Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Important Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
भारतीय समाज प्राथमिक रूप से ग्रामीण समाज ही है, क्योंकि
(क) यहाँ के अधिकांश लोग गाँव में रहते हैं
(ख) अधिकांश लोग शहरों में रहते हैं
(ग) 50% लोग गाँव में रहते हैं
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) यहाँ के अधिकांश लोग गाँव में रहते हैं
प्रश्न 2.
2001 के अनुसार भारत के कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं ?
(क) 50 प्रतिशत
(ख) 67 प्रतिशत
(ग) 40 प्रतिशत
(घ) 70 प्रतिशत
उत्तर:
(ख) 67 प्रतिशत
प्रश्न 3.
भारतीयों के लिए उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन कौनसा है ?
(क) भूमि
(ख) कारखाना
(ग) उद्योग-धन्धे
(घ) कुटीर उद्योग-धन्धे
उत्तर:
(क) भूमि
प्रश्न 4.
नव वर्ष में तमिलनाडु में कौनसा त्योहार मनाया जाता है ?
(क) बीहू
(ख) बैसाखी
(ग) पोंगल
(घ) उगाड़ी
उत्तर:
(ग) पोंगल
प्रश्न 5.
आसाम में नव वर्ष में कौनसा त्योहार मनाया जाता है?
(क) बीहू
(ख) बैसाखी
(ग) उगाड़ी
(घ) पोंगल
उत्तर:
(क) बीहू
प्रश्न 6.
कर्नाटक में फसल काटने के समय कौनसा त्योहार मनाया जाता है ?
(क) उगाड़ी
(ख) पोंगल
(ग) बीहू
(घ) बैसाखी
उत्तर:
(क) उगाड़ी
प्रश्न 7.
भारतीय कृषि मुख्य रूप से निर्भर करती है
(क) कृषि मजदूर पर
(ख) मानसून पर
(ग) जमीन के मालिक पर
(घ) उपर्युक्त सभी पर
उत्तर:
(ख) मानसून पर
प्रश्न 8.
प्रथम हरित क्रांति कब हुई?
(क) 1960-70 में
(ख) 1970-80 में
(ग) 1950-60 में
(घ) 1980-90 में
उत्तर:
(क) 1960-70 में
प्रश्न 9.
उत्तर प्रदेश में प्रवसन करने वाले मजदूर क्यों आते हैं ?
(क) भवन निर्माण हेतु
(ख) खेतों में काम करने हेतु
(ग) ईंट के भट्टों में कार्य करने हेतु
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ग) ईंट के भट्टों में कार्य करने हेतु
प्रश्न 10.
किस व्यवस्था के कारण, भारत के अधिकांश भागों में महिलाएँ जमीन की मालिक नहीं होती हैं ?
(क) उत्तराधिकार के नियमों और पितृवंशीय नातेदारी व्यवस्था के कारण
(ख) सीमित अधिकारों के कारण
(ग) संरचना संबंध के कारण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) उत्तराधिकार के नियमों और पितृवंशीय नातेदारी व्यवस्था के कारण
प्रश्न 11.
काश्तकार फसल से होने वाली आमदनी का कितना प्रतिशत जमीन के मालिक को किराया चुकाता है?
(क) 50 से 75 प्रतिशत
(ख) 60 से 70 प्रतिशत
(ग) 40 से 50 प्रतिशत
(घ) 20 से 30 प्रतिशत
उत्तर:
(क) 50 से 75 प्रतिशत
प्रश्न 12.
उत्तरी भारत के कई भागों में कौनसी पद्धति प्रचलन में है?
(क) बेगार
(ख) व्यवसाय
(ग) कृषि
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) बेगार
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
ग्रामीण जनसंख्या के लिए.............जीविका का एकमात्र महत्त्वपूर्ण स्रोत या साधन है।
उत्तर:
कृषि
प्रश्न 2.
बहुत से गाँव में रहने वाले लोगों की जीविका.............क्रियाकलापों से चलती है।
उत्तर:
अकृषि
प्रश्न 3.
.............के विभाजन अथवा संरचना सम्बन्ध के लिए अक्सर कृषिक संरचना शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।
उत्तर:
भूमि स्वामित्व
प्रश्न 4.
समाजशास्त्री.............ने भूस्वामित्व लोगों को प्रबल जाति का नाम दिया।
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवास
प्रश्न 5.
सबसे अच्छी जमीन और साधन............................एवं.............जातियों के पास थे।
उत्तर:
उच्च एवं मध्य
प्रश्न 6.
कृषि उत्पादन और.............के बीच एक सीधा सम्बन्ध होता है।
उत्तर:
कृषिक संरचना
प्रश्न 7.
सन्.............से.............के बीच में भूमि सुधार कानूनों की एक श्रृंखला को शुरू किया गया।
उत्तर:
1950, 1970
प्रश्न 8.
हरित क्रान्ति कार्यक्रम मुख्य रूप से गेहूँ तथा.............उत्पाद करने वाले क्षेत्रों पर ही लक्षित था।
उत्तर:
चावल
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
गेहूँ की फसल कटाई पर पंजाब में कौनसा त्यौहार मनाया जाता है ?
उत्तर:
वैशाखी का।
प्रश्न 2.
दक्षिणी गुजरात में प्रवसन करने वाले मजदूर क्यों आते हैं?
उत्तर:
ईंट - भट्टों में कार्य हेतु ।
प्रश्न 3.
2001 की जनगणना के अनुसार भारत के कितने प्रतिशत लोग गाँवों में रहते हैं ?
उत्तर:
67 प्रतिशत।
प्रश्न 4.
भारतीयों के लिए उत्पादन का महत्त्वपूर्ण साधन क्या है ?
उत्तर:
भूमि।
प्रश्न 5.
नव वर्ष में तमिलनाडु में कौनसा त्यौहार मनाया जाता है ?
उत्तर:
पोंगल।
प्रश्न 6.
आसाम में नव वर्ष में कौनसा त्यौहार मनाया जाता है ?
उत्तर:
बीहू।
प्रश्न 7.
कर्नाटक में फसल कटाई पर कौनसा त्यौहार मनाया जाता है?
उत्तर:
उगाड़ी।
प्रश्न 8.
पुजारी, ज्योतिषी प्रायः किस जाति से सम्बन्धित होते हैं ?
उत्तर:
ब्राह्मण।
प्रश्न 9.
ग्रामीण जनसंख्या के लिए जीविका का एक मात्र साधन क्या है ?
अथवा
ग्रामीण समाज में जीविका का महत्त्वपूर्ण साधन और सम्पत्ति क्या है ?
उत्तर:
कृषि योग्य भूमि।
प्रश्न 10.
भूमि सुधार की तीसरी मुख्य श्रेणी में किससे सम्बन्धित अधिनियम थे?
उत्तर:
भूमि की हदबंदी।
प्रश्न 11.
प्रत्येक क्षेत्र में हदबंदी किन कारकों पर निर्भर थे?
उत्तर:
भूमि के प्रकार, उपज और अन्य इसी प्रकार के कारकों पर।
प्रश्न 12.
भारत के अधिकांश भागों में महिलाएँ.जमीन की मालिक नहीं होतीं। इसके दो प्रमुख कारण लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 13.
कृषि संरचना शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया जाता है ?
उत्तर:
भूमि स्वामित्वों के विभाजन के सम्बन्ध में।
प्रश्न 14.
भारतीय कृषि मुख्य रूप से किस बात पर निर्भर करती है?
उत्तर:
मानसून पर।
प्रश्न 15.
गुजरात में बंधुआ मजदूर प्रथा को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
हलपति।
प्रश्न 16.
कर्नाटक में बंधुआ मजदूर व्यवस्था को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
जीता।
प्रश्न 17.
रैयतवाड़ी व्यवस्था में रैयत का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
कृषक।
प्रश्न 18.
प्रथम हरित क्रांति कब हई?
उत्तर:
सन् 1960 - 70 की अवधि में।
प्रश्न 19.
हरित क्रांति का लाभ किसे प्राप्त हुआ?
उत्तर:
बड़े व मध्यम किसान को।
प्रश्न 20.
हरित क्रांति के प्रथम चरण को किन क्षेत्रों में लागू किया गया?
उत्तर:
गेहूँ-चावल उत्पादन के सिंचाई वाले क्षेत्रों में।
प्रश्न 21.
हरित क्रांति पैकेज की प्रथम लहर किन-किन राज्यों में फैली? (कोई दो राज्य बताइये।)
उत्तर:
प्रश्न 22.
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था में जमींदार के स्थान पर वास्तविक कृषक ही टैक्स चुकाने के लिए जिम्मेदार होता है।
प्रश्न 23.
बाजारोन्मुखी कृषि में कितनी फसलें उगाई जाती हैं ?
उत्तर:
एक फसल।
प्रश्न 24.
केरल का ग्रामीण क्षेत्र कौनसी अर्थव्यवस्था वाला है?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला।
प्रश्न 25.
हरित क्रान्ति की रणनीति की एक नकारात्मक परिणति क्या है ?
उत्तर:
क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि।
प्रश्न 26.
कृषि के व्यापारीकरण से ग्रामीण समाज में आए किसी एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रवासी कृषि मजदूरों में वृद्धि।
प्रश्न 27.
प्रवसन करने वाले मजदूर मुख्यत: कहाँ से आते हैं ?
उत्तर:
सूखाग्रस्त, कम उत्पादकता वाले तथा कम रोजगार वाले क्षेत्रों से।
प्रश्न 28.
प्रवसन वाले मजदूर पंजाब व हरियाणा क्यों आते हैं ?
उत्तर:
खेतों में काम करने के लिए।
प्रश्न 29.
उत्तर प्रदेश में प्रवसन करने वाले मजदूर क्यों आते हैं ?
उत्तर:
ईंट के भट्टों में कार्य करने हेतु।
प्रश्न 30.
उत्तरी भारत में कानून के प्रतिबन्ध के बावजूद कौनसी पद्धति प्रचलन में है?
उत्तर:
बेगार और मुक्त मजदूरी जैसी पद्धति।
प्रश्न 31.
उत्तर प्रदेश की दो प्रबल जातियों के उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 32.
कर्नाटक की दो प्रबल जातियाँ कौनसी हैं ?
उत्तर:
प्रश्न 33.
आंध्रप्रदेश की दो प्रबल जातियाँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 34.
नयी दिल्ली या बंगलौर जैसे शहरों में प्रवसन मजदूर क्यों आते हैं ?
उत्तर:
भवन निर्माण कार्यों के लिए।
प्रश्न 35.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कृषि मदों के विक्रेता के रूप में प्रवेश किस कारण से हुआ?
उत्तर:
कृषि के भूमण्डलीकरण के कारण।
प्रश्न 36.
ग्रामीण वर्ग संरचना को आकार कौन देता है?
उत्तर:
भूमि रखना ग्रामीण वर्ग संरचना को आकार देता है।
प्रश्न 37.
घुमक्कड़ मजदूर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रवसन करने वाले मजदूरों को।
प्रश्न 38.
जान ब्रेमन ने प्रवसन करने वाले मजदूरों को क्या कहा है ?
उत्तर:
घुमक्कड़ मजदूर।
प्रश्न 39.
W.T.O. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
W.T.O. का पूरा नाम 'विश्व व्यापार संगठन' है।
प्रश्न 40.
हरित क्रांति का दूसरा चरण कहाँ लागू किया गया?
उत्तर:
सूखे वाले तथा आंशिक सिंचित क्षेत्रों में।
प्रश्न 41.
ग्रामीण भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना किससे बहुत निकटता से जुड़ी है ?
उत्तर:
कृषि और कृषिक जीवन पद्धति से।
प्रश्न 42.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित किन्हीं दो प्रकार के दस्तकार या कारीगरों का नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 43.
भारत के अधिकांश क्षेत्रों में भूस्वामित्व वाले समूह के लोग किस वर्ण के हैं ?
उत्तर:
शूद्र या क्षत्रिय वर्ण के।
प्रश्न 44.
भूस्वामियों तथा कृषि मजदूरों के मध्य सम्बन्धों की प्रकृति में परिवर्तन का वर्णन समाजशास्त्री जान ब्रेमन ने किस रूप में किया था?
उत्तर:
संरक्षण से शोषण की ओर बदलाव के रूप में।
प्रश्न 45.
प्रधान भूमिधारक समूहों के दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 46.
ग्रामीण भारत में व्यवसायों की भिन्नता किस व्यवस्था को इंगित करती है ?
उत्तर:
जाति - व्यवस्था को।
प्रश्न 47.
भूस्वामियों तथा कृषि मजदूरों के मध्य सम्बन्धों में बदलाव कहाँ अधिक हआ?
उत्तर:
जहाँ कृषि का व्यापारीकरण अधिक हुआ।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति कार्यक्रम किन क्षेत्रों में लाग किया गया?
उत्तर:
हरित क्रांति कार्यक्रम उन्हीं क्षेत्रों में लागू किया गया था जहाँ सिंचाई का समुचित प्रबंध था क्योंकि नए बीजों तथा कृषि पद्धति हेतु समुचित जल की आवश्यकता थी।
प्रश्न 2.
हरित क्रांति से क्या तात्पर्य है ?
अथवा
हरित क्रांति क्या है?
उत्तर:
हरित क्रांति कृषि आधुनिकीकरण का एक सरकारी कार्यक्रम था। इसके लिए आर्थिक सहायता अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा दी गई थी। यह संकर बीजों, कीटनाशकों, खादों तथा किसानों को अन्य निवेश देने पर केन्द्रित थी।
प्रश्न 3.
जमींदारी व्यवस्था के दो परिणाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 4.
जीवन निर्वाही कृषि का क्या आशय है?
उत्तर:
जीवन निर्वाही कृषि का आशय है-कृषि में पैदा की गई वस्तुओं का इस्तेमाल किसान अपने घर में ही करता है।
प्रश्न 5.
विभेदीकरण की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
हरित क्रांति की अंतिम परिणति 'विभेदीकरण' एक ऐसी प्रक्रिया थी जिसमें धनी अधिक धनी हो गए तथा कई निर्धन पूर्ववत रहे या अधिक गरीब हो गए।
प्रश्न 6.
'ठेके पर खेती' या 'संविदा खेती' के दो दोष लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 7.
जो गैर - कृषि गतिविधियाँ और व्यवसाय ग्रामीण समाज के अंग हैं, उनमें कौन शामिल हैं?
उत्तर:
जो गैर-कृषि गतिविधियाँ और व्यवसाय ग्रामीण समाज के अंग हैं, उनमें अनेक कारीगर और दस्तकार शामिल हैं, जैसे-कुम्हार, खाती, लोहार, जुलाहे, सुनार आदि।
प्रश्न 8.
'कृषिक संरचना' शब्द का क्या आशय है ?
उत्तर:
'कृषिक संरचना' से हमारा आशय है-ग्रामीण भारत में जाति तथा वर्ग जिसमें कृषक समाज को उसकी संरचना से पहचाना जाता है।
प्रश्न 9.
फसल काटते समय देश में कौन-कौन से त्यौहार मनाए जाते हैं और ये किसकी घोषणा करते हैं?
उत्तर:
फसल काटते समय देश के विभिन्न क्षेत्रों में पोंगल, बीहू, बैसाखी तथा उगाड़ी नामक त्यौहार मनाए जाते हैं और ये नये कृषि मौसम के आने की घोषणा करते हैं।
प्रश्न 10.
श्रीनिवास के अनुसार प्रबल जाति कौनसी होती है ?
उत्तर:
वे जातियाँ जो भूस्वामी होती हैं और संख्या के आधार पर भी अधिक होती हैं; वे आर्थिक और राजनैतिक रूप से स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बनाए रखती हैं, प्रबल जाति होती हैं।
प्रश्न 11.
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की कृषि स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की कृषि स्थिति निराशाजनक थी। पैदावार कम होती थी तथा आयातित अनाज पर निर्भरता बनी हुई थी।
प्रश्न 12.
हरित क्रांति के दो सकारात्मक प्रभाव बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति की दो आलोचनाएँ लिखें।
उत्तर:
प्रश्न 14.
काश्तकार किसान किसे कहते हैं ?
उत्तर:
काश्तकार किसान वे किसान हैं, जो परिवार की आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने में सक्षम होते हैं।
प्रश्न 15.
स्वातंत्र्योत्तर काल में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सम्बन्धों में कौनसे बदलाव आए?
उत्तर:
प्रश्न 16.
गाँवों में परम्परागत और आधुनिक गैर-कृषि व्यवसायों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 17.
संविदा खेती का समाजशास्त्रीय महत्त्व क्या है?
उत्तर:
संविदा खेती का समाजशास्त्रीय महत्त्व यह है कि यह बहुत से व्यक्तियों को उत्पादन प्रक्रिया से अलग कर देती है तथा उनके अपने देशीय कृषि ज्ञान को निरर्थक बना देती है। साथ ही यह प्रायः पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित नहीं होती।
प्रश्न 18.
पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था किस पर आधारित होती है ?
उत्तर:
पूँजीवादी उत्पादन व्यवस्था, उत्पादन के साधनों से मजदूरों के पृथक्करण तथा मुक्त दिहाड़ी मजदूरी व्यवस्था पर आधारित होती है।
प्रश्न 19.
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उदेश्य बताइये।
उत्तर:
विश्व व्यापार संगठन का मुख्य उद्देश्य है। अधिक मुक्त अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, जिसमें भारतीय बाजारों को आयात हेतु खोलने की आवश्यकता है।
प्रश्न 20.
भूमि की हदबंदी अधिनियम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भूमि की हदबंदी अधिनियम के तहत एक विशिष्ट परिवार के लिए जमीन रखने की उच्चतम सीमा तय कर दी गई। प्रत्येक क्षेत्र में हदबंदी भूमि के प्रकार और अन्य कारणों पर निर्भर थी, जैसे
प्रश्न 21.
स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण समाज में हुए किन्हीं चार परिवर्तनों के बारे में व्याख्या करें।
अथवा
स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आए हैं ?
उत्तर:
स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ हरित क्रांति लागू हुई, वहाँ सामाजिक सम्बन्धों की प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आए हैं
प्रश्न 22.
भूमि सीमा अधिनियम का क्या अर्थ है ? अधिकांश राज्यों में यह बे-असर क्यों सिद्ध हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में दो तर्क दीजिये।
उत्तर:
भूमि सीमा अधिनियम के तहत एक विशिष्ट परिवार के लिए कृषि जमीन रखने की उच्चतम सीमा तय कर दी गई है। अधिकांश राज्यों में यह बे - असर हुआ क्योंकि
प्रश्न 23.
उन क्षेत्रों में क्या परिवर्तन हुए जहाँ कृषि का अधिक व्यवसायीकरण हो गया?
उत्तर:
कृषि के अधिक व्यवसायीकरण वाले क्षेत्रों, जैसे - पंजाब और कर्नाटक में 'संविदा खेती पद्धति' का प्रचलन हुआ जिसमें कंपनियाँ उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करती हैं तथा बीज तथा अन्य वस्तुएँ निवेश के रूप में उपलब्ध कराती हैं तथा पूर्व निर्धारित मूल्य पर उपज खरीद लेती हैं। इससे किसान जीवन-व्यापार के लिए इन कंपनियों पर निर्भर हो गये। दूसरे, इन क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का बीज, कीटनाशक व खाद के विक्रेता के रूप में प्रवेश हो गया।
प्रश्न 24.
ग्रामीण भारत में प्रचलित विभिन्न जाति आधारित व्यवसायों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ग्रामीण भारत में अधिकांश लोगों का जीवनयापन का मुख्य साधन कृषि है। इसके अतिरिक्त अनेक जातिगत व्यवसाय भी यहाँ विद्यमान हैं। अनेक कारीगर या दस्तकार जैसे - कुम्हार, खाती, जुलाहे, धोबी, लोहार, सुनार आदि; बहुत से अन्य विशेषज्ञ जैसे-कहानी सुनाने वाले, ज्योतिषी, पुजारी, भिश्ती, तेली आदि यहाँ रहते हैं।
प्रश्न 25.
'बेगार' या 'मुफ्त मजदूरी' का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
गाँव के जमींदार या भूस्वामी के यहाँ निम्न जाति के समूह के सदस्य, वर्ष में कुछ निश्चित दिनों तक, संसाधनों की कमी और भूस्वामियों की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सहायता लेने के लिए, पीढ़ियों से उनके यहाँ बंधुआ मजदूर की तरह काम करते आ रहे हैं। उन्हें वेतन नहीं दिया जाता। इसे बेगार या मुफ्त मजदूरी कहते हैं।
प्रश्न 26.
जमींदार का अर्थ बताइये। उत्तर:जमींदार वे भूस्वामी होते थे, जो अपने क्षेत्र में राजनीतिक रूप से भी शक्तिशाली होते थे। सामान्यतः ये क्षत्रिय या अन्य ऊँची जाति के होते थे। भूमि पर नियंत्रण रखते थे। किसान जो उसकी भूमि पर कार्य करता था, जमींदार उससे टैक्स के रूप में अधिकाधिक उपज और पैसा ले लेते थे।
प्रश्न 27.
जमींदारी व्यवस्था के समाप्त होने के परिणाम बताइये।
उत्तर:
जमींदारी व्यवस्था के समाप्त होने से निम्न परिणाम सामने आए
प्रश्न 28.
रैयतवाड़ी व्यवस्था को समझाइये।
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था में जमींदार के स्थान पर वास्तविक कृषक ही टैक्स चुकाने के लिए जिम्मेदार होते थे। रैयतवाड़ी व्यवस्था सीधी ब्रिटिश शासन के अधीन थी। औपनिवेशिक सरकार सीधा किसानों से ही सरोकार रखती थी। इससे कृषक को कृषि में निवेश हेतु प्रोत्साहन मिलता था।
प्रश्न 29.
मजदूरों के बड़े पैमाने पर संचार से ग्रामीण समाज पर क्या प्रभाव पड़े हैं ?
उत्तर:
मजदूरों के बड़े पैमाने पर संचार से ग्रामीण समाज में कृषि मूलरूप से महिलाओं का एक कार्य बन गया है। कृषि मजदूरों का महिलाकरण हो रहा है। अब महिलाएँ भूमि पर भूमिहीन मजदूर तथा कृषक के रूप में श्रम करती हैं। महिलाओं को भूमि स्वामित्व से दूर रखने की व्यवस्था में भी परिवर्तन आने लगे हैं।
प्रश्न 30.
सरकार के द्वारा कृषि विकास कार्यक्रमों में कमी करने से कृषि विस्तार एजेण्टों का स्थान गाँवों में किसने ले लिया है ? इसके क्या परिणाम रहे ?
उत्तर:
सरकार के द्वारा कृषि विकास कार्यक्रमों में कमी करने से कृषि विस्तार एजेण्टों का स्थान गाँवों में बीज, खाद तथा कीटनाशक कंपनियों के एजेण्टों ने ले लिया है। इससे किसानों की महँगी खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ी है, उनका लाभ कम हुआ है, वे ऋणी हो गये हैं तथा गाँवों में पर्यावरण संकट भी बढ़ा है।
प्रश्न 31.
भूमण्डलीकरण ने भारतीय किसान को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया। अपने विचार लिखें।
उत्तर:
भूमण्डलीकरण के कारण बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के एजेन्टों ने गाँव में बीज, खाद तथा कीटनाशकों को किसानों को महँगी दर पर बेचा। सरकार द्वारा कृषि रियायतों में कमी करने से उत्पादन लागत में तेजी से वृद्धि हुई। सीमान्त किसानों के उत्पादन बढ़ाने के लिए अपनी कृषि में इस महँगे निवेश के लिए अत्यधिक उधार लिया । बीमारी या प्राकृतिक आपदा आदि के कारण खेती के न होने तथा बाजार मूल्य के अभाव के कारण कर्ज का बोझ उठाने तथा अपने परिवारों को चलाने में असमर्थ हो जाने पर आत्महत्यायें की हैं।
प्रश्न 32.
भारतीयों के लिए भूमि का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
भारत की जनसंख्या का 67 प्रतिशत भाग कृषि पर निर्भर है। अतः भारतीयों के लिए भूमि उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। यह सम्पत्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रकार भी है। उनके लिए कृषि के रूप में जीविका का एक प्रकार है तथा यह जीने का एक तरीका भी है।
प्रश्न 33.
कृषिक संरचना में कृषि मजदूरों की स्थिति को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
कृषिक संरचना में कृषि मजदूरों की स्थिति सबसे बदतर होती है। उन्हें अक्सर निम्नतम निर्धारित मूल्य से कम दिया जाता है और वे बहुत कम कमाते हैं। उनका रोजगार असुरक्षित होता है। अधिकांश कृषि-मजदूर रोजाना दिहाडी कमाने वाले होते हैं और वर्ष में काफी दिन वे बेरोजगार रहते हैं।
प्रश्न 34.
भू-स्वामी वर्ग और जाति के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत के अधिकांश क्षेत्रों में भूस्वामित्व वाले समूह के लोग क्षत्रिय वर्ण के हैं। प्रत्येक क्षेत्र में सामान्यत: एक या दो जातियों के लोग ही भूस्वामी होते हैं। वे संख्या के आधार पर भी महत्त्वपूर्ण हैं। श्रीनिवास ने ऐसे लोगों को 'प्रबल जाति' का नाम दिया है, जो आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से प्रभुत्वशाली होती है।
प्रश्न 35.
पट्टेदारी का उन्मूलन अधिनियम क्या है ?
उत्तर:
पट्टेदारी का उन्मूलन और नियंत्रण या नियमन अधिनियम: इस कानून के तहत पट्टेदारी को पूरी तरह से हटाने का प्रयत्न किया या किराए के नियम बनाए ताकि पट्टेदार को कुछ सुरक्षा मिल सके। लेकिन अधिकतर राज्यों में यह कानून कभी भी प्रभावशाली तरीके से लागू नहीं किया गया।
प्रश्न 36.
"भारत में 'संविदा खेती' प्रारम्भ हो गई है।" स्पष्ट करो।
उत्तर:
भारत में 'संविदा खेती' प्रारम्भ हो गई है। उदाहरण के लिए पंजाब और कर्नाटक जैसे कुछ क्षेत्रों में किसानों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों (जैसे-पेप्सी, कोक) से कुछ निश्चित फसलें, जैसे - टमाटर और आलू, उगाने की संविदा दी गई, जिन्हें ये कम्पनियाँ उनसे प्रसंस्करण अथवा निर्यात हेतु खरीद लेती हैं।
प्रश्न 37.
भूमि की हदबंदी अधिनियम को समझाइए।
उत्तर:
भूमि की हदबंदी अधिनियम: भूमि की हदबन्दी के नियम के तहत एक विशिष्ट परिवार के लिए जमीन रखने की उच्चतम सीमा तय कर दी गई। प्रत्येक क्षेत्र में हदबंदी भूमि के प्रकार, उपज और अन्य इसी प्रकार के कारकों पर निर्भर थी। बहुत अधिक उपजाऊ जमीन की हदबंदी कम थी, जबकि अनुपजाऊ, बिना पानी वाली जमीन की हदबंदी अधिक सीमा तक थी। यह राज्यों का कार्य था कि वे निश्चित करें कि अतिरिक्त भूमि को वह अधिगृहित कर लें और इसे भूमिहीन परिवारों को तय की गई श्रेणी के अनुसार पुनः वितरित कर दें जैसे-अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में।
प्रश्न 38.
"कृषि मजदूरों की मांग बढ़ने से मजदूरों में मौसमी पलायन का एक प्रतिमान उभरा।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि मजदूरों की माँग बढ़ने से मजदूरों में मौसमी पलायन का एक प्रतिमान उभरा। इन क्षेत्रों में प्रवासी कृषि मजदूरों की बढ़ोतरी हुई। इसके अन्तर्गत हजारों मजदूर अपने गाँवों से अधिक सम्पन्न क्षेत्रों, जहाँ मजदूरों की माँग अधिक तथा उच्च मजदूरी थी, की तरफ संचार करते हैं। प्रवसन करने वाले मजदूर मुख्यतः सूखाग्रस्त तथा कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से आते हैं तथा वे वर्ष के कुछ हिस्सों के लिए पंजाब तथा हरियाणा के खेतों में, उत्तर प्रदेश के ईंट-भट्टों में, नई दिल्ली तथा बंगलौर शहरों में भवन निर्माण कार्य में काम करने के लिए जाते हैं।
प्रश्न 39.
सामाजिक असमानता में वृद्धि को समझाइए।
उत्तर:
सामाजिक असमानता में वृद्धि-हरित क्रांति के फलस्वरूप 1960 तथा 1970 के दशकों में, नयी तकनीक के लागू होने से ग्रामीण समाज में असमानताएँ बढ़ने लगीं। अच्छी आर्थिक स्थिति वाले किसान जिनके पास जमीन, पूँजी, तकनीक तथा जानकारी थी तथा जो नए बीजों और खादों में पैसा लगा सकते थे, वे अपना उत्पादन बढ़ा सके और अधिक पैसा कमा सके। लेकिन सीमान्त कृषक और कृषि मजदूरों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। अतः हरित क्रांति के फलस्वरूप धनी किसान और सम्पन्न हो गये तथा भूमिहीन और सीमान्त भूधारकों की दशा और बिगड़ गई।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रारम्भ किये गये प्रमुख भूमि सुधार क्या थे ?
अथवा
सन् 1950 से 1970 के बीच बनाये गये भूमि सुधार कानूनों को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
सन् 1950 से 1970 के बीच में भूमि सुधार कानूनों की एक श्रृंखला को शुरू किया गया। इसे राष्ट्रीय स्तर के साथ राज्य स्तर पर भी चलाया गया। इसके द्वारा निम्न परिवर्तनों को लाया गया था
1. जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करना:
विधेयक के क्षेत्र में पहला सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन थाजमींदारी व्यवस्था को समाप्त करना। इससे उन बिचौलियों की फौज समाप्त हो गई जो कि कृषक और राज्य के बीच में थी। यह महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भूमि पर जमींदारों के उच्च अधिकारों को दूर करने में और उनकी आर्थिक एवं राजनीतिक शक्तियों को कम करने में सफल रहा।
2. पट्टेदारी का उन्मूलन और नियंत्रण या नियमन अधिनियम:
इस कानून के तहत पट्टेदारी को पूरी तरह से हटाने का प्रयत्न किया या किसए के नियम बनाए ताकि पट्टेदार को कुछ सुरक्षा मिल सके। लेकिन अधिकतर राज्यों में यह कानून कभी भी प्रभावशाली तरीके से लागू नहीं किया गया।
3. भूमि की हदबंदी अधिनियम:
भूमि की हदबन्दी के नियम के तहत एक विशिष्ट परिवार के लिए जमीन रखने की उच्चतम सीमा तय कर दी गई। प्रत्येक क्षेत्र में हदबंदी भूमि के प्रकार, उपज और अन्य इसी प्रकार के कारकों पर निर्भर थी। बहुत अधिक उपजाऊ जमीन की हदबंदी कम थी, जबकि अनुपजाऊ, बिना पानी वाली जमीन की हदबंदी अधिक सीमा तक थी। यह राज्यों का कार्य था कि वे निश्चित करें कि अतिरिक्त भूमि को वह अधिगृहित कर लें और इसे भूमिहीन परिवारों को तय की गई श्रेणी के अनुसार पुनः वितरित कर दें जैसे-अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में।इसमें कुछ बड़ी जागीरों या जायदादों (एस्टेट) को तोड़ दिया गया, लेकिन अधिकतर मामलों में भूस्वामियों ने अपनी भूमि रिश्तेदारों या अन्य लोगों के बीच विभाजित कर दी।
प्रश्न 2.
हरित क्रांति के दुष्परिणाम क्या थे?
अथवा
हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव या दुष्परिणाम हरित क्रांति के कुछ नकारात्मक प्रभाव या दुष्परिणाम निम्नलिखित थे:
1. सीमान्त कृषक और कृषि मजदूरों को कोई काम नहीं:हरित क्रांति के अधिकतर क्षेत्रों में मूल रूप से मध्यम तथा बड़े किसान ही नयी तकनीक का लाभ उठा सके। इसका कारण यह था कि इसमें किया जाने वाला निवेश महँगा था जिनका व्यय छोटे तथा सीमान्त किसान उठाने में उतने सक्षम नहीं थे जितने कि बड़े किसान।
2. सामाजिक असमानता में वृद्धि: हरित क्रांति के फलस्वरूप 1960 तथा 1970 के दशकों में, नयी तकनीक के लागू होने से ग्रामीण समाज में असमानताएँ बढ़ने लगीं। अच्छी आर्थिक स्थिति वाले किसान जिनके पास जमीन, पूँजी, तकनीक तथा जानकारी थी तथा जो नए बीजों और खादों में पैसा लगा सकते थे, वे अपना उत्पादन बढ़ा सके और अधिक पैसा कमा सके। लेकिन सीमान्त कृषक और कृषि मजदूरों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
3. पट्टेदार कृषकों की बेदखली: हरित क्रांति से पट्टेदार कृषकों तथा सेवा प्रदान करने वाली जातियों की बेदखली हो गई। इस बेदखली की प्रक्रिया ने ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर प्रवसन की गति और भी बढ़ा दिया।
4. कृषि मजदूरों की आर्थिक दशा का बिगड़ना: हरित क्रांति से कई क्षेत्रों में मजदूरों की मांग बढ़ने से कृषि मजदूरों के रोजगार तथा उनकी दिहाड़ी में भी बढ़ोतरी हुई।
5. क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि हरित क्रांति की रणनीति की एक नकारात्मक परिणति क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि थी। वे क्षेत्र जहाँ यह तकनीकी परिवर्तन हुआ अधिक विकसित हो गये, जबकि अन्य क्षेत्र पूर्ववत् रहे।
6. हिंसा को बढ़ावा: हरित क्रांति के दौर में जो क्षेत्र अविकसित रह गये, उन क्षेत्रों में सामंतवादी कृषि संरचना बनी रही। परिणामस्वरूप जाति तथा वर्ग की तीक्ष्ण असमानताओं तथा शोषणकारी मजदूर सम्बन्धों ने इन क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की हिंसा को बढ़ावा दिया है।
7. पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव: पर्यावरण तथा समाज पर कृषि के आधुनिक तरीकों के नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए, बहुत से वैज्ञानिक और कृषक आन्दोलन अब कृषि के पारम्परिक तरीकों तथा अधिक सावयवी बीजों के प्रयोग की ओर लौटने की सलाह दे रहे हैं।
प्रश्न 3.
देश के विभिन्न भागों में 1997-98 में किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं के क्या कारण थे ?
उत्तर:
किसानों द्वारा आत्महत्या करने के कारण किसानों द्वारा आत्महत्या की प्रघटना नई है। इस प्रघटना की व्याख्या समाजशास्त्रियों ने कृषि तथा कृषिक समाज में होने वाले संरचनात्मक तथा सामाजिक परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में करने का प्रयास किया है। ऐसी आत्महत्याएँ मैट्रिक्स घटनाएँ बन गई हैं अर्थात् जहाँ कारकों की एक श्रृंखला मिलकर एक घटना बनाती है। किसानों द्वारा आत्महत्या करने के प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं।
(1) सीमान्त किसानों द्वारा उत्पादकता बढ़ाने हेतु ऋण लेने की जोखिम उठाना: आत्महत्याएँ करने वाले बहुत से किसान 'सीमान्त किसान' थे जो मूलरूप से हरित क्रांति के तरीकों का प्रयोग करके अपनी उत्पादकता बढ़ाने का प्रयास कर रहे थे। ऐसा उत्पादन करने का अर्थ था कई प्रकार के जोखिम उठाना-कृषि रियायतों में कमी के कारण उत्पादन लागत में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, बाजार स्थिर नहीं है तथा बहुत से किसान अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए महँगे मदों में निवेश करने हेतु अत्यधिक उधार लेते हैं।
(2) खेती के न होने या बाजार मूल्य के कम होने से कर्ज न चुका पाना: खेती का न होना, (किसी बीमारी अथवा हानिकारक जीव - जन्तु, अत्यधिक वर्षा या सूखे के कारण) तथा कुछ मामलों में उचित आधार अथवा बाजार मूल्य के अभाव के कारण किसान कर्ज का बोझ उठाने अथवा अपने परिवार को चलाने में असमर्थ होते हैं।
(3) बदली हुई सामाजिक परिस्थितियों में खर्च का बढ़ना: ग्रामीण क्षेत्रों की परिवर्तित होने वाली संस्कृति जिसमें विवाह, दहेज तथा अन्य नयी गतिविधियाँ तथा शिक्षा व स्वास्थ्य की देखभाल के खर्चों के कारण अधिक आय की आवश्यकता होती है, जिससे ऐसी परेशानियों की तीव्रता बढ़ जाती है।
(4) परेशानियों की असह्यता: आय कम होने, कर्ज के बोझ के बढ़ने, पारिवारिक खर्चों के पूरा न कर पाने की परेशानियों को किसान सहन नहीं कर पाते इससे वे आत्महत्या कर लेते हैं।
(5) कृषि की रक्षणीयता: कृषि सीमान्त कृषकों के लिए अब अरक्षणीय होती जा रही है। यह अरक्षणीयता भी उनकी आत्महत्या का एक कारण बना है। कृषि की अरक्षणीयता के प्रमुख कारक ये हैं।
प्रश्न 4.
भारत में भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का कृषि एवं ग्रामीण समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर:
भारत में भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण का ग्रामीण समाज पर प्रभाव भारत उदारीकरण की नीति का अनुसरण 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से कर रहा है। इसका कृषि तथा ग्रामीण समाज पर बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है
(1) भारतीय किसान अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से प्रतिस्पर्धा हेतु प्रस्तुत - उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत विश्व व्यापार संगठन में भागीदारी होती है, जिसका उद्देश्य अधिक मुक्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था है और जिसमें भारतीय बाजारों को आयात हेतु खोलने की आवश्यकता है। दशकों तक सरकारी सहयोग और संरक्षित बाजारों के बाद भारतीय किसान अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से प्रतिस्पर्धा हेतु प्रस्तुत हैं। भारत में अनेक आयातित फल तथा आयातित अन्न आने लगे हैं। इससे विदेशी खाद्यान्नों पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है।
(2) संविदा खेती - कृषि को विस्तृत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में सम्मिलित किये जाने का किसानों और ग्रामीण समाज पर सीधा प्रभाव पड़ा है। अब भारत में संविदा खेती' प्रारम्भ हो गई है। उदाहरण के लिए पंजाब और कर्नाटक जैसे कुछ क्षेत्रों में किसानों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों (जैसे-पेप्सी, कोक) से कुछ निश्चित फसलें, जैसे - टमाटर और आलू, उगाने की संविदा दी गई, जिन्हें ये कम्पनियाँ उनसे प्रसंस्करण अथवा निर्यात हेतु खरीद लेती हैं। संविदा खेती में कंपनियाँ उगाई जाने वाली फसलों की पहचान करती हैं, बीज तथा अन्य वस्तुएँ निवेशों के रूप में उपलब्ध कराती हैं तथा जानकारी तथा कार्यकारी पूँजी भी देती हैं। बदले में किसान बाजार की ओर से आश्वस्त रहता है क्योंकि कंपनी पूर्वनिर्धारित तय मूल्य पर उपज के क्रय का आश्वासन देती है। इस प्रकार संविदा खेती किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती है।
(3) बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कृषि मदों के विक्रेता के रूप में प्रवेश से होने वाले प्रभाव - कृषि का भूमंडलीकरण का एक प्रभाव यह होता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों का इस क्षेत्र में कृषि मदों, जैसे-बीज, कीटनाशक तथा खाद के विक्रेता के रूप में प्रवेश हो जाता है। ये एजेंट प्रायः किसानों के लिए नए बीजों तथा कृषि कार्य की जानकारी का एकमात्र स्रोत होते हैं। लेकिन इससे किसानों की महँगे खाद और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ी है, जिससे उनका लाभ कम हुआ है, बहुत से किसान ऋणी हो गये हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण संकट भी पैदा हुआ है।
प्रश्न 5.
हरित क्रांति के सामाजिक परिणाम क्या थे?
उत्तर:
हरित क्रांति के सामाजिक परिणाम हरित क्रांति के निम्नलिखित प्रमुख सामाजिक परिणाम हुए
प्रश्न 6.
'मजदूरों का संचार' विषय पर एक निबन्ध लिखिये।
अथवा
'मजदूरों का संचार' के प्रत्यय को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मजदूरों का संचार मजदरों के संचार प्रत्यय को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है।
1. प्रवासी कृषि मजदूरों की बढ़ोतरी: मजदूरों तथा भू-स्वामियों के बीच संरक्षण का पारम्परिक संबंध टूटने से तथा पंजाब जैसे हरित क्रांति के सम्पन्न क्षेत्रों में कृषि मजदूरों की मांग बढ़ने से मजदूरों में मौसमी पलायन का एक प्रतिमान उभरा। इन क्षेत्रों में प्रवासी कृषि मजदूरों की बढ़ोतरी हुई । इसके अन्तर्गत हजारों मजदूर अपने गाँवों से अधिक सम्पन्न क्षेत्रों, जहाँ मजदूरों की माँग अधिक तथा उच्च मजदूरी थी, की तरफ संचार करते हैं। प्रवसन करने वाले मजदूर मुख्यतः सूखाग्रस्त तथा कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से आते हैं तथा वे वर्ष के कुछ हिस्सों के लिए पंजाब तथा हरियाणा के खेतों में, उत्तर प्रदेश के ईंट-भट्टों में, नई दिल्ली तथा बंगलौर शहरों में भवन निर्माण कार्य में काम करने के लिए जाते हैं।
2. स्थानीय कामकाजी वर्ग के स्थान पर प्रवसन करने वाले मजदूरों को प्राथमिकता: धनी किसान अक्सर फसल काटने तथा इसी प्रकार की अन्य गहन कृषि क्रियाओं के लिए स्थानीय कामकाजी वर्ग के स्थान पर प्रवसन करने वाले मजदूरों को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि प्रवसन करने वाले मजदूरों का शोषण किया जा सकता है। इस प्रकार जहाँ स्थानीय भूमिहीन मजदूर अपने गाँव से कृषि के चरम मौसम में काम की तलाश में प्रवास कर जाते हैं, जबकि दूसरे क्षेत्रों में प्रवसन करने वाले मजदूर स्थानीय खेतों में काम करने के लिए लाये जाते हैं। यह प्रतिमान विशेषतः गन्ना उत्पादित क्षेत्रों में पाया जाता है।
3. महिलाओं का कृषि: मजदूरों के मुख्य स्रोत के रूप में उभरना-मजदूरों के बड़े पैमाने पर संचार से निर्धन क्षेत्रों के पुरुष सदस्य गाँवों से बाहर काम करने में बिताते हैं । ऐसी स्थिति में वहाँ महिलाएँ कृषि मजदूरों के मुख्य स्रोत के रूप में उभर रही हैं जिससे 'कृषि मजदूरों का महिलाकरण' हो रहा है।
प्रश्न 7.
ग्रामीण भारत में कृषिक संरचना पर एक निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
ग्रामीण भारत में कृषिक संरचना भूमि स्वामित्व के विभाजन अथवा संरचना सम्बन्ध के लिए अक्सर कृषिक संरचना शब्द का इस्तेमाल किया जाता है; क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि ही उत्पादन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है तथा भूमि रखना ही ग्रामीण वर्ग संरचना को आकार देता है।
1. कृषिक - वर्ग संरचना: ग्रामीण भारत में कृषिक वर्ग संरचना को मोटे रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
1. भू-स्वामी वर्ग: मध्यम और बड़ी ज़ोतों के मालिक साधारणतः कृषि से पर्याप्त अर्जन ही नहीं बल्कि अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं।
2. काश्तकार या पट्टेधारी कृषक वर्ग: काश्तकार या पट्टेधारी कृषकों की आमदनी मालिक कृषकों से कम होती है। क्योंकि वह जमीन के मालिक को यथेष्ट किराया चुकाता है।
3. कृषि मजदूर वर्ग: ग्रामीण भारत में कृषि - मजदूरों को प्रायः निम्नतम निर्धारित मूल्य से भी कम मजदूरी दी जाती है और वे बहुत कम कमाते हैं। उनकी आमदनी भी निम्न होती है तथा उनका रोजगार असुरक्षित होता है। अधिकांश कृषि - मजदूर रोजाना दिहाड़ी कमाने वाले होते हैं और वर्ष में बहुत से दिन उनके पास कोई काम नहीं होता है।
(2) जाति - व्यवस्था द्वारा संचारित कृषक संरचना - कृषक समाज की वर्ग - संरचना जाति व्यवस्था द्वारा संचारित होती है। भारत के अधिकांश क्षेत्रों में भूस्वामित्व वाले समूह के लोग मध्य और ऊँची जाति समूह के हैं। श्रीनिवास ने इन्हें 'प्रबल जाति' का नाम दिया है। प्रत्येक क्षेत्र में प्रबल जाति समूह काफी शक्तिशाली होता है।
आर्थिक और राजनीतिक रूप से वह स्थानीय लोगों पर प्रभुत्व बनाए रखता है। उत्तर प्रदेश के जाट और राजपूत, कर्नाटक के वोक्कालिंगास और लिंगायत, आंध्रप्रदेश के कम्मास और रेड्डी तथा पंजाब के जाट सिख प्रबल भूस्वामी समूहों के उदाहरण हैं।
अधिकांश सीमान्त किसान और भूमिहीन लोग निम्न जातीय समूह के होते हैं।