Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Important Questions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
प्रश्न 1.
निम्न करों में से कौनसा कर अप्रत्यक्ष करों की श्रेणी में आता है।
(अ) उत्पादन शुल्क
(ब) सीमा शुल्क
(स) सेवा शुल्क
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) सेवा शुल्क
प्रश्न 2.
कौनसा कर प्रत्यक्ष करों की श्रेणी में आता है?
(अ) आय कर
(ब) निगम कर
(स) उपहार कर
(द) प्रत्यक्ष करो
उत्तर:
(ब) निगम कर
प्रश्न 3.
सरकार के गैर-कर राजस्व में किस मद को शामिल किया जाएगा?
(अ) ब्याज प्राप्तियाँ
(ब) सरकार के निवेश से प्राप्त लाभांश
(स) सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त शुल्क
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं से प्राप्त शुल्क
प्रश्न 4.
राजस्व घाटा ज्ञात करने का सूत्र है।
(अ) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
(ब) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय + राजस्व प्राप्तियाँ
(स) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय x राजस्व प्राप्तियाँ
(द) राजस्व घाटा - राजस्व व्यय + राजस्व प्राप्तियाँ
उत्तर:
(अ) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
प्रश्न 5.
सकल प्राथमिक घाटा ज्ञात करने का सूत्र है।
(अ) सकल प्राथमिक घाटा = सकल राजकोषीय घाटा + निवल ब्याज दायित्व
(ब) सकल प्राथमिक घाटा = सकल राजकोषीय घाटा - निवल व्याज दायित्व
(स) सकल प्राथमिक घाटा = राजस्व घाटा + निवल ब्याज दायित्व
(द) सकल प्राथमिक घाटा = राजस्व घाटा - निवल ब्याज दायित्व
उत्तर:
(ब) सकल प्राथमिक घाटा = सकल राजकोषीय घाटा - निवल व्याज दायित्व
प्रश्न 6.
सन्तुलित बजट गुणक का मान कितना होता है?
(अ) 1
(ब) 2
(स) 3
(द) 4
उत्तर:
(द) 4
प्रश्न 7.
सरकार की राजकोषीय नीति के प्रमुख अंग कौनसे।
(अ) कर
(ब) सार्वजनिक व्यय
(स) सार्वजनिक ऋण
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(ब) सार्वजनिक व्यय
प्रश्न 8.
यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति है तो सरकार की कर नीति होगी।
(अ) सरकार करों में वृद्धि करेगी
(ब) सरकार करों में कमी करेगी
(स) सरकार करों में कोई परिवर्तन नहीं करेगी
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) सरकार करों में कोई परिवर्तन नहीं करेगी
प्रश्न 9.
भारत में वस्तु एवं सेवाकर (GST) कब लागू किया गया?
(अ) जुलाई 2016
(ब) जुलाई 2017
(स) जुलाई 2018
(द) जुलाई 2019
उत्तर:
(स) जुलाई 2018
प्रश्न 10.
वस्तु एवं सेवाकर (GST) की कितनी श्रेणियाँ हैं।
(अ) 6
(ब) 7
(स) 8
(द) 11
उत्तर:
(ब) 7
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
भारत में वस्तु एवं सेवाकर (GST) की मानक दरें कौनसी हैं?
उत्तर:
GST की मानक दर 0%, 3%, 5%, 12%, 18% व 28% है।
प्रश्न 2.
घाटे का वित्त प्रबन्धन समझाइये।
अथवा
बजटीय घाटे का वित्तीयन किस प्रकार किया जाता
उत्तर:
बजटीय घाटे का वित्त प्रबन्धन करो, उधार लेकर या नोट छापकर किया जाता है।
प्रश्न 3.
सरकारी बजट से क्या तात्पर्य है ? .
अथवा
बजट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
बजट सरकार के अनुमानित प्राप्तियों एवं व्ययों का वार्षिक विवरण है।
प्रश्न 4.
राजकोषीय घाटा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
यह सरकार के कुल व्यय और ऋण ग्रहण को छोड़कर कुल प्राप्तियों का अन्तर है।
प्रश्न 5.
राजस्व घाटे की गणना कैसे की जाती है?
उत्तर:
राजस्व घाटा → राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ।
प्रश्न 6.
सन्तुलित बजट की परिभाषा दें।
उत्तर:
वह बजट जिसमें सरकार की आय एवं व्यय दोनों बराबर होते हैं।
प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष कर के दो उदाहरण दें।
उत्तर:
प्रश्न 8.
प्रगतिशील कर की परिभाषा दें।
उत्तर:
वह कर जिसकी दर आय बढ़ने के साथ बढ़ती है।
प्रश्न 9.
राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों पर राजस्व आय की अधिकता राजस्व घाटा है।
प्रश्न 10.
किसी अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक वस्तुओं की पूर्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं की पूर्ति सरकार द्वारा की जाती है।
प्रश्न 11.
सरकार द्वारा किया जाने वाला कोई एक महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुओं की पूर्ति ।
प्रश्न 12.
किसी एक सार्वजनिक वस्तु अथवा सेवा का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय प्रतिरक्षा।
प्रश्न 13.
किसी एक निजी वस्तु का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
खाद्य वस्तुएँ।
प्रश्न 14
सरकार द्वारा अपनायी जाने वाली नीति को क्या कहते हैं?
उत्तर:
राजकोषीय नीति।
प्रश्न 15.
राजकोषीय नीति के प्रमुख अंग कौनकौन से हैं?
उत्तर:
प्रश्न 16.
सरकारी बजट के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 17.
अर्थव्यवस्था में समस्त माँग को प्रभावित करने वाला कोई एक तत्त्व बताइए।
उत्तर:
आय।
प्रश्न 18.
बजट के दो प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
प्रश्न 19.
किन्हीं दो अप्रत्यक्ष करों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 20.
सरकार की कोई एक गैर-कर राजस्व मद का नाम लिखिए।
उत्तर:
व्याज प्राप्तियाँ।
प्रश्न 21.
कोई एक गैर - योजनागत राजस्व व्यय की मद का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रतिरक्षा सेवाएँ।
प्रश्न 22.
बजट की पूँजीगत प्राप्ति की कोई एक मद बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण।
प्रश्न 23.
सरकार द्वारा भवन निर्माण किस प्रकार की मद है?
उत्तर:
पूँजीगत व्यय की मद।
प्रश्न 24.
किस घाटे से सरकार के ऋण-ग्रहण संबंधी आवश्यकताओं का पता चलता है?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा।
प्रश्न 25.
सकल प्राथमिक घाटा ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सकल प्राथमिक घाटा = सकल राजकोषीय घाटा - निवल ब्याज दायित्व।
प्रश्न 26.
राजस्व व्यय की कोई दो प्रमुख मदें बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 27.
सरकारी व्यय गुणक ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
\(\frac{\dot{\Delta} \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}\)
प्रश्न 28.
कर गुणक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
\(\frac{\Delta Y}{\Delta T}=\frac{-C}{1-C}\)
प्रश्न 29.
कर गुणक धनात्मक गुणक होता है अथवा ऋणात्मक गुणक?
उत्तर:
ऋणात्मक गुणक।
प्रश्न 30.
जब किसी बजट में प्राप्तियाँ तथा व्यय दोनों बराबर होते हैं तो उसे क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सन्तुलित बजट।
प्रश्न 31.
जब बजट में व्यय, प्राप्तियों से अधिक होता है तो उसे क्या कहा जाता है ?
उत्तर:
घाटे का बजट।
प्रश्न 32.
जब बजट में व्यय, प्राप्तियों से कम होता है तो उसे क्या कहा जाता है?
उत्तर:
आधिक्य का बजट।
प्रश्न 33.
सरकार की व्यय एवं कर नीति का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
सरकार व्यय तथा कर नीति से आय के उचित वितरण का प्रयास करती है।
प्रश्न 34.
सरकार के कोई दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 35.
पूँजीगत प्राप्तियों की सबसे महत्त्वपूर्ण मद कौनसी है?
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियों की सबसे महत्त्वपूर्ण मद सार्वजनिक ऋण है।
प्रश्न 36.
घाटे का बजट किसे कहते हैं?
उत्तर:
कुल व्यय जब कुल अनुमानित आय से अधिक होता है तो उसे घाटे का बजट कहते हैं।
प्रश्न 37.
भारत में वित्तीय वर्ष क्या है?
उत्तर:
भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च
प्रश्न 38.
प्रतिगामी कर कौन से होते हैं?
उत्तर:
प्रतिगामी कर वे कर होते हैं, जिनमें आय वृद्धि के साथ-साथ कर की दर घटती है।
प्रश्न 39.
प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार अन्य व्यक्तियों पर हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 40.
अप्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर वे कर होते हैं, जिनका भार अन्य व्यक्तियों पर हस्तान्तरित किया जा सकता है।
प्रश्न 41.
प्रत्यक्ष कर का एक गुण बताइए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर आय तथा सम्पत्ति की असमानता को कम करने में सहायक है।
प्रश्न 42.
अप्रत्यक्ष कर का एक अवगुण बताइए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर प्रगतिशील नहीं होते हैं क्योंकि इनका भार निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है।
प्रश्न 43.
गैर - कर आगम किसे कहते हैं?
उत्तर:
करों के अतिरिक्त अन्य साधनों से प्राप्त आय को गैर-कर आगम कहा जाता है।
प्रश्न 44.
राजस्व प्राप्तियों की एक विशेषता लिखिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियों से सरकार की देनदारियाँ उत्पन्न नहीं होती हैं।
प्रश्न 45.
आनुपातिक कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
आनुपातिक कर उस कर को कहते हैं जो विभिन्न आय पर एक ही दर से लगाया जाता है।
प्रश्न 46.
मूल्यवर्धित कर क्या है?
उत्तर:
मूल्यवर्धित कर एक अप्रत्यक्ष कर है जो वस्तु की मूल्यवृद्धि पर लगाया जाता है।
प्रश्न 47.
करों का प्रयोज्य आय तथा उपभोग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
करों के फलस्वरूप प्रयोज्य आय तथा उपभोग दोनों में कमी आती है।
प्रश्न 48.
सरकारी व्यय गुणक तथा कर गुणक में से कौनसा गुणक छोटा होता है?
उत्तर:
दोनों में से कर गुणक, सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है।
प्रश्न 49.
सार्वजनिक उत्पादन किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तुओं का उत्पादन सीधे सरकार द्वारा किया जाता है तो उसे सार्वजनिक उत्पादन कहते हैं।
प्रश्न 50.
सरकारी बजट का आबंटन कार्य क्या है?
उत्तर:
सरकार द्वारा सार्वजनिक वस्तुओं की आपूर्ति को आबंटन कार्य कहा जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
प्राथमिक घाटे का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक घाटा: यह वह शेष है जो राजकोषीय घाटे से ब्याज अदायगी को घटाने पर प्राप्त होता है अर्थात् सकल प्राथमिक घाटा - सकल राजकोषीय घाटा - निवल ब्याज दायित्व।
प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जिसका भार अन्य व्यक्तियों पर हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है वह प्रत्यक्ष कर है एवं जिसका भार हस्तान्तरित किया जा सकता है, वह अप्रत्यक्ष कर है।
प्रश्न 3.
प्रगतिशील करारोपण से आपका क्या तात्पर्य है? इसका एक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
यह वह कर है जिसमें आय वृद्धि के साथसाथ कर की दर में भी वृद्धि होती है, इसका मुख्य उद्देश्य आय असमानता को कम करना है।
प्रश्न 4.
सरकारी बजट के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
कर की परिभाषा दीजिए।
अथवा
कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
कर एक ऐसा भुगतान है, जो आवश्यक रूप से सरकार को परिवारों, फर्मों तथा संस्थागत इकाइयों द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 6.
राजकोषीय घाटा परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और ऋण ग्रहण को छोड़कर कुल प्राप्तियों का अन्तर है,
अर्थात्
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)
प्रश्न 7.
अप्रत्यक्ष कर की परिभाषा दें।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर उन करों को कहते हैं, जिनका भार कर चुकाने वाले आंशिक रूप से या पूर्ण रूप से दूसरों पर डाल देते हैं जैस बिक्री कर, मनोरंजन कर आदि।
प्रश्न 8.
योजना व्यय की परिभाषा दें।
उत्तर:
योजना अवधि में प्राथमिकताओं के आधार पर सरकारी बजट में प्रतिवर्ष व्यय का प्रावधान किया जाता है, इसे योजना व्यय कहते हैं।
प्रश्न 9.
राजकोषीय घाटे की परिभाषा दीजिये। इसके बढ़ने के क्या प्रभाव होते हैं ?
उत्तर:
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और ऋण ग्रहण को छोड़कर उन प्राप्तियों का अन्तर है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से ऋणों में वृद्धि होती है।
प्रश्न 10.
सरकार द्वारा प्राप्त कर पूँजीगत प्राप्तियाँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा कर प्राप्त करने से सरकार की देयताओं में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है, अतः कर पूँजीगत प्राप्ति नहीं है।
प्रश्न 11.
सरकारी बजट में आगम (राजस्व) घाटे को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
राजस्व घाटा सरकार की राजस्व प्राप्तियों के ऊपर राजस्व व्यय के अधिशेष को बताता है।
प्रश्न 12.
ऋण वसूली को पूँजीगत प्राप्तियाँ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
ऋण वसूली को सरकार की पूँजीगत प्राप्ति माना जाता है; क्योंकि ऋण वसूली से सरकार की देयताओं में वृद्धि होती है।
प्रश्न 13.
कर की परिभाषा दीजिये। प्रत्यक्ष करों और अप्रत्यक्ष करों के दो-दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
कर ऐसा भुगतान है जो आवश्यक रूप.से सरकार को परिवारों, फर्मों या संस्थाओं द्वारा किया जाता है।
प्रत्यक्ष कर = आयकर, निगम कर अप्रत्यक्ष कर = उत्पादन शुल्क, सीमा शुल्क
प्रश्न 14.
ऋणों का पुनर्भुगतान एक पूँजीगत व्यय क्यों है?
उत्तर:
ऋणों का पुनर्भुगतान एक पूँजीगत व्यय होता है, क्योंकि ऋणों का पुनर्भुगतान करने से सरकार की देयताओं में कमी आती है।
प्रश्न 15.
सार्वजनिक वस्तुओं एवं निजी वस्तुओं में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुएँ वे हैं जिनका लाभ सभी को मिलता है, जबकि निजी वस्तुओं का लाभ उस व्यक्ति विशेष को ही मिलता है जो इन्हें क्रय करता है।
प्रश्न 16.
सार्वजनिक प्रावधान का क्या तात्पर्य
उत्तर:
सार्वजनिक प्रावधान का तात्पर्य है कि इसका वित्त प्रबन्धन बजट के माध्यम से होता है तथा बिना किसी प्रत्यक्ष भुगतान के मुफ्त में प्राप्त होता है।
प्रश्न 17.
राजस्व व्यय क्या है?
उत्तर:
राजस्व व्यय के अन्तर्गत सरकार के उन सभी व्ययों को शामिल किया जाता है, जिनसे किसी भी प्रकार की भौतिक या वित्तीय सम्पत्ति का सृजन नहीं किया जाता है।
प्रश्न 18.
पूँजीगत बजट क्या है?
उत्तर:
पूँजीगत बजट सरकार की परिसम्पत्तियों के साथ-साथ दायित्वों से सम्बन्धित राशियों का वह लेखा है, जो पूँजी में होने वाले परिवर्तनों का ध्यान रखता है।
प्रश्न 19.
आनुपातिक करों से स्वायत्त व्यय गुणक कम क्यों होता है ?
उत्तर:
आनुपातिक करों से स्वायत्त व्यय गुणक कम होता है, क्योंकि करों के बाद शेष आय सरकारी व्यय की प्रकृति में गिरावट प्रदर्शित करती है।
प्रश्न 20.
पूँजीगत व्यय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
परिसम्पत्तियों पर होने वाला व्यय पूँजीगत व्यय कहलाता है। यह व्यय भवन, सड़क, पुल निर्माण, पूँजीगत सामान आदि पर किया जाता है।
प्रश्न 21.
सरकारी व्यय का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत किए जाने वाले व्यय से है।
प्रश्न 22.
प्रगतिशील एवं प्रतिगामी कर में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर का भार धनी व्यक्तियों पर अधिक व निर्धनों पर कम पड़ता है, जबकि प्रतिगामी कर का भार धनी लोगों पर कम एवं निर्धन लोगों पर अधिक पड़ता है।
प्रश्न 23.
सरकार के करेतर राजस्व का कोई एक उदाहरण दीजिए। ,
उत्तर:
सरकार द्वारा विभिन्न लोगों, उद्योगों एवं स्थानीय निकायों को ऋण दिया जाता है, इन पर प्राप्त ब्याज करेतर राजस्व है।
प्रश्न 24.
गैर विकासात्मक व्यय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सरकार द्वारा सामान्य सरकारी सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय गैर विकासात्मक व्यय कहलाता है, जैसे-प्रशासन एवं सुरक्षा पर किया व्यय।
प्रश्न 25.
बजटीय घाटे से आपका क्या अभिप्राय
उत्तर:
यह अवधारणा कुल प्राप्तियों और कुल व्यय पर आधारित है। कुल बजट व्यय की, कुल बजट प्राप्तियों पर अधिकता बजटीय. घाटा कहलाता है।
प्रश्न 26.
कर की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 27.
निगम कर एक राजस्व प्राप्ति क्यों है?
उत्तर:
निगम कर एक राजस्व प्राप्ति है। क्योंकि इससे सरकार की देयताओं में वृद्धि नहीं होती और न ही परिसम्पत्तियों में कमी आती है।
प्रश्न 28.
राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यय में एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
राजस्व व्यय से सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है, जबकि पूँजीगत व्यय द्वारा सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।
प्रश्न 29.
पूँजीगत प्राप्तियाँ क्या हैं?
उत्तर:
सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जो दायित्वों का सृजन करती हैं या वित्तीय परिसम्पत्तियों को कम करती हैं, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं।
प्रश्न 30.
करारोपण के कोई दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 31.
प्रत्यक्ष करों के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 32.
अप्रत्यक्ष कर का कोई एक गुण बताइए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर छोटी - छोटी किस्तों में तथा वस्तुओं के मूल्य में शामिल रहते हैं, अत: उपभोक्ता आसानी से इन करों का भुगतान कर देता है।
प्रश्न 33.
अप्रत्यक्ष करों का कोई एक दोष बताइए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष करों को वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य में शामिल किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
प्रश्न 34.
सार्वजनिक व्यय एवं निजी व्यय में कोई एक अन्तर बताइए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय में सार्वजनिक उद्देश्यों जैसे समाज कल्याण आदि की पूर्ति की जाती है, जबकि निजी व्यय द्वारा निजी उद्देश्यों जैसे लाभ कमाना आदि की पूर्ति की जाती है।
प्रश्न 35.
पूँजीगत बजट किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पूँजीगत बजट में सरकार की परिसम्पत्तियों के साथ-साथ दायित्वों से सम्बन्धित राशियों का वह लेखा है, जो पूँजी में होने वाले परिवर्तनों का ध्यान रखता है।
प्रश्न 36.
प्रत्यक्ष करों का कोई एक अवगुण बताइए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष करों का भार सीधे करदाता को वहन करना पड़ता है, अतः इनमें करदाताओं द्वारा कर चोरी की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
प्रश्न 37.
सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 38.
सार्वजनिक व्यय के कोई दो प्रभाव बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 39.
आनुपातिक कर प्रणाली एवं प्रगतिशील कर प्रणाली में अन्तर बताइए।
उत्तर:
आनुपातिक कर प्रणाली में आय के समस्त स्तरों पर एक ही दर से कर लगता है, जबकि प्रगतिशील कर प्रणाली में आय के विभिन्न स्तरों पर भिन्न-भिन्न दर से कर लगाता है।
प्रश्न 40.
एक अच्छी कर प्रणाली के कोई दो गुण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 41.
पूँजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है? पूँजीगत प्राप्तियों की किन्हीं दो मदों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ: सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जो दायित्वों का सृजन करती हैं अथवा वित्तीय परिसम्पत्तियों को कम करती हैं, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती:
पूँजीगत प्राप्तियों की मदें।
प्रश्न 42.
सरकारी घाटे को कम करने के कोई दो उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 43.
योजनागत तथा गैर-योजनागत राजस्व व्यय से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
योजनागत राजस्व व्यय का सम्बन्ध केन्द्रीय योजनाओं और राज्य तथा संघ शासित प्रदेशों की योजनाओं पर किए गए व्यय से होता है, जबकि गैर योजनागत राजस्व व्यय में सरकार द्वारा प्रदत्त विविध सामान्य, सामाजिक और आर्थिक सेवाओं पर व्यय शामिल होते हैं।
प्रश्न 44.
बजट घाटे के प्रभावों को कम करने के चार उपाय लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 45.
प्रगतिशील, प्रतिगामी एवं आनुपातिक करों में अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रगतिशील कर वे होते हैं जिनमें आय वृद्धि के साथ - साथ कर की दर में वृद्धि होती जाती है। प्रतिगामी कर वे कर होते हैं जिनमें आय वृद्धि के साथ-साथ कर की दर में कमी होती जाती है तथा आनुपातिक कर वे होते हैं जिनमें विभिन्न आय स्तरों पर कर की दर समान होती है।
प्रश्न 46.
सरकारी बजट से क्या अभिप्राय है? सरकारी बजट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
सरकारी बजट: सरकार का एक वार्षिक वित्तीय विवरण जिसमें सरकार के अनुमानित प्राप्तियों एवं व्ययों का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं।
प्रश्न 47.
सरकारी बजट के उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 48.
राजस्व प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है? सरकार की राजस्व प्राप्तियों के कोई दो प्रमुख घटकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राजस्व प्राप्तियाँ: सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जिनसे किसी प्रकार का कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है अथवा वित्तीय परिसम्पत्तियों में कोई कमी नहीं होती है, राजस्व प्राप्तियाँ कहलाती हैं। राजस्व प्राप्तियों के दो प्रमुख घटक हैं.-एक करों से प्राप्त आय, दूसरा सरकार के गैर कर स्रोतों से प्राप्त आय जैसे-फीस, जुर्माना, सार्वजनिक उपक्रमों की आय, अनुदान आदि।
प्रश्न 49.
राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
राजस्व व्यय: राजस्व व्यय का सम्बन्ध सरकारी विभागों के सामान्य कार्यों तथा विविध सेवाओं पर किए गए व्यय से है। उदाहरण के लिए सरकार द्वारा ब्याज अदायगी।
पूँजीगत व्यय: ये सरकार के वे व्यय होते हैं जिनके द्वारा भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों का सृजन होता है। उदाहरण के लिए सड़क निर्माण।
प्रश्न 50.
राजस्व घाटा क्या होता है ? इसके क्या प्रभाव होते हैं?
उत्तर:
राजस्व घाटा: राजस्व घाटा सरकार की राजस्व प्राप्तियों के ऊपर राजस्व व्यय के अधिशेष को बताता है अर्थात्
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे के बढ़ने से सरकार पर ऋणों का बोझ बढ़ेगा जिस कारण सरकार के समाज कल्याण कार्यक्रमों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 51.
अन्तर बताइए(1) प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर (2) राजस्व प्राप्तियाँ एवं पूँजीगत प्राप्तियाँ।
उत्तर:
प्रश्न 52.
कर क्या है ? इसकी दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कर - कर एक ऐसा भुगतान है, जो आवश्यक रूप से सरकार को परिवारों, फर्मों तथा संस्थागत इकाइयों द्वारा दिया जाता है।
इसकी दो प्रमुख विशेषताएँ:
प्रश्न 53.
प्रत्यक्ष कर के चार-चार गुण-दोष बताइये।
अथवा
प्रत्यक्ष कर को परिभाषित कीजिए। इसके गुणदोष स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर: ये वे कर हैं, जिनका भार अन्य व्यक्ति पर हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है।
प्रत्यक्ष कर के गुण:
प्रत्यक्ष कर के दोष:
प्रश्न 54.
विकासशील देशों में राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 55.
सरकारी बजट की परिभाषा दीजिये। इसके किन्हीं तीन उद्देश्यों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
सरकारी बजट: बजट सरकार का एक वार्षिक वित्तीय विवरण है, जिसमें सरकार के अनुमानित प्राप्तियों एवं व्ययों का विवरण प्रस्तुत किया जाता है। इसके तीन प्रमुख उद्देश्य हैं
प्रश्न 56.
सरकारी आगम को आगम प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में वर्गीकृत करने का क्या आधार है? प्रत्येक का एक - एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
राजस्व (आगम) प्राप्तियों एवं पूँजीगत प्राप्तियों में वर्गीकरण का आधार सरकार की पुनर्भुगतान की देयताएँ हैं। राजस्व आगम में सरकार की देयताओं में वृद्धि नहीं होती है, जबकि पूँजीगत प्राप्तियों से सरकार की देयताओं में वृद्धि होती है।
राजस्व प्राप्ति → करों से प्राप्त आय पूँजीगत प्राप्ति →ऋण
प्रश्न 57.
सरकार के 'विकास व्यय' एवं 'गैर विकास व्यय' को समझाइये। प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिये।
अथवा
विकासात्मक एवं गैर - विकासात्मक व्यय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय: ऐसा व्यय जो देश के सामाजिक और आर्थिक विकास से सीधा सम्बन्ध रखता है। जैसे - कृषि उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक कल्याण, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि पर किया गया व्यय।
गैर - विकासात्मक व्यय - आवश्यक सामान्य सरकारी सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय गैर-विकासात्मक व्यय कहलाता है। जैसे - सार्वजनिक प्रशासन और सुरक्षा पर किया जाने वाला व्यय।
प्रश्न 58.
एक सरकारी बजट में प्राथमिक घाटे की धारणा समझाइये। यह धारणा क्या संकेत करती है?
उत्तर:
राजकोषीय: राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगी को घटाने से प्राप्त घाटा प्राथमिक घाटा कहलाता है अर्थात्
सकल प्राथमिक घाटा = सकल राजकोषीय घाटा - निवल व्याज दायित्व वर्तमान व्यय के राजस्व से अधिक होने के कारण होने वाले ऋण ग्रहण के आकलन के लिए हम प्राथमिक घाटे का परिकलन करते हैं।
प्रश्न 59.
संतुलित बजट, बचत बजट एवं घाटे के बजट में क्या अन्तर है?
उत्तर:
जब सरकार के बजट में कुल व्यय, कुल प्राप्तियों (आय) के बराबर होता है तो वह सन्तुलित बजट होता है। जब बजट में सरकार की आय, कुल व्यय से अधिक होती है तो यह बचत का बजट होता है। जब बजट में सरकार का व्यय, आय से अधिक होता है तो यह घाटे का बजट कहलाता है।
प्रश्न 60.
सरकार द्वारा संचालित किए जाने वाले मुख्य कार्य कौन - कौन से हैं?
उत्तर:
सरकार मुख्य रूप से निम्न कार्यों का संचालन करती है।
प्रश्न 61.
सार्वजनिक वस्तु तथा निजी वस्तु में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 62.
प्रगतिशील कर एवं प्रतिगामी कर में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 63.
केन्द्र सरकार के गैर-कर राजस्व में किन मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर:
केन्द्र सरकार के गैर: कर राजस्व में मुख्य रूप से, केन्द्र सरकार द्वारा जारी ऋण से व्याज प्राप्तियाँ, सरकार के निवेश से प्राप्त लाभांश और सरकार द्वारा प्रदान की गई सेवाओं से प्राप्त शुल्क और अन्य प्राप्तियों आदि को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत विदेशों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा प्रदान किए जाने वाले नकद सहायता अनुदान भी शामिल किए जाते हैं।
प्रश्न 64.
राजस्व व्यय से आपका क्या अभिप्राय है? इसमें किन मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर:
परिसम्पत्तियों के अतिरिक्त अन्य मदों पर किया जाने वाला व्यय राजस्व व्यय कहलाता है। इसमें वेतन का भुगतान, सम्पत्ति की देखभाल, लोगों की निःशुल्क सेवाएँ, व्याज अदायगी आदि व्ययों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 65.
पूँजीगत व्यय में मुख्य रूप से किन मदों को शामिल किया जाता है?
उत्तर:
पूंजीगत व्यय के अन्तर्गत भूमि अधिग्रहण, भवन निर्माण, मशीनरी, उपक्रम, शेयरों में निवेश और केन्द्र सरकार के द्वारा राज्य सरकारों एवं संघ शासित प्रदेशों, सार्वजनिक उपक्रमों तथा अन्य पक्षों को प्रदान किए गए ऋण और अग्निम संबंधी व्ययों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 66.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं?
उत्तर:
यह अवधारणा कुल प्राप्तियों और कुल व्यय पर आधारित है। कुल बजट व्यय की, कुल बजट प्राप्तियों पर अधिकता बजटीय घाटा कहलाता है। इसे निम्न प्रकार व्यक्त करेंगे बजटीय घाटा = कुल बजट व्यय - कुल बजट प्राप्तियाँ
प्रश्न 67.
यदि किसी वर्ष केन्द्रीय बजट में कुल व्यय 85,000 करोड़ रुपये तथा कुल प्राप्तियाँ 70,000 करोड़ रुपये हैं तो बजटीय घाटे की गणना कीजिए।
उत्तर:
बजटीय घाटा = कुल व्यय - कुल प्राप्तियाँ
. = 85,000 - 70,000
= 15,000 करोड़ रुपये
प्रश्न 68.
प्रत्यक्ष कर से आप क्या समझते हैं ? प्रत्यक्ष कर का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर उस कर को कहते हैं, जो उसी व्यक्ति द्वारा अदा किया जाता है जिस पर वह कानूनी रूप से लगाया जाता है अर्थात् प्रत्यक्ष कर के भार को अन्य व्यक्तियों पर हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता है। जैसेआयकर, निगम कर, उपहार कर आदि।
प्रश्न 69.
अप्रत्यक्ष कर से आप क्या समझते हैं? अप्रत्यक्ष कर का कोई एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जिसे शुरू से अदा करने वाला, कर के भार को दूसरों पर हस्तान्तरित करने में सफल हो जाता है। इसमें कर अदा करने की देनदारी एक व्यक्ति पर पड़ती है परन्तु कर का भार दसरे व्यक्ति पर पड़ता है। जैसे-उत्पादन शल्क, सीमा शल्क आदि।
प्रश्न 70.
विकासात्मक व्यय किसे कहते हैं?
उत्तर:
विकासात्मक व्यय उस व्यय को कहते हैं जो देश के विकास के कार्यों पर किया जाता है। कृषि, औद्योगिक विकास, ग्रामीण विकास आदि पर किया जाने वाला व्यय विकासात्मक व्यय कहलाता है।
प्रश्न 71.
सार्वजनिक वस्तु की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 72.
बजट घाटे के फलस्वरूप किस प्रकार कीमतों में वृद्धि होती है?
उत्तर:
जब सरकार अपने व्यय में वृद्धि करती है तथा करों को कम करती है तब समग्र मांग में वृद्धि होती है। ऐसी अवस्था में यह संभव है कि प्रचलित कीमतों पर बढ़ती हुई समग्र मांग के अनुसार वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि न कर सके, ऐसी स्थिति में कीमतों में वृद्धि होती है।
प्रश्न 73.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 हो तथा सरकारी व्यय में 100 करोड़ की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय में कितनी वृद्धि होगी?
उत्तर:
सन्तुलित आय में वृद्धि को निम्न सूत्र द्वारा निकालेंगे
\(\Delta Y=\frac{1}{1-C} \times \Delta G\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.8} \times 100 \\ &=\frac{1}{0.2} \times 100 \end{aligned}\)
= 5 x 100
= 500 करोड़ रुपये
प्रश्न 74.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है तथा करों में वृद्धि 50 करोड़ होने पर सन्तुलित आय में कितनी कमी होगी?
उत्तर:
सन्तुलित आय में कमी को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करेंगे
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{T}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{-0.8}{1-0.8} \times 50 \\ &=\frac{-0.8}{0.2} \times 50 \end{aligned}\)
= - 0.4 x 50
= - 200 करोड़ रुपये
प्रश्न 75.
हस्तान्तरण भुगतान क्या है?
उत्तर:
हस्तान्तरण भुगतान सरकार के वे खर्चे हैं जिसके बदले सरकार को वस्तुओं तथा सेवाओं का हस्तान्तरण नहीं होता। उदाहरण हेतु वृद्धावस्था पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज आदि पर किया गया खर्च हस्तान्तरण भुगतान है।
प्रश्न 76.
घरेलू ऋण की अधिक चिन्ता क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर:
घरेलू ऋण की चिन्ता इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इन ऋणों का भुगतान देश में ही किया जाता है। इनसे यद्यपि संसाधनों का हस्तान्तरण तो होता है परन्तु क्रय शक्ति पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 77.
राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं? इसका मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आगम तथा व्यय नीति से है। इस नीति से सरकार अपने व्ययों तथा करों में परिवर्तन करके सरकारी उत्पाद तथा आय में वृद्धि का प्रयत्न करती है और अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव में स्थिरता लाने का प्रयत्न करती है।
प्रश्न 78.
राजस्व बजट और पूँजीगत बजट में क्या अन्तर है?
उत्तर:
राजस्व बजट में कर राजस्व और गैर: कर राजस्व प्राप्तियाँ और इससे संबंधित खर्चे शामिल हैं। राजस्व बजट में वे मदें आती हैं जो आवर्ती प्रकार की हैं और जिन्हें चुकाना नहीं पड़ता। जबकि पूँजीगत बजट में सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ और पूँजीगत खर्च आते हैं। इनसे दायित्वों में वृद्धि होती है।
प्रश्न 79.
सरकार के करेतर राजस्व के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 80.
बजटीय घाटा किसे कहते हैं ? इससे किस बात का पता चलता है ?
उत्तर:
बजटीय घाटा: यह अवधारणा कुल प्राप्तियों और कुल व्यय पर आधारित है। कुल बजट व्यय की, कुल बजट प्राप्तियों पर अधिकता बजटीय घाटा कहलाता है अर्थात् बजटीय घाटा = कुल बजट व्यय - कुल बजट प्राप्तियाँ
बजटीय घाटे से पता चलता है कि सरकार को कुल आगम और कुल व्यय के अन्तर को पूरा करने के लिए उधार लेना है या परिसम्पत्तियों की बिक्री करनी है।
प्रश्न 81.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर में क्या अन्तर
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर |
अप्रत्यक्ष कर |
1. यह कर जिस व्यक्कि पर लगाये जाते हैं वही इन करों का भुगतान करता है। इन करों को टाला नहीं जा सकता। |
1. जिस व्यक्ति को यह कर चुकाना पड़ता है वह इसे दूसरे व्यक्ति पर डाल सकता है। |
2. ये कर प्रगतिशील होते हैं। |
2. ये कर प्रगतिशील नहीं होते। |
3. आय कर, सम्पत्ति कर, निगम कर, इन करों के उदाहरण हैं। |
3. बिक्री पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण हैं। |
प्रश्न 82.
राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यंय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्व व्यय | पूँजीगत व्यंय |
1. यह कर जिस व्यक्कि पर लगाये जाते हैं वही इन करों का भुगतान करता है। इन करों को टाला नहीं जा सकता। |
1. जिस व्यक्ति को यह कर चुकाना पड़ता है वह इसे दूसरे व्यक्ति पर डाल सकता है। |
2. ये कर प्रगतिशील होते हैं। |
2. ये कर प्रगतिशील नहीं होते। |
3. आय कर, सम्पत्ति कर, निगम कर, इन करों के उदाहरण हैं। |
3. बिक्री पर उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण हैं। |
4. राजस्व व्यय गैर-विकासात्मक श्रेणी में आते हैं। |
4. पूँजीगत व्यय विकासात्मक श्रेणी में आते हैं। |
प्रश्न 83.
सरकारी अथवा सार्वजनिक व्यय से आप क्या समझते हैं ? सरकारी व्यय के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
सरकारी व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा एक वित्तीय वर्ष में विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत किये जाने वाले अनुमानित व्यय से है।
सरकारी व्यय के उद्देश्य निम्नलिखित है:
प्रश्न 84.
पूँजीगत लेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पूँजीगत लेखा: पूँजीगत बजट अथवा लेखा केन्द्रीय सरकार की परिसम्पत्तियों के साथ-साथ दायित्वों से संबंधित राशियों का वह लेखा है, जो पूँजी में होने वाले परिवर्तनों का ध्यान रखता है। इसके अन्तर्गत सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ एवं पूँजीगत व्यय शामिल होते हैं।
प्रश्न 85.
केन्द्र सरकार के किन्हीं दो करों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 86.
सरकार की गैर-कर आय को उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
गैर - कर आय: करों के अतिरिक्त ऐसे अनेक साधन हैं जिनसे सरकार को आय प्राप्त होती है, इन्हें गैर-कर आय स्रोत कहा जाता है। गैर-कर आय के अन्तर्गत राजकीय सम्पत्ति तथा उद्योगों से प्राप्त आय, प्रशासन संबंधी आय, फीस, जुर्माना, दण्ड आदि, उपहार एवं अनुदान, वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय आदि को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 87.
सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ एवं पूँजीगत व्यय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूँजीगत प्राप्तियाँ: सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जो दायित्वों का सृजन करती है अथवा वित्तीय परिसम्पत्तियों को कम करती है, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती है।
पूँजीगत व्यय: ये सरकार के वे व्यय होते हैं जिनके द्वारा भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों का सृजन होता है उदाहरण के लिए सड़क निर्माण।
प्रश्न 88.
सार्वजनिक व्यय के महत्त्व के बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 89.
सार्वजनिक व्यय के द्वारा एकाधिकारी प्रवृत्ति पर किस प्रकार प्रतिबन्ध लगता है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रवृत्ति को रोकने हेतु सरकार मूल्यों को नियन्त्रित करती है ताकि निजी उद्योगपति नियन्त्रित मूल्य से अधिक कीमत न ले सकें। इसके अतिरिक्त सरकार उस क्षेत्र में सार्वजनिक व्यय के माध्यम से स्वयं लोक उपक्रम की स्थापना करती है तथा निजी उद्योगपतियों से प्रतिस्पर्धा करती है, परिणामस्वरूप एकाधिकारी प्रवृत्ति पर रोक लगती है।
प्रश्न 90.
सार्वजनिक व्यय व निजी व्यय में अन्तर बताइये।
उत्तर:
आधार |
सार्वंजनिक व्यय |
निजी व्यय |
उद्देश्य |
सार्वजनिक व्यय सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है। |
निजी व्यय निजी उद्देश्यों की पूर्ति |
व्यय सीमा |
सार्वजनिक व्यय राज्य की आय पर निर्भर नहीं करता है। |
के लिए किया जाता है। |
लाभ |
सार्वजनिक व्यय में सम्पूर्ण समाज लाभान्वित होता है। |
निजी व्यय निजी आय पर निर्भर करता है। |
कार्यक्षेत्र |
सार्वजनिक व्यय का कार्यक्षेत्र विस्तृत एवं व्यापक होता है। |
निजी व्यय से निजी व्यक्कि का परिवार लाभान्वित होता है। |
प्रश्न 91.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में निवेश 200 करोड़ रुपये, सरकार द्वारा क्रय की गई मात्रा 100 करोड़, एकमुश्त कर 160 करोड़, अन्तरण आय 120 करोड़ रुपये हो तथा उपभोग = 140 + 0.5 Y हो तो सन्तुलित आय का स्तर ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलित आय के स्तर को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \bar{T} R+I+G)\)
I = 200, G = 100, T = 160, TR = 120, C = 140,
C or MPC = 0.5
अतः
\(Y=\frac{1}{1-0.5}(140-0.5 \times 160+0.5 \times 120+200+100) \)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{0.5}(140-80+60+200+100) \\ &=\frac{1}{0.5} \times 420 \end{aligned}\)
= 2 x 420
= 840 करोड़
प्रश्न 92.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में निवेश 100 करोड़ रु., सरकार द्वारा क्रय की गई मात्रा 50 करोड़ रु., एकमुश्त कर 80 करोड़, अन्तरण आय 60 करोड़ रु. हो तथा उपभोग - 70 + 0.5 Y हो तो सन्तुलित आय का स्तर ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलित आय के स्तर को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
प्रश्नानुसार,
I = 100,G= 50. T= 80, TR = 60. C = 70, C or MPC = 0.5 है
अतः
\(\begin{aligned} Y &=\frac{1}{1-0.5}(70-0.5 \times 80+0.5 \times 60+100+50) \\ &=\frac{1}{05}(70-40+30+100+50) \end{aligned}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{0.5}(70-40+30+100+50) \\ &=\frac{1}{0.5} \times 210 \end{aligned}\)
= 2 x 210 = 420 करोड़ रु.
प्रश्न 93.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में उपभोग (C)-3200 + .75Y हो तथा सरकारी व्यय में 150 करोड़ रुपये की वृद्धि की जाए तो सरकारी व्यय गुणक . ज्ञात कीजिए तथा आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
\(=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=4\)
आय पर प्रभाव निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करेंगे
\(\begin{aligned} \Delta \mathrm{Y} &=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{G} \\ \Delta \mathrm{Y} &=\frac{1}{1-0.75} \times 150 \\ &=\frac{1}{0.25} \times 150 \end{aligned}\)
= 4 x 150
= 600 करोड़ रुपये अतः आय 600 करोड़ रुपये हो जाएगी।
प्रश्न 94.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में उपभोग (C) = 140+ 0.81 है तथा यदि एकमुश्त कर 80 करोड़ रुपये हो तो कर गुणक की गणना कीजिए तथा सन्तुलित आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कर गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है
\(\begin{aligned} \frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}} &=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \\ &=\frac{-0.8}{1-0.8}=\frac{-0.8}{0.2}=-4 \end{aligned}\)
आय पर प्रभाव निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करेंगे
\(\begin{aligned} \Delta \mathrm{Y} &=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{T} \\ \Delta \mathrm{Y} &=\frac{-0.8}{1-0.8} \times 80 \\ &=\frac{-0.8}{0.2} \times 80 \end{aligned}\)
= - 4 × 20
= - 320
करोड़ रुपये अतः सन्तुलित आय में 320 करोड़ रुपये की कमी आएगी।
प्रश्न 95.
एक अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में निम्न सूचनाएँ दी गई हैं। इनकी सहायता से आय के सन्तुलन स्तर की गणना कीजिए।
निवेश (1) = 60 करोड़ रुपये, सरकारी व्यय (G) = 100 करोड़ रुपये, अन्तरण (TR) = 200 करोड़ रुपये तथा उपभोग फलन 40+ 0.8 है।
उत्तर:
आय का सन्तुलन स्तर निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है
\(\begin{aligned} Y &=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G) \\ &=\frac{1}{1-0.8}(40+0.8 \times 200+60+100) \\ &=\frac{1}{0.2}(40+160+60+100) \end{aligned}\)
= 5 x 360 = 1800 करोड़ रु.
प्रश्न 96.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.80 है तथा सरकारी क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो सन्तुलित आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलित आय पर प्रभाव सरकारी व्यय गुणक द्वारा ज्ञात किया जाएगा।
\(\begin{aligned} \Delta \mathrm{Y} &=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{G} \\ &=\frac{1}{1-0.8} \times 30 \\ &=\frac{1}{0.2} \times 30 \end{aligned}\)
= 5 x 30 = 150
अतः सरकारी क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि करने पर सन्तुलित आय में 150 प्रतिशत वृद्धि होगी।
प्रश्न 97.
संक्षेप में बजट के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरकार बजट सम्बन्धी नीति से देश के उत्पादन में वृद्धि कर सकती है। सरकार इससे आय एवं सम्पत्ति की असमानता को दूर करने का प्रयास करती है। बजट से कृषि एवं विभिन्न उद्योगों को सहायता प्रदान की जाती है। बजट के माध्यम से रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। बजट के माध्यम से सामाजिक कल्याण संबंधी उद्देश्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 98.
किसी अर्थव्यवस्था की आर्थिक स्थिरता बनाने में बजट किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी की स्थिति है तो सरकार घाटे का बजट बनाती है जिससे अर्थव्यवस्था में माँग में वृद्धि होती है तथा मंदी दूर करने में सहायता मिलती है। इसके विपरीत यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थिति है तो सरकार आधिक्य का बजट बनाती है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति कम होती है तथा कीमतों को कम करने में मदद मिलती है।
प्रश्न 99.
कर राजस्व और गैर-कर राजस्व के दो-दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
कर राजस्व के उदाहरण:
गैर - कर राजस्व के उदाहरण:
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा मुख्य रूप से किन कार्यों का संचालन किया जाता है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में सरकार बजटीय उपायों द्वारा निम्न कार्यों का संचालन करती है
(1) सरकार का आबंटन कार्य: कुछ वस्तुएँ, जिन्हें सार्वजनिक वस्तुएँ कहते हैं (जैसे - राष्ट्रीय प्रतिरक्षा, सड़क, लोक प्रशासन) निजी वस्तुओं (जैसे - कपड़े, कार, खाद्य पदार्थ) से भिन्न होती हैं और इनकी प्राप्ति बाजार तंत्र से नहीं हो सकती है अर्थात् वैयक्तिक उपभोक्ताओं और उत्पादकों के बीच संव्यवहार से नहीं हो सकता है। इसके लिए सरकार की आवश्यकता होती है। इसे ही नियतन फलन कहते हैं। अतः सार्वजनिक वस्तुओं एवं सेवाओं की पूर्ति सरकार द्वारा की जाती है। सरकार द्वारा सार्वजनिक वस्तुओं की आपूर्ति को आबंटन कार्य कहा।
(2) पुन: आबंटन कार्य: सरकार अपनी कर व व्यय नीति के द्वारा आय को इस प्रकार से वितरण करने का प्रयास करती है जो कि समाज के द्वारा 'उचित' माना जाता है। सरकार अतरण अदायगी करक और कर सकलन करके परिवार के वैयक्तिक प्रयोज्य आय पर प्रभाव डालती है। अतः सरकार आय के वितरण को बदल सकती है। इसे वितरण फलन कहते हैं। सरकार धनी व्यक्तियों पर कर लगाकर एवं निर्धनों पर व्यय करके आय असमानताओं को कम करने का प्रयास करती है।
(3) आर्थिक स्थिरीकरण: अर्थव्यवस्था में उच्चावचन की भारी प्रवृत्ति पायी जाती है और बेरोजगारी अथवा मुद्रास्फीति की स्थिति भी दीर्घकाल तक रह सकती है। अर्थव्यवस्था में रोजगार और कीमतों का कुल स्तर समस्त माँग के स्तर पर निर्भर करता है, जो कि लाखों निजी आर्थिक एजेंटों के सरकार से पृथक् व्यय निर्णयों का फलन होता है। ये सभी निर्णय अपने आप में कई कारकों जैसे - आय और साख की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं। किसी भी समयावधि में व्यय का स्तर अर्थव्यवस्था के श्रम और अन्य संसाधनों के पूर्ण उपयोग के लिए पर्याप्त नहीं भी हो सकते हैं।
चूंकि मजदूरी और कीमतें नीचे आकर नम्य हो जाती हैं (एक स्तर के नीचे नहीं गिरती हैं) इसीलिए रोजगार की स्वतः पुनर्स्थापना नहीं हो पाती है। अतः समस्त मांग में वृद्धि करने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, ऐसा समय भी हो सकता है, जब उच्च रोजगार की दशाओं में उपलब्ध निर्गत से व्यय की मात्रा में वृद्धि हो और इसके कारण मुद्रास्फीति उत्पन्न हो। ऐसी स्थिति में, माँग में कमी करने के लिए प्रतिबंधात्मक शर्तों की आवश्यकता होती है। इनसे घरेलू अर्थव्यवस्था के स्थिरीकरण की आवश्यकताओं की रचना होती है।
प्रश्न 2.
बजट से आप क्या समझते हैं ? बजट के प्रमुख घटकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बजट: बजट सरकार का वह वार्षिक वित्तीय विवरण है जिसमें सरकार की अनुमानित प्राप्तियों तथा व्ययों का विवरण दर्शाया जाता है। अत: बजट सरकार का वह वार्षिक वित्तीय विवरण है, जिसमें सरकार विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनुमानित प्राप्तियों तथा व्ययों को दर्शाती है।
बजट के प्रमुख घटक बजट के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं।
(1) राजस्व बजट।
(2) पूँजीगत बजट।
एक बजट के विभिन्न घटकों को निम्न चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) राजस्व बजट: राजस्व बजट में सरकार की चालू प्राप्तियों और उन प्राप्तियों से किए जाने वाले व्यय के विवरण को दर्शाता है। राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियों तथा राजस्व व्यय को शामिल किया जाता है।
(i) राजस्व प्राप्तियाँ: राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ हैं जो गैर - प्रतिदेय हैं अर्थात् इन्हें पाने के लिए सरकार पर पुनः दावा नहीं किया जा सकता है। राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है - कर राजस्व तथा गैर - कर राजस्व। कर राजस्व में सरकार की करों से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है, यह सरकारी अधिकारी द्वारा लगाया गया अनिवार्य अंशदान है।
सामान्यतः कर दो प्रकार के होते हैं - प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर। गैर - कर राजस्व सरकार की वे प्राप्तियाँ हैं जो कर के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से प्राप्त होती हैं जैसे राजकीय सम्पत्ति से प्राप्त आय, उपहार एवं जुर्माना, वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय मूल्य, शुल्क या फास, महसूल, पत्रमुद्रा निर्गमन आदि।
(ii) राजस्व व्यय: राजस्व व्यय का सम्बन्ध सरकारी विभागों के सामान्य कार्यों तथा विविध सेवाओं, सरकार द्वारा उपगत ऋण ब्याज अदायगी, राज्य सरकारों और अन्य दलों को प्रदत्त अनुदानों आदि. पर किए गए व्यय से होता है। बजटीय दस्तावेज में कुल राजस्व व्यय को योजनागत और गैर-योजनागत व्यय मदों में बाँटा जाता है।
(2) पूँजीगत बजट: पूँजीगत बजट में केन्द्रीय सरकार की परिसम्पत्तियों के साथ - साथ दायित्वों से सम्बन्धित राशियों का वह लेखा है, जो पूँजी में होने वाले परिवर्तनों का ध्यान रखता है। इसके अन्तर्गत सरकार की पूँजीगत प्राप्तियाँ एवं पूँजीगत व्यय शामिल होते हैं।
(i) पूँजीगत प्राप्तियाँ: सरकार की वे सभी प्राप्तियाँ जो दायित्वों में वृद्धि करती हैं या वित्तीय परिसम्पत्तियों को कम करती हैं, पूँजीगत प्राप्तियाँ कहलाती हैं। पूँजीगत प्राप्तियों की सबसे महत्त्वपूर्ण मद सार्वजनिक ऋण है।
(ii) पूँजीगत व्यय: ये सरकार के वे व्यय होते हैं जिसके परिणामस्वरूप सरकार के दायित्वों में कमी होती है या भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों का सृजन होता है जैसे सड़क निर्माण, भवन निर्माण, पुल निर्माण आदि। पूँजीगत व्यय को बजट दस्तावेज में योजनागत तथा गैर-योजनागत व्यय के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
प्रश्न 3.
भारत सरकार के राजस्व बजट एवं इसके प्रमुख घटकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्व बजट:
भारत सरकार के राजस्व बजट में सरकार की चालू प्राप्तियों और उन प्राप्तियों से किए जाने वाले व्यय के विवरण को दर्शाया जाता है। राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियों तथा राजस्व व्यय को शामिल किया जाता है।
(1) राजस्व प्राप्तियाँ: राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वह प्राप्तियाँ हैं जो गैर - प्रतिदेय हैं अर्थात् इन्हें पाने के लिए सरकार पर पुनः दावा नहीं किया जा सकता है अथवा इन प्राप्तियों से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती है। राजस्व प्राप्तियों को कर और गैर-कर राजस्व में विभक्त किया जाता है। कर राजस्व में कर की प्राप्तियाँ और केन्द्र सरकार द्वारा लगाए गए अन्य शुल्क शामिल होते हैं।
कर राजस्व जो कि राजस्व प्राप्तियों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है, में मुख्य रूप से प्रत्यक्ष कर जिसका बोझ प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति (व्यक्तिगत आय का) और फर्म (निगम कर) पर पड़ता है तथा अप्रत्यक्ष कर जैसेवस्तु एवं सेवाकर, सीमा शुल्क (भारत में आयात किये जाने वाली अथवा भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाए गए कर) और सेवा शुल्क शामिल होते हैं। अन्य प्रत्यक्ष करों जैसे, सम्पत्ति कर, उपहार कर और संपदा शुल्क (अब निरस्त) आदि प्रमुख हैं।
केन्द्र सरकार के गैर - कर राजस्व में मुख्य रूप से, केन्द्र सरकार द्वारा जारी ऋण से व्याज प्राप्तियाँ, सरकार के निवेश से प्राप्त लाभांश और लाभ तथा सरकार द्वारा प्रदान की गयी सेवाओं से प्राप्त शुल्क और अन्य प्राप्तियाँ आदि शामिल हैं। इसके अन्तर्गत विदेशों और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा प्रदान किये जाने वाले नकद सहायता अनुदान भी शामिल किए जाते हैं। राजस्व प्राप्ति के आकलन में वित्त विधेयक में किये गए कर प्रस्ताव के प्रभावों पर विचार किया जाता है।
(2) राजस्व व्यय: राजस्व व्यय केन्द्र सरकार का भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों के सृजन के अतिरिक्त अन्य उद्देश्यों के लिए किया गया व्यय है। राजस्व व्यय का सम्बन्ध सरकारी विभागों के सामान्य कार्यों तथा विविध सेवाओं, सरकार द्वारा उपगत ऋण ब्याज अदायगी, राज्य सरकारों और अन्य दलों को प्रदत्त अनुदानों (यद्यपि कुछ अनुदानों से परिसम्पत्तियों का सृजन भी हो सकता है) आदि पर किये गए व्यय से होता है। बजटीय दस्तावेज में कुल राजस्व व्यय को योजनागत और गैर-योजनागत व्यय मदों में बाँटा जाता है।
योजनागत राजस्वगत व्यय का सम्बन्ध केन्द्रीय योजनाओं और राज्यों तथा संघ - शासित प्रदेशों की योजना के लिए केन्द्रीय सहायता से है। गैर - योजनागत व्यय राजस्व व्यय का अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण घटक है, जिसमें सरकार द्वारा प्रदत्त सामान्य, आर्थिक और सामाजिक सेवाओं पर व्यापक व्यय शामिल होते हैं। गैर - योजनागत व्यय के प्रमुख मदों में ब्याज अदायगी, प्रतिरक्षा सेवाएँ, उपदान, वेतन और पेंशन आते हैं। बाजार ऋणों, बाह्य ऋणों और विविध आरक्षित निधियों पर ब्याज अदायगी गैर - योजनागत राजस्व व्यय का सबसे बड़ा घटक होता है। प्रतिरक्षा व्यय गैर-योजनागत व्यय का दूसरा सबसे बड़ा घटक है और इस अर्थ में यह प्रतिबद्ध व्यय है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित इस मद में अधिक कटौती का क्षेत्र अत्यल्प है।
उपदान एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत उपकरण है, जिसका उद्देश्य कल्याण में वृद्धि करना है। सार्वजनिक वस्तुओं और शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी सेवाओं का अल्पमूल्यन के माध्यम से अव्यक्त उपदान प्रदान करने के अतिरिक्त सरकार निर्यात, ऋण पर ब्याज, खाद्य पदार्थ और उर्वरकों जैसे मदों पर व्यक्त रूप से भी उपदान प्रदान करती है।
प्रश्न 4.
सरकारी बजट में घाटे की माप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब सरकार राजस्व प्राप्ति से अधिक व्यय करती है तो इस स्थिति को बजटीय घाटा कहा जाता है। इस घाटे की पूर्ति के लिए सरकार कई उपाय करती है। सरकारी बजट के प्रमुख घाटे निम्न प्रकार हैं।
(1) राजस्व घाटा: राजस्व घाटा सरकार की राजस्व प्राप्तियों के ऊपर राजस्व व्यय के अधिशेष को बताता है अर्थात् राजस्व घाटा - राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ राजस्व घाटे में केवल उन्हीं लेन-देनों को शामिल किया जाता है, जिनसे सरकार के वर्तमान आय और व्यय पर प्रभाव पड़ा है। जब सरकार को राजस्व घाटा प्राप्त होता है, तो इससे संकेत मिलता है कि सरकार निर्वचत कर रही है और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की बचतों का उपयोग अपने उपभोग सम्बन्धी व्यय के कुछ हिस्सों को पूरा करने के लिए कर रही है।
इस स्थिति में, सरकार को न केवल अपने निवेश के लिए अपितु अपने उपभोग सम्बधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी ऋण - ग्रहण करना पड़ेगा। इससे ऋणों और ब्याज दायित्वों का निर्माण होगा और सरकार को अन्ततोगत्वा अपने व्यय में भी कटौती करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। चूँकि राजस्व व्यय का एक बड़ा भाग व्यय के लिए प्रतिबद्ध होता है, इसीलिए इसमें कटौती नहीं की जाएगी। बहुधा सरकार उत्पादक पूँजीगत व्यय अथवा कल्याण सम्बन्धी व्यय में कटौती करती है। इसके परिणामस्वरूप विकास की गति धीमी होती है और कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(2) राजकोषीय घाटा: राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और ऋण-ग्रहण को छोड़कर कुल प्राप्तियों का अन्तर है अर्थात् सकल राजकोषीय घाटा - कुल व्यय - (राजस्व प्राप्तियाँ + गैर - ऋण से सृजित पूँजीगत प्राप्तियाँ) गैर - ऋण से सजित पुँजीगत प्राप्तियाँ ऐसी प्राप्तियाँ हैं, जो ऋण-ग्रहण के अन्तर्गत नहीं आती हैं, इसीलिए इससे ऋण में वृद्धि नहीं होती है। इसके उदाहरण हैंऋणों की वसूली और सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री से प्राप्त राशि। राजकोषीय घाटे का वित्त पोषण ऋण - ग्रहण के द्वारा ही किया जायेगा।
अतः इससे सभी स्रोतों से सरकार के ऋण - ग्रहण सम्बन्धी आवश्यकताओं का पता चलता है। वित्तीय पक्ष से सकल राजकोषीय घाटा - निवल घरेलू ऋण ग्रहण + भारतीय रिजर्व बैंक से ऋण-ग्रहण + विदेशों से ऋणग्रहण। निवल घरेलू ऋण ग्रहण के अन्तर्गत ऋण उपकरणों (उदाहरणार्थ, विविध लघु बचत योजनाएं) के माध्यम से सीधे जनता से प्राप्त ऋण और वैधानिक तरलता अनुपात (एस.एल.आर.) के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से व्यावसायिक बैंकों से प्राप्त ऋण आते हैं।
सकल राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था के स्थायित्व और सार्वजनिक क्षेत्र की सुदृढ़ वित्तीय व्यवस्था के लिए एक निर्णायक चर है। इस प्रकार सकल राजकोषीय घाटा को मापा जा सकता है। जैसा कि ऊपर देखा गया है कि राजस्व घाटा राजकोषीय घाटा का एक भाग है (राजकोषीय घाटा - राजस्व घाटा + पूँजीगत व्यय - गैर-ऋण से सजित पूँजीगत प्राप्तियाँ)। राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे का एक बड़ा अंश यह दर्शाता है कि उधार का एक बड़ा हिस्सा उपभोग व्यय के लिए उपयोग किया जाता है न कि निवेश के लिए।
(3) प्राथमिक घाटा: ध्यातव्य है कि सरकार की ऋण ग्रहण आवश्यकताओं में संचित ऋण पर दायित्व शामिल होते हैं। प्राथमिक घाटे के माप का लक्ष्य वर्तमान राजकोषीय असंतुलन पर प्रकाश डालना है। वर्तमान व्यय के राजस्व से अधिक होने के कारण होने वाले ऋण ग्रहण के आकलन के लिए हम प्राथमिक घाटे का परिकलन करते हैं। सरल भाषा में यह वह शेष है, जो राजकोषीय घाटे में से ब्याज अदायगी को घटाने पर प्राप्त होता है।
सकल प्राथमिक घाटा: सकल राजकोषीय घाटानिवल ब्याज दायित्व निवल ब्याज दायित्वों में निवल घरेलू परिदाय पर सरकार द्वारा प्राप्त ब्याज प्राप्तियों से ब्याज अदायगी करने पर शेष राशि आती है।
प्रश्न 5.
सरकारी व्यय तथा करों में परिवर्तन का सन्तुलित आय पर क्या प्रभाव पड़ता है? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय में परिवर्तन: जब हम करों को स्थिर रखकर सरकारी खरीद (G) में वृद्धि करते हैं तो संतुलित आय में भी वृद्धि होती है। जब T अर्थात् इकमुश्त कर से G अर्थात् सरकारी खरीद अधिक होती है, तो सरकार घाटे का वहन करती है। क्योंकि G समस्त व्यय का घटक है। योजनाबद्ध समस्त व्यय में वृद्धि होगी। समस्त माँग अनुसूची में ऊपर की ओर AD' तक शिफ्ट होती है। निर्गत के प्रारम्भिक स्तर पर माँग, पूर्ति से अधिक होती है।
और फर्म उत्पादन में विस्तार करती है। नया संतुलन E' पर स्थापित होता है। यहाँ गुणक युक्ति कार्य करती है। सरकारी व्यय गुणक निम्नवत् होता है।
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
रेखाचित्र 1 में सरकारी व्यय G से बढ़कर G' हो जाता है और इस कारण संतुलन आय Y से बढ़कर Y' हो जाती है।
करों में परिवर्तन: हम पाते हैं कि आय के प्रत्येक स्तर पर करों में कटौती से प्रयोज्य आय Y - T में वृद्धि होती है। फलस्वरूप समस्त व्यय अनुसूची में ऊपर की ओर शिफ्ट होता है, जो करों में कमी का अंश c होता है। इसे रेखाचित्र 2 में दर्शाया गया है।
कर गुणक को समीकरण के रूप में निम्न प्रकार लिखेंगे
\(=\frac{\Delta Y}{\Delta T}=\frac{-C}{1-C}\)
करों में कटौती (वृद्धि) से उपभोग और निर्गत में वृद्धि (कमी) होती है क्योंकि कर गुणक एक ऋणात्मक गुणक होता है। समीकरण (i) और (ii) की तुलना करने पर हम पाते हैं कि सरकार के व्यय गुणक की तुलना में कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य अपेक्षाकृत अल्प होता है, क्योंकि सरकारी व्यय में वृद्धि से कुल व्यय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है जबकि गुणक प्रक्रिया में करों का प्रवेश प्रयोज्य आय पर उनके प्रभाव के माध्यम से होता है, जिसका कि परिवार के उपभोग पर प्रभाव पड़ता है। अतः करों में AT की कटौती से उपभोग तथा कुल व्यय में वृद्धि होती है तथा चित्र 2 के अनुसार सन्तुलित आय Y* से बढ़कर Y' हो जाती है। इसी प्रकार जब करों में वृद्धि की जाती है अथवा नए कर लगाए जाते हैं तो सन्तुलित आय में कमी होती है।
प्रश्न 6.
करारोपण से आप क्या समझते हैं ? किसी अर्थव्यवस्था में करारोपण के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
करारोपण से आशय: सरकार द्वारा सार्वजनिक आय प्राप्त करने हेतु विभिन्न कर लगाए जाते हैं, सरकार द्वारा कर लगाने की प्रक्रिया को करारोपण कहा जाता है। कर एक ऐसा अनिवार्य भुगतान है जो प्रत्येक व्यक्ति को किसी न किसी रूप में अपनी आय में से सरकार को करना पड़ता है। कर के बदले में सरकार द्वारा करदाता को कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं दिया जाता है।
करारोपण के उद्देश्य करारोपण के कुछ प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं।
(1) आय प्राप्ति: आज करारोपण का मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक आय में वृद्धि करना हो गया है। इसके माध्यम से सरकार अपने व्ययों की पूर्ति करती है। हर देश की सरकार अपने नियोजित विकास के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय साधन करों से प्राप्त करती है।
(2) अनावश्यक उपभोग पर रोक: करारोपण का उद्देश्य ऐसी वस्तुओं पर कर लगाना है जो कि समाज में बुराइयों को उत्पन्न करती हैं। सामाजिक बुराइयों में ऐसी वस्तुओं का उपभोग सम्मिलित है जिसके कारण व्यक्ति की कार्यकुशलता में कमी आती है तथा स्वास्थ्य गिर जाता है। भारत में शराब, सिगरेट आदि की वस्तुओं के उपभोग को नियंत्रित करने के लिए उन पर अधिक कर लगाए जाते हैं।
(3) धन के वितरण की विषमताओं को कम करना: कर का उद्देश्य समाज में व्याप्त धन व आय की विषमताओं को कम करना भी है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सरकार प्रगतिशील कर प्रणाली अपनाती है, जिससे अमीरों पर अधिक कर लगाकर तथा उस धन को निर्धनों के कल्याण पर व्यय करके धन का हस्तान्तरण निर्धनों की ओर किया जा सकता है। सामाजिक कल्याण की दृष्टि से धन का समान वितरण होना बहुत जरूरी है और इस उद्देश्य की प्राप्ति केवल करारोपण के माध्यम से ही हो सकती है।
(4) उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय में वृद्धि: अधिक कर देश की राष्ट्रीय आय की वृद्धि में भी सहायक होते हैं। अधिक करों में अनावश्यक वस्तुओं के उपभोग पर नियंत्रण लगाकर बचत को प्रोत्साहन मिलता है तथा जिससे देश में विनियोग भी बढ़ने लगते हैं। यह विनियोग देश के औद्योगिक, कृषि एवं अन्य क्षेत्रों के विकास में काफी योगदान देते हैं। इन.क्षेत्रों के विकास से रोजगार की सुविधाएँ बढ़ती हैं जिसके परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तथा साथ ही जीवनस्तर भी बढ़ने लगता है जिससे पूँजी निर्माण को भी बल मिलता है।
(5) संरक्षण का उद्देश्य: सामान्यतया सरकार अपने शिशु उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए विदेशी वस्तुओं पर अधिक कर लगा देती है, इसे सरकार की संरक्षण नीति कहा जाता है। इसके अन्तर्गत सरकार आयात कर लगाकर आयातित वस्तुओं को महंगी कर देती है जिससे देशी माल के उपभोग को प्रोत्साहन मिल सके।
(6) मुद्रा प्रसार पर रोक: करारोपण का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर नियंत्रण स्थापित करने का भी होता है। अधिक कर लगाकर सरकार जनता की क्रयशक्ति में कमी लाती है जिससे वस्तुओं की माँग कम हो जाती है तथा मूल्य वृद्धि रुक जाती है।
(7) औद्योगिक विकास में सहयोग: कभी - कभी आयातों पर कर इसलिए लगाये जाते हैं कि विदेशों से. आने वाला माल कुछ महँगा हो जाये और देश में बने हुए माल को उसकी स्पर्धा करने में कठिनाई न हो। इस दृष्टि से आयात कर अथवा चुंगी से देश के औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष करों से आप क्या समझते हैं? प्रत्यक्ष करों के गुण - दोष बताइए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर: वे कर होते हैं, जो उसी व्यक्ति से माँगे जाते हैं, जिस पर उसका भार डालने की सरकार की इच्छा हो। इस कर का भार कर चुकाने वाले व्यक्ति को स्वयं झेलना होता है क्योंकि वह इस कर भार को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तान्तरित नहीं कर सकता है। सामान्य तौर पर प्रत्यक्ष कर किसी व्यक्ति और उसकी आमदनी या सम्पत्ति पर लगाये जाते हैं। उदाहरण के लिए निगम कर, आयकर, व सम्पत्ति कर आदि प्रत्यक्ष कर होते
प्रत्यक्ष कर के गुण प्रत्यक्ष कर के मुख्य गुण निम्न प्रकार है।
प्रत्यक्ष कर के दोष / अवगुण प्रत्यक्ष कर के प्रमुख दोष निम्न प्रकार है।
प्रश्न 8.
अप्रत्यक्ष करों से आप क्या समझते हैं ? अप्रत्यक्ष करों के गुण-दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अप्रत्यक्ष कर: अप्रत्यक्ष कर उन करों को कहते हैं, जिनका भार चुकाने वाले अंशतः या पूर्णत: दूसरों पर हस्तान्तरित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में, इन करों में कराधात एक व्यक्ति पर और करापात किसी अन्य व्यक्ति पर होता है। परोक्ष कर, सामान्यतः वस्तुओं पर लगाये जाते हैं और उत्पादक या विक्रेता माल बेचने के समय कर की बढ़ी हुई कीमत के रूप में ग्राहकों से वसूल कर लेते हैं। इन करों को देने में लोगों को प्रत्यक्षतः कष्ट नहीं होता
और बढ़ी हुई कीमत के रूप में थोड़ी - थोड़ी मात्रा में सुविधापूर्वक दे दिये जाते हैं। वस्तु एवं सेवाकर, सीमा शुल्क, संघीय और राजकीय उत्पादन कर जैसे कपड़े, नमक, शराब और अफीम इत्यादि के कर, बिक्री कर, मनोरंजन कर आदि अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण हैं।
अप्रत्यक्ष करों के गुण अप्रत्यक्ष करों के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं।
अप्रत्यक्ष करों के दोष / अवगुण अप्रत्यक्ष करों के प्रमुख दोष निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 9. सार्वजनिक आय के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में सरकार की आय के प्रमुख स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक आय के प्रमुख स्रोत: भारत में सरकार की आय अथवा सार्वजनिक आय के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(अ) कर स्रोत: कर सार्वजनिक आय का प्रमुख स्रोत है। कर सरकार को अनिवार्य रूप से दिये जाने वाला भुगतान है जो सरकार द्वारा सर्वसाधारण के हितों पर किए जाने वाले व्यय की पूर्ति के लिए लिया जाता है।
कर सामान्यतः दो प्रकार के होते है।
(ब) गैर - कर स्रोत:
सार्वजनिक आय के गैर: कर स्रोतों में सार्वजनिक सम्पत्ति से आय, सार्वजनिक उपक्रमों से आय, शुल्क, दण्ड या जुर्माना, आबकारी शुल्क, विशेष कर निर्धारण, उपहार एवं अनुदान, मूल्य आदि आते हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखिए
(1) आनुपातिक कर
(2) प्रगतिशील कर
(3) प्रतिगामी कर
(4) अधोगामी कर।
उत्तर:
(1) आनुपातिक कर: आनुपातिक कर वे कर होते हैं जो सभी प्रकार की आय पर समान दर से लिए जाते हैं अथवा वे कर आनुपातिक होते हैं जो प्रत्येक आय वाले व्यक्ति से एक ही अनुपात अथवा एक ही दर के रूप में लिए जाते हैं। आय में कमी या वृद्धि होने पर कर की दर में कमी या वृद्धि नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति की आय एक लाख रुपये है तथा कर की दर 50 प्रतिशत है तथा दूसरे व्यक्ति की आय 1000 रु. है तो पहला व्यक्ति 50,000 रु. कर तथा दूसरा व्यक्ति 500 रु. कर के रूप में चुकाएगा अर्थात् दोनों व्यक्ति समान दर से कर का भुगतान करेंगे।
(2) प्रगतिशील कर: प्रगतिशील कर वे कर होते हैं, जब कर की दर आय की वृद्धि के अनुसार बढ़ती जाती है और आय की कमी के अनुसार घटती जाती है। इसमें सरकार द्वारा विभिन्न आय वर्ग बना दिए जाते हैं तथा उन आय वर्गों के अनुसार कर की दर का निर्धारण किया जाता है। उदाहरण के लिए, जैसे 2,50,000 तक की आय को करमुक्त कर दिया जाए तथा 2,50,000 से 5,00,000 तक 10 प्रतिशत की दर से कर लिया जाए तथा 5 लाख से 10 लाख तक 20 प्रतिशत की दर से कर लिया जाए तो वह प्रगतिशील कर होगा क्योंकि आय बढ़ने के साथ-साथ कर की दर में वृद्धि हो रही है। प्रगतिशील कर मितव्ययी व अधिक उत्पादक होते हैं तथा यह कर समानता व न्यायशीलता के सिद्धान्त का पालन करता है।
(3) प्रतिगामी कर: प्रतिगामी कर प्रगतिशील करों के बिल्कुल विपरीत होते हैं। प्रगतिशील कर में तो आय की वृद्धि पर कर की दर में वृद्धि होती है परन्तु प्रतिगामी कर में आय की वृद्धि के साथ-साथ कर की दर घटती जाती है। उदाहरण के लिए, 50,000 रुपये तक की आय पर 25 प्रतिशत की दर से कर लिया जाए, उससे ऊपर 1 लाख की आय तक 20 प्रतिशत व उससे अधिक आय पर 10 प्रतिशत की दर से करारोपण किया जाए। इस प्रकार की कर व्यवस्था विकासशील देशों के लिए उचित नहीं है, क्योंकि यह न्यायशीलता के सिद्धान्त की उपेक्षा करता है. इन करों का भार निर्धन वर्ग पर धनी वर्ग की अपेक्षा अधिक पड़ता है।
(4) अधोगामी कर: अधोगामी कर आनुपातिक एवं प्रगतिशील कर का मिश्रित रूप है। यदि कर व्यवस्था ऐसी हो कि एक निश्चित स्तर तक तो कर की दरें प्रगतिशील आधार पर निश्चित की जाएँ और उस सीमा के पश्चात् कर की दर आनुपातिक हो जाए। उदाहरण हेतु. 25,000 से 50,000 तक 10 प्रतिशत की दर से, 50,000 से एक लाख तक 20 प्रतिशत की दर से तथा उससे ऊपर सभी पर 30 प्रतिशत की दर से कर लगाया जाए।
प्रश्न 11.
सार्वजनिक व्यय से आप क्या समझते हैं? सार्वजनिक व्यय के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय: सार्वजनिक व्यय को लोक व्यय भी कहा जाता है। सार्वजनिक व्यय उस व्यय को कहते हैं जो लोक सत्ताओं अर्थात् केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय सरकारों द्वारा नागरिकों की सामूहिक आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए किया जाता है तथा उनके आर्थिक एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि के लिए किया जाता है।
सार्वजनिक व्यय का महत्त्व सार्वजनिक व्यय के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है।
(1) विकास के लिए महत्त्व: सार्वजनिक व्यय का देश के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। देश के उत्पादन के अनेक क्षेत्र ऐसे होते हैं जिनमें निजी व्यक्ति विनियोग नहीं करते जैसे लौह इस्पात, उर्वरक उद्योग, अणुशक्ति उत्पादन, पुल निर्माण, बाँध निर्माण आदि । यदि इन उद्योगों का विकास न हो तो देश का विकास अवरुद्ध हो जाता है अत: सरकार इन उद्योगों में स्वयं पूंजी लगाती है, जिससे देश का विकास होता है।
(2) जनोपयोगी सेवाएँ: जनोपयोगी सेवाओं के विस्तार एवं विकास करने में सार्वजनिक व्यय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जनोपयोगी सेवाएँ प्रायः प्रत्यक्ष मौद्रिक लाभ नहीं देती हैं, अत: निजी व्यक्ति इनका विकास नहीं करता है। अतः सरकार बिजली, पानी, रेल, डाक, तार, सड़क निर्माण आदि सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय करती है जिससे लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है तथा देश में अन्य उद्योगों को भी विकास में सहायता मिलती है। सरकार इन सब सेवाओं पर जनकल्याण की भावना से व्यय करती है।
(3) एकाधिकारी प्रवृत्ति पर प्रतिबन्धसार्वजनिक व्यय के द्वारा सरकार द्वारा एकाधिकारी प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सकती है। कुछ क्षेत्रों में निजी उद्योगपतियों द्वारा एकाधिकार होने के परिणामस्वरूप उद्योगपति उपभोक्ताओं से मनमानी कीमत वसूल करता है, जिससे उपभोक्ताओं का शोषण होता है। इस स्थिति में एकाधिकारी है। प्रवृत्ति को रोकने हेतु सरकार मूल्यों को नियंत्रित करती है, साथ ही सार्वजनिक व्ययों की सहायता से स्वयं लोक उपक्रमों की स्थापना करती है तथा निजी उद्योगपतियों से प्रतिस्पर्धा करती है। परिणामस्वरूप एकाधिकारी प्रवृत्ति पर रोक लगती है।
(4) विशिष्ट क्षेत्रों में व्यय: देश में कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं, जिन्हें सरकार निजी उपक्रमों के हाथों में नहीं दे सकती जैसे सुरक्षा, आण्विक शक्ति, मुद्रा निर्गमन, ऊर्जा आदि उद्योग हैं। इन उद्योगों को निजी हाथों में देने से राष्ट्र को खतरा हो सकता है, अतः सरकार इन उद्योगों में स्वयं व्यय करती है। इन उद्योगों का विकास करने से देश का विकास होता है।
(5) समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान: सरकार द्वारा गरीब व पिछड़े हुए वर्गों हेतु अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती हैं, जिनके परिणामस्वरूप इन वर्गों के उत्थान में सहायता मिलती है। इन योजनाओं पर किया गया व्यय अनुत्पादक होता है परन्तु इन योजनाओं पर व्यय करने से समाज के कल्याण में वृद्धि होती है। अत: सार्वजनिक व्यय की समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
(6) मूल्यों में स्थिरता: अर्थव्यवस्था में समयसमय पर मूल्यों में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्ययों के माध्यम से इन उतार - चढ़ावों को कम करने का प्रयास करती है। उदाहरण के लिए, मंदी के दौर में सरकार स्वयं वस्तुओं को खरीद लेती है।
प्रश्न 12.
राजकोषीय नीति से क्या आशय है? राजकोषीय नीति के उद्देश्यों एवं अंगों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं? राजकोषीय नीति के संघटकों एवं समस्याओं को बताइए।
अथवा
राजकोषीय नीति से आप क्या समझते हैं? राजकोषीय नीति के प्रमुख उपकरणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजकोषीय नीति: राजकोषीय नीति का आशय वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरकार द्वारा बनाई जाने वाली नीति से है। यह वह नीति है जिसमें केन्द्र व राज्य सरकारें करारोपण, सार्वजनिक व्यय एवं सार्वजनिक ऋणों के माध्यम से अर्थव्यवस्था में आय-व्यय, बचत, विनियोग, उत्पादन एवं रोजगार के क्षेत्र में अनुकूल परिवर्तन लाती हैं। बनाती है। इन ऋणों को सरकार दीर्घकालीन योजनाओं में विनियोजित करके देश के आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
सार्वजनिक ऋण नीति में सरकार ऋणों के ब्याज का भुगतान करने, ऋणों की अवधि पूरी होने पर उनके भुगतान, पुराने ऋणों को नए ऋणों में बदलने एवं नए ऋणों को लेने सम्बन्धी निर्णय लेती है। मुद्रा स्फीति के समय सरकार अपनी ऋण नीति के माध्यम से आकर्षित दरों पर ऋण प्राप्त कर जनता के हाथों में बेशी क्रय - शक्ति को कम करती है तथा मंदीकाल के समय सरकार ऋणदाताओं के ऋणों का भुगतान करती है ताकि अर्थव्यवस्था में कुल आय व रोजगार के अवसरों में वृद्धि कर सके।
राजकोषीय नीति की सीमाएँ अथवा समस्याएँ: राजकोषीय नीति की प्रमुख सीमाएँ अथवा समस्याएं निम्न प्रकार हैं
प्रश्न 13.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में निवेश 300 के बराबर, सरकार के क्रय की मात्रा 200 है, इकमुश्त कर 100, अन्तरण 100 तथा उपभोग फलन c = 200 +0.75 Y दिया हुआ है तो निम्न की गणना कीजिए।
(1) सन्तुलित आय का स्तर
(2) सरकारी व्यय गुणक एवं आय पर प्रभाव
(3) कर गुणक एवं आय पर प्रभाव
(4) अन्तरण गुणक एवं आय पर प्रभाव
(5) यदि सरकारी क्रय में 100 की वृद्धि हो जाए, तो सन्तुलित आय के स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
(1) सन्तुलित आय का स्तर:
प्रश्नानुसार, I = 300,G = 200, T = 100, TR = 100, C = 200 + 0.75 Y, है
अतः सन्तुलित आय का स्तर निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.75}(200-0.75 \times 100+0.75 \times 100+300+200) \\ &=\frac{1}{0.25}(200-75+75+300+200) \end{aligned}\)
4 x 700 = 2800
(2) सरकारी व्यय गुणक: सरकारी व्यय गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.75} \\ &=\frac{1}{0.25}=4 \end{aligned}\)
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार होगा।
\(\Delta Y=\frac{1}{1-C} \times \Delta G\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.75} \times 200 \\ &=\frac{1}{0.25} \times 200 \end{aligned}\)
= 4 x 200 = 800
(3) कर गुणक: कर गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है।
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
\(=\frac{-0.75}{1-0.75}=\frac{-0.75}{0.25}=-3\)
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार होगा।
\(\Delta \mathbf{Y}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{T}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{-0.75}{1-0.75} \times 100 \\ &=\frac{-0.75}{0.25} \times 100 \end{aligned}\)
= -3 x 100
=-300
(4) अन्तरण गुणक: अन्तरण गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी।
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{TR}}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
\(=\frac{0.75}{1-0.75}=\frac{0.75}{0.25}=3\)
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार होगा।
\(\Delta Y=\frac{C}{1-C} \times \Delta T R\)
\(\begin{aligned} &=\frac{0.75}{1-0.75} \times 100 \\ &=\frac{0.75}{0.25} \times 100 \end{aligned}\)
= 3 x 100
= 300
(5) यदि सरकारी व्यय में 100 की वृद्धि होती है तो सन्तुलित आय पर प्रभाव को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.75}\) ( 200 - 0.75 x 100 + 0.75 x 100 + 300 + 300)
\(=\frac{1}{0.25}(200-75+75+300+300)\)
= 4 x 800 = 3200
अतः सरकारी व्यय में 100 की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय 2800 से बढ़कर 3200 हो जाएगी।
प्रश्न 14.
एक अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में निम्न सूचनाएँ दी गई हैं C = 100 + 0.5Y,I = 200,G = 500, TR = 100 इसके आधार पर निम्न की गणना कीजिए।
(1) आय का सन्तुलन स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(2) यदि सरकार व्यय में 200 की कमी कर दे तो सन्तुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(3) यदि सरकार एकमुश्त कर में 100 की वृद्धि कर दे तो सन्तुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
(1) आय का सन्तुलन स्तर:
प्रश्नानुसार निम्न सूचनाएँ दी गई हैं C = 100 + 0.5Y, I = 200, G = 500, TR = 100 अत: आय का सन्तुलन स्तर निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5}(100+0.5 \times 100+200+500) \\ &=\frac{1}{0.5}(100+50+200+500) \end{aligned}\)
= 2 x 850 = 1700
स्वायत्त व्यय गुणक: स्वायत्त व्यय गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है।
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5} \\ &=\frac{1}{0.5}=2 \end{aligned}\)
(2) यदि सरकारी व्यय (G) में 200 की कमी कर दी जाए अर्थात् G = 300 हो तो सन्तुलन आय स्तर पर प्रभाव को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CT} \mathrm{T}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5}(100+0.5 \times 100+200+300) \\ &=\frac{1}{0.5}(100+50+200+300) \end{aligned}\)
= 32 x 650 = 1350
अत: यदि सरकारी व्यय में 200 की कमी की जाए तो आय का स्तर 1700 से कम होकर 1350 हो जाएगा।
(3) एकमुश्त कर में 100 जोड़ने पर आय पर प्रभाव को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5}(100-0.5 \times 100+0.5 \times 100+200+500) \\ &=\frac{1}{0.5}(100-50+50+200+500) \end{aligned}\)
= 2 x 800 = 1600
अतः एकमुश्त कर में 100 रु. जोड़ने पर सन्तुलित आय का स्तर 1700 से कम होकर 1600 हो जाएगा।
प्रश्न 15.
किसी अर्थव्यवस्था में C = 100 + 0.5Y, I = 100,G = 400, T=50 तथा TR%3D 200 है, यदि अर्थव्यवस्था के अन्तरण में 100 की वृद्धि की जाए तो सन्तलित आय के स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
अन्तरण में परिवर्तन से पूर्व सन्तुलन आय स्तर
प्रश्नानुसार, C = 100 + 0.5Y. I = 100.G= 400, T= 50 तथा TR = 200 होने पर सन्तुलन आय का स्तर निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाएगा
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CT} \overline{\mathrm{T}}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5}(100-0.5 \times 50+0.5 \times 200+100+400) \\ &=\frac{1}{0.5}(100-25+100+100+400) \end{aligned}\)
= 2 x 675 = 1350
अन्तरण में परिवर्तन के पश्चात् सन्तुलन आय स्तर
प्रश्नानुसार, C = 100 + 0.5Y, I = 100,G = 400, T= 50 तथा TR = 200 + 100 = 300 होने पर सन्तुलन आय का स्तर निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
\(Y=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\overline{\mathrm{CTR}}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.5}(100-0.5 \times 50+0.5 \times 300+100+400) \\ &=\frac{1}{0.5}(100-25+150+100+400) \end{aligned}\)
= 2 x 725 = 1450
अत: यदि अन्तरण में 100 की वृद्धि कर दी जाए तो आय का सन्तुलन स्तर 1350 से बढ़कर 1450 हो जाएगा।
प्रश्न 16.
किसी अर्थव्यवस्था में C = 100 + 0.75Y, I = 200,G = 100, T = 100 तथा TR = 80 है, यदि अर्थव्यवस्था में सरकार एकमुश्त कर में 100 की वृद्धि कर दे तो सन्तुलित आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कर में वृद्धि से पूर्व सन्तुलन आय स्तर।
प्रश्नानुसार, C = 100 + 0.75Y, I= 200,G= 100, T = 100 तथा TR = 80 होने पर सन्तुलन आय को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाएगा।
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \bar{T} R+I+G)\)
\(=\frac{1}{0.25}(100-75+60+200+100)\)
= 4 x 385 = 1540
कर वृद्धि के पश्चात् सन्तुलन आय स्तर:
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{0.25}(100-150+60+200+100)\)
= 4 x 310 = 1240
अत: कर में 100 के बराबर वृद्धि करने पर सन्तुलन आय 1540 से कम होकर 1240 हो जाएगी।
प्रश्न 17.
यदि अर्थव्यवस्था में C = 50+.6Y, I = 100, G = 50, T = 40, TR = 60 है, तो यदि अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में 30 की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय-पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सरकारी व्यय में वृद्धि से पूर्व सन्तुलन आय
प्रश्नानुसार, C = 50+.6Y, I = 100,G = 50, T = 40, TR = 60 होने पर सन्तुलन आय की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.6}(50-0.6 \times 40+0.6 \times 60+100+50)\)
\(=\frac{1}{0.4}(50-24+36+100+50)\)
= 2.5 x 212 = 530
सरकारी आय में वृद्धि के पश्चात् सन्तुलन आय:
प्रश्नानुसार, C = 50+.6Y, I = 100,G = 50 + 30 = 80, T = 40, TR = 60 होने पर सन्तुलन आय की गणना निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात की जा सकती है
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.6}(50-0.6 \times 40+0.6 \times 60+100+80) \\ &=\frac{1}{0.4}(50-24+36+100+80) \end{aligned}\)
= (50 - 24 + 36 + 100 + 80) = 2.5 x 242 = 605
अतः सरकारी व्यय में 30 के बराबर वृद्धि होने पर सन्तुलन आय 530 से बढ़कर 605 हो जाएगी।
प्रश्न 18.
मान लीजिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो सन्तुलन आय का निम्न परिवर्तनों पर क्या प्रभाव पड़ेगा
(1) सरकार के क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि होने पर
(2) अन्तरण में 40 प्रतिशत की वृद्धि करने पर।
उत्तर:
(1) सरकार के क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि होने पर: सरकार के क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि होने पर सन्तुलन आय में परिवर्तन को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करेंगे
\(\Delta \mathbf{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{G}\)
अथवा
\(\begin{aligned} & \frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{G} \\ =& \frac{1}{1-0.6} \times 30 \\ =& \frac{1}{0.4} \times 30 \end{aligned}\)
= 2.5 x 30
= 75 अतः सरकार द्वारा क्रय में 30 प्रतिशत की वृद्धि करने पर आय में 75 की वृद्धि होगी।
(2) अन्तरण में 40 प्रतिशत की वृद्धि करने पर: अन्तरण में 40 प्रतिशत की वृद्धि करने पर सन्तुलन आय पर प्रभाव को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता।
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \overline{\mathrm{T} R}\)
अधवा
\(=\frac{\mathrm{MPC}}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \overline{\mathrm{TR}}\)
\(\Delta Y=\frac{0.6}{1-0.6} \times 40\)
\(=\frac{0.6}{0.4} \times 40\)
= 2.5 x 40 = 100
अतः अन्तरण में 40 प्रतिशत की वृद्धि करने पर सन्तुलन आय में 100 की वृद्धि होगी।
प्रश्न 19.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 हो तथा 1 - 100, T = 30,G = 80, TR = 60 हो तो सरकारी व्यय गुणक, कर गुणक तथा अन्तरण गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
सरकारी व्यय गुणक की गणना: सरकारी व्यय गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.8} \\ &=\frac{1}{0.2}=5 \end{aligned}\)
कर गुणक की गणना: कर गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है।
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{-0.8}{1-0.8} \\ &=\frac{-0.8}{0.2}=-4 \end{aligned}\)
अन्तरण गुणक की गणना: अन्तरण गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जा सकती है:
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{TR}}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{0.8}{1-0.8} \\ &=\frac{0.8}{0.2}=4 \end{aligned}\)
प्रश्न 20.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में निवेश 150 के बराबर, सरकार के क्रय की मात्रा 100 है, इकमुश्त कर 100 , अन्तरण 50 तथा उपभोग फलन C = 100 + 0.75Y दिया हुआ है तो निम्न की गणना कीजिए:
(1) सन्तुलित आय का स्तर
(2) सरकारी व्यय गुणक तथा आय पर प्रभाव
(3) कर गुणक एवं आय पर प्रभाव
(4) अन्तरण गुणक एवं आय पर प्रभाव
(5) यदि सरकारी क्रय में 50 की वृद्धि हो जाए, तो सन्तुलित आय के स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
(1) सन्तुलित आय का स्तरसूत्र
\(=\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\overline{\mathrm{CTR}}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
प्रश्नानुसार, I = 150,G = 100, T = 100, TR = 50, C = 100, C or MPC = 0.75
अत: Y = \(\frac{1}{1-0.75}\)(100 - 0.75 x 100 + 0.75 x 50 + 150 + 100)
= \(\frac{1}{0.25}\)(100 - 75 + 37.5 + 150 + 100)
= 025
= \(\frac{1}{0.25}\) x 312.5
= 4 x 312.5 = 1,250
(2) सरकारी व्यय गुणक-सरकारी व्यय गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}\)
= \(\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}\) = 4
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार होगा:
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{G}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.75} \times 100 \\ &=\frac{1}{0.25} \times 100 \end{aligned}\)
= 4 x 100
(3) कर गुणक-कर गुणक को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
= \(\frac{-0.75}{1-0.75}=\frac{-0.75}{0.25}\)
= - 3
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार ज्ञात होगा
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{T}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{-0.75}{1-0.75} \times 100 \\ &=\frac{-0.75}{025} \times 100 \end{aligned}\)
= - 3 x 100 = - 300
(4) अन्तरण गुणक-अन्तरण गुणक की गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाएगी:
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{TR}}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
= \(\frac{0.75}{1-0.75}=\frac{0.75}{0.25}\) = 3
इसका आय पर प्रभाव निम्न प्रकार होगा:
\(\begin{aligned} \Delta \mathrm{Y} &=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{TR} \\ &=\frac{0.75}{1-0.75} \times 50 \\ &=\frac{0.75}{0.25} \times 50 \end{aligned}\)
= 3 x 50 = 150
(5) यदि सरकारी क्रय में 50 की वृद्धि की जाए तो सन्तुलित आय पर प्रभाव निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है:
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
प्रश्नानुसार, C = 0.75, C = 100, T = 100, TR = 50. I = 150,G = 100 + 50 = 150
= \(\frac{1}{1-0.75}\) (100 -0.75 x 100 + 0.75 x 50 + 150 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 -75+ 37.5 + 150 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (362.5)
= 4 x 362.5 = 1,450
अत: सरकारी क्रय में 50 की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय 1,250 से बढ़कर 1,450 हो जाएगी।