Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 5 सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार के स्वरूप Important Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
सामाजिक अपवर्जन अथवा बहिष्कार को समाप्त करने के लिए आवश्यक नहीं है
(क) परिवर्तन
(ख) जागरूकता
(ग) संवेदनशीलता
(घ) उच्च जातियों का विरोध
उत्तर:
(घ) उच्च जातियों का विरोध
प्रश्न 2.
जाति व्यवस्था का मूल आधार है
(क) कर्म
(ख) जन्म
(ग) सामाजिक स्वीकृति
(घ) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(ख) जन्म
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में अस्पृश्यता का उन्मूलन किया गया है
(क) अनुच्छेद 15
(ख) अनुच्छेद 16
(ग) अनुच्छेद 17
(घ) अनुच्छेद 18
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 17
प्रश्न 4.
अस्पृश्यों को हरिजन शब्द दिया था
(क) भीमराव अम्बेडकर ने
(ख) महात्मा गाँधी ने
(ग) विनोबा भावे ने
(घ) ज्योतिबा फुले ने
उत्तर:
(ख) महात्मा गाँधी ने
प्रश्न 5.
किस संविधान संशोधन के द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग को उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण का अधिकार दिया गया है
(क) 92वां संविधान संशोधन अधिनियम
(ख) 93वां संविधान संशोधन अधिनियम
(ग) 94वां संविधान संशोधन अधिनियम
(घ) 95वां संविधान संशोधन अधिनियम
उत्तर:
(ख) 93वां संविधान संशोधन अधिनियम
प्रश्न 6.
'ऐनेलॉजी ऑफ रिलीजन' नामक पुस्तक किसकी है
(क) जोसेफ बटलर की
(ख) महादेव गोविन्द रानाडे की
(ग) राजा राममोहन राय की
(घ) स्वामी दयानन्द सरस्वती की
उत्तर:
(क) जोसेफ बटलर की
प्रश्न 7.
'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की थी
(क) राजा राममोहन राय ने
(ख) स्वामी दयानन्द सरस्वती ने
(ग) ज्योतिबा फुले ने
(घ) सर सैयद अहमद खान ने
उत्तर:
(ग) ज्योतिबा फुले ने
प्रश्न 8.
1850 का कानून और 2006 का तिरानवेवाँ संशोधन किससे सम्बन्धित थे?
(क) अस्पृश्यता से
(ख) आरक्षण
(ग) शिक्षा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ग) शिक्षा
प्रश्न 9.
पूर्वाग्रह शब्द का अक्षरशः अर्थ है
(क) पूर्वनिर्णय
(ख) रूढिबद्ध धारणाओं
(ग) वीर प्रजाति
(घ) समुदाय
उत्तर:
(क) पूर्वनिर्णय
प्रश्न 10.
सामाजिक इकाइयों की वह श्रेणी जो ना पुरुष ना स्त्री के रूप में रेखांकित की जाती है
(क) ट्रांस-जेंडर
(ख) दलित
(ग) जनजाति
(घ) थर्ड-जेंडर
उत्तर:
(घ) थर्ड-जेंडर
प्रश्न 11.
महात्मा गाँधी द्वारा अस्पृश्यों को क्या कहकर पुकारा गया
(क) हरिजन
(ख) दलित
(ग) दलित पैंथर्स
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) हरिजन
प्रश्न 12.
आदिवासी शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
(क) मूल निवासी
(ख) दलित
(ग) 'क' और 'ख' दोनों
(घ) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(क) मूल निवासी
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
....................एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या व्यवहार होता है।
उत्तर:
पूर्वाग्रह
प्रश्न 2.
....................वह तौर-तरीके हैं जिनके जरिये किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह घुलनेमिलने से रोका जाता है।
उत्तर:
सामाजिक बहिष्कार
प्रश्न 3.
...................श्रेणी में वो लोग आते हैं जो कि महिला एवं पुरुष की विशेषताओं का मिश्रण हैं।
उत्तर:
थर्ड-जेंडर
प्रश्न 4.
ऐतिहासिक रूप से, जाति व्यवस्था व्यक्तियों का उनके...................तथा...................आधार पर वर्गीकरण करती थी।
उत्तर:
व्यवसाय, प्रस्थिति
प्रश्न 5.
अस्पृश्यता को आम बोलचाल की भाषा में...................कहा जाता है।
उत्तर:
छुआछूत
प्रश्न 6.
हरिजन शब्द का उपयोग दलितों के लिए सर्वप्रथम...................द्वारा...................के दशक में किया गया।
उत्तर:
महात्मा गाँधी, 1970
प्रश्न 7.
ब्रिटिश भारत की सरकार ने...................में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की 'अनुसूचियाँ' तैयार की थीं।
उत्तर:
1935
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समाजशास्त्री सामाजिक स्तरीकरण शब्द का प्रयोग किसके लिये करते हैं?
उत्तर:
समाज के भिन्न-भिन्न संस्तरों में अधिक्रमित व्यवस्था के लिए।
प्रश्न 2.
पूर्वाग्रहों का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पूर्वाग्रह किसी व्यक्ति या समूह के बारे में पूर्व निर्धारित विचार रखना है।
प्रश्न 3.
सामाजिक असमानता के संदर्भ में सामाजिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-यहाँ सामाजिकता का अर्थ समूह से है।
अथवा
प्रश्न:
सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार सामाजिक क्यों हैं?
उत्तर:
क्योंकि यह व्यक्ति से नहीं बल्कि समूह से सम्बद्ध हैं।
प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई थी?
उत्तर:
राजा राममोहन राय के द्वारा 1828 ई. में।
प्रश्न 5.
स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम कब पारित किया गया था?
उत्तर:
सन् 1989 ई. में।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 17 क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर:
क्योंकि इसके अन्तर्गत अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है।
प्रश्न 7.
93वां संविधान संशोधन अधिनियम जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को उच्च शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण दिया गया था, कब पारित किया गया था?
उत्तर:
23 जनवरी सन् 2006 को।
प्रश्न 8.
अस्पृश्यों को हरिजन शब्द किसने दिया था और उसका क्या अर्थ है ?
उत्तर:
हरिजन शब्द गांधीजी ने दिया था जिसका अर्थ है-परमात्मा के बच्चे।
प्रश्न 9.
ऐसे दो दलित समाज सुधारकों के नाम बताइये जिन्होंने दलितों के उत्थान के लिए समाज सुधार आंदोलन चलाए।
उत्तर:
प्रश्न 10.
स्वतंत्र भारत में ऐसे दो राजनीतिक दलों के नाम बताइये जो कि दलितों की स्थिति को सुधारने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
उत्तर:
प्रश्न 11.
अन्य पिछड़ा वर्ग की पहचान के लिए बनाये गये कोई दो आयोग बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 12.
अन्य पिछड़ा वर्ग की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 13.
अनुसूचित जातियों की कोई दो समस्यायें बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 14.
भारत की किन्हीं दो जनजातियों के नाम लिखें।
उत्तर:
प्रश्न 15.
अनुसूचित जनजातियों की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 16.
भारत के ऐसे दो नये राज्य बताइये जो आदिवासियों के विद्रोह के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आये।
उत्तर:
प्रश्न 17.
सबसे ज्यादा परिश्रम कौन से लोग करते हैं?
उत्तर:
समाज के सबसे निम्न स्तर के लोग ही सर्वाधिक परिश्रम करते हैं।
प्रश्न 18.
सामाजिक असमानता एवं बहिष्कार किस तथ्य से स्पष्ट होती है ?
उत्तर:
अवैयक्तिक अथवा सामूहिक विभिन्नताओं से।
प्रश्न 19.
सामाजिक विषमता क्या है?
उत्तर:
सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच की पद्धति ही सामाजिक विषमता है।
प्रश्न 20.
पूर्वाग्रह ज्यादातर किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर:
समूह के बारे में अपरिवर्तनीय, कठोर और रूढ़िबद्ध धारणाओं पर।
प्रश्न 21.
पूर्वाग्रह शब्द का अक्षरशः अर्थ क्या है?
उत्तर:
पूर्वनिर्णय।
प्रश्न 22.
थर्ड-जेंडर से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
सामाजिक इकाइयों की वह श्रेणी जो कि ना तो पुरुष और ना ही स्त्री के रूप में रेखांकित की जाती।
प्रश्न 23.
भारतीय भाषा में दलित शब्द का आक्षरिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
पैरों से कुचला हुआ।
प्रश्न 24.
सुल्तानाज ड्रीम की लेखिका कौन हैं?
उत्तर:
बेगम रुकैया।
प्रश्न 25.
सामाजिक बहिष्कार किसके विरुद्ध कार्यान्वित होता है ?
उत्तर:
सामाजिक बहिष्कार बहिष्कृत लोगों की इच्छाओं के विरुद्ध कार्यान्वित होता है।
प्रश्न 26.
सामाजिक बहिष्कार किसकी इच्छा-अनिच्छा की तरफ ध्यान नहीं देता है?
उत्तर:
सामाजिक बहिष्कार बहिष्कृत व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा की तरफ ध्यान नहीं देता है।
प्रश्न 27.
जाति-व्यवस्था का अत्यंत घृणित एवं दूषित पहलू क्या है?
उत्तर:
अस्पृश्यता।
प्रश्न 28.
अस्पृश्यता के तीन प्रमुख आयाम कौन से हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 29.
भारतीय भाषाओं में दलित शब्द का आरक्षित अर्थ क्या है ?
उत्तर:
पैरों से कुचला हुआ अर्थात् उत्पीड़ित।
प्रश्न 30.
'आदिवासी' शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
'मूल निवासी'।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
परिश्रम के सन्दर्भ में दक्षिण अमेरिकी कहावत क्या है ?
उत्तर:
"यदि परिश्रम इतनी ही अच्छी चीज होती तो अमीर लोग हमेशा उसे अपने लिए बचा कर रखते।"
प्रश्न 2.
सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक क्यों हैं ? कोई एक कारण लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक हैं क्योंकि वे व्यक्ति से नहीं बल्कि पूरे समूह के सम्बद्ध है।
प्रश्न 3.
जजमानी प्रथा क्या है?
उत्तर:
जजमानी प्रथा के तहत भारत के गाँवों में उपज, वस्तुओं तथा सेवाओं का गैर-बाजारी आदान-प्रदान होता है। यह आदान-प्रदान जाति-प्रथा रूढ़िगत व्यवहारों पर केन्द्रित होता है।
प्रश्न 4.
सामाजिक बहिष्कार से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
सामाजिक अपवर्जन क्या है ?
उत्तर:
सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार वे तौर-तरीके हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति अथवा समूह को समाज में पूरी तरह से घुलने-मिलने से रोका जाता है तथा पृथक् रखा जाता है।
प्रश्न 5.
अस्पृश्यता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अस्पृश्यता जाति-व्यवस्था में धार्मिक एवं कर्मकांडीय दृष्टि से सबसे नीची मानी जाने वाली जातियों के सदस्यों के विरुद्ध अत्यन्त कठोर सामाजिक दण्डों का विधान है। और इनके स्पर्श मात्र से सवर्ण जातियों के लोग अपवित्र हो जाते हैं।
प्रश्न 6.
अस्पृश्यता के दो रूप बताइये।
उत्तर:
अस्पृश्यता के निम्न दो रूप हैं:
प्रश्न 7.
पूर्वाग्रहों की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 8.
सामाजिक संसाधन पूँजी के तीन रूप क्या हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 9.
समाजशास्त्री सामाजिक स्तरीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वह व्यवस्था जो एक समाज में लोगों का वर्गीकरण करते हुए एक अधिक्रमित संरचना में उन्हें श्रेणीबद्ध करती है, उसे समाजशास्त्री सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।
प्रश्न 10.
भेदभाव को प्रमाणित करना कठिन क्यों है ?
उत्तर:
भेदभाव को प्रमाणित करना कठिन होता है क्योंकि यह न तो खुले तौर पर होता है और न ही स्पष्टतया घोषित होता है।
प्रश्न 11.
थर्ड-जेंडर से आपका क्या आशय है ?
उत्तर:
सामाजिक इकाइयों की वह श्रेणी जो कि ना तो पुरुष और ना ही स्त्री के रूप में रेखांकित की जाती है। इस श्रेणी में वो लोग आते हैं जो महिला एवं पुरुष की विशेषताओं का मिश्रण हैं।
प्रश्न 12.
1989 के अत्याचार निवारण अधिनियम के बारे में बताइए।
उत्तर:
989 के अत्याचार निवारण अधिनियम ने दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दण्ड देने के उपबंधों में संशोधन करके उन्हें और मजबूत बना दिया।
प्रश्न 13.
पूर्वाग्रह भेदभावों से किस रूप में भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
पूर्वाग्रह मनोवृत्ति और विचारों पर आधारित होते हैं जबकि भेदभाव दूसरे समूहों अथवा व्यक्तियों के प्रति किया जाना वाला अनैतिक व्यवहार होता है।
प्रश्न 14.
वंचित समूह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
समाज में जो समूह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षणिक दृष्टि से कमजोर होते हैं, उन्हें वंचित समूह कहा जाता है।
प्रश्न 15.
सामाजिक स्तरीकरण की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 16.
जाति व्यवस्था क्या है?
उत्तर:
ऐसी जातियों का एक क्षेत्र-विशेष में अधिक्रमित अनुक्रम जो अपनी ही परिसीमाओं में विवाह करते हैं वंशानुगत पेशे अपनाते हैं तथा यह सब जन्म से निर्धारित होता है, जाति व्यवस्था कहलाता है।
प्रश्न 17.
जाति की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
जाति की दो प्रमुख विशेषताएँ ये है:
प्रश्न 18.
स्वतंत्र भारत में अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम' कब पारित किया गया था और इसमें क्या प्रावधान किया गया था?
उत्तर:
यह अधिनियम सन् 1989 में पारित किया गया था। इसमें दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दण्ड देने के उपलब्धों को और कठोर बनाया गया।
प्रश्न 19.
अनुसूचित जनजाति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अनुसूचित जनजातियाँ भारतीय संविधान की अनुसूचित जातियों की अनुसूची में शामिल वे जातीय समूह हैं जो पहाड़ों तथा जंगलों के निवासी, निर्धन, शक्तिहीन तथा सामान्य लांछन से पीड़ित हैं।
प्रश्न 20.
नियोग्यता अथवा अक्षमता के दो लक्षण बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 21.
विकलांगों की कोई दो समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 22.
अनुसूचित जनजातियों की समस्याओं के कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 23.
जाति की तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
जाति की तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 24.
भेदभाव को प्रमाणित करना कठिन होता है। कारण देकर उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भेदभाव को प्रमाणित करना बहुत कठिन है क्योंकि यह न तो खुले तौर पर होता है और न ही स्पष्टतया घोषित होता है। भेदभावपूर्ण व्यवहार को इस तरह भी प्रदर्शित किया जा सकता है जैसे कि वह दूसरे कारणों द्वारा प्रेरित हो, जो भेदभाव की तुलना में ज्यादा न्यायसंगत कारण प्रतीत होता है। उदाहरण के लिए, जिस व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर नौकरी देने से मना किया गया है उसको कहा जा सकता है कि उसकी योग्यता दूसरों से कम है तथा चयन पूर्ण रूप से योग्यता के आधार पर किया गया है।
प्रश्न 25.
सामाजिक स्तरीकरण के दो महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 26.
"उन्नीसवीं सदी और 20वीं सदी के प्रारम्भ में नारी उत्थान के लिये किये गये संघर्षों का नेतृत्व पुरुष समाज सुधारकों ने किया।" इस कथन की विवेचना उपयुक्त उदाहरण देते हुए कीजिए।
अथवा
भारत में महिलाओं की दशा सुधारने में समाज सुधारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
19वीं सदी तथा 20वीं सदी के प्रारंभ में भारत में महिलाओं की दशा सुधारने में पुरुष समाज सुधारकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यथा
प्रश्न 27.
'अन्यथा सक्षम व्यक्तियों' से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अन्यथा सक्षम व्यक्तियों से आशय ऐसे अक्षम व्यक्तियों से है जो केवल शारीरिक और मानसिक रूप से बाधित होने के कारण ही अक्षम नहीं हुए हैं, बल्कि वे इसलिए भी अक्षम होते हैं कि समाज कुछ इस रीति से बना है कि वह इनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता।
प्रश्न 28.
विश्व भर में अन्यथा सक्षम' लोगों के बारे में जन बोधं के केन्द्र में कुछ समान विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
प्रश्न 29.
अस्पृश्यता के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
उत्तर:
अस्पृश्यता को आम बोलचाल में 'छुआछूत' कहा जाता है, जाति-व्यवस्था का एक अत्यन्त घृणित एवं दूषित पहलू है, जो धार्मिक एवं कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता एवं अशुद्धता के पैमाने पर सबसे नीची मानी जाने वाली जातियों के सदस्यों के विरुद्ध अत्यन्त कठोर सामाजिक अनुशास्तियों का विधान करता है।
प्रश्न 30.
जातियों और जनजातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए सरकार द्वारा उठाये गये कदमों को समझाइये।
उत्तर:
प्रश्न 31.
सामाजिक बहिष्कार का क्या तात्पर्य है? यह अनैच्छिक क्यों है ?
उत्तर:
सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार की अवधारणा-सामाजिक अपवर्जन या बहिष्कार किसी व्यक्ति या समूह को समाज से पूरे तौर पर घुलने-मिलने से पृथक् रखा जाता है तथा उन्हें उन अवसरों से भी वंचित किया जाता है जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं। सामाजिक बहिष्कार अनैच्छिक होता है क्योंकि बेघर निर्धन लोगों की तरह धनी व्यक्तियों को कभी फुटपाथ या पुलों के नीचे सोते हुए नहीं देखते।
प्रश्न 32.
'स्त्री-पुरुष तुलना' किसने लिखी? यह क्या स्पष्ट करती है ?
उत्तर:
'स्त्री-पुरुष तुलना' नामक पुस्तक महाराष्ट्र की एक गृहिणी ताराबाई शिंदे ने लिखी थी। इसमें पुरुषप्रधान समाज द्वारा अपनाए जाने वाले दोहरे मापदण्डों का विरोध किया गया था। इसमें अपने नाजायज नवजात शिशु की हत्या के लिए जवान विधवा स्त्री को तो न्यायालय द्वारा दंडित किया गया था, लेकिन जिस युवक का वह बच्चा था, उसे कोई दंड देने का प्रयास नहीं किया गया था।
प्रश्न 33.
स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद आदिवासियों की सामाजिक- आर्थिक दशाओं की तुलना कीजिये।
उत्तर:
स्वतंत्रता से पूर्व आदिवासियों की सामाजिक-आर्थिक दशाएँ-स्वतंत्रता से पूर्व आदिवासी क्षेत्रों में जंगलों और खनिजों पर सरकार का अधिकार हो गया। आदिवासी अपनी परम्परागत भूमि और संसाधनों से वंचित हो गये, उन्हें सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। स्वतंत्रता के बाद उनकी आर्थिक-सामजिक स्थिति-स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय विकास और संवृद्धि के नाम पर आदिवासियों को बेदखल किया गया। सेठ-साहूकारों, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों द्वारा उनका हर प्रकार से शोषण किया गया।
प्रश्न 34.
"सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक हैं।" कैसे?
उत्तर:
सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक हैं क्योंकि
प्रश्न 35.
आरक्षण की व्यवस्था क्यों की गई? टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पुराने और वर्तमान जातीय भेदभाव को दूर करने और उससे हुई क्षति की पूर्ति करने के लिए राज्य की ओर से जो सबसे महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है, उसे आम लोगों में 'आरक्षण' के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत, सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के लिए कुछ स्थान या सीटें अलग निर्धारित कर दी जाती हैं।
प्रश्न 36.
भारत सरकार द्वारा आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाने पर क्या बदलाव किए गए?
उत्तर:
1990 से, भारत सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपना रखी है, जिसके तहत राज्य को कल्याण कार्यों से वंचित कर दिया गया है और निजी फर्मों को नियंत्रित करने वाले संस्थागत उपकरणों को खत्म कर दिया गया है। भारतीय तथा विदेशी फर्मों को निर्यात के लिए, उत्पादन में पूँजी-निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए रियायतें और सब्सीडियाँ दी गई हैं।
प्रश्न 37.
सामाजिक संसाधन पूँजी को कितने रूपों में बांटा गया है ?
उत्तर:
सामाजिक संसाधन पूँजी को तीन रूपों में विभाजित किया गया है:
प्रश्न 38.
सामाजिक विषमता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सामाजिक विषमता-सामान्य रूप से सामाजिक संसाधनों तक असमान पहुँच को ही सामाजिक विषमता कहा जाता है । यह व्यक्तियों के बीच स्वाभाविक या प्राकृतिक भिन्नता के कारण नहीं होती है, बल्कि समाज द्वारा उत्पन्न ऐसी व्यवस्था के कारण होती है जो कि समाज के लोगों को सामाजिक स्तरीकरण में श्रेणीबद्ध करती है।
प्रश्न 39.
सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी कैसे बना रहता है ?
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण परिवार और संसाधनों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में घनिष्ठता के साथ जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार पारिवारिक प्रस्थिति, जो परिवार के द्वारा प्रदत्त होती है, बच्चा अपने माता-पिता से प्राप्त करता है। उत्तराधिकार के नियम, पारम्परिक व्यवसाय और अन्तर्जातीय विवाह इसे अनवरत बनाए रखते हैं।
प्रश्न 40.
"सामाजिक स्तरीकरण विश्वास और विचारधारा द्वारा समर्थित होता है।" कैसे?
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण विश्वास और विचारधारा द्वारा समर्थित होता है। उदाहरण के लिए, जातिव्यवस्था को कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता और अशुद्धता के आधार पर न्यायोचित ठहराया जाता है। जिसके अन्तर्गत अपने जन्म और व्यवसाय के आधार पर ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थिति प्राप्त होती है और दलितों को निम्नतम।
प्रश्न 41.
पूर्वाग्रह की कोई तीन विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 42.
पूर्वाग्रह और भेदभाव में दो अन्तर बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 43.
सामाजिक अपवर्जन (बहिष्कार) की तीन विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 44.
सामाजिक बहिष्कार (अपवर्जन) को रोकने हेतु कोई तीन उपाय बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 45.
"जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है।" कैसे?
उत्तर:
प्रश्न 46.
आप कैसे कह सकते हैं कि जाति व्यवस्था में व्यक्ति की सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति को अलग-अलग रखा जाता है ?
उत्तर:
धार्मिक ग्रन्थों के कठोर नियमों के अनुसार सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति को निश्चित रूप से अलग रखा जाता है। आनुष्ठानिक रूप से सबसे उच्च जाति ब्राह्मणों को धन संचय की अनुमति नहीं थी। वे भौतिक क्षेत्र में जहाँ राजाओं के अधीन होते थे, वहीं राजा धार्मिक क्षेत्रों में ब्राह्मणों के अधीन होते थे।
प्रश्न 47.
वर्तमान में क्या जाति आधारित आर्थिक स्थिति बदल गई है? अपना मत दीजिए।
उत्तर:
यद्यपि समाज सुधारकों तथा सरकारी कानूनों तथा आरक्षण की व्यवस्था से दलित जातियों की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया है, तथापि समाज के साधन-सम्पन्न ओहदों पर उच्च जातियों के लोगों की अधिकता बनी हुई है तो वंचित वर्ग में दलितों की प्रधानता अभी भी बनी हुई है।
प्रश्न 48.
अस्पृश्यता के तीन आयाम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
अस्पृश्यता के आयाम
प्रश्न 49.
दलितों को अपवर्जन अथवा बहिष्कार के रूप में क्या-क्या भुगतना पड़ता है?
उत्तर:
दलितों को बहिष्कार के .निम्न रूप भुगतने पड़ते हैं:
प्रश्न 50.
'स्त्री-पुरुष तुलना' पुस्तक पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
'स्त्री-पुरुष तुलना' नामक पुस्तक एक महाराष्ट्रीय गृहिणी ताराबाई शिंदे द्वारा लिखी गई थी, जिसमें पुरुष प्रधान समाज द्वारा अपनाए गए दोहरे मापदंडों का विरोध किया गया था। एक जवान ब्राह्मण विधवा को न्यायालय द्वारा मृत्युदंड दिया गया था, विधवा का अपराध यह था कि उसने अपने नवजात शिशु की हत्या इसलिए कर दी थी क्योंकि वह उसकी नाजायज संतान था; लेकिन जिस पुरुष का वह बच्चा था उसका पता लगाने या उसे दंड देने का कोई प्रयत्न नहीं किया गया था।
प्रश्न 51.
विश्वभर में निर्योग्यता/अक्षमता का जो तात्पर्य समझा जाता है, उसके कुछ आम लक्षण लिखिए।
उत्तर:
विश्वभर में निर्योग्यता/अक्षमता का जो तात्पर्य समझा जाता है उसके कुछ आम लक्षण निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 52.
दलितों को अनादर और अधीनता में क्या कार्य करने पड़ते हैं ?
उत्तर:
दलितों को ऊँची जातियों के लोगों के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अनेक अनिच्छापूर्वक कार्य करने पड़ते हैं, जैसे-टोपी या पगड़ी उतारना, पहने हुए जूतों को उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना, सिर झुकाकर खड़े रहना, एकदम साफ कपड़े नहीं पहनना आदि। इसके अतिरिक्त उन्हें रोज अपशब्द भी सुनने पड़ते हैं।
प्रश्न 53.
दलित शब्द से क्या तात्पर्य है ? इस शब्द का प्रचलन कैसे हुआ?
उत्तर:
दलित शब्द का शाब्दिक अर्थ है-पैरों से कुचला हुआ, जो कि उत्पीड़ित लोगों का द्योतक है। 1970 के दशक में जातीय दंगों के दौरान इस शब्द का व्यापक रूप से प्रयोग किया गया था। इसी दौरान पश्चिमी भारत में 'दलित पैंथर्स' ने अपने अधिकार तथा मान-सम्मान के लिए चलाए गए संघर्ष में अपनी पृथक् पहचान बनाने के लिए 'दलित' शब्द का प्रयोग किया।
प्रश्न 54.
आरक्षण की व्यवस्था से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आरक्षण के अन्तर्गत सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सदस्यों के लिए केन्द्रीय और राज्य विधान मण्डलों में, सरकारी सेवाओं तथा शैक्षिक संस्थाओं तथा स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं में कुछ स्थानों का आरक्षण किया गया है।
प्रश्न 55.
स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए कौन-कौन से आंदोलन चलाए गए हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 56.
सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग से क्या तात्पर्य है ?
अथवा
'अन्य पिछड़ा वर्ग' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
भारत में जातीय का एक बड़ा समूह ऐसा भी रहा है जिसे 'पिछड़ा वर्ग' समझा जाता है। ये लोग सेवा करने वाले तथा शिल्पी जातियों के लोग हैं। इन्हें अनुसूचित जातियों से उच्च तथा सवर्ण जातियों से निम्न स्थान प्राप्त है। इन्हीं समूहों को 'सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा' या 'अन्य पिछड़ा वर्ग' कहा जाता है।
प्रश्न 57.
पूर्वाग्रह और भेदभाव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्वाग्रह मनोवृत्ति और विचारों को दर्शाता है तो भेदभाव दूसरे समूह के प्रति किया गया व्यवहार है। भेदभाव को व्यावहारिक रूप में इस प्रकार भी देखा जा सकता है जिसके तहत एक समूह के सदस्य उन अवसरों के लिए अयोग्य करार दिये जाते हैं जो दूसरों के लिए खुले होते हैं; लिंग, धर्म, जाति, वंश के आधार पर किये गये भेदभावपूर्ण व्यवहार इसी के उदाहरण हैं। भेदभाव को प्रमाणित करना कठिन होता है।
प्रश्न 58.
अन्य पिछड़ा वर्ग की पहचान के लिए कौन-कौन से आयोग बने हैं ?
उत्तर:
अन्य पिछड़ा वर्ग की पहचान के लिए दो आयोग बने हैं। प्रथम आयोग काका कालेलकर की अध्यक्षता में बना था, जिसने 1975 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। दूसरा आयोग बी.पी. मंडल की अध्यक्षता में बना जिसकी रिपोर्ट को 1990 में क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया।
प्रश्न 59.
अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित आयोगों की रिपोर्ट की लम्बे समय तक उपेक्षा क्यों की गई थी?
उत्तर:
सर्वेक्षणों से ज्ञात हुआ कि देश की कुल जनसंख्या में अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों की जनसंख्या 41 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्तर पर 41 प्रतिशत आरक्षण देना संभव नहीं था। इसलिए काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को ठण्डे बस्ते में डाल दिया और मण्डल आयोग की रिपोर्ट की भी सरकार 10 वर्ष तक उपेक्षा करती रही।
प्रश्न 60.
अन्य पिछड़ा वर्ग के कौन-कौन से रूप दिखाई देते हैं और उनकी भूमिका में क्या अन्तर है? उत्तर-अन्य पिछड़ा वर्ग के दो रूप हैं
प्रश्न 61.
अनुसूचित जनजातियों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वे आदिवासी जातियाँ जिनकी परिगणना संविधान की अनुसूचित जनजातियों की सूची में की गई है, अनुसूचित जनजातियाँ कहलाती हैं। इन्हें विशेष रूप से निर्धनता, शक्तिहीनता तथा सामाजिक लांछन से पीड़ित सामाजिक समूहों के रूप में पहचाना गया। ये पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों के निवासी हैं।
प्रश्न 62.
जनजातियों की कोई दो समस्यायें बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 63.
औपनिवेशिक शासन के दौरान जनजातीय लोगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
प्रश्न 64.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आदिवासियों को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है ?
उत्तर:
प्रश्न 65.
आदिवासी शब्द किसका सूचक है?
उत्तर:
आदिवासी शब्द का अर्थ है-मूल निवासी। इस शब्द को औपनिवेशिक सरकार के द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी लोगों अर्थात् साहूकारों, ऋणदाताओं द्वारा की जा रही घुसपैठ के विरुद्ध संघर्ष के अन्तर्गत 1930 के दशक में गढ़ा गया था।
प्रश्न 66.
आजादी के बाद भारत में आदिवासी आंदोलन की दो उपलब्धियाँ और उसके कारण बताइये।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आदिवासियों की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलताओं में से एक है-झारखण्ड और छत्तीसगढ़ को सरकार के द्वारा अलग से राज्य का दर्जा प्रदान करना। ये दोनों ही राज्य क्रमशः बिहार और मध्यप्रदेश राज्यों के हिस्से के रूप में रहे थे। इनकी उपलब्धियों का कारण था-आदिवासी लोगों का इन इलाकों में संकेन्द्रित होना।
प्रश्न 67.
19वीं सदी के सामाजिक सुधार आन्दोलन को मध्यवर्गीय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
19वीं सदी के सामाजिक सुधार आंदोलन को मध्यवर्गीय सामाजिक सुधार आंदोलन इसलिए कहा जाता है क्योंकि
प्रश्न 68.
19वीं सदी के मध्यवर्गीय सुधार आन्दोलन में राजा राममोहन राय का योगदान बताइये।
उत्तर:
राजा राममोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाया। उनके द्वारा सती प्रथा का विरोध मानवतावादी तथा नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धान्तों और हिन्दू शास्त्रों के आधार पर किया गया था। इस प्रकार उन्होंने पाश्चात्य तार्किकता और भारतीय परम्परा का समन्वय किया।
प्रश्न 69.
निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिये
उत्तर:
प्रश्न 70.
समाज सुधार आन्दोलन में ज्योतिबा फुले का योगदान बताइये।
उत्तर:
ज्योतिबा फुले ने 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना की। उन्होंने जातीय और लैंगिक दोनों ही प्रकार के भेदभावों के विरुद्ध आवाज को उठाया था। उन्होंने पारम्परिक ब्राह्मण संस्कृति में सबसे नीचे समझे जाने वाले दो समूहों, स्त्रियों और दलितों को सहायता देने का प्रयास किया था।
प्रश्न 71.
मुस्लिम समाज में जागृति लाने की दिशा में सर सैयद अहमद खान के योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सर सैयद अहमद खान ने पाश्चात्य विचारधारा और परम्परागत भारतीय धर्मग्रन्थों में समन्वय के माध्यम से मुस्लिम समाज में समाज सुधार की दिशा में प्रयास किये थे। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, धार्मिक उसूलों की शिक्षा, घर-गृहस्थी चलाने की कलाओं और बच्चों के लालन-पालन के प्रशिक्षण पर बल दिया।
प्रश्न 72.
'सुल्तानाज ड्रीम' नामक पुस्तक की कहानी पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बेगम रोकेया की पुस्तक 'सुल्तानाज ड्रीम' विश्व भर की महिलाओं के द्वारा लिखित प्रथम कृति है। इसमें स्वप्न में दिखे जादुई मुल्क में पुरुष घर की चारदीवारी के अन्दर रहते हैं, पर्दा करते हैं, जबकि स्त्रियाँ वैज्ञानिक आविष्कार करने तथा आकाश में उड़ सकने वाली हवाई कारों को बनाने का प्रयास कर रही हैं।
प्रश्न 73.
1931 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन में नागरिक मूल अधिकारों के घोषणा-पत्र में स्त्रियों को समानता देने के बारे में क्या कहा गया था?
उत्तर:
प्रश्न 74.
सन् 1970 के दशक व उसके बाद स्त्रियों के कौन-कौन से मुद्दे उपस्थित हुए थे ?
उत्तर:
1970 के दशक व उसके बाद स्त्रियों से संबंधित निम्न मुद्दे उपस्थित हुए थे:
प्रश्न 75.
अक्षमता या निर्योग्यता के कोई तीन लक्षण बताइये।
उत्तर:
अक्षमता अथवा निर्योग्यता के लक्षण
प्रश्न 76.
भारत में सक्षम व्यक्ति के बारे में लोगों की क्या धारणाएँ होती हैं ?
उत्तर:
भारत में अन्यथा सक्षम व्यक्तियों के लिए निर्योग्य, बाधित, अक्षम और बेचारे जैसे विशेषणों का प्रयोग किया जाता है। हमारी संस्कृति असमर्थता अथवा दोषपूर्ण शरीर को दुर्भाग्य का परिणाम मानती है और निर्योग्य व्यक्ति को नियति का शिकार माना जाता है। इसे पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम माना जाता है।
प्रश्न 77.
अस्पृश्यता के तीन आयामों में से अनादर और अधीनता के आयाम को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अनादर और अधीनता सूचक अनेक कार्य सार्वजनिक रूप से कराना अस्पृश्यता की प्रथा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। उन्हें तथाकथित ऊँची जातियों के लोगों के प्रति जबरदस्ती सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अनिच्छापूर्वक कई व्यवहार करने पड़ते हैं, जैसे-टोपी या पगड़ी उतारना; पहने हुए जूतों को उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना, सिर झुकाकर खड़े रहना; एकदम साफ या चमचमाते हुए कपड़े नहीं पहनना आदि-आदि। इसके अलावा, अपशब्द सुनना और अपमान सहना तो उनका रोजमर्रा का काम है।
प्रश्न 78.
"अक्षमता और गरीबी के बीच अटूट सम्बन्ध होता है।" स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अक्षमता और गरीबी दोनों ही परस्पर पूरक होती हैं । कुपोषण, गरीबी आदि तथ्य गरीबों की कार्यक्षमता को कमजोर कर देते हैं। अक्षमता व्यक्ति तथा परिवार के लिए पृथक्करण और आर्थिक दबाव को बढ़ाती है। इससे गरीबी की स्थिति और गंभीर हो जाती है। यही कारण है कि गरीब देशों में सर्वाधिक गरीब लोग अधिक असक्षम हैं।
प्रश्न 79.
अपमार्जन से क्या आशय है?
उत्तर:
अपमार्जन (Scaverging)-अपमार्जन मानव मल तथा अन्य कूड़ा-कर्कट और रद्दी चीजों को हाथ से साफ करने की प्रथा थी। यह प्रथा आज भी उन स्थानों पर प्रचलित है, जहाँ जल-मल निकासी की प्रणालियाँ मौजूद नहीं हैं। यह एक ऐसी सेवा थी जिसे दलित जातियों को सेवा करने के लिए बाध्य किया जाता था।
प्रश्न 80.
सामाजिक अपवर्जन क्या है?
उत्तर:
सामाजिक अपवर्जन वंचन और भेदभाव का मिला-जुला प्रतिफल है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके अपने समाज के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से शामिल होने से रोकता है । यह सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं का परिणाम होता है।
प्रश्न 81.
'न्यायालय विकलांग विरोधी है?' इस कथन के समर्थन में दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
न्यायालय विकलांग विरोधी हैं क्योंकि
प्रश्न 82.
सामाजिक संसाधन पूँजी के रूपों में कैसा सम्बन्ध पाया जाता है।
उत्तर:
पूँजी के तीनों रूपों में सम्बन्ध-पूंजी के तीनों रूप प्रायः आपस में घुले-मिले होते हैं तथा एक को दूसरे में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक सम्पन्न परिवार का व्यक्ति अपनी आर्थिक पूँजी के जरिए मंहगी उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है; इस तरह वह अपनी आर्थिक पूँजी को सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक स्वरूप दे सकता है। उसी प्रकार एक व्यक्ति अपने प्रभावशाली मित्रों व सम्बन्धियों के जरिए अच्छी सलाह, सिफारिश या जानकारी पा सकता है और इनके द्वारा एक अच्छी आय वाली नौकरी पाकर सामाजिक पूँजी को आर्थिक पूँजी में बदल सकता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करने वाले तीन प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त–सामाजिक स्तरीकरण की व्याख्या करने वाले तीन प्रमुख सिद्धान्त या प्रकार्य निम्नलिखित हैं
1. व्यक्तियों के बीच की विभिन्नता का प्रकार्य तथा समाज की एक विशिष्टता-सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच की विभिन्नता का प्रकार्य ही नहीं बल्कि समाज की एक विशिष्टता है। यह समाज में व्यापक रूप से पाई जाने वाली व्यवस्था है जो सामाजिक संसाधनों को लोगों की विभिन्न श्रेणियों में असमान रूप से बाँटती है। तकनीकी रूप से अधिक उन्नत समाज में जहाँ लोग अपनी मूलभूत जरूरतों से अधिक उत्पादन करते हैं, सामाजिक संसाधन विभिन्न सामाजिक श्रेणियों में असमान रूप से बँटा होता है । इसका लोगों की व्यक्तिगत क्षमता से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है।
2. पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण-सामाजिक स्तरीकरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है। यह परिवार और सामाजिक संसाधनों के एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में उत्तराधिकार के रूप में घनिष्ठता से जुड़ा है। बच्चा अपने मातापिता की सामाजिक प्रस्थिति पाता है तथा 'जाति में जन्म ही उसके व्यावसायिक अवसरों को निर्धारित करता है। असमानता का यह प्रदत्त पक्ष अन्तर्विवाह प्रथा से और सुदृढ़ होता है। चूंकि विवाह अपनी जाति के सदस्यों में ही सीमित है, अतः अन्तरजातीय विवाह द्वारा जातीय विभाजनों को क्षीण करने की सम्भावना खत्म हो जाती है।
3. विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन-सामाजिक स्तरीकरण को विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है। सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था तभी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल सकती है जब व्यापक तौर पर उसे न्यायसंगत या अपरिहार्य माना जाता हो । उदाहरण के लिए जाति व्यवस्था को धार्मिक दृष्टिकोण से शुद्धता और अशुद्धता के आधार पर न्यायोचित ठहराया जाता है जिसमें जन्म और व्यवसाय की बदौलत ब्राह्मणों की सबसे उच्च स्थिति और दलितों की सबसे निम्न स्थिति कर दी गई है।
प्रश्न 2.
अस्पृश्यता के प्रमुख आयामों का वर्णन कीजिये।
अथवा
उपयुक्त उदाहरण देते हुए अस्पृश्यता के विविध आयामों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
अस्पृश्यता के आयाम-अस्पृश्यता के निम्नलिखित तीन मुख्य आयाम हैं:
1. अपवर्जन या बहिष्कार-दलितों को बहिष्कार या अपवर्जन के अत्यन्त भयंकर रूप भुगतने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, उन्हें पेयजल के सामान्य स्रोतों से पानी नहीं लेने दिया जाता; उनके कुएँ, हैंडपम्प, घाट आदि अलग होते हैं; वे सामूहिक धार्मिक पूजा-आराधना, सामाजिक समारोहों और त्योहारों-उत्सवों में भाग नहीं ले सकते। साथ ही, उनसे अनेक छोटे काम जोर-जबरदस्ती से कराये जाते हैं, जैसे-किसी धार्मिक उत्सव पर ढोल-नगाड़े बजाना।
2. अनादर और अधीनता का आयाम-अनादर और अधीनता सूचक अनेक कार्य सार्वजनिक रूप से कराना अस्पृश्यता की प्रथा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। उन्हें तथाकथित ऊँची जातियों के लोगों के प्रति जबरदस्ती सम्मान प्रदर्शित करने के लिए अनिच्छापूर्वक कई व्यवहार करने पड़ते हैं, जैसे-टोपी या पगड़ी उतारना; पहने हुए जूतों को उतारकर हाथ में पकड़कर ले जाना, सिर झुकाकर खड़े रहना; एकदम साफ या चमचमाते हुए कपड़े नहीं पहनना आदि-आदि। इसके अलावा, अपशब्द सुनना और अपमान सहना तो उनका रोजमर्रा का काम है।
3. शोषण का आयाम-तरह-तरह का आर्थिक शोषण अस्पृश्यता की कुरीति के साथ सदा से ही जुड़ा है। उन्हें प्रायः 'बेगार' करनी पड़ती है जिसके लिए उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाता या बहुत कम मजदूरी दी जाती है। कभी-कभी तो उनकी सम्पत्ति छीन ली जाती है। संक्षेप में अस्पृश्यता एक अखिल भारतीय प्रघटना है हालाँकि उसके विशिष्ट रूपों. एवं गहनताओं में विभिन्न क्षेत्रों तथा सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भो में बहुत अन्तर होता है।
प्रश्न 3.
अस्पृश्यता क्या है ? अस्पृश्य जातियों के प्रति भेदभाव मिटाने के लिए उठाये गये कदमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अस्पृश्यता का अर्थ-अस्पृश्यता शारीरिक सम्पर्क का निषेध करती है। अस्पृश्य जातियों को इतना अशुद्ध और अपवित्र माना जाता है कि स्पर्श मात्र से सवर्ण जातियों के लोग अपवित्र हो जाते हैं। अस्पृश्यता शारीरिक सम्पर्क के निषेध के साथ-साथ दलित कहे जाने वाले व्यक्ति के लिए कई प्रकार की अत्यन्त कठोर सामाजिक अनुशास्तियों का भी प्रावधान करती है।
अस्पृश्य जातियों के भेदभाव मिटाने के लिए उठाये गए कदम अस्पृश्य जातियों के भेदभाव मिटाने के लिए निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाये गए हैं
1. 1935 का अधिनियम-ब्रिटिश भारत की सरकार ने 1935 के अधिनियम में 'अनुसूचित जातियों' की ‘अनुसूची तैयार की थी जिसमें सभी अस्पृश्य जातियों व उन जातियों के नाम दिए गए थे जिन्हें उनके विरुद्ध बड़े पैमाने पर किए जा रहे भेदभाव के कारण विशेष बर्ताव का पात्र माना गया था।
2. आरक्षण की व्यवस्था-स्वतंत्रता के पश्चात् सार्वजनिक जीवन के विभिन्न पक्षों में अनुसूचित जातियों के सदस्यों के लिए कुछ स्थान या सीटें अलग निर्धारित कर दी जाती हैं। इन आरक्षणों में अनेक किस्म के आरक्षण शामिल हैं, जैसे:
3. विकास कार्यक्रम-सरकार द्वारा चलाए गए विकास कार्यक्रमों में भी अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। उनमें से कुछ तो विशेष रूप से इन्हीं जातियों के लिए हैं, जबकि कुछ अन्य कार्यक्रमों में उन्हें अधिमान्यता दी गई है।
4. 1850 का जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम-1850 के जातीय निर्योग्यता अधिनियम में यह व्यवस्था की गई थी कि केवल धर्म या जाति के परिवर्तन के कारण नागरिकों के अधिकारों को कम नहीं किया जाएगा। 1850 का अधिनियम सरकारी स्कूलों में दलितों की भर्ती करने की इजाजत देता है।
5.अस्पृश्यता का उन्मूलन-संविधान ने अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया तथा उपर्युक्त आरक्षण सम्बन्धी प्रावधान लागू किये।
6.अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989-1989 के अत्याचार निवारण अधिनियम ने दलितों के विरुद्ध हिंसा और अपमानजनक कार्यों के लिए दंड देने के उपबन्धों में संशोधन करके उन्हें और मजबूत बना दिया है।
प्रश्न 4.
ट्रांस-जेंडर और थर्ड-जेंडर पर विस्तारपूर्वक लेख लिखिए।
उत्तर:
1. ट्रांस - जेंडर:
सामान्यत समाज दो इकाइयों में विभाजित है-स्त्री और पुरुष। यह एक अपरिवर्तनीय व्यवस्था है परंतु शरीर विज्ञान में हुए अनेक शोधों ने शरीर को चयन प्रणाली का भाग बना दिया है। पुरुष अनेक चिकित्सा यंत्रों को प्रयोग कर स्वयं को महिला का रूप दे सकता है और महिला यदि चाहे तो अन्य यंत्रों के द्वारा स्वयं को पुरुष शरीर का रूप दे सकती है। इस दृष्टि से शल्य चिकित्सा प्रविधि के द्वारा अपनी जेंडर पहचान में इच्छानुसार अथवा किसी अन्य कारण से बदलाव किया जा सकता है। सरल शब्दों में अगर कहें तो पुरुष से स्त्री के रूप में एवं स्त्री से पुरुष के रूप में स्वेच्छा से बदलाव की स्थिति ट्रांसजेंडर की अवधारणा को बनाती एवं स्पष्ट करती है।
2. थर्ड - जेंडर:
सामाजिक इकाइयों की वह श्रेणी जो कि ना तो पुरुष और ना ही स्त्री के रूप में रेखांकित की जाती है। इस श्रेणी में वास्तव में वे लोग आते हैं जो कि महिला एवं पुरुष की विशेषताओं का मिश्रण हैं। थर्डजेंडर की पहचान या तो स्वयं सामाजिक इकाई अथवा समूह, समाज या परिवार द्वारा की जाती है। चूंकि ये सामाजिक इकाइयाँ न तो पूर्ण पुरुष और ना ही पूर्ण महिला हैं इसलिए इन्हें तीसरा जेंडर कहा जाता है। भारत सहित अनेक देशों ने इस सामाजिक श्रेणी को वैधानिक मान्यता प्रदान की है और इन्हें अनेक अधिकारों का पात्र बनाकर समानता के मूल्यों से परिचित कराया है। भारत में तो तीसरे जेंडर के लोग चुनाव लड़ने के लिए स्वयं को नामांकित कर सकते हैं।
प्रश्न 5.
समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार लाने हेतु राजा राममोहन राय व रानाडे द्वारा किये गये कार्यों को बताइये।
अथवा
19वीं सदी में नारी कल्याण की दिशा में विभिन्न समाज सुधारकों का योगदान बताइये।
उत्तर:
19वीं सदी में नारी कल्याण की दिशा में विभिन्न समाज सुधारकों के द्वारा अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया गया था
1. राजा राममोहन राय-19वीं सदी के मध्यवर्गीय सामाजिक सुधारकों में राजा राममोहन राय का महत्त्वपूर्ण स्थान था। 1828 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी। उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध व्यापक आन्दोलन को चलाया था। यह प्रथम स्त्री सम्बन्धी मुद्दा था जिस पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया गया था। उनके द्वारा सती प्रथा का विरोध मानवतावादी तथा नैसर्गिक अधिकारों के सिद्धान्तों और हिन्दू शास्त्रों के आधार पर किया गया था।
2. महादेव गोविन्द रानाडे-तत्कालीन समय में हिन्दुओं की उच्च जातियों में विधवाओं के साथ निन्दनीय और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जाता था। रानाडे के द्वारा उस समय बिशप जोसेफ बटलर जैसे विद्वानों के लेखों का उपयोग किया गया जिनकी कृति 'एनेलोजी ऑफ रिलीजन' और 'सरमन ऑफ ह्यूमन नेचर' को 1860 के दशक में मुम्बई विश्वविद्यालय के नैतिक दर्शन सम्बन्धी पाठ्यक्रम में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसी समय महादेव गोविन्द रानाडे के द्वारा लिखित ग्रंथों 'दि टैक्सट्स ऑफ द हिन्दू लॉ ऑन द लॉफुलनेस ऑफ द रीमैरिज ऑफ विडोज' और 'वेदिक ऑथोरिटीज फॉर विडो मैरिज' में विधवा पुनर्विवाह के लिए शास्त्रीय स्वीकृति का विवेचन किया गया।
3. ज्योतिबा फुले-19वीं सदी के समाज सुधारकों में ज्योतिबा फुले की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी:
1. उन्होंने जातीय और लैंगिक दोनों ही प्रकार के भेदभावों के विरुद्ध आवाज को उठाया था।
2. उन्होंने 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की थी और इसके माध्यम से सत्य की खोज करने पर बल दिया था।
3. व्यावहारिक सामाजिक सुधारों के उद्देश्य से फुले के द्वारा सर्वप्रथम पारम्परिक ब्राह्मण संस्कृति में सबसे नीचे समझे जाने वाले दो समूहों, स्त्रियों और दलितों को सहायता देने का प्रयास किया था।
4. सर सैयद अहमद खान-सर सैयद अहमद खान के द्वारा समाज सुधार के कार्य में पाश्चात्य विचारधारा और परम्परागत भारतीय धर्मग्रंथों में समन्वय कार्य का सहारा लिया गया था। उन्होंने मुस्लिम समाज में सुधार कार्य की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये थे। वे चाहते थे कि लड़कियों को शिक्षित किया जाये लेकिन घर की चारदीवारी के अन्दर ही। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा देने का भी समर्थन किया था।
प्रश्न 6.
प्रजाति और जाति-एक अंतःसांस्कृतिक तुलना पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर:
भारत की जाति प्रथा की तरह दक्षिण अफ्रीका में प्रजाति के आधार पर समाज को श्रेणीबद्ध किया गया है। लगभग हर सात दक्षिण अफ्रीकी व्यक्ति में से एक यूरोपीय वंश का है, फिर भी दक्षिण अफ्रीका के अल्पसंख्यक श्वेतों का वहाँ की शक्ति एवं संपदा पर प्रबल अधिकार है। डच व्यापारी 17वीं शताब्दी के मध्य में दक्षिण अफ्रीका में बस गए, 19वीं शताब्दी के शुरू में उनके वंशजों को ब्रिटिश उपनिवेशकों द्वारा भीतरी प्रदेशों में खदेड़ दिया गया था। बीसवीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश ने पहले संघ पर तथा बाद में दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य पर नियंत्रण कर लिया।
अपने राजनीतिक नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक श्वेतों ने रंगभेद अथवा प्रजाति के पृथक्करण की नीति को विकसित किया। यह कई वर्षों तक अनौपचारिक व्यवहार में रहा। बाद में 1948 में इसको कानूनी मान्यता दी गई तथा बहुसंख्यक दक्षिण अफ्रीकी अश्वेतों को वहाँ की नागरिकता, जमीन के स्वामित्व से तथा सरकार में शामिल होने के औपचारिक अधिकार से वंचित कर दिया गया। प्रत्येक व्यक्ति का प्रजाति के आधार पर वर्गीकरण किया गया तथा मिश्रित विवाह पर पाबंदी लगा दी गई। एक प्रजातीय जाति के रूप में अश्वेतों के पास कम आय वाली नौकरियाँ थीं, सामान्य तौर पर श्वेतों द्वारा प्राप्त आय की तुलना में उनकी आय सिर्फ एक चौथाई थी। बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में लाखों अश्वेतों को 'बांटुस्तान' या 'गृहक्षेत्रों' में बलपूर्वक पुनः स्थापित किया गया जो गंदगी से भरा गरीब क्षेत्र था, जहाँ आधारभूत संरचना, उद्योग तथा नौकरी बिल्कुल नहीं थी। यह सभी गृहक्षेत्र एक साथ मिलकर पूरे दक्षिण अफ्रीका की सिर्फ 14 प्रतिशत जमीन का हिस्सा थे, जबकि अश्वेत पूरे देश की जनसंख्या के अनुपात में 80 प्रतिशत थे। परिणामतः तीव्र भुखमरी तथा परेशानियाँ व्यापक रूप में फैल गयीं। संक्षेप में, उस देश में विपुल प्राकृतिक संसाधनों तथा हीरों, मूल्यवान खनिज पदार्थों के होते हुए भी अधिकांश लोग घोर गरीबी में जीवन जी रहे थे।
समृद्ध अल्पसंख्यक श्वेतों ने अपने विशेषाधिकार का बचाव अश्वेतों को सामाजिक रूप से निम्न घोषित करते हुए किया। फिर भी वे अपने शासन को बनाए रखने के लिए सैन्य शक्तिशाली व्यवस्था पर आश्रित थे। अश्वेत विद्रोहियों को नित्य-प्रतिदिन जेल में डाला जाता था और प्रताडित किया जाता था तथा उनकी हत्या की जाती थी। शासकीय आतंक के बावजूद अश्वेतों ने दशकों तक एकजुट होकर अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस तथा नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में संघर्ष किया तथा अंततोगत्वा वे सत्ता में आने में सफल हुए तथा 1994 में सरकार बनाई। यद्यपि उत्तर रंगभेदी दक्षिण अफ्रीकी संविधान ने प्रजातीय भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया है, तथापि आर्थिक पूँजी अभी भी श्वेत लोगों के हाथ में केंद्रित है। बहुसंख्यक अश्वेतों का सशक्तीकरण करना नए समाज को निरंतर चुनौती प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 7.
20वीं सदी के आरम्भिक वर्षों में महिला अधिकारों की दिशा में कौन-कौन से कार्य किये गये और महिलाओं की समस्याओं से सम्बन्धित कौन-कौन से मददे प्रमुख रहे थे?
उत्तर-20वीं सदी के आरम्भिक वर्षों में राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर कई ऐसे संगठन उभरकर सामने आये जिनके द्वारा महिला अधिकारों की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कार्य किये गये थे। इसी समय महिलाओं के द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ किया गया था। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं था कि नारी अधिकार राष्ट्रीय कल्पना के ही अभिन्न अंग थे।
राष्ट्रीय कांग्रेस और नारी अधिकार-1931 में कराची में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया था, जिसमें भारतीय नागरिकों के लिए मूल अधिकारों की घोषणा की गई थी। इसके अन्तर्गत ही राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा महिलाओं को अधिकार देने की दिशा में अपना संकल्प व्यक्त किया गया था। साथ में ही इसी अधिकार-पत्र के अन्तर्गत स्त्रियों को समानता का अधिकार दिये जाने की बात कही गई थी।
इस घोषणा-पत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें कही गई थीं
समकालीन स्त्रियों से सम्बन्धित मुद्दे-1970 के दशक में स्त्रियों से सम्बन्धित आधुनिक मुद्दे सामने आये थे। इनमें से प्रमुख मुद्दे थे
(क) पुलिस अभिरक्षा में स्त्रियों के साथ बलात्कार का मुद्दा
(ख) दहेज के लिए स्त्रियों की हत्या का मुद्दा।
(ग) लोकप्रिय माध्यमों में स्त्रियों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा।
(घ) असमान विकास के लैंगिक परिणाम का मुद्दा।
(ङ) स्त्रियों से सम्बन्धित परम्परागत कानूनों में परिवर्तन का मुद्दा, जैसे-लैंगिक असमानता का मुद्दा, लड़कियों के साथ सामाजिक पक्षपातपूर्ण व्यवहार का मुद्दा इत्यादि। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि स्त्रियों की समस्याएँ और मुद्दे समय के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं।
प्रश्न 8.
पूर्वाग्रह किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताएँ बताइये।
अथवा
पूर्वाग्रह का अर्थ बताते हुए पूर्वाग्रह और भेदभाव में अन्तर बताइये।
उत्तर:
पूर्वाग्रह का अर्थ-पूर्वाग्रह एक समूह के सदस्यों द्वारा दूसरे समूह के बारे में पूर्वकल्पित विचार या व्यवहार होता है। इस शब्द का अक्षरशः अर्थ पूर्व निर्णय है अर्थात् वह धारणा है जो विषय को जाने बिना और बिना उसके तथ्यों को परखे शुरूआत में ही बना ली जाती है।
पूर्वाग्रह की विशेषताएँ पूर्वाग्रह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. सुनी-सुनाई बातों पर आधारित पूर्वकल्पित विचार–पूर्वाग्रह वह पूर्वकल्पित विचार है जो सबूतसाक्ष्यों के विपरीत सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होते हैं । यह नई जानकारी प्राप्त होने के बावजूद बदलने से इन्कार करते हैं।
2. सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों-पूर्वाग्रह सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों हो सकता है। वैसे ज्यादातर यह नकारात्मक रूप से लिए गए पूर्वनिर्णयों के लिए प्रयुक्त होता है। पर यह स्वीकारात्मक पूर्वनिर्णयों पर भी लाग होता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति अपनी जाति और समूह के सदस्यों के पक्ष में पूर्वाग्रहित हो सकता है और उन्हें बिना किसी सबूत के दूसरी जाति या समूह के सदस्यों से श्रेष्ठ मान सकता है।
3. अपरिवर्तनीय, कठोर और रूढिबद्ध धारणाओं पर आधारित-पूर्वाग्रह ज्यादातर एक समूह के बारे में अपरिवर्तनीय, कठोर और रूढिबद्ध धारणाओं पर आधारित होते हैं। रूढिबद्ध धारणाएँ ज्यादातर नृजातीय और प्रजातीय समूहों और महिलाओं के बारे में प्रयोग की जाती हैं। भारत में कई रूढिबद्ध विचार औपनिवेशिक देन हैं। रूढिबद्ध धारणा पूरे समूह को एकसमान श्रेणी में स्थापित कर देती है और इस धारणा के अन्तर्गत व्यक्तिगत और परिस्थितिजन्य भिन्नता को भी नकार दिया जाता है । इसके अनुसार पूरे समुदाय को एकल व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, मानो उसमें एक ही लक्षण हो।
पूर्वाग्रह और भेदभाव में अन्तर पूर्वाग्रह मनोवृत्ति और विचारों को दर्शाता है तो भेदभाव दूसरे समूह के प्रति किया गया व्यवहार है। भेदभाव को व्यावहारिक रूप में इस प्रकार भी देखा जा सकता है जिसके तहत एक समूह के सदस्य उन अवसरों के लिए अयोग्य करार दिये जाते हैं जो दूसरों के लिए खुले होते हैं; लिंग, धर्म, जाति, वंश के आधार पर किये गये भेदभावपूर्ण व्यवहार इसी के उदाहरण हैं। भेदभाव को प्रमाणित करना कठिन होता है।
प्रश्न 9.
1947 में भारत के स्वतंत्र हो जाने के पश्चात् भी आदिवासियों की जिंदगी आसान नहीं हुई। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1947 में भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद, आदिवासियों की जिंदगी आसान हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका एक कारण तो यह था कि वनों पर सरकार का एकाधिकार जारी रहा। यहाँ तक कि वनों के दोहन (कटाई आदि) में और तेजी आ गई। दूसरे, भारत सरकार द्वारा अपनाई गई पूँजी-प्रधान औद्योगीकरण की नीति को कार्यान्वित करने के लिए खनिज संसाधनों और विद्युत उत्पादन की क्षमताओं की आवश्यकता थी और ये क्षमताएँ और संसाधन मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्रों में ही स्थित थे। नई खनन और बाँध परियोजनाओं के लिए जल्दी से आदिवासी भूमियाँ अधिगृहीत कर ली गईं। इस प्रक्रिया में, लाखों आदिवासियों को, पर्याप्त मुआवजे और समुचित पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना विस्थापित कर दिया गया। 'राष्ट्रीय विकास' और 'आर्थिक संवृद्धि' के नाम पर इस कार्य को न्यायोचित ठहराया गया। इस प्रकार इन नीतियों का पालन वास्तव में, एक तरह का आंतरिक उपनिवेशवाद ही था जिसके अंतर्गत आदिवासियों को अपने अधीन करके उनके संसाधनों को, जिन पर वे निर्भर थे, छीन लिया गया। पश्चिमी भारत में नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बाँध और आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी पर पोलावरम बाँध बनाने की परियोजनाओं से लाखों आदिवासी विस्थापित हो जाएंगे, जो उन्हें पहले से अधिक अभावग्रस्त बना देगा। ये प्रक्रियाएँ लंबे अरसे से चलती रही हैं और 1990 के दशक से तो और भी अधिक प्रबल हो गई हैं, जबसे भारत सरकार द्वारा आर्थिक उदारीकरण की नीतियाँ आधिकारिक रूप से अपनाई गई हैं। अब निगमित फर्मों के लिए आदिवासियों को विस्थापित करके बड़े-बड़े इलाके अधिगृहीत करना अधिक आसान हो गया है।
प्रश्न 10.
सामाजिक बहिष्कार का अर्थ बताते हुए इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सामाजिक बहिष्कार का अर्थ-सामाजिक बहिष्कार वह तौर-तरीके हैं जिनके जरिए व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह से घुलने-मिलने से रोका जाता है व अलग या पृथक् रखा जाता है। यह उन सभी कारकों पर ध्यान दिलाता है जो व्यक्ति या समूह को उन अवसरों से वंचित करते हैं जो अधिकांश जनसंख्या के लिए खुले होते हैं । भरपूर तथा क्रियाशील जीवन जीने के लिए, व्यक्ति को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के अलावा अन्य आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की भी जरूरत होती है। सामाजिक भेदभाव आकस्मिक या अनायास रूप से नहीं बल्कि व्यवस्थित तरीके से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का परिणाम है।
सामाजिक बहिष्कार की विशेषताएँ सामाजिक बहिष्कार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. अलग या पृथक् रखा जाना-सामाजिक बहिष्कार वे तौर-तरीके हैं जिनके द्वारा किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूर्ण रूप से घुलने-मिलने से रोका जाता है व अलग व पृथक् रखा जाता है।
2. व्यवस्थित तरीके से-सामाजिक बहिष्कार आकस्मिक अथवा अनायास नहीं होता अपितु व्यवस्थित तरीके से किया जाने वाला व्यवहार होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का परिणाम है।
3. अनैच्छिक-सामाजिक व्यवहार अनैच्छिक होता है क्योंकि यह बहिष्कृत लोगों की इच्छाओं के विपरीत कार्यान्वित होता है अर्थात् बहिष्कार बहिष्कृत व्यक्ति की इच्छा-अनिच्छा की तरफ ध्यान ही नहीं देता।
4. अवसरों से वंचन-इसमें बहिष्कृत व्यक्ति अथवा समूह को उन अवसरों से वंचित कर दिया जाता है जो समाज के अन्य लोगों के लिए खुले होते हैं।
5.मुख्य धारा से अलग-बहिष्कार में व्यक्ति को समाज की मुख्य धारा से अलग कर दिया जाता है।
प्रश्न 11.
जाति व्यवस्था व्यक्तियों का वर्गीकरण किन-किन आधारों पर करती थी? उनमें परस्पर क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
जाति द्वारा व्यक्तियों का वर्गीकरण-ऐतिहासिक रूप से जाति व्यवस्था व्यक्तियों का वर्गीकरण उनके व्यवसायों तथा प्रस्थिति के आधार पर करती थी। यथा
1. व्यवसाय के आधार पर वर्गीकरण-प्रत्येक जाति एक व्यवसाय से जुड़ी थी अर्थात् एक विशेष जाति में जन्मा व्यक्ति उस व्यवसाय में भी जन्म लेता था जो उसकी जाति से जुड़ा था, उसके पास कोई विकल्प नहीं था।
2. सामाजिक प्रस्थिति के आधार पर वर्गीकरण-प्रत्येक जाति का सामाजिक स्थिति या हैसियत के अधिक्रम में एक विशेष स्थान भी होता था अर्थात् सिर्फ सामाजिक प्रस्थिति के अनुसार ही व्यावसायिक श्रेणियाँ श्रेणीबद्ध नहीं थीं बल्कि प्रत्येक बृहत् व्यावसायिक श्रेणी के अन्दर पुनः श्रेणीक्रम था। वर्गीकरण की सैद्धान्तिक स्थिति-धर्मग्रंथ के सख्त नियमों के अनुसार सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति को निश्चित रूप से अलग रखा जाता था। उदाहरण के लिए, अनुष्ठानिक रूप से सबसे ऊँची जाति-ब्राह्मण को धन संचय की अनुमति नहीं थी। ब्राह्मण धार्मिक क्षेत्र में सर्वोच्च होने पर भी क्षेत्रीय राजाओं की भौतिक शक्ति के अधीन थे। दूसरी तरफ राजा अनुष्ठानिक-धार्मिक क्षेत्र में ब्राह्मणों के अधीन थे। वर्गीकरण की व्यावहारिक स्थिति-वास्तविक ऐतिहासिक व्यवहार में सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति एक-दूसरे के अनुरूप थी तथा दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध था। उच्च जातियाँ निर्विवाद रूप से उच्च आर्थिक स्थिति की थीं जबकि दलित जातियाँ प्रायः निम्न आर्थिक स्थिति की होती थीं।
प्रश्न 12.
वर्तमान में जाति और आर्थिक (व्यावसायिक) स्थिति के सह-सम्बन्धों में क्या परिवर्तन आया
उत्तर:
आधुनिक काल में, विशेष रूप से 19वीं सदी से लेकर वर्तमान काल तक जाति तथा व्यवसाय के बीच सम्बन्ध काफी ढीले हुए हैं। यथा
1. व्यवसाय से सम्बन्धित अनुष्ठानिक-धार्मिक प्रतिबंध आज उतनी आसानी से लागू नहीं किये जा सकते हैं तथा पहले की अपेक्षा अब व्यवसाय परिवर्तन आसान हो गया है।
2. सौ या पचास वर्ष पहले की तुलना में जाति तथा आर्थिक स्थिति के सहसम्बन्ध कमजोर हुए हैं। आज अमीर तथा गरीब लोग हर जाति में पाये जाते हैं।
3. जाति-वर्ग का परस्पर संबंध वृहद् स्तर पर अभी भी पूरी तरफ कायम है। व्यवस्था के थोड़ा कम सख्त होने पर समान सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति वाली जातियों के बीच का फासला कम हुआ है। परन्तु विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच जातीय अन्तर अभी भी बना हुआ है। अर्थात् व्यापक स्तर पर बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है। यथा
प्रश्न 13.
अन्य पिछड़ा वर्ग से आप क्या समझते हैं ? 1990 के दशक में अन्य पिछड़े वर्ग का मुददा राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख विषय क्यों बन गया? ।
उत्तर:
अन्य पिछड़ा वर्ग से आशय-जातियों का एक काफी बड़ा समूह ऐसा भी था जिन्हें नीचा समझा जाता था। उनके साथ तरह-तरह का भेदभाव भी बरता जाता था, पर उन्हें दलित नहीं माना जाता था। ये सेवा करने वाली कारीगर (शिल्पी) जातियों के लोग थे जिन्हें जाति-सोपान में नीचा स्थान प्राप्त था। इन जातीय समूहों को 'सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग' कहा गया है। यह आम बोलबाल में प्रचलित 'अन्य पिछड़े वर्ग' शब्द का संवैधानिक आधार है, जो आजकल सामान्य रूप से प्रयोग किया जाता है।
अन्य पिछड़े वर्ग का राजनीतिक मुद्दा बनना-स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के उपाय सुझाने के लिए काका कालेलकर की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया, जिसने 1953 में अपनी रिपोर्ट दे दी, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक वातावरण को देखते हुए इस रिपोर्ट को ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया।
पांचवें दशक के मध्य में अन्य पिछड़े वर्ग का मुद्दा क्षेत्रीय मामला बन गया। दक्षिणी राज्यों में इन वर्गों की समस्याओं से सम्बन्धित नीतियाँ बनायी जाती रहीं। लेकिन 1970 के दशक के आखिरी वर्षों में यह मुद्दा पुनः केन्द्रीय स्तर पर मुखरित हुआ जब जनता पार्टी के शासनकाल में वी.पी. मंडल की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़े वर्ग के आयोग की स्थापना की गई। 1990 में केन्द्रीय सरकार ने मंडल आयोग की दस वर्ष पुरानी रिपोर्ट को जब लागू करने का निर्णय लिया तभी अन्य पिछड़े वर्ग का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख विषय बन गया, क्योंकि इसके राजनीतिकरण से यह संभावना बढ़ गई कि उनकी भारी संख्या (लगभग 41 प्रतिशत भाग) को राजनीतिक वोटों में बदला जा सकता है।
प्रश्न 14.
दक्षिण अफ्रीका में प्रजाति भेद की नीति को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति के विरुद्ध काले लोगों के संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका में प्रजाति भेद की नीति-अपने राजनीतिक नियंत्रण को सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक गोरों के द्वारा दक्षिण अफ्रीका में प्रजाति भेद अथवा रंगभेद की नीति को विकसित किया गया था। 1948 में श्वेत सरकार के द्वारा इस नीति को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी गई थी। आगे चलकर श्वेत सरकार के द्वारा यहाँ के मूल निवासियों को नागरिकता, भूमि स्वामित्व तथा सरकार में सम्मिलित होने से वंचित कर दिया गया। एक प्रजाति पर आधारित नौकरियों में अश्वेत व्यक्तियों को ऐसी नौकरियाँ प्रदान की गईं जिनसे काफी आय प्राप्त होती थी। अश्वेतों के लिए सरकार के द्वारा मिश्रित विवाह पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। सामान्य रूप से श्वेतों की आय की अपेक्षा अश्वेतों के पास एक-चौथाई आय होती थी। बीसवीं सदी के अन्तिम वर्षों में अश्वेत लोगों को बांटुस्तान अथवा गृहक्षेत्रों में बलात् धकेल दिया गया था, जो कि गरीबी से परिपूर्ण प्रदेश था और जहाँ पर आधारभूत संरचना, नौकरी, व्यापार और रोजगार के साधन कुछ भी नहीं थे। यह गृहक्षेत्र सम्पूर्ण दक्षिण अफ्रीका का 14 प्रतिशत भाग था जबकि यहाँ पर कुल आबादी की 80 प्रतिशत आबादी निवास करती थी। इसी के परिणामस्वरूप यहाँ पर गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो गई थीं। यहाँ के बहुमूल्य खनिज और हीरों की खानों पर गोरी सरकार के द्वारा अपना अधिकार कर लिया गया था तो दूसरी ओर यहाँ के मूल लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं से भी वंचित हो गये थे।
अश्वेतों का संघर्ष और स्वतंत्रता प्राप्ति-समृद्ध अल्पसंख्यक गोरों के द्वारा अपने विशेषाधिकारों का बचाव अश्वेतों को सामाजिक रूप में निम्न घोषित करके किया गया। ये लोग अपने शासन को चलाने के लिए शक्तिशाली सैन्य व्यवस्था पर आश्रित थे। अश्वेत विद्रोहियों को जेलों में डाला गया और उन्हें अमानवीय दण्ड दिये गये थे। यहाँ तक कि अश्वेत व्यक्तियों की हत्या तक कर दी जाती थी। सरकारी आतंक के बाद भी कालान्तर में अश्वेतों के द्वारा अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की स्थापना की गई और नेल्सन मण्डेला के नेतृत्व में लम्बे समय तक संघर्ष किया। अन्त में अश्वेत व्यक्तियों को सफलता मिली। 1994 में अश्वेतों के द्वारा अपनी सरकार को बनाया गया था। नये संविधान का निर्माण किया गया, जिसके अन्तर्गत रंगभेद की नीति को समाप्त कर दिया गया। इतना होने पर भी आर्थिक पूँजी अभी भी श्वेत लोगों के हाथों में ही है। बहुसंख्यक अश्वेतों को संगठित करना आज भी अश्वेतों के समक्ष एक चुनौती बना हुआ है।
प्रश्न 15.
19वीं सदी की नारी कल्याण की दिशा में महिला समाज सुधारकों का योगदान बताइए।
उत्तर:
19वीं सदी में नारी कल्याण की दिशा में एक ओर जहाँ पुरुष समाज सुधारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी वहीं पर महिला समाज सुधारकों के द्वारा भी इस दिशा में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी।
1. ताराबाई शिन्दे-समकालीन महिला समाज सुधारकों में ताराबाई शिन्दे का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। वे एक महाराष्ट्री गृहिणी थीं, जिन्होंने स्त्री-पुरुष तुलना' नामक पुस्तक लिखी थी। जिसमें पुरुष प्रधान समाज द्वारा अपनाये जाने वाले दोहरे मापदण्डों का विरोध किया गया था। एक जवान ब्राह्मण विधवा को न्यायालय के द्वारा मृत्युदण्ड दिया गया था। उस महिला का अपराध केवल इतना था कि उसके द्वारा अपने नवजात शिशु की हत्या इसलिये की गई थी क्योंकि वह बच्चा नाजायज था परन्तु जिस युवक का वह बच्चा था उसका पता लगाने अथवा उसे दण्ड देने का न्यायालय के द्वारा कोई प्रयत्न नहीं किया गया था। जब 'स्त्री-पुरुष तुलना' नामक पुस्तक का प्रकाशन हुआ था तो समाज के लोगों में खलबली मच गई थी।
2. बेगम रोकेया-सामाजिक कुरीतियों का पर्दाफाश करने में महिला समाज सुधारक बेगम रोकेया का नाम भी महत्त्वपूर्ण था। बेगम रोकेया के द्वारा लिखित 'सुल्तानाज ड्रीम' शीर्षक के नाम से छोटी-सी कहानी लिखी गई जो कि भारत में विज्ञान कथा लेखन का प्रारम्भिक नमूना था। इस दृष्टि से इसे विश्व भर में महिलाओं के द्वारा लिखित प्रथम कृति का उदाहरण माना जा सकता है। कहानी के अनुसार अपने सपने में सुल्ताना के द्वारा एक जादुई मुल्क का सफर तय किया जाता है। पुरुष घर के बाहर नहीं जाते और पर्दा रखते हैं जबकि स्त्रियाँ व्यस्त वैज्ञानिकों के रूप में ऐसे उपकरणों का आविष्कार करने की प्रतिस्पर्धा कर रही हैं जिनके द्वारा बादलों को नियंत्रित करके अपनी इच्छा के अनुसार वर्षा को करवाया जा सकता है। इसके अलावा स्त्रियों के द्वारा ऐसी मशीनों अर्थात् हवाई कारों को बनाने का प्रयास किया जाता है जो कि आकाश में उड़ सके। हर प्रकार से समकालीन महिला समाज सुधारकों के द्वारा समकालीन नारी समस्याओं को उठाया गया था। उन्होंने एक ओर जहाँ स्त्री-पुरुष समानता का समर्थन किया था तो दूसरी ओर पुरुष प्रधान समाज में नारी अधिकारों की मांग भी की थी। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि समकालीन समाज सुधारकों में नारी समाज सुधारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था।
प्रश्न 16.
"भारत में विकलांगता के बारे में फिर से सोचने की आवश्यकता के प्रति समाज में कुछ जागरूकता आ रही है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकलांगता की स्थिति को सुधारने के प्रयत्न-भारत में विकलांगों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार की ओर से कार्यवाही करनी पड़ी है। दिनांक 15-06-2005 को इस सम्बन्ध में एक समाचारपत्र की रिपोर्ट से यह बात स्पष्ट की गई है:
1. वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में निर्योग्यताग्रस्त (विकलांग) व्यक्तियों की संख्या 2.19 करोड़ है जो देश की सम्पूर्ण जनसंख्या के 2.13 प्रतिशत के बराबर है। इनमें ऐसे सभी व्यक्ति शामिल हैं जो दृष्टि, श्रवण शक्ति, चलने-फिरने और मानसिक रूप से विकलांग हैं। विकलांगों में 75 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।
2. विकलांग व्यक्तियों के कल्याण के लिए एक व्यापक वैधिक और संस्थागत ढांचा पहले से ही तैयार किया जा चुका है। निर्योग्यता-ग्रस्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार का संरक्षण और पूर्ण-सहभागिता) अधिनियम 1995 में अधिनियमित किया गया था।
3. विकलांगताग्रस्त व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए विभिन्न केन्द्रीय सरकार के मंत्रालयों, राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासनों, नागरिक समाज के सदस्यों, विकलांगताग्रस्त व्यक्तियों के सगठनों और विकलांगताग्रस्त व्यक्तियों के कल्याण के लिए कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के बहुक्षेत्रीय सहयोग की अपेक्षा है जिससे कि सेवाएँ प्रदान करने के कार्य में बेहतर सक्रियता प्राप्त की जा सके।
प्रश्न 17.
भारत में विकलांग व्यक्तियों के प्रति किये जाने वाले भेदभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विकलांग व्यक्तियों के प्रति होने वाले भेदभाव-भारत में विकलांग व्यक्तियों के प्रति किये जा रहे भेदभावों को निम्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. शिक्षा में भेदभाव-व्यापक शैक्षिक प्रवचनों और विचार-विमर्शों में विकलांगता को कोई मान्यता नहीं दी गई है। यह तथ्य शैक्षिक प्रणाली में विद्यमान ऐतिहासिक पद्धतियों से स्पष्ट होता है जो विकलांगता के मुद्दे को दो अलग-अलग धाराएँ बनाकर उपेक्षित करते आ रहे हैं। उनमें से एक धारा विकलांग छात्रों के लिए होती है और दूसरी धारा बाकी सब छात्रों के लिए।
2. विकलांग विरोधी न्यायालय-न्यायाधीश के पदों पर नियुक्ति के लिए विकलांग व्यक्तियों पर विचार नहीं किया जाता। इसे उच्चतर न्यायपालिका की अपवर्जनात्मक नीति बताते हुए एक वरिष्ठ न्यायवेत्ता का कहना है कि विकलांगों की इस प्रकार लगातार उपेक्षा करके न्यायपालिका एक सांविधिक अधिदेश का उल्लंघन कर रही है। उच्च न्यायालय भवन भी विकलांगों के लिए अनुकूल नहीं है। वास्तविक न्यायालय संकुल के सभी प्रवेश द्वार लंबी ऊंची सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ही आते हैं और उनमें से किसी में ढलान नहीं है जिस पर चढ़कर विकलांग ऊपर पहुँच सकें। नगर सिविल न्यायालय की हालत तो और भी खराब है जहाँ दुर्घटना के दावों के मामलों की सुनवाई के दौरान न्यायालय के समक्ष अभिसाक्ष्य देने के लिए अनेक विकलांग या घायल व्यक्ति आते हैं।
3. विकलांग के ग्रामीण माता-पिता की समस्यायें-यदि कोई कानून बनाकर प्रत्येक विकलांग बच्चे को शिक्षा उपलब्ध कराने की आशा की भी जाए तो भी ग्रामीण माता-पिता इस पृथक् शिक्षा व्यवस्था को अपने विकलांग बच्चों के लिए स्वायत्तता प्राप्त करने में सहायक नहीं समझेंगे। वे शायद इस बात को अधिक पसंद करेंगे कि उन्हें कुएं से पानी लाने का कोई बेहतर तरीका बताएं। शहरी गंदी-बस्ती में रहने वाले माता-पिता शिक्षा को रोजगार से संबंधित करने पर बल देंगे जो उनके बच्चे की बुनियादी जिंदगी की गुणवत्ता को सुधार सके।
प्रश्न 18.
नारी आन्दोलन के दौरान कौन-कौन से मुख्य मुद्दे उठाये गये हैं ?
उत्तर:
आधुनिक भारत में स्त्रियों की स्थिति का प्रश्न 19वीं सदी के मध्यवर्गीय सामाजिक सुधार आंदोलनों के एक हिस्से के रूप में उदित हुआ। इन आंदोलनों का स्वरूप एक जैसा नहीं था।
प्रारम्भिक नारी-अधिकारवादी दृष्टिकोण के साथ-साथ हमारे यहाँ अनेकानेक नारी संगठन थे जो बीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों में अखिल भारतीय एवं स्थानीय स्तरों पर उभर आए थे और फिर स्त्रियों का राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेना शुरू हो गया। नारी आंदोलन के दौरान उठाये गये मुद्दे नारी आंदोलनों के दौरान उठाये गये प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं
1. 19वीं सदी के सुधार आंदोलनों में उठाये गए मुद्दे-19वीं सदी के सुधार आंदोलन के दौरान सती, बाल विवाह जैसी परंपरागत कुरीतियों तथा विधवाओं के साथ बुरे बर्ताव को रोकने पर विशेष बल दिया गया।
2. 1970 के दशक में नारी आंदोलन के दौरान उठाये गये मुद्दे-1970 के दशक में नारी आंदोलन के दौरान पुलिस अभिरक्षा में स्त्रियों के साथ बलात्कार, दहेज के लिए हत्या, लोकप्रिय माध्यमों में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व और असमान विकास के लैंगिक परिणाम आदि मुद्दों की ओर विशेष ध्यान आकर्षित किया गया।
3. 1980 के दशक के मुद्दे-1980 के दशक और उसके बाद नारी आंदोलन के दौरान कानून सुधार का विशेष मुद्दा उठाया गया। खासतौर पर उस समय जब यह पाया गया कि स्त्रियों से सरोकार रखने वाले बहुत से कानूनों को 19वीं सदी से अब तक अपरिवर्तित रूप में ज्यों का त्यों रखा गया है।
4. वर्तमान के मुददे-वर्तमान में नारी आंदोलन के दौरान लैंगिक अन्याय का मुद्दा उभरा हुआ है। क्योंकि बाल-लैंगिक अनुपात में तेजी से गिरावट आ रही है और बालिकाओं के विरुद्ध अव्यक्त रूप से सामाजिक पक्षपातपूर्ण रवैया उत्पन्न हो रहा है, जो लैंगिक असमानता को नई चुनौतियाँ पेश करता है।
प्रश्न 19.
विषमता के सामाजिक स्वरूप की व्याख्या कीजिये।
अथवा
सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक कैसे हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक कैसे हैं ? सामाजिक विषमता और बहिष्कार सामाजिक किस प्रकार हैं, इसका विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया है
1. समूह से सम्बद्ध-सामाजिक विषमता एवं बहिष्कार सामाजिक इसलिए हैं क्योंकि ये व्यक्ति से नहीं बल्कि समूह से सम्बद्ध है । सामाजिक विषमता व्यक्तियों के बीच सहज या प्राकृतिक भिन्नता (योग्यता और प्रयास की भिन्नता) की वजह से नहीं है, बल्कि वह उस समाज द्वारा उत्पन्न की जाती है जिसमें वे रहते हैं। सामाजिक विषमता को सामाजिक स्तरीकरण के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है।
सामाजिक स्तरीकरण व्यक्तियों के बीच भिन्नता का प्रकार्य ही नहीं बल्कि समाज की एक विशिष्टता है। जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहता है तथा इसे विश्वास या विचारधारा द्वारा समर्थन मिलता है। इस प्रकार सामाजिक बहिष्कार के जरिये किसी व्यक्ति या समूह को समाज में पूरी तरह से घुलने-मिलने से रोका जाता है व अलग व पृथक् रखा जाता है तथा यह बहिष्कृत लोगों की इच्छा के विरुद्ध समाज द्वारा कार्यान्वित होता है। अतः स्पष्ट है कि सामाजिक विषमता और बहिष्कार सामाजिक हैं।
2. ये आर्थिक नहीं है-सामाजिक विषमता और बहिष्कार सामाजिक हैं क्योंकि ये आर्थिक नहीं हैं। ज्यादातर लोग अपने धर्म, लिंग, नृजातीयता, भाषा, जाति तथा विकलांगता की वजह से भेदभाव और बहिष्कार का सामना करते हैं, यद्यपि सामाजिक और आर्थिक असमानता में सामान्यतः एक मजबूत सम्बन्ध पाया जाता है।
3. ये व्यवस्थित तथा संरचनात्मक हैं-सामाजिक विषमता और बहिष्कार का एक निश्चित स्वरूप है। ये पूर्वाग्रहों पर आधारित होते हैं और पूर्वाग्रह ज्यादातर एक समूह के बारे में अपरिवर्तनीय, कठोर और रूढिबद्ध धारणाओं पर आधारित होते हैं। अतः सामाजिक भेदभाव आकस्मिक या अनायास रूप से नहीं बल्कि व्यवस्थित तरीके से होता है। यह समाज की संरचनात्मक विशेषताओं का परिणाम होता है।
प्रश्न 20.
जनगणना में विकलांगों के लिए अपनाया गया दृष्टिकोण 2011 के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
जनगणना में विकलांगों के लिए अपनाया गया दृष्टिकोण 2011
प्रश्न 21.
जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है, कैसे ? समझाइए।
उत्तर:
जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है। जाति व्यवस्था एक विशिष्ट भारतीय सामाजिक संस्था है जो विशेष जातियों में पैदा हुए व्यक्तियों के विरुद्ध भेदभावपूर्ण व्यवहार को लागू करती है एवं न्यायसंगत ठहराती है। भेदभाव का यह व्यवहार अपमानजनक, बहिष्कारी तथा शोषणकारी है।
1. व्यवसाय और प्रस्थिति के आधार पर वर्गीकृत-ऐतिहासिक रूप से प्रत्येक जाति एक व्यवसाय से जुड़ी थी अर्थात् एक विशेष जाति में जन्मा व्यक्ति उस व्यवसाय में भी जन्म लेता था जो उसकी जाति से जुड़ा था। उसके पास कोई विकल्प नहीं था। दूसरे, प्रत्येक जाति का, सामाजिक प्रस्थिति के अधिक्रम में, एक विशेष स्थान भी होता था।
2. प्रत्येक वृहत व्यावसायिक श्रेणी के अन्दर पुनः श्रेणीक्रम-सिर्फ सामाजिक प्रस्थिति के अनुसार ही व्यावसायिक श्रेणियाँ श्रेणीबद्ध नहीं थी, बल्कि प्रत्येक वृहत् व्यावसायिक श्रेणी के अन्दर पुनः श्रेणीक्रम था।
3. धर्मग्रन्थ के सख्त नियम-धर्मग्रन्थ के सख्त नियमों के अनुसार सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति को निश्चित रूप से अलग रखा जाता था। उदाहरण के लिए, अनुष्ठानिक रूप से सबसे ऊँची जाति-ब्राह्मण को धन-संचय की अनुमति नहीं थे। ब्राह्मण धार्मिक क्षेत्र में सर्वोपरि होने के बावजूद क्षेत्रीय राजाओं की लौकिक शक्ति के अधीन होते थे या राजा अनुष्ठानिक धार्मिक क्षेत्र में ब्राह्मणों के अधीन होते थे।
4. व्यवहार में सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति में घनिष्ठ सम्बन्ध-व्यवहार में सामाजिक तथा आर्थिक प्रस्थिति में घनिष्ठ सम्बन्ध था। उच्च जातियाँ प्रायः निर्विवाद रूप से उच्च आर्थिक स्थिति की थीं, जबकि दलित जातियाँ निम्न आर्थिक स्थिति की होती थी।
इससे स्पष्ट होता है कि जाति एक भेदभावपूर्ण व्यवस्था है, यद्यपि आज पहले की अपेक्षा व्यावसायिक परिवर्तन आसान हो गया है तथापि जाति-वर्ग का परस्पर सम्बन्ध वृहत् स्तर पर अभी भी पूरी तरह कायम है।
प्रश्न 22.
दक्षिण अफ्रीका में किस प्रकार समाज को प्रजाति के आधार पर श्रेणीबद्ध किया गया है ?
उत्तर:
प्रजाति के आधार पर समाज की श्रेणीबद्धता-भारत की जाति प्रथा की तरह दक्षिण अफ्रीका में प्रजाति के आधार पर समाज को श्रेणीबद्ध किया गया है। लगभग हर सात दक्षिणी अफ्रीकी व्यक्ति में से एक यूरोपीय वंश का है, फिर भी दक्षिण अफ्रीका के अलंपसंख्यक खेतों का वहाँ की शक्ति एवं सम्पदा पर प्रबल अधिकार है। प्रजाति के पृथक्करण का कानून-20वीं सदी के प्रारम्भ में ब्रिटिश ने दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य पर अपना नियन्त्रण कर लिया। अपने राजनैतिक नियन्त्रण को सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक श्वेतों ने रंगभेद अथवा प्रजाति के पृथक्करण की नीति को विकसित किया। 1948 में कानूनी मान्यता दी गई। इसके अनुसार बहुसंख्यक दक्षिण अफ्रीकी अश्वेतों को वहाँ की नागरिकता, जमीन के स्वामित्व से तथा सरकार में शामिल होने के औपचारिक अधिकार से वंचित कर दिया गया।
प्रजाति के आधार पर वर्गीकरण तथा मिश्रित विवाह पर पाबंदी-प्रत्येक व्यक्ति को प्रजाति के आधार पर वर्गीकरण किया गया तथा मिश्रित विवाह पर पाबंदी लगा दी गई।
प्रजाति आधारित आय-एक प्रजातीय जाति के रूप में अश्वेतों के पास कम आय वाली नौकरियाँ थीं। सामान्य तौर पर श्वेतों द्वारा प्राप्त आय की तुलना में उनकी आय सिर्फ एक-चौथाई थी। अश्वेतों को गृहक्षेत्रों में बलपूर्वक स्थापन-20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में लाखों अश्वेतों को गृहक्षेत्रों में बलपूर्वक पुनः स्थापित किया गया जो गंदगी से भरा गरीब क्षेत्र था, जहाँ आधारभूत संरचना, उद्योग तथा नौकरी बिल्कुल नहीं थी। सभी गृहक्षेत्र एकसाथ मिलकर पूरे दक्षिण अफ्रीका की सिर्फ 14 प्रतिशत जमीन का हिस्सा थे जबकि उनकी जनसंख्या 80 प्रतिशत थी। परिणामतः ये लोग घोर गरीबी में जी रहे थे। श्वेत अपने शासन को बनाए रखने के लिए सैन्य शक्तिशाली व्यवस्था पर आश्रित थे। शासकीय आतंक के बावजूद अश्वेतों ने दशकों तक एकजुट होकर अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस और नेल्सन मण्डेला के नेतृत्व में संघर्ष किया और अन्ततः 1994 में उनकी सरकार बनी । यद्यपि रंगभेद नीति पर अब प्रतिबन्ध लगा दिया गया है तथा आर्थिक पूँजी अभी भी श्वेत लोगों के हाथ में केन्द्रित है।
प्रश्न 23.
'भूमि और प्राकृतिक संसाधनों से सम्बन्धित झगड़े भारत के विकास की चुनौती के केन्द्र-बिन्दु रहे हैं।' समझाइये।
उत्तर:
भूमि और प्राकृतिक संसाधनों से सम्बन्धित झगड़े भारत के विकास की चुनौती के केन्द्र-बिन्दु के रूप में-आज भारत के पर्यावरण और विकास के क्षेत्र से जुड़े अनेक प्रमुख मुद्दे गड्डमड्ड हैं। उदाहरण के लिए, उड़ीसा के कलिंगानगर क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार है, लेकिन यहाँ के निवासी खास तौर पर छोटे किसान और श्रमिक घोर गरीबी की पीड़ा सह रहे हैं । इस इलाके में खनिज लोहे का जो भरपूर भण्डार है वह तो राज्य की सम्पत्ति है और उनके विकास का अर्थ है कि आदिवासी भूमियों को राज्य द्वारा अनिवार्य रूप से कौड़ियों के भाव अधिग्रहीत कर लेना। हो सकता है कि थोड़े से स्थानीय निवासियों को औद्योगिक क्षेत्र में कोई छोटी-मोटी नौकरी हाथ लग जाए पर अधिकांश आदिवासी लोग तो आगे और भी गरीब हो जाएंगे और उन्हें दिहाड़ी मजदूरी के रूप में भुखमरी की कगार पर जीवन-यापन करना होगा।
भूमि अधिग्रहण और विस्थापन–भारत के स्वतन्त्र होने के बाद से इस भूमि अधिग्रहण नीति के परिणामस्वरूप लगभग तीन करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं। उनमें से लगभग 75 प्रतिशत अभी भी पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे हैं । भूमि अधिग्रहण की यह प्रक्रिया इसलिए न्यायोचित ठहराई जाती है क्योंकि यह जनहित में है और राज्य
औद्योगिक उत्पादन और आधारभूत ढाँचे का विस्तार करके आर्थिक संवृद्धि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और यह दावा किया जाता है कि राष्ट्र के विकास के लिए ऐसी संवृद्धि आवश्यक है।
आर्थिक उदारीकरण-1990 से आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत राज्य को कल्याण कार्यों से वंचित कर दिया गया है और निजी कर्मों को नियन्त्रित करने वाले संस्थागत उपकरणों को खत्म कर दिया गया है। सरकार द्वारा मोटी मुनाफाखोरी-भूमि अधिग्रहण के तहत सरकार औद्योगिक विकास के नाम पर बहुत कम दामों पर किसानों से जमीन खरीद लेती है और उसे निजी फर्मों को कई गुना अधिक दामों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाती है। इस स्थितियों ने सरकार के उन नागरिकों को कंगाल बना दिया है जिन्हें संरक्षण प्रदान करने का दायित्व सरकार का था। यही कारण है कि भूमि और प्राकृतिक संसाधनों से सम्बन्धित झगड़े भारत के विकास की चुनौती के केन्द्र-बिन्दु बन रहे हैं क्योंकि आदिवासी किसान विस्थापन, गरीबी, धोखाधड़ी आदि के कारण भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं।