These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 3 उत्पादन तथा लागत will give a brief overview of all the concepts.
→ उत्पादन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आगतों को निर्गत में परिवर्तित किया जाता है। एक उत्पादक अथवा फर्म विभिन्न आगतों, जैसे- श्रम, मशीन, भूमि, कच्चा माल आदि को प्राप्त करता है। इन आगतों के मेल से वह निर्गत का उत्पादन करता है, इसे उत्पादन प्रक्रिया कहते हैं। उत्पादक आगतों को प्राप्त करने हेतु जो भुगतान करता है, उसे उत्पादन लागत कहते हैं। उत्पादक अपने उत्पाद को बाजार में बेचकर लागत से ऊपर जितना अर्जित करता है, वह लाभ कहलाता है।
→ उत्पादन फलन: एक फर्म का उत्पादन फलन उपयोग में लाए गए आगतों तथा फर्म द्वारा उत्पादित निर्गतों के मध्य का सम्बन्ध है। एक उत्पादन फलन, एक दी हुई प्रौद्योगिकी के लिए परिभाषित किया जाता है। यह प्रौद्योगिकीय ज्ञान है जो निर्गत के अधिकतम स्तरों को निर्धारित करता है, जिसका उत्पादन आगतों के विभिन्न संयोगों को उपयोग में लाकर किया जा सकता है। उत्पादन प्रक्रिया में फर्म जिन आगतों का उपयोग करती है, वे उत्पादन के कारक कहलाते हैं। हम उत्पादन फलन को निम्न प्रकार लिख सकते हैं
q = f (L, K)
यहाँ = उत्पादन मात्रा, L श्रम तथा K पूँजी की मात्राएँ हैं। इसमें हम जैसे-जैसे आगतों की मात्रा में वृद्धि करते हैं, उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती जाती है।
→ अल्पकाल तथा दीर्घकाल: अल्पकाल वह समय अवधि है जिसमें उत्पादन के एक साधन को स्थिर रखा | जाता है जिसे स्थिर कारक कहते हैं तथा उत्पादन के दूसरे साधन में परिवर्तन किया जाता है जिसे परिवर्ती कारक कहते हैं। दीर्घकाल वह समय अवधि होती है जिसमें उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है, दीर्घकाल में कोई भी कारक स्थिर नहीं होता है।
→ कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद - कुल उत्पाद: एक फर्म द्वारा निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल मात्रा को कुल उत्पाद कहते हैं। दूसरे शब्दों में परिवर्ती आगत तथा निर्गत के मध्य सम्बन्ध, अन्य सभी आगतों को स्थिर रखते हुए, अक्सर परिवर्ती आगत के कुल उत्पाद के रूप में जाना जाता है।
→ औसत उत्पाद: औसत उत्पाद निर्गत की प्रति इकाई परिवर्ती आगत के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसकी गणना निम्न प्रकार की जा सकती है
APL = \(\frac{\mathrm{TP}_{\mathrm{L}}}{\mathrm{L}}\)
→ सीमान्त उत्पाद: एक आगत का सीमान्त उत्पाद, प्रति इकाई आगत में परिवर्तन के कारण जो निर्गत में परिवर्तन होता है वह कहलाता है, जब सभी अन्य आगत स्थिर रखे गए हों। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता
अथवा
सीमान्त उत्पाद = (L इकाइयों पर TP) – (L - 1 इकाई पर TP)
→ ह्रासमान सीमान्त उत्पाद नियम तथा परिवर्ती अनुपात नियम: ह्रासमान सीमान्त उत्पाद नियम यह कहता है कि अगर हम किसी आगत के प्रयोग में वृद्धि करते हैं तथा अन्य आगत स्थिर हो, तो एक समय के बाद ऐसी स्थिति आयेगी कि प्राप्त होने वाले अतिरिक्त उत्पाद में गिरावट आने लगेगी। कुछ सीमा तक ह्रासमान सीमान्त उत्पाद नियम की संकल्पना, परिवर्ती अनुपातों के नियम से संबंधित है। परिवर्ती अनुपातों का नियम कहता है कि प्रारम्भ | में आगतों के प्रयोग से सीमान्त उत्पाद बढ़ता है किन्तु एक नियत स्तर पर पहुँचने के उपरान्त इसमें गिरावट आनी आरम्भ हो जाती है।
→ कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद तथा औसत उत्पाद वक्र की आकृतियाँ: परिवर्तनशील अथवा परिवर्ती अनुपात के नियम के अनुसार प्रारम्भ में सीमान्त तथा औसत उत्पाद दोनों में वृद्धि होती है तथा दोनों में एक सीमा के पश्चात् गिरावट आने लगती है। अतः दोनों वक्रों की आकृति उल्टे '∪' अर्थात् '∩' के समान होती है। कुल उत्पादन में निरन्तर वृद्धि होती है तथा एक सीमा के बाद गिरावट आती है। . पैमाने के प्रतिफल-जब सभी आगतों में परिवर्तन किया जाता है तो तीन प्रकार के पैमाने के प्रतिफल प्राप्त होते हैं
→ लागत: किसी वस्तु का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के साधनों पर किया जाने वाला कुल व्यय उत्पादन लागत कहलाता है। निर्गत का उत्पाद करने के लिए फर्म सबसे कम लागत वाले आगत संयोग का चयन करती है। कुल लागत, कुल परिवर्ती लागत तथा कुल स्थिर लागत का जोड़ है अर्थात्
कुल लागत = कुल परिवर्ती लागत + कुल स्थिर लागत
→ अल्पकालीन औसत लागत-प्रति इकाई लागत की माप औसत लागत कहलाती है, इसे निम्न प्रकार ज्ञात करेंगे
यहाँ q = निर्गत की इकाइयों की संख्या है।
→ औसत परिवर्ती लागत: कुल परिवर्ती लागत, प्रति इकाई निर्गत के रूप में औसत परिवर्ती लागत परिभाषित | होती है। इसकी गणना निम्न प्रकार करेंगे
→ औसत स्थिर लागत: कुल स्थिर लागत, प्रति इकाई निर्गत के रूप में औसत स्थिर लागत परिभाषित की जाती है। इसे निम्न प्रकार ज्ञात करेंगे
अल्पकालीन औसत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत के योग के बराबर होती है।
→ अल्पकालीन सीमान्त लागत: यह कुल लागत में परिवर्तन प्रति इकाई निर्गत में परिवर्तन के रूप में परिभाषित की जाती है। इसे अग्र प्रकार ज्ञात करेंगे-
→ अल्पकालीन लागत वक्र की आकृति: कुल स्थिर लागत अल्पकाल में स्थिर होती है अतः कुल स्थिर लागत वक्र क्षैतिज अक्ष के समानान्तर होती है। अल्पकाल में औसत स्थिर लागत उत्पादन मात्रा के साथ-साथ कम होती जाती है अतः औसत स्थिर लागत वक्र ऋणात्मक ढाल वाला गिरता हुआ वक्र होता है। कुल परिवर्ती लागत वक्र एक बढ़ता हुआ धनात्मक ढाल वक्र होता है जो निर्गत एवं कुल परिवर्ती लागत में धनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है। इसी प्रकार कुल लागत वक्र भी एक बढ़ता धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र U आकार का होता है क्योंकि सीमान्त लागतं प्रारम्भ में उत्पादन मात्रा के साथ घटती है किन्तु एक सीमा के पश्चात् सीमान्त लागत बढ़ती जाती है। औसत परिवर्ती लागत वक्र भी U आकार का होता है जब तक औसत परिवर्ती लागत में गिरावट आती है तो अल्पकालीन सीमान्त लागत, औसत परिवर्ती लागत से कम होती है। जैसे-जैसे औसत परिवर्ती लागत में वृद्धि होती है, अल्पकालीन सीमान्त लागत, अल्पकालीन औसत परिवर्ती लागत से अधिक होती है, अतः अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र, औसत परिवर्ती लागत वक्र को नीचे से औसत परिवर्ती लागत के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। अल्पकालीन औसत लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत स्थिर लागत का जोड़ होती है। जैसे-जैसे निर्गत में वृद्धि होती है अल्पकालीन औसत लागत गिरती है तथा उत्पादन के एक स्तर पर यह न्यूनतम होती है। इसके पश्चात् औसत लागत में वृद्धि होती है। अतः अल्पकालीन औसत लागत वक्र का आकार U के समान होता है।
→ दीर्घकालीन लागत: दीर्घकाल में सभी आगतें परिवर्तनशील होती हैं। अतः कुल लागत तथा कुल परिवर्ती लागत दीर्घकाल में एक ही समय में घटित होते हैं। दीर्घकालीन औसत लागत का तात्पर्य प्रति इकाई उत्पादन | मात्रा की लागत से है, जिसे निम्न प्रकार ज्ञात करते हैं
दीर्घकालीन सीमान्त लागत कुल लागत में वह परिवर्तन है, जो प्रति इकाई निर्गत में परिवर्तन के फलस्वरूप होती है। इसे निम्न प्रकार ज्ञात किया जाता है
दीर्घकालीन सीमान्त लागत = (q इकाइयों पर कुल लागत) - (q - 1 इकाइयों पर कुल लागत)
→ दीर्घकालीन लागत वक्रों का आकार-दीर्घकालीन औसत लागत वक्र तथा दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र दोनों U आकार के होते हैं। जब दीर्घकालीन औसत लागत वक्र गिरता हुआ होता है, सीमान्त लागत वक्र उससे नीचे होता है। दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र, दीर्घकालीन औसत लागत वक्र को नीचे से उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। इस बिन्दु के पश्चात् दोनों में वृद्धि होती है किन्तु दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र, दीर्घकालीन औसत आगत वक्र से ऊपर होता है।