These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत will give a brief overview of all the concepts.
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→ इस बात का अध्ययन करना आवश्यक है कि कोई भी फर्म किस प्रकार यह निर्णय लेती है कि उसे कितना उत्पादन करना है? कोई भी फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने हेतु उत्पादन कर उसका विक्रय करती है।
→ पूर्ण प्रतिस्पर्धा : पारिभाषिक लक्षण-एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में दो पारिभाषिक लक्षण होते हैं
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में बाजार कीमत पर एक विक्रेता चाहे जितनी वस्तु बेच सकता है तथा क्रेता चाहे जितनी वस्तु खरीद सकता है। इस बाजार में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार तथा कीमतों की पूर्ण जानकारी होती है।
→ संप्राप्ति: एक फर्म अपने द्वारा उत्पादित वस्तु का बाजार में विक्रय करके संप्राप्ति अर्जित करती है। फर्म की कुल संप्राप्ति वस्तु के बाजार मूल्य (p) तथा फर्म के निर्गत (q) के गुणनफल के रूप में परिभाषित की जाती है जिसे सूत्र के रूप में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है
कुल संप्राप्ति = p × q
एक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र इसकी कुल संप्राप्ति तथा इसके निर्गत के बीच सम्बन्ध दर्शाता है। कुल संप्राप्ति वक्र एक ऊपर की ओर जाती हुई सीधी रेखा होती है। पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में चूँकि बाजार कीमत स्थिर होती है, अतः कीमत रेखा क्षैतिज अक्ष के समानान्तर एक सीधी रेखा के रूप में प्राप्त होती है। कीमत रेखा इस बाजार में फर्म के माँग वक्र को भी दर्शाती है।
→ औसत संप्राप्ति: एक फर्म की औसत संप्राप्ति, कुल संप्राप्ति में निर्गत की इकाइयों का भाग देने से प्राप्त संप्राप्ति के रूप में परिभाषित की जाती है, इसे निम्न प्रकार निकाला जाता है
सीमान्त संप्राप्ति-एक फर्म की सीमान्त संप्राप्ति फर्म के निर्गत में प्रति इकाई वृद्धि के लिए कुल संप्राप्ति | वृद्धि के रूप में परिभाषित की जाती है। इसे निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है
→ लाभ अधिकतमीकरण: एक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करना चाहती है। फर्म का लाभ जिसे T द्वारा दर्शाया जाता है, इसकी कुल संप्राप्ति तथा इसका कुल उत्पादन लागत के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया | जाता है। इसे निम्न प्रकार लिखा जा सकता है
π = कुल संप्राप्ति - कुल लागत
यदि बाजार कीमत p तथा एक सकारात्मक निर्गत स्तर q होने पर एक फर्म का लाभ अधिकतम होने के | लिए निम्न शर्ते पूरी होनी आवश्यक हैं
→ एक फर्म का पूर्ति वक्र-एक फर्म का पूर्ति वक्र निर्गत के उन स्तरों को दर्शाता है जिनका सम्बन्धित फर्म बाजार कीमत के विभिन्न मूल्यों पर उत्पादन के लिए चयन करती है। एक फर्म के पूर्ति वक्र को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
→ उत्पादन बंदी बिन्दु: अल्पकाल में एक फर्म तब तक उत्पादन जारी रखती है, जब तक कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत की तुलना में अधिक अथवा उसके बराबर होती है। इसके नीचे कोई उत्पादन नहीं होता। यह बिन्द फर्म का अल्पकालीन उत्पादन बंदी बिन्दु कहलाता है।
→ सामान्य लाभ तथा लाभ: अलाभ बिन्दु-ऐसा लाभ का स्तर जो केवल स्पष्ट लागतों तथा अवसर लागतों को पूरा कर सके, फर्म का सामान्य लाभ कहलाता है। यदि फर्म सामान्य लाभ से अधिक कमाती है तो वह अधिसामान्य लाभ कहलाता है। पूर्ति वक्र के जिस बिन्दु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ-अलाभ बिन्दु कहलाता है। अतः न्यूनतम औसत लागत का वह बिन्दु जिस पर पूर्ति वक्र दीर्घकालीन औसत वक्र (अल्पकाल में अल्पकालीन औसत लागत वक्र) को काटता है, फर्म का लाभ-अलाभ बिन्दु है।
→ फर्म के पूर्ति वक्र के निर्धारक तत्व: एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके सीमान्त लागत वक्र का भाग है। अतः कोई भी कारक, जो एक फर्म के सीमान्त लागत वक्र को प्रभावित करता हो, इसके पूर्ति वक्र का निर्धारक होता है। पूर्ति वक्र के मुख्य निर्धारक तत्व निम्न प्रकार हैं
→ बाजार पूर्ति वक्र: बाजार पूर्ति वक्र वह निर्गत स्तर दर्शाता है जिसका बाजार में सभी फर्मे समवर्ती विभिन्न बाजार मूल्यों पर सामूहिक रूप से उत्पादन करती हैं। बाजार पूर्ति, कीमत P पर बाजार की व्यक्तिगत फर्मों की दी हुई कीमत पर पूर्तियों का योग है।
→ पूर्ति की कीमत लोच: एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच वस्तु की कीमत में परिवर्तनों के कारण वस्तु की पूर्ति की मात्रा की अनुक्रियाशीलता को मापती है। पूर्ति की कीमत लोच की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है
पूर्ति की कीमत लोच की गणना ज्यामितीय विधि द्वारा भी की जा सकती है। पूर्ति की कीमत लोच तीन प्रकार की हो सकती है-पूर्ति की कीमत लोच इकाई से अधिक (es > 1), पूर्ति की कीमत लोच इकाई के बराबर (es = 1) तथा पूर्ति की कीमत लोच इकाई से कम (es < 1)।