RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् Questions and Answers, Notes Pdf.

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RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

परिभाषा - संक्षेप करने के लिए पदों के बीच में विभक्ति का लोप करके दो या दो से अधिक शब्दों के एक बन जाने को समास कहते हैं, जैसे - 
राज्ञः पुत्रः = राजपुत्रः। 
समास में विग्रह - जब समस्त पद का अर्थ स्पष्ट करने के लिए उसमें प्रयुक्त शब्दों के आगे विभक्ति लगा दी जाती है तो वह समस्त पद का विग्रह कहलाता है, जैसे - 
'राजपुत्रः' इस पद के मध्य कोई विभक्ति नहीं है, लेकिन इसका अर्थ है 'राजा का पुत्र'। इसी अर्थ को जब हम प्रत्येक। के सामने विभक्ति रखकर प्रकट करते हैं तो वह अवस्था 'विग्रह अवस्था' कहलाती है; जैसे-राज्ञः पुत्रः = राजपुत्रः। समास के प्रकार-संस्कृतभाषा में मुख्यतया चार प्रकार के समास होते हैं - 
1. अव्ययीभाव समास 
3. बहुब्रीहि समास 
2. तत्पुरुष समास 
4. द्वन्द्व समास 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

1. अव्ययीभाव समास :

अव्ययीभाव उस समास को कहते हैं जिसमें पूर्वपद अव्यय हो। इसमें अव्यय या उपसर्ग के साथ संज्ञा का समास होता है; जैसे - 
दिनम् दिनम् इति प्रतिदिनम्। 
अव्ययीभाव समास में अव्ययों का निम्न अर्थों में समास होता है - 

(i) विभक्ति (किसी विभक्ति के अर्थ में); जैसे - 
हरौ इति = अधिहरि। 
आत्मनि इति = अध्यात्मम्। 
नगरे इति = अधिनगरम्। 
ग्रामे इति = अधिग्रामम्। 

ऊपर के उदाहरणों में विग्रह वाक्य में 'अधि' इस अव्यय का प्रयोग सप्तमी विभक्ति के अर्थ में किया गया है। 

(ii) सामीप्य (समीपता); जैसे - 
कृष्णस्य समीपम् = उपकृष्णम्, 
कूलस्य समीपम् = उपकूलम्। 
नद्याः समीपम् = उपनदि। 
देवस्य समीपम् = उपदेवम्।

(iii) समृद्धि (सौभाग्य); जैसे - 
मद्राणां समृद्धिः = सुमद्रम्। 
[समृद्धि अर्थ में 'सु' अव्यय का समास] 

(iv) अर्थाभाव (किसी वस्तु का अभाव) जैसे - 
मक्षिकाणामभावः = निर्मक्षिकम् [अभाव' अर्थ में 'निर्' उपसर्ग का समास] 

(v) पश्चात् (पीछे ), जैसे - 
विष्णो पश्चात् = अनुविष्णु। ['पश्चात्' अर्थ में 'अनु' उपसर्ग का समास]

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

(vi) योग्यता, जैसे - रूपस्य योग्यम् = अनुरूपम्। गुणस्य योग्यम् = अनुगुणम्। 'योग्यता' अर्थ में 'अनु' उपसर्ग का समास' 

(vii) वीप्सा (द्विरावृत्ति), जैसे - 
अर्थमर्थम् = प्रत्यर्थम्। एकमेकम् = प्रत्येकम्। 
अहनि अहनि = प्रत्यहम्। दिनम् दिनम् = प्रतिदिनम्। 

(viii) सादृश्य (समानता) जैसे-हरे: सादृश्यम् = सहरि 
[सादृश्यम् अर्थ में सह अव्यय का प्रयोग करके फिर सह को स बना कर समास] 

(ix) अनतिवृत्ति (किसी पदार्थ की सीमा का उल्लङ्घन न करना, अर्थात् उसके अनुसार ही कार्य करना), जैसे -  
विधिम् अनतिक्रम्य = यथाविधि। 
शक्तिमनतिक्रम्य = यथाशक्ति। 
उक्तमनतिक्रम्य = यथोक्तम्। 
नियमनतिक्रम्य = यथानियमम्। 
['अनतिक्रम्य' अर्थ में 'यथा' अव्यय का समास] 

(x) आनूपूर्व्य = (अनुक्रम, क्रम से), जैसे - 
ज्येष्ठस्य आनुपूर्येण-अनुज्येष्ठम्। ['आनुपूर्व्य' अर्थ में अनु' उपसर्ग का समास] 

(xi) युगपद् (साथ, समकाल में), जैसे -
चक्रेण युगपद् = सचक्रम्। ['युगपत्' अर्थ में सह = 'स' अव्यय का समास] 

(xii) मर्यादा (सीमा), जैसे - 
आ मुक्तेः = आमुक्ति। 
आ समुद्रात् = आसमुद्रम्। 
आ बालेभ्यः = आबालम्। 
आ नगरात् = आनगरम्। 
[मर्यादा' अर्थ में 'आ' उपसर्ग का समास] 

(xiii) प्रति, पर और अनु इनके साथ अक्षि' शब्द का अव्ययीभाव समास करने पर इसके अन्तिम 'इ' को 'अ' हो जाता है, जैसे - 
अक्ष्णोः अभिमुखम् = प्रत्यक्षम्। 
अक्ष्णोः परम् = परोक्षम्। 
अक्ष्णोः योग्यम् = समक्षम्। 
अक्ष्णोः पश्चात् = अन्वक्षम्। 

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2. तत्पुरुष समास :

तत्पुरुष समास ऐसे दो पदों में होता है, जिनमें से पहला पद दूसरे का निर्धारण अथवा व्यवस्था करे। इसमें उत्तरपद का अर्थ प्रधान होता है और पूर्वपद प्रथमा के अतिरिक्त सभी विभक्तियों में प्रयुक्त होता है। 

तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं - 

1. द्वितीयातत्पुरुष समास - इनमें विग्रह वाक्य में पूर्व पद द्वितीया विभक्ति का होता है, जैसे - 
ग्रामं गतः = ग्रामगतः। 
शरणमापन्नः शरणापन्नः। 
दुःखमतीतः = दुःखातीतः। 
स्वर्ग प्राप्तः = स्वर्गप्राप्तः।
कृष्णं श्रितः = कृष्णाश्रितः। 
नरकं पतितः = नरकपतितः। 

2. तृतीयातत्पुरुष समास-इसमें पूर्वपद तृतीयान्त होता है और तृतीया विभक्ति का अर्थ देता है, जैसे - 
नखैः भिन्नः = नखभिन्नः। 
असिना छिन्नः = असिछिन्नः।
मासेन पूर्वः = मासपूर्वः। 
शकुलया खण्डः = शकुलाखण्डः। 
लोकैः पूजितः = लोकपूजितः। 
अहिना दष्टः = अहिदष्टः।
धान्येन अर्थः = धान्यार्थः। 
हरिणा त्रातः = हरित्रातः। 
मात्रा सदृशः = मातृसदृशः। 

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3. चतुर्थीतत्पुरुष समास - इसमें विग्रहवाक्य का पूर्वपद चतुर्थी विभक्त्यन्त होता है, जैसे - 

द्विजाय अयम् = द्विजार्थः सूपः। 
भूतेभ्यः बलिः = भूतबलिः। 
द्विजाय इदम् = द्विजार्थं पयः। 
कुण्डलाय हिरण्यम् = कुण्डलहिरण्यम्। 
यूपाय दारु = यूपदारु। 
द्विजाय इयम् = द्विजार्थयवागूः। 
गवे हितम् = गोहितम्। 
गवे सुखम् = गोसुखम्। 

4. पञ्चमीतत्पुरुष समास-इस समास के पञ्चम्यन्त पूर्वपद का भय, भीत, भीति, अपेत, मुक्त, पतित आदि शब्दों के साथ समास हो जाता है, जैसे - 

चोराद् भयम् = चोरभयम्। 
सुखात् अपेतः = सुखोपेतः। 
चोराद् भीतः = चोरभीतः। 
स्वर्गात् पतितः = स्वर्गपतितः। 
दुःखात् मुक्तः = दुःखमुक्तः। 
सिंहाद् भीतः = सिंहभीतः। 
संसारात् मुक्तः = संसारमुक्तः। 
वृकात् भीतः = वृकभीतः। 

5. षष्ठीतत्पुरुष समास - इस समास में षष्ठ्यन्त (षष्ठी विभक्ति वाले) पूर्वपद का किसी समर्थपद के साथ समास हो जाता है, जैसे -  

राज्ञः पुत्रः = राजपुत्रः। 
राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः। 
रामस्य सेवकः = रामसेवकः। 
राज्ञः पुरोहितः = राजपुरोहितः।
रत्नानाम् आकरः = रत्नाकरः। 
विद्यायाः सागरः = विद्यासागरः। 

अपवाद-'त' और 'अक' प्रत्ययान्त कर्तृवाची सुबन्त शब्दों का षष्ठ्यन्त पद के साथ समास नहीं होता है, जैसे - 
नस्य पाचकः, अपां स्रष्टा, वेदस्य रक्षिता। लेकिन याचक, पूजक, स्नातक, परिचारक, अध्यापक, भर्त, होतृ इत्यादि शब्दों का षष्ठ्यन्त शब्द के साथ समास हो जाता है, जैसे - 
ब्राह्मणानां याचकः = ब्राह्मणयाचकः। 
राज्ञः परिचारकः =राजपरिचारकः। 
देवानां पूजकः = देवपूजकः। 
गुरुकुलस्य स्नातकः = गुरुकुलस्नातकः। 
अग्नेः होता = अग्निहोता। 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

6. सप्तमीतत्पुरुष समास-इस समास में पूर्वपद में सप्तमी विभक्ति होती है और इसका धूर्त, प्रवीण, पण्डित, कुशल, सिद्ध, शुष्क, पक्व, बन्ध आदि शब्दों के साथ समास हो जाता है, जैसे - 
कार्ये कुशलः = कार्यकुशलः। 
रणे कुशलः = रणकुशलः। 
सभायां पण्डितः = सभापण्डितः। 
अक्षेषु कुशलः = अक्षकुशलः। 
अक्षेषु शौण्डः = अक्षशौण्डः। 
चक्रे बन्धः = चक्रबन्धः। 
पाशे बन्धः = पाशबन्धः। 
स्थाल्यां पक्वः = स्थालीपक्वः। 
आतपे शुष्कः = आतपशुष्कः। 
वाचि पटुः = वाक्पटुः।

7. अलुक्तत्पुरुष समास-जिन समस्त पदों के पूर्वपद की विभक्ति का लोप न हो उन्हें 'अलुक् तत्पुरुष' समास कहते हैं। 
(i) तृतीया-अलुक् तत्पुरुष - इसमें तृतीया विभक्ति का लोप नहीं होता -
पुंसा अनुजः = पुंसानुजः, 
जनुषा अन्धः = जनुषान्धः। 

(ii) चतुर्थी अलुक् तत्पुरुष - इसमें चतुर्थी विभक्ति का लोप नहीं होता - आत्मने पदम् आत्मनेपदम्। परस्मै पदम् परस्मैपदम्। 

(iii) पञ्चमी अलुक तत्पुरुष - इसमें चतुर्थी विभक्ति का लोप नहीं होता - 
स्तोकात् मुक्तः स्तोकान्मुक्तः। 
दूरात् आयातः दूरादायातः।

(iv) षष्ठी-अलुक तत्पुरुष - इसमें षष्ठी विभक्ति का लोप नहीं होता वाचः पति-वाचस्पतिः, दास्यः पुत्र दास्याः पुत्रः, पश्यतः हरः पश्यतोहरः। 

(v) सप्तमी-अलुक् तत्पुरुष - इसमें सप्तमी विभक्ति का लोप नहीं होता-युधि स्थिरः युधिष्ठिरः, कर्णे जपः कर्णेजपः, सरसि जायते इति सरसिजम्, अन्ते वसति इति अन्तेवासी। 

8. न तत्पुरुष - जिसमें किसी पद के साथ निषेधार्थक 'न' के साथ समास किया जाता है, उसे नञ् तत्पुरुष समास कहते हैं। 
(क) यदि 'न' से परे कोई ऐसा शब्द हो जिसके आदि में कोई व्यञ्जन हो तो 'न' को 'अ' हो जाता है, जैसे - 

न पण्डितः = अपण्डितः। 
न ब्राह्मणः = अब्राह्मणः।
न क्षत्रियः = अक्षत्रियः। 
न उदारः = अनुदारः। 
न न्यायः = अन्यायः। 
न विद्वान् = अविद्वान्। 
न हिंसा: अहिंसा। 
न चिरात् = अचिरात्। 
न साधुः = असाधुः।

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

(ख) यदि 'न' से परे कोई ऐसा शब्द हो जिसके आदि में कोई स्वर हो तो 'न' को 'अन्' हो जाता है, जैसे - 

न अश्वः = अनश्वः। 
न उपकारः = अनुपकारः। 
न आदि = अनादिः। 
न अर्थः = अनर्थः। 
न उपस्थितः = अनुपस्थितः। 

9. कर्मधारय तत्पुरुष - इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है, जैसे - 

कृष्णश्चासौ सर्पः = कृष्णसर्पः। 
परमः राजा = परमराजः। 
नीलमुत्पलम् = नीलोत्पलम्। 
मूर्खश्चासौ पुरुषः = मूर्खपुरुषः। 
महान् चासौ पुरुषः = महापुरुषः। 
कृष्णा चतुर्दशी = कृष्णचतुर्दशी। 
श्वेतम् कमलम् = श्वेतकमलम्। 
महती प्रिया = महाप्रिया। 
कृष्णः सखा = कृष्णसखा। 
कृष्ण सर्पः = कृष्णसर्पः। 
सुकेशी भार्या = सुकेशभार्या।
पुण्यम् अहः = पुण्याहः। 
घन इव श्यामः = घनश्यामः। 
वानर इव चञ्चलः = वानरचञ्चलः। 
मुखम् इन्द्रः इव = मुखेन्द्रः। 
पुरुषः व्याघ्र इव = पुरुषव्याघ्रः। 
ब्राह्मणी भार्या = ब्राह्मणभार्या। 
महती मधुरा = महामधुरा।

10. उपपद तत्पुरुष समास-इस समास में उत्तरपद किसी धातु से निष्पन्न विशेष पद होता है और पूर्व पद का कर्मकारक यदि उत्तरपद के धातु से बनने वाले शब्द के साथ किसी कारक के रूप में सम्बन्ध रखता है तो वह समस्तपद उपपद समास कहलाता है। जैसे - 

कुम्भं करोतीति = कुम्भकारः। 
विश्वं जयतीति = विश्वजित्।
इन्द्रं जयतीति = इन्द्रजित्। 
धनं ददातीति = धनदः। 
उष्णं भुङ्क्ते इति = उष्णभोजी। 

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11. द्विगु तत्पुरुष समास - जहाँ समाहार (समूह) का बोध होता है और पूर्वपद संख्यावाची हो, उसे द्विगु तत्पुरुष समास कहते हैं। 
(क) इस समास में समस्तपद प्रायः एकवचन तथा नपुंसकलिंग होता है, जैसे - 

त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्। 
पञ्चानां तन्त्राणां समाहारः = पञ्चतन्त्रम्। 
पञ्चानां पात्राणां समाहारः = पञ्चपात्रम्। 
सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्। 

(ख) जिस द्विगु समास में उत्तरपद अकारान्त हो उसमें समस्तपद स्त्रीलिङ्ग होता है, जैसे - 

पञ्चानां मूलानां समाहारः = पञ्चमूली। 
अष्टानामध्यायानां समाहारः = अष्टाध्यायी। 
नवानामध्यायानां समाहारः = नवाध्यायी। 
पञ्चानां वटानां समाहारः = पञ्चवटी। 
त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी। 
सप्तानां शतानां समाहारः = सप्तशती। 
शतानां अब्दानां समाहारः = शताब्दी। 

3. बहुब्रीहि समास :

बहुब्रीहि समास उन दो या दो से अधिक पदों में होता है जो मिलकर किसी अन्य नाम का विशेषण बन जाते हैं ; जैसे चक्रं पाणौ यस्य सः-चक्रपाणिः। बहुब्रीहि समास दो प्रकार का होता है - 
(क) समानाधिकरण बहुब्रीहि और 
(ख) व्यधिकरण बहुब्रीहि। 

(क) समानाधिकरण बहुब्रीहि समानाधिकरण बहुब्रीहि में विग्रहवाक्य में सभी पद प्रथम-विभक्त्यन्त होते हैं, जैसे - 

(i) पीतानि अम्बराणि यस्य सः-पीताम्बरः। 
(ii) चित्रा गावो यस्य सः-चित्रगुः। 
(iii) विमला बुद्धिः यस्य सः-विमलबुद्धिः। 
(iv) श्वेतानि अम्बराणि यस्य सः-श्वेताम्बरः। 

(ख) व्यधिकरण बहुब्रीहि व्यधिकरण बहुब्रीहि समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद दोनों में भिन्न-भिन्न विभक्तियाँ आती हैं, जैसे - 

(i) कण्ठे कालः यस्य सः-कण्ठकालः। 
(ii) चक्रं पाणौ यस्य सः-चक्रपाणिः। 

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4. द्वन्द्व समास :

उभयपदार्थ-प्रधानो द्वन्द्वः - जिस समास में दोनों पदों के अर्थ की प्रधानता हो उसे 'द्वन्द्व समास कहते हैं। जब दो या दो से अधिक संज्ञाएँ इस तरह जुड़ी रहती हैं कि उनके मध्य 'च' छिपा रहे तब 'द्वन्द्व समास होता है। जैसे - 
कृष्णश्च अर्जुनश्च = कृष्णार्जुनौ।

यह द्वन्द्व समास प्रधानतया तीन प्रकार का होता है - 

1. इतरेतरद्वन्द्व 
2. समाहारद्वन्द्व
3. एकशेषद्वन्द्व। 

1. इतरेतरद्वन्द्व - इस समास में दो पदों के समास के साथ द्विवचन और दो से अधिक पदों के समास के साथ बहुवचन आता है। इसमें लिङ्ग का विधान अन्तिम पद के लिङ्ग के अनुसार होता है। जैसे - 

माता च पिता च = मातापितरौ। 
कन्दञ्च मूलं च फलञ्च = कन्दमूलफलानि। 
कुक्कुटश्च मयूरी च = कुक्कुटमयूर्यो। 

2. समाहारद्वन्द्व - इस समास में समाहार (समूह) का बोध होता है। समस्तपद में नपुंसकलिङ्ग का एकवचन आता है। जैसे -  

पाणी च पादौ च एतेषां समाहारः = पाणिपादम्। 
दधि च घृतं च अनयोः समाहारः = दधिघृतम्। 
अहश्च रात्रिश्च = अहोरात्रम्। 
गौश्च महिषी च = गोमहिषम्। 

3. एकशेष द्वन्द्व - इस समास में विग्रह, में प्रयुक्त अनेक पदों में से एक ही पद शेष रह जाता है और अर्थ के अनुसार वचन का प्रयोग होता है। जैसे 

माता च पिता च = पितरौ। 
पुत्रश्च पुत्री च = पुत्रौ। 
स च स च = तौ। 
रामश्च रामश्च = रामौ। 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

पाठ्यपुस्तक से समास/विग्रह के उदाहरण - 

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण - 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 1

पाठ्यपुस्तक से उदाहरण - 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम् 2

V. द्वन्द्वसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं हिन्दीभाषायां लिखत। 
उत्तरम् :
जब दो या दो से अधिक संज्ञाएँ इस तरह जुड़ती हैं कि उनके मध्य 'च' छिपा रहे, तब द्वन्द्व समास होता है। जैसे - कृष्ण चः अर्जुनः च = कुष्णार्जुनौ 
यह समास तीन प्रकार का होता है - 
1. इतरेतर द्वन्द्व-माता च पिता च = मातापितरौ। 
2. समाहारद्वन्द्व-पाणी च पादौ च एतेषां समाहारः = पाणिपादम्। 
3. एकशेष द्वन्द्व माता च पिता च = पितरौ। 

RBSE Class 12 Sanskrit व्याकरणम् समास प्रकरणम्

VI. अव्ययीभावसमासस्य परिभाषां सोदाहरणं लिखत। 
उत्तरम् :
अव्ययीभावसमास - विभक्ति आदि अर्थों में अव्ययीभाव समास होता है। इसमें अव्यय या उपसर्ग के साथ संज्ञा पद का समास होता है। इसका पूर्वपद कोई अव्यय होत है। 
उदाहरण :
दिनम् दिनम् इति प्रतिदिनम्। 
कृष्णस्य समीपम् उपकृष्णम्। 
रूपस्य योग्यम् अनुरूपम्।

Prasanna
Last Updated on Dec. 27, 2023, 9:56 a.m.
Published Dec. 26, 2023