Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi रचना पत्रकारीय लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
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अच्छा पत्रकार बनने के लिए आवश्यक शर्ते -
अच्छा पत्रकार बनने के लिए विभिन्न जनसंचार माध्यमों में लिखने की भिन्न-भिन्न शैलियों से परिचित होना परम आवश्यक है। समाचार-पत्रों या पत्रिकाओं में समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट और लेख प्रकाशित होते हैं। इन सभी के लिखने की भिन्न-भिन्न शैली होती है जिनका ध्यान एक अच्छे पत्रकार को रखना आवश्यक है।
समाचार लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग होता है। फीचर लेखन कहीं से भी प्रारंभ किया जा सकता है। विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज पर ध्यान दिया जाता है। विचारपरक लेख और संपादकीय लेखन में भी विचारों और विश्लेषण पर अधिक ध्यान रखना पड़ता है। अतः पत्रकारिता लेखन की विभिन्न शैलियों से परिचित होने पर ही एक अच्छा एवं सफल पत्रकार बना जा सकता है।
पत्रकारीय लेखन क्या है -
किसी अखबार या अन्य समाचार माध्यम में काम करने वाले पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों या श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न स्वरूपों का प्रयोग करते हैं। इसी को पत्रकारीय लेखन कहते हैं। पत्रकारीय लेखन समसामयिक और वास्तविक समस्याओं, मुद्दों, घटनाओं आदि से सम्बन्धित होता है। यह साहित्यिक तथा सृजनात्मक लेखन से भिन्न होता है, इसका सम्बन्ध तथ्यों से होता है, यह कल्पना पर आधारित नहीं होता।
पत्रकारीय लेखन तात्कालिक होता है, उसमें सृजनात्मक साहित्य की तरह स्थायित्व नहीं होता। पत्रकार अपने पाठकों की रुचि और आवश्यकता को समझकर लिखता है। सृजनात्मक साहित्य के लेखक पर ऐसा कोई बन्धन नहीं होता। पत्रकारीय लेखन की भाषा सरल तथा सभी पाठकों की समझ में आने वाली होनी चाहिए, उसके वाक्य छोटे और सहज होने चाहिए। साहित्यिक लेखन की तरह उसमें . क्लिष्ट भाषा, जटिल वाक्य-रचना आदि के लिए स्थान नहीं होता।
समाचार लेखन -
पत्रकार लेखन का जाना-पहचाना रूप समाचार लेखन है। प्रायः पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार समाचार लिखते हैं जिनको हम संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं। इन समाचारों में किसी घटना, समस्या अथवा विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। उससे कम महत्व की सूचनाएँ या जानकारियाँ आगे वाले पैराग्राफों में लिखी जाती हैं। इसी प्रकार आगे के पैराग्राफों में समाचार की घटते महत्व की सूचनाएँ लिखी जाती हैं। यह क्रम समाचार समाप्त होने तक जारी रहता है।
समाचार लेखन की इस शैली को उल्टा पिरामिड शैली कहते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना (क्लाइमैक्स) पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में न होकर सबसे ऊपर के भाग में होती है। पिरामिड को उलट देने के कारण इसको उल्टा पिरामिड शैली कहते हैं। लेखन तथा सम्पादन की सुविधा के कारण यह समाचार लेखन की मानक या स्टैण्डर्ड शैली बन गई है।
समाचार लेखन और छहककार समाचार लिखते समय लेखक मुख्य रूप से छ: प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश करता है। क्या हुआ, कौन के साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ-इन प्रश्नों का उत्तर समाचार में दिया जाता है। क्या, कौन, कहाँ, कब, कैसे और क्यों -को 'ककार' कहते हैं। संख्या में यह छः होते हैं। समाचार में पाठक की जिज्ञासा की पूर्ति से इन छ: ककारों का गहरा सम्बन्ध है।
समाचार-लेखन में यह 'ककार' महत्वपूर्ण होते हैं। समाचार के मुखड़े (इंट्रो या पहला पैराग्राफ) में तीन या चार ककारों को आधार बनाकर लिखा जाता है। ये चार ककार हैं - क्या, कौन, कब और कहाँ। बाकी दो ककारों कैसे और क्यों का उत्तर समाचार के समापन से पहले दिया जाता है। इन ककारों में पहले चार सूचना तथा तथ्यों पर आधारित होते हैं और बाद के दो विवरण, व्याख्या और विश्लेषण के लिए प्रयुक्त होते हैं।
फीचर-लेखन -
समाचार पत्रों में समाचारों के अतिरिक्त अनेक प्रकार के पत्रकारीय लेखन भी छपते हैं उनमें फीचर का महत्वपूर्ण स्थान है। सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन ही फीचर कहलाता है। इसका उद्देश्य पाठक को सूचना देना, शिक्षित करना एवं उसका मनोरंजन करना होता है। फीचर समाचार की भाँति पाठकों को हाल में घटी घटनाओं की सूचना नहीं देता।
जहाँ समाचार लेखन में तथ्यों की शुद्धता पर ध्यान दिया जाता है, समाचार का रिपोर्टर उसमें अपने विचार नहीं लिख सकता वहीं दूसरी ओर फीचर में लेखक अपने विचार, अपने दृष्टिकोण को भी प्रस्तुत कर सकता है।
विशेष रिपोर्ट -
समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में सामान्य समाचारों के अतिरिक्त महरी छानबीन, विश्लेषण एवं व्याख्या पर आधारित विशेष रिपोर्ट भी छपती हैं। इस प्रकार की विशेष रिपोर्टों के लिए किसी घटना या समस्या की गहरी छानबीन की जाती है तथा उससे संबंधित तथ्यों को एकत्र किया जाता है। तथ्यों का विश्लेषण कर उसके परिणाम, प्रभाव तथा कारणों पर भी प्रकाश डाला जाता है। विशेष रिपोर्ट चार प्रकार की होती हैं -
विचारपरकपत्रकारीय लेखन -
समाचार पत्रों में समाचार और फीचर के अतिरिक्त विचारपरक सामग्री भी प्रकाशित होती है। कुछ समाचार पत्रों की पहचान या प्रतिष्ठा उनमें प्रकाशित विचारपरक लेखों के कारण ही होती है। इन विचारपरक लेखों के कारण ही उस समाचार पत्र की छवि बन जाती है। समाचार पत्रों में संपादकीय पेजों पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय लेख, विशेष लेख, टिप्पणियाँ विचारपरक पत्रकारीय लेखन की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। इन सबके अतिरिक्त विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों अथवा वरिष्ठ संपादकों के स्तंभ या कॉलम भी विचारपरक पत्रकारीय लेखन ही कहलाते हैं। कुछ विशेष समाचार पत्रों में संपादकीय पृष्ठ के सामने ऑप-एड पेज पर भी विचारपरक लेख, टिप्पणियाँ तथा स्तंभ का प्रकाशन होता है।
संपादकीय लेखन -
संपादकीय पृष्ठ पर छपने वाले संपादकीय (संपादक के द्वारा लिखे मैटर) को उस समाचार-पत्र की अपनी आवाज कहते हैं। संपादकीय लेखन के माध्यम से समाचार-पत्र किसी घटना या समस्या के विषय में अपनी राय प्रकाशित करते हैं। संपादकीय लेखन किसी व्यक्ति विशेष की राय नहीं होती अतः उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता। संपादकीय लेख लिखने का दायित्व उस समाचार-पत्र में काम करने वाले संपादक तथा उसके सभी सहयोगियों पर होता है। प्रायः सहायक-संपादक ही समाचार-पत्रों में संपादकीय लिखते हैं। इसमें बाहर का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता है। हिन्दी के समाचार पत्रों में कुछ में तीन, कुछ में दो तथा कुछ समाचार पत्रों में मात्र एक ही संपादकीय लेख प्रकाशित होता है।
स्तंभलेखन -
स्तंभ लेखन विचारपरक लेखन का एक प्रमुख स्वरूप है। कुछ प्रतिभाशाली एवं अत्यंत महत्वपूर्ण लेखक अपनी विशेष वैचारिक रुचि के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं। उनकी अपनी विशेष लेखन शैली होती है। इस प्रकार के लेखकों की लोकप्रियता के कारण समाचार-पत्र के सम्पादक उन्हें नियमित स्तंभ लिखने की जिम्मेदारी प्रदान करते हैं। स्तंभ लेखक को पूरी स्वतंत्रता रहती है कि वह किसी भी विषय को चुनकर उस पर अपने विचार स्तंभ में व्यक्त कर सकता है। स्तंभ में छपे विचार समाचार-पत्र के विचार न होकर उसी विशेष लेखक के निजी विचार होते हैं। इसी कारण से स्तंभ अपने लेखकों के नाम से ही पसंद किये जाते हैं। कुछ स्तंभ तो इतने अच्छे व लोकप्रिय होते हैं कि उस समाचार-पत्र की लोकप्रियता उसी के कारण बहुत अधिक हो जाती है।
संपादक के नाम पत्र -
समाचार-पत्रों के संपादकीय पृष्ठ पर तथा पत्रिकाओं के प्रारंभ में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी समाचार-पत्रों में यह एक स्थायी स्तंभ होता है जो पाठकों का अपना होता है। इस स्तंभ के माध्यम से समाचार-पत्र के पाठकगण अपने विचार प्रकट करते हैं तथा कभी-कभी वे इसके माध्यम से जन-समस्याओं या समाज में फैली अव्यवस्थाओं का वर्णन भी करते हैं। स्पष्ट है कि यह स्तंभ जनमत को ही प्रकट करता है। यह आवश्यक नहीं कि संपादक के नाम लिखे पत्र में व्यक्त विचारों से समाचार-पत्र सहमत हो। नये लेखकों को लिखने का प्रोत्साहन भी इस स्तंभ के माध्यम से ही मिलता है।
साक्षात्कार (इंटरव्यू) -
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार (इंटरव्यू) का अपना अलग ही महत्व है। साक्षात्कार के माध्यम से ही पत्रकार समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट तथा अनेक प्रकार के पत्रकारीय लेखन की पृष्ठभूमि तैयार करता है। एक अच्छे और सफल साक्षात्कारर्ता में निम्न गुण होने चाहिए -
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
पत्रकारिता लेखन में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? किन्हीं चार सावधानियों को लिखिए।
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए -
वाक्य छोटे हों।
आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग हो।
पत्रकारिता में अच्छा लिखने के लिए अच्छे साहित्य का पढ़ना भी आवश्यक है।
लेखन में नीरसता न हो इसके लिए मुहावरे, लोकोक्ति का भी प्रयोग कहीं-कहीं किया जा सकता है।
लेखन में शुद्धता के साथ ही विचारों की तारतम्यता भी आवश्यक है।
प्रश्न 2.
समाचार पत्रों के लेखक या पत्रकार को किस बात का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
पत्रकार को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि विशाल जन समुदाय के लिए लिख रहा है जिसमें विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जैसे विद्वान भी हैं और कम पढ़े-लिखे लोग भी हैं। अत: उसकी भाषा-शैली, कठिन से कठिन विषय की प्रस्तुति ऐसी सरल, सहज और रोचक होनी चाहिए कि सब उसे आसानी से समझ लें।
प्रश्न 3.
अखबारों के लिए लेखन किस प्रकार का होता है?
उत्तर :
अखबारों के लिए लेखन सरल भी है और कठिन भी। यदि अखबार में लिखने वाला पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूपों और उनकी लेखन क्रिया की बारीकियों का जानकार है तो अखबारों के लिए लिखना सरल है परंतु यदि वह पत्रकारीय लेखन की प्रक्रिया और उसके तौर-तरीके से परिचित नहीं तो आसान दिखाई देने वाला लेखन अत्यंत कठिन प्रतीत होगा।
प्रश्न 4.
पत्रकारीय लेखन क्या है ?
उत्तर :
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में कार्यरत पत्रकार लोकतांत्रिक समाज में एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत निर्माता के रूप में भूमिका अदा करते हैं। उनके लेखन से असंख्य पाठक प्रतिदिन प्रात:काल देश, दुनिया और अपने आसपास की घटनाओं, समस्याओं और विचारों से अवगत होते हैं। ये पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का प्रयोग करते हैं। इसी को पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
प्रश्न 5.
पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर :
तीन प्रकार के होते हैं -
प्रश्न 6.
पत्रकारीय लेखन के लिए सबसे पहले क्या समझना बहुत जरूरी है?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन के लिए सबसे पहले यह समझना बहुत जरूरी है कि पत्रकारीय लेखन क्या है, समाज में उसकी भूमिका क्या है और वह अपनी भूमिका को कैसे पूरा करता है।
प्रश्न 7.
फ्रीलांसर किसे कहते हैं ?
उत्तर :
फ्रीलांसर पत्रकार किसी खास अखबार का वेतनभोगी कर्मचारी नहीं होता। वह किसी अखबार से जुड़ान रहकर स्वतंत्र रूप से अनेक समाचार-पत्रों के लिए लिखता है तथा अपनी तयशुदा दरों से भुगतान लेता है। फ्रीलान्सर पत्रकार से भी सरकार के सूचना विभाग, प्रेस परिषद या एडीटर्स द्वारा प्रदत्त परिचय-पत्र रखने की अपेक्षा की जाती है ताकि वह यत्र-तत्र-सर्वत्र निर्बाध रूप से जाकर वांछित सूचना व तथ्य समाचार हेतु संकलित कर सके।
प्रश्न 8.
पूर्णकालिक पत्रकार किसे कहते हैं ? उसके कार्यों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
पूर्णकालिक पत्रकार को संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं, वह किसी समाचार संगठन का वेतनभोगी कर्मचारी होता है। वह पूरे समय अखबार में काम करता है तथा निश्चित वेतन पाता है और अपने स्वामी द्वारा निर्दिष्ट क्षेत्र या बीट में जाकर समाचार हेतु अपेक्षित तथ्य एकत्र करता है, महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का साक्षात्कार लेता है एवं किसी घटना स्थल. - के शब्द चित्र के रूप में रिपोर्ताज आदि लिखता है।
प्रश्न 9.
पत्रकारीय लेखन में किस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन आम जनता के लिए होता है। इसमें इस बात का सबसे अधिक ध्यान रखना चाहिए कि कही गई बात स्पष्ट और साफ हो। इसके लिए सहज, सरल, आम बोलचाल की भाषा और सीधे-सादे छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। भाषा को प्रभावी बनाने के लिए अनावश्यक विशेषणों, जार्गन्स अर्थात् अप्रचलित या कम प्रचलित शब्दावली और क्लीशे (पिष्टोक्ति या दोहराव) से बचना चाहिए।
प्रश्न 10.
पत्रकारीय लेखन साहित्यिक लेखन से भिन्न होता है, स्पष्ट कीजिए
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन से भिन्न होता है क्योंकि इसमें तथ्य होते हैं, कल्पना नहीं। दूसरे यह तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है जबकि साहित्यिक या सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।
प्रश्न 11.
उल्टा पिरामिड शैली की किन्हीं दो विशेषताओं को बताइये।
उत्तर :
उल्टा पिरामिड शैली की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
1. सबसे पहले समाचार का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य लिखा जाता है।
2. उसके बाद घटते क्रम में अन्य तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है।
प्रश्न 12.
छह ककार मुख्यतः किस पर आधारित होते हैं?
उत्तर :
छह ककारों में पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं। अन्तिमं दो ककार-कैसे और क्यों-पहलू पर आधरित होते हैं।
प्रश्न 13.
क्या समाचार लेखन की कोई विशेष शैली होती है ? या समाचार कैसे लिखे जाते हैं ?
उत्तर :
समाचारपत्रों में प्रकाशित अधिकांश समाचारं एक विशेष शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के सबसे मुख्य तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले लिखा जाता है। उसके पश्चात् कम महत्त्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी. जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि समाचार समाप्त नहीं होता। इसे समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली कहते हैं।
प्रश्न 14.
उल्टा पिरामिड शैली का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर :
इस शैली का प्रयोग 19 वीं सदी के मध्य में प्रारम्भ हो गया पर इसका विकास अमेरिका में गृहयुद्ध के समय में हुआ। उस समय संवाददाताओं को अपने समाचार टेलीग्राफ संदेशों के माध्यम से भेजने पड़ते थे जो मँहगे और अनियमित थे। अतः संवाददाताओं को किसी घटना का समाचार संक्षेप में देना पड़ता था। इस प्रकार उल्टा पिरामिड शैली का विकास हुआ। लेखन और संपादन की सुविधा के कारण यह शैली लेखन की स्टैण्डर्ड शैली बन गई।
प्रश्न 15.
समाचार लेखन के कितने ककार हैं ? उनके नाम लिखिए।
अथवा
समाचार लेखन में किन छह ककारों की जानकारी दी जाती है ?
उत्तर :
किसी समाचार को लिखते हुए मुख्य रूप से छह प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयत्न होता है। क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ और क्यों हुआ। इस क्या, किसके (या कौन) कहाँ, कब, कैसे और क्या को छह ककार के रूप में जाना जाता है। किसी घटना, समस्या या विचार से संबंधित समाचार लिखते हुए इन सभी ककारों को ही ध्यान में रखा जाता है।
प्रश्न 16.
इंटो से आप क्या समझते हैं? उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर :
समाचार के मुखड़े को ही इंटो कहते हैं। समाचार की प्रथम दो या तीन पंक्तियाँ मुख्य रूप से क्या, कौन, कब और कहाँ नामक चार ककारों पर आधारित होती हैं। ये सभी चारों ककार-क्या, कौन, कब और कहाँ-सृजनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं। इंट्रो का एक उदाहरण देखिए नैनीताल, 20 मार्च, मकान की छत ढहने से 3 लोग मरे, 20 घायल। ग्यारह से अधिक लोगों के अब भी मलबे में फंसे होने की आशंका। घायलों को अस्पताल में भरती करा दिया गया है।
प्रश्न 17.
फीचर में किन घटनाओं को शामिल किया जाना चाहिए?
उत्तर :
फीचर में एक या दो ऐसी घटनाओं को शामिल किया जा सकता है जो न सिर्फ दिलचस्प और अनोखी हों बल्कि उससे जीवन के अहम् क्षणों पर प्रकाश पड़ता हो। फीचर की अपनी कोई न कोई थीम अवश्य हो।
प्रश्न 18.
फीचर किसे कहते हैं ?
अथवा :
फीचर किसे कहते हैं तथा इसका उद्देश्य क्या है ?
उत्तर :
फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनात्मक और आत्मनिष्ठ लेखन है जो सामयिक विषयों से लेकर गम्भीर विषयों और मुद्दों पर भी लिखा जा सकता है। समाचार की तरह तात्कालिक घटनाक्रम से अवगत कराने के विपरीत फीचर का उद्देश्य पाठकों को सूचना देने, शिक्षित करने के साथ मुख्य रूप से उनका मनोरंजन करना भी होता है। कोमल व मानवीय रुचि के समाचारों के लेखन में फीचर का उपयोग किया जा सकता है।
प्रश्न 19.
फीचर के साथ और क्या होना चाहिए ?
उत्तर :
फीचर प्रायः तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है जिसमें पात्रों की मौजूदगी जरूरी है। अस्तु फीचर को रोचक, बोधगम्य एवं ग्रांट्स बनाने हेतु उसके साथ फोटो, रेखांकन, ग्राफिक्स आदि अति आवश्यक हैं। इनके अभाव में फीचर बेजान प्रतीत होता है।
प्रश्न 20.
फीचर की शैली समाचार लेखन की शैली से किस प्रकार भिन्न होती है ?
उत्तर :
समाचार लेखन में तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है जबकि फीचर में लेखक अपनी राय भी लिख सकता है। समाचार लेखन के ठीक विपरीत फीचर लेखन में उल्टा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। समाचारों की भाषा के विपरीत फीचर की भाषा सरल, आकर्षक एवं मन पर प्रभाव डालने वाली होती है। समाचारों की तरह फीचर में शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती 1-250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर समाचार पत्रों में छपते हैं।
प्रश्न 21.
फीचर लिखते समय किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर :
फीचर लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए :
फीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े लोगों यानी पात्रों की मौजूदगी जरूरी है। पात्रों के माध्यम से उस विषय या कहानी के विभिन्न पहलुओं को सामने लाना चाहिए। फीचर या कहानी को कहने का ढंग सजीव होना चाहिए जिससे पाठक महेसस करें कि वे खुद सब देख या सुन रहे हैं। फीचर को मनोरंजक होने के साथ-साथ सूचनापरक होना चाहिए। फीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों पर आधारित होना चाहिए।
प्रश्न 22.
विशेष रिपोर्ट को किस शैली में लिखा जाता है? बताइये।
उत्तर :
आमतौर पर विशेष रिपोर्ट को उल्टा पिरामिड शैली में लिखा जाता है। लेकिन कई बार इन रिपोर्टों को फीचर शैली में भी लिखा जाता है। चूंकि ऐसी रिपोर्ट सामान्य समाचारों की तुलना में बड़ी और विस्तृत होती है। अत: रुचिकर बनाए रखने हेतु रिपोर्ट उल्टा पिरामिड शैली और फीचर शैली दोनों को मिलाकर भी लिखी जाती है।
प्रश्न 23.
अच्छा लेख लिखते समय ध्यान रखने योग्य कोई. चार शर्ते लिखिए।
उत्तर :
प्रश्न 24.
फीचर लेखन के फार्मला पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
फीचर लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फार्मूला नहीं होता है। इसे कहीं से भी शुरू किया जा सकता है। हर फीचर का प्रारंभ, मध्य और अंत होता है। फीचर का प्रारंभ आकर्षक और उत्सुकता पैदा करने वाला होना चाहिए। फीचर के मध्य में फीचर से सम्बन्धित अन्य विवरण दिया जाना चाहिए। अन्त में भविष्य की योजनाओं या परिणामों को व्यक्त करना चाहिए। फीचर के प्रारंभ, मध्य और अन्त को सहज-स्वाभाविक तरीके से एक साथ जोड़कर रखना चाहिए जिससे प्रारंभ से अन्त तक एक गति और प्रवाह बना रहे।
प्रश्न 25.
विशेष रिपोर्ट क्या होती है ?
उत्तर :
जब कोई रिपोर्ट (संवाददाता) किसी विशेष घटना, समस्या या मुद्दे से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा करके, उनके विश्लेषण के माध्यम से परिणाम, प्रभाव और कारणों को स्पष्ट करता है तब उस लेखन को विशेष रिपोर्ट कहते हैं। प्रायः विशेष रिपोर्ट का लेखन उलटा पिरामिड शैली में ही किया जाता है तथापि पाठकों की रुचि बनाए रखने हेतु अनेक बार उलटा पिरामिड और फीचर दोनों ही शैलियों को मिलाकर प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 26.
विशेष रिपोर्ट के कितने प्रकार हैं? किसी एक का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट कई प्रकार के होती है। चार प्रकार निम्नलिखित हैं -
(अ) खोजी रिपोर्ट
(ब) इनडेप्थ रिपोर्ट
(स) विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
(द) विवरणात्मक रिपोर्ट।
प्रश्न 27.
विशेष रिपोर्ट की भाषा किस तरह की होनी चाहिए?
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए। रिपोर्ट बहुत विस्तृत और बड़ी हो तो उसे शृंखलाबद्ध करके किस्तों में छापा जाता है।
प्रश्न 28.
इनडेप्थ रिपोर्ट क्या है ?
उत्तर :
इनडेप्थ रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की बहुत ही गहराई से छानबीन की जाती है। छानबीन के आधार पर किसी घटना, समस्या अथवा मुद्दे से सम्बंधित अत्यंत महत्त्वपूर्ण बातों को सामने लाया जाता है।
प्रश्न 29.
विशेष रिपोर्ट किस शैली में लिखी जाती है ?
उत्तर :
विशेष रिपोर्ट को अधिकांशतः तो उलटा पिरामिड शैली में ही लिखा जाता है लेकिन कई बार ऐसी रिपोर्ट फीचर शैली में भी लिखी जाती है। यह रिपोर्ट सामान्य समाचार से बड़ी होती है इसलिए पाठकों को रुचिकर लमती है। अत: दोनों ही शैलियों का मिला-जुला रूप भी इन रिपोर्ट में देखा जाता है। बड़ी रिपोर्ट को क्रमशः कई किश्तों में भी छापा जा सकता है। विशेष रिपोर्ट की भाषा सहज-सरल, आम बोलचाल की और प्रवाह युक्त होनी चाहिए।
प्रश्न 30.
विचारपरक लेखन से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
अखबारों में समाचार तथा फीचर के अतिरिक्त विचारपरक लेख भी प्रकाशित होते हैं। कुछ अखबारों की पहचान उनमें छपे वैचारिक रुझान से होती है। अखबारों में छपे विचारपूर्ण लेखों से ही उस अखबार की प्रतिष्ठा बनती है। अखबारों में प्रकाशित होने वाले संपादकीय, टिप्पणियाँ तथा वरिष्ठ पत्रकारों के कालम या स्तंभ भी विचारपरक लेखन के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 31.
संपादकीय लेखन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :
संपादकीय पृष्ठ पर जो आलेख छपता है वह वास्तव में उस अखबार की अपनी आवाज माना जाता है। संपादकीय किसी घटना या समस्या के प्रति अपनी राय प्रकट करता है। संपादकीय लिखने का दायित्व पत्र के संपादक और उसके सहयोगियों का होता है। कोई बाहर का व्यक्ति संपादकीय नहीं लिख सकता। सम्पादकीय को सम्पादक का मत नहीं माना जाता बल्कि वह समाचार-पत्र का विचार होता है।
प्रश्न 32.
संपादकीय लिखने का दायित्व किसका होता है ?
उत्तर :
यद्यपि संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले प्रधान संपादक का ही होता है तथापि दायित्वों के सुचारु निष्पादन हेतु प्रायः सम्पादकीय लिखने का कार्य सहायक सम्पादक अथवा सम्पादक मंडल के सदस्य द्वारा निष्पादित किया जाता है। किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा लिखकर प्रेषित किया गया सम्पादकीय स्वीकार्य नहीं होता है।
प्रश्न 33.
स्तंभ लेखन से क्या आशय है ? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर :
विचारपरक लेखन का एक प्रमख रूप स्तंभ लेखन भी है। कछ विशेष विषयों को लेकर कई लेखक प्रसिद्ध हो जाते हैं। उनकी एक खास लेखन शैली भी विकसित हो जाती है। अतः ऐसे लोकप्रिय लेखकों से अखबार में नियमित स्तंभ लिखवाने की परंपरा है। स्तंभ में लेखक अपने विचार स्वतन्त्र रूप से अभिव्यक्त कर सकता है।
कुछ अखबार अपने स्तंभ विशेष के कारण लोकप्रिय हो जाते हैं। कुछ लेखक अपने स्तंभ के कारण लोकप्रिय हो जाते हैं। अतः अखबार में स्तंभ लेखन का अपना महत्त्व है।
प्रश्न 34.
'संपादक के नाम पत्र' में क्या लिखा होता है ?
उत्तर :
इस शीर्षक के अन्तर्गत पाठकों के पत्र प्रकाशित होते हैं। पाठक किसी समस्या को लेकर संपादक के नाम पत्र लिखते हैं तथा अखबार के माध्यम से समस्या का समाधान कराया जाता है। इस शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित सूचना के लिए समाचार-पत्र या उसके सम्पादक उत्तरदायी नहीं होते अपितु प्रेषित करने वाला ही उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 35.
संपादक के नाम पत्र' स्तंभ से नए लेखकों को क्या लाभ होता है ?
उत्तर :
प्रायः सभी अखबारों में जनमत को प्रतिबिम्बित करने हेतु स्थायी स्तम्भ के रूप में प्रकाशित 'सम्पादक के नाम पत्र' स्तम्भ यद्यपि पाठकों द्वारा विभिन्न घटनाओं, समस्याओं व मुद्दों को उजागर करने और उन पर अपना अभिमत प्रकट करने के लिए होता है। तथापि नए लेखकों को इस स्तम्भ से बहुत लाभ होता है। कालान्तर में वे उत्कृष्ट पत्रकार या स्तम्भ लेखक बन जाते हैं।
प्रश्न 36.
वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा लिखे लेखों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
सभी समाचार-पत्र अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर समसामयिक मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकारों और उन विषयों के विशेषज्ञों के लेख प्रकाशित करते हैं। इन लेखों में किसी विषय या मुद्दों के समस्त पहलुओं पर विस्तार से चर्चा होने के कारण उस समस्या की ओर सरकार व समाज का ध्यान आकर्षित करने तथा प्रबुद्ध वर्ग एवं जनता को जागरूक कर जनमत को उदात्त, प्रखर और मुखर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान मिलता है।
प्रश्न 37.
समाचारपत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट, फीचर की अपेक्षा लेख किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर :
रिपोर्ट और फीचर की अपेक्षा लेख इस मामले में बिल्कुल भिन्न होते हैं कि इसमें लेखक के विचारों की प्रमुखता दी जाती है। परन्तु ये विचार तथ्यों तथा सूचनाओं पर आधारित होते हैं और लेखक उन तथ्यों और सूचनाओं का विश्लेषण करता है और अपने तर्कों के माध्यम से अपना विचार प्रकट करता है।
प्रश्न 38.
समाचार-पत्रों में साक्षात्कार का क्या महत्त्व है ?
उत्तर :
समाचार-माध्यम में साक्षात्कार का बड़ा महत्व है। पत्रकार साक्षात्कार द्वारा समाचार, फीचर, विशेष रिपोर्ट आदि के लेखन के लिए कच्ची सामग्री प्राप्त करता है। तदुपरान्त अपनी मनचाही शैली में आलेख सृजित करते हुए साक्षात्कार में प्राप्त सामग्री का प्रयोग करता है।
प्रश्न 39.
पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में क्या अन्तर है ? ,
उत्तर :
पत्रकारीय साक्षात्कार में एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से विषय विशेष पर तथ्य, उसकी राय और भावनाओं को जानने के लिए प्रश्न करता है जबकि आपसी बातचीत उद्देश्यहीन संवाद है जिसका कोई मकसद (उद्देश्य) और ढाँचा नहीं होता है।
प्रश्न 40.
अच्छे साक्षात्कार के लिए क्या गुण अपेक्षित हैं ?
अथवा
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर :
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए साक्षात्कारकर्ता को अपने साक्षात्कार के विषय और साक्षात्कार किए जाने वाले व्यक्ति के बारे में सम्यक और पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए। इसके साथ ही साक्षात्कारकर्ता को अपने उद्देश्य का भी भलीभाँति ज्ञान होना चाहिए। उसे ऐसे प्रश्न पूछने चाहिए जो किसी अखबार के सामान्य पाठक के मन में होने सम्भावित हों।
प्रश्न 41.
साक्षात्कार लिखने के लिए क्या ढंग अपनाना चाहिए ?
उत्तर :
साक्षात्कार लिखने के लिए पहले सवाल और फिर उसके जवाब लिखने की शैली अपनाई जा सकती है। अथवा इसको एक आलेख के रूप में भी लिखा जा सकता है। साक्षात्कार को अगर रिकार्ड करना संभव हो तो बेहतर है लेकिन अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार करते समय साक्षात्कारकर्ता को अपनी डायरी में आवश्यक बिन्दुओं पर नोट्स लेते रहना चाहिए।
प्रश्न 42.
पत्रकारीय लेखन और सृजनात्मक लेखन में क्या अन्तर है ?
उत्तर :
पत्रकारीय लेखन समसामयिक और वास्तविक घटनाओं पर तथ्याधारित लेखन है किन्तु सृजनात्मक लेखन कल्पित घटनाओं पर आधारित होता है। पत्रकारीय लेखन में तात्कालिकता तथा पाठकों की रुचियों का ध्यान रखना होता है। सृजनात्मक लेखन में इनका ध्यान रखना जरूरी नहीं है तथा लेखक अपनी रुचि के अनुसार एक विशिष्ट पाठक वर्ग की अपेक्षा के अनुरूप अपना आलेख प्रस्तुत करता है।