Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Important Questions Chapter 5 बाज़ार संतुलन Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
प्रश्न 1.
निम्न में से कौनसा समीकरण अधिपूर्ति को स्पष्ट करता है।
(अ) बाजार माँग = बाजार पूर्ति
(ब) बाजार माँग > बाजार पूर्ति
(स) बाजार माँग < बाजार पूर्ति
(द) बाजार मांग 2 बाजार पूर्ति
उत्तर:
(ब) बाजार माँग > बाजार पूर्ति
प्रश्न 2.
निम्न में से कौनसा समीकरण अधिमाँग को स्पष्ट करता है।
(अ) बाजार माँग ८ बाजार पूर्ति
(ब) बाजार माँग > बाजार पूर्ति
(स) बाजार माँग < बाजार पूर्ति
(द) बाजार माँग = बाजार पूर्ति
उत्तर:
(स) बाजार माँग < बाजार पूर्ति
प्रश्न 3.
बाजार में वस्तु कीमत निर्धारण हेतु प्रयुक्त बाजार पूर्ति वक्र होता है।
(अ) ऋणात्मक ढाल वाला वक्र
(ब) धनात्मक ढाल वाला वक्र
(स) लम्बवत् अक्ष के समानान्तर वक्र
(द) क्षैतिज अक्ष के समानान्तर वक्र
उत्तर:
(द) क्षैतिज अक्ष के समानान्तर वक्र
प्रश्न 4.
यदि बाजार माँग वक्र = 100 - p तथा बाजार पूर्ति वक्र = 60 + है, तो सन्तुलन कीमत होगी।
(अ) 10 रुपये
(ब) 20 रुपये
(स) 30 रुपये
(द) 40 रुपये
उत्तर:
(अ) 10 रुपये
प्रश्न 5.
यदि माँग एवं पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर शिफ्ट हो जाएँ तो सन्तुलित मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
(अ) कमी होगी
(ब) वृद्धि होगी
(स) अपरिवर्तित रहेगी
(द) पहले वृद्धि फिर कमी होगी
उत्तर:
(द) पहले वृद्धि फिर कमी होगी
प्रश्न 6.
श्रम की एक अतिरिक्त इकाई से कुल निर्गत में जो वृद्धि होती है, उसे कहा जाता है।
(अ) औसत उत्पाद
(ब) सीमान्त उत्पाद
(स) कुल उत्पाद
(द) कुल आगत
उत्तर:
(ब) सीमान्त उत्पाद
प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी होती है।
(अ) मजदूरी = श्रम का सीमान्त उत्पाद
(ब) मजदूरी = श्रम का औसत उत्पाद
(स) मजदूरी > श्रम का सीमान्त उत्पाद
(द) मजदूरी < श्रम का औसत उत्पाद
उत्तर:
(ब) मजदूरी = श्रम का औसत उत्पाद
प्रश्न 8.
बाजार में यदि फर्मों की संख्या स्थिर है, तो माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत पर प्रभाव होगा।
(अ) सन्तुलन कीमत कम होगी
(ब) सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी
(स) सन्तुलन कीमत शून्य हो जाएगी
(द) सन्तुलन कीमत स्थिर रहेगी
उत्तर:
(ब) सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
शून्य अधिमांग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी कीमत पर जब बाजार मांग एवं पूर्ति बराबर हो तो वह शून्य अधिमांग एवं शून्य अधिपूर्ति की स्थिति होगी।
प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में बाजार माँग एवं पूर्ति जिस कीमत पर बराबर होते हैं, वह कीमत क्या कहलाती है?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत।
प्रश्न 3.
जब बाजार पूर्ति बाजार मांग से अधिक होती है तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अधिपूर्ति।
प्रश्न 4.
जब बाजार माँग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
अधिमांग।
प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी किसके बराबर होती है?
उत्तर:
श्रम के सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद के।
प्रश्न 6.
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहे तो बाजार में मांग में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पडेगा?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 7.
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर रहे तथा बाजार माँग में कमी हो जाए तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन कीमत में कमी होगी।
प्रश्न 8.
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहे तथा बाजार में पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 9.
बाजार मांग तथा बाजार पूर्ति वक्रों के बायीं तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन मात्रा कम होगी।
प्रश्न 10.
जब बाजार मांग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र दोनों दाहिनी दिशा में शिफ्ट होते हैं, तो सन्तुलन मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 11.
एक बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में कीमत पूर्ण प्रतिस्पर्धा में किसके बराबर होती है?
उत्तर:
न्यूनतम औसत लागत के।
प्रश्न 12.
बाजार में सन्तुलन की स्थिति में बाजार मांग एवं बाजार पूर्ति की क्या स्थिति होती है?
उत्तर:
सन्तुलन की स्थिति में बाजार मांग एवं बाजार पूर्ति दोनों एक-दूसरे के बराबर होते हैं।
प्रश्न 13.
एक बाजार माँग वक्र का ढाल कैसा होता
उत्तर:
बाजार माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला वक्र होता है।
प्रश्न 14.
एक बाजार पूर्ति वक्र का ढाल कैसा होता
उत्तर:
एक बाजार पूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।
प्रश्न 15.
श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
श्रम का सीमान्त संप्राप्ति उत्पाद - = सीमान्त संप्राप्ति x श्रम का सीमान्त उत्पाद
प्रश्न 16.
यदि बाजार माँग वक्र P = 200 - P है तथा संतुलन कीमत P = 20 है तो निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में संतुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
संतुलन मात्रा (P) = 200 - P = 200 - 20
= 180
प्रश्न 17.
राशनिंग का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक व्यक्ति के लिए वस्तु के उपयोग की उच्चतम मात्रा का निर्धारण करना।
प्रश्न 18.
बाजार माँग क्या दर्शाती है?
उत्तर:
यह कि बाजार में दी हुई कीमतों पर उपभोक्ता कितनी मात्रा में वस्तुएँ खरीदने को तैयार है।
प्रश्न 19.
श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में श्रम की पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है।
प्रश्न 20.
श्रम बाजार में श्रम की माँग किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक फर्मों द्वारा की जाती है।
प्रश्न 21.
वस्तु बाजार में वस्तु की माँग किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है।
प्रश्न 22.
श्रम बाजार में माँग वक्र की आकृति कैसी होती है?
उत्तर:
श्रम बाजार में मांग वक्र नीचे की ओर ढलान वाला वक्र होता है।
प्रश्न 23.
बाजार में पूर्ति में वृद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 24.
बाजार में पूर्ति में कमी के कोई दो कारण बताइए। .
उत्तर:
प्रश्न 25.
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कोई दो तत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 26.
बाजार की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
बाजार में वस्तु, सेवा तथा साधनों का क्रयविक्रय होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
वस्तु बाजार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार वह क्षेत्र है जिसमें विभिन्न क्रेता एवं विक्रेता आपस में सम्पर्क कर वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।
प्रश्न 2.
एक वस्तु बाजार में वस्तु के माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
एक वस्तु बाजार में वस्तु की माँग वक्र नीचे गिरता हुआ अर्थात् ऋणात्मक ढाल वाला वक्र होता है जबकि पूर्ति वक्र ऊपर उठता हुआ अर्थात् धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।
प्रश्न 3.
फर्म एवं उद्योग में अन्तर बताइए।
उत्तर:
फर्म एक या अधिक उत्पादन इकाइयों को कहते हैं जो कि एक ही स्वामित्व के अन्तर्गत हो, जबकि उद्योग बहुत सी ऐसी फर्मों को कहा जाता है जो एक सी वस्तुओं का उत्पादन कर रही हो।
प्रश्न 4.
एक उद्योग के साम्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक दी हुई कीमत पर उद्योग साम्य की स्थिति में तब होगा जबकि उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तु की कुल पूर्ति उसकी कुल माँग के बराबर होती है।
प्रश्न 5.
शून्य अधिमाँग - शून्य अधिपूर्ति की स्थिति कौनसी होती है?
उत्तर:
यदि बाजार में किसी कीमत पर बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति बराबर होते हैं तो इसे शून्य अधिमांगशून्य अधिपूर्ति की स्थिति कहा जाता है।
प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन मात्रा का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में जहाँ बाजार माँग वक्र बाजार पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं, वहाँ सन्तुलन मात्रा निर्धारित होती है।
प्रश्न 7.
यदि बाजार माँग वक्र qD = 200 - p तथा बाजार पूर्ति वक्र qS = 140 + p है, तो सन्तुलन कीमत ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सन्तुलन कीमत = qD = qS
200 - p = 140 + P
2p = 60
p= 30 रुपये
प्रश्न 8.
यदि बाजार पूर्ति वक्र qS = 140 + p है तथा सन्तुलन कीमत p = 30 रुपये है, तो सन्तुलन मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
qS = 140 + P
p = 30
सन्तुलन मात्रा = 140 + p
= 140 + 30
= 170
प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी कहाँ निर्धारित होती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी वहाँ निर्धारित होगी, जहाँ श्रम का पूर्ति वक्र तथा श्रम का माँग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं।
प्रश्न 10.
यदि बाजार पूर्ति वक्र तथा माँग वक्र दोनों बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएं तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार पूर्ति वक्र तथा माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन मात्रा कम होगी तथा कीमत में वृद्धि, कमी अथवा वह अपरिवर्तित रह सकती है।
प्रश्न 11.
यदि बाजार माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है।
प्रश्न 12.
यदि बाजार माँग एवं पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हों तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार मांग एवं पूर्ति वक्र दोनों दायीं तरफ शिफ्ट हों तो सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी तथा कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है।
प्रश्न 13.
यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन माँग तथा पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? .
उत्तर:
यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो तो सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित रहेगी।
प्रश्न 14.
यदि बाजार मांग वक्र स्थिर रहे तथा बाजार पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन मात्रा एवं कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
बाजार पूर्ति वक्र के दाहिनी तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत में कमी होती है तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 15.
यदि बाजार माँग वक्र स्थिर रहे तथा बाजार पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन मात्रा में कमी आएगी।
प्रश्न 16.
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में यदि बाजार माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट होता है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में बाजार माँग वक्र के दाहिनी तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 17.
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में यदि बाजार माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
स्थिर फर्मों की संख्या की स्थिति में मांग वक्र के बायीं तरफ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में कमी होती है।
प्रश्न 18.
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत तथा न्यूनतम औसत लागत में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में निर्वाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में कीमत, न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है।
प्रश्न 19.
निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में यदि सन्तुलन मात्रा (qo) = 360 हो तथा प्रत्येक फर्म की पूर्ति (qor) = 60 हो, तो बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
फर्मों की संतुलन संख्या = \(=\frac{\mathrm{q}_{0}}{\mathrm{q}_{\text {of }}}\)
360 = 6
प्रश्न 20.
यदि बाजार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की अनुमति हो, तो माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन मात्रा एवं कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित रहेगी।
प्रश्न 21.
यदि बाजार में फर्मों को निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो, तो माँग में कमी होने पर सन्तुलन कीमत एवं मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में मांग में कमी होने पर सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि सन्तुलन मात्रा में कमी आएगी।
प्रश्न 22.
उच्चतम निर्धारित कीमत किसे कहते
उत्तर:
किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं।
प्रश्न 23.
निम्नतम निर्धारित कीमत किसे कहते
उत्तर:
किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं।
प्रश्न 24.
श्रम की सीमान्त उत्पादकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक अतिरिक्त श्रम लगाने से कुल उत्पाद में जो वृद्धि होती है, उसे श्रम की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।
प्रश्न 25.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक फर्म की सीमान्त आगम एवं वस्तु की कीमत में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक फर्म की सीमान्त आगम वस्तु की कीमत के बराबर होती है।
प्रश्न 26.
एक वस्तु की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि होने पर एक वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि होने पर वस्तु की सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 27.
यदि सरकार बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाती है तो सन्तुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार बाजार में वस्तु पर उत्पादन कर लगाती है, तो इसके फलस्वरूप सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 28.
नियन्त्रण कीमत तथा सन्तुलन कीमत में क्या अन्तर है?
उत्तर:
नियन्त्रण कीमत का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि बाजार कीमत का निर्धारण बाजार में मांग एवं पूर्ति के साम्य द्वारा होता है।
प्रश्न 29.
बाजार की मुख्य विशेषताएँ अथवा तत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 30.
रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए कि संतुलित कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है। यदि पूर्ति स्थिर रहे एवं माँग में परिवर्तन हो।
उत्तर:
पूर्ति स्थिर रहने पर माँग में परिवर्तन हो
चित्रानुसार माँग में वृद्धि (D1 D) होने पर कीमत एवं मात्रा दोनों में वृद्धि होगी तथा माँग में कमी (D1 D) होने पर कीमत तथा मात्रा दोनों में कमी होगी।
प्रश्न 31.
रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए कि सन्तुलित कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? यदि माँग स्थिर रहे पर पूर्ति में परिवर्तन हो।
उत्तर:
माँग स्थिर रहने पर पूर्ति में परिवर्तन हो
मात्रा चित्रानुसार पूर्ति में वृद्धि (S1 S1) होने पर कीमत में कमी एवं मात्रा में वृद्धि होगी तथा पूर्ति में कमी (S2 S2) होने पर कीमत में वृद्धि तथा मात्रा में कमी होगी।
प्रश्न 32.
यदि एक बाजार में माँग वक्र qD = 400 - p है तथा बाजार पूर्ति वक्र qS = 240 + p है तो सन्तुलन कीमत की गणना कीजिए।
उत्तर:
बाजार में सन्तुलन कीमत का निर्धारण वहाँ होगा, जहाँ पर बाजार माँग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र बराबर होते हैं
qD = qS
400 - p = 240 + P
2p = 400 - 240
2p = 160
p = 160/2 = 80
प्रश्न 33.
श्रम की माँग तथा श्रम की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाजार में उत्पादकों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने हेतु श्रम की जो माँग की जाती है, उसे श्रम की मांग कहा जाता है तथा एक दी हुई मजदूरी दर पर परिवार क्षेत्र द्वारा फर्म में उत्पादन का कार्य किया जाता है, उसे श्रम की पूर्ति कहते हैं।
प्रश्न 34.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में श्रम बाजार में श्रम के माँग वक्र की आकृति कैसी होती है, रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में श्रम बाजार में श्रम का माँग वक्र एक नीचे की ढाल वाला अथवा ऋणात्मक ढाल वाला वक्र होता है, इसे नीचे दिए रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 35.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में श्रम बाजार के पूर्ति वक्र की आकृति को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में श्रम बाजार में पूर्ति वक्र की आकृति ऊपर की ओर ढाल वाले अर्थात् धनात्मक ढाल वाले वक्र के समान होता है, इसे नीचे दिए रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 36.
सन्तुलन के सम्बन्ध में 'अदृश्य हाथ' सम्बन्धी धारणा को स्पष्ट कीजिए। .
उत्तर:
एडम स्मिथ के समय से ही यह मान्यता रही है कि जब भी बाजार में असन्तुलन होता है, तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक 'अदृश्य हाथ' कीमतों में परिवर्तन कर देता है। यह अदृश्य हाथ अधिमाँग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी कर देता है।
प्रश्न 37.
बाजार में मांग तथा पूति क असन्तुलन से उत्पन्न स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
असन्तुलन की निम्न दो स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 38.
बाजार में शून्य अधिमाँग-शून्य अधिपूर्ति की स्थिति को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शून्य अधिमांग: शून्य अधिपूर्ति बाजार की वह स्थिति होती है, जिसमें बाजार माँग एवं बाजार पूर्ति बराबर होते हैं, जिनसे सन्तुलन कीमत तथा मात्रा निर्धारित होती है।
रेखाचित्र में DD तथा SS वक्र क्रमश: बाजार माँग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र है तथा E सन्तुलन बिन्दु है, जिस पर बाजार माँग एवं पूर्ति बराबर है। यहाँ पर सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। चित्रानुसार E बिन्दु शून्य अधिमांग - शून्य अधिपूर्ति को व्यक्त करता है।
प्रश्न 39.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन कीमत एवं मात्रा निर्धारण को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन कीमत तथा मात्रा का निर्धारण बाजार में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है, जहाँ पर माँग एवं पूर्ति की शक्तियाँ आपस में बराबर होती हैं, वहाँ सन्तुलन कीमत एवं मात्रा का निर्धारण होता है।
रेखाचित्र में DD माँग वक्र तथा SS पूर्ति वक्र है, ये दोनों बिन्दु E पर एक - दूसरे को काटते हैं। यह सन्तुलन का बिन्दु है, इसके अनुसार सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा 0Q है।
प्रश्न 40.
यदि एक उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो उपभोक्ता के माँग वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है तो इससे उपभोक्ता की क्रय शक्ति में वृद्धि होगी। इससे उसकी मांग में वृद्धि होगी तथा माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाएगा।
रेखाचित्र में DD तथा ss क्रमशः वस्तु का माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र है। यदि उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, तो माँग में वृद्धि होगी जिसके फलस्वरूप माँग वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा जिससे हमें नया माँग वक्र D1D1 प्राप्त होगा एवं नया सन्तुलन बिन्दु E1 होगा।
प्रश्न 41.
यदि बाजार में कारों की कीमतों में कमी हो जाए तो इससे पैट्रोल की कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार तथा पैट्रोल परस्पर पूरक वस्तुएँ हैं। पूरक वस्तुओं में यदि एक वस्तु की मांग बढ़ती है तो दूसरी वस्तु की माँग में भी वृद्धि होती है। बाजार में यदि कारों की कीमत में कमी होगी, तो कारों की मांग बढ़ जाएगी जिसके फलस्वरूप पैट्रोल की मांग भी बढ़ेगी, उसके फलस्वरूप पैट्रोल की कीमत तथा मात्रा में वृद्धि होगी।
QQ, मात्रा रेखाचित्र में D1D1 तथा SS क्रमश: पैट्रोल का माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र है। यदि पैट्रोल की माँग बढ़ जाती है तो माँग वक्र दायीं तरफ शिफ्ट होकर हो जाता है, जिससे पैट्रोल की मात्रा तथा कीमत में वृद्धि होती है।
प्रश्न 42.
यदि श्रम बाजार में मजदूरी दर में वृद्धि हो जाए तो श्रम की माँग तथा पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि श्रम बाजार में मजदूरी की दर में वृद्धि हो जाए तो. इससे श्रम बाजार में अधिपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
श्रम (घण्टों में) रेखाचित्र में DLDL तथा SLSL. क्रमशः श्रम का माँग तथा पूर्ति वक्र है तथा बाजार में मजदूरी दर Ow निर्धारित होती है। यदि बाजार में मजदूरी दर बढ़कर Ow1 हो जाए तो इस पर श्रम की पूर्ति W1B होगी, जबकि श्रम की मांग W1A होगी। अतः मजदूरी बढ़ने पर श्रम की मांग में गिरावट आएगी तथा श्रम की पूर्ति में वृद्धि होगी।
प्रश्न 43.
यदि श्रम बाजार में मजदूरी दर में कमी हो जाए तो श्रम की माँग तथा पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि श्रम बाजार में मजदूरी दर में कमी हो जाए तो श्रम बाजार में अधिमांग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
श्रम (घण्टों में) रेखाचित्र में DLDL तथा SLSL, क्रमशः श्रम का माँग तथा पूर्ति वक्र है, जिनके सन्तुलन बिन्दु E पर OW मजदूरी दर निर्धारित होती है। यदि श्रम बाजार में किसी कारण से मजदूरी दर में कमी हो जाए तो श्रम की माँग W1B तथा श्रम की पूर्ति WA हो जाएगी। अतः श्रम बाजार में मजदूरी दर में कमी होने से श्रम की मांग बढ़ जाएगी; किन्तु कम मजदूरी पर श्रम की पूर्ति कम हो जाएगी।
प्रश्न 44.
यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी होती है तो उसकी स्थानापन्न वस्तु की कीमत तथा माँग मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी हो जाए तो उसकी स्थानापन्न वस्तु की मांग में कमी हो जाएगी; क्योंकि लोग उसकी स्थानापन्न वस्तु के स्थान पर उस वस्तु का उपभोग करने लग जाएंगे।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि यदि किसी वस्तु की कीमत में कमी हो जाए तो उस वस्तु की स्थानापन्न वस्तु की माँग घट जाएगी, जिससे उसका माँग वक्र DD से बायीं तरफ शिफ्ट होकर DIDI हो जाएगा जिसके फलस्वरूप स्थानापन्न वस्तु की मात्रा में कमी होगी तथा उसकी कीमत में भी कमी हो जाएगी।
प्रश्न 45.
यदि किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमतों में वृद्धि हो जाए तो वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमतों में वृद्धि हो जाए तो इसके उत्पादन लागत में वृद्धि हो जाएगी जिससे पूर्ति में कमी आएगी तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा, जिससे सन्तुलन कीमत में वृद्धि तथा सन्तुलन मात्रा में कमी आएगी।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उत्पादन साधनों की कीमत बढ़ने से पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होकर SS से S1S1 हो जाता है, जिससे वस्तु की कीमत में वृद्धि होकर OP से OP1 हो जाती है तथा मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 46.
यदि किसी वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में कमी हो जाए तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि वस्तु के उत्पादन के साधनों की कीमत में कमी आती है तो इससे उत्पादन लागत में कमी आती है तथा पूर्ति में वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट होता है, जिससे सन्तुलन कीमत में कमी तथा मात्रा में वृद्धि होती है।
चित्र से स्पष्ट है कि उत्पादन साधनों की कीमत कम होने से पूर्ति वक्र Ss से दाहिनी तरफ शिफ्ट होकर S1S1 हो जाता है जिस कारण सन्तुलन कीमत कम होकर OP से OP1 हो जाती है तथा सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 47.
यदि किसी बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि हो जाए तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि हो जाती है तो बाजार में वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाएगी, जिससे पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है, जिस कारण सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा में भी वृद्धि होगी।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि यदि बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि हो जाए तो बाजार पूर्ति वक्र SS से दाहिनी तरफ शिफ्ट होकर S1S1 हो जाता है, जिस कारण सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तथा सन्तुलन मात्रा OQ से वृद्धि होकर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 48.
यदि किसी बाजार में फर्मों की संख्या में कमी हो जाए तो सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि बाजार में फर्मों की संख्या में कमी हो जाती है तो बाजार में वस्तु की पूर्ति में कमी हो जाएगी। जिस कारण वस्तु का पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है, जिससे सन्तुलन कीमत में वृद्धि होती है तथा सन्तुलन मात्रा में कमी होती है।
रेखाचित्र में फर्मों की संख्या में कमी होने पर बाजार पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होकर S1S1 हो जाता है, जिस कारण नए सन्तुलन बिन्दु E1 पर सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा सन्तुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 49.
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में वस्तु x का माँग वक्र qD = 400 - p है तथा प्रत्येक समरूप फर्म का पूर्ति वक्र qor = 20 + p क्योंकि p ≥ 40 = 0 क्योंकि 0 < p < 40 हो तो सन्तुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रश्नानुसार माँग वक्र qD = 400 - p फर्म का पूर्ति वक्र qor = 20 + p फर्मों के निर्वाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में बाजार सन्तुलन उस कीमत पर होगा, जो फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर है, अत: इस बाजार में सन्तुलन कीमत (po) = 40 रुपये है।
इस कीमत पर बाजार उस मात्रा की पूर्ति करेगा जो बाजार माँग के बराबर है, अत: माँग वक्र से हमें सन्तुलन मात्रा प्राप्त होती है
qo = 400 - 40
= 360
Po = 40 पर प्रत्येक फर्म की पूर्ति निम्न प्रकार होगी
qor = 20 + p
= 20 + 40 = 60 अतः फर्मों की सन्तुलन संख्या निम्न प्रकार ज्ञात करेंगे
\(x_{0}=\frac{q_{0}}{q_{\text {of }}}=\frac{360}{60}=6\)
प्रश्न 50.
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में यदि वस्तु की माँग में वृद्धि होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में सन्तुलन कीमत विद्यमान फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है, अत: माँग में परिवर्तन होने पर सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मांग में वृद्धि होने पर माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है, जिससे सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होती है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि बाजार में मांग में वृद्धि होने पर माँग वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट होकर D1D1 हो जाता है तो सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाएगी।
प्रश्न 51.
बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में यदि वस्तु की माँग में कमी होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार में निर्बाध प्रवेश एवं बहिर्गमन की स्थिति में सन्तुलन कीमत विद्यमान फर्मों की न्यूनतम औसत लागत के बराबर होती है, अत: माँग में परिवर्तन होने पर सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। माँग में कमी होने पर माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है, जिससे
सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता एवं सन्तुलन मात्रा में कमी होती है।।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि बाजार में मांग में कमी होने पर माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा जिसके फलस्वरूप सन्तुलन कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि सन्तुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाएगी।
प्रश्न 52.
अधिमांग और अधिपूर्ति को उपयुक्त रेखाचित्र के माध्यम से समझाइये।
उत्तर:
अधिमाँग: रेखाचित्र में P1 कीमत पर माँग P1B है एवं पूर्ति P1A है अत: यहाँ AB माँग (P1B - P1A) अधिक है, यह अधिमांग की स्थिति है।
मात्रा अधिपूर्ति: रेखाचित्र में P2 कीमत पर पूर्ति P2D है तथा माँग P2C है अतः यहाँ CD पूर्ति (P2D - P2C) अधिक है, यह अधिपूर्ति की स्थिति है।
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में माँग एवं पूर्ति के सन्तुलन एवं असन्तुलन से उत्पन्न स्थितियों को रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में सन्तुलन वहाँ होता है, जहाँ बाजार माँग बाजार पूर्ति के बराबर होती है। यदि ये दोनों बराबर नहीं होते हैं तो इसे असन्तुलन की स्थिति कहा जाता है। बाजार सन्तुलन तथा असन्तुलन से तीन स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
(1) अधिपूर्ति: अधिपूर्ति बाजार में वह स्थिति होती है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार में बाजार पूर्ति, बाजार मांग से अधिक होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र 1 में DD तथा SS क्रमशः बाजार माँग एवं पूर्ति वक्र है, जहाँ पर सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि बाजार में कीमत बढ़कर OP1 हो जाती है तो यहाँ पूर्ति P1B हो जाएगी तथा माँग P1A हो जाएगी। अतः यहाँ पूर्ति माँग से AB अधिक होगी, यह अधिपूर्ति की स्थिति है।
(2) अधिमांग: अधिमांग बाजार की वह स्थिति है, जिसमें किसी कीमत पर बाजार मांग, बाजार पूर्ति से अधिक होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र 2 में DD तथा SS क्रमश: बाजार मांग एवं पूर्ति वक्र है तथा बाजार में सन्तुलन कीमत OP तथा सन्तुलन मात्रा OQ है। यदि बाजार में कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तो इस स्थिति में माँग P1B तथा पूर्ति P1A हो जाती है अर्थात् वस्तु की माँग पूर्ति से AB अधिक हो जाती है। इसे अधिमांग की स्थिति कहते हैं।
(3) शून्य अधिमाँग: शून्य अधिपूर्ति - शून्य अधिमांग - शून्य अधिपूर्ति बाजार की वह स्थिति होती है, जिसमें बाजार माँग एवं बाजार पूर्ति बराबर होते हैं, जिससे सन्तुलन कीमत एवं सन्तुलन मात्रा निर्धारित होती है। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र 3 में DD तथा SS क्रमशः बाजार माँग वक्र एवं बाजार पूर्ति वक्र है, जो E बिन्दु पर एक-दूसरे को काटते हैं, अत: E सन्तुलन का बिन्दु है, यहाँ पर OP सन्तुलन कीमत तथा OQ सन्तुलन मात्रा
प्रश्न 2.
एक बाजार में माँग फलन तथा पूर्ति फलन के द्वारा सन्तुलन अधिमाँग तथा अधिपूर्ति की स्थितियों को उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
अथवा एक गणितीय उदाहरण की सहायता से अधिमांग, अधिपूर्ति तथा सन्तुलन की स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हम एक ऐसे बाजार का उदाहरण लेते हैं जिसमें समान गुणवत्ता वाले गेहूं का उत्पादन करने वाले समरूपी खेत हों। मान लीजिए गेहूँ के लिए बाजार माँग वक्र तथा बाजार पूर्ति वक्र निम्न प्रकार हैं
qD = 200 - p क्योंकि 0 ≤ p ≤ 200
= 0 क्योंकि p > 200
qS = 120 + p क्योंकि p > 10
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 10 जहाँ D तथा गेहूँ के लिए (किलोग्राम में) क्रमशः माँग तथा पूर्ति को दर्शाते हैं तथा p गेहूँ की प्रति किलोग्राम कीमत रुपयों में दर्शाता है; क्योंकि संतुलन कीमत पर बाजार रिक्त हो जाता है। हम बाजार माँग और बाजार पूर्ति को बराबर करके संतुलन कीमत (p* द्वारा प्रदर्शित) ज्ञात करते हैं तथा (p*) के लिए हल करते है।
\(\mathrm{q}^{\mathrm{D}}\left(\mathrm{p}^{*}\right)=\mathrm{q}^{\mathrm{S}}\left(\mathrm{p}^{*}\right)\)
- 200 - p* = 120 + p*
आँकड़ों को पुनः व्यवस्थित करके
2p* = 80
p = 40
अत: गेहूँ की संतुलन कीमत 40 रुपये प्रति किलोग्राम है। संतुलन कीमत को माँग अथवा पूर्ति वक्र के समीकरण में प्रतिस्थापित करके संतुलन मात्रा (q* द्वारा दर्शायी गई) प्राप्त की जाती है, चूँकि संतुलन की अवस्था में, माँग तथा पूर्ति दोनों की मात्रा बराबर होती है।
P = q* = 200 - 40 = 160 वैकल्पिक रूप से,
q = q* = 120 + 40 = 160
अतः संतुलन मात्रा 160 किलोग्राम है। p* की तुलना में कम कीमत पर, मान लो, p = 25,
qD = 200 - 25 = 175
q = 120 + 25 = 145
अत: p1 = 25 पर, P > जिससे अभिप्राय है कि इस कीमत पर अधिमाँग है। बीजगणितीय रूप में, अधिमांग (ED) इस प्रकार दर्शाया जा सकता है
\(\begin{aligned} \mathrm{ED}(\mathrm{p}) &=\mathrm{q}^{\mathrm{D}}-\mathrm{q}^{\mathrm{s}} \\ &=200-\mathrm{p}-(120+\mathrm{p}) \\ &=80-2 \mathrm{p} \end{aligned}\)
ध्यान दीजिए, उपर्युक्त अभिव्यक्ति से स्पष्ट है कि p* (= 40) से कम किसी भी कीमत के लिए, अधिमाँग सकारात्मक होगी। इसी प्रकार, p* से अधिक कीमत पर, मान लो P2 = 45
qD = 200 – 45 = 155
qS = 120 + 45 = 165
अतः इस कीमत पर q>qP अर्थात् अधिपूर्ति है। बीजगणितीय रूप में, अधिपूर्ति (ES) इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।
\(\begin{aligned} \mathrm{ES}(\mathrm{p}) &=\mathrm{q}^{\mathrm{S}}-\mathrm{q}^{\mathrm{D}} \\ &=120+\mathrm{p}-(200-\mathrm{p}) \\ &=2 \mathrm{p}-80 \end{aligned}\)
= 2p - 80 ध्यान दीजिए, उपर्युक्त अभिव्यक्ति से यह स्पष्ट है कि p* (= 40) से अधिक किसी भी कीमत के लिए, अधिपूर्ति सकारात्मक होगी।
अत: p* से अधिक किसी भी कीमत पर अधिपूर्ति तथा p* से कम किसी भी कीमत पर अधिमांग होगी।
प्रश्न 3.
श्रम बाजार में मजदूरी दर के निर्धारण को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम के लिए माँग तथा पूर्ति वक्रों के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है। लाभ - अधिकतमकर्ता होने के कारण फर्म सदा, उस बिन्दु तक श्रम का उपयोग करेगी, जिस पर श्रम की अन्तिम इकाई के उपयोग की अतिरिक्त लागत उस इकाई से प्राप्त अतिरिक्त लाभ के बराबर है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई को उपयोग में लाने के अतिरिक्त लागत मजदूरी दर (w) है। श्रम की एक अतिरिक्त इकाई द्वारा अतिरिक्त निर्गत उत्पादन उसका सीमांत उत्पाद तथा प्रत्येक अतिरिक्त इकाई निर्गत के विक्रय से प्राप्त अतिरिक्त आय फर्म की उस इकाई से प्राप्त सीमांत संप्राप्ति है। अतः श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के लिए जो अतिरिक्त लाभ प्राप्त होता है, वह सीमांत संप्राप्ति तथा सीमांत उत्पाद के गुणनफल के बराबर है। इसे श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद कहते हैं। अतः फर्म उस बिन्दु तक श्रम को उपयोग में लाती है जहाँ,
w = श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद
तथा
श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद = सीमांत संप्राप्ति x श्रम का सीमांत उत्पाद
क्योंकि हम एक पूर्णतः प्रतिस्पर्धी फर्म का अध्ययन कर रहे हैं, जहाँ सीमांत संप्राप्ति वस्तु की कीमत के बराबर है तथा इस स्थिति में श्रम का सीमांत संप्राप्ति उत्पाद श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य के बराबर है। जब तक श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी से अधिक है, फर्म श्रम की एक अतिरिक्त इकाई का उपयोग करके अधिक लाभ अर्जित कर सकती है तथा यदि श्रम उपयोग के किसी भी स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पाद का मूल्य मजदूरी दर की तुलना में कम है, तो फर्म श्रम की एक इकाई कम करके अपने लाभ में वृद्धि कर सकती श्रम (घंटों में दी गई ह्रासमान सीमांत उत्पाद नियम की मान्यता पर फर्म मजदूरी - श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य पर ही सदैव उत्पाद करती है, इसका यह अभिप्राय है कि श्रम के लिए माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली है। किसी मजदूरी दर w, पर श्रम के लिए माँग , है। अब मान लीजिए कि मजदूरी दर बढ़कर w, हो जाती है। मजदूरी - श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में समानता बनाए रखने के लिए श्रम के सीमांत उत्पाद के मूल्य में भी वृद्धि होनी चाहिए, वस्तु की कीमत स्थिर रहते हुए।
यह तभी सम्भव है, जब श्रम के सीमांत उत्पाद में वृद्धि हो, जिससे अभिप्राय है कि श्रम की ह्रासमान सीमांत उत्पादकता के कारण कम श्रम का उपयोग किया जाये। अतः ऊँची मजदूरी दर पर कम श्रम की माँग होती है, जिसके परिणामस्वरूप माँग वक्र नीचे की ओर प्रवणता वाली हो जाती है।
व्यक्तिगत फर्मों की माँग वक्रों से बाजार माँग वक्र ज्ञात करने के लिए हम साधारणतः विभिन्न मजदूरी की दरों पर व्यक्तिगत फर्मों द्वारा श्रम की माँग को जोड़ देते हैं । यद्यपि प्रत्येक फर्म मजदूरी बढ़ने पर कम श्रम की माँग करती है, बाजार माँग वक्र भी नीचे की ओर प्रवणता वाली होती है।
मांग पक्ष के अन्वेषण के पश्चात् अब हम पूर्ति पक्ष पर आते हैं।
किसी दी हुई मजदूरी पर कितनी श्रम - पूर्ति की जानी चाहिए, इसका निर्धारण घर-परिवार करते हैं। उनके पूर्ति का निर्णय अनिवार्य रूप से आय तथा अवकाश के बीच एक चयन है। एक ओर, व्यक्ति अवकाश में रहना चाहता है। क्योंकि वे कार्य को बोझिल मानते हैं तथा दूसरी ओर वे आय को महत्त्व देते हैं, जिसके लिए उन्हें कार्य करना पड़ता है। अत: व्यक्ति अधिक मजदूरी पर श्रम की अधिक पूर्ति होगी तथा कम मजदूरी पर श्रम की कम पूर्ति होगी। सन्तुलन मजदूरी दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है, जहाँ से दोनों वक्र एक-दूसरे को प्रतिच्छेदित करते हैं, दूसरे शब्दों में वहाँ परिवारों द्वारा श्रम की पूर्ति फर्मों द्वारा श्रम की माँग बराबर होती है।
प्रश्न 4.
बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होने पर पूर्ति वक्र के स्थानान्तरण का सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होने पर पूर्ति वक्र के स्थानान्तरण का सन्तुलन मात्रा तथा कीमत पर प्रभाव पड़ता है। इसे हम निम्न रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
उपर्युक्त रेखाचित्र में हम पूर्ति वक्र में शिफ्ट का प्रभाव संतुलन कीमत तथा मात्रा पर देखते हैं। चित्रानुसार, आरम्भ में बिन्दु E पर बाजार संतुलन में है, जहाँ बाजार मांग वक्र D1D1 बाजार पूर्ति वक्र S1S1 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करता है कि संतुलन कीमत P तथा संतुलन मात्रा है। अब यदि किसी कारण बाजार पूर्ति वक्र S1S1 पर बायीं ओर शिफ्ट होता है और माँग वक्र अपरिवर्तित रहता है, जैसा कि पैनल (a) में दर्शाया गया है। इस शिफ्ट के कारण प्रचलित कीमत P1 पर बाजार में " के बराबर अधिमांग होगी।
कुछ उपभोक्ता जो वस्तु को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, अधिक कीमत भुगतान करने के इच्छुक होंगे तथा बाजार कीमत में वृद्धि की प्रवृत्ति होगी। बिन्दु G पर नया संतुलन प्राप्त होगा, जहाँ पूर्ति वक्र S1S1 माँग वक्र D1D1 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करता है कि p कीमत पर मात्रा खरीदी तथा बेची जाएगी। इसी प्रकार, पूर्ति वक्र दाँयी ओर शिफ्ट होती है, जहाँ वस्तु की अधिपूर्ति q4' के बराबर होगी, जैसा कि पैनल (b) में दर्शाया गया है। इस अधिपूर्ति के कारण कुछ फर्मे अपनी वस्तु की कीमत गिरा देंगी तथा F पर नया संतुलन होगा, जहाँ पूर्ति वक्र Ss, माँग वक्र D1D1 को इस प्रकार प्रतिच्छेदित करती है कि P1 नई बाजार कीमत है, जिस पर q1 मात्रा खरीदी व बेची जाती है। अतः जब भी पूर्ति वक्र शिफ्ट होती है, कीमत तथा मात्रा में परिवर्तन की दिशाएँ विपरीत होती है।
अब इस समझ के साथ हम संतुलन कीमत तथा मात्रा के व्यवहार का विश्लेषण करते हैं, जब बाजार के विभिन्न पहलुओं में परिवर्तन होता है। यहाँ हम संतुलन पर आगत कीमतों में वृद्धि तथा फर्मों की संख्या में वृद्धि के प्रभाव पर विचार करेंगे अब हम एक ऐसी स्थिति पर विचार करते हैं, जहाँ अन्य सभी चीजें स्थिर रहती हैं और वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त किसी आगत की कीमत में वृद्धि होती है। इस आगत के प्रयोग करने वाली फर्मों के उत्पादन की सीमांत लागत में वृद्धि होगी। इसलिए प्रत्येक कीमत पर बाजार पूर्ति पहले से कम होगी। अतः पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाती है। रेखाचित्र (a) में इसे पूर्ति वक्र के ss, से SS, तक शिफ्ट द्वारा दर्शाया गया है, परन्तु आगत कीमत में इस वृद्धि का उपभोक्ताओं की मांग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह आगतों की कीमत पर प्रत्यक्ष रूप से निर्भर नहीं करती। अतः माँग वक्र अपरिवर्तित रहती है।
रेखाचित्र (a) में इसे D1D1. पर माँग वक्र को अपरिवर्तित रख कर दर्शाया गया है। परिणामस्वरूप पूर्व संतुलन की तुलना में अब बाजार कीमत में वृद्धि होती है तथा उत्पादित मात्रा कम हो जाती है। इसके पश्चात् हम फर्मों की संख्या में वृद्धि के प्रभाव की विवेचना करते हैं। चूँकि प्रत्येक कीमत पर अब अधिक फर्मे वस्तु की पूर्ति करेंगी, पूर्ति वक्र दायीं ओर शिफ्ट हो जाएगी, परन्तु माँग वक्र पर इसका कोई भी प्रभाव नहीं होता है। इस उदाहरण को रेखाचित्र (b) द्वारा दर्शाया जा सकता है, जहाँ पूर्ति वक्र ss, से ss, पर शिफ्ट हो जाती है, जबकि माँग वक्र D1D1. पर अपरिवर्तित रहती है। रेखाचित्र के अनुसार इस स्थिति में कीमत में कमी तथा उत्पादन मात्रा में वृद्धि होगी।
प्रश्न 5.
माँग एवं पूर्ति वक्र दोनों के बायीं ओर शिफ्ट का, सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि मांग एवं पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन मात्रा में कमी होगी तथा सन्तुलन कीमत में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। कीमत में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि मांग में कितनी कमी होती है तथा पूर्ति में कितनी कमी होती है। इसे हम निम्न स्थितियों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं।
(1) जब माँग की तुलना में पूर्ति में अधिक कमी होती है: जब माँग की तुलना में पूर्ति में अधिक कमी आती है तो उत्पादन मात्रा में कमी आएगी तथा सन्तुलन कीमत में वृद्धि होगी। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते।
दिए गए रेखाचित्र में मांग में कमी से माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होकर D1D1हो जाता है तथा पूर्ति में कमी होने से पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होकर S1S1 हो जाता है जहाँ नया सन्तुलन बिन्दु E1 है जिस पर सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है तथा सन्तुलन मात्रा कम होकर OQ से OQ1 हो जाती है।
(2) जब माँग एवं पूर्ति में समान कमी होती हैजब माँग एवं पूर्ति में समान मात्रा में कमी आती है तो कीमत अपरिवर्तित रहती है तथा सन्तुलन मात्रा में कमी के होती है। इसे हम रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते
दिए गए रेखाचित्र में मांग में कमी होने से नया माँग । वक्र D1D1 तथा पूर्ति में कमी होने से नया पूर्ति वक्र S1S1 स प्राप्त होता है जहाँ नया सन्तुलन बिन्दु E1 है जिसके व अनुसार सन्तुलन कीमत अपरिवर्तित रहती है तथा सन्तुलन । मात्रा कम होकर OP से OQ1 हो जाती है।
(3) जब माँग में पूर्ति की तुलना में अधिक कमी होती है-जब माँग में पूर्ति की तुलना में अधिक कमी होती है, कीमत में कमी आती है तथा सन्तुलन मात्रा में भी कमी होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र में मांग में कमी होने से माँग वक्र शिफ्ट होकर D1D1 हो जाता है तथा पूर्ति में कमी होने से नया पूर्ति वक्र S1S1 प्राप्त होता है जिससे हमें नया सन्तुलन बिन्दु E1 प्राप्त होता है। इस सन्तुलन बिन्दु के अनुसार सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है तथा सन्तुलन मात्रा 00 से कम होकर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 6.
बाजार सन्तुलन को स्पष्ट कीजिए। पूर्ति वक्र के दायीं ओर तथा माँग वक्र के बायीं ओर एक साथ शिफ्ट होने पर सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव की रेखाचित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए।
अथवा
जब माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट होता है तो सन्तुलन मात्रा तथा सन्तुलन कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार सन्तुलन: बाजार सन्तुलन बाजार की वह अवस्था होती है जिसमें बाजार माँग एवं बाजार पूर्ति बराबर होते हैं। यदि माँग वक्र बायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो जाए तो सन्तुलन कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। सन्तुलन मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि माँग में कितनी कमी होती है तथा पूर्ति में कितनी वृद्धि होती है। इसे हम निम्न स्थितियों के आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं
(1) जब माँग में कमी कम तथा पूर्ति में वृद्धि अधिक होती है: जब माँग में कम कमी हो किन्तु पूर्ति में अधिक वृद्धि हो तो कीमत में कमी होगी तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि होगी। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र से स्पष्ट है कि मांग में कमी के फलस्वरूप नया माँग वक्र D1D1 तथा पूर्ति में वृद्धि के फलस्वरूप नया पूर्ति वक्र S1S1 प्राप्त होता है। नया सन्तुलन बिन्दु E1 प्राप्त होता है जिसके अनुसार सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है। जबकि सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
(2) जब माँग में कमी एवं पूर्ति में वृद्धि समान होती है: जब माँग में कमी तथा पूर्ति में वृद्धि समान होती है, तो सन्तुलन मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि सन्तुलन कीमत कम हो जाती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र से स्पष्ट है कि माँग में कमी होने से माँग वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होता है तथा पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट होता है। नया माँग वक्र D1D1 तथा पूर्ति वक्र S1S1 का सन्तुलन बिन्दु E1 है जहाँ पर सन्तुलन मात्रा अपरिवर्तित रहती है, जबकि सन्तुलन कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है।
(3) जब माँग में कमी अधिक एवं पूर्ति में वृद्धि कम होती है: जब माँग में कमी अधिक मात्रा में तथा पूर्ति में वृद्धि कम मात्रा में होती है तब सन्तुलन मात्रा तथा कीमत दोनों में कमी होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र में माँग में कमी से नया माँग वक्र DD1 तथा पूर्ति में वृद्धि से नया पूर्ति वक्र SS1 प्राप्त होता है, जिनके आधार पर चित्रानुसार नया सन्तुलन बिन्दु E1 है जहाँ पर सन्तुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 तथा कीमत OP से कम होकर OP1 हो जाती है।
प्रश्न 7.
जब माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होता है तो सन्तुलन मात्रा तथा सन्तुलन कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब माँग वक्र दायीं तरफ तथा पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट होता है तो सन्तुलन कीमत में वृद्धि होती है तथा सन्तुलन मात्रा में वृद्धि, कमी अथवा अपरिवर्तित हो सकती है। सन्तुलन मात्रा में परिवर्तन इस बात पर निर्भर करता है कि माँग में कितनी वृद्धि तथा पूर्ति में कितनी कमी हुई है। इसे हम निम्न स्थितियों के द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
(1) जब माँग में वृद्धि कम तथा पूर्ति में कमी अधिक होती है: जब माँग में वृद्धि कम तथा पूर्ति में कमी अधिक होती है तब सन्तुलन कीमत में वृद्धि होती है जबकि सन्तुलन मात्रा में कमी होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र में पूर्ति में कमी से नया पूर्ति वक्र S1S1 तथा माँग में वृद्धि से नया मांग वक्र DD1 प्राप्त होता है, नया सन्तुलन बिन्दु E1 है। जिसके अनुसार सन्तुलन मात्रा OQ से कम होकर OQ1 हो जाती है तथा सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है।
(2) जब माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में कमी समान मात्रा में होती है: जब माँग में वृद्धि तथा पूर्ति में कमी समान मात्रा में होती है तब सन्तुलन कीमत में वृद्धि होती है; किन्तु सन्तुलन मात्रा अपरिवर्तित रहती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र से स्पष्ट है कि माँग में वृद्धि से नया माँग वक्र DD1 है तथा पूर्ति में कमी से नया पूर्ति वक्र SS1 है नया सन्तुलन बिन्दु E1 है जिसके अनुसार सन्तुलन मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता, जबकि संतुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है।
(3) जब माँग में वृद्धि अधिक तथा पूर्ति में कमी कम होती है: जब माँग में वृद्धि अधिक तथा पूर्ति में कमी कम होती है तो सन्तुलन कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि होती है। इसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
दिए गए रेखाचित्र में मांग में वृद्धि से नया माँग - वक्र D1D1 तथा पूर्ति में कमी से नया पूर्ति वक्र S1S1, बनता है, जिसके आधार पर नया सन्तुलन बिन्दु E, बनता है जिसके अनुसार सन्तुलन कीमत OP से बढ़कर OP1 तथा सन्तुलन मात्रा OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है।
प्रश्न 8.
उच्चतम निर्धारित कीमत की व्याख्या रेखाचित्र की सहायता से कीजिए।
अथवा उच्चतम निर्धारित कीमत से आप क्या समझते हैं? इसके प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे सम्मुख ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ सरकार कुछ वस्तुओं की अधिकतम स्वीकार्य कीमत निर्धारित करती है। किसी वस्तु अथवा सेवा की सरकार द्वारा निर्धारित कीमत की ऊपरी सीमा को उच्चतम निर्धारित कीमत कहते हैं। साधारणतः आवश्यक वस्तुओं; जैसेगेहूँ, चावल, मिट्टी का तेल, चीनी के लिए ऐसी कीमत तय की जाती है तथा यह बाजार निर्धारित कीमत से कम होती है, क्योंकि बाजार निर्धारित कीमत पर इन सभी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए जनसंख्या का कुछ भाग समर्थ नहीं होगा। हम गेहूँ के बाजार के उदाहरण द्वारा, बाजार संतुलन पर उच्चतम निर्धारित कीमत के प्रभावों को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
रेखाचित्र गेहूँ के लिए बाजार पूर्ति वक्र SS तथा बाजार माँग वक्र DD को दर्शाता है गेहूँ की संतुलन कीमत एवं मात्रा क्रमश: p* तथा q* है। गेहूँ बाजार में जब सरकार Pc पर उच्चतम कीमत निर्धारित करती है जो संतुलन कीमत स्तर से कम है, तो उपभोक्ता qc किलोग्राम गेहूँ की माँग करते हैं, जबकि फर्मों द्वारा पूर्ति किलोग्राम है। अतः इस कीमत पर बाजार में गेहूँ की अधिमांग होगी।
यद्यपि सरकार की मंशा उपभोक्ताओं की मदद करना था, लेकिन इसके द्वारा गेहूँ की कमी हो जाएगी। अतः सभी को गेहूँ की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उपभोक्ताओं को राशन कूपन जारी किए जाते हैं, ताकि कोई भी व्यक्ति-विशेष एक निश्चित मात्रा से अधिक गेहूँ न खरीद सके और गेहूँ की यह अनुबद्ध मात्रा राशन की दुकानों द्वारा बेची जाती है, जिन्हें उचित कीमत की दुकानें भी कहते हैं।
साधारणतः राशन के साथ वस्तु की उच्चतम कीमत के उपभोक्ताओं पर निम्न प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं(क) प्रत्येक उपभोक्ता को राशन की दुकानों से वस्तुओं को खरीदने के लिए लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है। (ख) क्योंकि सभी उपभोक्ता उचित कीमत दुकानों से प्राप्त वस्तुओं की मात्रा से संतुष्ट नहीं होंगे, उनमें से कुछ अधिक कीमत देने के लिए तत्पर होंगे। इससे कालाबाजारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
प्रश्न 9.
निम्नतम निर्धारित कीमत से आप क्या समझते हैं? इसके प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुछ वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में एक स्तर विशेष से नीचे गिरावट वांछनीय नहीं होती। अतः सरकार इन वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए निम्नतम कीमत निर्धारित करती है। सरकार द्वारा किसी वस्तु अथवा सेवा के लिए निर्धारित न्यूनतम सीमा को निम्नतम निर्धारित कीमत कहते हैं। निम्नतम निर्धारित कीमत के सुपरिचित उदाहरण कृषि समर्थन, कीमत कार्यक्रम तथा न्यूनतम मजदूरी विधान हैं।
कृषि समर्थन कीमत कार्यक्रम द्वारा सरकार कुछ कृषि पदार्थों के लिए क्रय कीमत की न्यूनतम सीमा तय कर देती है और यह साधारणतः इन वस्तुओं की बाजारनिर्धारित कीमत से ऊँचे स्तर पर तय की जाती है। इसी प्रकार, न्यूनतम मजदूरी विधान द्वारा सरकार यह सुनिश्चित करती है कि श्रमिकों की मजदूरी दर एक विशेष स्तर से नीचे न गिरे। यहाँ भी न्यूनतम मजदूरी दर को संतुलन मजदूरी दर से अधिक रखा जाता है।
मात्रा रेखाचित्र एक ऐसी वस्तु के बाजार पूर्ति तथा बाजार माँग वक्र को दर्शाता है, जिसकी कीमत निम्नतम निर्धारित की गई है। यहाँ बाजार संतुलन कीमत pf तथा मात्रा qf है। परन्तु जब सरकार निम्नतम कीमत सीमा, संतुलित सीमा से अधिक p पर निर्धारित करती है, बाजार माँग q'f है जबकि फर्मे मात्रा की पूर्ति करना चाहती हैं, जिसके कारण qfq'f के बराबर बाजार में अधिपूर्ति होती है। कृषि समर्थन के अंतर्गत अधिपूर्ति के कारण कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार को पूर्व-निर्धारित कीमत पर अधिशेष को खरीदना पड़ता है।
प्रश्न 10.
एक वस्तु की दी गई कीमत पर आधिक्य माँग है। क्या यह कीमत सन्तुलित कीमत है? यदि नहीं तो सन्तुलन कीमत किस प्रकार प्राप्त होगी? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जिस कीमत पर आधिक्य माँग होती है, वह कीमत साम्य कीमत नहीं कहलाती है। संतुलन (साम्य) कीमत पर तो एक माँग तथा पूर्ति समान होती है। संतुलन कीमत वह स्थिति है जहाँ शून्य आधिक्य मांग तथा शन्य आधिक्य पूर्ति होती है। चित्र में DD माँग वक्र है और SS पूर्ति वक्र है। OP1 बाजार कीमत है। इस कीमत पर पूर्ति OQ है तथा माँग OQ1 है। इसका अभिप्राय यह है कि जितना उत्पादक पूर्ति करने के लिए तैयार है, उससे अधिक उपभोक्ता उस वस्तु की मांग करते हैं।
अतः दी कीमत पर शून्य आधिक्य माँग होती है अर्थात् माँग पूर्ति के बराबर होती है। आधिक्य माँग से उपभोक्ताओं में प्रतियोगिता उत्पन्न होगी। परिणामस्वरूप कीमत में वृद्धि होगी। कीमत तब तक बढ़ती जाएगी जब तक आधिक्य माँग शून्य नहीं हो जाती। अन्ततः कीमत बढ़कर OP हो जाएगी। OP संतुलन कीमत होगी। इस कीमत पर माँग पूर्ति के बराबर होगी। दोनों माँग और पूर्ति OQo के बराबर होंगे।
प्रश्न 11.
साम्ब से आप क्या समझते हैं? उपयुक्त उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से मांग एवं पूर्ति के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
साम्य का अर्थ-बाजार की उस दशा को साम्य कहते हैं जो एक बार प्राप्त होने पर, वहीं बने रहने की प्रवृत्ति रखती है। बाजार में एक निश्चित समय में मांग की मात्रा व पूर्ति की मात्रा समान होने पर ही अर्थशास्त्र में साम्य की स्थिति की कल्पना की जाती है। इस प्रकार बाजार साम्य उस कीमत और मात्रा पर प्राप्त होगा, जहाँ मांग व पूर्ति की शक्तियाँ संतुलन में हों। मांग पक्ष (क्रेता) की ओर से वस्तु की सीमान्त उपयोगिता मूल्य की उचतम सीमा होती है। क्रेता इससे अधिक मूल्य नहीं देना चाहता है। पूर्ति पक्ष (विक्रेता) की ओर से सीमान्त लागत मूल्य की निम्नतम सीमा होती है। विक्रेता इससे कम मूल्य नहीं लेना चाहता है। वास्तविक मूल्य इन दोनों सीमाओं के मध्य निर्धारित होता है। मांग व पूर्ति में संतुलन या साम्य की
तालिका से स्पष्ट है कि सान्य मूल्य रु. प्रति इकाई है। इस मूल्य पर वस्तु की 600 इकाइयों की मांग तथा 600 इकाइयों की पूर्ति दोनों वरावर हैं अर्थात् 3 रुपए पर क्रेता वस्तु x की 600 इकाइयां खरीदने को तैयार है तथा विक्रेता भी x वस्तु को 600 इकाइयां बेचने को तैयार है। वस्तु की मांग 1000 इकाइयाँ होने पर वस्तु की पूर्ति 200 इकाइयाँ दिखाई गई हैं। इस स्थिति में वस्तु का मूल्य 1 रु. प्रति इकाई है। मांग के नियम के अनुसार मूल्य बढ़ने से पूर्ति बढ़ती है व माँग कम होती है। 2 रु. मूल्य होने पर पूर्ति की मात्रा बढ़कर 400 इकाइयाँ तथा मांग घटकर 800 इकाइयाँ हो जाती हैं इस स्थिति में अतिरिक्त मांग
स्थिति में मांग एवं पूर्ति मात्रा बराबर होती है। इस स्थिति में निर्धारित मूल्य को साम्य मूल्य कहते हैं।
प्रो. मार्शल के अनुसार, "जब साम्य माँग साम्य पूर्ति के बराबर हो जाती है तो वस्तु की उत्पादित मात्रा में न तो वृद्धि की प्रवृत्ति पाई जाती है और न ही कमी की, उसे साम्य कीमत कहते हैं।"
साम्य की मान्यताएं: साम्य की प्रमुख मान्यताएँ निम्न प्रकार हैं:
(800 - 400) = 400 इकाइयों की रहती है। अपूरित माँग रहने से मूल्य बढ़ता है तथा 3 रु. प्रति इकाई हो जाता है। इस स्थिति में मांग घटकर 600 इकाइयाँ तथा पूर्ति बढ़कर 600 इकाइयाँ हो जाती हैं। यह साम्य की स्थिति है। इसमें न तो अतिरिक्त मांग है और न ही अतिरिक्त पूर्ति। साम्य मूल्य को सामान्य मूल्य, संतुलित मूल्य तथा दीर्घकालीन मूल्य भी कहा जाता है।
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण चित्र में Ox अक्ष पर मांग व पूर्ति की मात्राएँ व OY अक्ष पर कीमत दर्शायी गयी है। DD माँग वक्र व Ss पूर्ति वक्र एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं, जिससे OP कीमत पर मांग की माशा व पूर्ति को मात्रा 00 के बरावर होती है। यदि कीमत OP से बढ़कर OP, हो जाती है तो पूर्ति की मात्र मांग की मात्रा से अधिक हो जाती है जिससे कीमत स्वतः गिरना प्रारम्भ हो जाती है जिसे नीचे की ओर इंगित करते तोरों से व्यक्त किया गया है। अंत में कीमत पुनः E पर आ जाती है।
इसी प्रकार यदि कोमत्त OP से घटकर OP, रह जाती है तो माँग मात्रा पूर्ति की मात्रा से अधिक हो जाती है। जिससे कीमत में बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाई देती है तथा कीमत बढ़कर पुनः । विन्दु पर आ जाती है। मांग व पूर्ति के इस साम्य में कीमत प्रणाली को स्वचालित शक्ति माना जाता है।