These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग will give a brief overview of all the concepts.
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→ मुद्रा की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। मुद्रा विनिमय का एक सर्वमान्य माध्यम है । वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत मुद्रा की कोई भूमिका नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में उपयुक्त संयोग नहीं मिलने के कारण अत्यन्त कठिनाई आती है। मुद्रा द्वारा वस्तु विनिमय प्रणाली की कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है।
→ मुद्रा के कार्य: मुद्रा अर्थव्यवस्था में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है। मुद्रा सुविधाजनक लेखा की एक इकाई के रूप में कार्य करती है। मुद्रा वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करती है। इसके अतिरिक्त मुद्रा व्यक्तियों के लिए मूल्य संचय का कार्य करती है। वर्तमान में नकदी का उपयोग कम कर डिजिटल सौदों के उपयोग को अधिक करने पर बल दिया जा रहा है।
→ मुद्रा की माँग और मुद्रा की पूर्ति
मुद्रा की माँग: मुद्रा की माँग हमें यह बताती है कि लोग कुछ द्रव्य क्यों चाहते हैं। मुद्रा सौदों के संचालन के लिए आवश्यक है।
→ मुद्रा की पूर्ति: आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा के अन्तर्गत नकदी एवं बैंक जमाएँ आती हैं। अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंक मुद्रा व्यवस्था को संचालित करते हैं।
देश में केन्द्रीय बैंक मुद्रा निर्गमन का कार्य करता है तथा कई उपायों से मुद्रा पूर्ति को नियंत्रित करता है। व्यावसायिक बैंक दूसरे प्रकार की संस्थाएँ हैं जो द्रव्य निर्माण अर्थव्यवस्था का एक भाग है। व्यावसायिक बैंक जनता से जमाएँ स्वीकार करने एवं उधार देने का कार्य करते हैं। व्यावसायिक बैंक उन फर्मों तथा व्यक्तियों के बीच जिनके पास अतिरिक्त कोष होते हैं तथा वे जिनको कोष की आवश्यकता होती है, मध्यस्थता करते हैं।
→ बैंकिंग व्यवस्था द्वारा साख सृजन: व्यावसायिक बैंक अपने पास जमा राशि में से कुछ भाग कोष के रूप में रखकर शेष उधार दे देते हैं तथा उधार राशि उधार लेने वाले को नकद ना. देकर उसके खाते में जमा कर देते हैं, उसके पश्चात् बैंक इस जमा राशि में से भी एक भाग कोष के रूप में रखकर अन्य को उधार दे देता है इस प्रकार यह क्रम चलता रहता है । इस प्रकार व्यावसायिक बैंक जमा राशि से कई गुना उधार देकर साख सृजन का कार्य करता है । व्यावसायिक बैंकों द्वारा साख अथवा द्रव्य सृजन करने की क्षमता केन्द्रीय बैंक द्वारा निर्धारित होती है। रिजर्व बैंक कोष रखने की दर को बढ़ाकर साख सृजन करने की क्षमता को घटा सकता है। मुद्रा गुणक द्वारा साख सृजन क्षमता का पता चलता है।
यदि नकद कोष अनुपात 20% है तो मुद्रा गुणक
मुद्रा गुणक = \(\frac{1}{20 \%}=\frac{1}{0.2}\) = 5
अत: बैंक 5 गुना जमाओं का सृजन कर सकता है।
→ मुद्रा पूर्ति के नियन्त्रण के नीतिगत उपकरण-रिजर्व बैंक करेंसी निगर्मित करती है एवं बैंकों के लिए अन्तिम ऋणदाता का कार्य करती है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, अर्थव्यवस्था में मुद्रा पूर्ति का विभिन्न तरीकों से नियंत्रण करती है। मुद्रा पूर्ति नियन्त्रण के लिए प्रयुक्त उपकरण परिमाणात्मक अथवा गुणात्मक हो सकते हैं। परिमाणात्मक उपकरण, मुद्रा पूर्ति की मात्रा को CRR, SLR बैंक दर व खुले बाजार की क्रियाओं में परिवर्तन करके करते हैं। गुणात्मक उपकरणों में नैतिक दबाव, सीमा अनिवार्यता आदि को शामिल किया जाता है।
→ माँग और पैसे की आपूर्ति
मुद्रा की माँग: मुद्रा सर्वाधिक तरल सम्पत्ति है जो सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य है तथा इसका किसी दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से विनिमय किया जा सकता है। मुद्रा शेष की माँग को प्रायः तरलता अधिमान कहा जाता है। लोगों के द्वारा मुद्रा कोष रखने के दो प्रमुख उद्देश्य हैं
(1) संव्यवहार प्रयोजन: मुद्रा धारण करने का मुख्य प्रयोजन संव्यवहारों को जारी रखना है। मुद्रा द्वारा लोग अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तथा अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीदते हैं। संव्यवहार हेतु मुद्रा की माँग कुल आय का एक अंश होता है। सामान्य अर्थों में मुद्रा की संव्यवहार माँग, MdT को निम्न रूप में लिखा जा सकता है-
MdT = k.T.
यहाँ T एक इकाई समयावधि में अर्थव्यवस्था में संव्यवहार का कुल मूल्य है तथा k धनात्मक अंश है।
मुद्रा की एक इकाई का एक इकाई अवधि में जितनी बार हस्तान्तरण होता है, उसे मुद्रा का संचलन वेग कहते हैं। किसी अर्थव्यवस्था में दिए हुए वर्ष में समस्त संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग और सकल घरेलू उत्पाद के मध्य सम्बन्ध को निम्न समीकरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
MdT = KPY
यहाँ Y वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद है तथा P सामान्य कीमत स्तर है। उपर्युक्त समीकरण बताता है कि किसी अर्थव्यवस्था में संव्यवहार के लिए मुद्रा की माँग का अर्थव्यवस्था की वास्तविक आय और उसके औसत कीमत स्तर के बीच धनात्मक सम्बन्ध है।
(2) सट्टा उद्देश्य प्रयोजन-अर्थव्यवस्था में लोग सट्टे द्वारा धन अर्जन हेतु भी मुद्रा की माँम करते हैं। बन्ध पत्र ऐसे कागज हैं, जो एक समयावधि के उपरान्त भविष्य में मौद्रिक प्रतिफल की धारा का वादा करते हैं। ब्याज दर तथा बन्ध पत्र की कीमतों में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। ब्याज दर तथा बन्ध पत्र की कीमतों में सम्बन्ध के आधार पर अर्थव्यवस्था में लोग सट्टा उद्देश्य हेतु मुद्रा की माँग करते हैं। सट्टा के लिए मुद्रा की माँग और ब्याज की दर में व्युत्क्रम संबंध होता है। जब ब्याज दर में गिरावट आती है तो सट्टा उद्देश्य हेतु मुद्रा की माँग में वृद्धि होती है तथा ब्याज दर बढ़ने पर सट्टा उद्देश्य हेतु मुद्रा की माँग में कमी आती है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा की समस्त माँग को निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जाता है
Md = MdT + Mds
यहाँ Md = मुद्रा की माँग, MdT = संव्यवहार प्रयोजन हेतु मुद्रा की माँग, Mds = सट्टा उद्देश्य हेतु मुद्रा की माँग है।
→ मुद्रा की पूर्ति: आधुनिक अर्थव्यवस्था में देश में मुद्रा की पूर्ति मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा की जाती है। भारत में मुद्रा का निर्गमन अथवा पूर्ति भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा की जाती है।
वैध परिभाषाएँ : संकुचित और व्यापक मुद्रा-एक निश्चित समय में लोगों में संचरण करने वाली कुल मुद्रा को मुद्रा की पूर्ति कहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की पूर्ति के वैकल्पिक मापों को चार रूपों में प्रकाशित करता है
M1 = जनता के पास करेन्सी + बैंकों के पास माँग जमा
M2 = M1 + डाकघर बचत बैंकों में बचत जमाएँ
M3 = M1 + व्यावसायिक बैंकों की निवल आवधिक जमाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमाएँ
उपर्युक्त मापों में से M1 और M2 संकुचित मुद्रा कहलाती है तथा M3 व M4 व्यापक मुद्रा कहलाती है। M1 संव्यवहार के लिए सबसे तरल और आसान है, जबकि M4 इनमें सबसे कम तरल है।
→ विमुद्रीकरण: भारत सरकार द्वारा भ्रष्टाचार, कालाधन, आतंकवाद और जाली मुद्रा के चलन जैसी समस्याओं से निपटने के लिए नवम्बर, 2016 में विमुद्रीकरण किया। इसमें 500 और 1000 रुपयों के करेन्सी नोट विधिग्राह्य नहीं रहे तथा 500 तथा 2000 रुपयों के नोटों की नई श्रृंखला शुरू की गई। साथ ही सरकार द्वारा इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली को अपनाने पर भी बल दिया गया।