These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र will give a brief overview of all the concepts.
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→ विश्व की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के सम्पर्क में आने से एक अर्थव्यवस्था के चयन में तीन प्रकार से विस्तार आता है
खुली अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है, जिसमें अन्य राष्ट्रों के साथ वस्तुओं और सेवाओं तथा बहुधा वित्तीय परिसम्पत्तियों का भी व्यापार किया जाता है। इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात-निर्यात किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक करेंसी चलती हैं अत: देश की मुद्रा का विभिन्न करेंसियों से विनिमय दर का भी निर्धारण किया जाता है तथा इसके आधार पर भुगतान किया जाता है।
→ अदायगी सन्तुलन: अदायगी सन्तुलन में किसी एक देश के निवासियों और शेष विश्व के बीच वस्तुओं, सेवाओं और परिसम्पत्तियों के लेन-देन का विवरण दर्ज होता है। अदायगी सन्तुलन के दो मुख्य खाते होते हैं-चालू खाता और पूँजी खाता। चालू खाते में वस्तुओं के आयात-निर्यात, सेवाओं और अंतरण अदायगियों के विवरण दर्ज किए जाते हैं। पूँजी खाते में परिसम्पत्तियों जैसे-मुद्रा, स्टॉक, बंधपत्र आदि के सभी प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय क्रयविक्रय का विवरण होता है।
→ अदायगी सन्तुलन और घाटा: अदायगी सन्तुलन अथवा भुगतान सन्तुलन में आधिक्य अथवा घाटे की स्थिति हो सकती है, किसी देश में भुगतान सन्तुलन के घाटे की दशा में विदेशी विनिमय बाजार में विदेशी करेंसी को बेचकर तथा अपने विदेशी विनिमय को कम करके कोई देश अधिकृत आरक्षित निधि संव्यवहार का कार्य कर सकता है। अधिकृत आरक्षित निधि में कमी (वृद्धि) को कुल अदायगी घाटा सन्तुलन (आधिक्य) कहते हैं। अदायगी सन्तुलन घाटा या आधिक्य चालू और पूँजीगत सन्तुलन को जोड़ने से प्राप्त होता है। अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संव्यवहार उदाहरण के लिए लाभ के उद्देश्य से अदायगी सन्तुलन को छोड़कर स्वतन्त्र रूप से राज्य के द्वारा किया जाता है तो वैसे संव्यवहार को स्वायत्त कहते हैं। अदायगी सन्तुलन में चालू और पूँजी खाते के अतिरिक्त तीसरा प्रमुख अवयव भी होता है, जिसे त्रुटि और लोप का प्रतिबिंबित मानते हैं।
→ विदेशी विनिमय बाजार: विदेशी विनिमय की माँग एवं पूर्ति विदेशी विनिमय बाजार से होती है। विदेशी विनिमय बाजार वह बाजार है जहाँ राष्ट्रीय करेंसियों का एक-दूसरे के लिए व्यापार होता है। इस बाजार के मुख्य प्रतिभागी व्यावसायिक बैंक, विदेशी विनिमय दलाल, अन्य अधिकृत डीलर तथा मुद्रा अधिकारी होते हैं। विदेशी विनिमय बाजार में मुद्रा का विनिमय विनिमय दर पर होता है। दूसरे देश की मुद्रा के रूप में प्रथम देश की मुद्रा की कीमत को विनिमय दर कहा जाता है। देशी कीमत.स्तर तथा विदेशी कीमत स्तर के बीच के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं। यदि वास्तविक विनिमय दर एक के समान है, तो करेंसियों की क्रय शक्ति समता में होती है।
→ विनिमय दर का निर्धारण: विनिमय दर के अनेक प्रकार होते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्न हैं
1. तिरति विनिमय दरें: तिरति या नम्य विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर का निर्धारण बाजार माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। इस विधि में जिस दर पर विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर होती है, वही सन्तुलित विनिमय दर होती है। नम्य विनिमय दर को निम्न कारक प्रभावित करते हैं
2. स्थिर विनिमय दरें: स्थिर विनिमय दर में विनिमय दर का निर्धारण केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक अथवा केन्द्रीय सत्ता अर्थव्यवस्था की आवश्यकतानुसार विनिमय दर निर्धारित करती है। अधिकीलित विनिमय दर प्रणाली में जब सरकार के द्वारा विनिमय दर में वृद्धि की जाती है, तो इसे मुद्रा का अवमूल्यन कहा जाता
3. प्रबंधित तिरती: यह नम्य विनिमय दर प्रणाली तथा स्थिर दर प्रणाली का मिश्रण है। इस प्रणाली में विनिमय दर में नियमों और मार्गदर्शक सूत्रों के अनुसार समायोजन करने की छूट होती है।
→ विनिमय दर प्रबंध : अन्तर्राष्ट्रीय अनुभव-
→ परिशिष्ट : खुली अर्थव्यवस्था में आय का निर्धारण
खुली अर्थव्यवस्था के लिए राष्ट्रीय आय का तादात्म्य:एक बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की माँग के लिए तीन स्रोत-उपभोग, सरकारी खर्च तथा घरेलू निवेश होते हैं । खुली अर्थव्यवस्था में निर्यात से घरेलू वस्तुओं और सेवाओं की माँग के अतिरिक्त स्रोत की रचना होती है। एक खुली अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का तादात्म्य निम्न समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है
Y = C + I + G + X - M
यहाँ C = उपभोग, I = निवेश, G = सरकारी खर्च, X = निर्यात तथा M = आयात है।
एक खुली अर्थव्यवस्था में गुणक को निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है
खुली अर्थव्यवस्था गुणव = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \overline{\mathrm{A}}}=\frac{1}{1-\mathrm{c}+\mathrm{m}}\)
यहाँ c = उपभोग की सीमान्त प्रवृत्ति तथा m = आयात की सीमान्त प्रवृत्ति होती है।