These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 5 बाज़ार संतुलन will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Economics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Economics Notes to understand and remember the concepts easily.
→ बाजार माँग वक्र हमें बताता है कि समस्त उपभोक्ता मिलकर विभिन्न कीमतों पर वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने के इच्छुक हैं। बाजार पूर्ति वक्र हमें विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की उस मात्रा को बताता है, जिसे सभी फर्मे सम्मिलित रूप से पूर्ति करने की इच्छुक होंगी। बाजार माँग एवं पूर्ति के द्वारा बाजार संतुलन का निर्धारण किया जाता है।
→ संतुलन, अधिमाँग, अधिपूर्ति: उपभोक्ता तथा उत्पादक दोनों अपने-अपने लाभों को अधिकतम करना चाहते हैं। संतुलन की स्थिति में जिस कुल मात्रा का विक्रय करने की सभी फर्मे इच्छुक हैं, वह उस मात्रा के बराबर होता है जिसे बाजार में सभी उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं अर्थात् संतुलन में बाजार माँग एवं पूर्ति बराबर होते हैं। जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है, उसे संतुलित कीमत कहते हैं तथा इस कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा संतुलन मात्रा कहलाती है। यदि किसी कीमत पर बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिमाँग कहलाती है। यदि किसी कीमत पर बाजार पूर्ति, बाजार माँग से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिपूर्ति कहलाती है।
→ बाजार संतुलन : फर्मों की स्थिर संख्या-फर्मों की स्थिर संख्या की स्थिति में बाजार संतुलन वहाँ होगा, जिस बिन्दु पर बाजार माँग वक्र, बाजार पूर्ति वक्र को काटता है। यह वह बिन्दु है, जिस पर बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं।
→ श्रम बाजार में मजदूरी निर्धारण-श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम के लिए माँग तथा पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है, जहाँ श्रम की माँग तथा पूर्ति संतुलन में हों। पूर्ण प्रतिस्पर्धा में श्रम की मजदूरी, श्रम के सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद के बराबर होती है।
→ माँग एवं पूर्ति में शिफ्ट-बाजार में माँग तथा पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारकों में परिवर्तन के कारण माँग व पूर्ति में परिवर्तन आता है, जिससे माँग तथा पूर्ति वक्र शिफ्ट होते हैं, जो संतुलित कीमत तथा माँग को प्रभावित करते हैं।
→ माँग में शिफ्ट: बाजार में यदि माँग वक्र दायीं तरफ शिफ्ट होता है तो इससे संतुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि होती है। यदि माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो तथा पूर्ति वक्र समान रहे तो संतुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में कमी होती है। माँग में वृद्धि के फलस्वरूप माँग वक्र दायीं तथा माँग में कमी के कारण माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होता है।
→ पूर्ति में शिफ्ट: बाजार में यदि पूर्ति में कमी होती है तो पूर्ति वक्र बायीं तथा यदि पूर्ति में वृद्धि होती है तो पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट होता है। पूर्ति वक्र के बायीं तरफ शिफ्ट होने के कारण यदि माँग समान रहे तो संतुलन कीमत बढ़ेगी तथा संतुलन मात्रा कम हो जाएगी। इसी प्रकार यदि माँग समान रहने पर पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो संतुलन कीमत में कमी तथा संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है। जब भी पूर्ति वक्र शिफ्ट होता है, कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन की दिशाएँ विपरीत होती हैं।
→ माँग तथा पूर्ति वक्र का एक साथ शिफ्ट: माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों एक साथ भी शिफ्ट हो सकते हैं। यदि माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं तरफ शिफ्ट होते हैं तो संतुलन मात्रा में कमी आएगी तथा संतुलन कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यदि माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हो तो संतुलन मात्रा में वृद्धि होगी तथा संतुलन कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यदि माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो संतुलन कीमत में कमी आएगी तथा संतुलन मात्रा में कमी, वृद्धि अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। यदि माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होता है तो संतुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा संतुलन मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है।
→ बाजार संतुलन : निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन-प्रवेश तथा बहिर्गमन की मान्यता से अभिप्राय है कि उत्पादन में बने रहकर संतुलन में कोई भी फर्म न अधिसामान्य लाभ अर्जित करती है और न हानि उठाती है अर्थात् संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन के द्वारा प्रत्येक फर्म प्रचलित बाजार कीमत पर सदैव सामान्य लाभ अर्जित करेगी। फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन से अभिप्राय है कि बाजार कीमत सदैव न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। अतः इस स्थिति में संतुलन कीमत फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होगी। संतुलन में संतुलन कीमत पर बाजार माँग द्वारा पूर्ति की मात्रा निर्धारित होगी।
→ माँग में शिफ्ट: निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में यदि बाजार माँग कम होती है तो माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है जिससे संतुलन कीमत तो समान रहती है; किन्तु संतुलन मात्रा में कमी आती है। यदि बाजार में माँग में वृद्धि होती है तो माँग वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है जिससे संतुलन कीमत तो समान रहती है; किन्तु संतुलन मात्रा में वृद्धि होती है।
→ अनुप्रयोग: जब कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतें वांछित स्तर से या तो अत्यधिक ऊँची अथवा अत्यधिक कम हो जाएँ, तो प्रायः सरकार द्वारा इसका नियमन करना आवश्यक हो जाता है।
→ उच्चतम निर्धारित कीमत: किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहा जाता है। सामान्यतः आवश्यक वस्तुओं के लिए ऐसी कीमत का निर्धारण किया जाता है।
→ निम्नतम निर्धारित कीमत: सरकार द्वारा किसी वस्तु अथवा सेवा के लिए निर्धारित न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं। उदाहरण के लिए सरकार विभिन्न फसलों की न्यूनतम समर्थन कीमत घोषित करती है ताकि कृषकों को संरक्षण दिया जा सके।