These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था will give a brief overview of all the concepts.
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→ सरकारी बजट-अर्थ तथा इसके अवयव: संविधान की धारा 112 के अनुसार हर वित्तीय वर्ष (1 अप्रेल से 31 मार्च तक) के लिए सरकार द्वारा अनुमानित प्राप्तियों तथा खर्चों का ब्यौरा संसद में पेश किया जाता है जिसे बजट कहते हैं। .
सरकार निश्चित वस्तुओं तथा सेवाओं को उपलब्ध करवाती है, जिन्हें बाजार तन्त्र के द्वारा उपलब्ध नहीं करवाया जा सकता है।
सरकारी बजट के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं
→ प्राप्तियों का वर्गीकरण
राजस्व प्राप्तियाँ: राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्तियाँ हैं जो गैर प्रतिदेय है अर्थात् इन्हें पाने के लिए सरकार से पुनः दावा नहीं किया जा सकता है। इन्हें कर और गैर कर राजस्व में विभक्त किया जाता है।
→ पूँजीगत प्राप्तियाँ:
सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जो दायित्वों का सृजन या वित्तीय परिसम्पत्तियों को कम करती हैं, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं।
→ व्ययों का वर्गीकरण:
राजस्व व्यय: राजस्व व्यय का सम्बन्ध सरकारी विभागों के सामान्य कार्यों तथा विविध सेवाओं, सरकार द्वारा उपगत ऋण ब्याज अदायगी, राज्य सरकारों और अन्य दलों को प्रदत्त अनुदानों आदि पर किए गए व्यय से होता है। बजटीय दस्तावेज में कुल राजस्व व्यय को योजनागत और गैर योजनागत व्यय मदों में बाँटा जाता है।
→ पूँजीगत व्यय: ये सरकार के वे व्यय होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों का सृजन या वित्तीय दायित्वों में कमी होती है। पूँजीगत व्यय को बजट दस्तावेज में योजना और गैर-योजनागत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
→ संतुलित, अधिशेष एवं घाटा बजट: जब सरकार जमा आय के बराबर राशि खर्च करती है तो सन्तुलित बजट होता है। जब कर से प्राप्त राशि आवश्यक आय से अधिक होती है तो इसे बजट अधिशेष कहा जाता है। जब व्यय राजस्व से अधिक होता है तो इसे घाटे वाला बजट कहते हैं।
→ सरकारी घाटे की माप: जब सरकार राजस्व प्राप्ति से अधिक व्यय करती है, तो इस स्थिति को बजटीय घाटा कहते हैं।
→ राजकोषीय नीति: राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आगम तथा व्यय नीति से है। राजकोषीय नीति | में ऋणों, व्यय और करों में परिवर्तनों के माध्यम से सरकार निर्गत और आय में वृद्धि करने का प्रयास करती है, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के उच्चावचन को स्थिर करना होता है। सरकार दो विशेष विधियों से सन्तुलित आय के स्तर को प्रभावित करती है
→ सरकारी व्यय में परिवर्तन: जब T अर्थात् एकमुश्त कर से G अर्थात् सरकारी खरीद अधिक होती है तो सरकार घाटे का वहन करती है। सरकारी व्यय में वृद्धि होने से सन्तुलन आय में वृद्धि होती है। सरकारी व्यय गुणक को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
ΔY = \(\frac{1}{1-\mathrm{C}}\) . ΔG
या
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}\)
→ करों में परिवर्तन: आय के प्रत्येक स्तर पर करों में कटौती से प्रयोज्य आय (Y - T) में वृद्धि होती है। कर गुणक को निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
करों में कटौती (वृद्धि) से उपभोग और निर्गत में वृद्धि (कमी) होती है क्योंकि कर गुणक ऋणात्मक गुणक होता है।
यदि सरकारी व्यय में वृद्धि के बराबर ही करों में वृद्धि होती है ताकि बजट सन्तुलित रहे, तो निर्गत से सरकारी व्यय में वृद्धि की मात्रा के बराबर वृद्धि होगी। सन्तुलित बजट गुणक को निम्न प्रकार व्यक्त करेंगे
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}+\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}=\frac{1-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\) = 1
इकाई सन्तुलित बजट गुणक से यह संकेत मिलता है कि सरकार के वित्त में 100 रुपये की वृद्धि से करों में 100 रुपये की वृद्धि होने पर आय में भी ठीक 100 रुपये की वृद्धि होती है। मान लीजिए सरकार वस्तुओं तथा सेवाओं पर कर बढ़ाकर हस्तान्तरण भुगतान (TR) को बढ़ाती है। हस्तान्तरण में परिवर्तन करने से सन्तुलित आय में परिवर्तन होता है। सन्तुलित आय में परिवर्तन की गणना करने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है
ΔY = \(\frac{C}{1-C}\) ΔTR
अथवा
\(\frac{\Delta \mathrm{T}}{\Delta \mathrm{TR}}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
→ ऋण: बजटीय घाटे के लिए वित्त पोषण या तो करारोपण या ऋण या नोट छापकर किया जाना चाहिए। सरकार प्रायः ऋण ग्रहण पर आश्रित रहती है, जिसे सरकारी ऋण कहते हैं।
→ सरकारी ऋण की समुचित मात्रा का परिप्रेक्ष्य: इस विषय में दो अंतर्संबंधित पहलू हैं
→ घाटे और ऋण के अन्य परिप्रेक्ष्य: यह माना जाता है कि घाटे से कीमतों में वृद्धि होती है किन्तु यदि हमारे पास अवशोषित संसाधन हैं तब घाटे से माँग तथा उत्पादन में वृद्धि होगी, ऐसी अवस्था में कीमतों में वृद्धि नहीं होगी।
→ घाटे में कटौती: करों में वृद्धि अथवा व्यय में कटौती से सरकारी घाटे में कमी की जा सकती है। भारत में सरकार कर राजस्व में वृद्धि करने के लिए प्रत्यक्ष करों पर ज्यादा भरोसा करती है।