Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit व्याकरणम् संधि प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.
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सन्धिप्रकरण :
सन्धि अथवा संहिता - दो वर्गों के, चाहे वे स्वर हों या व्यञ्जन, के मेल से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, . उसे सन्धि अथवा संहिता कहते हैं। यथा -
विद्या + अर्थीः = विद्यार्थीः
वाक् + ईशः = वागीशः।
सन्धियों के भेद जिन दो वर्णों (व्यवधान रहित) में हम सन्धि करते हैं वे वर्ण प्रायः अच् (स्वर) तथा हल (व्यञ्जन) होते हैं और कई
दूसरा कोई व्यञ्जन अथवा स्वर भी हो सकता है। अतः सन्धियों के मुख्य तीन भेद किए गए हैं -
(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
(ख) हल् सन्धि (व्यञ्जनसन्धि)
(ग) विसर्ग सन्धि।
(क) अच् सन्धि (स्वरसन्धि)
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच् सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के क्रमशः आठ भेद हैं -
1. दीर्घसन्धि
ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋ से सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋ के परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
(i) नियम - यदि अ या आ से परे अ या आ हो तो दोनों को आ हो जाता है। अर्थात् अ/आ + अ/आ = आ।
उदाहरण -
(ii) नियम - यदि इ या ई से परे इ या ई हो तो दोनों को ई हो जाता है, अर्थात् इ/ई + इ/ई = ई।
उदाहरण -
(ii) नियम-यदि उ या ऊ से परे उया ऊ हो तो दोनों को ऊहो जाता है ; अर्थात् उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ।
उदाहरण -
(iv) नियम-यदि ऋसे परे ऋहो तो दोनों को ऋहो जाता है, अर्थात् ऋ + ऋ = ऋ।
उदाहरण -
2. गुणसन्धि
यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार 'ए', 'ओ', 'अर्', 'अल्' इनकी गुण संज्ञा होती है।
(i) नियम - यदि अ या आ से परे इ या ई आ जाए तो दोनों के स्थान पर 'ए' हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + इ/ ई = ए।
उदाहरण -
(ii) नियम-यदि अ या आ से परे उ या ऊ हो तो दोनों के स्थान पर ओ हो जाता है ; अर्थात् अ/आ + 3/3 = ओ।
उदाहरण -
(iii) नियम-यदि अया आ से परे ऋहो तो दोनों के स्थान पर अर हो जाता है; अर्थात् अ/आ + ऋ = अर्।
उदाहरण -
3. वृद्धिसन्धि
(i) नियम - यदि अ या आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है; अर्थात् अ/आ + ए/ऐ = ऐ।
उदाहरण -
(ii) नियम-यदि अ या आ से परे आ या औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है; अर्थात् अ/आ + ओ / औ = औ।
उदाहरण -
(iii) नियम - यदि अ या आ से परे ऋ हो तो दोनों के स्थान पर आर् हो जाता है; अर्थात्/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण -
4. यणसन्धि - यदि इ ई, उ ऊ, ऋ, लू से परे कोई असवर्ण स्वर हो तो वे क्रमशः य, व, र, ल में बदल जाते हैं।
(i) नियम - यदिइ, ईसे परेइ, ईको छोड़कर कोई अन्य स्वरहो तो'इ'याईको यहो जाता है। अर्थात् इ/ई + अन्य स्वर अ, आ, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = य् + अन्य स्वर।
उदाहरण -
(ii) नियम - यदि उ, ऊ से परे उ, ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो 'उ' या 'अ' को व् हो जाता है; अर्थात् उ या ऊ + अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, ऋ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ = व् + अन्य स्वर।
उदाहरण -
नियम - यदि 'ऋ' के बाद ऋको छोडकर कोई अन्य स्वर होतो'ऋ'कोर हो जाता है : अथ हकर कोई अन्य स्वर हो तो 'ऋ' को र हो जाता है ; अर्थात् ऋ+ अन्य स्वर अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = र् + अन्य स्वर ।
उदाहरण -
(iv) नियम - लु के बादल को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो लु को ल हो जाता है ; अर्थात् ल + अ, आ, ई, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ = ल् + अन्य स्वर।
उदाहरण लृ + आकृतिः = लाकृतिः।
ल + आकारः = लाकारः।
5. अयादिसन्धि यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमशः अय्, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
(i) नियम - 'ए' से परे कोई स्वर आने पर 'ए' के स्थान पर 'अय्' हो जाता है; अर्थात् ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर।
उदाहरण -
(ii) नियम-'ऐ' से परे कोई स्वर आने पर 'ऐ' को 'आय' हो जाता है; अर्थात् ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई स्वर।
उदाहरण -
(iii) नियम-'ओ' से परे कोई स्वर आने पर ओ के स्थान पर अव हो जाता है; अर्थात् ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर ।
उदाहरण -
(iv) नियम - औ' से परे कोई स्वर आने पर औ के स्थान पर आव् हो जाता है; अर्थात् औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर ।
उदाहरण -
6. पूर्वरूपसन्धि -
नियम - यदि पदान्त ए या ओ से परे ह्रस्व अ हो तो अ का लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह '' चिह्न लगता है।
उदाहरण -
7. पररूपसन्धि
नियम - 'अ'वर्ण से अन्त होने वाले उपसर्ग के बाद अगर कोई ऐसी धातु का रूप हो जिसके आदि में 'ए' अथवा 'ओ' हो तो उस उपसर्ग के अको पररूप हो जाता है, अर्थात् ए' अथवा 'ओ' जैसा रूप हो जाता है।
उदाहरण -
प्र + एजते = प्रेजते।
उप + ओषति = उपोषति।
8. प्रकृतिभाव सन्धि
प्रकृतिभाव शब्द से तात्पर्य है पहले जैसा रूप रहना अर्थात् कोई परिवर्तन न होना। जहाँ सन्धि के नियमा-नुसार सन्धि नहीं होती, उसे प्रकृतिभाव सन्धि कहते हैं।
(i) नियम - द्विवचन वाले पद के अन्त में ई, ऊ, ए से परे कोई भी स्वर होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण -
कवी + इमौ = कवी इमौ।
हरी + एतौ = हरी एतौ।
याचेते + अर्थम् = याचेते अर्थम्।
साधू + इमौ = साधू इमौं।
(ii) नियम - अदस् शब्द के 'अमी' और 'अमू' रूपों से परे 'ई' और 'ऊ' स्वर परे होने पर सन्धि नहीं होती।
उदाहरण -
अमू + आसते = अमू आसते।
अमू + उपविशतः = अमू उपविशतः।
अमी + अश्वाः = अमी अश्वाः।
अमी + ईशाः = अमी ईशाः।
(ख) हलसन्धि (व्यञ्जनसन्धि) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो 'विकार' होता है उस विकार को 'व्यञ्जन' सन्धि कहते हैं। जैसे -
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ - सत् + जनः = सज्जनः।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ - सद् + आचारः = सदाचारः। व्यञ्जनसन्धि के कुछ मुख्य-मुख्य नियम निम्नलिखित हैं
1. श्चुत्त्व सन्धि (स्तोश्चुनाश्चुः) - जब 'स्तु' अर्थात् सकार और तवर्ग (त् थ् द् ध् न्) से पहले या बाद में 'श्चु'. अर्थात् शकार और चवर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) आए तो सकार को शकार और तवर्ग के स्थान पर चवर्ग होता है -
(क) स् को श् - हरिस् + शेते = हरिश्शेते।
कस् + चित् = कश्चित्।
(ख) तवर्ग को चवर्ग सत् + चित् = सच्चित्।
सत् + जनः = सज्जनः।
शत्रून् + जयति = शत्रूञ्जयति।
2. ष्टुत्व-सन्धि (ष्टुनाष्टुः) - जब 'स्तु' से पहले या बाद में ष्टु अर्थात् षकार या टवर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) आए तो सकार को षकार तथा तवर्ग को टवर्ग हो जाता है। जैसे -
(क) स् को ष् -
रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
(ख) तवर्ग को टवर्ग -
तत् + टीका = तट्टीका।
उद् + डीयते = उड्डीयते।
कृष् + नः = कृष्णः।
विष् + नुः = विष्णुः।
3. जश्त्व-सन्धि (झलां जशोऽन्ते) - पदान्त में स्थित वर्ग के पहले अक्षर क्, च्, ट्, त् प्, के बाद कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे अक्षर या अन्तःस्थ य, र, ल, व् या ह् बाद में हों तो उनके स्थान पर 'जश्त्व' हो जाता है। (संस्कृत में ज, ब, ग, ड्, ह की संज्ञा 'जश्' है।) जैसे -
क् को ग - वाक् + ईशः = वागीशः।
च् को ज् - अच् + अन्तः = अजन्तः।
व्याकरणम्
च् को ड् - षट् + एव = षडेव।
त् को द् - जगत् + बन्धुः = जगबन्धुः।
प् को ब् - अप् + जः = अब्जः।
4. अनुस्वार-सन्धि (मोऽनुस्वारः) - पद के अन्त में यदि 'म्' हो और उसके बाद कोई व्यञ्जन हो तो 'म्' के स्थान में अनुस्वार हो जाता है, (बाद में स्वर हो तो अनुस्वार नहीं होता) जैसे -
हरिम् + वन्दे = हरि वन्दे।
पुस्तकम् + पठति = पुस्तकं पठति। (सम् + आचारः = समाचार:-यहाँ स्वर परे है अतः अनुस्वार नहीं हुआ)।
5. (क) परसवर्ण-सन्धि - (वा पदान्तस्य) पूर्व अनुस्वार से परे वर्ग का कोई भी अक्षर हो तो अनुस्वार को विकल्प से परसवर्ण हो जाता है। परसवर्ण का अर्थ है - उसी अक्षर का पाँचवाँ अक्षर हो जाता है। जैसे -
कवर्ग में - किं + खादति = किखादति।
चवर्ग में - किं + च = किञ्च।
टवर्ग में - किं + ढौकसे = किण्डौकसे।
तवर्ग में - अन्नं + ददाति = अन्नन्ददाति।
पवर्ग में - अन्नं + पचामि = अन्नम्पचामि।
(ख) अनुस्वार को परसवर्ण - पदान्तरहित 'म्' के बाद वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ तथा य् र् ल् व् में से कोई भी वर्ण हो तो 'म्' को परसवर्ण हो जाता है। जैसे -
शाम् + तः = शान्तः (तवर्ग का पाँचवाँ अक्षर 'न')
अम् + कः = अकः (कवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ङ्)।
कुम् + ठितः = कुण्ठितः (टवर्ग का पाँचवाँ अक्षर ण) इत्यादि।
(ग) (i) तोर्लि - यदि तवर्ग से परे 'ल' हो तो उसे 'ल' परसवर्ण हो जाता है। जैसे -
तत् + लयः = तल्लयः।
तत् + लाभः = तल्लाभः।
(ii) यदि 'न्' से परे 'ल' हो तो अनुनासिक 'ल' हो जाता है। जैसे -
विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखति।
6. अनुनासिक - सन्धि (नश्छव्यप्राशान्) - यदि पद के अन्त में 'न्' हो और उसके आगे च-छ, ट्-ठ् तथा त् थ्, में से कोई वर्ण हो तो 'न्' के स्थान में अनुनासिक या अनुस्वार तथा च छ परे रहने पर 'श्', ट् ठ् परे रहने पर 'छ', त् थ् परे रहने पर 'स्' अनुनासिक या अनुस्वार हो जाता है। जैसे -
कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित्।
महान् + छेदः = महाँश्छेदः।
महान् + ठाकुरः = महाँष्ठाकुरः।
महान् + टङ्कारः = महाँष्टङ्कारः।
चक्रिन् + त्रायस्व = चक्रिस्त्रायस्व।
पतन् + तरुः = पतँस्तरुः।
7. द्वित्व - सन्धि (डमोहस्वादचि डमुण नित्यम्) - यदि ह्रस्व स्वर के बाद ङ्ण न हों, उनके बाद भी स्वर हो
तो ङ्ण न को द्वित्व हो जाता है अर्थात् एक-एक और ङ्ण न आ जाता है। जैसे -
ङ् - प्रत्यङ् + आत्मा = प्रत्यङ्डात्मा।
ण् - सुगण + ईशः = सुगण्णीशः।
न् - पठन् + अस्ति = पठन्नस्ति।
8. चकार-सन्धि (छे च) - ह्रस्व स्वर से परे यदि छकार आए तो छकार से पहले चकार जोड़ दिया जाता है। जैसे -
स्व + छन्दः = स्वच्छन्दः।
वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया।
9. छकार-सन्धि (शश्छोऽटि) - यदि 'तकार' के बाद 'शकार' आ जाए तो 'तकार को चकार' नित्य होता हैं तथा .शकार को छकार विकल्प से होता है। जैसे -
तत् + शिवः = तच्छिवः, तच्शिवः।
तत् + श्लोकेन - तच्छ्लोकेन, तश्लोकेन।
10. रेफ लोप सन्धि (रोरि) - यदि रेफ (र) स परे रेफ (र) हो तो एक 'र' का लोप हो जाता है तथा पूर्व स्वर को दीर्घ हो जाता है। जैसे -
पुनर् + रमते = पुना रमते।
निर + रोगः = नीरोगः।
साधुः (साधुर्) + रमते = साधू रमते।
(ग) विसर्गसन्धि
विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए उसमें जो विकार आता है, उसे विसर्गसन्धि कहते हैं। जैसे - रामः + चलति = रामश्चलति।
विसर्गसन्धि के नियम इस प्रकार हैं -
1. विसर्ग (:) को स् श् ष् (विसर्जनीयस्य सः) -
(i) यदि विसर्ग के बाद त् थ् और स हों तो विसर्ग के स्थान पर 'स्' हो जाता है। जैसे -
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
देवाः + सन्ति = देवास्सन्ति।
(ii) यदि विसर्ग के बाद च, छ् या श् हो तो विसर्ग के स्थान पर 'श्' हो जाता है। जैसे -
बाल: + चलति = बालश्चलति।
हरिः + शेते = हरिश्शेते।
(iii) यदि विसर्ग के बाद ट् ठ् या ष् हो तो विसर्ग के स्थान पर 'ए' हो जाता है। जैसे -
रामः + टीकते = रामष्टीकते।।
धनु: + टंकारः = धनुष्टङ्कारः।
रामः + षष्ठः = रामष्षष्ठः।
2. विसर्ग (रु) को उ
(i) (हशि च) - यदि विसर्ग से पूर्व 'आ' हो और बाद में हश् अर्थात् वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र् ल व ह - इनमें से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग (रु)को 'उ' हो जाता है। यही 'उ'विसर्ग पूर्ववर्ती 'अ' के साथ मिल कर 'ओ' हो जाता है। जैसे -
शिवः + वन्द्य = शिवो वन्द्यः।
यश: + दा = यशोदा
मनः + भावः = मनोभावः।
मनः + हरः = मनोहरः।
(ii) (अतो रो रुः प्लुतादप्लुते) - यदि विसर्ग से पूर्व 'अ' हो और बाद में भी 'अ' हो तो विसर्ग को 'उ' हो जाता है। उस 'उ' को पूर्ववर्ती अ के साथ गुण होकर 'ओ' हो जाता है। परवर्ती 'अ' को पूर्वरूप हो जाने पर 'अ' लोपवाचक अवग्रह-चिह्न
5. लगा दिया जाता है। जैसे -
स: + अपि = सोऽपि
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
कः + अयम् = कोऽयम्
स: + अगच्छत् = सोऽगच्छत्।
3. विसर्गलोपः - (विसर्ग का लोप हो जाने पर पुनः सन्धि नहीं होती)
(क) यदि विसर्ग से पूर्व में 'अ' हो तो उसके बाद 'अ' को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे -
अतः + एव = अत एव।
रामः + उवाच = राम उवाच।
(ख) यदि विसर्ग से पूर्व 'आ' हो और उसके बाद कोई स्वर अथवा वर्ण के प्रथम, द्वितीय अक्षरों को छोड़कर अन्य कोई अक्षर अथवा य् र् ल् व् ह हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे -
छात्राः + अपि = छात्रा अपि।
जनाः + इच्छन्ति = जना इच्छन्ति।
अश्वाः + गच्छन्ति = अश्वा गच्छन्ति।
जनाः + हसन्ति = जना हसन्ति।
(ग) 'स' और 'एष' की विसर्गों का लोप हो जाता है यदि बाद में 'अ' को छोड़कर अन्य कोई अक्षर हो। जैसे -
सः + आगच्छति = स आगच्छति।
एषः + एति = एष एति।
सः + वदति = स वदति।
एषः + हसति = एष हसति।
4. विसर्ग को 'र'- यदि विसर्ग से पहले अ, आ से भिन्न कोई भी स्वर हो और बाद में कोई स्वर या वर्ग के तीसरे, चौथे पाँचवें अक्षर अथवा य् र् ल् व् ह हों तो विसर्ग के स्थान पर 'र' हो जाता है। जैसे -
मुनिः + आगतः + मुनिरागतः।
धेनुः + इयम् = धेनुरियम्।
भानुः + उदेति = भानुरुदेति।
मुनिः + याति = मुनिर्याति।
शिशुः + लिखति = शिशुर्लिखति। इत्यादि।
5. विसर्ग को 'र्' -
अ के बाद 'र' के स्थान पर होने वाले विसर्ग को स्वर, वर्ग के तृतीय, चतुर्थ या पञ्चम वर्ण तथा य र ल व् ह् इनमें से किसी वर्ण के परे रहते 'र' हो जाता है। जैसे -
प्रात: + एव = प्रातरेव।
पुनः + अपि = पुनरपि।
पुनः = वदति = पुनर्वदति।
मातः देहि = मातर्देहि।
पाठ्यपुस्तक से उदाहरण -
बोर्ड की परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
I. स्वरसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
दो अत्यन्त निकट स्वरों के मिलने से ध्वनि में जो विकार उत्पन्न होता है, उसे अच्सन्धि अथवा स्वर सन्धि कहा जाता है। दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण आदि इसके अनेक प्रकार हैं।
उदाहरण -
परम + आनन्दः = परमानन्दः
सु + उक्तिः = सूक्तिः
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
यदि + अपि = यद्यपि।
II. गुणसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
यदि अ या आ से परे कोई अन्य (भिन्न) ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ, ल हो तो दोनों के स्थान में गुण आदेश होता है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार 'ए', 'ओ', 'अर्', 'अल्' इनकी गुण संज्ञा होती है।
उदाहरण -
देव + इन्द्रः = देवेन्द्रः
हित + उपदेशः = हितोपदेश:
देव + ऋषिः = देवर्षिः।
III. व्यञ्जनसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ अथवा व्यञ्जन का स्वर के साथ मिलने पर जो 'विकार' होता है उस विकार को 'व्यञ्जन' सन्धि कहते हैं। जैसे -
(i) व्यञ्जन का व्यञ्जन के साथ - सत् + जनः = सज्जनः।
सत् + चित् = सच्चित्।
(ii) व्यञ्जन का स्वर के साथ - सद् + आचारः = सदाचारः।
वाक् + ईशः = वागीशः।
IV. यण्सन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
यदि इ/ई, उ/ऊ, ऋ/ऋ, ल से परे कोई असमान स्वर हो तो वे क्रमशः य, व, र, ल में बदल जाते
उदाहरण -
यदि + अपि = यद्यपि
सु + आगतम् = स्वागतम्
पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
तव + लृकारः = तवल्कारः।
V. विसर्गसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
विसर्ग (:) को वर्गों में मिलाने के लिए जो विकार आता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे -
रामः + चलति = रामश्चलति।
रामः + अवदत् = रामोऽवदत्।
रामः + तिष्ठति = रामस्तिष्ठति।
मुनिः + आगच्छत् = मुनिरागच्छत्।
VI. दीर्घसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं लिखत।
उत्तरम् :
दीर्घसन्धि - ह्रस्व या दीर्घ अ इ उ अथवा ऋसे सवर्ण ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ अथवा ऋके परे होने पर दोनों के स्थानों में दीर्घ वर्ण हो जाता है।
उदाहरण -
परम + अर्थः = परमार्थः।
परि + ईक्षा = परीक्षा।
सु + उक्तम् = सूक्तम्।
मातृ + ऋणम् = मातृणम्।
VII. अयादिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
अयादिसन्धि - यदि ए, ओ, ऐ, औ से परे कोई स्वर हो वे क्रमश: अय्, अव, आय और आव् में बदल जाते हैं।
उदाहरण -
ने + अनम् = नयनम्।
नै + अकः = नायकः।
भो + अनम् = भवनम्।
पौ + अकः = पावकः।
VIII. वृद्धिसन्धेः परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तरम् :
वृद्धिसन्धि -
(i) नियम - यदि अ या आ से परे ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ कर दिया जाता है। अर्थात् अ/आ + ए/ ऐ = ऐ।
उदाहरण -
एक + एकम् = एकैकम्।
तव + ऐश्वर्यम् = तवैश्वर्यम्।
मम + ऐश्वर्य = ममैश्वर्यम्।
सदा + एव = सदैव।
(ii) नियम-यदि अ/आसे परे आ/औ, ऋहो तो दोनों के स्थान पर क्रमशः औतथा आर हो जाते हैं; अर्थात् अ/आ + ओ/औ = औ। ऋ/अ/आ + ऋ = आर्।
उदाहरण -
महा + औषधिः = महौषधिः।
द:ख + ऋतः = दःखार्तः।