Rajasthan Board RBSE Class 12 Sociology Important Questions Chapter 2 सांस्कृतिक परिवर्तन Important Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
औपनिवेशिक भारत कौन-कौनसी सामाजिक कुरीतियों से ग्रस्त था?
(क) सती प्रथा
(ख) बाल विवाह
(ग) जाति प्रथा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
राममोहन राय ने किसका विरोध किया?
(क) सती प्रथा
(ख) बाल विवाह
(ग) जाति प्रथा
(घ) पुनर्विवाह
उत्तर:
(क) सती प्रथा
प्रश्न 3.
रानाडे ने किस प्रथा का समर्थन किया था?
(क) विधवा पुनर्विवाह
(ख) सती प्रथा
(ग) बाल विवाह
(घ) जाति प्रथा
उत्तर:
(क) विधवा पुनर्विवाह
प्रश्न 4.
संस्कृतीकरण एक प्रक्रिया है
(क) दलितों द्वारा उच्च जाति के रीति - रिवाज अपनाने की
(ख) उच्च जाति द्वारा दलितों के रीति - रिवाज अपनाने की
(ग) दोनों जातियों द्वारा एक - दूसरे की रीति - रिवाज अपनाने की
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(क) दलितों द्वारा उच्च जाति के रीति - रिवाज अपनाने की
प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण प्रक्रिया है
(क) भारतीय जीवन-शैली अपनाना
(ख) मशीनीकरण करना
(ग) भारतीय समाज और संस्कृति में ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) भारतीय समाज और संस्कृति में ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन
प्रश्न 6.
"निम्न जाति के लोग संस्कृतीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हैं जबकि उच्च जाति के लोग पश्चिमीकरण को।"
यह कथन किसने कहा?
(क) ज्योतिबा फुले
(ख) आर. के. मुखर्जी
(ग) श्रीनिवास
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) श्रीनिवास
प्रश्न 7.
आधुनिकीकरण है
(क) औद्योगिक और उत्पादन में होने वाला सुधार
(ख) सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और विश्वजनीय दृष्टिकोण
(ग) सीमित, संकीर्ण स्थानीय दृष्टिकोण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ख) सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और विश्वजनीय दृष्टिकोण
प्रश्न 8.
पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ है
(क) धर्म के प्रभाव में कमी आना
(ख) धर्म के प्रभाव में वृद्धि होना
(ग) आधुनिकता में वृद्धि होना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) धर्म के प्रभाव में कमी आना
प्रश्न 9.
अंजुमन - ए - ख्वातीन - ए - इस्लाम की स्थापना हुई
(क) 1910 ई. में
(ख) 1914 ई. में
(ग) 1912 ई. में
(घ) 1919 ई. में
उत्तर:
(ख) 1914 ई. में
प्रश्न 10.
इस्लाम की विवेचना की और उसमें स्वतंत्र अन्वेषण की वैधता का उल्लेख किया
(क) राममोहन राय
(ख) विरेशलिंगम
(ग) मौलाना आजाद
(घ) सर सैयद अहमद खान
उत्तर:
(घ) सर सैयद अहमद खान
प्रश्न 11.
विद्यासागर की पुस्तक का मराठी अनुवाद प्रकाशित किया
(क) विष्णु शास्त्री
(ख) ज्योतिबा फुले
(ग) पंडिता रमाबाई
(घ) राजा राममोहन राय
उत्तर:
(क) विष्णु शास्त्री
प्रश्न 12.
संस्कृतीकरण शब्द की उत्पत्ति की
(क) विरेशलिंगम
(ख) नारायण गुरु
(ग) एम.एन. श्रीनिवास
(घ) दयानंद सरस्वती
उत्तर:
(ग) एम.एन. श्रीनिवास
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
प्रश्न 1.
...............और ...............ने जनजीवन को काफी हद तक रूपान्तरित किया।
उत्तर:
औद्योगीकरण, नगरीकरण
प्रश्न 2.
.............भारत में मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्रस्तरीय संस्था थी।
उत्तर:
अंजुमन - ए - ख्वातीन - ए - इस्लाम
प्रश्न 3.
विष्णु शास्त्री ने सन्...............में, इंदु प्रकाश ने विद्यासागर की पुस्तक का मराठी अनुवाद प्रकाशित किया।
उत्तर:
1868
प्रश्न 4.
समाज सुधारक...............ने पुणे में महिलाओं के लिए पहला विद्यालय खोला।
उत्तर:
ज्योतिबा फुले
प्रश्न 5.
बाल गंगाधर तिलक ने...............के युग को गरिमामय माना।
उत्तर:
आर्यों
प्रश्न 6.
............. नामक पत्रिका ने बहुविवाह का खुलकर विरोध किया था।
उत्तर:
तहसिब - ए - निसवान
प्रश्न 7.
............... का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसमें निम्न जाति या जनजाति या अन्य समूह उच्च जातियों की जीवन पद्धति का अनुकरण करते हैं।
उत्तर:
संस्कृतीकरण
प्रश्न 8.
भारत में............... और...............का प्रारम्भ औपनिवेशिक शासन से सम्बन्ध रखती है।
उत्तर:
आधुनिकीकरण, पंथनिरपेक्षीकरण
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पंजाब से निकलने वाली महिलाओं की किस पत्रिका ने खुलकर बहु विवाह विरोधी प्रस्ताव का समर्थन किया?
उत्तर:
'तहसिब - ए - निसवान' नामक पत्रिका ने।
प्रश्न 2.
'तहसिब - ए - निसवान' क्या है?
उत्तर:
'तहसिब - ए - निसवान' पंजाब से निकलने वाली महिलाओं की एक पत्रिका है।
प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना कहाँ हुई?
उत्तर:
बंगाल में।
प्रश्न 4.
आर्य समाज की स्थापना किस राज्य में हुई ?
उत्तर:
पंजाब राज्य में।
प्रश्न 5.
पुणे में महिलाओं के लिए पहला विद्यालय किस समाज सुधारक ने खोला?
उत्तर:
ज्योतिबा फुले ने।
प्रश्न 6.
जहांआरा शाह निवास ने किस कुप्रथा के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया?
उत्तर:
बहु विवाह के विरुद्ध।
प्रश्न 7.
ब्रह्म समाज ने किस कुप्रथा का विरोध किया?
उत्तर:
सती प्रथा का।
प्रश्न 8.
संस्कृतीकरण की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवास ने।
प्रश्न 9.
संस्कृतीकरण सामान्य रूप से किस धर्म से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म से।
प्रश्न 10.
जुलियस हक्सले द्वारा लिखे ग्रन्थों को किसने अनुवादित किया?
उत्तर:
कंदुकीरी विरेशलिंगम।
प्रश्न 11.
भारत में मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्र स्तरीय संस्था का नाम लिखिये।
उत्तर:
'अंजुमन - ए - ख्वातीन - ए - इस्लाम'।
प्रश्न 12.
'अंजुमन - ए - ख्वातीन - ए - इस्लाम' की स्थापना किस सन् में हुई?
उत्तर:
सन् 1914 में।
प्रश्न 13.
19वीं सदी में भारत में प्रचलित किन्हीं दो सामाजिक कुरीतियों के नाम लिखिये।
उत्तर:
प्रश्न 14.
'द सोर्स ऑफ नॉलेज' नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
कंदुकीरी विरेशलिंगम ने।
प्रश्न 15.
समाजशास्त्री सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों की रूपरेखा से जुड़े किन तीन पहलुओं की विवेचना की है ?
उत्तर
प्रश्न 16.
किस समाजसुधारक ने आर्यों के आगमन से पूर्व के काल को अच्छा माना?
उत्तर:
ज्योतिबा फुले ने।
प्रश्न 17.
किस समाजसुधारक ने आर्यों के युग को गरिमामय माना? उत्तर - बाल गंगाधर तिलक ने।
प्रश्न 18.
जहाँ गैर संस्कृतीकरण जातियाँ प्रभुत्वशाली थीं, वहाँ की संस्कृति को इन जातियों ने प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को श्रीनिवास ने क्या नाम दिया है ? .
उत्तर:
विसंस्कृतीकरण।
प्रश्न 19.
क्या पश्चिमी संस्कृति को अपनाने वाला प्रजातंत्र और सामाजिक समानता भी अपनाता है ?
उत्तर:
यह आवश्यक नहीं है, अपना भी सकता है और नहीं भी।
प्रश्न 20.
क्या पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अच्छाई की तरफ ले जाती है?
उत्तर:
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अच्छे - बुरे का आभास नहीं कराती।
प्रश्न 21.
पश्चिमीकरण के दो वाहक बताइये।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के वाहक हैं:
प्रश्न 22.
संचार के विभिन्न स्वरूपों को किसने गति प्रदान की?
उत्तर:
नयी प्रौद्योगिकी ने ।
प्रश्न 23.
केशवचन्द्र सेन ने मद्रास का दौरा कब किया?
उत्तर:
1864 में।
प्रश्न 24.
बंगाल और पंजाब में किस आधुनिक सामाजिक संगठनों की स्थापना हुई?
उत्तर:
बंगाल में ब्रह्म समाज और पंजाब में आर्य समाज की स्थापना हुई।
प्रश्न 25.
भारत में पूँजीवाद का प्रारम्भ किस काल में हुआ?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल।
प्रश्न 26.
पंथनिरपेक्षीकरण क्या है?
उत्तर:
पंथनिरपेक्षीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत धर्म के प्रभाव में कमी आती हैं।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संस्कृतीकरण अवधारणा का क्या तात्पर्य है ?
अथवा
संस्कृतीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
अथवा
संस्कृतीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संस्कृतीकरण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसमें दलितों या जनजाति या अन्य समूह, उच्च जाति की जीवन पद्धति, रीति-रिवाज नामों आदि का अनुकरण कर अपनी प्रस्थिति को उच्च बनाता है।
प्रश्न 2.
आधुनिकीकरण का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर;
आधुनिकीकरण का तात्पर्य प्रौद्योगिकी और उत्पादन प्रक्रियाओं में होने वाले सुधार, पाश्चात्य ढंग के विकास, सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और विश्वजनीन दृष्टिकोण तथा उपयोगिता और विज्ञान की सत्यता पर बल देने वाली प्रक्रिया से है।
प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पाश्चात्य संदर्भ में, धर्मनिरपेक्षता से आशय है - चर्च और राज्य की पृथकता। भारतीय संदर्भ में इससे आशय है - सर्वधर्म समभाव और धार्मिक अल्पसंख्यकों का राज्य द्वारा संरक्षण।
प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण की परिभाषा दें।
उत्तर:
"पश्चिमीकरण में डेढ़ सौ वर्षों से अधिक के अंग्रेजी शासन के फलस्वरूप भारतीय समाज और संस्कृति में आए परिवर्तन तथा विभिन्न स्तरों पर प्रौद्योगिकी, संस्थाओं, विचारधाराओं और मूल्यों में आए परिवर्तन सम्मिलित हैं।"
प्रश्न 5.
आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
आधुनिकीकरण में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों का समावेश होता है जबकि पश्चिमीकरण में पश्चिमी सांस्कृतिक तत्त्वों, जैसे-पाश्चात्य पोशाक, खाद्य पदार्थ, आम लोगों की आदतों तथा तौरतरीकों का समावेश होता है।
प्रश्न 6.
श्रीनिवास के अनुसार प्रभु जाति कौन हो सकती है?
उत्तर:
श्रीनिवास के अनुसार
प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किस प्रकार किया?
उत्तर:
राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध करते हुए न केवल मानवीय व प्राकृतिक अधिकारों से संबंधित आधुनिक सिद्धांतों का हवाला दिया बल्कि उन्होंने हिंदू शास्त्रों का भी संदर्भ दिया।
प्रश्न 8.
विसंस्कृतीकरण क्या है ?
उत्तर:
जहाँ गैर-संस्कृतीकरण जातियाँ प्रभुत्वशाली थीं तथा वहाँ की स्थानीय संस्कृति को इन जातियों ने प्रभावित किया। इस प्रक्रिया को श्रीनिवास ने विसंस्कृतीकरण की संज्ञा दी है।
प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण का मध्य वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पश्चिमीकरण के प्रभावस्वरूप मध्य वर्ग की दो पीढ़ियों के सोचने, पहनने, ओढ़ने, बोलने-चालने आदि के तरीकों में काफी फर्क आ गया जिससे पीढ़ियों का संघर्ष जटिल हो गया।
प्रश्न 10.
पश्चिमीकरण चेतन प्रक्रिया है या अचेतन?
उत्तर:
पश्चिमीकरण चेतन और अचेतन दोनों प्रकार की प्रक्रिया है। जहाँ एक ओर कुछ लोगों ने जानबूझकर अंग्रेजी संस्कृति का अनुकरण किया, वहीं कुछ लोग अचेतन रूप से इससे प्रभावित हुए हैं।
प्रश्न 11.
क्या संस्कृतीकरण के कारण विभिन्न जातियों के बीच की दूरी कम हो रही है?
उत्तर:
हाँ, संस्कृतीकरण के कारण विभिन्न जातियों के बीच की दूरी कम हो रही है क्योंकि दलित जातियाँ उच्च जातियों के रीति-रिवाज व मूल्यों को अपना रही हैं तो ऊँची जातियाँ भी दलितों के व्यवसायों को अपना रही हैं।
प्रश्न 12.
सामाजिक संरचना का अर्थ बताइये।
उत्तर:
सामाजिक संरचना लोगों के सम्बन्धों की वह सतत् व्यवस्था है जिसे सामाजिक रूप से स्थापित प्ररूप के प्रतिमान के रूप में सामाजिक संस्थाओं और संस्कृति के द्वारा परिभाषित व नियंत्रित किया जाता है।
प्रश्न 13.
पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण ने जाति पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण के कारण जाति-व्यवस्था कमजोर हुई है। अब जाति में खान - पान, व्यवसाय, निर्योग्यताएँ इत्यादि कमजोर हुए हैं।
प्रश्न 14.
औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन से जुड़े संचार माध्यम के प्रमुख साधन कौन-कौन से थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन से जुड़े संचार माध्यम के प्रमुख साधन प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ, माइक्रोफोन, लोगों के आवागमन के साधन एवं पानी के जहाज व रेल थे।
प्रश्न 15.
विरेशलिंगम के कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कंदुकीरी विरेशलिंगम की पुस्तक 'द सोर्स ऑफ नॉलेज' में नव्य - न्याय के तर्कों को देखा जा सकता है। उन्होंने जुलियस हक्सले द्वारा लिखे ग्रंथों को भी अनुवादित किया।
प्रश्न 16.
सुधारकों ने आधुनिकता और परम्परा पर विस्तृत वाद-विवाद किया। एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सुधारकों ने आधुनिकता और परंपरा पर विस्तृत वाद - विवाद किया। उदाहरण-जोतिबा फुले ने आर्यों के आगमन से पूर्व के काल को अच्छा माना जबकि बाल गंगाधर तिलक ने आर्यों के युग को गरिमामय माना।
प्रश्न 17.
सती प्रथा तथा बहुविवाह विरोधी याचिका में रूढ़िवादी हिन्दुओं द्वारा क्या तर्क दिया गया था?
उत्तर:
याचिका में रूढ़िवादी हिंदुओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि सुधारकों को कोई अधिकार नहीं है कि वो धर्मग्रंथों की व्याख्या करें।
प्रश्न 18.
क्या आधुनिकीकरण केवल आर्थिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
नहीं, आधुनिकीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें भौतिक शक्ति का वृद्धिकरण, उत्पादन के यंत्रों व साधनों में सुधार के साथ-साथ समाज में रहन-सहन का स्तर उच्च होता है।
प्रश्न 19.
आधुनिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
आधुनिकता का अर्थ है - सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और विश्वजनीन दृष्टिकोण अपनाना; उपयोगिता, गणना और विज्ञान की सत्यता को महत्त्व देना; समूह के स्थान पर सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर व्यक्ति को प्राथमिकता देना तथा इच्छा - आधारित समूह/संगठन में रहते हुए व कार्य करते हुए जन्म व भाग्यवादी प्रवृत्ति के स्थान पर ज्ञान तथा नियंत्रण क्षमता को प्राथमिकता देना।
प्रश्न 20.
आधुनिकता की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आधुनिकता की विशेषताएँ ये हैं
प्रश्न 21.
भारतीय समाज में पश्चिमीकरण से क्या परिवर्तन आए?
अथवा
पश्चिमीकरण के दो प्रभाव लिखिये।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के दो प्रभाव निम्नलिखित हैं।
(1) जीवन शैली और चिंतन पर प्रभाव:
पश्चिमीकरण के प्रभावस्वरूप लोगों ने पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया। इसके अलावा नए पश्चिमी उपकरणों का प्रयोग, पोशाक, खाद्य - पदार्थ तथा आम लोगों की आदतों व तौर-तरीकों को प्रभावित किया।
(2) भारतीय कला व साहित्य पर प्रभाव:
भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा। रवि वर्मा के चित्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
प्रश्न 22.
"आधुनिक युग धार्मिक जीवन को आवश्यक रूप से विलुप्त करेगा।" इस पर अपने विचार लिखिये।
उत्तर:
यद्यपि धर्मनिर्पेक्षीकरण के सभी सूचक आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों से लोगों की दूरी को बढ़ा रहे हैं तथापि यह विचार कि आधुनिक युग आवश्यक रूप से धार्मिक जीवन को विलुप्त करेगा, पूरी तरह से सच नहीं है। उदाहरण के लिए संचार के आधुनिक प्रकारों, संगठन और विचार के स्तर पर नए प्रकार के धार्मिक सुधार संगठनों का उद्भव हुआ।
प्रश्न 23.
रानाडे ने विधवा विवाह के समर्थन में क्या तर्क दिया?
उत्तर:
रानाडे ने विधवा-विवाह के समर्थन में शास्त्रों का संदर्भ देते हुए 'द टेक्स्ट ऑफ द हिंदू लॉ' जिसमें उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को नियम के अनुसार बताया। इस संदर्भ में उन्होंने वेदों के उन पक्षों का उल्लेख किया जो विधवा पुनर्विवाह को स्वीकृति प्रदान करते हैं और उसे शास्त्र सम्मत मानते हैं।
प्रश्न 24.
नयी प्रौद्योगिकी के रूप में प्रिंटिंग प्रेस का क्या योगदान रहा?
उत्तर:
प्रिंटिंग प्रेस के द्वारा समाज सुधारकों ने जन-संचार के माध्यम जैसे-अखबार, पत्रिका आदि के माध्यम से भी सामाजिक विषयों पर वाद-विवाद जारी रखा। समाज सुधारकों द्वारा लिखे हुए विचारों का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ।
प्रश्न 25.
सर सैयद अहमद खान द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम की विवेचना की और उसमें स्वतंत्र अन्वेषण की वैधता (इजतिहाद) का उल्लेख किया। उन्होंने कुरान में लिखी गई बातों और आधुनिक विज्ञान द्वारा स्थापित प्रकृति के नियमों में समानता जाहिर की।
प्रश्न 26.
एक विचार के रूप में 'संस्कृतीकरण' की अनेक स्तरों पर समालोचना हुई है। आलोचना के किन्हीं दो बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
संस्कृतीकरण की अवधारणा की कोई तीन आलोचनाएँ लिखिये।
उत्तर:
संस्कृतीकरण की अवधारणा की आलोचनाएँ
प्रश्न 27.
एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार पश्चिमीकरण का क्या आशय है ?
उत्तर:
एम.एन. श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण की परिभाषा देते हुए कहा है कि यह भारतीय समाज और संस्कृति में लगभग 150 सालों के ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं, जिसमें विभिन्न पहलु आते हैं, जैसेप्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा और मूल्य। इसमें पश्चिमी प्रतिमान, चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों और जीवन शैली को अपनाया जाता है।
प्रश्न 28.
कुमुद पावडे की आत्मकथा के आधार पर लिंग और संस्कृतीकरण पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया महिलाओं को पुरुषों से पृथक करती है। इसमें महिलाओं की स्थिति पुरुषों के मुकाबले भिन्न होती है। कुमुद पावडे जैसे - जैसे अपने संस्कृत साहित्य के अध्ययन में आगे बढ़ी हैं, उन्हें अनेक प्रकार की सामाजिक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा जिनमें आश्चर्य से लेकर ईर्ष्या और अस्वीकृति तक शामिल थीं।
प्रश्न 29.
संसाधन गतिशीलता का सिद्धान्त हमें सामाजिक आन्दोलनों के बारे में क्या बताता है ?
उत्तर:
संसाधन गतिशीलता का सिद्धान्त हमें यह बताता है कि सामाजिक आन्दोलनों की सफलता संसाधनों या विभिन्न तरह की योग्यताओं को गतिशील करने की क्षमता पर निर्भर करती है। यदि एक आन्दोलन नेतृत्व, संगठनात्मक क्षमता तथा संचार सुविधाओं जैसे संसाधनों को उपलब्ध राजनीतिक अवसर संरचना में प्रयोग करता है, तो वह प्रभावी होगा।
प्रश्न 30.
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर:
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया-संस्कृतीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक दलित समुदाय के सदस्य किसी उच्च जाति की धार्मिक क्रियाओं, रीति-रिवाजों को अपनाकर समाज में अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा करने का प्रयत्न करते हैं। संस्कृतीकरण की यह प्रक्रिया सम्बन्धित जाति के आर्थिक स्थिति में उन्नति के बाद या साथ-साथ अपनाई जाती है।
प्रश्न 31.
'आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है।' समझाइये।
उत्तर:
आधुनिकीकरण एक लम्बी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मस्तिष्क में वैज्ञानिक दृष्टिकोण पैदा होता है। इसके अन्तर्गत
प्रश्न 32.
आधुनिकीकरण व पश्चिमीकरण में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण में अन्तर
प्रश्न 33.
संस्कृतीकरण में केवल पद-मूलक परिवर्तन होते हैं, संरचनात्मक परिवर्तन नहीं, कैसे ? समझाइये।
उत्तर:
संस्कृतीकरण के द्वारा तो केवल जातियों की स्थितियाँ ऊपर-नीचे होती रहती हैं। इसमें एक जाति अपनी समकक्ष जातियों से ऊपर उठती है, परन्तु यह सब अनिवार्य रूप से एक स्थायी संस्तरण व्यवस्था के अन्दर ही होता है। इससे जाति-व्यवस्था की संस्तरण व्यवस्था या उसकी संरचना में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
प्रश्न 34.
पश्चिमी उदारवाद के अन्तर्गत शिक्षा की नयी प्रणाली की प्रवृत्ति क्या थी?
उत्तर:
शिक्षा की नयी प्रणाली में आधुनिक और उदारवादी प्रवृत्ति थी। यूरोप में हुए पुनर्जागरण, धर्म-सुधारक आंदोलन और प्रबोधन आंदोलन से उत्पन्न साहित्य को सामाजिक विज्ञान और भाषा-साहित्य में सम्मिलित किया गया। इस नए प्रकार के ज्ञान में मानवतावादी, पंथनिरपेक्ष और उदारवादी प्रवृत्तियाँ थीं।
प्रश्न 35.
रेल ने कैसे वस्तुओं के आवागमन में नवीन विचारों को तीव्र गति प्रदान करने में सहायता प्रदान की?
उत्तर:
रेल के आने से नए विचारों को भी जैसे पंख लग गए। भारत में पंजाब और बंगाल के समाज सुधारकों के विचार-विनिमय मद्रास और महाराष्ट्र के समाज सुधारकों से होने लगे। बंगाल के केशव चंद्र सेन ने 1864 में मद्रास का दौरा किया। पंडिता रमाबाई ने देश के अनेक क्षेत्रों का दौरा किया। इनमें से कुछ ने तो विदेशों का भी दौरा किया। ईसाई मिशनरी तो सुदूर क्षेत्रों जैसे आज के नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में भी गए।
प्रश्न 36.
विभिन्न प्रकार के समाज सुधारक आंदोलनों में कुछ विषयगत समानताएँ थीं, परन्तु साथ ही अनेक महत्त्वपूर्ण असहमतियाँ भी थीं। उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के समाज सुधारक आंदोलनों में कुछ विषयगत समानताएँ थीं। परंतु साथ ही अनेक महत्वपूर्ण असहमतियाँ भी थीं। कुछ में उन सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंता थी जो उच्च जातियों के मध्यवर्गीय महिलाओं और पुरुषों से संबंधित थीं। जबकि कुछ ने तो ये माना कि सारी समस्याओं का मूल कारण सच्चे हिंदुत्व के सच्चे विचारों का कमजोर होना था। कुछ के लिए तो धर्म में जाति एवं लैंगिक शोषण अंतर्निहित था। ये तो हिंदू धर्म से संबंधित समाज सुधारक वाद-विवाद था। इसी तरह मुस्लिम समाज सुधारकों ने बहुविवाह और पर्दा प्रथा पर सक्रिय स्तर पर बहस की।
प्रश्न 37.
पारम्परिक त्यौहारों, जैसे-दीपावली, दुर्गापूजा, गणेश पूजा, ईद, क्रिसमस आदि के अवसर पर प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों में क्या संदेश दिये जाते हैं ?
उत्तर:
भारत जैसे बहुधर्मावलम्बी देश में विभिन्न पारम्परिक त्योहारों के अवसर पर अखबारों, पत्रिकाओं तथा टेलीविजन पर जो विज्ञापन प्रकाशित किये जाते हैं, उनमें भाईचारे के संदेश दिये जाते हैं ताकि सभी धर्मों के लोग इन त्योहारों को मिल-जुलकर मनाएँ तथा साम्प्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा दें।
प्रश्न 38.
पश्चिमीकरण की तीन विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
पश्चिमीकरण पाश्चात्य जीवन-शैली तथा रहन-सहन को अपनाने की प्रवृत्ति है। इसकी विशेषताएँ ये हैं
प्रश्न 39.
औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों से जुड़े संगठनों के स्वरूप की व्याख्या करें।
उत्तर:
औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तनों से जुड़े प्रमुख संगठनों - ब्रह्म समाज, आर्य समाज तथा 'अंजुमन-ए-ख्वातीन-ए-इस्लाम' के माध्यम से समाज-सुधारकों ने सभाओं, गोष्ठियों और जनसंचार के माध्यम से सामाजिक विषयों पर वाद-विवाद किया तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने पर बल दिया।
प्रश्न 40.
औपनिवेशिक भारत में कौन-कौन सी सामाजिक कुरीतियाँ थीं? उपनिवेशवाद से पूर्व क्या इनके विरुद्ध संघर्ष हए?
उत्तर:
औपनिवेशिक भारत में विभिन्न सामाजिक कुरीतियाँ थीं, जैसे - सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध और जाति-भेद इत्यादि।
उपनिवेशवाद से पूर्व भी इन सामाजिक भेदभावों के विरुद्ध संघर्ष हुए थे।
ये संघर्ष बौद्ध धर्म के केन्द्र में थे।
कुछ अन्य प्रयत्न भक्ति और सूफी आन्दोलनों के केन्द्र में भी थे।
प्रश्न 41.
19वीं सदी में महिलाओं की शिक्षा पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
19वीं सदी में विभिन्न समाजसुधारकों ने एक मत होकर यह माना कि समाज के उत्थान के लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है। इसी समय ज्योतिबा फुले ने पुणे में महिलाओं के लिए पहला विद्यालय खोला। इस सदी में पहली बार महिलाओं की शिक्षा को न्यायोचित ठहराने के विचारों को समर्थन मिला।
प्रश्न 42.
क्या परम्परा और आधुनिकता का दोहरापन और विरोधाभास केवल भारतीयों या गैर-पश्चिमी समाजों में ही व्याप्त है ? क्या पश्चिमी समाजों में कोई भेदभाव नहीं पाया जाता?
उत्तर:
परम्परा और आधुनिकता का दोहरापन और विरोधाभास पश्चिमी समाजों में भी पाया जाता है। यथा
प्रश्न 43.
जाति के पंथनिरपेक्षीकरण का अर्थ किस तरह लिया जाये इस पर वाद-विवाद होता रहा है। इसका क्या मतलब है?
उत्तर:
पारंपरिक भारतीय समाज में जाति व्यवस्था धार्मिक चौखटे के अंदर क्रियाशील थी। पवित्र-अपवित्र से संबंधित विश्वास व्यवस्था इस क्रियाशीलता का केंद्र थी। आज के समय में जाति एक राजनीतिक दबाव समूह के रूप में ज्यादा कार्य कर रही है। समसामयिक भारत में जाति संगठनों और जातिगत राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है। ये जातिगत संगठन अपनी माँग मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। जाति की इस बदली हुई भूमिका को जाति का पंथनिरपेक्षीकरण कहा गया है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया हिन्दू समाज के अन्तर्गत विद्यमान है। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
संस्कृतीकरण की परिभाषा देते हुए संस्कृतीकरण की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस प्रक्रिया की विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर:
संस्कृतीकरण का अर्थ-संस्कृतीकरण की अवधारणा का विकास प्रो. एम.एन. श्रीनिवास ने किया था। आपके अनुसार, संस्कृतीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हिन्दू समाज में कोई दलित समुदाय, कबीला या अन्य समूह किसी ऊँची जाति की, विशेषरूप से द्विज जाति की, प्रथाओं, कर्मकाण्डों, विश्वासों, विचारधारा तथा जीवन पद्धति को अपना लेता है। ऐसा करके वह अपनी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन करता है।
संस्कृतीकरण की विशेषताएँ प्रवृत्ति संस्कृतीकरण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. जातीय संस्तरण में किसी दलित-समूह को ऊँचा उठाने की प्रक्रिया-संस्कृतीकरण की प्रक्रिया दलित-समूह या जनजाति या अन्य समूह द्वारा समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त करने का प्रयास है। संस्कृतीकरण उसकी प्रस्थिति को स्थानीय जाति-संस्तरण में उच्चता की तरफ ले जाता है। इसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति में सुधार होता है या हिन्दुत्व की महान परम्पराओं के किसी स्रोत के साथ उसका सम्पर्क होता है, परिणामस्वरूप उस समूह में उच्च चेतना का भाव उभरता है।
2. दलितों द्वारा उच्च जाति का अनुकरण-इसके अन्तर्गत दलित समूह अपने से उच्च जाति के रहनसहन, रीति-रिवाजों, विचारों आदि का अनुकरण करती है।
3. सांस्कृतिक परिवर्तन-दलित समूह उच्च जातियों के सांस्कृतिक लक्षणों को अपनाते समय उनमें कुछ परिवर्तन भी कर लेते हैं।
4. सार्वदेशिक प्रक्रिया-संस्कृतीकरण की प्रक्रिया किसी एक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण भारत में फैली हुई है।
5. एक से अधिक आधार-संस्कृतीकरण की प्रक्रिया में निम्न जातियाँ केवल ब्राह्मणों का ही नहीं बल्कि क्षत्रिय, वैश्य या किसी भी स्थानीय प्रभु जाति की संस्कृति का अनुकरण करती रही हैं।
6. केवल पदमूलक परिवर्तन-संस्कृतीकरण के अन्दर केवल पदमूलक परिवर्तन होते हैं न कि संरचनात्मक परिवर्तन। इसमें केवल एक जाति अपनी पड़ौसी जातियों से ऊपर उठती है तो दूसरी नीचे गिर जाती है। लेकिन स्थायी. संस्तरण में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
प्रश्न 2.
स्वतंत्रता एवं उदारवाद के नवीन विचारों के अन्तर्गत किन नवीन विचारों का आगमन हुआ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उपनिवेशवाद ने हमारे जीवन पर दूरगामी प्रभाव डाले। उपनिवेशवाद के पूर्व भारतीय समाज सतीप्रथा, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध और जाति-भेद जैसी कुरीतियाँ से बुरी तरह ग्रस्त था। उपनिवेशवाद से पूर्व भी इन भेदभावों के विरुद्ध संघर्ष हुए। ऐसे कुछ प्रयत्न, मुख्यतः भक्ति एवं सूफी आंदोलनों के केंद्र में भी थे। उन्नीसवीं सदी में हुए समाज सुधारक आधुनिक संदर्भ एवं मिश्रित विचारों से संबद्ध थे। हालांकि स्वतंत्रता एवं उदारवाद के नवीन विचार, परिवार रचना एवं विवाह से संबंधित नए विचार, माँ एवं पुत्री की नवीन भूमिका एवं परपंरा एवं संस्कृति में स्वचेतन गर्व के नवीन विचार आए। शिक्षा के मूल्य अत्यंत महत्वपूर्ण हुए। यह समझा गया कि राष्ट्र का आधुनिक बनना जरूरी है लेकिन प्राचीन विरासत को बचाए रखना भी जरूरी है।
महिलाओं की शिक्षा के विषय में भी व्यापक बहस हुई। यह महत्वपूर्ण है कि समाज सुधारक जोतिबा फुले (इन्हें ज्योतिबा भी कहा जाता है) ने पुणे में महिलाओं के लिए पहला विद्यालय खोला। सुधारकों ने एकमत होकर ये माना कि समाज के उत्थान के लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है। उनमें से कुछ का ये भी विश्वास था कि आधुनिकता के उदय से पहले भी भारत में स्त्रियाँ शिक्षित हुआ करती थीं। लेकिन बहुत से विचारकों ने इसका खंडन करते हुए यह माना कि महिला शिक्षा कुछ विशेषाधिकार प्राप्त समूहों को ही प्राप्त थी। इस प्रकार महिलाओं की शिक्षा को न्यायोचित ठहराने के विचारों को आधुनिक व पारंपरिक दोनों ही विचारधाराओं का समर्थन मिला। सुधारकों ने आधुनिकता और परंपरा पर विस्तृत वाद-विवाद भी किए। इस प्रसंग में ये जानना रोचक है कि जोतिबा फुले ने आर्यों के आगमन से पूर्व के काल को अच्छा माना जबकि बाल गंगाधर तिलक ने आर्यों के युग को गरिमामय माना। दूसरे शब्दों में 19वीं सदी में हो रहे सुधारों ने एक ऐसा दौर उत्पन्न किया जिसमें बौद्धिक तथा सामाजिक उन्नति के प्रश्न और उनकी पुनर्व्याख्या सम्मिलित हैं।
प्रश्न 3.
समाजशास्त्री सतीश सबरवाल के अनुसार औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन से जुड़े पहलुओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्री सतीश सबरवाल ने औपनिवेशिक भारत में आधुनिक परिवर्तन से जुड़े तीन पहलुओं की विवेचना की है, वे निम्नलिखित हैं
1. संचार माध्यम:
नई प्रौद्योगिकी ने संचार के विभिन्न स्वरूपों को गति प्रदान की। प्रिंटिंग प्रेस, टेलीग्राफ तथा बाद में माइक्रोफोन, लोगों के आवागमन के साधन एवं पानी के जहाज तथा रेल इत्यादि के आने से यह सम्भव हुआ था। रेल से वस्तुओं के आवागमन ने नवीन विचारों को तीव्र गति प्रदान की। साथ ही इससे नए विचारों को भी बल मिला। भारत में पंजाब और बंगाल के समाज सुधारकों का मद्रास और महाराष्ट्र के समाज सुधारकों के साथ विचारों का आदान-प्रदान होने लगा। जैसे बंगाल के केशव चन्द्र सेन ने मद्रास का दौरा किया। पंडिता रमाबाई ने भी देश के अनेक क्षेत्रों का दौरा किया।
2. संगठन के स्वरूप:
विभिन्न आधुनिक सामाजिक संगठन जैसे बंगाल में ब्रह्म समाज और पंजाब में आर्य समाज की स्थापना हुई। 1914 ई. में 'अंजुमन-ए-ख्वातीन-ए-इस्लाम' नामक मुस्लिम महिलाओं की राष्ट्रस्तरीय संस्था की स्थापना हुई। इन संगठनों ने गोष्ठियों, जनसंचार व वाद-विवाद के माध्यम से समाज में सुधार के प्रयत्न किये।
3. विचारों की प्रकृति:
संचार के माध्यम एवं विभिन्न संगठनों के माध्यम से स्वतंत्रता एवं उदारवाद के नवीन विचार, परिवार रचना एवं विवाह से सम्बन्धित नए विचार, माँ एवं पुत्री की नवीन भूमिका एवं परम्परा संस्कृति में स्वचेतन गर्व के नवीन विचार आए। अब यह भी समझा गया कि राष्ट्र को आधुनिक बनाने के साथ-साथ प्राचीन विरासत को भी बचाए रखना जरूरी है। महिलाओं की शिक्षा को भी जरूरी समझा गया। इसी क्रम में पुणे में पहला महिलाओं के लिए विद्यालय खोला गया।
प्रश्न 4.
उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के समाज सुधार आन्दोलनों में क्या विषयगत समानताएँ ही थीं या असहमतियाँ भी थीं ? समझाइए।
उत्तर:
समाज सुधारकों में विषयगत असहमतियाँ उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी में विभिन्न प्रकार के समाज सुधारक आन्दोलनों में कुछ विषयगत समानताएँ थीं। स्वतंत्रता, उदारवाद के नवीन विचार, परिवार रचना तथा विवाह से संबंधित नये विचार, परम्परा एवं संस्कृति में स्वचेतन गर्व के नवीन विचार, शिक्षा का महत्त्व आदि. विषयों के सम्बन्ध में समानता थी। परन्तु साथ ही अनेक महत्त्वपूर्ण असहमतियाँ भी थीं। यथा
1. जाति और धर्म से सम्बन्धित मुद्दों पर असहमतियाँ:
हिन्दू समाज सुधारकों में असहमति या बहस का मुख्य मुद्दा जाति व धर्म से सम्बन्धित था। जैसे कुछ समाज सुधारकों में उन सामाजिक मुद्दों के प्रति चिंता थी जो उच्च व मध्यवर्गीय महिलाओं और पुरुषों से सम्बन्धित थे। जबकि कुछ समाज सुधारक तो ये मानते थे कि सारी समस्याओं का मूल कारण सच्चे हिन्दुत्व के सच्चे विचारों का कमजोर होना था। कुछ तो धर्म में जाति एवं लैंगिक शोषण अन्तर्निहित मानते थे।
2. बहुविवाह सम्बन्धी असहमतियाँ:
मुस्लिम समाज सुधारकों में बहुविवाह और पर्दा प्रथा वाद - विवाद का मुख्य विषय था। उदाहरणार्थ जहाँआरा शाह नवास ने अखिल भारतीय मुस्लिम महिला सम्मेलन में बहुविवाह की कुप्रथा के विरुद्ध प्रस्ताव प्रस्तुत किया। बहुविवाह के खिलाफ लाए गए इस प्रस्ताव में उर्दू भाषा के अखबारों, पत्रिकाओं आदि में बहस छिड़ गई। महिलाओं की पत्रिका तहसिब - ए - निसवान ने भी खुलकर बहुविवाह-विरोधी इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि अन्य पत्रिकाओं ने इसका विरोध किया।
3. सती प्रथा सम्बन्धी असहमतियाँ:
ब्रह्म समाज ने सती प्रथा का विरोध किया। प्रतिवाद में बंगाल में हिन्दू समाज के रूढ़िवादियों ने धर्म सभा का गठन किया और अपनी तरफ से ब्रिटिश सरकार को एक याचिका भेजी जिसमें रूढ़िवादी हिन्दुओं ने यह दावा किया कि समाज सुधारकों को धर्मग्रन्थों की व्याख्या करने का कोई अधिकार नहीं है।
4. दलित सुधारकों द्वारा हिन्दू रैली को नकारना - एक अन्य दृष्टिकोण भी था जिसके अन्तर्गत दलितों ने हिन्दू रैली को पूर्णतः अस्वीकृत किया। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी के समाज सुधारकों में विषयगत समानताओं के साथ - साथ असहमतियाँ भी थीं।
प्रश्न 5.
आधुनिकता के कारण न केवल नए विचारों को राह मिली बल्कि परंपरा पर भी पुनर्विचार हुआ। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकता के कारण न केवल नए विचारों को राह मिली बल्कि परंपरा पर भी पुनर्विचार हुआ और उसकी पुनर्विवेचना भी हुई। संस्कृति और परंपरा, दोनों का ही अस्तित्व सजीव है। मानव उन दोनों को ही सीखता है और साथ ही इनमें बदलाव लाता है। हम दैनिक जीवन से उदाहरण लेते हैं। जैसे-आज के भारत में किस प्रकार से साड़ी या जैन सेम या सरोंग पहना जाता है। पारंपरिक रूप से साड़ी, जो एक प्रकार का ढीला-बगैर सिला हुआ कपड़ा होता है, को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से पहना जाता है। आधुनिक युग में मध्यवर्गीय महिलाओं में साड़ी पहनने के एक मानक तरीके का प्रचलन हुआ, जिसमें पारंपरिक साड़ी को पश्चिमी पेटीकोट और ब्लाउज के साथ पहना जाने लगा।
भारत की संरचनात्मक और सांस्कृतिक विविधता स्वतः प्रमाणित है। यह विविधता उन विभिन्न तरीकों को आकार देती है जिसमें आधुनिकीकरण या पश्चिमीकरण, संस्कृतीकरण या पंथनिरपेक्षीकरण, विभिन्न समूहों के लोगों को अलग प्रभावित करते हैं या प्रभावित नहीं करते। संस्कृतीकरण की अवधारणा की यह प्रक्रिया उपनिवेशवाद के प्रादुर्भाव के पहले से है और ये बाद में भी भिन्न रूपों में जारी रही। आधुनिक पश्चिमी विचारों जैसे स्वतंत्रता और अधिकार के बारे में जानने के फलस्वरूप भारतीय इन तीन परिवर्तनकारी प्रक्रियाओं के प्रत्यक्ष प्रभाव में आए। जैसा कि पहले भी लिखा जा चुका है, आधुनिक ज्ञान की प्राप्ति के बाद शिक्षित भारतीयों को अक्सर उपनिवेशवाद में अन्याय और अपमान का एहसास हुआ जिसकी प्रतिक्रिया में पारंपरिक अतीत और धरोहरों की तरफ वापसी की इच्छा की प्रवृत्ति भी देखी गई। इस प्रकार एक जटिल परिस्थिति का जन्म हुआ जिसमें भारत का आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण और पंथनिरपेक्षीकरण से सामना हुआ।
प्रश्न 6.
पश्चिमीकरण का अर्थ बताते हुए भारतीय जीवन पर पश्चिम के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का अर्थ - पश्चिमीकरण का मतलब उस पश्चिमी उप - सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे समूह ने अपनाया जो पहली बार पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आए। इसमें भारतीय बुद्धिजीवियों की उपसंस्कृति भी शामिल थी।
पश्चिमीकरण की परिभाषा - एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार यह भारतीय समाज और संस्कृति में लगभग 150 सालों के ब्रिटिश शासन के परिणामस्वरूप आए परिवर्तन हैं, जिसमें विभिन्न पहलू आते हैं।जैसे प्रौद्योगिकी, संस्था, विचारधारा और मूल्य।भारतीय जीवन पर पश्चिम के प्रभाव।
I. सामाजिक संरचना पर प्रभाव।
II. आर्थिक संरचना पर प्रभाव
III. राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव
प्रश्न 7.
संस्कृतीकरण की अवधारणा की अनेक स्तरों पर आलोचना की गई है। विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संस्कृतीकरण की अवधारणा की निम्न स्तरों पर आलोचना की गई है।
(1) इस अवधारणा की आलोचना में यह कहा जाता है कि इसमें सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उध्वगामी परिवर्तन करती है को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। इस प्रक्रिया से कोई संरचनात्मक परिवर्तन न होकर केवल कुछ व्यक्तियों का स्थिति परिवर्तन होता है।
(2) इस अवधारणा की विचारधारा में उच्च जाति की जीवनशैली उच्च एवं निम्न जाति के लोगों की जीवनशैली निम्न है। अतः उच्च जाति के लोगों की जीवनशैली का अनुकरण करने की इच्छा को वांछनीय और प्राकृतिक मान लिया गया है।
(3) संस्कृतीकरण की अवधारणा एक ऐसे प्रारूप को सही ठहराती है जो दरअसल असमानता और अपवर्जन पर आधारित है। इससे संकेत मिलता है कि पवित्रता और अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त माना जाए।
(4) उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार को संस्कृतीकरण के कारण स्वीकृति मिलने से लड़कियों और महिलाओं को असमानता की सीढ़ी में सबसे नीचे धकेल दिया जाता है। इससे कन्यामूल्य के स्थान पर दहेज प्रथा और अन्य समूहों के साथ जातिगत भेदभाव इत्यादि बढ़ गए हैं।
(5) दलित संस्कृति एवं-दलित समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ापन मान लिया जाता है। उदाहरण के लिए, दलितों द्वारा किए गए श्रम को भी निम्न एवं शर्मदायक माना जाता है। उन कार्यों को सभ्य नहीं माना जाता है जिन्हें निम्न जाति के लोग करते हैं। उनसे जुड़े सभी कार्यों जैसे शिल्प तकनीकी योग्यता, विभिन्न औषधियों की जानकारी, पर्यावरण का ज्ञान, कृषि ज्ञान, पशुपालन संबंधी जानकारी इत्यादि को औद्योगिक युग में गैर उपयोगी मान लिया गया है।
प्रश्न 8.
पश्चिमीकरण ने भारतीय परिवार को किस प्रकार प्रभावित किया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण का भारतीय परिवार पर प्रभाव भारत में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने परिवार के स्वरूप, उसकी संरचना, उसके प्रकार्य तीनों को ही प्रभावित किया है।
(1) परिवार के स्वरूप में परिवर्तन/संयुक्त परिवार का विघटन:
पश्चिमीकरण के प्रभाव से भारत में व्यक्तिवादी विचारधारा प्रबल हुई। आधुनिक पति - पत्नी संयुक्त परिवार के कठोर नियंत्रण को स्वीकार नहीं कर पाते। औद्योगीकरण, नगरीकरण, पश्चिमीकरण के कारण संयुक्त परिवार प्रणाली विघटित होकर एकाकी परिवार में बदल गई।
(2) परिवार की संरचना पर प्रभाव:
पारिवारिक संरचना से हमारा अभिप्राय परिवार के सदस्यों की पारिवारिक स्थितियों से है। पश्चिमीकरण ने पति - पत्नी तथा संतानों की पारस्परिक स्थितियों को निम्न प्रकार से प्रभावित किया है
(अ) पति - पत्नी में समानता की भावना:
पश्चिमीकरण के प्रभाव से शिक्षा का प्रसार हुआ जिससे स्त्री की स्थिति सुधर गई व उसमें जाग्रति आई। आधुनिक पत्नी पति की अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षित परिवार के पति-पत्नी साहचर्य व समानता के भाव से परस्पर सहयोग करते हैं।
(ब) माता - पिता तथा संतानों के सम्बन्धों में परिवर्तन:
पश्चिमीकरण ने भारत में व्यक्तिवादी विचारधारा को प्रोत्साहित व विकसित किया है। जिसके परिणामस्वरूप बच्चों में स्वतंत्र विचार की प्रवृत्ति प्रबल होती जा रही है। वे माता - पिता की सत्ता को स्वीकार न करके अपने विषय में स्वयं निर्णय करने का अधिकार चाहते हैं।
(स) परिवार के प्रकार्य पर प्रभाव:
स्त्री शिक्षा व्यक्तिवादी दृष्टिकोण, पति - पत्नी में समानता के कारण अब पत्नी का काम दिनभर घर में रहकर बच्चों का पालन, खाना बनाना नहीं रहा। वे अब पति की तरह नौकरी करना, क्लब जाना, सार्वजनिक कार्य में भाग लेना चाहती हैं।
(द) परिवार का आकार छोटा होना:
पश्चिमीकरण के प्रभाव से बच्चों को भगवान की देन नहीं माना जाता व छोटे परिवार को अच्छा माना जाता है। अब गर्भ-निरोधक साधनों का प्रयोग बढ़ गया है जिससे परिवार के आकार को छोटा रखने की लोगों की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है।
(य) पारिवारिक विघटन तथा अस्थायित्व:
व्यक्तिवादी, भौतिकवादी विचारधारा के प्रभाव से परिवारों में सहयोग, अपनत्व, उत्तरदायित्व का अभाव हो गया जिसके कारण तलाक व परिवारों का विघटन बढ़ रहा है।
प्रश्न १.
पश्चिमीकरण के विभिन्न प्रकारों को वर्णित करते हुए पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पश्चिमीकरण के विभिन्न प्रकार रहे हैं। एक प्रकार के पश्चिमीकरण का मतलब उस पश्चिमी उप सांस्कृतिक प्रतिमान से है जिसे भारतीयों के उस छोटे समूह ने अपनाया जो. पहली बार पश्चिमी संस्कृति के संपर्क में आए हैं। इसमें भारतीय बुद्धिजीवियों की उपसंस्कृति भी शामिल थी इन्होंने न केवल पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों एवं जीवनशैली को स्वीकारा बल्कि इनका समर्थन एवं विस्तार भी किया। 19वीं सदी के अनेक समाज सुधारक इसी प्रकार के थे।
अतः
हम पाते हैं कि ऐसे लोग कम ही थे जो पश्चिमी जीवनशैली को अपना चुके थे या जिन्होंने पश्चिमी दृष्टिकोण से सोचना शुरू कर दिया था। इसके अलावा अन्य पश्चिमी सांस्कृतिक तत्वों जैसे नए उपकरणों का प्रयोग, पोशाक, खाद्य-पदार्थ तथा आम लोगों की आदतों और तौर-तरीकों में परिवर्तन आदि थे। हम पाते हैं कि पूरे देश में मध्य वर्ग के एक बड़े हिस्से के परिवारों में टेलीविजन, फ्रिज, सोफा सेट, खाने की मेज और उठने-बैठने के कमरे में कुर्सी आदि आम बात है।
पश्चिमीकरण में किसी संस्कृति-विशेष के बाह्य तत्त्वों के अनुकरण की प्रवृत्ति भी होती है। परंतु आवश्यक नहीं कि वे प्रजातंत्र और सामाजिक समानता जैसे आधुनिक मूल्यों में भी विश्वास रखते हों।
जीवनशैली एवं चिंतन के अलावा भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा। अनेक कलाकार जैसे रवि वर्मा, अबनिंद्रनाथ टैगोर, चंदू मेनन और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय सभी औपनिवेशिक स्थितियों के साथ अनेक प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कर रहे थे। रवि वर्मा जैसे कलाकार की शैली, प्रविधि और कलात्मक विषय को पश्चिमी संस्कृति तथा देशज परंपराओं ने निर्मित किया।
उपरोक्त विवेचना और उदाहरणों से यह पता चलता है कि सांस्कृतिक परिवर्तन विभिन्न स्तरों पर हुआ और इसके मूल में हमारा, औपनिवेशिक काल में पश्चिम से परिचय था।
प्रश्न 10.
आधुनिकीकरण का आशय बताते हुए समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव बताइए।
उत्तर:
आधुनिकीकरण से आशय:
1.आधुनिकीकरण से हमारा आशय उन परिवर्तनों से है जो किसी समाज में प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए प्रयोग, नगरीकरण, साक्षरता में वृद्धि, संचार तथा यातायात के साधनों में वृद्धि, सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि आदि के रूप में दिखाई देते हैं।
2.आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है जो एक विकासशील देश को विकसित देश बनाने की ओर ले जाती है। विकास के मापक हैं औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि।
3.आधुनिकीकरण के अन्तर्गत आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक संस्थाओं तथा मूल्य एवं प्रवृत्तियों में संरचनात्मक परिवर्तन आता है। आधुनिकीकरण के समाज पर प्रभाव भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ब्रिटिश शासन काल से जारी है। भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है
प्रश्न 11.
आधुनिकीकरण और पंथनिरपेक्षीकरण की प्रक्रियाएँ परस्पर सम्बन्धित हैं। इस कथन का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आधुनिकीकरण और पंथनिरपेक्षीकरण दोनों ही आधुनिक विचारों का हिस्सा हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के समक्ष सीमित - संकीर्ण - स्थानीय दृष्टिकोण कमजोर पड़ जाते हैं और सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और विश्वजनीन दृष्टिकोण (यानी कि समूचे विश्व का नागरिक होना) ज्यादा प्रभावशाली होता है। इसमें उपयोगिता, गणना और विज्ञान की सत्यता को भावुकता, धार्मिक पवित्रता और अवैज्ञानिक तत्त्वों के स्थान पर महत्त्व दिया जाता है। इसके प्रभाव में सामाजिक तथा राजनीतिक स्तर पर व्यक्ति को प्राथमिकता दी जाती है न कि समूह को; इसके मूल्यों के मुताबिक मनुष्य ऐसे समूह/संगठन में रहते और काम करते हैं जिसका चयन जन्म के आधार पर नहीं बल्कि इच्छा के आधार पर होता है। इसमें भाग्यवादी प्रवृत्ति के ऊपर ज्ञान तथा नियंत्रण क्षमता को प्राथमिकता दी जाती है और यही मनुष्य को उसके भौतिक तथा मानवीय पर्यावरण से जोड़ता है; अपनी पहचान को चुनकर अर्जित किया जाता है न कि जन्म के आधार पर।
दूसरे शब्दों में लोग स्थानीय, सीमाबद्ध विचारों से प्रभावित न होकर सार्वभौमिक जगत व उसके मूल्यों को मानते हैं। आपका व्यवहार और विचार, आपके परिवार या जनजाति या जाति या समुदाय द्वारा तय नहीं होंगे। आपको अपना व्यवसाय अपनी पसंद से चुनने की स्वतंत्रता होती है न कि यह विवशता कि जो व्यवसाय आपके माता-पिता ने किया वही आप भी करें। कार्य का चुनाव आपकी इच्छा पर आधारित है न कि जन्म पर। हमारी एक सक्रिय तथा प्रभावशाली पंथनिरपेक्ष व राजनीतिक व्यवस्था भी है। लेकिन इसके साथ ही हमारी जाति एवं समुदाय में गतिशीलता भी पाई जाती है।
आधुनिक पश्चिम में पंथनिरपेक्षीकरण का मतलब ऐसी प्रक्रिया है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है। आधुनिकीकरण के सिद्धांत के सभी प्रतिपादक विचारकों की मान्यता रही है कि आधुनिक समाज ज्यादा से ज्यादा पंथनिरपेक्ष होता है। पंथनिरपेक्षीकरण के सभी सूचक मानव के धार्मिक व्यवहार, उनका धार्मिक संस्थानों से संबंध (जैसे चर्च में उनकी उपस्थिति), धार्मिक संस्थानों का सामाजिक तथा भौतिक प्रभाव और लोगों के धर्म में विश्वास करने की सीमा, को विचार में लेते हैं। यह माना जाता है कि पंथनिरपेक्षीकरण के सभी सूचक आधुनिक समाज में धार्मिक संस्थानों और लोगों के बीच बढ़ती दूरी के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 12.
सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न प्रकारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत एक संरचनात्मक व सांस्कृतिक विविधता वाला देश है। यह विविधता उन विभिन्न तरीकों को आकार देती है जिसके कारण समाज में परिवर्तन भी विभिन्न प्रकार के होते हैं।
सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न प्रकार सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख प्रकार निम्न हैं
(1) संस्कृतीकरण:
संस्कृतीकरण एक सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया है।
संस्कृतीकरण से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसमें दलित या जनजाति या अन्य समूह उच्च जातियों विशेषकर द्विज जाति की जीवन पद्धति अनुष्ठान, मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण कर अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा उठाने का प्रयास करते हैं।
संस्कृतीकरण की विशेषताएँ:
(2) पश्चिमीकरण:
पाश्चात्य देशों के सांस्कृतिक लक्षणों तथा तत्त्वों के अपनाने की प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत उन प्रयत्नों को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा हम अपने सामाजिक, नैतिक तथा आर्थिक व्यवहार को पाश्चात्य जीवन पद्धति के अनुरूप ढालते हैं।
पश्चिमीकरण के लक्षण:
(3) आधुनिकीकरण: इससे हमारा आशय उन परिवर्तनों से होता है जो किसी समाज में प्रौद्योगिकी के बढ़ते हुए प्रयोग, नगरीकरण, साक्षरता में वृद्धि, संचार तथा यातायात के साधनों में वृद्धि, सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि आदि के रूप में दिखाई देती है। यह एक बहुग्राही अवधारणा है जिसमें अन्य अवधारणा जैसे विकास, उद्विकास, औद्योगीकरण, पश्चिमीकरण इत्यादि सम्मिलित किए जाते हैं।
(4) पंथनिरपेक्षीकरण: यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें धर्म के प्रभाव में कमी आती है। आधुनिक समाज में ज्यादा पंथनिरपेक्षीकरण होता है। जैसे-जैसे आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई और विकास की गति बढ़ी, धर्म तथा विभिन्न प्रकार के उत्सवों, त्योहार को मनाना, विभिन्न धार्मिक कृत्यों, विभिन्न समारोह के आयोजनों, इन समारोह से जुड़े निषेध, विभिन्न प्रकार के दान एवं उनके मूल्य इत्यादि में कमी आई है।
प्रश्न 13.
आधुनिक राजनीति के प्रभाव में जाति कौनसा रूप लेकर सामने आ रही है और जाति अभिमुखित समाज में राजनीति की क्या रूपरेखा है?
उत्तर:
रजनी कोठारी ने आधुनिक राजनीति के जाति पर प्रभाव तथा जाति अभिमुखित समाज में राजनीति की रूपरेखा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि राजनीति एक प्रतियोगात्मक प्रयास है जिसका उद्देश्य होता है-शक्ति पर कब्जा कर कुछ निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना।
सभी जानते हैं कि भारत में पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था जाति - संरचना और जातीय पहचान के इर्द-गिर्द संगठित है। परन्तु आधुनिक परिदृश्य में, जाति और राजनीति के सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए आधुनिकता के सिद्धान्तों से बना नजरिया एक प्रकार के भय से ग्रसित होता है।
जाति का राजनीतिकरण: एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात एक संगठन का होना तथा सहायता का निरूपण है। जहाँ राजनीति जन आधारित हो वहाँ ऐसे संगठन द्वारा जिससे जनसाधारण का जुड़ाव हो, सहायता का निरूपण किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जहाँ जातीय संरचना एक ऐसा संगठनात्मक समूह प्रदान करती है जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा भाग निवास करता है, राजनीति को ऐसी ही संरचना के माध्यम से व्यवस्थित करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार जाति राजनीति को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही है अर्थात् जाति का राजनीतिकरण हो रहा है।
राजनीतिज्ञ जाति समूहों को इकट्ठा करके अपनी शक्ति को संगठित करते हैं । वहाँ जहाँ अलग प्रकार के समूह और संस्थाओं के अलग आधार होते हैं, राजनीतिज्ञ उन तक भी पहुँचते हैं और जैसे कि वे कहीं पर भी ऐसी संस्थाओं के स्वरूपों को परिवर्तित करते हैं, वैसे ही जाति के स्वरूपों को भी परिवर्तित करते हैं।
प्रश्न 14.
आधुनिकीकरण की प्रक्रिया किन सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन का कारण बना?
उत्तर:
जैसे - जैसे आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई और विकास की गति बढ़ी, धर्म तथा विभिन्न प्रकार के उत्सवों, त्योहारों को मनाना, विभिन्न धार्मिक कृत्यों, विभिन्न समारोहों के आयोजनों, इन समारोहों से जुड़े निषेध, विभिन्न प्रकार के दान एवं उनके मूल्य इत्यादि में निरंतर परिवर्तन आया। विशेष रूप से यह परिवर्तन निरंतर बढ़ते और परिवर्तित होते हुए नगरीय क्षेत्र में हुआ।
इस परिवर्तनात्मक दबाव में जनजातीय पहचान की अवधारणा में एक प्रतिक्रिया हुई। एक जनजाति के होने के नाते पारंपरिक व्यवहारों और उनमें निहित मूल्यों के संरक्षण को जरूरी समझा जाने लगा। आधुनिकीकरण के तहत जो नारे बुलंद किए गए थे, जैसे - 'संस्कृति समाप्त, पहचान समाप्त' - उसे एक प्रकार का जवाब मिला जिसे समाज में हो रहे पारंपरिक चेतना के नवजागरण के रूप में देखा जाता है। त्योहारों का सामूहिक तौर पर मनाया जाना तथा रीतिरिवाजों के प्रति रुझान को इसी सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में समझा जा सकता है। आज के जनजातीय समाज में यह बहुत स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
पहले पारंपरिक तरीके से सामाजिक समूह त्योहारों को मनाते थे। उस समूह को सामाजिक मान्यता भी होती थी और उसमें एक प्रकार की अनौपचारिकता भी थी। अब उनकी जगह पर त्योहार मनाने के लिए समितियाँ बनने लगी हैं जिसकी संरचना में एक प्रकार की आधुनिकता होती है। परंपरागत रूप से, त्योहारों के दिन मौसम - चक्र के आधार पर तय किये जाते थे। अब उत्सव के दिन औपचारिक तरीके से सरकारी कैलेंडर के द्वारा तय कर दिए जाते हैं।
इन त्योहारों को मनाने में झंडे की कोई विशेष डिजाइन नहीं होती, न ही कोई मुख्य अतिथि के भाषण होते हैं न ही मिस उत्सव प्रतियोगिता होती थी लेकिन अब ये सब नई आवश्यकताएँ बन गई हैं। जैसे - जैसे तार्किक अवधारणाएँ एवं विश्व दृष्टि जनजातियों के दिमाग में जगह बनाती जा रही है वैसे - वैसे पुराने व्यवहार और समारोह पर प्रश्न उठते जा रहे हैं।
प्रश्न 15.
"19वीं सदी में हुए समाज सुधारक आधुनिक संदर्भ एवं मिश्रित विचारों से संबद्ध थे।" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं सदी के समाज सुधारक 19वीं सदी में हुए समाज सुधार आंदोलन भारतीय समाज में व्याप्त हो गयीं सामाजिक कुरीतियों से सम्बद्ध थे। सती प्रथा, बाल - विवाह, विधवा पुनर्विवाह निषेध और जातिभेद कुछ इस प्रकार की कुरीतियाँ थी। यद्यपि19वीं सदी से पूर्व भारत में इन सामाजिक भेदभावों के विरुद्ध संघर्ष हुए थे, तथापि ये बौद्ध धर्म, भक्ति एवं सूफी आंदोलनों के केन्द्र में थे। 19वीं सदी के समाज सुधारक आधुनिक संदर्भ एवं मिश्रित विचारों से सम्बद्ध थे। यह प्रयास पश्चिमी उदारवाद के आधुनिक विचार एवं प्राचीन साहित्य के प्रतीक नयी दृष्टि के मिले-जुले रूप में उत्पन्न हुए। यथा
(1) राजा राम मोहन राय - राम मोहन राय ने सती प्रथा का विरोध करते हुए न केवल मानवीय व प्राकृतिक अधिकारों से संबंधित आधुनिक सिद्धान्तों का हवाला दिया बल्कि उन्होंने हिन्दू शास्त्रों का भी संदर्भ दिया।
(2) रानाडे - रानाडे ने विधवा विवाह के समर्थन में शास्त्रों का संदर्भ देते हुए 'द टेक्स्ट ऑफ द हिन्दू लॉ' में उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह को नियम के अनुसार बताया। इस संदर्भ में उन्होंने वेदों के उन पक्षों का उल्लेख किया जो विधवा पुनर्विवाह को स्वीकृति प्रदान करते हैं और उसे शास्त्र सम्मत मानते हैं।
(3) आधुनिक शिक्षा - शिक्षा की नयी प्रणाली में आधुनिक और उदारवादी प्रवृत्ति थी। यूरोप में हुए पुनर्जागरण, धर्म-सुधारक आंदोलन और प्रबोधन आंदोलन से उत्पन्न साहित्य को नयी शिक्षा प्रणाली में सम्मिलित किया गया। इस प्रकार के ज्ञान में मानवतावादी, पंथनिरपेक्ष और उदारवादी प्रवृत्तियाँ थीं।
(4) सर सैयद अहमद खान - सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम की विवेचना की और उसमें स्वतंत्र अन्वेषण की वैधता का उल्लेख किया। उन्होंने कुरान में लिखी गई बातों और आधुनिक विज्ञान द्वारा स्थापित प्रकृति के नियमों में समानता जाहिर की।
(5) दयानंद सरस्वती, केशवचन्द्र सेन, विद्या सागर आदि ने स्वतंत्रता और उदारता के नवीन विचार परिवार रचना और विवाह से संबंधित नवीन विचार प्राचीन विरासत को बनाए रखते हुए प्रस्तुत किये । ज्योतिबा फूले ने महिला शिक्षा पर बल दिया। महिलाओं की शिक्षा को न्यायोचित ठहराने के विचारों को आधुनिक और पारंपरिक दोनों ही विचारधाराओं का समर्थन मिला।