These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 4 आय और रोजगार के निर्धारण will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Economics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Economics Notes to understand and remember the concepts easily.
→ समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, कीमत स्तर, ब्याज की दर आदि का निर्धारण किया जाता है तथा इन परिवर्तों के आपसी संबंधों का अध्ययन किया जाता है। एक ही समय में सभी परिवर्तों का संबंध बताना कठिन है अतः किसी एक परिवर्त विशेष का निर्धारण करते समय अन्य सभी परिवर्तों के मूल्यों को स्थिर माना जाता है, अतः हम अन्य बातें समान रहें, की मान्यता लेते हैं।
→ समग्र माँग तथा इसके अवयव: किसी अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत एक दिए हुए वर्ष में उत्पादन गतिविधियों की माप करने से उपभोग, निवेश, कुल निर्गत आदि मदों का वास्तविक मूल्य प्राप्त होता है, इन वास्तविक अथवा लेखांकन मूल्यों को हम इन मदों का यथार्थ माप कहते हैं। यथार्थ मूल्यों के अध्ययन से हमें इन मदों के नियोजित मूल्यों का ज्ञान नहीं हो पाता है। अतः हम इन परिवर्तों-उपभोग, निवेश, कुल निर्गत आदि के नियोजित मूल्यों/ पूर्वानुमानित मूल्यों का अध्ययन करते हैं जिन्हें उनकी प्रत्याशित माप कहते हैं। अन्य शब्दों में प्रत्याशित का अर्थ है नियोजित तथा यथार्थ का अभिप्राय है जो वास्तव में हुआ है।
→ उपभोग: उपभोग माँग का सबसे महत्वपूर्ण निर्धारण घरेलू आय है। एक उपभोग फलन आय तथा उपभोग में संबंध की व्याख्या करता है। सरल उपभोग फलन को निम्न प्रकार दर्शा सकते हैं
C = C̅ + cY
यहाँ यह मानता है कि आय में परिवर्तन के साथ-साथ उपभोग में स्थिर दर से परिवर्तन होता है।
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) को आय में परिवर्तन होने पर उपभोग में परिवर्तन की दर के रूप में समझा जाता है
MPC = \(\frac{\Delta \mathrm{C}}{\Delta \mathrm{Y}}\) = C.
बचत आय का वह भाग है जो उपभोग नहीं है अर्थात्
S = Y - C तथा
MPS = \(\frac{\Delta \mathrm{S}}{\Delta \mathrm{Y}}\) =S यदि हम सीमान्त बचत प्रवृत्ति को 1 में से घटा दे तो हमें सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति प्राप्त होती है।
→ प्रत्याशित निवेश: भौतिक पूँजी के स्टॉक में वृद्धि एवं उत्पादक की माल सूची में परिवर्तन को निवेश के रूप में परिभाषित किया जाता है। नई मशीनें आदि खरीदनी हैं या नहीं, इसका निर्णय करते समय उत्पादक बाजार ब्याज की दर को ध्यान में रखते हैं परन्तु सरलता की दृष्टि से हम यह मानकर चलते हैं कि फर्में प्रत्येक वर्ष एक समान निवेश करती हैं अर्थात्
I = I̅
यहाँ I = धनात्मक स्थिर निवेश तथा I̅ = स्वायत्त निवेश है।
→ दो सेक्टर मॉडल में आय का निर्धारण: सरकार रहित अर्थव्यवस्था में अन्तिम वस्तु की प्रत्याशित समस्त माँग ऐसी वस्तुओं पर किये गए कुल प्रत्याशित उपभोग व्यय और प्रत्याशित निवेश व्यय का योग होती है। जब अन्तिम वस्तु बाजार और अर्थव्यवस्था सन्तुलन की स्थिति में होती है तो प्रत्याशित पूर्ति प्रत्याशित माँग के बराबर होती है।
→ लघु अवधि में सन्तुलन आय का निर्धारण: समष्टि अर्थशास्त्र में हम सन्तुलन का विश्लेषण दो चरणों में करते हैं। प्रथम चरण में हम मूल्य स्तर को स्थिर मानते हुए एक समष्टि मूलक सन्तुलन को ज्ञात करते हैं, दूसरे चरण में हम मूल्य स्तर को बदलने देते हैं और समष्टिमूलक सन्तुलन का विश्लेषण करते हैं।
(A) स्थिर कीमत स्तर के साथ समष्टि अर्थशास्त्रीय संतुलन-इसमें समष्टि अर्थशास्त्र का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है जहां प्रत्याशित समस्त मांग प्रत्याशित समस्त पूर्ति के बराबर होता है।
(B) बीजगणितीय रीति-इसमें सन्तुलन वहां होगा जहाँ
Y = C̅ + I̅ + cY
यहाँ Y = प्रत्याशित समस्त पूर्ति
C̅ + I̅ + cY = प्रत्याशित समस्त माँग है।
→ समग्र मांग में परिवर्तन का आय तथा उत्पादन पर प्रभाव: यदि समग्र माँग में परिवर्तन होता है तो आय का सन्तुलन स्तर भी परिवर्तित होता है । स्वायत्त व्यय में प्रारम्भिक वृद्धि के समस्त माँग तथा निर्गत के सन्तुलन मूल्यों पर अधिप्लावन प्रभाव पड़ता है।
→ गुणक क्रियाविधि: गुणक का आकार सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। यदि सीमान्त उपभोग | प्रवृत्ति में वृद्धि होती है तो गुणक में भी वृद्धि होती है। गुणक प्रभाव के कारण स्वायत्त व्यय में प्रारम्भिक वृद्धि से कुल निर्गत के सन्तुलन मूल्य में अधिक वृद्धि होती है। अन्तिम वस्तुओं के निर्गत के सन्तुलन मूल्य में कुल वृद्धि और स्वायत्त व्यय में आरम्भिक वृद्धि के अनुपात को अर्थव्यवस्था का निर्गत गुणक कहते हैं। गुणक को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
निर्गत गुणक =\( \frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \overline{\mathrm{A}}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}=\frac{1}{\mathrm{~S}}\)
यहाँ ΔY = अन्तिम वस्तु निर्गत की कुल वृद्धि तथा C = mpc (सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति) है।
→ मितव्ययिता का विरोधाभास: यदि अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय से बचत के अनुपात को बढ़ा दें | तो अर्थव्यवस्था में बचत के कुल मूल्य में वृद्धि नहीं होगी अर्थात इससे या तो बचत में कमी आएगी या वह | अपरिवर्तित रहेगी।