Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi काव्यांग-परिचय छन्द Questions and Answers, Notes Pdf.
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लिखित रूप में विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा के पद्य तथा गद्य-ये दो रूप रहे हैं। आरम्भ में पद्य की ही प्रधानता रही है। पद्य को कविता भी कहते हैं और काव्य भी। कविता में मात्राओं अथवा वर्णों की निश्चित तथा नियमित संख्या, विराम, यति, गति आदि का नियम होता है, उसको छन्द कहते हैं। छन्दों की रचना के नियमों को छन्द-शास्त्र अथवा छन्द विज्ञान कहा जाता है। इसको 'पिङ्गल' भी कहा जाता है। 'पिङ्गल' एक प्राचीन ऋषि थे। उन्होंने संस्कृत में छन्द रचना के नियम बनाए थे। उनके नाम के आधार पर ही इसको पिङ्गल कहा जाता है।
परिभाषा - जब किसी कविता को निश्चित संख्या में मात्राओं अथवा नियमित वर्णों के अनुसार लिखा जाता है तथा उसमें यथास्थान विराम, यति तथा गति का पालन किया जाता है तो उसको छन्द कहते हैं।
उदाहरण के लिए -
बिगरौ काम बने नहीं. लाख करो किन कोड।
रहिमन फाटे दूध तें मथै न माखन होइ॥
यह दोहा छन्द है जिसमें चार चरण हैं तथा प्रत्येक की मात्राओं की संख्या निश्चित है।
संस्कृत की 'चद्' धातु से छद् तथा उससे छन्द शब्द बना है। 'चद्' का अर्थ है - प्रसन्न करना अतः छन्द उस पद्य-रचना को कहते हैं, जो पाठक को प्रसन्नता प्रदान करती है। यः छंदयति आलादयति च सः छन्दः। छन्द का अर्थ पद्य है। 'साहित्य दर्पण' के रचयिता आचार्य विश्वनाथ ने छन्दोबद्ध पद को ही पद्य कहा है। इसमें मात्राओं की निश्चित संख्या यतक्रम निर्धारित रहता है। पद्य की सुन्दरता उसकी लय, यति, प्रवाह, शब्द-चयन आदि पर निर्भर करती है तथा छन्द इसमें सहायक होता है।
वर्णों का महत्व-छन्द रचना में वर्गों का महत्वपूर्ण स्थान है।
हिन्दी में दो प्रकार के वर्ण होते हैं-1. स्वर तथा 2. व्यंजन।
स्वर वे हैं, जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य अक्षर की सहायता के हो जाता है। जैसे - अ, आ, इ, ई इत्यादि स्वर हैं। स्वर दो प्रकार के होते हैं-(क) ह्रस्व तथा (ख) दीर्घ। अ, इ, उ आदि ह्रस्व स्वर हैं तथा आ, ई, ऊ आदि दीर्घ स्वर हैं। स्वरों की संख्या तेरह हैं। व्यंजन वे वर्ण हैं जिनके उच्चारण में स्वरों की सहायता अपेक्षित होती है। जैसे व्यंजन वर्ण 'क्' का उच्चारण बिना स्वर के योग के नहीं हो सकता। स्वर के योग से ही इसका उच्चारण हो सकता है।। जैसे-क + अ = क, क् + आ = का, क् + इ = कि, क् + ई = की इत्यादि। व्यंजनों की संख्या 36 है। क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग तथा प वर्ग में प्रत्येक वर्ग में पाँच व्यंजन हैं। इनकी कुल संख्या 25 है। चार अन्तस्थ (य, र, ल, व्), चार विषम (श्, ष्, स्, ह्) तथा तीन संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र्, ज) हैं। मात्राएँ तथा उनकी गणना-किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। वर्ण दो प्रकार के हैं - हस्व तथा दीर्घ।
ह्रस्व - जिन स्वरों तथा व्यंजनों के उच्चारण में कम समय लगता है, उनको ह्रस्व अथवा लघु वर्ण कहते हैं। ह्रस्व स्वरों के सहयोग से उच्चारित व्यंजन ह्रस्व होते हैं। इन. ह्रस्व अथवा लघु वर्ण कहते हैं। इनकी मात्रा एक गिनी जाती है। इनकी मात्रा को प्रदर्शित करने के लिए खड़ी पाई (।) का प्रयोग होता है। अ, इ, तथा उ से युक्त वर्ण ह्रस्व तथा एक मात्रा के होते है।
उदाहरण -
दीर्घ-दीर्घ स्वरों तथा उनके सहयोग से उच्चारित होने वाले व्यंजन दीर्घ अथवा गुरु कहे जाते हैं। इनके उच्चएण में दूना समय लगता है। इनकी मात्राएँ दो मानी जाती हैं तथा उनको आड़ी पाई (ऽ) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
उदाहरण -
मात्राओं की गणना के सम्बन्ध में ध्यान देने योग्य बातें -
1. जिन व्यंजनों के.साथ ह्रस्व स्वर का योग होता है, उसकी मात्रा एक तथा जिनके साथ दीर्घ स्वर का योग होता है, उसकी मात्रा दो होती हैं।
6. स्वराघात होने अर्थात् दीर्घ वर्ण के उच्चारण में कम समय लगने पर दीर्घ होने पर भी उसको लघु माना जाता है तथा उसकी एक मात्रा गिनी जाती है, जैसे-"जे हि कर जेहि पर सत्य सनेहू' में 'जे' अक्षर दीर्घ होने पर भी उच्चारण में अधिक समय न लगने से लघु माना जायगा तथा उसकी मात्रा एक होगी
7. अनुसार 'अं' तथा विसर्ग (अ:) वाले वर्ण दीर्घ माने जाते हैं तथा उनकी दो मात्राएँ गिनी जाती हैं, जैसे-हंस, प्रायः।
8. संयुक्ताक्षर से पूर्व का वर्ण, यदि उच्चारण में बल नहीं पड़ता तो दीर्घ होने पर भी ह्रस्व ही माना जाता हैं, जैसे-कुम्हलाना, कुम्हार आदि।
9. छंद के प्रत्येक चरण के अंत वाला लघु वर्ण भी गुरु मान लिया जाता है।
10. लघु-गुरु की गणना मुख्यतः उच्चारण में लगने वाले समय पर ही निर्भर होती है।
मात्राओं की गणना -
गण विचार-छन्द शास्त्र के अनुसार तीन वर्गों के समूह को गण कहा जाता है। वर्णिक छन्दों में गणों पर विचार किया जाता है। वर्ण वृत्तों की रचना के लिए गणों तथा उनसे सम्बन्धित नियमों को जानना आवश्यक है। गणों में लघु गुरु का क्रम पूर्व नियत रहता है।
गण आठ होते हैं। उनके नाम, चिन्हह्न, मांत्राओं का क्रम तथा उदाहरण निम्नलिखित हैं -
गणों के लिए सूत्र - गणों का स्वरूप आदि स्मरण रखने के लिए निम्नलिखित दशाक्षरी बहुत उपयोगी है। वह गुजराती भाषा से ली गई है। यह दशाक्षरी सूत्र है-यमाताराजभानसलगम्। अंत में 'गम्' है जिसमें हलन्त 'म्' 'ग' के पश्चात् आया है अतः छंद के नियमानुसार 'ग' मुरु है। भ्रम न हो इस कारण कुछ विद्वानों ने इसको 'गम्' न लिखकर 'गा' लिखा है और सूत्र का स्वरूप इस प्रकार हो गया है-'जमाताराजभानसलगा। - इस सूत्र में प्रथम अक्षर वर्ण का नाम है। उसके बाद के तीन अक्षरों से सूत्रगत उदाहरण बनता है और लघु गुरु की गणना सरलता से हो जाती है।.सूत्रगत उदाहरण के आधार पर अन्य शब्द तैयार हो जाते हैं। जैसे-गण-जगण, सूत्रगत उदाहरण-जमाता, लघु गुरु-। ऽ ऽ अन्य उदाहरण-जमाई।
गणों को याद रखने के लिए निम्नलिखित दोहा भी स्मरण रखा जा सकता है -
आदि मध्य अन्तिम गुरु, भजस गणन में होय।
यरत गणन त्यौं लघु रहै, मन गुरु लघु सब कोय॥
(भ गण, ज गण, सगण में पहला, मध्य का तथा अन्तिम अक्षर क्रमशः गुरु होता है तथा शेष लघु होते हैं।)
जैसे - भगण (ऽ।।) जगण (।ऽ।) सगण (।। ऽ)।
यरत - यगण, रगण, त गण में आदि, मध्य और अन्त का अक्षर क्रमशः लघु होते हैं।
जैसे - य गण (।ऽऽ), र गण (।। ऽ), त गण (ऽ ऽ।).
मन - मगण में सभी अक्षर गुरु (ऽऽऽ) तथा नगण में सभी अक्षर लघु (।।।) होते हैं।
शभाशभ विचार - मनभय (म गण, न गण, भ गण, य गण) शभ तथा शेष जरसत (ज गण, रगण, सगण, अशुभ माने जाते हैं। वर्णवृत्त छन्दों की रचना में शुभ-अशुभ का विचार नहीं किया जाता किन्तु मात्रिक छन्दों की रचना में शुभ-अशुभ गणों का ध्यान रखा जाता है।
चरण - सामान्यतः प्रत्येक छंद में चार पंक्तियाँ होती हैं। इनको चरण कहा जाता है। चरण को पद या पादं भी कहते हैं। प्रत्येक चरण में मात्राओं की गिनती निश्चित रहती है, जैसे -
फूरहि फरहिं न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद।
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम॥
उपर्युक्त सोरठा में 1. फूरहि.........बेंत, 2. जदपि..........जलद, 3. 'मूरख..........चेत' तथा 4. जौ...........सम' यह चार चरण हैं।
यति-यति का अर्थ है - ठहरना। किसी छन्द को पढ़ते समय जिस स्थान पर कुछ समय का विराम होता है, उसे यति कहते हैं, जैसे -
उपर्युक्त उदाहरण (दोहा) में 13 और 11 मात्रा पर यति है।
गति-छन्द का पाठन करते समय उसमें जी लय उत्पन्न होती है उसको गति कहते हैं। गति से उसमें प्रवाह उत्पन्न होकर ध्वन्यात्मकता तथा संगीतात्मकता के गुण आ जाते हैं। किसी चरण में प्रयुक्त शब्दों का क्रम भंग करने से गति भी भंग हो जाती है।
उदाहरण :
मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवहु सुदशरथ अजिर बिहारी॥
उपर्युक्त चौपाई छन्द है। इसमें शब्दों का क्रम इस प्रकार का है कि उसके कारण लय उत्पन्न हो रही है। यह क्रम यदि 'भवन अमंगल मंगल हारी' हो जाय तो गति भंग होने के साथ अर्थ भी प्रभावित होगा तथा छन्द दोषपूर्ण हो जायेगा।
तुक-छन्द के चरणों के अन्त में ध्वनि की समानता को तुक कहा जाता है। समान ध्वनि वाले छन्द तुकान्त तथा असमान ध्वनि वाले अतुकान्त कहे जाते हैं।
जैसे - मिलन प्रीति किमि जाइ बखानी।
कवि कुल अगम करम मन बानी॥
उपर्युक्त चौपाई में 'बखानी' तथा 'बानी' शब्द समान ध्वनि के हैं। इसको तुक कहते हैं।
छन्दों के प्रकार
छन्द दो प्रकार के होते हैं-मात्रिक तथा वर्णिक।
1. मात्रिक छन्द - जिन छन्दों में मात्राओं की संख्या का नियम होता है, उनको मात्रिक छन्द कहते हैं, जैसे-दोहा, सोरठा, चौपाई आदि मात्रिक छंद हैं।
2. वर्णिक छन्द - जिन छन्दों में वर्गों को नियत रीति से प्रयोग किया जाता है, उनको वर्णिक छन्द कहते हैं। इनको वर्ण वृत्त भी कहते हैं, जैसे-सवैया वर्णिक छन्द है। मात्रिक तथा वर्णिक छन्द तीन प्रकार के होते हैं
1. सम, 2. अर्धसम तथा 3. विषम।
सम - समं छन्दों के चारों चरणों में मात्राओं तथा वर्गों की संख्या समान होती है, जैसे-चौपाई।
सम छंद दो प्रकार के होते हैं -
(1) साधारण - इनके प्रत्येक चरण में छब्बीस तक वर्ण या बत्तीस तक मात्रायें होती हैं।
(2) दण्डक - इनमें प्रत्येक चरण में 26 से अधिक वर्ण तथा 32 से अधिक मात्रायें होती हैं।
अर्धसम - अर्धसम छन्दों के पहले तथा तीसरे और दूसरे तथा चौथे चरणों में मात्राओं तथा वर्णों की संख्या समान होती है, जैसे-दोहा, सोरठा।
विषम - विषम छन्द में चार से अधिक अर्थात् छ: या आठ चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में मात्राओं तथा वर्णों की संख्या समान होती है, जैसे-कुण्डलियाँ मात्रिक विषम छन्द हैं।
1. गीतिका - गीतिका मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 14 और 12 की यति से कुल 26 मात्राएँ होती हैं। अन्त में लघु गुरु आते हैं।
उदाहरण -
2. हरि गीतिका-हरि गीतिका मात्रिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16-12 पर यति होती है। प्रत्येक चरण के अन्त में लघु गुरु आते हैं।
उदाहरण -
3. छप्पय-छप्पय मात्रिक विषम छन्द है। इसके पहले चार चरण रोला के तथा बाद के दो चरण उल्लाला के हते हैं। उस तरह रोला और उल्लाला छंदों के मिलने से छप्पय छन्द बनता है। छप्पय के प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्राएँ होती हैं तथा 11, 13 पर यति होती है। अन्तिम दो चरणों में 28-28 अथवा 26-26 मात्राएँ भी होती हैं। इनमें 15, 13 पर यति होती है।
उदाहरण -
4. कुण्डलियाँ - कुण्डलियाँ मात्रिक विषम छन्द है। यह दोहा तथा रोला छंदों के मिलने से बनता है। इसमें छः चरण होते हैं। इसके पहले दो चरण दोहा के तथा बाद के चार चरण रोला के होते हैं। इसका आरम्भ तथा अन्त एक ही शब्द से होता है। दोहा का अन्तिम चरण ही रोला का प्रथम चरण होता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण -
5. दूत विलम्बित-दूत विलम्बित वर्णिक सम छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, मगण, भगण तथा रगण (न भ म र) आते हैं। इसमें चार चरण.होते हैं। यह अतुकान्त होता है।
उदाहरण -
गगन था कुछ लोहित हो चला॥
तरुशिखा पर थी अब राजती।
कमलिनी कुल-बल्लभ की/प्रभा॥
6. वंशस्थ-वंशस्थ वर्णिक सम छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक जगण तथा रगण (ज; त, ज, र) आते हैं। यह अतुकान्त होता है।
उदाहरण -
7. कवित्त-कवित्त एक वर्णिक सम छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16, 15 पर यति होती है तथा 31 वर्ण होते हैं। कहीं कहीं 8, 8, 8 तथा 7 वर्णों पर भी यति होती है। प्रत्येक चरण का अन्तिम वर्ण गुरु होता है। इसको मनहरण तथा घनाक्षरी भी कहते हैं।
इदाहरण -
पात भरी सहरी सकल सुत बारे बारे, = 16 वर्ण।
केवट की जाति कछू वेद न पढ़ाई हों। '= 15 वर्ण
सब परिवार मेरो याही लागि राजा जूं, = 16 वर्ण
दीन वित्त हीन कैसे दूसरी गढ़ाई हो॥ = 15 वर्ण
गौतम की घरनी ज्यों तरनी तरेगी मेरी, = 16 वर्ण
प्रभु सों निषाद है के बाद न बढ़ाई हौ। = 15 वर्ण
तुलसी के ईस राम रावरे सौ साँची कहों, = 16 वर्ण
बिना पग धोये नाथ नाव न चढ़ाए हों। = 15 वर्ण।
8. सवैया-सवैया सम वर्ण वृत्त छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। सवैया के अनेक भेद होते हैं। कुछ प्रमुख सवैया निम्नलिखित हैं -
(क) मत्तगयन्द सवैया-इसके प्रतीक चरण में 7 भगण तथा अन्त में दो गुरु वर्ण होते हैं। कुल वर्ण 23 होते हैं। इसको मालती सवैया भी कहते हैं।
उदाहरण -
(ख) मदिरा सवैया - मदिरा सवैया के प्रत्येक चरण में सात भगण तथा अन्त में एक गुरु होता है। इस तरह एक चरण में 22 वर्ण होते हैं।
उदाहरण -
वानर बाँधत सो न बंध्यौ, उन बारिध बाँधि कै बाट करी॥
श्रीरघुनाथ प्रताप की बात, तुम्हें दसकंठ न जानि परी।
तेलहु तूलहु पूँछ जरी न, जरी, मरी लंक जराई जरी॥
(ग) दुर्मिल सवैया-दुर्मिल सवैया के प्रत्येक चरण में आठ सगण होते हैं। इस प्रकार उनमें 24 वर्ण होते हैं।
उदाहरण-
(घ) सुन्दरी सवैया-इसमें प्रत्येक चरण में आठ सगण तथा अन्त में एक गुरु होता है। इस प्रकार कुल 25 वर्ण होते हैं।
उदाहरण -
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर :
प्रश्न 1.
"कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा" चरण किस छंद का है ? नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर :
'कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा' द्रुत विलम्बित छंद का चरण है। यह वर्णिक सम छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 12-12- वर्ण होते हैं तथा क्रमशः म गण, भ गण, म गण तथा र गण आते हैं।
प्रश्न 2.
वंशस्थ छंद का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
वंशस्थ सम वर्णवृत्त छंद है। इसका उदाहरण है -
दिनान्त था, ये दिन नाथ डूबते।
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।।
दिगन्त में गोरज थी समुत्थिता।
विषाण नाना बजते सधेनु थे।।
प्रश्न 3.
गगन मण्डल में रज छा गई
दश दिशा बहु शब्दमयी हुई।
विशद गोकुल के प्रति गेह में
बह चला वर स्रोत विनोद का।।
उपर्युक्त छंद का नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर :
"गगन.....विनोद का" में द्रुत विलम्बित छंद है। यह वर्णिक सम छंद है। इसके चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 12-12 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में न गण, म गण, भ गण, र गण (न भ भ र) होते हैं।
प्रश्न 4.
रोला तथा उल्लाला छंदों के मिलने से कौन-सा छंद बनता है ? उसका नाम तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
रोला तथा उल्लाला छंदों के मिलने से छप्पय छंद बनता है। छप्पय छंद के पहले चार चरण रोला के तथा बाद के दो चरण उल्लाला के होते हैं। इसमें छः चरण होते हैं। उदाहरण -
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्यचन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारा मण्डल हैं।
बन्दी जन खग वृन्द, शेषफन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद. हैं, बलिहारी इस वेश को।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण पूर्ति सर्वेश की।
प्रश्न 5.
मात्रिक तथा वर्णिक छन्द में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर :
जिन छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है, उनको मात्रिक छंद कहते हैं। वर्णिक छंद वे होते हैं जिनमें वर्गों की संख्या तथा क्रम सुनिश्चित होता है। उदाहरणार्थ दोहा एक ,मात्रिक छंद है तथा सवैया वर्णिक छंद है।
प्रश्न 6.
मात्रिक तथा वर्णिक छंद कितने प्रकार के होते हैं? प्रत्येक का संक्षेप में परिचय दीजिए। उत्तर : मात्रिक तथा वर्णिक दोनों ही छंद तीन प्रकार के होते हैं
1. सम - जिन छंदों के प्रत्येक चरण में मात्राएँ अथवा वर्ण समान हों, उनको सम छन्द कहते हैं।
2. अर्ध सम - पहले तथा तीसरे और दूसरे तथा चौथे चरणों में समान मात्राओं अथवा वर्णों वाले छन्द अर्धसम कहे जाते हैं, जैसे - दोहा।
3. विषम छः अथवा आठ चरणों वाले छन्दों को विषम छंद कहते हैं, जैसे-छप्पय।
प्रश्न 7.
कुण्डलियाँ छन्द के लक्षण लिखिए।
उत्तर :
'कुण्डलियाँ' मात्रिक विषम छन्द है। इसमें छ: चरण होते हैं। पहले दो चरण दोहा के तथा बाद के चार-चरण रोला के होते हैं। इसका आरम्भ तथा अन्त एक ही समान शब्द से होता है। दोहा का चतुर्थ चरण ही रोला का प्रथम चरण होता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पद्य में गणना करके बतायें कि यह कौन-सा छंद है -
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौ।
आठहु सिद्धि नवौं निधि को सुख, नन्द की गाय चराइ बिसारौ।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्य के प्रथम चरण में गणना करने पर क्रमशः 7 भगण (ऽ।।) तथा अन्त में दो गुरु वर्ण होने से कुल 23 वर्ण हैं। इसके चारों चरणों में इसी प्रकार 23 वर्ण होने से यह वर्णिक सम छंद सवैया है।
प्रश्न 9.
मनहरण छंद के लक्षण लिखिए।
उत्तर :
मनहरण वर्णिक सम छंद है। इसके चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। यति 16, 15 पर होती है। कहीं-कहीं 8, 8, 8, 7 पर भी यति होती है। प्रत्येक चरण का अन्तिम वर्ण गुरु होता है। इसको धनाक्षरी तथा कवित्त भी कहते हैं।
प्रश्न 10.
करम को मूल तन, तन मूल जीव जग
जीनन को मूल अति आनन्द ही धारिबो।
कहै 'पद्माकर' ज्यौं आनन्द को मूल राज
राजमूल केवल प्रजा को मौन भरिबो।।
उपर्युक्त पंक्तियों की रचना किस छंद में हुई है ? छंद का नाम लिखकर उसके लक्षण भी बताइए।
उत्तर :
'करम को......भरिबो' पंक्तियों की रचना कवित्त छंद में हुई है। कवित्त छंद के चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं तथा 16, 15, पर यति होती है। कहीं-कहीं 8,8,8, 7 पर भी यति होती है। अन्त में एक गुरु वर्ण आता है। प्रश्नगत पंक्तियों में कवित्त के.दो चरण दिए गए हैं।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्ति किस छंद की है,? छंद का नाम तथा उसके लक्षण लिखिए।
मीत सुजान अनीत करौ जिनि, हा हा न, हूजिए मोहि अमोही।
उत्तर :
'मीत.....अमोही'-पंक्ति सवैया छंद की है। सवैया को मत्तगयन्द अथवा मालवी सवैया भी कहते हैं। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 7 भ गण तथा अन्त में दो गुरु वर्ण होते हैं। इस प्रकार हर चरण में 23 वर्ण होते हैं।
प्रश्न 12.
कुण्डलियाँ छन्द के लक्षण लिखकर उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
लक्षण-कुण्डलियाँ विषम मात्रिक छन्द हैं। इस छन्द में छ: चरण होते हैं। इसकी प्रथम दो पंक्तियों में दोहा तथा शेष चार पंक्तियों में रोला छन्द होते हैं। इसका प्रथम शब्द ही इसका अन्तिम शब्द भी होता है। दूसरी पंक्ति का उत्तरार्ध अर्थात् दोहे का चतुर्थ चरण ही तीसरी पंक्ति के पूर्वार्ध में दो हराया जाता है। प्रत्येक चरण में 24-24 मात्रायें होती हैं। प्रथम दो पंक्तियों में 13, 11 पर तथा बाद की सभी पंक्तियों में 11, 13 पर यति होती है।
उदाहरण -
राधा सू बड़भागिनी, कौत तपस्या कीन।
तीन लोक तारने तरन, सो तेरे आधीन॥
'सो तेरे आधीन, जगत को सिरजन हारौ।'
सदा रचावै रास संग श्रीनन्ददुलारौ ॥
मन मूरख जो चहै, कहैं तेरी मन बाधा।
प्यारे निश दिन जपौ क्यों न फिर राधा-राधा ॥
प्रश्न 13.
मत्त गयन्द सवैया तथा दुर्मिल सवैया का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मत्तगयन्द सवैया तथा दुर्मिल सवैया-सम वर्णवृत्त छंद है। सवैया छंद के अनेक भेद हैं। मत्तगयन्द सवैया तथा दुर्मिल सवैया उनमें से है। मत्तगयन्द सवैया को मालती सवैया भी कहते हैं। मत्त गयन्द सवैया में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण तथा दो गुरु अन्त में होते हैं। इस प्रकार कुल 23 वर्ण होते हैं।
दुर्मिल सवैया में चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में आठ सगण होते हैं। इस तरह कुल 24 वर्ण होते हैं। दोनों के अन्त में गुरु वर्ण होता है।
प्रश्न 14.
छप्पय एवं कुण्डलिया छंद की परिभाषा देते हुए अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
छप्पय - छप्पय मात्रिक विषम छन्द है। इसके पहले चार चरण रोला के तथा बाद के दो चरण उल्लाला के होते हैं। उस तरह रोला और उल्लाला छंदो के मिलने से छप्पय छन्द बनता है। छप्पय के प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्राएँ होती हैं तथा 11, 13 पर यति होती है। अन्तिम दो 28-28 अथवा 26-26 मात्राएँ भी होती हैं। इनमें 15, 13 पर यति होती हैं।
कुण्डलिया - कुण्डलिया मात्रिक विषम छन्द है। यह दोहा तथा रोला छंदों के मिलने से बनता है। इसमें छः चरण होते हैं। इसके पहले दो चरण दोहा के तथा बाद के चार चरण रोला के होते हैं। इसका आरम्भ तथा अन्त एक ही शब्द से होता है। दोहा का अन्तिम चरण ही रोला का प्रथम चरण होता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं।
प्रश्न 15.
गण कितने होते हैं? प्रत्येक का नाम लिखकर शब्दों का उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
गण आठ होते हैं। गणों के नाम तथा प्रत्येक का उदाहरण निम्नलिखित हैं -
प्रश्न 16.
शुभ तथा अशुभ गणों के नाम लिखिए। शुभ-अशुभ गणों के काव्य में प्रयोग का क्या नियम है?
उत्तर :
म गण, न गण, भ गण तथा य गण (म न भ य)-ये चारों गण शुद्ध माने जाते हैं तथा शेष चार ज गण, र गण, स गण तथा त गण (ज र स त) अशुद्ध माने जाते हैं। वर्णवृत्त छन्दों की रचना में शुद्ध-अशुद्ध का विचार नहीं किया जाता किन्तु किसी मात्रिक शब्द को अशुद्ध गण से आरम्भ करने से पूरा छन्द अशुद्ध हो जाता है। इसका प्रभाव रचयिता पर भी होता है। परन्तु ईश्वर या देवता आदि से सम्बन्धित रचना में इसका ध्यान नहीं रखा जाता।
प्रश्न 17.
हरिगीतिका छन्द की परिभाषा उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हरिगीतिका छंद की परिभाषा उदारण सहित लिखिए।
उत्तर :
परिभाषा-हरिगीतिका सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं। अन्त में लघु गुरु आते हैं। प्रत्येक चरण में 16, 12 पर यति होती है। अन्त में तुक मिलती है।
उदाहरण -
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें आज मिलकर, ये समस्यायें सभी॥
देखें कहीं पूर्वज हमारे, स्वर्ग से आकर हमें।।
आतूं बहावें शोक से, इस देश में पाकर हमें॥
प्रश्न 18.
मनहरण कवित्त के लक्षण लिखकर उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
मनहरण कवित्त के.लक्षण - यह मुक्तक वर्णिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं तथा 16, 15 पर यति होती है। कभी-कभी 8, 8,8, 7 पर भी यति होती है। अन्त में गुरु वर्ण आता है।
उदाहरण -
भए अति निठुर, मिटाय पहिचान डारी,
याही दुख हमैं जक लागी हाय हाय है।
तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि,
हमें भूल से लति सो क्यों हूँ न भुलाय है।
मीठे-मीठे बोल बोलि, ठगी पहिलें तौ तब
अब जिय जारत, कहौ धौं कौन न्याय है।
सुनी है कै नाहीं, यह प्रगट कहावति जू
काहू कलपाय है, सु कैसे कल पाय है॥
प्रश्न 19.
दुत विलम्बित छन्द्र और वंशस्थ छंद की परिभाषा देते हुए अंतर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
दुत विलम्बित छंद की परिभाषा एवं उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
दूत विलम्बित-द्रुत विलम्बित सम वर्णिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में क्रमश: एक नगण, दो भ गण तथा एक र गण (न भ भ र) आते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं।
उदाहरण -
निकल के निज सुन्दर सद्म से।
जब लगे ब्रज में हरि घूमने ॥
तब लगी करने अनुरंजिता।
नगर को पद-पंकज लालिमा॥
वंशस्थ छंद - यह सम वर्ण वृन्त छंद है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण जगण एवं रगण (ज त जर ) के क्रम में 12 वर्ण होते हैं।
उदाहरण -
मुकन्द चाहे वसुदेव पुत्र हो,
कुमार होवें अथवा ब्रजेश के।
बिके उन्हीं के कर सर्वनेत्र हैं,
बसे हुए हैं मन-नेत्र में वही।
प्रश्न 20.
गीतिका छन्द की परिभाषा लिखकर उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
परिभाषा - गीतिका सममात्रिक छन्द है। इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14, 12 की यति से कुल 26 मात्राएँ होती हैं। अन्त में गुरु लघु गुरु आते हैं।
उदाहरण -
वीर व्रतधारी उठो किस, नींद में तुम सो रहे।
अब न अत्याचारियों के, बार जाते हैं सहे॥
बस अभी कस लो कमर दो, कर विनाश अनीति का।
हाँ, बढ़े रण में चलो गा, छन्द हरि गुण गीतिका॥
प्रश्न 21.
निम्नलिखित पंक्तियों में मात्राओं की गणना करके छन्द का नाम लिखिए।
बिना बिचारे जो करै सो पाछे पछिताय।
काम बिगारै आफ्नो जग में होत हंसाय॥
जग में होत हँसाय, चित्त में चैन न पावे।
खान-पान सम्मान, राग रंग मनहिं न भावे॥
कह गिरधर कवि राय, दुःख कछु टरै न टारे।
खटकत है जिय माँहि, कियो जो बिना बिचारे॥
उत्तर :
शेष पंक्तियों में इसी प्रकार 24 मात्राएँ तथा 11, 13 पर यति है।
छंद-इस छन्द का नाम कुण्डलियाँ हैं। इसके पहले दो चरणों में 13, 11 पर यति के साथ 24 मात्राएँ होती हैं। बाद के चार चरणों में 11, 13 पर यति के साथ.24 मात्राएँ होती हैं।
प्रश्न 22.
मात्रिक तथा वर्णिक छन्दों में अन्तर लिखिए।
उत्तर :
मात्रिक छंद वे होते हैं जिनके प्रत्येक चरण में मात्राओं की संख्या निश्चित होती. है। सम छंदों के प्रत्येक चरण में समान मात्राएँ होती हैं। विषम छंदों में असमान संख्या में मात्राएँ होती हैं।
वर्णिक छंद अर्थात् वर्णवृत्त में मात्राओं की गणना न होकर वर्णों की गणना होती है। प्रत्येक वर्णिक छंद में वर्णों का क्रम तथा संख्या निश्चित होती है। इनमें तीन वर्गों का समूह गण कहलाता है तथा प्रत्येक चरण में गणों का क्रम नियत होता है, जैसे
प्रश्न 23.
कविता में छंद का क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कविता में छंद का बहुत महत्व है। छंद के कारण कविता में नाद-सौन्दर्य, लय तथा संगीतात्मक्ता पैदा होती है। इससे कविता में सरसता उत्पन्न होती है और उसका सौन्दर्य बढ़ता है। आचार्य अभिनव गुप्त मानते हैं कि छन्द रस तथा भाव व्यंजना में सहायक होता है। रामचन्द्र शुक्ल ने छंद को नाद सौन्दर्य के लिए आवश्यक बताया है। इसके कारण कविता को कंठस्थ करने में सरलता होती है। छन्द कविता के अनुकूल शब्द-चयन तथा वाक्य-विन्यास में सहायक होते हैं।
प्रश्न 24.
निम्नलिखित क्या हैं तथा कविता में उनका क्या महत्व है -
यति तथा गति।
उत्तर :
यति - कविता की रचना के लिए किसी छंद का प्रयोग किया जाता है। छंद के किसी चरण में उसको पढ़ते समय जहाँ विराम की आवश्यकता होती है, उसको यति कहते हैं, जैसे -
स्वारथ सुकृत न श्रम वृथा, देखि विहंग विचारि।
उपर्युक्त दोहे में वृथा' शब्द के बाद यति है। दोहा छन्द में 13, 11 मात्राओं पर यति होती है।
गति - गति का अर्थ है प्रवाह, चाल। कविता के प्रत्येक चरण में शब्दों का क्रम इस प्रकार होता है कि पढ़ते समय उनमें गति उत्पन्न हो जाती है। इन शब्दों के स्थान बदलने से गति भंग हो जाती है। काव्य सौन्दर्य तथा संगीतात्मकता के लिए गति का होना जरूरी है।
जैसे - तू राम भजन करि प्रानी। तेरी दो दिन की जिंदगानी। में एक गति है। यदि इस पंक्ति को राम भजन तू प्राणी करि लिखें तो गति भंग होकर काव्य की संगीतात्मकता भी जाती रहेगी।
प्रश्न 25.
भूपति भगीरथ के रथ की सुपुण्य पथ
जन्हु तप जोगफल फैल की फहर है॥
छेम की छहर गंगा रावरी लहर
कलिकाल को कहर जम जाल को जहर है॥
उपर्युक्त पद्यांश में कौन-सा छंद है? नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्यांश "भूपति............जहर हैं" में मनहरण कवित्त छन्द है। यह सम वर्षवृत्त छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं तथा 16, 15 की यति से 31 वर्ण होते हैं।
भूपति भगीरथ के रंथ की सुपुण्य पथ, = 16 वर्ण
जन्हु तप जोग फल फैल की फहर है। = 15 वर्ण
चरण में 16 पर यति है तथा 16 + 15 = 31 वर्ण हैं।
प्रश्न 26.
नहीं माँगते भीख, भीख है घृणित महज्जन।
नहीं चाहते दया, दया का निर्बल जीवन॥
पुरस्कार भी नहीं, दास जिस पर हैं मरते।
हम मनुष्य हैं, स्वत्व-न्याय की इच्छा करते॥
यह है स्वतन्त्रता स्वत्व शुचि, दान न किसी नरेश का।
इस जन्म सिद्ध अधिकार को, समझो दिया सुदेश का॥
उपर्युक्त में कौन-सा छन्द है? छन्द का नाम लिखकर उसके लक्षण भी लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्य में छप्पय छंद है।
छप्पय के लक्षण - छप्पय मात्रिक विषम छंद है। इसके पहले चार चरण रोला के तथा अन्तिम दो चरण उल्लाला के होते हैं। पहले चार चरणों में 24-24 मात्राएँ होती हैं। यति 11, 13 पर होती है। बाद के दो चरणों में 28-28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 15, 13 पर होती है।
प्रश्न 27.
सब जानते सर्वज्ञ हो फिर, नाथ तुमसे क्या कहें?
लख दीन भारत दुर्दशा हा, अश्रुधाराएँ बहें।
उपर्युक्त में मात्राओं की गणना कीजिए तथा छन्द का नाम लिखिए।
उत्तर :
मात्राओं की गणना -
छन्द का नाम - 'हरि गीतिका' है।
प्रश्न 28.
वीर व्रतधारी उठो किस, नींद में तुम सो रहे।
अब न अत्याचारियों के, बार जाते हैं सहे॥
उपर्युक्त पंक्तियों में कौन-सा छंद है? छन्द का नाम लक्षणों सहित लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पंक्तियों में गीतिका 'छन्द है।
लक्षण-गीतिका मात्रिक सम छन्द है।
इसके प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ होती हैं।
इस छंद में चार चरण होते हैं।
यति 14-12 पर होती है। चरण के अन्त में लघु गुरु होता है।
प्रश्न 29.
आवै आसपास पहुपन की सुवास सोई।
सौंध के सुगंध माँझ संने रहियत हैं।
सोभा को समाज, सेनापति सुख-साज, आज।
आबत बसत रितुराज कहियत हैं।
उपर्युक्त पद्यांश में वर्गों की गणना करके छन्द का नाम लिखिए।
उत्तर :
आवै आसपास पहुपन की सुवास सोई। = 16 वर्ण
सौंध के सुगंध माँझ सने रहियत हैं॥ = 15 वर्ण
सोभा को समाज, सेनापति सुख साज आज = 16 वर्ण
आवत बसंत रितुराज कहियत है। = 15 वर्ण
एक चरण में 16 + 15 = 31 वर्ण हैं।
यह मनहरण कवित्त छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16, 15 यति से 31 वर्ण होते हैं। अन्त में एक गुरु .. होता है। यह सम वर्णवृत्तं छन्द है।
प्रश्न 30.
यह पुण्य भूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं।
विद्या, कला-कौशल सभी के जो प्रथम आचार्य हैं।
सन्तान उनकी आज यद्यपि हम अधोगति में पड़े।
पर चिन्ह उनकी उच्चता के आज भी कुछ हैं खड़े।
उपर्युक्त पद्यांश में कौन-सा छन्द है। एक पंक्ति में गणना करके छन्द का नाम तथा लक्षण लिखिए।
उत्तर :
मात्राओं की गणना -
उपर्युक्त छंद में 16, 12 की यति से 28 मात्राएँ हैं।
इसमें हरिगीतिका
हरिगीतिका मात्रिक सम छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16, 12 पर यति होती है। यह तुकान्त
प्रश्न 31.
निम्नलिखित में छंद का नाम लिखिए तथा उसके लक्षण भी बताइए -
अरुण करुण बिम्ब।
वह निर्धूम, भस्म रहित ज्वलन पिण्ड।
विकल विवर्तनों से
विरल प्रवर्तनों से
श्रमित नमित-सा
पश्चिम के व्योम में है आज मिरवलम्ब-सा।
उत्तर :
उपर्युक्त छंद में कवि ने लय अथवा प्रवाह पर ध्यान दिया है। इसके चरण छोटे बड़े हैं तथा इसकी रचना मात्रिक अथवा वर्णिक छंदों के नियमों से हटकर स्वतन्त्र रूप से की गई है। यह अंग्रेजी के ब्लैंक वर्स से प्रभावित है। इसको मुक्त छंद तथा हँसी में केंचुआ छंद कहा जाता है। इसमें कहीं-कहीं तुक मिलती है।
प्रश्न 32.
उदयाचल से किरण-धेनुएँ
हाँक ला रहा
वह प्रभात का ग्वाला।
उपर्युक्त में छंद का नाम लक्षणों सहित लिखिए।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्य में मुक्त छंद है। निराला जी ने इस छंद का आरम्भ किया था। इसमें चरण छोटे-बड़े तथा अतुकान्त होते हैं। कभी-कभी तुक भी मिलती है परन्तु मुख्य विशेषता लय की प्रधानता होती है। इसके कारण ध्वन्यात्मकता बनी रहती है। मुक्त छंद मात्रिक तथा वर्णिक छंदों के नियमों से मुक्त होता है।
प्रश्न 33.
निम्नलिखित में छंद का नाम तथा लक्षण लिखिए-
आह, धरती कितना देती है।
मैंने बचपन में छिपकर पैसे बोए थे॥
सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे।
रुपयों की फलदार मधुर फसलें खनकेंगी॥
और फूल फलकर मैं मोटा सेठ बनूँगा।
उत्तर :
'आ धरती...........सेठ बनूँगा' पद्यांश की प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या कम अथवा अधिक है। इनमें अन्त में तुक भी नहीं मिलती है। इसमें किसी भी मात्रिक छंद के मात्रा सम्बन्धी नियमों का अथवा वर्णवृत्त के गण सम्बन्धी नियमों को आधार नहीं बनाया गया है।
यह मुक्त छंद है। कवि ने केवल लय तथा ध्वन्यात्मकता पर ही ध्यान दिया है।
प्रश्न 34.
निम्नलिखित पद्य की रचना किस छंद में की गई है ? लक्षण स्पष्ट करते हुए छंद का नाम लिखिए।
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारों।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि को सुख, नंद की गाय चराय बिसारौं।।
'आँखिन सों रसखान कवै। ब्रज के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील की कुंजन ऊपर बारौं।।
उत्तर :
उपर्युक्त पद्य की रचना मत्तगयन्द सवैया छंद में हुई है। इसमें चार चरण हैं तथा प्रत्येक चरण में 7 भ गण तथा अन्त में दो गुरु हैं। इस प्रकार प्रत्येक गणना -
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं। = 23 वर्ण
इस प्रकार प्रत्येक चरण में 23 वर्ण हैं।
प्रश्न 34.
'गीतिका' तथा 'हरिगीतिका' छंदों में समानता तथा अन्तर बताकर उदाहरण दीजिए।
उत्तर :
'गीतिका' तथा 'हरिगीतिका' दोनों मात्रिक सम छंद हैं। इनके प्रत्येक चरण के अन्त में लघु गुरु वर्ण आते हैं। प्रत्येक में चार चरण होते हैं।
'गीतिका' के प्रत्येक चरण में 14, 12 की यति के साथ 26 मात्रायें होती हैं तथा 'हरिगीतिका' के प्रत्येक चरण में 16, 12 की यति के साथ 28 मात्रायें होती है।
उदाहरण - गीतिका - बस अभी कस लो कमर, दो कर विनाश अनीति का।
हाँ बढ़े रण में चलो गा, छंद हरि-गुण गीतिका।।
हरिगीतिका - बस बस अभी कस लो कमर दो, कर विनाश अनीति का।
हाँ हाँ बढ़े रण में चलो गा, छंद प्रिय हरिगीतिका।।