Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 3 सामाजिक संस्थाएँ: निरन्तरता एवं परिवर्तन Important Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
अंग्रेजी शब्द 'कास्ट' शब्द की उत्पत्ति 'कास्ट' शब्द से हुई है, जो किस भाषा का मूल शब्द है
(क) पुर्तगाली
(ख) फ्रेंच
(ग) लेटिन
(घ) इटालियन
उत्तर:
(क) पुर्तगाली
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से जाति की विशेषता नहीं है
(क) समाज का खण्डात्मक विभाजन ।
(ख) खानपान और सहवास पर प्रतिबन्ध
(ग) अर्जित प्रस्थिति
(घ) सामाजिक और धार्मिक निर्योग्यतायें
उत्तर:
(ग) अर्जित प्रस्थिति
प्रश्न 3.
सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी
(क) सावित्री बाई फुले ने
(ख) ज्योतिराव गोविन्द राव फुले ने
(ग) अयन्कल्ली ने
(घ) नारायण गुरु ने
उत्तर:
(ख) ज्योतिराव गोविन्द राव फुले ने
प्रश्न 4.
'अनुसूचित जातियाँ' और 'अनुसूचित जनजतियाँ' शब्द अस्तित्व में आये
(क) 1909 के भारत सरकार अधिनियम से
(ख) 1919 के भारत सरकार अधिनियम से
(ग) 1935 के भारत सरकार अधिनियम से
(घ) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर:
(ग) 1935 के भारत सरकार अधिनियम से
प्रश्न 5.
'सबके लिए एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर' का नारा दिया था
(क) रामास्वामी नायकर ने
(ख) ज्योतिराव गोविन्दराव फुले ने
(ग) अयन्कल्ली ने
(घ) नारायण गुरु ने
उत्तर:
(घ) नारायण गुरु ने
प्रश्न 6.
'संस्कृतिकरण' और 'प्रबल जाति' की अवधारणायें किस समाजशास्त्री से सम्बन्धित हैं
(क) नरसिंहाचार श्रीनिवासन
(ख) जी.एस. घुरिये
(ग) राधाकमल मुकर्जी
(घ) ए.आर. देसाई
उत्तर:
(क) नरसिंहाचार श्रीनिवासन
प्रश्न 7.
'कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया' नामक पुस्तक के लेखक हैं
(क) नरसिंहाचार श्रीनिवासन
(ख) गोविन्द सहाय घुरिये
(ग) ए आर. देसाई
(घ) डी.पी. मुखर्जी
उत्तर:
(ख) गोविन्द सहाय घुरिये
प्रश्न 8.
'द डोमिनेन्ट कास्ट एण्ड अदर एस्सेज' नामक पुस्तक के लेखक हैं
(क) आन्द्रे बेते
(ख) एम.एन. श्रीनिवासन
(ग) आई.पी. देसाई
(घ) ए.आर. देसाई
उत्तर:
(ख) एम.एन. श्रीनिवासन
प्रश्न 9.
पुर्तगाली कास्टा का अर्थ है
(क) रंग
(ख) वर्ण
(ग) जाति
(घ) विशुद्ध नस्ल
उत्तर:
(घ) विशुद्ध नस्ल
प्रश्न 10.
वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था के कितने विभाजन थे?
(क) पाँच
(ख) चार
(ग) दो
(घ) तीन
उत्तर:
(ख) चार
प्रश्न 11.
काल में जाति एक कठोर संस्था बनी
(क) वैदिक काल
(ख) उत्तर वैदिक काल
(ग) प्राचीन काल
(घ) आधुनिक काल
उत्तर:
(ख) उत्तर वैदिक काल
प्रश्न 12.
जनगणना के कार्य को सर्वप्रथम प्रारम्भ किया गया
(क) 1860 के दशक में
(ख) 1947 के दशक में
(ग) 1881 के दशक में
(घ) 1901 के दशक में
उत्तर:
(क) 1860 के दशक में
प्रश्न 13.
भारत में जनजातियों की परिभाषा किस प्रकार की जाती है?
(क) नकारात्मक शब्दों में अर्थात् वे क्या नहीं हैं यह बताकर।
(ख) उपमहाद्वीप के सबसे पुराने निवासी बताकर।
(ग) गरीबी और निचले स्तर का बताकर।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(क) नकारात्मक शब्दों में अर्थात् वे क्या नहीं हैं यह बताकर।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
अंग्रेजी शब्द................की उत्पत्ति पुर्तगाली शब्द................से हुई है।
उत्तर:
कास्ट, कास्टा
प्रश्न 2.
................एक ऐसा शब्द है जो किसी भी चीज के प्रकार या वंश-किस्म को संबोधित करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
उत्तर:
जाति
प्रश्न 3.
पारम्परिक तौर पर जातियाँ................से जुड़ी होती थीं।
उत्तर:
व्यवसाय
प्रश्न 4.
धार्मिक या कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था................और................के बीच के अंतर पर आधारित होती है।
उत्तर:
शुद्धता, अशुद्धता
प्रश्न 5.
सत्यशोधक समाज की स्थापना................में की गई थी।
उत्तर:
1873
प्रश्न 6.
द रिमेम्बरड विलेज के लेखक................हैं।
उत्तर:
मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास
प्रश्न 7
.................एक आधुनिक शब्द है जो ऐसे समुदायों के लिए प्रयुक्त होता है जो बहुत पुराने हैं और उप-महाद्वीप के सबसे पुराने निवासी हैं।
उत्तर:
जनजाति
प्रश्न 8.
जनजाति शब्द का प्रयोग................युग में प्रारंभ किया गया था।
उत्तर:
औपनिवेशिक
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
सत्यशोधक समाज की स्थापना कब और किसने की थी?
उत्तर:
सत्यशोधक समाज की स्थापना सन् 1873 में ज्योतिराव गोविन्दराव फुले ने की थी।
प्रश्न 2.
वैदिक काल में जाति व्यवस्था का स्वरूप क्या था?
उत्तर:
वर्ण-व्यवस्था।
प्रश्न 3.
भारत में जनगणना का शुभारंभ कब से हुआ?
उत्तर:
1860 ई. के दशक से।
प्रश्न 4.
भारत में नियमित रूप से जनगणना के कार्य की शुरूआत कब से हुई?
उत्तर:
सन् 1881 से।
प्रश्न 5.
1901 ई. में हरबर्ट रिजले के जनगणना कार्य को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
जाति के सामाजिक अधिक्रम की जानकारी एकत्रित किये जाने के कारण।
प्रश्न 6.
19वीं सदी में जाति के विरुद्ध आंदोलन करने वाले दक्षिण भारत के दो समाज सुधारकों के नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 7.
19वीं सदी में जाति के विरुद्ध आंदोलन करने वाले पश्चिम भारत के एक समाज सुधारक का नाम लिखिये।
उत्तर:
महात्मा ज्योतिराव फुले।
प्रश्न 8.
सन् 1920 के दशक में अस्पृश्यता के विरुद्ध आंदोलन की शुरूआत किसने की थी?
उत्तर:
महात्मा गांधी और बाबा साहेब अम्बेडकर ने।
प्रश्न 9.
'द रिमेम्बर्ड विलेज' किस विचारक की पुस्तक है?
उत्तर:
श्री एम.एन. श्रीनिवासन की।
प्रश्न 10.
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में जनजातियों की जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर:
10.4 करोड़ व्यक्ति।
प्रश्न 11.
जाति के निर्धारण का आधार क्या है?
उत्तर:
जन्म।
प्रश्न 12.
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को किन दो सिद्धान्तों के समुच्चय के रूप में समझा जा सकता है?
उत्तर:
प्रश्न 13.
कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था किसके अन्तर पर आधारित होती है?
उत्तर:
शुद्धता और अशुद्धता के बीच के अन्तर पर।
प्रश्न 14.
भारत के औपनिवेशिक काल की अवधि क्या मानी जाती है?
उत्तर:
1800 से 1947 तक की अवधि भारत के औपनिवेशिक काल की अवधि मानी जाती है।
प्रश्न 15.
'संस्कृतिकरण' और 'प्रबल जाति' की संकल्पनाएँ किस विद्वान की देन हैं ?
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवासन की।
प्रश्न 16.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रबल जाति कौन सी है?
उत्तर:
जाट जाति।
प्रश्न 17.
आंध्रप्रदेश की दो प्रबल जातियों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 18.
मध्य भारत में जनजातीय जनसंख्या का कितने प्रतिशत भाग रहता है?
उत्तर:
लगभग 85 प्रतिशत भाग।
प्रश्न 19.
किन राज्यों में जनजातियों की आबादी सबसे घनी है?
उत्तर:
पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में।
प्रश्न 20.
60 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी वाले किन्हीं दो राज्यों के नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 21.
2011 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल जनसंख्या भारत की समस्त जनसंख्या का कितने प्रतिशत है?
उत्तर:
लगभग 8.6 प्रतिशत।
प्रश्न 22.
मध्य भारत में रहे गोंड आदिवासियों के किसी एक राज्य का नाम लिखिये।
उत्तर:
गढ़ मांडला।
प्रश्न 23.
औपनिवेशिक सरकार ने किन इलाकों में गैर-जनजातीय लोगों का प्रवेश पूरी तरह निषिद्ध या विनियमित किया था?
उत्तर:
अपवर्जित और आंशिक अपवर्जित इलाकों में।
प्रश्न 24.
ब्रिटिश सरकार, 'अपवर्जित एवं आंशिक अपवर्जित' किये गये इलाकों में क्या करना चाहती थी?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार इन इलाकों में स्थानीय राजाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष शासन चलाना चाहती थी।
प्रश्न 25.
जनजातीय लोगों के बारे में एकीकरणवादियों का क्या तर्क है?
उत्तर:
एकीकरणवादियों के मतानुसार जनजातीय लोग पिछड़े हुए हिंदू ही है।
प्रश्न 26.
पारंपरिक तौर पर जातियाँ किससे जुड़ी होती थीं? उत्तर-व्यवसाय से।
प्रश्न 27.
किस काल में जाति एक कठोर संस्था बनी?
उत्तर:
वैदिक काल।
प्रश्न 28.
ब्रिटिश प्रशासकों ने जाति व्यवस्थाओं की जटिलताओं को समझने का प्रयत्न क्यों शुरू किया?
उत्तर:
देश पर कुशलतापूर्वक शासन करना सीखने के उद्देश्य से।
प्रश्न 29.
स्वतंत्र भारत में प्रारम्भ से ही लोकतांत्रिक राजनीति किस पर आधारित रही है?
उत्तर:
जाति पर।
प्रश्न 30.
एम.एन. श्रीनिवास द्वारा लिखित पुस्तक का नाम बताइए।
उत्तर:
द रिमेम्बरड विलेज।
प्रश्न 31.
भारत के ऐसे दो राज्यों के नाम लिखिये जिन्हें उपद्रवग्रस्त घोषित किया जा चुका है।
उत्तर:
प्रश्न 32.
स्वतंत्रता के बाद भारत में जनजातीय समुदायों में हुए विकास की किन्हीं दो विशेषताओं का नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 33.
किन दो प्रकार के मुद्दों ने जनजातीय आंदोलनों को तूल देने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है?
उत्तर:
प्रश्न 34.
मूल परिवार में कौन शामिल होते हैं?
उत्तर:
मूल परिवार में माता-पिता और उनके बच्चे शामिल होते हैं।
प्रश्न 35.
जनजातीय पहचान को सुरक्षित बनाए रखने के आग्रह के पीछे उत्तरदायी कोई दो कारण बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 36.
शारीरिक - प्रजातीय दृष्टि से जनजातियों को किन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है?
उत्तर:
नीग्रिटो, ऑस्ट्रैलॉइड, मंगोलाइड, द्रविण और आर्य।
प्रश्न 37.
भारत में सबसे बड़ी जनजाति कौनसी हैं?
उत्तर:
गोंड, भील, संथाल, ओराँव, मीना, बोडो और मुंडा।
प्रश्न 38.
2011 की जनगणना के अनुसार जनजातियों की कुल जनसंख्या कितनी है?
उत्तर:
104 मिलियन।
प्रश्न 39.
जाति व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु क्या है?
उत्तर:
धार्मिक या कर्मकाण्डीय दृष्टि से शुद्धता और अशुद्धता।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जाति शब्द से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
जाति एक व्यापक शब्द है जो किसी भी चीज के प्रकार या वंश-किस्म को संबोधित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें अचेतन वस्तुओं से लेकर पेड़-पौधों, जीव-जन्तु और मनुष्य भी शामिल हैं।
प्रश्न 2.
वर्ण और जाति में दो अन्तर बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 3.
प्रबल जाति (डोमिनेंट कास्ट) शब्द का प्रयोग किसके लिए किया जाता है?
उत्तर:
प्रबल जाति वस्तुतः जाति व्यवस्था के पद सोपान क्रम में कोई मध्यम या उच्च मध्यम वर्गीय जाति होती है जिसकी जनसंख्या अत्यधिक हो तथा जिसके पास भूमि-स्वामित्व के अधिकार हों।
प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक संरचना व्यक्तियों के सम्बन्धों की वह सतत् व्यवस्था है जिसे सामाजिक रूप से स्थापित व्यवहार के प्रतिमान के रूप में सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति के जरिए परिभाषित तथा नियंत्रित किया जाता है।
प्रश्न 5.
परसंस्कृतिकरण क्या है ?
उत्तर:
जब एक प्रभावी समूह अपनी संस्कृति का प्रभाव अपने अधीनस्थ समूह पर इस प्रकार डालता है कि अधीनस्थ समूह का अस्तित्व प्रभावी संस्कृति में घुल-मिल जाता है, तो इस प्रक्रिया को परसंस्कृतिकरण कहते हैं।
प्रश्न 6.
जाति की दो विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 7.
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को किस रूप में समझा जा सकता है?
उत्तर:
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को सिद्धान्तों के दो समुच्चय के मिश्रण के रूप में समझा जा सकता है-(1) भिन्नता और अलगाव पर आधारित समुच्चय, (2) संपूर्णता और अधिक्रम पर आधारित समुच्चय।।
प्रश्न 8.
भिन्नता और अलगाव के सिद्धान्त के आधार पर जाति व्यवस्था की विशेषता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भिन्नता और अलगाव के सिद्धान्त के अनुसार हर जाति से यह अपेक्षित है कि वह दूसरी जाति से भिन्न हो और इसलिए वह प्रत्येक अन्य जाति से कठोरता से पृथक होती है। उसे अन्य जाति से अलग रखने हेतु शादी, खान-पान, सामाजिक अंतःक्रिया और व्यवसाय के नियम बनाए गये हैं।
प्रश्न 9.
संपूर्णता और अधिक्रम के सिद्धान्त के आधार पर जाति व्यवस्था को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संपूर्णता और अधिक्रम के सिद्धान्त के अनुसार इन विभिन्न एवं पृथक जातियों का कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं है, वे एक बड़ी सम्पूर्णता से संबंधित होकर ही अपना अस्तित्व बनाए रख सकती हैं। साथ ही प्रत्येक जाति का समाज में एक विशिष्ट स्थान है तथा एक श्रेणी क्रम में स्थित है।
प्रश्न 10.
कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था किस पर और कैसे आधारित होती है ?
उत्तर:
कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था 'शुद्धता' और 'अशुद्धता' के बीच के अन्तर पर आधारित होती है। वे जातियाँ जिन्हें कर्मकांड की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है, उनका उच्च स्थान होता है और जिनको कम शुद्ध या अशुद्ध माना जाता है, उन्हें निम्न स्थान दिया जाता है।
प्रश्न 11.
खण्डात्मक संगठन से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जातियों में आपसी उप-विभाजन भी होता है अर्थात् जातियों में हमेशा उप-जातियाँ होती हैं और कभी-कभी उप-जातियों में भी उप-उप-जातियाँ होती हैं । इसे खण्डात्मक संगठन कहते हैं।
प्रश्न 12.
1935 के अधिनियम में अनुसूचित जातियों की श्रेणी में किन जातियों को शामिल किया गया?
उत्तर:
जातीय अधिक्रम में जो जातियाँ सबसे नीची थीं जिनके साथ सबसे अधिक भेदभाव बरता जाता था और जिनमें सभी दलित जातियाँ थीं, उन्हें 1935 के अधिनियम में अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल किया गया।
प्रश्न 13.
अयनकल्ली कौन थे?
उत्तर:
अयन्कल्ली केरल में जन्मे निम्न जातियों एवं दलितों के नेता थे। इनके प्रयासों से, दलितों को सार्वजनिक सड़कों पर चलने की और अपने बच्चों को विद्यालयों में दाखिला दिलाने की आजादी मिली।
प्रश्न 14.
ज्योतिराव गोविन्दराव फुले कौन थे?
उत्तर:
ज्योतिराव गोविन्दराव फुले ने जाति व्यवस्था के अन्याय तथा छुआछूत के नियमों की भर्त्सना की। 1873 में आपने 'सत्य शोधक समाज' की स्थापना की जो निम्न जाति के लोगों के मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए समर्पित था।
प्रश्न 15.
पेरियार कौन थे?
उत्तर:
पेरियार अर्थात् ई.वी. रामास्वामी नायकर एक बुद्धिजीवी और दक्षिण भारत में निम्न जाति आंदोलन के रूप में जाने जाते हैं।
प्रश्न 16.
नारायण गुरु के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
केरल में जन्मे नारायण गुरु ने जाति व्यवस्था के कुप्रभावों के विरुद्ध संघर्ष किया। उन्होंने एक शांतिपूर्ण लेकिन सार्थक सामाजिक क्रांति का नेतृत्व किया तथा सबके लिए एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर का नारा दिया।
प्रश्न 17.
संस्कृतिकरण की अवधारणा का क्या तात्पर्य है? ।
उत्तर:
संस्कृतिकरण - संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है जिनके द्वारा किसी मध्य या निम्न जाति के सदस्य किसी उच्च जाति की धार्मिक क्रियाओं, घरेलू या सामाजिक परम्पराओं को अपनाकर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा करने का प्रयत्न करते हैं।
प्रश्न 18.
जनजातीय समाजों का वर्गीकरण किसके अनुसार किया जाता है ?
उत्तर:
जनजातीय समाजों का वर्गीकरण उनके स्थायी तथा अर्जित विशेषकों के अनुसार किया जाता है। स्थायी विशेषकों (लक्षणों) में क्षेत्र, भाषा, शारीरिक विशिष्टताएँ और पारिस्थितिक आवास शामिल हैं।
प्रश्न 19.
भाषा की दृष्टि से जनजातियों को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर:
भाषा की दृष्टि से जनजातियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
प्रश्न 20.
आजीविका के आधार पर जनजातियों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
आजीविका के आधार पर, जनजातियों को मछुआ, खाद्य संग्राहक, आखेटक, झूम खेती करने वाले, कृषक, बागान तथा औद्योगिक कामगारों की श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।
प्रश्न 21.
"जनजातियाँ जाति आधारित हिन्दू कृषक समाज के एक सिरे का विस्तार है।" कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ विद्वानों का मत है कि जनजातियाँ जाति आधारित हिन्दू कृषक समाज से मौलिक रूप से भिन्न नहीं हैं, लेकिन उनमें स्तरीकरण बहुत कम हुआ है और संसाधनों के स्वामित्व के मामले में वे समुदाय आधारित अधिक हैं।
प्रश्न 22.
"जनजातियाँ पूर्ण रूप से जातियों से भिन्न प्रकार का समुदाय है।" इस कथन के पक्ष में क्या तर्क दिया जाता है?
उत्तर:
जनजातियाँ जातियों से पूरी तरह से भिन्न होती हैं क्योंकि उनमें धार्मिक या कर्मकांडीय दृष्टि से शुद्धता और अशुद्धता का भाव नहीं होता जो कि जाति-व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु है।
प्रश्न 23.
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को किस रूप में समझा जा सकता है?
उत्तर:
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को सिद्धान्तों के दो समुच्चयों के मिश्रण के रूप में समझा जा सकता है-एक भिन्नता और अलगाव पर आधारित है और दूसरा सम्पूर्णता और अधिक्रम पर।
प्रश्न 24.
जनजातियों के पृथक्करणवादियों का क्या तर्क है ?
उत्तर:
जनजातियों के पृथकतावादी पक्ष का कहना था कि जनजातीय लोगों को व्यापारियों, साहूकारों और हिन्दू तथा ईसाई धर्म प्रचारकों से बचाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि ये लोग जनजातियों का अलग अस्तित्व मिटाकर उन्हें भूमिहीन श्रमिक बनाना चाहते हैं।
प्रश्न 25.
जनजातियों के सम्बन्ध में एकीकरणवादियों का क्या तर्क है ?
उत्तर:
एकीकरणवादियों का कहना है कि जनजातीय लोग पिछड़े हुए हिन्दू ही हैं और उनकी समस्याओं का समाधान उसी परिधि के भीतर खोजा जाए जो अन्य पिछड़े वर्गों के मामले में निर्धारित की गई है।
प्रश्न 26.
किन दो मुद्दों ने जनजातीय आंदोलनों को तूल देने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी?
उत्तर:
जिन दो मुद्दों ने जनजातीय आंदोलनों को तूल देने में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है, वे ये हैं
प्रश्न 27.
परिवार से क्या तात्पर्य है ?
अथवा
मूल परिवार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
परिवार या मूल परिवार समाज की प्राथमिक इकाई है जिसका अस्तित्व विवाह के बाद आता है, जिसमें पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चों को सदस्यता प्राप्त होती है।
प्रश्न 28.
संयुक्त परिवार की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
इरावती कर्वे के अनुसार "एक संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो एक भवन में रहते हैं, एक रसोई में बना भोजन करते हैं, सामान्य सम्पत्ति के स्वामी होते हैं; सामान्य पूजा में भाग लेते हैं तथा जो एक-दूसरे के रक्त सम्बन्धी हैं।"
प्रश्न 29.
संयुक्त परिवार की दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 30.
उत्तराधिकार के नियम के अनुसार पितृवंशीय एवं मातृवंशीय परिवारों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्तराधिकार के नियम के अनुसार पितृवंशीय परिवारों में पिता की मृत्यु के पश्चात् जायदाद उसके पुत्र को प्राप्त होती है जबकि मातृवंशीय परिवार में माता की मृत्यु के पश्चात् जायदाद उसकी पुत्री को प्राप्त होती है।
प्रश्न 31.
परिवार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
मैकाइवर और पेज के अनुसार, "परिवार वह समूह है जो यौन सम्बन्धों पर आधारित है और जो इतना छोटा और स्थायी है कि उसमें बच्चों की उत्पत्ति और लालन - पालन हो सके।"
प्रश्न 32.
आवास के आधार पर परिवारों के नाम लिखें।
उत्तर:
आवास के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते है:
प्रश्न 33.
वर्ण से क्या आशय है?
उत्तर:
वर्ण का शाब्दिक अर्थ है रंग । वर्ण व्यवस्था जाति व्यवस्था का एक राष्ट्रव्यापी रूप है जो समाज के चार अधिक्रमिक वर्णों या जातिगत समूहों-ब्राह्मण, क्षणिय, वैश्य और शूद्र में विभाजित करता है।
प्रश्न 34.
संजातीय समूह से क्या आशय है ?
उत्तर:
संजातीय समूह वह होता है जिसके सभी सदस्य एक ऐसी साझी सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरूक रहते हैं जो उन्हें आस - पास के दूसरे समूहों से अलग दिखाती है।
प्रश्न 35.
एक विवाह प्रथा से क्या आशय है ?
उत्तर:
एक विवाह प्रथा विवाह की उस प्रथा को कहते हैं जो एक समय में एक ही जीवन-साथी रखने की अनुमति देती है। इसके अन्तर्गत एक निर्धारित समय पर एक पुरुष एक ही पत्नी और एक स्त्री एक ही पति रख सकती है।
प्रश्न 36.
जन्म परिवार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह परिवार जिसमें व्यक्ति का जन्म हुआ हो, जन्म परिवार कहलाता है। यह ससुराल के परिवार से भिन्न होता है जिसे विवाह के बाद अपनाया जाता है।
प्रश्न 37.
विवाह को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विवाह दो वयस्क व्यक्तियों-स्त्री और पुरुष के बीच सामाजिक रूप से स्वीकृत एवं अनुमोदित यौन सम्बन्ध स्थापित करने की स्थिति का नाम है। .
प्रश्न 38.
क्षेत्रीय आधार और भाषा की दृष्टि से जनजातियों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता
उत्तर:
1. क्षेत्रीय आधार पर भारत की जनजातीय आबादी का लगभग 85 प्रतिशत भाग मध्य भारत में, 11 प्रतिशत भाग पूर्वोत्तर राज्यों में तथा शेष अन्य क्षेत्रों में रहता है।
2. भाषा की दृष्टि से-जनजातियों को:
प्रश्न 39.
'निवास' और 'वंशानुक्रम' के आधार पर परिवार का विभाजन (वर्गीकरण) कैसे किया जा सकता है?
अथवा उपनिवेशवाद के कारण जाति व्यवस्था में कौनसे परिवर्तन आए?
उत्तर:
प्रश्न 40.
औपनिवेशिक शासन में जाति में आए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 41.
'अनुसूचित जनजातियाँ' और 'अनुसूचित जातियाँ' शब्द किस प्रकार अस्तित्व में आए?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल के अंतिम दौर में, प्रशासन ने पददलित जातियों, जिन्हें उन दिनों 'दलित वर्ग' कहा जाता था, के कल्याण में रुचि लेना शुरू किया। इन प्रयासों के अंतर्गत ही 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित किया गया जिसने राज्य द्वारा विशेष व्यवहार के लिए निर्धारित जातियों तथा जनजातियों की सूचियों या 'अनुसूचियों' को वैध मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार, 'अनुसूचित जनजाति' और 'अनुसूचित जाति' शब्द अस्तित्व में आए।
प्रश्न 42.
सामाजिक संरचना में बदलावों के परिणामस्वरूप पारिवारिक ढाँचे में बदलाव कैसे होता है ?
उत्तर:
प्रश्न 43.
जाति व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई? बताइये।
उत्तर:
अपने प्रारंभिक काल, वैदिक काल, 900-500 ई. पूर्व के बीच में जाति-व्यवस्था वास्तव में वर्णव्यवस्था ही थी। इसके केवल चार विभाजन थे। उनके बीच स्थान परिवर्तन सामान्य था। अतः उत्तर वैदिक काल में ही जाति एक कठोर संस्था बनी।
प्रश्न 44.
जाति व्यवस्था में वर्तमान परिवर्तनों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जाति व्यवस्था में होने वाले प्रमुख वर्तमान परिवर्तन:
प्रश्न 45.
"राष्ट्रीय विकास से आदिवासी जनसंख्या की कीमत पर मुख्य धारा को लाभ पहुँचा है।" स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 46.
जाति व्यवस्था के सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जाति-व्यवस्था के सामान्य लक्षण:
प्रश्न 47.
राष्ट्रीय विकास और जनजातीय विकास में आपसी विरोध के स्रोतों पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
प्रश्न 48.
संयुक्त परिवार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
श्रीमती इरावती कर्वे के अनुसार, "एक संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो साधारणतः एक भवन में रहते हैं, जो एक रसोई में बना भोजन करते हैं, जो सामान्य सम्पत्ति के स्वामी होते हैं तथा जो सामान्य पूजा में भाग लेते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार एक-दूसरे के रक्त सम्बन्धी हैं।"
प्रश्न 49.
परिवार की कोई चार विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
परिवार की विशेषताएँ:
प्रश्न 50.
संयुक्त परिवार और स्वामी परिवारों में कोई तीन अन्तर बताइये।
उत्तर:
संयुक्त परिवार और एकाकी परिवारों में अन्तर:
प्रश्न 51.
प्रमुख स्थायी विशेषकों के आधार पर जनजातियों का वर्गीकरण कीजिये।
उत्तर:
1. क्षेत्रीय आधार पर भारत की जनजातीय आबादी का 85 प्रतिशत भाग मध्य भारत में, 11 प्रतिशत भाग पूर्वोत्तर राज्यों में तथा 4 प्रतिशत भाग शेष भारत में रहता है।
2. भाषा के आधार पर-जनजातियों के
3. शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से इन्हें:
प्रश्न 52.
प्रबल जाति की अवधारणा को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबल जाति शब्द का प्रयोग ऐसी जातियों के लिए किया जाता है, जिनकी जनसंख्या काफी बड़ी होती थी और जिन्हें स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद किए गए आंशिक भूमि सुधारों द्वारा भूमि के अधिकार प्रदान किए गए थे। उदाहरण - बिहार और उत्तर प्रदेश के यादव, कर्नाटक के वोक्कलिंग, महाराष्ट्र के मराठे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और गुजरात के पाटीदार।
प्रश्न 53.
समकालीन दौर में जाति व्यवस्था में हुए परिवर्तनों में से एक परिवर्तन बताइए।
उत्तर:
समकालीन दौर में जाति व्यवस्था में हुए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण फिर भी विरोधाभासी परिवर्तनों में से एक परिवर्तन यह है कि अब जाति व्यवस्था उच्च जातियों, नगरीय मध्यम और उच्च वर्गों के लिए 'अदृश्य' होती जा रही है।
प्रश्न 54.
अपने 'अर्जित विशेषकों' के आधार पर जनजातियों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रश्न 55.
जाति - व्यवस्था को 'भिन्नता और अलगाव' के सिद्धान्त के आधार किस प्रकार समझा जा सकता है?
उत्तर:
'भिन्नता और अलगाव' का सिद्धान्त-प्रत्येक जाति के लिए यह अपेक्षित था कि वह दूसरी जातियों से भिन्न हो। अत: एक जाति दूसरी जातियों से कठोरता से पृथक होती है, तदनुरूप ही प्रत्येक जाति के नियमों की रूपरेखा बनाई गई है। ऐसे नियमों में विवाह, खान - पान सामाजिक अन्तःक्रिया तथा व्यवसाय के नियम प्रमुख हैं।
प्रश्न 56.
सम्पूर्णता और अधिक्रम के सिद्धान्त के आधार पर जाति-व्यवस्था की व्याख्या किस प्रकार की गई है?
उत्तर:
सम्पर्णता और अधिक्रम का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त के अनुसार विभिन्न और पृथक-पृथक जातियों का कोई व्यक्तिगत अस्तित्व नहीं होता। ये जातियाँ सम्पूर्णता से सम्बन्धित रहकर ही अपने अस्तित्व को बनाये रख सकती हैं। सम्पूर्णता की यह व्यवस्था अधिक्रमित है जिसमें प्रत्येक जाति का एक निश्चित क्रम श्रेणी में एक विशिष्ट स्थान है।
प्रश्न 57.
"आज हम जिसे जाति के रूप में जानते हैं वह प्राचीन भारतीय परम्परा की अपेक्षा उपनिवेशवाद की अधिक देन है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश काल में भारतीय जातियों की परम्पराओं, रीति रिवाजों के बारे में गहनता से सर्वेक्षण कर उन्हें सम्पूर्ण जाति-व्यवस्था की एक निश्चित श्रेणी क्रम में एक विशिष्ट स्थान के रूप में दिखाते हुए विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इस प्रकार प्रत्येक जाति को पद-सोपान क्रम में कठोरता से स्थापित कर दिया गया। इससे पूर्व यह व्यवस्था इतनी कठोर नहीं थी।
प्रश्न 58.
वर्ण और जाति में अन्तर बताइये।
उत्तर:
वर्ण और जाति में अन्तर:
प्रश्न 59.
धार्मिक दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
धार्मिक अथवा कर्मकांडीय दृष्टि से जाति की अधिक्रमित व्यवस्था शुद्धता और अशुद्धता के बीच अन्तर पर आधारित होती है। जिन जातियों को कर्मकांड की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है, अधिक्रम में उनकी स्थिति उच्च, जिन्हें कर्मकांडीय दृष्टि से अशुद्ध माना जाता है, उनकी स्थिति निम्न तथा इन दोनों के बीच की जातियों की स्थिति मध्यवर्ती होती है।
प्रश्न 60.
आर्थिक और सैन्य शक्ति की जाति की प्रस्थिति निर्धारण में क्या भूमिका रही है ?
उत्तर:जिन जातियों के पास आर्थिक तथा सैन्य शक्ति होती है, उन जातियों की स्थिति भी उच्च मानी जाती है जबकि जिन जातियों के पास ये शक्ति नहीं होती है, उन्हें निम्न माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से जो लोग युद्धों में पराजित हुए उन्हें समाज में निम्न स्थिति प्राप्त हो सकी।
प्रश्न 61.
विभिन्न जातियाँ कर्म कांडीय दृष्टि से असमान होने पर भी परस्पर सहयोगी भावना में बंधी होती हैं ? कैसे?
उत्तर:
जाति - व्यवस्था में यद्यपि प्रत्येक जाति का अपना एक निश्चित स्थान तथा निश्चित अधिक्रमित श्रेणी होती है, तथापि जाति व्यवस्था में प्रत्येक जाति का एक निश्चित व्यवसाय भी है। इस प्रकार विभिन्न जातियाँ श्रमविभाजन के आधार पर परस्पर सहयोगी भावना में बंधी होती हैं।
प्रश्न 62.
समाज सुधार की दिशा में सावित्री बाई फुले का योगदान बताइये।
उत्तर:
समाज सुधार की दिशा में सावित्री बाई फुले का योगदान:
प्रश्न 63.
हरबर्ट रिजले के जनगणना कार्य को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
1901 में हरबर्ट रिजले के निर्देशन में हुई जनगणना के अन्तर्गत जाति के सामाजिक अधिक्रम के बारे में जानकारी एकत्रित करने का प्रयास किया गया। इसके अन्तर्गत यह जानने का प्रयास किया गया कि किस क्षेत्र में किस जाति को अन्य जातियों से उच्च अथवा निम्न स्थान प्राप्त है। इस प्रकार हर जाति की श्रेणीक्रम में स्थिति निर्धारित कर दी गई।
प्रश्न 64.
औपनिवेशिक शासन के किन-किन हस्तक्षेपों ने जाति - व्यवस्था को प्रभावित किया था?
उत्तर:
प्रश्न 65.
जनजाति शब्द का आशय बताते हुए संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जनजाति एक आधुनिक शब्द है जो ऐसे समुदाय के लिए प्रयुक्त होता है जो बहुत पुराने हैं और उपमहाद्वीप के सबसे पुराने निवासी हैं । जनजातियाँ ऐसे समुदाय थे जो किसी लिखित धर्मग्रन्थ के अनुसार किसी धर्म का पालन नहीं करते ना उनका कोई राजनीतिक संगठन था। ये समुदाय वर्गों में बँटे हुए नहीं थे ना इनमें कोई जातिव्यवस्था थी। वे न हिन्दू थे न ही किसान।
प्रश्न 66.
स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारतीय सरकार द्वारा जनजातियों को जमीनों पर स्वामित्व देने का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जमीनों पर निजी मालिकाना हक दिए जाने से जनजातीय लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि उनके समुदाय में सामूहिक स्वामित्व की प्रथा थी और उसके स्थान पर नयी व्यवस्था लागू किए जाने से उन्हें हानि उठानी पड़ी। उदाहरण-नर्मदा नदी पर बनाए जा रहे बाँधों की श्रृंखला है जहाँ अधिकांश कीमत, अर्थात् जिन लोगों को इसकी वजह से हानि हुई है, और लाभ असंगत अनुपात में विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों को मिल रहे हैं।
प्रश्न 67.
ई.वी. रामास्वामी नायकर की समाज सुधार के क्षेत्र में देन बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 68.
नारायण गुरु का समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 69.
जाति एवं जनजाति के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 70.
राष्ट्रीय विकास के नाम पर जनजातियों पर पड़ने वाले कोई चार प्रभाव बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 71.
जनजातीय विकास में शिक्षित वर्ग के उदय का क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
जनजातीय विकास में आरक्षण की नीतियों के साथ मिलकर शिक्षा जनजातियों में एक नगरीकृत व्यावसायिक वर्ग का निर्माण कर रही है। इससे जनजातीय समाज के अन्दर वर्गों तथा विभाजकों का विकास हो रहा है। इससे जनजातीय पहचान का दावा किये जाने के विभिन्न आधार विकसित हो रहे हैं।
प्रश्न 72.
एकाकी (मूल) परिवार की कोई तीन विशेषताएँ लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 73.
संयुक्त परिवारों के कोई तीन लाभ (गुण) बताइये।
उत्तर:
संयुक्त परिवार के गुण निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 74.
संयुक्त परिवार के कोई तीन दोष बताइये।
उत्तर:
संयुक्त परिवार के दोष निम्नलिखित हैं:
प्रश्न 75.
राज्य के विकास कार्यों, निजी उद्योगों तथा शिक्षा ने जाति प्रथा को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
राज्य के विकास कार्यों, निजी उद्योगों तथा शिक्षा ने जाति प्रथा को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। यथा
प्रश्न 76.
राज्य के विकास कार्यों, निजी उद्योगों तथा शिक्षा की प्रगति के बाद भी जाति प्रथा लचीली साबित हुई। कैसे?
उत्तर:
राज्य के विकास कार्यों व निजी उद्योग व शिक्षा की प्रगति के बाद भी जाति प्रथा लचीली साबित हुई। क्योंकि:
प्रश्न 77.
कारखानेदार शब्द से आपका क्या आशय है?
उत्तर:
कारखानेदार एक देशी भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो ऐसे निर्माण व्यवसाय में संलग्न हो जिसका आमतौर पर वह खुद मालिक हो।
प्रश्न 78.
विस्तृत परिवार के भिन्न - भिन्न रूपों को समझाइए।
उत्तर:
विस्तृत परिवार के भिन्न-भिन्न रूप निम्न हैं:
प्रश्न 79.
अपने समकालीन रूप में जाति सांस्कृतिक और घरेलू क्षेत्रों में सबसे सुदृढ़ सिद्ध हुई है। कैसे ?
उत्तर:
अपने समकालीन रूप में जाति सांस्कृतिक और घरेलू क्षेत्रों में सबसे सुदृढ़ सिद्ध हुई है क्योंकि
प्रश्न 80.
स्वतंत्र भारत में राजनीति में जाति की भूमिका बताइये।
उत्तर:
स्वतंत्र भारत के आरंभिक वर्षों से ही लोकतांत्रिक राजनीति गहनता से जाति पर ही आधारित रही है। जाति चुनावी राजनीति का केन्द्र - बिन्दु बनी हुई है। विभिन्न राजनीतिक दलों में जातीय आधार पर वोट मांगने की प्रतिस्पर्धा विद्यमान है। अनेक जाति आधारित राजनीतिक दल भी उभरे हैं।
प्रश्न 81.
जनजाति से क्या आशय है?
उत्तर:
जनजाति एक आदिवासी सामाजिक समूह है जिसमें कई परिवार, कुल शामिल हों और जो नातेदारी, संजातीयता, सामान्य इतिहास अथवा प्रादेशिक - राजनीतिक संगठन के साझे सम्बन्धों पर आधारित हो। यह एक समावेशात्मक समूह होती है।
प्रश्न 82.
अस्पृश्यता से क्या आशय है ?
उत्तर:
अस्पृश्यता जाति-व्यवस्था के भीतर एक सामाजिक प्रथा है, जिसके द्वारा निम्न जातियों के सदस्य कर्मकांडीय दृष्टि से इतने अपवित्र समझे जाते हैं कि केवल छूने भर से लोगों को अपवित्र या प्रदूषित कर देते हैं। दलित जातियाँ जातीय भाषीय सामाजिक संस्तरण में सबसे नीचे की श्रेणी में आती हैं और ये सामाजिक संस्थाओं से बाहर रखी जाती हैं।
प्रश्न 83.
स्तरीकरण से क्या आशय है ?
उत्तर:
स्तरीकरण समाज के भिन्न-भिन्न टुकड़ों, स्तर अथवा उप-समूहों की उस अधिक्रमित व्यवस्था को कहते हैं, जिनके सभी सदस्य अधिक्रम में एक सामान्य स्थिति रखते हों। स्तरीकरण का निहितार्थ है-असमानता तथा ऊँच-नीच का भाव।
प्रश्न 84.
वर्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वर्ग एक ऐसा आर्थिक समूह है जो उत्पादन के सामाजिक सम्बन्धों में, आय तथा समृद्धि के स्तरों पर, जीवन शैली तथा राजनीतिक अधिमान्यताओं के संदर्भ में सामान्य या समान स्थिति पर आधारित होता है।
प्रश्न 85.
सांस्कृतिक विविधता से क्या आशय है ?
उत्तर:
सांस्कृतिक विविधता-सांस्कृतिक विविधता से आशय बड़े राष्ट्रीय, क्षेत्रीय या अन्य किसी संदर्भ में विभिन्न प्रकार के समुदायों, जैसे-भाषा, धर्म, क्षेत्र आदि के द्वारा परिभाषित समुदायों की उपस्थिति से है। इसमें इन समुदायों की पहचानों की बहुलता या अनेकता विद्यमान होती है।
प्रश्न 86.
एम.एन. श्रीनिवास की प्रभु जाति की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'प्रबल जाति' की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार "एक जाति तब प्रभु (प्रबल) जाति कहलाती है जब वह संख्यात्मक आधार पर गांव या स्थानीय क्षेत्र में शक्तिशाली हो और आर्थिक और राजनीतिक रूप से अपने प्रभाव का प्रबल रूप से प्रयोग करती हो। यह आवश्यक नहीं कि वह जातीय संस्तरण में सर्वोच्च जाति के रूप में हो।"
प्रश्न 87.
जनजातीय पहचान को सुरक्षित रखने का आग्रह दिनोंदिन क्यों बढ़ता जा रहा है?
उत्तर:
जनजातीय पहचान को सुरक्षित रखने का आग्रह दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इसका कारण यह हो सकता है कि जनजातीय समाज के भीतर भी एक मध्यवर्ग का प्रादुर्भाव हो चला है। दूसरे, संस्कृति, परम्परा, आजीविका यहाँ तक कि भूमि तथा संसाधनों पर नियन्त्रण और आधुनिकता की परियोजनाओं के लाभों में हिस्से की माँगें भी जनजातियों में अपनी पहचान को सुरक्षित रखने के आग्रह का अभिन्न अंग बन गई हैं। इसलिए अब जनजातियों में उनके मध्य वर्गों से एक नई जागरूकता की लहर आ रही है। ये मध्य वर्ग स्वयं भी आधुनिक शिक्षा और आधुनिक व्यवसायों का परिणाम है, जिन्हें सरकार की आरक्षण नीतियों से बल मिला है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जाति के प्रायः उद्धृत परिणाम-तत्वों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राचीन काल में मौजूद जाति की सामान्य निर्धारित विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति की सामान्य निर्धारित विशेषताएँ-जाति के प्रायः उद्धृत परिणाम- तत्व (सबसे सामान्य निर्धारित विशेषताएँ) निम्नलिखित हैं
1. बन्द वर्ग: जाति एक बन्द वर्ग है तथा इसका निर्धारण जन्म से होता है। जाति कभी भी चुनाव का विषय नहीं होता है लेकिन जाति के नियमों को तोड़ने पर एक व्यक्ति को जाति से निकाला भी जा सकता है।
2. सजातीय विवाह: जाति की सदस्यता के साथ विवाह सम्बन्धी कठोर नियम शामिल होते हैं। जातिसमूह सजातीय होते हैं अर्थात् विवाह समूह के सदस्यों में ही हो सकते हैं।
3. खान-पान के नियम: जाति सदस्यता में खाने और खाना बाँटने के नियम भी शामिल होते हैं। किस प्रकार का खाना खा सकते हैं और किस प्रकार का नहीं, यह निर्धारित है और किसके साथ खाना बॉटकर खाया जा सकता है, यह भी निर्धारित होता है।
4. श्रेणी तथा प्रस्थिति का अधिक्रम: जाति में श्रेणी एवं प्रस्थिति के एक अधिक्रम में संयोजित अनेक जातियों की एक व्यवस्था शामिल होती है। सैद्धान्तिक तौर पर, हर व्यक्ति की एक जाति होती है और हर जाति का सभी जातियों के अधिक्रम में एक निर्धारित स्थान होता है। जहाँ अनेक जातियों की अधिक्रमित स्थिति, विशेषकर मध्यक्रम की श्रेणियों में, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बदल सकती हैं पर अधिक्रम हमेशा पाया जाता है।
5. खंडात्मक संगठन: जातियों में हमेशा उप-जातियाँ होती हैं और कभी-कभी उपजातियों में भी उपजातियाँ होती हैं। इसे खंडात्मक संगठन कहते हैं।
6. वंशानुगत व्यवसाय: पारंपरिक तौर पर जातियाँ व्यवसाय से जुड़ी होती थीं। एक जाति में जन्म लेने वाला व्यक्ति उस जाति से जुड़े व्यवसाय को ही अपना सकता था। व्यवसाय वंशानुगत थे अर्थात् पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते थे। दूसरी जातियों के सदस्य उस व्यवसाय को नहीं कर सकते थे।
प्रश्न 2.
सैद्धान्तिक दृष्टि से जाति व्यवस्था को किन सिद्धान्तों के आधार पर समझा जा सकता है ?
उत्तर:
सैद्धान्तिक तौर पर जाति व्यवस्था को सिद्धान्तों के दो समुच्चयों के मिश्रण के रूप में समझा जा सकता है। यथा
1. भिन्नता और अलगाव का सिद्धान्त:
इस सिद्धान्त के अनुसार हर जाति से यह अपेक्षित है कि वह दूसरी जाति से भिन्न हो और इसलिए वह प्रत्येक अन्य जाति से कठोरता से पृथक होती है। अतः जाति के अधिकांश धर्मसम्मत नियमों की रूपरेखा जातियों को मिश्रित होने से बचाने के अनुसार बनाई गई है। इन नियमों में शादी, खान-पान एवं सामाजिक अन्तःक्रिया से लेकर व्यवसाय तक के नियम शामिल हैं।
2. सम्पूर्णता और अधिक्रम का सिद्धान्त:
जो ऊपर से नीचे जाती है, में प्रत्येक जाति का एक विशिष्ट स्थान होता है। अधिक्रमित व्यवस्था के अनेक आधार हैं। यथा
(अ) शुद्धता-अशुद्धता का आधार-वे जातियाँ जिन्हें कर्मकांड की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है, उनका स्थान उच्च होता है और जिनको अशुद्ध माना जाता है, उन्हें निम्न स्थान दिया जाता है।
(ब) भौतिक शक्ति का आधार-जिन जातियों के पास आर्थिक तथा सैनिक शक्ति होती है, उनकी स्थिति उच्च होती है और जिनके पास शक्ति नहीं होती, उनकी स्थिति निम्न होती है।
(स) ऐतिहासिक आधार-इतिहासकारों का मानना है कि जो लोग युद्धों में पराजित हुए थे, उन्हें अक्सर निम्न जाति की स्थिति मिली।
प्रत्येक जाति का व्यवस्था में अपना स्थान तय है और वह स्थान किसी भी अन्य जाति को नहीं दिया जा सकता। चूँकि, जाति व्यवसाय से भी जुड़ी होती है अतः प्रत्येक जाति श्रम के सामाजिक विभाजन के अनुरूप कार्य करती है। इस रूप में वे एक-दूसरे की सहयोगी होती हैं, उनमें आपस में प्रतिस्पर्धा नहीं होती है।
प्रश्न 3.
1940 के दशक में पृथक्करण बनाम एकीकरण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
1940 के दशक में पृथक्करण (isolation) बनाम एकीकरण (integration) विषय पर जो प्रसिद्ध वादविवाद चला, वह जनजातीय समाजों की पृथक् हुई संपूर्ण अस्तित्व की मानक तस्वीर पर ही आधारित था। पृथकतावादी पक्ष का कहना था कि जनजातीय लोगों को व्यापारियों, साहूकारों और हिंदू तथा ईसाई धर्मप्रचारकों से बचाए रखने की आवश्यकता है। क्योंकि ये सभी लोग जनजातियों का अलग अस्तित्व मिटाकर उन्हें भूमिहीन श्रमिक बनाना चाहते हैं। दूसरी ओर, एकीकरणवादी पक्ष का कहना था कि जनजातीय लोग पिछड़े हुए हिंदू ही हैं और उनकी समस्याओं का समाधान उसी परिधि के भीतर खोजा जाए जो अन्य पिछड़े वर्गों के मामले में निर्धारित की गई है। इस विरोधी पक्ष का संविधान सभा के वाद-विवादों में बोलबाला रहा और अंततः समझौते के तौर पर यह तय किया गया कि जनजातियों के कल्याण के लिए ऐसी योजनाएँ बनाई जाएँ जिनके माध्यम से उनका नियंत्रित एकीकरण संभव हो जाए।
इसलिए बाद में जनजातीय विकास की जो भी योजनाएँ बनाई गईं, जैसे-पंचवर्षीय योजनाएँ, जनजातीय उप-योजनाएँ, जनजातीय कल्याण खंड, विशेष बहप्रयोजनी क्षेत्र योजनाएँ, वे सभी इसी सोच पर आधारित रही हैं। लेकिन यहाँ बुनियादी मुददा यह है कि जनजातियों के एकीकरण ने उनकी अपनी आवश्यकताओं या इच्छाओं की उपेक्षा की है, एकीकरण मुख्यधारा के समाज की शर्तों पर और उन्हीं को लाभान्वित करने के लिए होता रहा है। जनजातीय समाजों से उनकी जमीनें और वन छीन लिए गए हैं और विकास के नाम पर उनके समुदायों को छिन्न-भिन्न कर दिया गया है।
प्रश्न 4.
औपनिवेशिक युग में जाति संस्था में आए प्रमुख बदलावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक काल (सन् 1800 से 1947 तक) में जाति व्यवस्था में आए बदलावऔपनिवेशिक काल में एक सामाजिक संस्था के रूप में जाति के वर्तमान स्वरूप को तीव्र गति से हुए परिवर्तनों द्वारा मजबूती से आकार प्रदान किया गया। यथा
1. जातियों की पहचान का अधिक स्थिर और कठोर होना-ब्रिटिश प्रशासकों ने देश पर कुशलतापूर्वक शासन करने के उद्देश्य से जाति-व्यवस्था की जटिलताओं को समझने के लिए देशभर में विभिन्न जनजातियों तथा जातियों की प्रथाओं और तौर-तरीकों के बारे में अत्यन्त सुव्यवस्थित रीति से गहन सर्वेक्षण किये और उनके विषय में रिपोर्ट तैयार की गई। जाति के विषय में सूचना एकत्रित करने का सबसे महत्त्वपूर्ण सरकारी प्रयत्न जनगणना के माध्यम से किया गया।
इस दृष्टि से 1901 में हरबर्ट रिजले के निर्देशन में कराई गई गणना विशेष महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस जनगणना के अन्तर्गत जाति के अधिक्रम के बारे में जानकारी इकट्ठी करने का प्रयत्न किया गया अर्थात् किस क्षेत्र में किस जाति को अन्य जातियों की तुलना में सामाजिक दृष्टि से कितना ऊँचा या नीचा स्थान प्राप्त है और तदनुसार श्रेणीक्रम में प्रत्येक जाति की स्थिति निर्धारित कर दी गई। इस प्रकार की जातीय गणना और आधिकारिक रूप से जातियों की प्रस्थिति का अभिलेख करने के प्रत्यक्ष प्रयास ने जाति संस्था के स्वरूप को ही बदल डाला। पहले जातियों की पहचान अपेक्षाकृत बहुत अधिक अस्थिर तथा कम कठोर थी, अब वह अधिक स्थिर और अधिक कठोर हो गई।
2. उच्च जातियों के जाति आधारित अधिकारों को वैध मान्यता देना-औपनिवेशिक काल में भूराजस्व व्यवस्थाओं और उससे सम्बन्धित प्रबंधों एवं कानूनों ने उच्च जातियों के रूढ़िगत (जाति-आधारित) अधिकारों को वैध मान्यता देने का कार्य किया।
3. अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की अनुसूचियों को वैध मान्यता देना-1935 के भारत सरकार अधिनियम ने राज्य द्वारा विशेष व्यवहार के लिए निर्धारित जातियों तथा जनजातियों की अनुसूचियों को वैध मान्यता प्रदान कर दी। इस प्रकार 'अनुसूचित जातियाँ' और 'अनुसूचित जनजातियाँ' शब्द अस्तित्व में आए। जातीय अधिक्रम में जो जातियाँ सबसे नीचे थीं, जिनमें सभी दलित जातियाँ शामिल थीं, को अनुसूचित जातियों की अनुसूची में रखा गया था।
प्रश्न 5.
'विकास' की अनिवार्यताओं ने जनजातियों के प्रति राज्य के रुख या अभिवृत्तियों को शासित किया है और राज्य की नीतियों को आकार दिया है।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास के नाम पर, विशेष रूप से नेहरू युग में, बड़े-बड़े बाँध बनाए गए, कारखाने स्थापित किए गए और खानों की खुदाई शुरू की गई। क्योंकि जनजातीय इलाके देश के खनिज-संपन्न और वनाच्छादित भागों में स्थित थे इसलिए जनजातीय लोगों को शेष भारतीय समाज के विकास के लिए अनुपात से बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ी। इस प्रकार के विकास से, जनजातियों की हानि की कीमत पर मुख्यधारा के लोग लाभान्वित हुए।
जमीनों पर निजी मालिकाना हक (स्वामित्व) दिए जाने से भी जनजातीय लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि उनके यहाँ समुदाय आधारित सामूहिक स्वामित्व की प्रथा थी और उसके स्थान पर नयी व्यवस्था लागू किए जाने से उन्हें हानि उठानी पड़ी। इसका एक सबसे ताजा उदाहरण नर्मदा पर बनाए जा रहे बाँधों की श्रृंखला है जहाँ अधिकांश कीमत, अर्थात् जिन लोगों को इसकी वजह से हानि हुई है, और लाभ असंगत-अनुपात में विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों को मिल रहे हैं।
जनजातीय लोगों की घनी आबादी वाले अनेक क्षेत्रों और राज्यों को विकास के दबाव के कारण गैर-जनजातीय लोगों के भारी संख्या में अप्रवास (आकर बसने) की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है। इससे जनजातीय समुदायों के छिन्न-भिन्न होने और दूसरी संस्कृतियों के हावी हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। उदाहरण के लिए, झारखंड के औद्योगिक इलाकों में वहाँ की जनसंख्या में जनजातीय अनुपात कम हो गया है। लेकिन सबसे अधिक नाटकीय स्थिति संभवतः पूर्वोत्तर क्षेत्र में उत्पन्न हुई है। वहाँ त्रिपुरा जैसे राज्य की जनसंख्या में जनजातीय लोगों का अनुपात एक ही दशक में घटकर आधा रह गया, जिसके परिणामस्वरूप वे अल्पसंख्यक बन गए। अरुणाचल प्रदेश में भी ऐसा ही दबाव महसूस किया जा रहा है।
प्रश्न 6.
स्थायी विशेषकों के अनुसार भारतीय जनजातीय समाजों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर:
जनजातीय समाजों का वर्गीकरण: भारतीय जनजातीय समाजों को उनके स्थायी और अर्जित विशेषकों के अनुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है
(अ) स्थायी विशेषक: जनजातीय समाजों के स्थायी विशेषकों या लक्षणों में क्षेत्र, भाषा, शारीरिक विशिष्टताएँ और पारिस्थितिक आवास शामिल हैं। यथा:
1. क्षेत्र के आधार पर वर्गीकरण:
भारत की जनजातीय जनसंख्या का लगभग 85 प्रतिशत भाग 'मध्य भारत' में रहता है जो पश्चिम में गुजरात तथा राजस्थान से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा तक फैला हुआ है और मध्य भाग में मध्य प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा आन्ध्रप्रदेश के कुछ भाग स्थित हैं। जनजातीय जनसंख्या में से 11 प्रतिशत से अधिक पूर्वोत्तर राज्यों में और बाकी के 3 प्रतिशत थोड़े-से अधिक शेष भारत में रहते हैं।
2. भाषा की दृष्टि से वर्गीकरण: भाषा की दृष्टि से जनजातियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है। यथा
3. शारीरिक: प्रजातीय विशिष्टताओं के आधार पर वर्गीकरण-शारीरिक प्रजातीय दृष्टि से, जनजातियों का नीग्रिटो, आस्ट्रेलायड, मंगोलायड, द्रविड़ और आर्य श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है।
4. जनसंख्या के आकार की दृष्टि से वर्गीकरण: जनसंख्या के आकार की दृष्टि से जनजातियों में बहुत अधिक अन्तर पाया जाता है। सबसे बड़ी जनजाति की संख्या लगभग 70 लाख है जबकि सबसे छोटी जनजाति की संख्या लगभग 100 है।
प्रश्न 7.
भारत में मुख्यधारा के समुदायों को जनजातियों के प्रति किस प्रकार का रवैया रहा है?
उत्तर:
मुख्यधारा के समुदायों का जनजातियों के प्रति रवैया- मुख्यधारा के समुदायों के जनजातियों के प्रति रवैये को दो भागों में विभाजित कर विवेचित किया गया है:
(अ) औपनिवेशिक काल में जनजातियों के प्रति रवैया-यद्यपि औपनिवेशिक युग के प्रारंभिक मनोवैज्ञानिक कृतियों में जनजातियों को एकाकी असंपृक्त सुमदायों के रूप में वर्णित किया गया था, तथापि औपनिवेशिक काल में जनजातियों में निम्न प्रमुख परिवर्तन आए
1. जनजातीय क्षेत्रों में साहूकारों व गैर-जनजातीय लोगों की घुसपैठ-राजनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर, जनजातीय समाजों को पैसा उधार देने वाले तथा कथित साहूकारों की घुसपैठ का सामना करना पड़ रहा था। जनजातीय लोग गैर-जनजातीय प्रवासियों के हाथों अपनी जमीनें खोते जा रहे थे।
2. वनों का आरक्षण-जनजातीय क्षेत्रों में वनों के आरक्षण की सरकारी नीति और खनन कार्यों का प्रारंभ हो जाने से वनों तक उनकी पहुँच भी खत्म होती जा रही थी। क्योंकि इन पहाड़ी और जंगली इलाकों में, वनों और खनिजों जैसे--प्राकृतिक संसाधनों का विनियोजन ही अधिकतर औपनिवेशिक सरकार के लिए आय का प्रमुख स्रोत था।
3 अपवर्जित इलाकों का निर्धारण-18वीं तथा 19वीं शताब्दियों में औपनिवेशिक सरकार ने 'अपवर्जित' और 'आंशिक अपवर्जित' इलाके निर्धारित घोषित कर, इनं क्षेत्रों में गैर-जनजातीय लोगों का प्रवेश पूर्णत: निषिद्ध कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार इन इलाकों में स्थानीय राजाओं (मुखियाओं) के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से शासन चलाना चाहती थी।
(ब) स्वतंत्रता के बाद जनजातियों के प्रति मुख्यधारा के लोगों का एकीकरण का दृष्टिकोण-संविधान सभा में यह निर्धारित किया गया है कि जनजातियों के कल्याण के लिए ऐसी योजनाएं बनाई जाएँ जिनके माध्यम से उनका नियंत्रित एकीकरण संभव हो जाए। बाद में पंचवर्षीय योजनाएँ, जनजातीय उप-योजनाएँ, जनजातीय कल्याण खंड, विशेष बहुप्रयोजनी क्षेत्र योजनाएँ आदि सभी इसी सोच पर आधारित रहीं। लेकिन जनजातियों के एकीकरण ने उनकी अपनी आवश्यकताओं की उपेक्षा की है। यह एकीकरण मुख्यधारा के समाज की शर्तों और उन्हीं को लाभान्वित करने के लिए होता रहा है तथा जनजातीय समाजों से उनके वन और जमीनें छीन ली गईं तथा उनके समुदायों को छिन्न-भिन्न कर दिया गया।
प्रश्न 8.
परिवार के विभिन्न रूप क्या हो सकते हैं ? चर्चा करें।
अथवा
परिवार से आप क्या समझते हैं? इसके विविध रूपों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परिवार से आशय-परिवार समाज का प्रारंभिक समूह है जो विवाह के बाद अस्तित्व में आता है तथा जिसमें पति-पत्नी और उसके अविवाहित बच्चों को सदस्यता प्राप्त होती है।
परिवार के विविध रूप-परिवार के विविध रूपों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है:
1. मूल परिवार एवं संयुक्त (विस्तृत) परिवार: मूल परिवार, परिवार का वह रूप है जिसमें पति-पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। यह परिवार का सबसे छोटा रूप है। विस्तृत परिवार जिसे प्रायः संयुक्त परिवार कहा जाता है, में एक से अधिक युगल (दम्पति) होते हैं और अक्सर दो से अधिक पीढ़ियों के लोग एक साथ रहते हैं। इसमें कई भाई भी हो सकते हैं जो अपने-अपने परिवारों को लेकर संयुक्त परिवार के सदस्य के रूप में रहते हैं या एक बुजुर्ग दम्पति जो अपने बेटों, पोतों और उनके परिवारों के साथ रहते हैं।
2. पत्नी-स्थानिक और पति-स्थानिक परिवार: आवास के नियम के अनुसार कुछ समाज विवाह और पारिवारिक प्रथाओं के मामले में पत्नी-स्थानिक और कुछ पति-स्थानिक होते हैं। पत्नी-स्थानिक परिवार वे होते हैं जिसमें नव-विवाहित जोड़ा वधू के माता-पिता के साथ रहता है और पति-स्थानिक परिवार वे होते हैं जिसमें नवविवाहित जोड़ा वर के माता-पिता के साथ रहता है।
3. मातवंशीय और पितृवंशीय परिवार: उत्तराधिकार के नियम के अनुसार, मातृवंशीय परिवारों में जायदाद माँ से बेटी को मिलती है और पितृवंशीय परिवारों में पिता से पुत्र को।
4. पितृतंत्रात्मक और मातृतंत्रात्मक परिवार: पितृतंत्रात्मक संरचना में पुरुषों की सत्ता व प्रभुत्व होता है और मातृतंत्रात्मक परिवार संरचना में स्त्रियाँ प्रभुत्वकारी भूमिका निभाती हैं। व्यवहार में मातृतंत्रात्मक में भी सत्ता पुरुषों के ही हाथ में रहती है। अन्तर केवल इतना है कि इसमें मामा का महत्त्व पिता से अधिक होता है।
प्रश्न 9.
एम.एन. श्रीनिवासन की संस्कृतिकरण तथा प्रबल जाति की अवधारणा को समझाइए।
अथवा
एम.एन. श्रीनिवासन की संस्कृतिकरण तथा प्रभु जाति की अवधारणाओं से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्र को संस्कृतिकरण तथा प्रभु जाति की अवधारणायें समाजशास्त्री एम.एन. श्रीनिवासन की देन हैं।
1. संस्कृतिकरण की अवधारणा:
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत प्रायः मध्य अथवा निम्न जातियों के सदस्य किसी उच्च जातियों की धार्मिक क्रियाओं, घरेलू या सामाजिक परिपाटियों को अपनाकर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को उच्च बनाने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत समान अनुकरण के लिए प्रायः ब्राह्मण या क्षत्रिय जातियों के रीति-रिवाजों या परिपाटियों को अपनाया जाता है। जैसे-शाकाहारी भोजन करना, यज्ञोपवीत धारण करना, विशिष्ट धार्मिक प्रार्थना तथा उत्सव मनाना इत्यादि । यह प्रक्रिया प्रायः जाति के उन्नत होने के बाद या उसके साथ-साथ अपनाई जाती है।
2. प्रबल जाति की अवधारणा:
इस अवधारणा का प्रयोग ऐसी जातियों के उल्लेख के लिए किया जाता है जिसकी जनसंख्या काफी अधिक होती है तथा जिन्हें स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भूमि सुधारों के द्वारा भूमि सम्बन्धी अधिकार प्रदान किये गये थे। इन भूमि सुधारों में पहले के दावेदारों से अधिकार छीन लिए गये थे। ये दावेदार उच्च जातियों के वे सदस्य थे जो कि इस अर्थ में अनुपस्थित या दूरगामी जमींदार थे कि वे अपना लगान वसूल करने के अलावा कृषि अर्थव्यवस्था में कोई भूमिका अदा नहीं करते थे। उनके आवास सम्बन्धित गाँव में न होकर कस्बों या नगरों में हुआ करते थे। अब ये भूमि सम्बन्धी अधिकार अगले दावेदारों को प्राप्त हो गये जो कृषि के प्रबन्ध में तो सम्मिलित थे परन्तु स्वयं भूमि नहीं जोतते थे। ये मध्यवर्ती जातियाँ भी स्वयं कोई श्रम नहीं करती थीं अपितु अपनी भूमि की देखभाल, जुताई तथा कटाई के लिए निम्न जातियों पर निर्भर थीं।
इनमें दलित लोगों की संख्या अधिक थी। परन्तु एक बार जब इन लोगों को भूमि सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हो गये तो इन्होंने पर्याप्त आर्थिक शक्ति प्राप्त कर ली। बाद में लोकतंत्र तथा वयस्क मताधिकार से इन्हें राजनीतिक शक्ति भी मिल गई। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि संस्कृतिकरण तथा प्रबल जाति की अवधारणायें एम.एन. श्रीनिवासन की महत्त्वपूर्ण देन हैं।
प्रश्न 10.
जाति और जनजाति में अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
एक जाति जनजाति से किस रूप में भिन्न होती है?
उत्तर:
जाति और जनजाति के मध्य निम्न अन्तर हैं
1. जाति और जनजाति में प्रमुख अन्तर शुचिता या शुद्धता तथा अशुचिता या अशुद्धता से सम्बन्धित है। जातियों में कर्मकाण्डीय दृष्टि से उच्च जातियों को शुद्ध तथा दलित जातियों को अशुद्ध माना जाता है परन्तु जनजातियों में ऐसा कोई नियम नहीं होता है।
2. जाति व्यवस्था अधिक्रमित एकीकरण में विश्वास करने वाली हिन्दू जातियों में पाई जाती है। इसमें प्रत्येक जाति का समाज में निश्चित स्थान तथा श्रेणी होती है जबकि जनजातियाँ अपेक्षाकृत अधिक समतावादी और नातेदारी पर आधारित सामाजिक संगठन की रीतियों वाली जीवधारी व्यवस्था होती हैं।
3. जाति व्यवस्था की उत्पत्ति हिन्दू समाज व्यवस्था में विभिन्न कार्यों और व्यवसायों के आधार पर श्रम विभाजन के लिए आरम्भ हुई थी, जबकि जनजाति की उत्पत्ति निश्चित भू-भाग में रहने के कारण तथा सामूहिकता की भावना के कारण हुई।
4. हरबर्ट रिजले के अनुसार-"जनजाति में अन्तरविवाह का नियम कठोर नहीं होता परन्तु जाति में इस नियम का कठोरता से पालन किया जाता है।"
5. मैक्स वेबर के अनुसार जब कोई भारतीय जनजाति अपने महत्त्व को खो बैठती है तो वह भारतीय जाति का रूप धारण कर लेती है। इस दृष्टि से जनजाति एक स्थानीय समूह है, जबकि जाति एक सामाजिक समूह है।
6. जनजाति की अपेक्षा एक जाति में उच्चता और निम्नता की भावना अधिक मात्रा में पाई जाती है।
7. जाति कभी भी एक राजनीतिक समिति नहीं होती है, जबकि जनजाति एक राजनीतिक समिति होती है।
8. डॉ. मजूमदार के अनुसार एक जनजाति हिन्दू कर्मकाण्ड का अनुसरण तथा देवी-देवताओं की उपासना करते हुए भी उन्हें विदेशी तथा विधर्मी प्रथायें मानती है, जबकि जाति में इन्हें आवश्यक अंग के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है।
9. जाति में अधिकांश व्यक्ति प्रायः वही व्यवसाय करते हैं, जो कि उनकी जाति के लिए निश्चित होता है, जबकि जनजाति में लोग इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय कर सकते हैं क्योंकि जनजाति में व्यवसाय सम्बन्धी निश्चित नियम नहीं होते हैं।
प्रश्न 11.
भारत में जनजातियों की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए।
अथवा
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जनजातियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्तन आये हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जनजातियों की स्थिति में कई परिवर्तन आये हैं:
1. राष्ट्रीय विकास के नाम पर जनजातीय क्षेत्रों में कारखाने लगाये गये तथा खनन कार्य आरम्भ हुए। इसके लिए जनजातीय लोगों को अपने क्षेत्रों से बहिष्कृत होना पड़ा। खनिज संयंत्र तथा जल संयंत्रों की स्थापना के कारण जनजातीय लोगों से उनकी भूमि छिनती चली गई।
2. वनों पर सरकारी आधिपत्य तथा वनों की कटाई पर रोक के परिणामस्वरूप जनजातीय लोगों को वनों से वंचित होना पड़ा। भूमि को निजी क्षेत्र में देने के कारण जनजातीय लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उनकी सामूहिक स्वामित्व की भावना समाप्त हो गई। नर्मदा सरोवर परियोजना के दुष्प्रभाव इसी के परिणाम हैं।
3. जनजातीय लोगों को घनी आबादी वाले क्षेत्रों तथा राज्यों के विकास के दबाव के कारण गैर-जनजातीय लोगों के आप्रवास की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जनजातीय क्षेत्रों के छिन्न-भिन्न हो जाने तथा जनजातीय संस्कृति पर बाहरी संस्कृतियों के हावी होने का खतरा पैदा हो गया है।
4. आज कई जातियाँ बाहरी सम्पर्क के कारण अपनी पहचानों को खोती जा रही हैं। इसके कारण जनजातीय लोगों में विरोध का स्वर भी उठने लगा है।'
5. यद्यपि आज झारखण्ड तथा छत्तीसगढ़ को राज्यों का दर्जा मिल चुका है परन्तु इस सकारात्मक सफलता का प्रभाव अन्य जनजातीय क्षेत्रों पर देखा जा सकता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में अनेक कानूनों के अन्तर्गत कई जनजातीय लोगों से उनकी स्वतंत्रतायें छिन चुकी हैं। मणिपुर तथा नागालैण्ड के नागरिकों को वे अधिकार प्राप्त नहीं हैं जिन्हें अन्य राज्यों के लोग भोग रहे हैं।
6. जनजातियों में शिक्षित वर्ग का उदय हुआ है। आरक्षण की नीतियों के अन्तर्गत यह वर्ग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होकर आन्दोलन की राह को अपनाने लगा है। जनजातियों में विकास तथा वर्गों के बढ़ने के कारण जनजातीय पहचान के और खतरे में आने की सम्भावना हो गई है।
7. नृजातीय तथा सांस्कृतिक पहचान के लिए मध्यवर्गीय जनजातीय लोगों के हाथों निम्नवर्गीय जनजातीय लोग आन्दोलन के लिए खिलौना बन गये हैं, जिससे निम्नवर्गीय जनजातीय लोगों की स्थिति और दुर्बल होती जा रही है।
प्रश्न 12.
मातृवंश द्वारा उत्पन्न उन संरचनात्मक तनावों के बारे में बताइए जिनसे समकालीन खासी समाज के पुरुष तथा स्त्रियाँ प्रभावित होते हैं।
उत्तर:
मेघालय उत्तराधिकार अधिनियम को 1986 में राष्ट्रपति से स्वीकृति मिली। अधिनियम विशेष तौर पर खासी और जैन्तिया जनजाति पर लागू होता है और 'उस खासी या जैन्तिया व्यक्ति पर मान्य है जो बुद्धि से सबल है और अल्प - आयु नहीं है; उस व्यक्ति को अपनी खुद की बनाई हुए जायदाद की वसीयत बनाने का अधिकार है। वसीयत बनाने की प्रथा खासियों में नहीं है। खासी प्रथा मातृ वंशज के आधार पर जायदाद को अमुक स्त्री को सुपुर्द किए जाने की बात करती है। खासियों में, विशेषतः पढ़े-लिखे खासियों को ऐसा प्रतीत होता है कि उनके संबंधों और उत्तराधिकार के नियम, स्त्रियों के पक्ष में हैं और अपने आप में सीमित भी हैं। अतः यह अधिनियम खासी परंपरा में व्याप्त महिलाओं के पक्ष में किए गए पक्षपात को ठीक कर इस सीमितता को समाप्त करने का एक प्रयास है। कई विशेषज्ञों ने मातृवंशीय व्यवस्थाओं में अंतर्निहित विरोधाभासों पर ध्यान केंद्रित किया है। एक ऐसा विरोधाभास वंशानुक्रम की रेखा और उत्तराधिकार एवं नियंत्रण और सत्ता की संरचना के अलगाव से उत्पन्न होता है।
पहला संदर्भ जो माँ और बेटी को जोड़ता है वह दूसरे संदर्भ के आ जाने से प्रतिद्वंद्विता की उत्पत्ति होती है जो माँ के भाई को बहन के बेटे से जोड़ता है।खासी मातृवंश पुरुषों के लिए गहन भूमिका द्वंद्व की स्थिति उत्पन्न करता है। वो अपनी पत्नी और बच्चों एवं जन्म के घर की जिम्मेदारियों के बीच बँट जाते हैं। एक तरह से भूमिका - द्वंद्व द्वारा उत्पन्न इस तनाव का असर खासी स्त्रियों पर बहुत ज़्यादा पड़ता है। एक स्त्री कभी सुनिश्चित नहीं कर सकती कि उसके पति को उसकी बहन का घर ज्यादा अच्छा लगता है या अपना स्वयं का।
उसी तरह बहन सोचेगी कि शादीशुदा भाई अपनी बहन के प्रति जिम्मेदारियों को भूल जाएगा। खासी मातृवंशीय व्यवस्था में उत्पन्न भूमिका - द्वंद्व से पुरुषों की बजाय अंततः स्त्रियाँ ज्यादा गहन रूप से प्रभावित होती हैं, सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि पुरुष अधिकारों के स्वामी हैं और स्त्रियाँ इससे वंचित हैं पर इसलिए भी क्योंकि समाज पुरुषों को नियम तोड़ने पर उन्हें कम सजा देता है या नजरअंदाज कर देता है। खासी समाज में स्त्रियों के पास सिर्फ नाम का अधिकार होता है असली अधिकार पुरुषों के हाथ में होता है। हाँ, इतना जरूर है कि यह व्यवस्था पुरुष के मातृ - नातेदार की तरफ झुकी हुई है न कि पितृ - नातेदार की तरफ (दूसरे शब्दों में मातृवंश के बावजूद, पुरुष ही खासी समाज में शक्ति के स्वामी हैं ; सिर्फ एक अंतर है कि एक पुरुष के लिए उसकी माँ की तरफ के रिश्तेदारों का उसके पिता की तरफ के रिश्तेदारों से ज्यादा महत्त्व होता है)।
प्रश्न 13.
समाज सुधार की दिशा में विभिन्न समाज सुधारकों का योगदान बताइए।
अथवा
अस्पृश्यता उन्मूलन तथा जाति उन्मूलन की दिशा में विभिन्न समाज सुधारकों का योगदान बताइए।
उत्तर:
समाज सुधार की दिशा में निम्न सुधारकों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था
1. सावित्री बाई फुले:
2. ई.वी. रामास्वामी नायकर:
3. नारायण गुरु:
4. अयन्कल्ली:
5. अम्बेडकर तथा गाँधी:
इन्होंने अस्पृश्यता के उन्मूलन की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किये। गाँधीजी ने अस्पृश्यता तथा अन्य जातीय प्रतिबन्धों के विरुद्ध जनमत एकत्रित किया। साथ में ही भू-स्वामी तथा उच्च वर्गों के लोगों को यह भी आश्वासन दिया कि उनके हितों की रक्षा की जायेगी। अन्त में, यह कहा जा सकता है कि जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता के उन्मूलन में विभिन्न समाज सुधारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।
प्रश्न 14.
खासी जनजातीय परिवार में उत्तराधिकार की क्या व्यवस्था है ? उसमें निहित भूमिका द्वन्द्व की स्थिति को समझाइये।
उत्तर:
खासी जनजातीय परिवार में उत्तराधिकार की व्यवस्था खासी जनजातीय परिवारों में मातृवंशीय व्यवस्था प्रचलित है। इसके अन्तर्गत उत्तराधिकार माँ से बेटी को जाता है अर्थात् एक स्त्री अपनी माँ से जायदाद उत्तराधिकार में पाती है और अपनी बेटी को देती है, जबकि एक पुरुष अपनी बहन की जायदाद पर नियन्त्रण रखता है और वो यह नियन्त्रण अपनी बहन के बेटे को देता है। इस तरह सम्पत्ति का कानूनी उत्तराधिकार तो माँ से बेटी को जाता है, पर व्यावहारिक रूप से यह अधिकार मामा से भानजे को जाता है।
भूमिका द्वन्द्व की स्थिति - खासी मातृवंश पुरुषों के लिए गहन भूमिका द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न करता है। वह अपनी पत्नी एवं बच्चों एवं जन्म के घर की जिम्मेदारियों के बीच बँट जाते हैं। इस तरह से भूमिका द्वन्द्व द्वारा उत्पन्न इस तनाव का असर खासी स्त्रियों पर बहुत ज्यादा पड़ता है। एक स्त्री कभी सुनिश्चित नहीं कर सकती कि उसके पति को उसकी बहन का घर ज्यादा अच्छा लगता है या अपना स्वयं का। उसी तरह बहन सोचेगी कि शादीशुदा भाई अपनी बहन के प्रति जिम्मेदारियों को भूल जाएगा। इस भूमिका द्वन्द्व से अन्ततः स्त्रियाँ गहन रूप से प्रभावित होती हैं क्योंकि व्यवहार में तो पुरुष ही अधिकारों के स्वामी हैं और उन्हें नियम तोड़ने की सजा भी कम मिलती है। 1986 में मेघालय उत्तराधिकार अधिनियम, जो खासी और जैन्तिया जनजाति पर लागू है, पारित किया गया है जिसमें व्यक्ति को अपनी खुद की बनाई हुई जायदाद की वसीयत बनाने का अधिकार दिया गया है।