These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत will give a brief overview of all the concepts.
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→ प्रत्येक उपभोक्ता को यह निर्णय करना होता है कि वह अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं पर किस प्रकार व्यय करे। कोई भी उपभोक्ता वस्तुओं के ऐसे संयोजन को प्राप्त करना चाहेगा जो उसे अधिकतम संतोष प्रदान करता है।
→ प्रारम्भिक संकेतन तथा अभिग्रह: हम उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन यह मानकर करेंगे कि केवल दो ही वस्तुएँ हैं। दोनों वस्तुओं की मात्रा की कोई भी सम्मिलित राशि को उपभोक्ता बंडल अथवा संक्षेप में बंडल कह सकते हैं।
→ उपयोगिता: एक वस्तु की उपयोगिता, उसकी किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करने की क्षमता है। वस्तु की जितनी ज्यादा आवश्यकता होगी, उससे उतनी ही अधिक उपयोगिता प्राप्त होगी।
→ गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण-इस विश्लेषण की मान्यता है कि उपयोगिता के स्तर को संख्या में | व्यक्त किया जा सकता है। कुल उपयोगिता–कुल उपयोगिता (TU) एक वस्तु (X) की एक निश्चित मात्रा से प्राप्त उपयोगिता का योग है जो वस्तु की की गई मात्रा को उपयोग करने से प्राप्त होती है।
→ सीमान्त उपयोगिता: सीमान्त उपयोगिता (MU) कुल उपयोगिता में वह परिवर्तन है जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से होता है।
→ एकल वस्तु की दशा में माँग वन की उत्पत्ति (ह्रासमान उपयोगिता नियम): हासमान उपयोगिता नियम बताता है कि जैसे-जैसे अन्य वस्तुओं के उपयोग को स्थिर रखते हुए किसी वस्तु के उपयोग को बढ़ाया जाता | है, वस्तु की हर अगली इकाई के उपयोग से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता गिरती जाती है। किसी वस्तु का माँग वक्र गणनावाचक विश्लेषण द्वारा बनाया जा सकता है। माँग वक्र, एक वस्तु की, विभिन्न कीमतों पर माँगे जाने वाली मात्राओं की रेखीय प्रस्तुति है। .
→ क्रमवाचक उपयोगिता विश्लेषण: यह विश्लेषणं उपभोक्ता उपयोगिता को संख्या में नहीं मापता है बल्कि यह विश्लेषण विभिन्न उपभोक्ता बंडलों को क्रम देता है। यह विश्लेषण अनधिमान वक्र की सहायता से किया जाता है। अनधिमान वक्र वह वस्तु है जिसमें उन सभी बंडलों के बिन्दुओं को जोड़ दिया जाता है जिन पर उपभोक्ता तटस्थ रहता है।
→ एक वस्तु की अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए, कुल उपयोगिता का स्तर समान रखते हुए, दूसरी वस्तु की वह मात्रा जिसका उपभोक्ता को त्याग करना पड़ता है, उसे सीमान्त प्रतिस्थापन दर (MRS) कहते हैं। अनधिमान वक्र की आकृति-अनधिमान वक्र अपने मूल की तरफ उत्तल होता है। अनधिमान वक्र का ढाल नीचे की तरफ अर्थात् ऋणात्मक होता है।
→ अनधिमान मानचित्र: जब एक रेखाचित्र में उपभोक्ता के विभिन्न अनधिमान वक्रों को दर्शाया जाता है, तो इसे अनधिमान मानचित्र कहते हैं।
→ अनधिमान वक्रों के लक्षण/विशेषताएँ
→ उपभोक्ता का बजट : उपभोक्ता के पास दो वस्तुओं को खरीदने के लिए एक निश्चित धन की मात्रा अथवा आय होती है, वह उपभोक्ता का बजट कहलाता है। एक उपभोक्ता दोनों वस्तुओं का ऐसा संयोग क्रय कर सकता है, जो या तो उपभोक्ता के बजट से कम हो या बराबर हो।
→ बजट सेट एवं बजट रेखा: वस्तुओं की विद्यमान कीमतों तथा अपनी आय के अनुसार उपभोक्ता कोई भी बंडल उसी सीमा तक खरीद सकता है, जब तक उसकी कीमत उसकी आय के बारबर या उससे कम रहे, इसे बजट प्रतिबन्ध कहते हैं तथा उपभोक्ता के लिए उपलब्ध बजटों के सेट को बजट सेट कहते हैं।
→ बजट रेखा उस रेखा को कहते हैं जिस पर स्थित विभिन्न बंडलों की लागत उपभोक्ता की आय के बराबर होती है।
→ मूल्य अनुपात तथा बजट रेखा की प्रवणता: एक उपभोक्ता दी गई बाजार स्थिति में वस्तु 1 को वस्तु 2 की जगह P/P, की दर पर प्रतिस्थापित कर सकता है। बजट रेखा की प्रवणता का निरपेक्ष मूल्य उस दर को | मापती है, जिस पर उपभोक्ता वस्तु 2 के बदले वस्तु 1 से खरीदती है, जब वह अपना सम्पूर्ण बजट खर्च कर देता है।
→ बजट सेट में बदलाव: बंडलों का सेट दोनों वस्तुओं की कीमत तथा उपभोक्ता की आय पर निर्भर करता है। जब वस्तु की कीमत अथवा उपभोक्ता की आय में बदलाव होता है, तो उपलब्ध बंडलों के सेट में भी बदलाव आ सकता है।
→ उपभोक्ता का इष्टतम चयन: उपभोक्ता एक युक्तिशील उपभोक्ता है, जो अपने लिए उपलब्ध बंडलों में से सदा वही बंडल चुनता है, जिसे वह सर्वाधिक अधिमानता देता है, जो बजट रेखा पर स्थित होता है। उपभोक्ता का इष्टतम बंडल ऐसे बिन्दु पर स्थित होता है, जहाँ बजट रेखा किसी एक अनधिमान वक्र को स्पर्श करती है अर्थात् जहाँ विस्थापन की सीमान्त दर तथा कीमतों के अनुपात में समानता होती है।
→ माँग: वस्तु की मात्रा जिसका उपभोक्ता चयन करता है, माँग कहलाती है। अन्य शब्दों में, एक दी हुई कीमत पर एक उपभोक्ता अपनी आय से वस्तु की जितनी मात्रा खरीदने को तैयार होता है, वह माँग कहलाती है। वस्तु की मात्रा जिसका चयन उपभोक्ता इष्टतम रूप से करता है, वस्तु की अपनी कीमत, अन्य वस्तुओं की कीमतों, उपभोक्ता की आय, उसकी रुचि तथा अधिमानों पर निर्भर करती है। किसी वस्तु की मात्रा के लिए उपभोक्ता का इष्टतम चयन तथा उसकी कीमत में संबंध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है तथा यह संबंध माँग फलन कहलाता है।
→ माँग वक्र तथा माँग का नियम: किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा तथा कीमत के मध्य संबंध दर्शाने वाले वक्र को माँग वक्र कहा जाता है। माँग का नियम का तात्पर्य है कि वस्तु की मात्रा जो उपभोक्ता का इष्टतम चयन होगा, वह वस्तु की कीमत गिरने से संभावित रूप से बढ़ सकती है तथा यह वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर संभावित रूप से घट सकती है अर्थात् माँगी गई मात्रा तथा कीमतों में ऋणात्मक संबंध पाया जाता है।
→ सामान्य और निम्नस्तरीय वस्तएँ; जब उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग बढे तथा जब उपभोक्ता की आय में कमी होने पर वस्तु की माँग घटे तो ऐसी वस्तु सामान्य वस्तु कहलाती है। लेकिन कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं, जिनके लिए माँग, उपभोक्ता की आय के विपरीत दिशा में जाती है, ऐसी वस्तुओं को निम्नस्तरीय वस्तुएँ कहा जाता है; जैसे---निम्नस्तरीय खाद्य पदार्थ, मोटे अनाज आदि।
→ स्थानापन्न तथा पूरक: जिन वस्तुओं का एक साथ उपभोग किया जाता है, उन्हें पूरक वस्तुएँ कहा जाता है; जैसे-चाय व चीनी। जब दो वस्तुओं को एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग किया जाता है, तो वे स्थानापन्न वस्तुएँ कहलाती हैं; जैसे-चाय व कॉफी।।
→ माँग वक्र में शिफ्ट: यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो सामान्य वस्तुओं के लिए माँग वक्र का शिफ्ट दायीं ओर तथा निम्नस्तरीय वस्तुओं के लिए माँग वक्र का शिफ्ट बायीं ओर होता है; उपभोक्ता की आय में कमी होने पर इसके विपरीत क्रिया होती है। उपभोक्ता की रुचियाँ एवं अधिमानों में परिवर्तन के कारण भी माँग वक्र का शिफ्ट हो सकता है। रुचि बढ़ने पर माँग वक्र दायीं तरफ तथा रुचि कम होने पर उस वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर शिफ्ट होता है।
→ माँग वक्र की दिशा में गति और माँग वक्र में शिफ्ट: कीमत में कोई परिवर्तन होने के फलस्वरूप माँग वक्र की दिशा में गति होती है। इसके विपरीत किन्हीं अन्य वस्तुओं के परिवर्तनों के फलस्वरूप माँग वक्र शिफ्ट हो सकता है।
→ बाजार माँग: किसी वस्तु के लिए एक विशेष कीमत पर बाजार माँग सभी उपभोक्ताओं की सम्मिलित माँग | का जोड़ होती है। किसी भी वस्तु के लिए बाजार माँग व्यक्ति विशेष के माँग वक्रों से प्राप्त की जा सकती है। बाजार माँग वक्र विशिष्ट माँग वक्रों के समस्तरीय संकलन से प्राप्त किया जा सकता है।
→ माँग की लोच: किसी वस्तु की माँग में प्रतिशत परिवर्तन को उस वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से भाग देने पर प्राप्त भागफल किसी वस्तु के लिए माँग की लोच है, इसका निम्न सूत्र है
वस्तु की कीमत लोच इकाई से अधिक हो सकती है, इकाई के बराबर हो सकती है तथा इकाई से कम हो सकती है, जिसे क्रमशः लोचदार, इकाई लोचदार तथा बेलोचदार माँग कहते हैं।
→ रैखिक माँग वक्र की दिशा में लोच: एक रैखिक माँग वक्र के अलग-अलग बिन्दुओं पर माँग की लोच अलग-अलग होती है। यदि माँग वक्र, ऊर्ध्वस्तर माँग वक्र है तो उसकी माँग की लोच सदैव स्थिर अर्थात् पूर्णतया लोचहीन (0) होगी। यदि माँग वक्र की आकृति एक समकोणीय अतिपरवलय है तो इसकी लोच इकाई के बराबर होगी।
→ किसी वस्त के लिए माँग की कीमत लोच को निर्धारित करने वाले कारक: किसी वस्तु के लिए माँग की कीमत लोच वस्तु की प्रकृति और वस्तु के निकटतम स्थानापन्न वस्तु की उपलब्धता पर निर्भर करती है।
→ लोच तथा व्यय: यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन के विपरीत दिशा में व्यय में परिवर्तन होता है, तो वस्तु की कीमत लोचदार होगी। यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन के समान दिशा में व्यय में परिवर्तन होता है तो वस्तु की कीमत लोच बेलोचदार होगी। यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर व्यय में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो वस्तु की कीमत लोच इकाई लोचदार होती है।