटवारे के लिए संविधान द्वारा किस संस्था की स्थापना की गई है?
उत्तर:
वित्त आयोग की।
प्रश्न 38.
भारत में उदारीकरण की नीति का शुभारंभ किस वर्ष से किया गया था?
उत्तर:
सन् 1990 से।
प्रश्न 39.
तेलगु भाषी समुदाय की ओर से आमरण अनशन करने वाले गांधीवादी नेता कौन थे और उनकी मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर:
पोट्टि श्री रामुलु। इनकी मृत्यु 1953 में हुई थी।
प्रश्न 40.
जैन धर्म का सर्वाधिक अनुपात भारत के किस राष्ट्र में पाया जाता है?
उत्तर:
महाराष्ट्र, दिल्ली और गुजरात।
प्रश्न 41.
भारत में क्षेत्रवाद के दो कारण बताइये।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में विविधता के कारण कौन-कौनसी समस्यायें उत्पन्न होती हैं ?
अथवा
भारत में विविधता के कारण उत्पन्न किन्हीं दो समस्याओं को बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 किससे संबंधित है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 नागरिकों के शिक्षा एवं संस्कृति के अधिकार से संबंधित है। इसके तहत भारत के सभी नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि, तथा संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
प्रश्न 3.
सांस्कृतिक विविधता से हमारा क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता में विशाल राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अन्य किसी संदर्भ में विभिन्न प्रकार के समुदायों, जैसे-भाषा, धर्म तथा क्षेत्र के जरिए परिभाषित समुदायों की पहचानों की बहुलता है।
प्रश्न 4.
साम्प्रदायिकता या सम्प्रदायवाद किसे कहते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का अर्थ है-धार्मिक पहचान पर आधारित उग्रवाद जो कि अपने ही समूह को वैध अथवा श्रेष्ठ समझता है और अन्य समूहों को निम्न अथवा अवैध या विरोधी समझता है।
प्रश्न 5.
पंथनिरपेक्षता से क्या आशय है?
उत्तर:
पंथनिरपेक्षता के तहत राज्य अलग-अलग धर्मों के बीच भेदभाव नहीं करता है तथा सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है। यह किसी भी धर्म के पक्ष या विरोध में नहीं होती।
प्रश्न 6.
राज्य को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मैक्स वेबर के अनुसार, "राज्य एक ऐसा निकाय होता है जो एक विशेष क्षेत्र में विधि-सम्मत एकाधिकारी सत्ता का सफलतापूर्वक दावा करता है।"
प्रश्न 7.
सामुदायिक पहचान की राजनैतिक. चुनौतियों का राज्यों ने किस प्रकार समाधान किया?
उत्तर:
अनेक राज्यों द्वारा सामुदायिक पहचान की राजनैतिक चुनौतियों को राजनीतिक स्तर पर दबाया अथवा नजरअंदाज किया।
प्रश्न 8.
क्षेत्रवाद क्या है?
उत्तर:
देश के अन्य लोगों से अपने को श्रेष्ठ समझते हैं तथा राष्ट्रीय हित की तुलना में क्षेत्र के हितों को अधिक महत्त्व देते हैं तो उसे क्षेत्रवाद कहते हैं।
प्रश्न 9.
भारत सांस्कृतिक विविधता वाला देश क्यों कहलाता है?
उत्तर:
भारत में भाषा, धर्म, जाति, पंथ आदि के रूप में परिभाषित अनेक प्रकार के सामाजिक समूह और समुदाय पाये जाते हैं। इसलिए यह सांस्कृतिक विविधता वाला देश कहलाता है।
प्रश्न 10.
सामुदायिक पहचान की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 11.
राष्ट्र-राज्य के बीच दो सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 12.
आत्मसात्मकरण की नीतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
आत्मसात्मकरण की नीतियों के तहत समूहों के बीच पाई जाने वाली सांस्कृतिक, नृजातीय, भाषायी तथा धार्मिक विभिन्नताओं को मिटाने की कोशिश की जाती है।
प्रश्न 13.
एकीकरण की नीतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
एकीकरण की नीतियाँ केवल राष्ट्रीय पहचान को ही बनाए रखना चाहती हैं। इसमें सार्वजनिक तथा राजनीतिक कार्य-क्षेत्रों से विभिन्नताओं को दूर किया जाता है। लेकिन निजी क्षेत्र में इन्हें बनाये रखा जाता है।
प्रश्न 14.
भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति क्या है?
उत्तर:
भारत की कुल आबादी में लगभग 13.4 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की है। इण्डोनेशिया और पाकिस्तान के बाद भारत विश्व का तीसरा बड़ा मुस्लिम देश है।
प्रश्न 15.
प्रत्येक मनुष्य को स्थायी पहचान की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
इस संसार में अपना अस्तित्व सक्रिय बनाये रखने के लिए प्रत्येक मनुष्य को एक स्थायी पहचान की जरूरत होती है।
प्रश्न 16.
समाजीकरण की प्रक्रिया से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
समाजीकरण की प्रक्रिया काफी विस्तृत एवं लम्बी होती है जिसमें कुछ विशेष लोगों के साथ लगातार संवाद, वार्तालाप और कभी-कभी संघर्ष भी होता रहता है, जैसे कि हमारे माता-पिता, परिवार, नातेदार समूह एवं हमारा समुदाय।
प्रश्न 17.
हमारा समुदाय हमें क्या प्रदान करता है ?
उत्तर:
हमारा समुदाय हमें भाषा और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है, जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं। यह हमारी स्वयं की पहचान को भी सहारा देता है।
प्रश्न 18.
भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था के दो लक्षण बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 19.
भारत में उदारीकरण की नीति की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 20.
अल्पसंख्यकों की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 21.
डॉ. भीमराव अंबेडकर की कोई दो उपलब्धियाँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 22.
प्रदत्त पहचान से आपका क्या आशय है ?
उत्तर:
किसी समुदाय में जन्म लेने के लिए हमें कुछ नहीं करना होता। अपितु किसी परिवार या समुदाय
अथवा
देश में जन्म लेने पर हमारा कोई वश नहीं है। इस प्रकार की पहचानें प्रदत्त पहचान कहलाती हैं।
प्रश्न 23.
ऐसे तीन उदाहरण दीजिए जिनका राज्यक्षेत्र साथ-साथ जुड़ा है, उनकी एक साझी भाषा और संस्कृति है फिर भी वे अलग-अलग राष्ट्र-राज्य हैं।
उत्तर:
प्रश्न 24.
भीमराव रामजी अंबेडकर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
भीमराव रामजी अंबेडकर का जन्म 1891 तथा मृत्यु 1956 में हुई थी। अंबेडकर बौद्ध धर्म के पुनःप्रवर्तक, विधिवेत्ता, विद्वान एवं राजनीतिक नेता तथा संविधान के प्रमुख शिल्पकार हैं। इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य समुदाय में हुआ था। इन्होंने अपना जीवन अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करने में लगा दिया।
प्रश्न 25.
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई दो प्रावधान बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 26.
साम्प्रदायिकता की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 27.
साम्प्रदायिकता के दो दुष्प्रभाव बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 28.
साम्प्रदायिकता के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 29.
धर्म निरपेक्षता की कोई दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 30.
एक सत्तावादी राज्य की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 31.
नागरिक समाज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नागरिक समाज सार्वजनिक अधिकार का गैर-राजकीय तथा गैर-बाजारी भाग होता है जिसमें अलगअलग व्यक्ति संस्थाओं और संगठनों का निर्माण करने के लिए स्वेच्छा से परस्पर जुड़ जाते हैं। यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है।
प्रश्न 32.
सूचनाधिकार अधिनियम कब पारित किया गया था और इसमें क्या प्रावधान किया गया है?
उत्तर:
सूचनाधिकार अधिनियम सन् 2005 में पारित हुआ था। इसके द्वारा जम्मू-कश्मीर को छोड़कर के सभी नागरिकों को सरकारी अभिलेखों तक पहुँचने का अधिकार दिया गया है।
प्रश्न 33.
अधिकांश राज्य सांस्कृतिक भिन्नता से क्यों डरते हैं ?
उत्तर:
अधिकांश राज्यों को डर है कि सांस्कृतिक भिन्नताओं को मान्यता देने से सामाजिक विखण्डन के हालात पैदा हो जाएँगे तथा मैत्रीपूर्ण समाज के निर्माण में बाधा आ जाएगी।
प्रश्न 34.
भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का अनुभव कब हुआ?
उत्तर:
भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का थोड़ा अनुभव 'आपातकाल' के दौरान हुआ जो जून, 1975 से जनवरी, 1977 तक लागू रही थी। इसमें नागरिक स्वतंत्रताएँ छीन ली गई थीं।
प्रश्न 35.
सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता के परिवेश में अनेक प्रकार के समूह एवं समुदाय निवास करते हैं। समुदाय सांस्कृतिक चिह्नों, जैसे-भाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किए जाते हैं। इस प्रकार सांस्कृतिक विविधता में पहचानों की बहुलता या अनेकता पाई जाती है।
प्रश्न 36.
सूचना का अधिकार नागरिकों को क्या-क्या अधिकार प्रदान करता है ?
उत्त:
सूचना का अधिकार नागरिकों को:
प्रश्न 37.
दोहरी नागरिकता के कानून को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'दोहरी नागरिकता' के कानून के अनुसार किसी राज्य विशेष के नागरिकों को एक ही समय में एक दूसरे राज्य का नागरिक बनने की इजाजत प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिए, यहूदी जाति के अमेरिकी लोग एक साथ इजराइल और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के नागरिक हो सकते हैं; यहाँ तक कि वे इन दोनों में से किसी भी एक देश की सशस्त्र सेनाओं में दूसरे देश की नागरिकता खोए बगैर सेवा कर सकते हैं।
प्रश्न 38.
राजनीतिक वैधता के प्रमुख स्रोतों के रूप में लोकतंत्र और राष्ट्रवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
राजनीतिक वैधता के प्रमुख स्रोतों के रूप में लोकतंत्र और राष्ट्रवाद का अर्थ है कि आज एक राज्य के लिए 'राष्ट्र' एक सर्वाधिक स्वीकृत अथवा औचित्यपूर्ण आवश्यकता है, जबकि 'लोग' राष्ट्र की वैधता के चरम स्रोत हैं। दूसरे शब्दों में, राज्यों को राष्ट्र की उतनी ही या उससे भी अधिक 'आवश्यकता' होती है जितनी कि राष्ट्रों को राज्यों की।
प्रश्न 39.
आत्मसात्करण को बढ़ावा देने वाली नीतियों का उददेश्य क्या है?
उत्तर:
आत्मसात्करण को बढ़ावा देने वाली नीतियों का उद्देश्य सभी नागरिकों को एक समान सांस्कृतिक मूल्यों और मानकों को अपनाने के लिए राजी, प्रोत्साहित या मजबूर करना है। यह मूल्य तथा मानक आमतौर पर संपूर्ण गए समूहों से यह आशा अथवा अपेक्षा की जाती है कि वे अपने सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़ दें और निर्धारित मूल्यों को अपना लें।
प्रश्न 40.
भारतीय संदर्भ में क्षेत्रवाद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में क्षेत्रवाद भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों तथा धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है। इसे विभिन्न क्षेत्रों में पहचान चिह्नों के भौगोलिक संकेन्द्रण तथा क्षेत्रीय वंचन के कारण भी बढ़ावा मिलता है। यहाँ भाषा ने क्षेत्रीय तथा जनजातीय पहचान के साथ मिलकर तीव्र क्षेत्रीयता को आधार प्रदान किया है।
प्रश्न 41.
क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने वाले दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 42.
भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का क्या अर्थ है ? यह तनाव और हिंसा का स्रोत क्यों बन गया है?
उत्तर:
भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ है-धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद, जो अपने समूह को अन्य समूहों से श्रेष्ठ तथा विरोधी मानता है। इसका सम्बन्ध राजनीति से है। साम्प्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा होने के कारण यह तनाव और हिंसा का आवर्ती स्रोत बन गया है।
प्रश्न 43.
'सांस्कृतिक विविधता कठोर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है।' कैसे?
उत्त:
सांस्कृतिक विविधता कठोर चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकती है; क्योंकि
प्रश्न 44.
सांस्कृतिक विविधता से उत्पन्न चुनौतियों को दूर करने के कोई तीन सुझाव दीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 45.
भारत में राष्ट्रीय एकता के सम्मुख किन्हीं 6 समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में राष्ट्रीय एकता के सम्मुख 6 प्रमुख चुनौतियाँ ये हैं:
प्रश्न 46.
प्रदत्त और अर्जित पहचानों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
प्रदत्त पहचाने जन्म के द्वारा निर्धारित होती हैं और संबंधित व्यक्तियों की पसन्द या नापसन्द का इनमें कोई महत्त्व नहीं होता है। जाति का पद इसका उदाहरण है। दूसरी तरफ अर्जित पहचानें व्यक्ति के गुण, योग्यता और उपलब्धियों द्वारा प्राप्त होती हैं। डॉक्टर का पद इसका उदाहरण है।
प्रश्न 47.
प्रदत्त पहचानों की कोई तीन विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 48.
लोग उन समुदायों से संबंधित होकर अत्यन्त सुरक्षित और संतुष्ट महसूस करते हैं जिनमें उनकी सदस्यता पूरी तरह से आकस्मिक होती है, क्यों?
उत्तर:
लोग उन समुदायों से संबंधित होकर अत्यन्त सुरक्षित और सन्तुष्ट महसूस करते हैं जिनमें उनकी सदस्यता पूरी तरह से आकस्मिक होती है क्योंकि ऐसे समुदायों के साथ हम मजबूती के साथ अपने सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं तथा इनमें सम्बन्धों का आधार भावनात्मक होता है तथा ये हमें एक पहचान प्रदान करते हैं।
प्रश्न 49.
एक राष्ट्र अन्य प्रकार के समुदायों से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
एक राष्ट्र का अन्य प्रकार के समुदायों, जैसे-एक नृजातीय समूह, धार्मिक समुदाय अथवा क्षेत्रीय समुदाय आदि से इस अर्थ में भिन्न है कि राष्ट्र एक ऐसा समुदाय होता है जिसका अपना एक राज्य होता है, जबकि अन्य समुदायों का राज्य हो यह आवश्यक नहीं है।
प्रश्न 50.
एकीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियों का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
एकीकरण को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ शैली की दृष्टि से तो अलग होती हैं पर उनका सर्वोपरि उद्देश्य भिन्न नहीं होता, वे इस बात पर बल देती हैं कि सार्वजनिक संस्कृति को सामान्य राष्ट्रीय स्वरूप तक सीमित रखा जाए, जबकि सभी 'गैर-राष्ट्रीय' संस्कृतियों को निजी क्षेत्र के लिए छोड़ दिया जाए। इस मामले में भी प्रभावशाली समूहों की संस्कृति को 'राष्ट्रीय संस्कृति' माने जाने का खतरा रहता है।
प्रश्न 51.
धर्म को लेकर भारत के संविधान में क्या घोषणा की गई है?
उत्त:
संविधान में यह घोषणा की गई है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य होगा; पर धर्म, भाषा और अन्य ऐसे कारकों को सार्वजनिक क्षेत्र में पूरी तरह निष्कासित नहीं किया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय मानकों की दृष्टि से मापा जाए तो अल्पसंख्यक धर्मों को अत्यन्त प्रबल संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
प्रश्न 52.
राष्ट्र और राज्य में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
राष्ट्र ऐसे समुदाय होते हैं, जिनका अपना एक राज्य होता है। वास्तव में राष्ट्र-राज्य शब्द योजक चिह्न से जुड़े होते हैं । दोनों के बीच एकैक का सम्बन्ध है अर्थात् 'एक राष्ट्र-एक राज्य' या 'एक राज्य-एक राष्ट्र'। यह एक नया विकास है। पहले यह बात सही नहीं थी।
प्रश्न 53.
आत्मसात्मीकरण और एकीकरण की नीतियों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आत्मसात्मीकरण की नीतियों के अन्तर्गत प्रायः नृजातीय, धार्मिक अथवा भाषायी पहचानों को, उनकी विभिन्नताओं को मिटाने की कोशिश की जाती है, जबकि एकीकरण की नीतियों में सार्वजनिक और राजनैतिक कार्य क्षेत्र में तो इन विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है, लेकिन निजी क्षेत्र में इन्हें बनाए रखने की अनुमति दी जाती है।
प्रश्न 54.
राज्यों के द्वारा सांस्कृतिक विविधताओं को मिटाने की कोशिश क्यों की गई?
उत्तर:
राज्यों के द्वारा सांस्कृतिक विविधताओं को मिटाने की कोशिश इसलिए की गई; क्योंकि अधिकांश राज्यों को यह भय था कि इन अन्तरों को मान्यता प्रदान किये जाने से सामाजिक विखण्डन की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी जो समरसतापूर्ण समाज के विकास तथा राज्य की एकता में बाधक होगी।
प्रश्न 55.
आत्मसात्मीकरण की नीतियों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
आत्मसात्मीकरण की नीतियों के अन्तर्गत अल्पसंख्यक सांस्कृतिक विभिन्नताओं को मिटाने की कोशिश की जाती है। इसका उद्देश्य सभी नागरिकों को एक समान सांस्कृतिक मूल्यों और मानकों को अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है। ये मूल्य प्रायः बहुसंख्यक प्रभावशाली सामाजिक समूह के होते हैं।
प्रश्न 56.
एकीकरण की नीतियों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
एकीकरण की नीतियाँ केवल एक अकेली राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखना चाहती हैं जिसके लिए वे सार्वजनिक तथा राजनीतिक कार्यक्षेत्रों से नृजातीय-राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न करती है; किन्तु निजी क्षेत्रों में इन्हें बनाए रखने का प्रयास करती हैं।
प्रश्न 57.
भारत में भाषायी विविधता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में लगभग
1. अरब लोगों के द्वारा कुल मिलाकर के 1632 अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं । संविधान की आठवीं अनुसूची में इनमें से अधिकारिक रूप से 18 भाषाओं को मान्यता दी गई है। इस प्रकार उन्हें विधिक प्रतिष्ठा की गारंटी दी गई है।
प्रश्न 58.
भारत में विभिन्न धर्मानुयायियों की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में कुल जनसंख्या की 80.5 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है, जो कि स्वयं तरह-तरह के विश्वास, व्यवहार, जातियों और भाषाओं के रूप में विभक्त हैं। यहाँ लगभग 13.4 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है तथा अन्य धार्मिक समुदायों में ईसाई (2.3 प्रतिशत), सिख (1.9 प्रतिशत), बौद्ध (0.8 प्रतिशत) और जैन (0.4 प्रतिशत) हैं।
प्रश्न 59.
एक राष्ट्र-राज्य में भारत की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
लोकतांत्रिक पहचानों के साथ राष्ट्र-राज्य सम्बन्धों की दृष्टि से भारत की स्थिति न तो आत्मसात्मीकरण की है और न ही एकीकरणवादी। भारत के संविधान में घोषणा की गई है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य होगा, परन्तु धार्मिक एवं भाषायी समुदायों को व्यक्त रूप में मान्यता दी गई है।
प्रश्न 60.
भाषायी आधार पर राज्यों के निर्माण के तीन नकारात्मक परिणाम बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 61.
भारत में संघीय व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
भारत में संघ और राज्यों के बीच शक्ति विभाजन का कार्य संवैधानिक उपबन्धों के अधीन तीन सूचियों केन्द्रीय सरकार कानून बनाती है। राज्य सूची के विषयों पर राज्यों की सरकारें और समवर्ती सूची के विषयों पर दोनों ही सरकारें कानून बना सकती हैं।
प्रश्न 62.
'प्रेसीडेंसी' बड़े-बड़े बहुनृजातीय और बहुभाषी प्रांतीय राज्य थे जो भारत संघ कहे जाने वाले अर्द्धसंघीय राज्य की बड़ी-बड़ी राजनीतिक प्रशासनिक इकाइयों के रूप में काम करते थे। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'प्रेसीडेंसी' बड़े-बड़े इकाइयों के रूप में काम करते थे। उदाहरण के लिए, पुराना बम्बई राज्य मराठी, गुजराती, कन्नड़ एवं कोंकणी तथा मद्रास राज्य तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम बोलने वाले लोगों से मिलकर बना है।
प्रश्न 63.
भाषा ने क्षेत्रीय तथा जनजातीय पहचान के साथ भारत में नृजातीय-राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए सशक्त साधन का काम किया है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सन् 2000 में तीन नए राज्यों अर्थात् छत्तीसगढ़, उत्तरांचल और झारखंड के निर्माण में भाषा ने कोई प्रमुख भूमिका अदा नहीं की, बल्कि जनजातीय पहचान, भाषा, क्षेत्रीय वंचन और पारिस्थितिकी पर आधारित नृजातीयता ने मिलकर तीव्र क्षेत्रीयता को आधार प्रदान किया, जिसके परिणामस्वरूप नए राज्यों की स्थापना हुई।
प्रश्न 64.
भारतीय राष्ट्रवाद की प्रवृत्ति को समावेशात्मक और लोकतांत्रिक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
प्रश्न 65.
अल्पसंख्यक समूह से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
समाजशास्त्र में अल्पसंख्यक समूह में अपने समूह के प्रति एकरूपता, एकजुटता और उससे संबंधित होने का भाव प्रबल होता है । यह भाव हानि अथवा असुविधा के साथ जुड़ा होता है; क्योंकि भेदभाव का शिकार होने का अनुभव समूह के प्रति निष्ठा को बढ़ा देता है।
प्रश्न 66.
'एक अल्पसंख्यक समूह किसी एक अर्थ में सुविधा विहीन हो सकता है, परन्तु दूसरे अर्थ में नहीं।' उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कोई एक अल्पसंख्यक समूह किसी एक अर्थ में सुविधा-विहीन हो सकता है; परन्तु दूसरे अर्थ में नहीं। उदाहरण के लिए पारसी और सिक्ख जैसे धार्मिक अल्पसंख्यक समूह सांस्कृतिक दृष्टि से सुविधाविहीन हो सकते हैं; क्योंकि हिन्दुओं की तुलना में उनकी संख्या बहुत कम है, लेकिन दृष्टि से वे सुविधा-विहीन नहीं हैं।
प्रश्न 67.
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के तुलनात्मक आकार और वितरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रश्न 68.
अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने के सम्बन्ध में आम्बेडकर के विचार बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 69.
अल्पसंख्यकों को राज्य के संरक्षण की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर:
अल्पसंख्यकों को राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए, उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए, उनकी भाषा तथा संस्कृति के संरक्षण के लिए, उनमें शिक्षा के प्रचार-प्रसार करने तथा इनके शोषण को रोकने के लिए राज्य के संरक्षण की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 70.
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु कौन-कौन से प्रावधान किए गए हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 में अल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु निम्न प्रावधान किए गए हैं
प्रश्न 71.
साम्प्रदायिकता की भारतीय और पश्चिमी अवधारणा में क्या अन्तर है?
उत्तर:
भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ है-एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा अर्थात् धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद, जबकि अंग्रेजी में कम्युनल शब्द का अर्थ है-व्यक्ति की बजाय समुदाय (कम्युनिटी) या सामूहिकता से जुड़ा भाव। अंग्रेजी अर्थ तटस्थ है, जबकि भारतीय अर्थ प्रबल रूप से आवेशित है।
प्रश्न 72.
साम्प्रदायिकता की तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 73.
'साम्प्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है, धर्म से नहीं।' कैसे?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है, धर्म से नहीं; क्योंकि व्यक्तिगत विश्वास और सम्प्रदायवाद में आवश्यक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। एक सम्प्रदायवादी श्रद्धालु हो भी सकता है और नहीं भी। इसी प्रकार एक श्रद्धालु सम्प्रदायवादी हो भी सकता है और नहीं भी, लेकिन सभी सम्प्रदायवादी धर्म-आधारित आक्रामक राजनीतिक पहचान में विश्वास रखते हैं।
प्रश्न 74.
साम्प्रदायिकता के दुष्प्रभाव बताइये।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता के दुष्प्रभाव:
प्रश्न 75.
साम्प्रदायिकता की समस्या को दूर करने के कोई तीन उपाय बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 76.
धर्मनिरपेक्षता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति या राज्य वह होता है जो किसी विशेष धर्म का अन्य धर्मों की तुलना में पक्ष नहीं लेता है। धर्मनिरपेक्षता का भाव धार्मिक उग्रवाद का विरोधी है। राज्य की दृष्टि से, धर्मनिरपेक्षता का आशय राज्य द्वारा सभी धर्मों को समान आदर व सम्मान का भाव रखना है।
प्रश्न 77.
धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोण में क्या अन्तर है?
उत्तर:
पाश्चात्य दृष्टिकोण में धर्मनिरपेक्षता का भाव चर्च और राज्य की पूर्ण पृथकता का द्योतक है, जबकि भारतीय दृष्टिकोण में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सभी धर्मों के प्रति समान आदर करने से है। यह राज्य से धर्म के अलगाव का द्योतक नहीं है। उदाहरण के लिए, भारतीय राज्य सभी धर्मों के त्यौहारों के अवसर पर सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर सकता है।
प्रश्न 78.
भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता की विशेषताएँ
प्रश्न 79.
राज्य द्वारा अल्पसंख्यकों को संरक्षण दिये जाने से कौनसी समस्यायें उत्पन्न हो गई हैं ?
उत्तर:
अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए यह आवश्यक है कि उनका ऐसे संदर्भ में विशेष ध्यान रख जाए जहाँ राजनीतिक व्यवस्था के सामान्य काम-काज में उन्हें बहुसंख्यक समुदाय की तुलना में हानि पहुँचती हो। लेकिन ऐसा संरक्षण दिये जाने से तुरंत ही अल्पसंख्यकों के पक्षपात का आरोप लगता है। अल्पसंख्यकों का मत प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
प्रश्न 80.
सत्तावादी राज्य से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सत्तावादी राज्य-एक सत्तावादी राज्य में सत्ताधारी किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते हैं। इसमें अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओं, विशेषकर अभिव्यक्ति और राजनीतिक क्रिया-कलाप की स्वतंत्रता को सीमित अथवा समाप्त कर दिया जाता है। इससे राज्य की संस्थाएँ लोगों की मांगों को सुनने की अनिच्छुक हो जाती हैं।
प्रश्न 81.
सत्तावादी राज्य की कोई तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सत्तावादी राज्य की विशेषताएँ
प्रश्न 82.
आर्थिक विकास में निजी पूँजी निवेश को बड़ी भूमिका दी गई है इसलिए क्षेत्रीय समदृष्टि के तत्वों को कम महत्त्व मिला है। क्यों?
उत्तर:
आर्थिक विकास में निजी पूँजी निवेश को बड़ी भूमिका दी गई है, इसलिए क्षेत्रीय समदृष्टि के तत्त्वों को कम महत्त्व मिला है। यह इसलिए होता है क्योंकि निजी निवेशकर्ता आमतौर पर पहले से विकसित ऐसे राज्यों में पूँजी लगाना चाहते हैं जहाँ आधारभूत ढाँचा तथा अन्य सुविधाएँ बेहतर हों। निजी उद्योग के विपरीत, सरकार केवल अपने मुनाफों को अधिक-से-अधिक बढ़ाने की बजाय, क्षेत्रीय समदृष्टि को कुछ महत्त्व दे सकती है।
प्रश्न 83.
नागरिक समाज की कौन-कौनसी कसौटियाँ हैं?
उत्तर:
नागरिक समाज में शामिल होने की प्रमुख कसौटियाँ ये हैं:
प्रश्न 84.
वर्तमान में नागरिक समाज की प्रासंगिकता बताइये।
उत्तर:
वर्तमान में नागरिक समाज या नागरिक स्वतंत्रता संगठन राज्य के काम-काज पर नजर रखने और उससे कानून का पालन करवाने की दिशा में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण रहे हैं। दूसरे नागरिक समाज यह सुनिश्चित करने के लिए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं कि राज्य लोगों के प्रति जवाबदेह है।
प्रश्न 85.
अल्पसंख्यक शब्द का समाजशास्त्रीय भाव क्या है?
उत्तर:
अल्पसंख्यक शब्द का समाजशास्त्रीय भाव यह है कि अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य एक सामूहिकता का निर्माण करते हैं, यानी उनमें अपने समूह के प्रति एकात्मता, एकजुटता और उससे संबंधित होने का प्रबल भाव होता है। यह भाव हानि और असुविधा से जुड़ा है, क्योंकि पूर्वाग्रह और भेदभाव का शिकार होने का अनुभव आमतौर पर अपने ही समूह के प्रति निष्ठा और दिलचस्पी की भावनाओं को बढ़ावा देता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरिक समाज से आप क्या समझते हैं ? इसके द्वारा कौन-कौन से मुद्दे उठाये गये हैं ?
अथवा
नागरिक समाज द्वारा उठाये गये कुछ मुद्दे क्या हैं ?
उत्तर:
नागरिक समाज से आशय-नागरिक समाज परिवार के निजी क्षेत्र से परे सार्वजनिक अधिकार का गैर-राजकीय तथा गैर-बाजारी भाग होता है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थाओं और संगठनों का निर्माण करने के लिए स्वेच्छा से परस्पर जुड़ जाते हैं । यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है जहाँ व्यक्ति मिलकर सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करते हैं, राज्य को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं अथवा उसके समक्ष अपनी मांगें रखते हैं। नागरिक समाज द्वारा उठाये गये प्रमुख मुद्दे वर्तमान में नागरिक समाज ने राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के साथ मिलकर विभिन्न आन्दोलनों में सक्रियतापूर्वक भाग लिया है तथा निम्न प्रमुख मुद्दों को उठाया है:
प्रश्न 2.
भारत में सांस्कृतिक विविधता को स्पष्ट करते हुए बताइये कि क्या भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य है?
उत्तर:
भारत में सांस्कृतिक विविधता-भारत. राष्ट्र-राज्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण देशों में से एक है। यथा
1. भाषायी विविधता-यहाँ के एक अरब (सौ करोड़) से ज्यादा लोग लगभग 1632 भिन्न-भिन्न भाषाएँ और बोलियाँ बोलते हैं । इन भाषाओं में से 18 भाषाओं को आधिकारिक रूप से मान्यता देकर उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है।
2. धार्मिक विविधता–यहाँ 80.5 प्रतिशत आबादी हिन्दुओं की है, जो स्वयं भी क्षेत्रीय रूप से तरह-तरह के विश्वासों और व्यवहारों तथा जातियों एवं भाषाओं की दृष्टि से बँटे हुए हैं। यहाँ लगभग 13.4 प्रतिशत आबादी मुसलमानों, 2.3 प्रतिशत ईसाइयों, 1.9 प्रतिशत सिखों, 0.8 प्रतिशत बौद्धों तथा 0.4 प्रतिशत जैनों की है। भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य के रूप में भारत अपनी राष्ट्रीय एकता के साथ सांस्कृतिक विविधता लिए हुए एक लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य है। उसने लोकतांत्रिक तरीके से बहुलवाद, संस्थागत समायोजन और द्वन्द्व समाधान की परिपाटियों में अपनी लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता को उत्साहपूर्वक दोहराया है। भारत के संवैधानिक स्वरूप में विविध समूहों के सांस्कृतिक अपवर्जन को खत्म करने, बहुविधि तथा पूरक पहचानों का निर्माण करने के लिए स्पष्ट प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। भारतीय नागरिक अपने देश तथा अपनी अन्य सांस्कृतिक पहचानों के साथ तादात्म्य स्थापित करने, साझी संस्थाओं में अपना विश्वास बनाने और लोकतांत्रिक राजनीति में भाग लेने तथा उसे समर्थन देने के लिए संस्थाओं तथा राजनीति में अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
यहाँ के लगभग 80 प्रतिशत लोग लोकतंत्र को सरकार के किसी भी अन्य रूप से अधिक पसंद किया जाता है। यहाँ के नागरिक लोकतांत्रिक संस्थाओं में बहुत अधिक विश्वास करते हैं तथा अधिकांश लोग लोकतांत्रिक भारत के राष्ट्रीय नागरिक होकर गर्व का अनुभव करते हैं। ये सभी लोकतंत्र को मजबूत करने और उसे गहरा बनाने तथा सहनशील लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण करने के प्रमुख कारक हैं। यह तथ्य दर्शाते हैं कि अपनी विविधताओं के बावजूद यह एक अत्यन्त सशक्त लोकतंत्र है।
प्रश्न 3.
आत्मसात्मीकरण और एकीकरण की नीतियों में क्या अन्तर है ? ये नीतियाँ किन उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती हैं ?
उत्तर:
आत्मसात्मीकरण की नीतियों के अन्तर्गत प्रायः नृजातीय, धार्मिक अथवा भाषायी पहचानों को, उनकी विभिन्नताओं को मिटाने की कोशिश की जाती है, जबकि एकीकरण की नीतियों में सार्वजनिक और राजनैतिक कार्य क्षेत्र में तो इन विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न किया जाता है, लेकिन निजी क्षेत्र में इन्हें बनाए रखने की अनुमति दी जाती है। आत्मसात्मीकरणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियाँ विभिन्न अंतःक्षेपी उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती हैं जैसे
प्रश्न 4.
सूचनाधिकार अधिनियम 2005 क्या है ? इस अधिनियम के आधार पर नागरिकों को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हुए हैं?
अथवा
सूचना का अधिकार क्या है ?
सूचनाधिकार अधिनियम, 2005 के प्रमुख प्रावधान बताइये।
अथवा
सूचना का अधिकार 2005 क्या है?
उत्तर:
सूचना का अधिकार-सरकारी निधियों के बारे में सूचना देने के लिए सरकार द्वारा एक कानून बनाया गया है जिसके अन्तर्गत भारतीय नागरिक भारतीय सरकार से की गई किसी कार्यवाही के बारे में सूचना प्राप्त कर सकते हैं। सूचनाधिकार अधिनियम 2005 सूचनाधिकार अधिनियम 2005 भारत की संसद द्वारा पारित किया गया एक ऐसा कानून है जिसके तहत भारतीयों को (जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर, जिसके पास अपना विशेष कानून है) सरकारी अभिलेखों तक पहुँचने का अधिकार दिया गया है। सूचनाधिकार अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
1. इस अधिनियम की शर्तों के अधीन, कोई भी व्यक्ति किसी 'सार्वजनिक प्राधिकरण' (सरकारी निकाय) से सूचना के लिए अनुरोध कर सकता है और इस प्राधिकरण से यह आशा की जाती है कि वह शीघ्रता से अर्थात् 30 दिन के अन्दर उसे उत्तर देगा।
2. यह अधिनियम प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण से यह अपेक्षा करता है कि वह व्यापक प्रसार के लिए अपने अभिलेखों को कम्प्यूटरीबद्ध करे और कतिपय श्रेणियों से संबंधित सूचना को सक्रिय होकर प्रकाशित करे ताकि नागरिकों को सूचना पाने के औपचारिक रूप से अनुरोध करने की कम से कम आवश्यकता पड़े। सूचनाधिकार अधिनियम में प्रदत्त नागरिकों को अधिकार सूचनाधिकार अधिनियम, 2005 विनिर्दिष्ट करता है कि नागरिकों को निम्न अधिकार होंगे:
3. दस्तावेजों, कार्यों और अभिलेखों का निरीक्षण करने, कार्य की सामग्रियों के प्रमाणित नमूने लेने का अधिकार। नागरिक सूचना प्रिंट आउट, डिस्केट, फ्लॉपी, वीडियो कैसेट अथवा अन्य किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रीति के माध्यम से दे सकते हैं।
प्रश्न 5.
'धर्मनिरपेक्षतावाद' पर एक लेख लिखिए।
अथवा
धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोण के बीच अन्तर बताते हुए वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता सामाजिक और राजनीतिक सिद्धान्त में प्रस्तुत सर्वाधिक जटिल शब्दों में से एक है। पाश्चात्य और भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता के अर्थ को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है
(अ) पाश्चात्य संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ-पाश्चात्य संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का मुख्य भाव चर्च और राज्य की पृथकता का द्योतक है। इसके अन्तर्गत धर्म को एक अनिवार्य दायित्व के स्थान पर स्वैच्छिक व्यक्तिगत व्यवहार के रूप में माना गया है। राज्य धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और न ही धर्म राज्य के मामले में हस्तक्षेप करेगा। इस प्रकार पाश्चात्य अर्थ में राज्य सभी धर्मों से दूरी बनाए रखता है।
(ब) भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ-भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता में पश्चिमी भावार्थ तो शामिल है ही, लेकिन उसमें कुछ और भाव भी जुड़े हैं। रोजमर्रा की भाषा में, धर्मनिरपेक्षता का सर्वाधिक सामान्य प्रयोग साम्प्रदायिकता के विलोम के रूप में किया जाता है । इस प्रकार एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति या राज्य वह होता है जो किसी विशेष धर्म का अन्य धर्मों की तुलना में पक्ष नहीं लेता। इस अर्थ में धर्मनिरपेक्षता धार्मिक उग्रवाद का विरोधी भाव है और इसमें धर्म के प्रति विद्वेष का भाव नहीं होता।
राज्य और धर्म के पारस्परिक सम्बन्धों की दृष्टि से, धर्मनिरपेक्षता का भाव सभी धर्मों के प्रति समान आदर का द्योतक है, न कि अलगाव या दूरी का। उदाहरण के लिए, धर्मनिरपेक्ष भारतीय राज्य सभी धर्मों के त्यौहारों के अवसर पर सार्वजनिक छुट्टी घोषित करता है।
(स) पश्चिमी और भारतीय दृष्टिकोण में अन्तर:
प्रश्न 6.
क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है ? भारत में धर्मनिरपेक्षता से उत्पन्न समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य हाँ, भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। लेकिन इसकी धर्मनिरपेक्षता पाश्चात्य अर्थ की धर्मनिरपेक्षता-राज्य के सभी धर्मों से दूरी बनाए रखना-से भिन्न है। भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ राज्य का सभी धर्मों को समान आदर देने से है। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में अनेक प्रावधान दिये गये हैं:
धर्मनिरपेक्षता से उत्पन्न समस्यायें:
1. पाश्चात्य भाव के राज्य के सभी धर्मों से दूरी बनाए रखने और भारतीय भाव के राज्य के सभी धर्मों को समान आदर देने के कारण दोनों के बीच तनाव से एक तरह की कठिन स्थिति पैदा हो गई है। प्रत्येक भाव के समर्थक विचलित हो जाते हैं जब राज्य दूसरे भाव का समर्थन करने के लिए कुछ करता है।
2. भारतीय राज्य अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए वचनबद्ध है। इस वचनबद्धता और धर्मनिरपेक्षता के बीच तनाव के कारण भी कुछ जटिलताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। अल्पसंख्यकों के संरक्षण में राज्य ऐसे संदर्भ में विशेष ध्यान रखता है जहाँ उन्हें बहुसंख्यक समुदाय की तुलना में हानि पहुँचती है। लेकिन ऐसा संरक्षण दिये जाने से 'अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण' का आरोप लगता है तथा विरोधी यह तर्क देते हैं कि अल्पसंख्यकों के मत प्राप्त करने के लिए ऐसा किया जा रहा है। दूसरी तरफ इसके समर्थक यह दलील देते हैं कि ऐसे विशेष संरक्षण के बिना धर्म निरपेक्षतावाद अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों के मूल्यों को थोपने का एक बहाना बन सकता है।
प्रश्न 7.
साम्प्रदायिक हिंसाओं की घटनाओं के बावजूद भारतीय संविधान ने भिन्न-भिन्न समूहों को मान्यता देते हुए अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाई है। भारत के सामने किस प्रकार की लोकतांत्रिक चुनौती है और क्यों ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएँ भविष्य में सामाजिक मेल-मिलाप की भावनाओं के प्रति चिंता पैदा करती हैं। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारत के संवैधानिक स्वरूप में भिन्न-भिन्न समूहों के दावों को मान्यता देते हुए अनुकूल प्रतिक्रिया दिखलाई है और अनेक क्षेत्रीय, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद राज्य व्यवस्था को संगठित बनाए रखा है। जैसाकि तदात्मीकरण, विश्वास और समर्थन के सूचकों के विषय में भारत के कार्यनिष्पादन से पता चलता है। इसके नागरिक देश के विविधतापूर्ण और अत्यन्त स्तरबद्ध समाज के बावजूद, देश तथा लोकतंत्र के लिए गंभीरतापूर्वक प्रतिबद्ध हैं । जब भारतीय लोकतंत्र के कार्य-निष्पादन की तुलना अन्य लंबे समय से स्थापित एवं संचालित और अधिक सम्पन्न लोकतंत्रों से की जाती है तो भारत का कार्य-निष्पादन विशेष रूप से प्रभावोत्पादक नजर आता है।
भारत के सामने चुनौती इसलिए है कि उसने लोकतांत्रिक तरीकों से बहुलवाद, संस्थागत समायोजन और द्वंद्व समाधान की परिपाटियों में अपनी प्रतिबद्धता को उत्साहपूर्वक दोहराया है। एक बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र के निर्माण के लिए राष्ट्र निर्माण के ऐतिहासिक प्रयासों की कमजोरियों को स्वीकार करना और बहुविध तथा पूरक पहचानों के लोगों
को मान्यता देना बहुत जरूरी है। पहचान, विश्वास और सर्मथन के माध्यम से समाज के सभी समूहों में समाज के प्रति निष्ठा की भावना जागृत करने के प्रयत्न भी महत्त्वपूर्ण हैं। राष्ट्रीय संसक्ति यह अपेक्षा नहीं करती कि कोई एक अकेली पहचान सब पर थोप दी जाए और विविधता की निंदा की जाए। राज्य-राष्ट्रों के निर्माण की सफल रणनीतियाँ इस विविधता को रचनात्मक रीति से सांस्कृतिक मान्यता की प्रतिसंवेदी नीतियाँ बनाकर समायोजित कर सकती हैं और करती भी हैं। वे राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक समरसता (मेल-मिलाप) के दीर्घकालीन उद्देश्यों को सुनिश्चित करने के प्रभावोत्पादक समाधान हैं।
प्रश्न 8.
सांस्कृतिक विविधता से क्या तात्पर्य है और इससे कौन-कौन सी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता का अर्थ-विविधता शब्द असमानताओं की बजाय अन्तरों पर अधिक बल देता है। जब हम यह कहते हैं कि भारत एक महान् सांस्कृतिक विविधता वाला राष्ट्र है तो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यहाँ अनेक प्रकार के सामाजिक समूह एवं समुदाय निवास करते हैं। यह समुदाय सास्कृतिक चिह्नों, जैसेभाषा, धर्म, पंथ, प्रजाति या जाति द्वारा परिभाषित किये जाते हैं। सांस्कृतिक विविधता से उत्पन्न चनौतियाँ जब भाषा, धर्म, प्रजाति, पंथ या जाति द्वारा परिभाषित विविध समुदाय एक राष्ट्र का भाग होते हैं, तब उनके बीच प्रतिस्पर्धा या संघर्ष के कारण अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न होती है यथा:
1. क्षेत्रवाद की चुनौती-सांस्कृतिक विविधता से क्षेत्रवाद की चुनौती उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों और धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है। इसे विशेष क्षेत्रों में पहचान चिह्नकों के भौगोलिक संकेन्द्रण के कारण भी प्रोत्साहन मिलता है और क्षेत्रीय वंचन इसे बढ़ावा देता है।
2. भाषावाद की चुनौती-सांस्कृतिक विविधता के कारण भाषावाद की समस्या उत्पन्न होती है। भाषा के नाम पर नये राज्यों की माँग की जाती है। नए राज्यों के नाम पर तनाव और संघर्ष बढ़ता है। भाषा के नाम पर कई बार भयावह दंगे हो जाते हैं जिसके कारण जन-धन की भारी क्षति होती है।
3. साम्प्रदायिकता की चुनौती-सांस्कृतिक विविधता के कारण साम्प्रदायिकता की चुनौती उत्पन्न होती है। विभिन्न राजनैतिक दल अपने-अपने स्वार्थों को बढ़ावा देने के लिए लोगों को उकसाते हैं । साम्प्रदायिक दंगों से हजारों लोग मर जाते हैं और सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुँचती है और लोगों में अविश्वास और तनाव बढ़ता है।
4. जातिवाद की चुनौती-सांस्कृतिक विविधता के कारण जातिवाद की चुनौती उत्पन्न होती है। जाति के नाम पर राजनीति में इसका प्रयोग वोट बैंक के रूप में किया जाता है।
प्रश्न 9.
सामुदायिक पहचान से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएँ तथा महत्त्व बताइये।
उत्तर:
सामुदायिक पहचान से आशय-एक समूह या समुदाय में जन्म लेने व रहने के कारण व्यक्ति की जो पहचान बनती है, वह उसकी सामुदायिक पहचान कहलाती है। हमारा समुदाय हमें भाषा और सांस्कृतिक मूल्य प्रदान करता है जिनके माध्यम से हम विश्व को समझते हैं। यह हमारी स्वयं की पहचान को भी निर्धारित करता है। सामुदायिक पहचान की विशेषताएँ सामुदायिक पहचान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. जन्म तथा अपनेपन पर आधारित - सामुदायिक पहचान, जन्म और अपनेपन पर आधारित होती है, न कि कि सी अर्जित योग्यता या उपलब्धि के आधार पर। इस प्रकार की पहचानें 'प्रदत्त' कहलाती हैं क्योंकि ये जन्म से निर्धारित होती हैं और संबंधित व्यक्तियों की पसंद-नापसंद इसमें शामिल नहीं होती।
2. आकस्मिक - सामुदायिक पहचान चूंकि जन्म पर आधारित होती है, किसी समुदाय में जन्म लेने पर हमार। कोई वश नहीं है। इसलिए सामुदायिक पहचान आकस्मिक होती है। क्योंकि इस सामुदायिक पहचान के लिए हमने कोई प्रयत्न नहीं किया है। हम प्रायः ऐसे समुदाय के साथ अपनी पहचान मजबूती से स्थापित कर लेते हैं जिस्की सदस्यता के लिए हमने कोई प्रयास नहीं किया।
3. शर्त रहित - सामुदायिक पहचाने जन्म या. अपनेपन पर आधारित होने के कारण आकस्मिक होने के साथ-साथ शर्तरहित भी होती हैं।
4. सर्वव्यापी - सामुदायिक पहचानें सर्वव्यापी होती हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की एक मातृभूमि होती है, एक मातृभाषा होती है, उसका एक परिवार तथा उसके प्रति उसकी निष्ठा होती है। इस प्रतिबद्धता की संभावना लगभग अधिकांश लोगों में पायी जाती है।
सामुदायिक पहचानों का महत्त्व:
प्रश्न 10.
राज्य और राष्ट्र से आप क्या समझते हैं? दोनों के मध्य सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
राज्य का अर्थ-राज्य शब्द का अर्थ एक ऐसे अमूर्त सत्व से है जिसमें राजनैतिक-विधिक संस्थाओं के समुच्चय समाहित होते हैं और एक खास भौगोलिक क्षेत्र पर और उसमें रहने वाले लोगों पर उसका नियंत्रण होता है। मैक्स वेबर की प्रसिद्ध परिभाषा के अनुसार राज्य एक ऐसा निकाय होता है जो एक विशेष क्षेत्र में विधिसम्मत एकाधिकार का सफलतापूर्ण दावा करता है। राष्ट्र का अर्थ-राष्ट्र ऐसा समुदाय होता है जिसका वर्णन आसान है पर इसे परिभाषित करना कठिन है। राष्ट्र एक तरह से समुदायों से मिलकर बना एक बड़ा समुदाय होता है। राष्ट्र के सदस्य एक ही राजनीतिक सामूहिकता का हिस्सा बनने की इच्छा रखते हैं। राजनीतिक एकता की यह इच्छा स्वयं को एक राज्य बनाने की आकांक्षा के रूप में अभिव्यक्त होती है।
राष्ट्र और राज्य में सम्बन्ध राष्ट्र ऐसे समुदाय होते हैं जिनका अपना एक राज्य होता है। वस्तुतः राष्ट्र-राज्य शब्द योजक-चिह्न (-) से जुड़े होते हैं। सामान्य तौर पर यह कहा जा सकता है कि राज्य और राष्ट्र के बीच एकैक का सम्बन्ध है अर्थात् एक राज्य-एक राष्ट्र या एक राष्ट्र-एक राज्य। परन्तु यह एक नया विकास है। पहले यह बात सही नहीं थी कि एक अकेला राज्य केवल एक ही राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सकता था अथवा एक ही राष्ट्र का द्योतक हो या प्रत्येक राष्ट्र का एक राज्य आवश्यक हो। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राष्ट्र के साथ राज्य और राज्य के साथ राष्ट्र जुड़ा होता है।
प्रश्न 11.
भाषाई राज्यों ने भारतीय एकता को मजबूत करने में सहायता दी है। विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट, जो 1 नवंबर 1956 को लागू की गई थी, ने राष्ट्र के राजनीतिक और सांस्थानिक जीवन के रूपान्तरण में सहायता दी। यथा
राज्य पुनर्गठन आयोग की पृष्ठभूमि यहाँ दी जा रही है। 1920 के दशक में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भाषाई आधार पर पुनर्गठित की गई। अब इसकी प्रांतीय इकाइयों ने भाषाई आधार का अनुसरण किया, जैसे, एक मराठी बोलने वालों के लिए, दूसरी उड़िया बोलने वालों के लिए आदि-आदि। इसी समय, गाँधीजी तथा देश के अन्य नेताओं ने अपने अनुयायियों को वचन दिया कि जब स्वतंत्रता मिल जाएगी तब नया राष्ट्र भाषाओं के अनुसार नए राज्यों के आधार पर पुनर्गठित किया जाएगा। देश का विभाजन अपने विश्वास के साथ गहरे लगाव का परिणाम था। इस प्रकार भाषा, गहरी निष्ठा न जाने कितने और बँटवारे करवा देगी? ऐसी विचारधारा उस समय के चोटी के कांग्रेसी नेताओं नेहरू, पटेल, और राजाजी आदि के मन में रही। दूसरी ओर, सभी छोटे-बड़े कांग्रेसी नेता भाषाओं के आधार पर भारत का नया नक्शा तैयार करने पर तुले हुए थे। मराठी और कन्नड़ भाषाएँ बोलने वालों ने इसके लिए प्रबल आंदोलन छेड़ दिए; यह लोग उस समय की अनेक राजनीतिक रियासतों में फैले हुए थे।
जैसे, तत्कालीन बंबई और मद्रास की प्रेसीडेंसियों और भूतपूर्व देसी राजाओं की रियासतें जैसे, मैसूर और हैदराबाद। लेकिन सबसे अधिक उग्रतापूर्ण विरोध बहुत बड़े तेलुगु भाषी समुदाय की ओर से किया गया जिनकी जनसंख्या बहुत बड़ी थी। अक्टूबर 1953 में एक पूर्व गाँधीवादी नेता पोट्टि श्रीराम्मुलु इस मुद्दे को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए और सात सप्ताह बाद उनकी मृत्यु हो गई। पोट्टि श्रीरामुलु के बलिदान ने हिंसात्मक विरोधों को भड़का दिया; परिणामस्वरूप आंध्र प्रदेश राज्य की स्थापना करनी पड़ी। इसके अलावा, राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना करनी पड़ी। 1950 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू समेत अनेक नेताओं को यह डर था कि भाषा आधारित राज्य कहीं भारत के उप-विभाजन की प्रक्रिया को और तेज न कर दें। लेकिन तथ्य तो यह है कि इसका उल्टा ही घटित हुआ। भाषा आधारित राज्यों ने भारतीय एकता को कोई ठेस नहीं पहुँचाई बल्कि उसे और भी मजबूत करने में सहयोग दिया। कन्नडिंग और भारतीय, बंगाली और भारतीय, तमिल और भारतीय, गुजराती और भारतीय... दोनों साथ-साथ होना पूर्ण रूप से संगत साबित हुआ।
प्रश्न 12.
आत्मसात्करणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियाँ क्या हैं और ये एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने में कैसे सहायक होती हैं?
उत्तर:
आत्मसात्करणवादी रणनीतियाँ-आत्मसात्करणवादी रणनीतियाँ वे हैं जिनके अन्तर्गत प्रायः नृजातीय, धार्मिक या भाषायी समूहों की पहचानों को एकदम दबा दिया जाता है, समूहों के बीच पायी जाने वाली सांस्कृतिक विभिन्नताओं को मिटाने की कोशिश की जाती है। एकीकरणवादी नीतियाँ-एकीकरण की नीतियाँ केवल एक अकेली राष्ट्रीय पहचान बनाए रखना चाहती हैं जिसके लिए वे सार्वजनिक तथा राजनीतिक कार्यक्षेत्रों से नृजातीय-राष्ट्रीय और सांस्कतिक विभिन्नताओं को दूर करने का प्रयत्न करती हैं लेकिन निजी क्षेत्रों में इन्हें बनाए रखने की इजाजत देती हैं। इस प्रकार इन दोनों प्रकार की नीतियों के समुच्चय एक अकेली राष्ट्रीय पहचान को अपनाते हैं। एकल राष्ट्रीय पहचान बनाने में सहायक आत्मसात्करणवादी और एकीकरणवादी रणनीतियाँ निम्नलिखित विभिन्न अंतःक्षेपी उपायों द्वारा एकल राष्ट्रीय पहचान स्थापित करने की कोशिश करती हैं।
प्रश्न 13.
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के वितरण को बताते हुए संविधान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण के लिए किये गये प्रावधानों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों का वितरण:
भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु प्रावधान-संविधान में निम्न प्रावधान किये गये हैंसंविधान के अनुच्छेद 29 के प्रावधान:
अनुच्छेद 30 के प्रावधान
प्रश्न 14.
'सांप्रदायिकता' पर एक लेख लिखिए।
अथवा
पाश्चात्य और भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ बताते हुए भारत में साम्प्रदायिकता की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ-भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ है-धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद। यह एक ऐसी अभिवृत्ति है जो अपने समूह को ही वैध या श्रेष्ठ समह मानती है और अन्य समूहों को निम्न, अवैध अथवा विरोधी समझती है। दूसरे शब्दों में साम्प्रदायिकता एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है जो धर्म से जुड़ी होती है। भारतीय दृष्टिकोण आवेशित है जो सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों रूपों में देखा जा सकता है। पाश्चात्य संदर्भ में साम्प्रदायिकता का अर्थ-अंग्रेजी भाषा में साम्प्रदायिकता का पर्याय शब्द है-कम्युनल। कम्युनल शब्द का अर्थ है-व्यक्ति की बजाय समुदाय या सामूहिकता से जुड़ा हुआ भाव। अंग्रेजी अर्थ तटस्थ है, आवेशरहित है।
साम्प्रदायिकता की विशेषताएँ भारतीय संदर्भ में साम्प्रदायिकता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. राजनीति से संबंधित-साम्प्रदायिकता राजनीति से सरोकार रखती है, धर्म से नहीं। यद्यपि सम्प्रदायवादी धर्म के साथ गहन रूप से जुड़े होते हैं, पर वास्तव में व्यक्तिगत विश्वास और संप्रदायवाद में आवश्यक रूप से कोई सम्बन्ध नहीं होता। एक सम्प्रदायवादी श्रद्धालु हो भी सकता है और नहीं भी एवं श्रद्धालु लोग सम्प्रदायवादी हो भी सकते हैं और नहीं भी। किन्तु सभी सम्प्रदायवादी धर्म पर आधारित एक राजनीतिक पहचान में अवश्य विश्वास करते हैं। सम्प्रदायवादी आक्रामक राजनीतिक पहचान बनाते हैं और ऐसे प्रत्येक व्यक्ति की निंदा करने या उस पर आक्रमण करने को तैयार रहते हैं जो उनकी पहचान का साझेदार नहीं होता।
2. धार्मिक पहचान-सम्प्रदायवाद में धार्मिक पहचान अन्य सभी की तुलना में सर्वोपरि होती है। इसके प्रभावस्वरूप बड़े-बड़े और विविध समूह एक तथा समरूप हो जाते हैं।
3. तनाव और हिंसा का पुनरावर्तक स्रोत-भारत में सम्प्रदायवाद तनाव और हिंसा का पुनरावर्तक स्रोत रहा है। साम्प्रदायिक दंगों के दौरान लोग अपने-अपने समुदायों के पहचानहीन सदस्य बन जाते हैं तथा अन्य समुदायों के सदस्यों को मार डालने, उनके साथ बलात्कार करने और लूटपाट को तैयार हो जाते हैं।
प्रश्न 15.
सत्तावादी समाज (राज्य) का अर्थ तथा उसकी विशेषताएँ बताइये। उत्तर-सत्तावादी राज्य का अर्थ-एक सत्तावादी राज्य लोकतांत्रिक राज्य के बिल्कुल विपरीत होता है।
इसमें नागरिकों की आवाज को नहीं सुना जाता तथा जिनके पास शक्ति होती है, वे किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होते। इसमें भाषण की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता, राजनीतिक क्रियाकलाप की स्वतंत्रता, सत्ता के दुरुपयोग के संरक्षण का अधिकार, विधि की अपेक्षित प्रक्रियाओं का अधिकार जैसी अनेक प्रकार की नागरिक स्वतंत्रताओं को सीमित या समाप्त कर दिया जाता है। इस बात की संभावना भी बढ़ जाती है कि राज्य की संस्थायें भ्रष्टाचार, अकुशलता अथवा संसाधनों की कमी के कारण लोगों की जरूरतों के बारे में सुनवाई करने के लिए अक्षम अथवा अनिच्छुक हो जाते हैं।
सत्तावादी राज्य की विशेषताएँ सत्तावादी राज्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 16.
नागरिक समाज से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नागरिक समाज से आशय-नागरिक समाज परिवार के निजी क्षेत्र से परे तथा राज्य और बाजार के क्षेत्रों से बाहर होता है। यह सार्वजनिक अधिकार का गैर-राजकीय तथा गैर-बाजारी भाग होता है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थाओं और संगठनों का निर्माण करने के लिए स्वैच्छिक रूप से परस्पर जुड़े होते हैं। यह सक्रिय नागरिकता का क्षेत्र है जहाँ पर लोग परस्पर मिलकर विभिन्न प्रकार के सामाजिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करते हैं और राज्य को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इसके द्वारा राज्य के समक्ष अपनी मांगों को रखा जाता है। नागरिक समाज की कसौटियाँ (विशेषताएँ) नागरिक समाज की प्रमुख कसौटियाँ निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 17.
सत्तावादी राज्य का क्या अर्थ है ? भारतीय लोगों को सत्तावादी राज्य का अनुभव कब और किस रूप में हुआ?
उत्तर:
सत्तावादी राज्य का अर्थ-(इसके लिए इस अध्याय के निबन्धात्मक प्रश्न सं. 15 का अध्ययन करें।) भारत में सत्तावादी शासन भारतीय लोगों को सत्तावादी शासन का थोड़ा अनुभव 'आपातकाल' के दौरान हुआ जो जून 1975 से जनवरी 1977 तक लागू रहा था। इस काल में सत्तावादी शासन का अग्रलिखित रूप सामने आया
1. संसद को निलंबित कर दिया गया था और सरकार द्वारा सीधे नए कानून बनाए गये।
2. नागरिक स्वतंत्रताएँ छीन ली गईं और राजनीतिक रूप से सक्रिय लोग बड़ी संख्या में गिरफ्तार करके, बिना मुकदमा चलाए, जेलों में डाल दिये गये।
3. जनसंचार के माध्यमों पर सेंसर व्यवस्था लागू कर दी गई।
4. सरकारी पदाधिकारियों को, सामान्य प्रक्रियाएँ अपनाए बिना बर्खास्त किया जा सकता था।
5. सरकार ने नीचे स्तर के अधिकारियों पर अनुचित दबाव डाला कि वे उसके कार्यक्रमों को कार्यान्वित करें और तुरन्त परिणाम दिखायें। इनमें सबसे कुख्यात कार्यक्रम बंध्याकरण अर्थात् नसबंदी अभियान था जिसके तहत बहुत से लोग शल्यक्रिया के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं से मृत्यु को प्राप्त हो गए। आपातकाल में इस झटके ने लोगों में सक्रिय भागीदारी की लहर पैदा कर दी। जब 1977 के प्रारंभ में अप्रत्याशित रूप से चुनाव कराए गए तो लोगों ने बढ़-चढ़ कर सत्ताधारी कांग्रेस के विरोध में वोट डाले।
प्रश्न 18.
भारतीय अल्पसंख्यकों का तुलनात्मक आकार और वितरण पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
भारतीय अल्पसंख्यकों का तुलनात्मक आकार और वितरण-भारत विविध धर्मावलम्बियों का देश है। यहाँ हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन तथा अन्य धर्मों के लोग रहते हैं। भारत में हिन्दुओं का बहुमत अत्यधिक है। 2011 की जनगणना के अनुसार उनकी आबादी लगभग 96.6 करोड़ है जो देश की सम्पूर्ण जनसंख्या का 79.8 प्रतिशत है। हिन्दुओं की जनसंख्या सभी अन्य अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों की सम्मिलित जनसंख्या से लगभग चार गुनी बड़ी है।
भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों का तुलनात्मक आकार और वितरण निम्नलिखित है:
1. मुसलमान-भारत में अब तक मुसलमान समुदाय ही सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग है। सन् 2011 में उनकी जनसंख्या 13.8 करोड़ यानी सम्पूर्ण जनसंख्या का 14.2 प्रतिशत थी। ये देश में सर्वत्र फैले हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में वे बहुसंख्यक हैं और पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, केरल, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में उनके काफी लोग रहते हैं।
2. ईसाई-भारत में ईसाइयों की जनसंख्या 2.78 करोड़ यानी सम्पूर्ण जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत है और ये सर्वत्र फैले हुए हैं। फिर भी पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों में उनके निवास काफी बड़े हैं। तीनों ईसाई बहुल राज्य पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं। ये हैं-नागालैंण्ड (88 प्रतिशत), मिजोरम (87 प्रतिशत), मेघालय (74.5 प्रतिशत)। गोवा और केरल में भी काफी बड़ी संख्या में ईसाई लोग रहते हैं।
3. सिख-सिख धर्मावलम्बियों की जनसंख्या 2.1 करोड़ है। यह सम्पूर्ण जनसंख्या का 1.7 प्रतिशत है। यद्यपि सिख लोग देश के सभी भागों में फैले हुए हैं, तथापि उनका विशेष जमाव पंजाब राज्य में है जहाँ वे बहुसंख्यक (58 प्रतिशत) हैं।
4. अन्य धर्मावलम्बी-भारत में उक्त चारों धर्मावलम्बियों के अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे समूह हैं। ये हैंबौद्ध 80 लाख, जैन 45 लाख और अन्य धर्म व सम्प्रदाय 80 लाख जो क्रमशः सम्पूर्ण जनसंख्या का 0.7 प्रतिशत, 0.4 प्रतिशत तथा 0.7 प्रतिशत है। बौद्धों का सर्वाधिक अनुपात सिक्किम (27 प्रतिशत) और अरुणाचल प्रदेश (12 प्रतिशत) में है ज़बकि बड़े राज्यों में से महाराष्ट्र में बौद्धों का अनुपात सर्वाधिक 6 प्रतिशत है। जैनों का सर्वाधिक अनुपात महाराष्ट्र (1.3 प्रतिशत), दिल्ली तथा गुजरात (1 प्रतिशत) में पाया जाता है।
प्रश्न 19.
"भारतीय संघवाद क्षेत्रीय भावुकताओं को समायोजित करने वाला एक साधन है।" कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में संघवाद-भारत में स्वतंत्रता के बाद भाषा, जनजातीय पहचान, क्षेत्रीय वंचन और नृजातीयता के आधार पर राज्यों की स्थापना हुई है। वर्तमान में भारतीय राष्ट्र-राज्य में 28 राज्य (संघीय इकाइयाँ) और 8 संघ राज्य क्षेत्र हैं । क्षेत्रीय भावनाओं को आदर देने के लिए भारत में नये राज्यों का निर्माण हुआ और संविधान ने इन राज्यों को एक बड़े संघीय ढाँचे के अंतर्गत एक स्वायत्त इकाई के रूप में चल सकने का एक संस्थागत ढाँचा भी प्रस्तुत किया है। यथा:
1. विषयों का विभाजन-भारतीय संविधान ने तीन सूचियों के द्वारा शासन के विषयों को केन्द्र और राज्यों के बीच विभाजित किया है। ये तीन सूची हैं:
दिये गये विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संविधान ने केन्द्र सरकार को प्रदान किया है और समवर्ती सूची में दिए गए विषयों पर केन्द्रीय सरकार और राज्यों की सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं, लेकिन यदि एक ही समय में केन्द्र और राज्य की सरकार ने किसी विषय पर परस्पर विरोधी कानून बानाए हैं तो ऐसी स्थिति में केन्द्रीय सरकार का कानून मान्य होगा और राज्य का कानून रद्द हो जायेगा। राज्य सूची में दिये गये विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को प्रदान किया गया है।
2. राज्य सभा का गठन-राज्य विधानमण्डल संसद के ऊपरी सदन-राज्यसभा के गठन को निर्धारित करते हैं।
3. अन्य प्रावधान-केन्द्र और राज्यों के बीच राजस्व का बंटवारा स्थापित करने के लिए वित्त आयोग का गठन किया गया है। प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में भी राज्यों की विस्तृत योजनाएँ शामिल होती हैं जो हर राज्य के राज्य संघीय प्रणाली के कुछ विवादास्पद मुद्दे यद्यपि कुल मिलाकर भारतीय संघीय प्रणाली काफी अच्छी चलती रही है तथापि इसमें कई विवादास्पद मुद्दे भी रहे हैं। ये हैं:
प्रश्न 20.
राष्ट्रीय एकता के साथ सांस्कृतिक विविधता से युक्त एक लोकतान्त्रिक राज्य-राष्ट्र का निर्माण कैसे किया जा सकता है ? भारत के सन्दर्भ में इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय एकता के साथ सांस्कृतिक विविधता से युक्त एक लोकतान्त्रिक राज्य-राष्ट्र का निर्माण 'राज्य-राष्ट्र' वह है जहाँ नृजातीय, धार्मिक, भाषायी या देशज पहचानों पर आधारित विभिन्न 'राष्ट्र' एक अकेली राज्य व्यवस्था के अन्तर्गत शान्ति और सहयोगपूर्वक एकसाथ रह सकते हैं। एक लोकतान्त्रिक राज्य-राष्ट्र का निर्माण-बहुसांस्कृतिक राज्य-व्यवस्थाओं में स्थायी सहनशील लोकतन्त्रों की स्थापना की जा सकती है। विविध समूहों के सांस्कृतिक अपवर्जन को करने और बहुविधि तथा पूरक पहचानों का निर्माण करने के लिए स्पष्ट प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। ऐसी एक दूसरे के प्रति संवेदनशील नीतियाँ बनायी जाएँ जो विविधता में एकता का निर्माण करने के लिए 'हम का भाव' जागृत करने में सहायक हों।
नागरिक अपने देश तथा अन्य सांस्कृतिक पहचानों के साथ त्तादात्म्य स्थापित करने, साझी संस्थाओं में अपना विश्वास बनाने और लोकतान्त्रिक राजनीति में भाग लेने तथा उसे समर्थन देने के लिए संस्थाओं तथा राजनीति में अवसर प्राप्त कर सकते हैं । ये सभी लोकतन्त्रों को मजबूत करने और गहरा बनाने तथा सहनशील 'राज्य-राष्ट्रों' का निर्माण करने के प्रमुख कारक हैं। भारत के संविधान में इस अभिधारणा को स्थान दिया गया है। अपनी विविधताओं के बावजूद यह एक अत्यन्त सशक्त लोकतन्त्र है। भारत के संवैधानिक स्वरूप में भिन्न-भिन्न समूहों के दावों को मान्यता देते हुए अनुकूल प्रतिक्रिया दिखलाई है और अनेक क्षेत्रीय, भाषायी, सांस्कृतिक विविधता के बावजूद राज्य व्यवस्था को बनाए रखा है।
प्रश्न 21.
भारत विश्व में सबसे अधिक सामाजिक-सांस्कृतिक विभिन्नता वाला राष्ट्र है। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक - सांस्कृतिक विभिन्नता और भारत भारतीय राष्ट्र-राज्य सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से विश्व के सर्वाधिक विविधतापूर्ण देशों में से एक है। इसे अग्रलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है
1. जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा स्थान: भारत की जनसंख्या सन् 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार यह 121.0 करोड़ है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्वभर में इसका दूसरा स्थान है।
2. भाषागत विविधता: भारत के एक सौ करोड़ से अधिक लोग कुल मिलाकर लगभग 1632 भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलते हैं। इन भाषाओं में से 18 भाषाओं को अधिकारिक रूप से मान्यता देकर उन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान दिया गया है। इस प्रकार उन्हें विधिक प्रतिष्ठा की गारंटी दी गई है।
3. धार्मिक विभिन्नताएँ: 2011 में भारत में 79.8% जनसंख्या हिन्दू धर्मावलम्बियों की है, जो स्वयं भी क्षेत्रीय रूप से विभिन्न विश्वासों और व्यवहारों तथा जातियों एवं भाषाओं में बंटे हुए हैं। यहाँ लगभग 14.2% जनसंख्या मुसलमानों की है जिसके कारण भारत विश्व में इंडोनेशिया तथा पाकिस्तान के बाद तीसरा सबसे बड़ा मुसलमान देश है। अन्य धार्मिक समुदायों में यहाँ ईसाई लगभग (2.3%), सिख (1.7%), बौद्ध (0.7%) और जैन (0.4%) है। भारत की विशाल जनसंख्या के कारण ये छोटे-छोटे प्रतिशत अंश भी मिलकर बड़ी संख्यायें बनाते हैं। यहाँ अल्पसंख्यक धर्मों को अत्यन्त प्रबल संवैधानिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
4. क्षेत्रीय विविधताएँ: भारत में क्षेत्रीय विविधताएँ भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों तथा धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है। भारतीय संघवाद इन क्षेत्रीय विविधताओं को समायोजित करने वाला एक साधन।
5. नृजातीय विविधताएँ: भारत में अनेक प्रकार के नृजातीय समुदाय भी निवास करते हैं।