Rajasthan Board RBSE Class 12 Economics Important Questions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Important Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Economics Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Economics Notes to understand and remember the concepts easily.
वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की विशेषता है।
(अ) वस्तु की समान कीमत
(ब) समरूप वस्तुएँ
(स) अत्यधिक क्रेता एवं विक्रेता
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत का निर्धारण किया जाता है।
(अ) फर्म द्वारा
(ब) उद्योग के द्वारा
(स) सरकार द्वारा
(द) क्रेता द्वारा
उत्तर:
(ब) उद्योग के द्वारा
प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में एक फर्म होती है।
(अ) कीमत स्वीकारक
(ब) कीमत निर्धारक
(स) बाजार निर्धारक
(द) माँग निर्धारक
उत्तर:
(अ) कीमत स्वीकारक
प्रश्न 4.
कुल संप्राप्ति ज्ञात करने का सूत्र है।
(अ) कुल संप्राप्ति = वस्तु की कीमत x फर्म की निर्गत
(ब) कुल संप्राप्ति = वस्तु की कीमत + फर्म की निर्गत
(स) कुल संप्राप्ति = औसत निर्गत + सीमान्त निर्गत
(द) कुल संप्राप्ति= सीमान्त निर्गत x वस्तु की कीमत
उत्तर:
(स) कुल संप्राप्ति = औसत निर्गत + सीमान्त निर्गत
प्रश्न 5.
पूर्ति प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की कीमत रेखा होती।
(अ) ऋणात्मक ढाल वाली रेखा
(ब) धनात्मक ढाल वाली रेखा
(स) क्षैतिज अक्ष के समानान्तर रेखा
(द) लम्बवत् अक्ष के समानान्तर रेखा
उत्तर:
(अ) ऋणात्मक ढाल वाली रेखा
प्रश्न 6.
फर्म के पूर्ति वक्र को निर्धारित करने वाला तत्त्व।
(अ) प्रौद्योगिकीय प्रगति
(ब) आगत कीमतें
(स) इकाई कर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) इकाई कर
प्रश्न 7.
पूर्ति की कीमत लोच का सूत्र है
उत्तर:
प्रश्न 8.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में फर्म का माँग वक्र होता।
(अ) इकाई से अधिक लोचदार
(ब) इकाई लोचदार
(स) पूर्णतया लोचदार
(द) पूर्णतया बेलोचदार
उत्तर:
(स) पूर्णतया लोचदार
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
वस्तु की माँग मात्रा में वृद्धि होने पर तथा उसी वस्तु की पूर्ति मात्रा में कमी होने पर संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
संतुलन कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 2.
साम्य (या संतुलन) कीमत की परिभाषा दीजिये।
उत्तर:
बाजार माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत साम्य कीमत कहलाती है।
प्रश्न 3.
आगम को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
फर्म द्वारा उत्पादन बेचने से प्राप्त राशि आगम कहलाती है।
प्रश्न 4.
पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
बाजार में किसी निर्धारित समय पर विभिन्न कीमतों पर बिकने हेतु प्रस्तुत मात्रा पूर्ति कहलाती है।
प्रश्न 5.
बाजार पूर्ति क्या है?
उत्तर:
बाजार में सभी फर्मों द्वारा विभिन्न कीमतों पर बेचे जाने वाली मात्रा।
प्रश्न 6.
पूर्ति वक्र के दायीं ओर खिसकने का एक कारण बताओ।
उत्तर:
प्रौद्योगिकीय प्रगति।
प्रश्न 7.
व्यक्तिगत फर्मों के पूर्ति वक्रों को समूहित करके कौनसा पूर्ति वक्र प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
बाजार पूर्ति वक्र।
प्रश्न 8.
एक फर्म द्वारा वस्तुओं के उत्पादन तथा विक्रय करने के पीछे सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
लाभ को अधिकतम करना।
प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में सभी फर्मे किस प्रकार की वस्तुओं का विक्रय करती हैं?
उत्तर:
समरूप वस्तुएँ।
प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है अथवा कीमत निर्धारक होती है?
उत्तर:
कीमत स्वीकारक।
प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की कोई एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
बाजार में प्रत्येक फर्म समान कीमत लेती है।
प्रश्न 12.
एक फर्म के कुल संप्राप्ति वक्र का द्वाल किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
धनात्मक ढाल।
प्रश्न 13.
यदि फर्म का निर्गत शून्य हो तो कुल संप्राप्ति कितनी होगी?
उत्तर:
शून्य।
प्रश्न 14.
औसत संप्राप्ति ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 15.
सीमान्त संप्राप्ति ज्ञात करने का सूत्र बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
लाभ ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
लाभ = कुल संप्राप्ति - कुल लागत
प्रश्न 17.
कुल संप्राप्ति से आपका क्या अभिप्राय
उत्तर:
एक फर्म द्वारा बाजार कीमत पर अपना उत्पादन बेचने से प्राप्त धन को कुल संप्राप्ति कहा जाता
प्रश्न 18.
कुल संप्राप्ति वक्र क्या है?
उत्तर:
एक फर्म का कल संप्राप्ति वक्र इसकी कुल संप्राप्ति तथा इसके निर्गत के बीच सम्बन्ध दर्शाती है।
प्रश्न 19.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की कीमत रेखा तथा माँग वक्र में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म की कीमत रेखा तथा माँग वक्र एक ही होता है।
प्रश्न 20.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का माँग वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में एक फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है।
प्रश्न 21.
औसत संप्राप्ति का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कुल संप्राप्ति में निर्गत की मात्रा का भाग देने से प्राप्त संप्राप्ति को औसत संप्राप्ति कहते हैं।
प्रश्न 22.
सीमान्त संप्राप्ति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
यह फर्म के निर्गत में प्रति इकाई वृद्धि के लिए कुल संप्राप्ति वृद्धि के रूप में परिभाषित की जाती
प्रश्न 23.
एक फर्म द्वारा लाभ अधिकतम होने हेतु पूरी होने वाली कोई दो शर्ते बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 24.
सामान्य लाभ से आपका क्या अभिप्राय
उत्तर:
वह लाभ स्तर जो केवल स्पष्ट लागतों तथा अवसर लागतों को पूरा कर सके।
प्रश्न 25.
अधिसामान्य लाभ किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह लाभ जो एक फर्म सामान्य लाभ से ऊपर अर्जित करती है।
प्रश्न 26.
लाभ - अलाभ बिन्दु किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूर्ति वक्र के जिस बिन्दु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है।
प्रश्न 27.
अवसर लागत किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी कार्य की अवसर लागत दूसरे सर्वश्रेष्ठ कार्य से प्राप्त त्यागा गया लाभ है।
प्रश्न 28.
फर्म के पूर्ति वक्र के कोई दो निर्धारक तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 29.
इकाई कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
इकाई कर वह कर है जो सरकार निर्गत के प्रति इकाई विक्रय पर लगाती है।
प्रश्न 30.
पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात करने का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
\(\mathrm{e}_{\mathrm{s}}=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{p}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
प्रश्न 31.
जब पूर्ति वक्र ऊर्ध्वस्तरीय होता है, तो पूर्ति की कीमत लोच क्या होगी?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र ऊर्ध्वस्तरीय होता है, तो पूर्ति की कीमत लोच शून्य होगी।
प्रश्न 32.
उत्पादन आगतों की कीमतों में कमी होने पर फर्म के पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
उत्पादन आगों की कीमतों में कमी आने पर पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 33.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का सीमान्त संप्राप्ति वक्र किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का सीमान्त संप्राप्ति वक्र क्षैतिज अक्ष के समानान्तर होता है।
प्रश्न 34.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का औसत संप्राप्ति वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का औसत संप्राप्ति वक्त क्षैतिज अक्ष के समानान्तर होता है।
प्रश्न 35.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में कीमत, औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति में क्या सम्बन्ध होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में कीमत, औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति तीनों समान होते हैं।
प्रश्न 36.
उत्पादन कर में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र किस तरफ शिफ्ट होता है?
उत्तर:
उत्पादन कर में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 37.
फर्मों की संख्या में कमी होने पर पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
फर्मों की संख्या में कमी होने पर पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा।
प्रश्न 38.
जब पूर्ति वक्र मूल बिन्दु से होकर गुजरता है तो पूर्ति की लोच कितनी होगी?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र मूल बिन्दु से होकर गुजरता है तो पूर्ति की लोच इकाई के बराबर होगी।
प्रश्न 39.
पूर्ति लोचदार कब होगी?
उत्तर:
जब कीमत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात की तुलना में पूर्ति में अधिक परिवर्तन होता है।
प्रश्न 40.
पूर्ति बेलोचदार कब होती है?
उत्तर:
जब कीमत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात की तुलना में पूर्ति में कम परिवर्तन होता है।
प्रश्न 41.
पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति कब होती है?
उत्तर:
जब कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती
प्रश्न 42.
इकाई लोचदार पूर्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब वस्तु की पूर्ति में उसी अनुपात में परिवर्तन होता है, जिस अनुपात में वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है।
प्रश्न 43.
पूर्ति वक्र का स्वरूप कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्ति वक्र सामान्यतः बाई से दायीं तरफ ऊपर उठता हुआ होता है।
प्रश्न 44.
पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति में पूर्ति वक्र कैसा होता है?
उत्तर:
पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति में पूर्ति वक्र लम्बवत् अक्ष के समानान्तर होता है।
प्रश्न 45.
एक फर्म के कुल संप्राप्ति वक्र की आकृति कैसी होती है?
उत्तर:
यह उद्गम से धनात्मक ढाल वाला वक्र होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
बाजार पूर्ति को एक तालिका के माध्यम से समझाइये।
उत्तर:
बाजार पूर्ति में वस्तु की कीमत एवं पूर्ति की मात्रा में धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है जिसे निम्न तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है।
वस्तु की कीमत |
पूर्ति की मात्रा |
1 2 3 4 |
2 4 7 9 |
प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 3.
यदि माँग और पूर्ति दोनों में कमी हो तो -संतुलन कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि मांग एवं पूर्ति में समान कमी हो तो कीमत स्थिर रहेगी, यदि मांग पूर्ति की तुलना में अधिक कम हो तो कीमत में कमी होगी तथा यदि पूर्ति मांग की तुलना में अधिक कम हो तो कीमत में वृद्धि होगी।
प्रश्न 4.
उत्पादक के संतुलन की कोई दो सामान्य शर्त बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
पूर्ति वक्र क्या है? इसका ढाल कैसा होता है?
उत्तर:
वह वक्र जो किसी निर्धारित समय पर कीमत तथा पूर्ति की मात्रा के सम्बन्ध को दर्शाता है। सामान्यतः पूर्ति वक्र ऊपर की ओर उठा हुआ होता है।
प्रश्न 6.
संतुलन कीमत से आप क्या समझते हैं? यह कैसे निर्धारित होती है? ।
उत्तर:
संतुलन कीमत वह है जो बाजार माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। यह वहाँ निर्धारित होती है जहाँ बाजार माँग एवं पूर्ति दोनों बराबर होती हैं।
प्रश्न 7.
तकनीकी प्रगति का वस्तु की पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तकनीकी प्रगति के फलस्वरूप कम लागत पर अधिक उत्पादन संभव हो पाता है अत: वस्तु की पूर्ति बढ़ जाएगी एवं पूर्ति वक्र दाहिनी ओर शिफ्ट हो जाएगा।
प्रश्न 8.
यदि साइकिलों का उत्पादन करने वाली फर्म के लिए सरकार उत्पादन शुल्क बढ़ा देती है, तो साइकिलों की पूर्ति पर दीर्घकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
उत्पादन शुल्क बढ़ाने से साइकिलों की उत्पादन लागत बढ़ जाएगी जिससे दीर्घकाल में साइकिलों की पूर्ति कम हो जाएगी।
प्रश्न 9.
यदि जूते के उत्पादन पर सरकार उत्पादन शुल्क घटा दे, तो जूते की पूर्ति पर अल्पकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
अल्पकाल में उत्पादन शुल्क घटाने पर कुछ सीमा तक परिवर्तनशील साधनों की मात्रा बढ़ाकर जूतों की थोड़ी पूर्ति बढ़ाई जा सकती है।
प्रश्न 10.
पूर्ति का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की पूर्ति वह मात्रा है जो एक बाजार में किसी निर्धारित समय पर विभिन्न कीमतों पर विक्रय के लिए प्रस्तुत की जाती है।
प्रश्न 11.
पूर्ति के नियम का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पूर्ति के नियम के अनुसार अन्य बातें समान रहने पर कीमत बढ़ने पर वस्तु की पूर्ति बढ़ती है तथा वस्तु की कीमत घटने पर पूर्ति घटती है।
प्रश्न 12.
बाजार पूर्ति वक्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाजार पूर्ति वक्र वह निर्गत स्तर दर्शाता है जिसका बाजार में सभी फमैं समवर्ती विभिन्न बाजार मूल्यों पर सामूहिक रूप से उत्पादन करती हैं।
प्रश्न 13.
इकाई कर क्या है? इसके लगाने से पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
इकाई कर वह कर होता है, जो सरकार निर्गत के प्रति इकाई विक्रय पर लगाती है। इकाई कर लगाने से लागत में वृद्धि होती है जिससे पूर्ति की मात्रा कम हो जाती है।
प्रश्न 14.
उत्पादन बन्दी बिन्दु क्या है? अल्पकाल में एक फर्म कब उत्पादन बन्द कर देती है?
उत्तर:
उत्पादन बन्दी बिन्दु उत्पादन का वह स्तर है जिस पर फर्म उत्पादन बन्द कर देती है। यदि अल्पकाल में फर्म को औसत परिवर्ती लागत भी प्राप्त नहीं होती तो वह उत्पादन बन्द कर देती है।
प्रश्न 15.
पूर्ति में विस्तार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से जब उत्पादक अधिक मात्रा की पूर्ति करते हैं तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं।
प्रश्न 16.
पूर्ति में संकुचन से आप क्या समझते
उत्तर:
अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत में कमी होने पर जब उत्पादक वस्तु की कम मात्रा की पूर्ति करते हैं तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं।
प्रश्न 17.
पूर्ति में वृद्धि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कीमत के स्थिर रहने पर जब किसी अन्य तत्त्व में परिवर्तन होने के फलस्वरूप पूर्ति मात्रा बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।
प्रश्न 18.
पूर्ति में कमी का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कीमत के स्थिर रहने पर जब किसी अन्य तत्त्व में परिवर्तन होने के फलस्वरूप पूर्ति मात्रा कम हो जाती है तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं।
प्रश्न 19.
आगतों की कीमतों में परिवर्तन का वस्तु की पूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
आगतों की कीमतों का वस्तु की पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है। आगतों की कीमतों में वृद्धि होने पर वस्तु की पूर्ति में कमी एवं आगतों की कीमतों में कमी होने पर वस्तु की पूर्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 20.
कीमत रेखा क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की कीमत रेखा कैसी होती है?
उत्तर:
कीमत रेखा, वह रेखा होती है जो कीमत एवं फर्म के निर्गत के मध्य सम्बन्ध दर्शाती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज अक्ष के समानान्तर होती है।
प्रश्न 21.
पूर्ति को प्रभावित करने वाले कोई दो तत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 22.
पूर्ति के नियम की कोई दो मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 23.
पूर्ति में वृद्धि के कोई दो कारण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 24.
साम्य कीमत तथा साम्य मात्रा का क्या अर्थ है?
उत्तर:
माँग एवं पूर्ति के साम्य बिन्दु पर पाई जाने वाली कीमत साम्य कीमत कहलाती है तथा माँग एवं पूर्ति के साम्य बिन्दु पर पाई जाने वाली मात्रा साम्य मात्रा कहलाती है।
प्रश्न 25.
क्या पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत का निर्धारण करती है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म कीमत स्वीकारक होती है तथा कीमत बाजार की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
प्रश्न 26.
पूर्ति वक्र क्या है? एक फर्म के पूर्ति चक्र को निर्धारित करने वाले कोई तीन तत्त्व सुझाइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र: एक फर्म का पूर्ति वक्र निर्गत के स्तरों को दर्शाता है जिनका संबंधित फर्म बाजार कीमत के विभिन्न मूल्यों पर उत्पादन के लिए चयन करती है।
पूर्ति वन के निर्धारक तत्त्व - पूर्ति वक्र के प्रमुख: निर्धारक तत्त्व निम्न प्रकार हैं।
प्रश्न 27.
वस्तु की कीमत 5 रु. प्रति इकाई है, तो वस्तु की पूर्ति मात्रा 100 इकाइयाँ है। यदि वस्तु की कीमत बढ़कर 6 रु. प्रति इकाई हो जाये तो वस्तु की पूर्ति मात्रा बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। पूर्ति की कीमत लोच की गणना कीजिए।
उत्तर:
\(\mathrm{e}_{\mathrm{s}} \Rightarrow \frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
यहाँ
∆q = 120 - 100 = 20
∆p = 6 - 5 = 1
p1 = 5
q1 = 100
\(\begin{aligned} \mathrm{e}_{s} &=\frac{20}{1} \times \frac{5}{100} \\ &=\frac{100}{100} \\ \mathrm{e}_{s} &=1 \end{aligned}\)
अतः पूर्ति की कीमत लोच इकाई लोचदार है।
प्रश्न 28.
पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की मान्यता का प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा के तहत कोई भी फर्म उद्योग में प्रवेश करने एवं उद्योग से बाहर जाने हेतु स्वतंत्र रहती है, इसके परिणामस्वरूप बाजार में अनेक फर्मे रहती हैं जिनमें पूर्ण प्रतिस्पर्धा बनी रहती है तथा जिससे कीमत स्थिर बनी रहती है।
प्रश्न 29.
एक कीमत स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत और सीमान्त सम्प्राप्ति में क्या सम्बन्ध है? सारणी की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में केवल परिवर्तनशील साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है। अल्पकाल में उद्योग के अन्तर्गत फर्म को असामान्य लाभ, सामान्य लाभ अथवा हानि की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग की फर्म को सामान्य लाभ की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 30.
पूर्ति का नियम क्या है? इसे उदाहरण एवं रेखाचित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति का नियम: अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति की मात्रा बढ़ती है एवं वस्तु की कीमत घटने पर पूर्ति की मात्रा घटती है।
उदाहरण एवं रेखाचित्र द्वारा व्याख्या:
तालिका व रेखाचित्र से स्पष्ट है कि कीमत बढ़ने पर पूर्ति में वृद्धि एवं कीमत घटने पर पूर्ति में कमी होगी। प्रश्न 31. पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल एवं दीर्घकाल में उद्योग के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 32.
पूर्ति में विस्तार को रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइये।
उत्तर:
पूर्ति में विस्तार: वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उत्पादक अधिक मात्रा में वस्तु की पूर्ति करते हैं जिसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं। इसे निम्न रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 33.
पूर्ति में वृद्धि को रेखाचित्र की सहायता से दर्शाइये।
उत्तर:
पूर्ति में वृद्धि: जब कीमत के अतिरिक्त अन्य किसी तत्त्व में परिवर्तन होने से पूर्ति बढ़ती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। इसे सामने दिये गये रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है।
प्रश्न 34.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के कोई चार पारिभाषिक लक्षण बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 35.
कुल संप्राप्ति का क्या अभिप्राय है? इसे कैसे मापा जाता है?
उत्तर:
कुल संप्राप्ति: एक फर्म के द्वारा बाजार में बाजार कीमत पर अपने उत्पाद को बेचने से जो धन प्राप्त होता है, उसे कुल संप्राप्ति कहते हैं। इसे वस्तु के बाजार मूल्य से फर्म के निर्गत से गुणा करके ज्ञात किया जा सकता है अर्थात् कुल संप्राप्ति = वस्तु का बाजार मूल्य x फर्म का निर्गत
प्रश्न 36.
औसत संप्राप्ति किसे कहते हैं? इसकी गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
औसत संप्राप्ति-एक फर्म की कुल संप्राप्ति में निर्गत की मात्रा का भाग देने से प्राप्त संप्राप्ति को औसत संप्राप्ति कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक फर्म की औसत संप्राप्ति को किसी फर्म की प्रति इकाई निर्गत कुल संप्राप्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
प्रश्न 37.
सीमान्त संप्राप्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी माप किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
सीमान्त संप्राप्ति: एक फर्म की सीमान्त संप्राप्ति फर्म के निर्गत में प्रति इकाई वृद्धि से कुल संप्राप्ति वृद्धि के रूप में परिभाषित की जाती है अर्थात् निर्गत की एक अतिरिक्त इकाई से कुल संप्राप्ति में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त संप्राप्ति कहते हैं। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है।
प्रश्न 38.
लाभ से आप क्या समझते हैं? यह कैसे ज्ञात किया जाता है?
उत्तर:
एक फर्म द्वारा वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिस पर लगा खर्च कुल लागत होती है तथा उसे बेचने से प्राप्त धन कुल संप्राप्ति कहलाती है, कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत के अन्तर को लाभ कहा जाता है। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है। लाभ = कुल संप्राप्ति - कुल लागत
प्रश्न 39.
सामान्य लाभ तथा अधिसामान्य लाभ में अन्तर बताइए।
उत्तर:
ऐसा लाभ स्तर जो केवल स्पष्ट लागतों तथा अवसर लागतों को पूरा करता है, वह सामान्य लाभ कहलाता है अर्थात् जहाँ कुल संप्राप्ति, कुल लागत के बराबर होती है वह सामान्य लाभ कहलाता है। जबकि वह लाभ जो एक फर्म सामान्य लाभ से ऊपर अर्जित करती है, अधिसामान्य लाभ कहलाता है।
प्रश्न 40.
"पूर्ण प्रतिस्पर्धा में फर्म कीमत स्वीकारक होती है न कि कीमत निर्धारक।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य का सम्बन्ध किसी फर्म विशेष से न होकर सम्पूर्ण उद्योग से होता है तथा वस्तु की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जिस पर उद्योग की वस्तु की कुल माँग और कुल पूर्ति बराबर होती है। इस बिन्दु पर स्थित मूल्य साम्य मूल्य कहलाता है। प्रत्येक फर्म इसी साम्य मूल्य पर वस्तुओं का विक्रय करती
प्रश्न 41.
पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में एक फर्म बाजार कीमत से अधिक कीमत नहीं ले सकती है। इसका क्या कारण है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है न कि कीमत निर्धारक । इस बाजार में कीमत वहाँ पर निर्धारित होती है जहाँ पर बाजार में वस्तु की मांग तथा पूर्ति बराबर होती है। यदि कोई फर्म अपनी कीमत को बाजार कीमत से अधिक रखती है तो वह फर्म अपनी वस्तु का विक्रय नहीं कर सकती है।
प्रश्न 42.
एक फर्म की कुल संप्राप्ति को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तु की कीमत स्थिर रहती है। फर्म द्वारा शून्य निर्गत पर कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है तथा निर्गत में वृद्धि के साथ - साथ कुल संप्राप्ति में भी वृद्धि होती जाती है। इसे आगे दिये गये रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
प्रश्न 43.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म की कीमत, औसत आगम तथा सीमान्त आगम में सम्बन्ध को रेखाचित्र की सहायता से बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार कीमत समान होती है तथा फर्म उसी कीमत पर अपना निर्गत बाजार में बेचती है। अतः बाजार कीमत, औसत आगम तथा सीमान्त आगम तीनों समान होते हैं। इसे निम्न रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है
प्रश्न 44.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म के लाभ अधिकतमीकरण की शर्तों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के लाभ अधिकतमीकरण हेतु निम्न तीन शर्ते पूरी होनी चाहिए
प्रश्न 45.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म के अल्पकालीन पूर्ति बन को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म अल्पकालीन पूर्ति वक्र न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से ऊपर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र का बढ़ता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य होता है।
उपर्युक्त रेखाचित्र में A बिन्दु से ऊपर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र का भाग अल्पकालीन पूर्ति वक्र कहलाता है।
प्रश्न 46.
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म के दीर्घकालीन पूर्ति वक्र को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र का वह भाग होता है, जो न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के बराबर अथवा उससे अधिक होता है।
निर्गत चित्रानुसार दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र का E बिन्दु से ऊपर वाला भाग दीर्घकालीन पूर्ति वक्र कहलाता
प्रश्न 47.
इकाई कर लगाने के फलस्वरूप एक फर्म की दीर्घकालीन सीमान्त लागत वन तथा दीर्घकालीन औसत लागत वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा? रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इकाई कर लगाने के फलस्वरूप एक फर्म की सीमान्त लागत (MC) तथा औसत लागत (AC) में वृद्धि हो जाती है।
निर्गत रेखाचित्र के अनुसार इकाई कर लगाने से पूर्व दीर्घकालीन सीमांत लागत तथा दीर्घकालीन औसत लागत क्रमश: MC° एवं ACo हैं। अब, मान लीजिए कि सरकार । रुपये इकाई कर लगा देती है। इससे दीर्घकालीन औसत लागत तथा दीर्घकालीन सीमांत लागत । रुपये बढ़ जाती है, रेखाचित्र में, MC1 एवं AC1 इकाई कर लगाने के पश्चात् फर्म की क्रमशः दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र तथा दीर्घकालीन औसत लागत वक्र है।
प्रश्न 48.
इकाई कर लगाने से एक फर्म के पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा? इसे रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इकाई कर लगाने से एक फर्म की सीमान्त लागत तथा औसत लागत में वृद्धि हो जाती है। अत: इस कारण फर्म का पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है अर्थात् पूर्ति कम हो जाती है।
रेखाचित्र से यह स्पष्ट है कि S तथा SI क्रमश: इकाई कर लगने के पहले तथा बाद फर्म के दीर्घकालीन पूर्ति वक्र हैं।
प्रश्न 49.
पूर्ति से क्या अभिप्राय है? रेखाचित्र की सहायता से पूर्ति वक्र को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति किसी वस्तु की वह मात्रा होती है, जो एक उत्पादक निश्चित समय पर एक निश्चित कीमत पर बाजार में बेचने को तैयार रहता है। पूर्ति की मात्रा तथा कीमत में धनात्मक सम्बन्ध होता है। अतः पूर्ति वक्र एक धनात्मक ढाल वाली रेखा होती है।
रेखाचित्र में SS एक पूर्ति वक्र है, जो कीमत तथा निर्गत की मात्रा में धनात्मक सम्बन्ध को दर्शाता है।
प्रश्न 50.
उत्पादन की नई तकनीक के कारण कपड़े की सीमान्त लागत में कमी आ जाती है, इसका कपड़े के पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि उत्पादन की नई तकनीक के कारण कपड़े की सीमान्त लागत में कमी आ जाती है तो इससे कपड़े की औसत लागत में भी कमी आएगी जिस कारण फर्म का पूर्ति वक्र दायीं तरफ शिफ्ट हो जाएगा एवं पूर्ति में
तकनीक परिवर्तन से पूर्व फर्म का पूर्ति वक्र s1s1 था वह नई तकनीक से लागत में कमी आने के परिणामस्वरूप Ss से S1S1 हो जाता है।
प्रश्न 51.
समुद्रतटीय प्रदेश में चक्रवात के कारण समुद्री जल चावल के खेतों में भर जाता है। इससे भूमि की उत्पादकता में कमी आ जाती है। उस क्षेत्र में चावल की पूर्ति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कीमत के अतिरिक्त अन्य कारणों से जब वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है तो पूर्ति वक्र अपने बायीं ओर खिसक जाता है। चक्रवात के कारण चावल की पूर्ति में कमी आ जाती है, जिसके फलस्वरूप चावल का पूर्ति वक्र SS अपने बाईं ओर खिसक जाता है। वक्र S1S1 नया पूर्ति वक्र है।
प्रश्न 52.
ज्यामितीय विधि से पूर्ति वक्र की लोच कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
ज्यामितीय विधि से पूर्ति वक्र की लोच ज्ञात करने हेतु निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है
पूर्ति की लोच को ज्यामितीय विधि से निम्न रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं
प्रश्न 53.
प्रतिशत विधि से पूर्ति की लोच कैसे मापी जाती है?
उत्तर:
एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच, वस्तु की कीमत में परिवर्तनों के कारण वस्तु की पूर्ति की मात्रा की अनुक्रियाशीलता को मापती है। इसका सूत्र निम्न है।
प्रश्न 54.
बाजार पूर्ति से क्या अभिप्राय है? इसे कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर:
बाजार पूर्ति: बाजार पूर्ति से अभिप्राय विभिन्न कीमतों पर बाज़ार के सभी विक्रेताओं की एक सामूहिक पूर्ति से है। व्यक्तिगत पूर्ति के जोड़ने से बाजार पूर्ति प्राप्त होती है। बाजार पूर्ति को नीचे तालिका की सहायता से समझाया गया है।
प्रश्न 55.
एक वस्तु की कीमत 10 रु. एवं पूर्ति 100 इकाइयाँ हैं। कीमत बढ़कर 12 रु. होने पर पूर्ति बढ़कर 150 इकाइयाँ हो जाती हैं। पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
\(\mathrm{e}_{\mathrm{s}}=\frac{\frac{\Delta \mathrm{q}}{\mathrm{q}_{1}}}{\frac{\Delta \mathrm{P}}{\mathrm{P}_{1}}}=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
∆q = 150 - 100 = 50
∆P = 12 - 10 = 2
q1 = 100 (प्रारम्भिक मात्रा)
P1 = 10 (प्रारम्भिक कीमत)
\(e_{s}=\frac{50}{2} \times \frac{10}{100}\)
32.5 अत: पूर्ति की कीमत लोच इकाई से अधिक है।
प्रश्न 56.
यदि एक क्रिकेट गेंद की कीमत 5 रुपये है तो बाजार में फर्मों द्वारा 100 गेंदों की पूर्ति की जाती है। यदि इस क्रिकेट गेंद की कीमत बढ़कर 15 रुपये हो जाती है, तो पूर्ति बढ़कर 500 हो जाती है। पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यहाँ ∆q = 500 - 100 = 400
∆P = 15 - 5 = 10
q1 = 100
p1 = 5
\(\begin{aligned} \mathrm{e}_{\mathrm{s}} &=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}} \\ &=\frac{400}{10} \times \frac{5}{100} \\ &=2 \end{aligned}\)
अतः पूर्ति की कीमत लोच इकाई से अधिक है।
प्रश्न 57.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के साम्य निर्धारण की सीमान्त आगम तथा सीमान्त लागत रीति की शर्ते बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 58.
यदि पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक वस्तु की कीमत 20 रु. प्रति इकाई है, तो दी हुई सारणी में कुल सम्प्राप्ति एवं सीमान्त सम्प्राप्ति अनुसूचियों की गणना कीजिए।
बेची गई |
कुल संप्राप्ति |
सीमान्त संप्राप्ति |
0 1 2 3 |
|
|
उत्तर:
बेची गई |
कुल संप्राप्ति |
सीमान्त संप्राप्ति |
0 1 2 3 |
0 20 40 60 |
0 20 20 20 |
प्रश्न 59.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों की पूर्ति सारणियों को दर्शाती है, SS1 कॉलम में फर्म 1 की पूर्ति सारणी, कॉलम SS2 में फर्म - 2 की पूर्ति सारणी है। बाजार पूर्ति सारणी की गणना कीजिए।
कीमत |
इकाई SS1 |
इकाई SS2 |
0 1 2 3 4 5 6 |
0 2 4 6 8 10 12 |
0 1 2 3 4 5 6 |
उत्तर:
कीमत |
इकाई SS1 |
इकाई SS2 |
बाजार निर्गत |
0 1 2 3 4 5 6 |
0 2 4 6 8 10 12 |
0 1 2 3 4 5 6 |
0 + 0 =0 1 + 2 = 3 4 + 2 = 6 6 + 3 = 9 8 + 4 = 12 10 + 5 = 15 12 + 6 = 18 |
निबन्धात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार का अर्थ और विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं? पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता: पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह दशा होती है, जिसमें किसी वस्तु के अत्यधिक क्रेता तथा विक्रेता बाजार में उपस्थित रहते हैं तथा बाजार में सभी विक्रेता समान अथवा समरूप वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में अत्यधिक उत्पादक होने से एक फर्म का वस्तु की पूर्ति में नगण्य भाग होता है।
एक फर्म वस्तु की पूर्ति को कम या अधिक करके मूल्यों को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होती है। इस बाजार में वस्तु का मूल्य बाजार की माँग तथा पूर्ति की दशाओं द्वारा निर्धारित करता है। इस बाजार में फर्म कीमत स्वीकारक होती है तथा उद्योग द्वारा कीमत निर्धारित होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत समान होती है तथा फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है। इस प्रकार के बाजार में माँग वक्र, औसत संप्राप्ति वक्र तथा सीमान्त संप्राप्ति चक्र एक समान क्षैतिज अक्ष के समानान्तर रेखा होती है।
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएँ-पूर्ण प्रतियोगिता वाले बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार होती हैं।
प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में कुल संप्राप्ति को उदाहरण एवं रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म अपने द्वारा उत्पादित वस्तु का बाजार में विक्रय करके संप्राप्ति अर्जित करती है। मान लीजिए वस्तु की एक इकाई की बाजार कीमत p है। इसी प्रकार फर्म की उत्पादित मात्रा अथवा p कीमत पर बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा है। तब फर्म की कुल संप्राप्ति वस्तु के बाजार मूल्य (p) तथा फर्म के निर्गत (q) के गुणनफल के रूप में परिभाषित की जाती है।
अत: कुल संप्राप्ति = p x q
एक संख्यात्मक उदाहरण द्वारा हम इसे अच्छी तरह स्पष्ट कर सकते हैं। मान लीजिए कि मोमबत्तियों का बाजार पूर्ण रूप से प्रतिस्पर्धात्मक है तथा मोमबत्तियों के एक डिब्बे की बाजार कीमत 10 रुपये है। एक मोमबत्ती उत्पादक के लिए कुल संप्राप्ति निर्गत से किस प्रकार संबंधित है, यह तालिका दर्शाती है। इसके अनुसार, जब किसी भी डिब्बे का उत्पादन नहीं होता है, तो कुल संप्राप्ति शून्य के बराबर होती है, यदि मोमबत्तियों के एक डिब्बे का उत्पादन होता है, तो कुल संप्राप्ति 1 x 10 रुपये = 10 रुपये के बराबर होती है। यदि मोमबत्तियों के दो डिब्बों का उत्पादन होता है, तो कुल संप्राप्ति 2 x 10 रुपये = 20 रुपये के बराबर होती है तथा इसी प्रकार निर्गत के साथ - साथ कुल संप्राप्ति में निरन्तर वृद्धि होती जाती हैं।
तालिका : कुल संप्राप्ति विक्रय किए गए डिब्बे कुल संप्राप्ति (रुपयों में)
पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में कुल संप्राप्ति को हम रेखाचित्र की सहायता से भी स्पष्ट कर सकते हैं।
एक पूर्णतः प्रतिस्पर्धात्मक बाजार में फर्म के अनुसार बाजार कीमत, p दी हुई है। बाजार कीमत के p पर स्थिर होने की स्थिति में, एक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र इसकी कुल संप्राप्ति (y - अक्ष) तथा इसके निर्गत (x - अक्ष) के बीच संबंध दर्शाती है। रेखाचित्र एक फर्म की कुल संप्राप्ति वक्र दर्शाती है। यहाँ पर तीन प्रेक्षण प्रासंगिक हैं। पहला, जब निर्गत शून्य हो, फर्म की कुल संप्राप्ति भी शून्य होती है। अतः कुल संप्राप्ति बिन्दु 0 से गुजरती है। दूसरा, जैसे - जैसे निर्गत बढ़ता है कुल संप्राप्ति में वृद्धि होती है। वैसे भी समीकरण "कुल संप्राप्ति = p x q" एक सीधी रेखा दर्शाती है। इससे अभिप्राय है कि कुल संप्राप्ति वक्र एक ऊपर की ओर जाती हुई सीधी रेखा है। तीसरा, इस सीधी रेखा की प्रवणता पर ध्यान से देखें तो निर्गत की एक इकाई है। (रेखाचित्र में समस्तरीय दूरी OQ1), कुल संप्राप्ति (रेखाचित्र में ऊर्ध्वस्तरीय ऊँचाई Aq) p x 1 = p है। अतः सीधी रेखा की प्रवणता है Aq / Oq1 = p होगा। चित्रानुसार निर्गत की इकाइयों में वृद्धि होने पर कुल संप्राप्ति में भी वृद्धि होती जाती है।
प्रश्न 3.
औसत आगम एवं सीमान्त आगम के सम्बन्थ की पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत रेखाचित्र सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति से आप क्या समझते हैं? रेखाचित्र तथा उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए कि पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत, औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति समान होते हैं।
उत्तर:
औसत संप्राप्ति: एक फर्म की कुल संप्राप्ति में निर्गत की मात्रा का भाग देने से प्राप्त संप्राप्ति को औसत संप्राप्ति कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक फर्म की औसत संप्राप्ति को किसी फर्म की प्रति इकाई निर्गत कुल संप्राप्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसकी गणना निम्न सूत्र द्वारा की जाती है।
फर्म का निर्गत सीमान्त संप्राप्ति: एक फर्म की सीमान्त संप्राप्ति फर्म के निर्गत में प्रति इकाई वृद्धि के लिए कुल संप्राप्ति वृद्धि के रूप में परिभाषित की जाती है अर्थात् निर्गत की एक अतिरिक्त इकाई से कुल संप्राप्ति में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त संप्राप्ति कहते हैं। इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जाता है।
अथवा
निर्गत (q + 1) से प्राप्त कुल संप्राप्ति - निर्गत q° से प्राप्त कुल संप्राप्ति
= [Px (q° + 1)] - (Pq°) = P
पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार कीमत समान होती है तथा फर्म उसी कीमत पर अपना निर्गत बाजार में बेचती है। पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार कीमत, औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति तीनों समान होते हैं, इसे निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
अतः पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में कीमत रेखा, औसत संप्राप्ति वक्र तथा सीमान्त संप्राप्ति वक्र समान होता है, जिसे रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में एक फर्म के लाभ अधिकतमीकरण को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में एक फर्म का मुख्य उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना होता है। अत: एक फर्म अल्पकाल में उस स्तर पर उत्पादन करती है जहाँ उसका लाभ अधिकतम हो सके। अल्पकाल में एक फर्म qo सकारात्मक निर्गत स्तर पर तब अधिकतम लाभ प्राप्त करेगी जब वह निम्न तीन शर्ते पूरी करती हो।
पूर्ण प्रतिस्पर्धा में अल्पकाल में एक फर्म के लाभ अधिकतमीकरण को सामने दिये गये रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
निर्गत क उपर्युक्त रेखाचित्र में लम्बवत् अक्ष पर कीमत तथा लागत को दर्शाया गया है तथा क्षैतिज अक्ष पर निर्गत को दर्शाया गया है यहाँ SMC = अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र, SAC = अल्पकालीन औसत लागत वक्र एवं SVC = अल्पकालीन औसत परिवर्ती लागत वक्र है। p बाजार कीमत है तथा अल्पकाल में बाजार कीमत को सीमान्त लागत के q0 बराबर करके निर्गत का , निर्गत स्तर प्राप्त होता है। इस निर्गत स्तर पर उपर्युक्त तीनों शर्ते पूरी होती हैं। कीमत, सीमान्त लागत के बराबर है, सीमान्त लागत ह्रासमान q0 नहीं है तथा यहाँ पर कीमत औसत परिवर्ती लागत की तुलना में अधिक है अतः फर्म के लाभ q0 अधिकतमीकरण का स्तर है। q0 पर फर्म की कुल संप्राप्ति आयत OPAq0 के बराबर है तथा , पर कुल लागत आयत OEBq0 के बराबर है। अत: q0 निर्गत स्तर पर फर्म EPAB आयत के बराबर लाभ अर्जित कर रही है।
प्रश्न 5.
एक फर्म के पूर्ति वक्र से आप क्या समझते हैं? फर्म के अल्पकालीन पूर्ति वक्र को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फर्म का पूर्ति वक: एक फर्म का पूर्ति वक्र निर्गत के उन स्तरों को दर्शाता है जिनका संबंधित फर्म बाजार कीमत के विभिन्न मूल्यों पर उत्पादन के लिए चयन करती है।
अल्पकालीन पूर्ति वक्र: अल्पकालीन पूर्ति वक्र का निर्धारण करने हेतु पहले हम इसकी दो स्थितियों का अध्ययन करेंगे जो सामने दिए रेखाचित्र पर आधारित हैं स्थिति 1: कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से अधिक अथवा उसके बराबर-मान लीजिए कि बाजार कीमत p1 है जो न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से अधिक है। हम p1 को अल्पकालीन कीमत वक्र के बढ़ते भाग की बराबरी से शुरू करते हैं; इससे हमें निर्गत स्तर q1 प्राप्त होता है। यह भी ध्यान दें कि q1 पर औसत परिवर्ती लागत बाजार कीमत p1 से अधिक नहीं है। इस प्रकार लाभ अधिकतमीकरण की तीनों शर्ते q1 पर पूरी होती हैं। अतः जब बाजार कीमत p1 है, तो फर्म का अल्पकाल में निर्गत स्तर q1 के बराबर है।
रेखाचित्र : 1 स्थिति 2 : कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम - रेखाचित्र 1 के अनुसार, बाजार कीमत p2 है जो कि न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। यदि एक लाभ - अधिकतमीकरण फर्म अल्पकाल में एक सकारात्मक निर्गत का उत्पादन करती है, तो उस निर्गत स्तर पर बाजार कीमत p2 औसत परिवर्ती लागत से अधिक अथवा बराबर होनी चाहिए। किन्तु रेखाचित्र 1 में हम देखते हैं कि सभी सकारात्मक निर्गत स्तरों पर औसत परिवर्ती लागत स्पष्ट रूप से p2 से अधिक है। दूसरे शब्दों में, यह संभव नहीं है कि फर्म एक सकारात्मक निर्गत की पूर्ति करे। अतः यदि बाजार कीमत p2 है, तो फर्म शून्य निर्गत का उत्पादन करेगी।
स्थिति 1 तथा 2 को मिलाकर हम एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। एक फर्म का अल्पकालीन पूर्ति वक्र न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से ऊपर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र का बढ़ता हुआ भाग होता है तथा न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य होता है। रेखाचित्र 2 में फर्म के अल्पकालीन पूर्ति वक्र को मोटी रेखा से दर्शाया गया है अर्थात् अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र का E बिन्दु से ऊपर का भाग (मोटी रेखा) पूर्ति वक्र कहलाता है।
प्रश्न 6.
एक फर्म के पूर्ति वक्र से आप क्या समझते हैं? फर्म के दीर्घकालीन पूर्ति वक्र को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फर्म का पूर्ति वक्र: एक फर्म का पूर्ति वक्र निर्गत के उन स्तरों को दर्शाता है, जिनका संबंधित फर्म बाजार कीमत के विभिन्न मूल्यों पर उत्पादन के लिए चयन करती है।
दीर्घकालीन पूर्ति वन: दीर्घकालीन पूर्ति वक्र का निर्धारण करने हेतु पहले हम इसकी दो स्थितियों का अध्ययन करेंगे जो आगे दिए रेखाचित्रों पर आधारित हैं।
रेखाचित्र : 1 स्थिति 1 : कीमत न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से अधिक अथवा बराबर है। रेखाचित्र 1 में बाजार कीमत P1 है जो न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से अधिक है। P1पर बराबर करके दीर्घकालीन सीमांत लागत के साथ दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र के बढ़ते हुए भाग को करने से हमें निर्गत स्तर q1 प्राप्त होता है। q1 पर दीर्घकालीन औसत लागत बाजार कीमत P1 से अधिक नहीं होता। अतः q1 पर लाभ अधिकतमीकरण की तीनों शर्ते संतुष्ट होती हैं। अत: जब बाजार कीमत P1 है, तो फर्म दीर्घकाल में q1 के बराबर निर्गत की पूर्ति करती है।
स्थिति 2 : कीमत न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम - रेखाचित्र 1 के अनुसार, बाजार कीमत p2 है, जो न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम है। यदि एक लाभ - अधिकतमीकरण फर्म दीर्घकालीन स्थिति में एक सकारात्मक निर्गत का उत्पादन करती है, तो बाजार कीमत p2 उस निर्गत स्तर पर दीर्घकालीन औसत लागत से अधिक अथवा उसके बराबर होती है। परन्तु रेखाचित्र 1 में सभी सकारात्मक निर्गत स्तरों के लिए दीर्घकालीन औसत लागत p2 से स्पष्ट अधिक है। दूसरे शब्दों में, यह स्थिति संभव नहीं है कि फर्म एक सकारात्मक निर्गत की पूर्ति करे। अतः जब बाजार कीमत p2 है, तो फर्म शून्य निर्गत का उत्पादन करती है।
रेखाचित्र : 2 स्थिति 1 तथा 2 को मिलाकर हम एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। एक फर्म का दीर्घकालीन पूर्ति वक्र दीर्घकालीन औसत लागत के बराबर अथवा उससे ऊपर दीर्घकालीन सीमांत लागत वक्र का बढ़ता हुआ भाग है, लेकिन न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत से कम सभी कीमतों पर निर्गत शून्य है। रेखाचित्र 2 में दीर्घकालीन पूर्ति वक्र को मोटी रेखा से दर्शाया गया है अर्थात् दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र का E से ऊपर का भाग (मोटी रेखा) दीर्घकालीन पूर्ति वक्र को दर्शाता है।
प्रश्न 7.
एक फर्म के सामान्य लाभ तथा लाभअलाभ बिन्दु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामान्य लाभ तथा लाभ: अलाभ बिन्दुएक फर्म उत्पादन प्रक्रिया में विभिन्न आगतों का उपयोग करती है। उनमें से कुछ को प्राप्त करने के लिए फर्म को प्रत्यक्ष भुगतान करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि एक फर्म श्रमिकों की नियुक्ति करती है, तो उसे उन्हें मजदूरी देनी होती है। यदि यह कुछ कच्चा माल उपयोग करती है तो उन्हें उसे खरीदना होता है। कुछ अन्य प्रकार की आगते है जिनकी फर्म स्वयं मालिक होती है और इसलिए उनके लिए किसी को कुछ भी देना नहीं पड़ता। यद्यपि इन आगतों की कोई सुनिश्चित लागत नहीं होती, फर्म के लिए उनकी कुछ अवसर लागत होती है।
इन आगतों को वर्तमान उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग न करके, उन्हें किसी अन्य काम में उपयोग कर कुछ प्रतिफल भी
अवसर लागत है। फर्म, सामान्यत: इतने लाभ को अर्जित करने की अपेक्षा रखती है जो स्पष्ट लागतों के साथ - साथ फर्म की अवसर लागतों को भी पूरा कर सके। ऐसा लाभ स्तर जो केवल स्पष्ट लागतों तथा अवसर लागतों को पूरा कर सके। फर्म का सामान्य लाभ कहलाता है। यदि एक फर्म अपनी स्पष्ट लागत व अवसर लागत दोनों को, अपनी कुल लागत की गणना में शामिल कर लेती है, तो सामान्य लाभ उस स्तर का लाभ बन जाता है जिस पर कुल संप्राप्ति, कुल लागत के समान हो, अर्थात् शून्य लाभ का स्तर।
वह लाभ जो एक फर्म सामान्य लाभ से ऊपर अर्जित करती है, अधिसामान्य लाभ कहलाता है। दीर्घकालीन स्थिति में यदि फर्म सामान्य लाभ से कुछ भी कम अर्जित करती है, तो वह उत्पादन नहीं करती है। किन्तु अल्पकाल में फर्म का लाभ यदि इस स्तर से कम है, तो भी उत्पादन कर सकती, है। पूर्ति वक्र के जिस बिन्दु पर एक फर्म साधारण लाभ अर्जित करती है, वह फर्म का लाभ - अलाभ बिन्दु कहलाता है। अत: न्यूनतम औसत लागत का बिन्दु जिस पर पूर्ति वक्र दीर्घकालीन औसत वक्र (अल्पकाल में अल्पकालीन औसत लागत वक्र) को काटता है, फर्म का लाभ - अलाभ बिन्दु है।
प्रश्न 8.
फर्म के पूर्ति वक्र के निर्धारक तत्त्वों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
एक फर्म के पूर्ति वक्र को निर्धारित करने वाले तत्वों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फर्म के पूर्ति वक्र के निर्धारक तत्व: एक फर्म का पूर्ति वक्र उसके सीमान्त लागत वक्र का ही भाग है। अतः कोई भी कारक, जो एक फर्म के सीमान्त लागत वक्र को प्रभावित करता है, इसके पूर्ति वक्र का निर्धारक होता है। अत: एक फर्म के पूर्ति वक्र को निर्धारित करने वाले तत्व अग्न प्रकार हैं।
(1) प्रौद्योगिकीय प्रगति: यदि एक फर्म निश्चित वस्तु के उत्पादन के लिए दो कारकों - पूँजी एवं श्रम को काम में लेती है तथा यदि प्रौद्योगिकीय प्रगति होती है तो पूँजी तथा श्रम के उसी स्तर से अब निर्गत की अधिक इकाइयों का उत्पादन होगा। दूसरे शब्दों में, एक निश्चित निर्गत स्तर का उत्पादन करने के लिए प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण फर्म आगतों की कम इकाइयाँ उपयोग करती है, इस कारण फर्म की सीमान्त लागत कम हो जाएगी तथा फर्म का सीमान्त लागत वक्र दाहिनी (नीचे) की ओर विवर्तित हो जाएगा अतः प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण फर्म का पूर्ति वक्र दाहिनी तरफ शिफ्ट हो जाता है अर्थात् फर्म पहले से अधिक पूर्ति करेगी।
(2) आगत कीमतें: आगत कीमतों में परिवर्तन फर्म के पूर्ति वक्र को भी प्रभावित करता है। यदि एक आगत की कीमत (जैसे - श्रम की मजदूरी दर) में वृद्धि होती है, उत्पादन लागत बढ़ जाती है। निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की औसत लागत के परिणामस्वरूप वृद्धि, सामान्यतः निर्गत के किसी भी स्तर पर फर्म की सीमान्त लागत में वृद्धि के साथ होती है, अर्थात् अब सीमांत लागत वक्र में बायीं ओर (अथवा ऊपर की ओर) शिफ्ट करती है। इससे अभिप्राय है कि फर्म का पूर्ति वक्र बायीं ओर शिफ्ट हो जाता है-किसी भी बाजार कीमत पर अब फर्म निर्गत की कम इकाइयों की पूर्ति करती है।
(3) इकाई कर: इकाई कर वह कर होता है, जो सरकार निर्गत के प्रति इकाई विक्रय पर लगाती है। इकाई कर लगाने के फलस्वरूप वस्तु का पूर्ति वन प्रभावित होता है। इकाई कर लगाने के कारण एक उत्पादन की लागत बढ़ जाती है अर्थात् उत्पादक का सीमान्त लागत वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है। इसी कारण फर्म का पूर्ति वक्र बायीं तरफ शिफ्ट हो जाता है।
प्रश्न 9.
बाजार पूर्ति वक्र को उपयुक्त रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाजार पूर्ति वक्र बाजार पूर्ति वक्र वह निर्गत स्तर (x - अक्ष पर अंकित) दर्शाता है जिसका बाजार में सभी फर्मे समवर्ती विभिन्न बाजार मूल्यों (y - अक्ष पर अंकित) पर सामूहिक रूप से उत्पादन करती हैं। बाजार पूर्ति वक्र की व्युत्पत्ति हेतु हम फर्मों वाला एक बाजार लेंगे : फर्म - 1, फर्म - 2, फर्म - 3 तथा इसी प्रकार और भी फमें हो सकती हैं। मान लीजिए बाजार कीमत p पर स्थिर है, तब सामूहिक रूप से । फर्मों द्वारा उत्पादित निर्गत (फर्म - 1 की p कीमत पर पूर्ति) + (फर्म - 2 की कीमत पर पूर्ति) +....+ (कीमत p पर फर्म । द्वारा पूर्ति) है। दूसरे शब्दों में, कीमत p पर बाजार पूर्ति व्यक्तिगत फर्मों की दी हुई कीमत पर पूर्तियों का योग है।
अब हम एक बाजार पूर्ति वक्र की ज्यामितीय रचना करेंगे जब बाजार में केवल दो फर्मे हैं-फर्म - 1 तथा फर्म - 2, दोनों फर्मों की विभिन्न लागत संरचनाएँ हैं। यदि बाजार कीमत P से कम है, तो फर्म - 1 कुछ भी उत्पादन नहीं करेगी और यदि बाजार कीमत P2 से कम है, तो फर्म - 2 कुछ भी उत्पादन नहीं करेगी। यह भी मान लीजिए कि P2 P1 से अधिक है। रेखाचित्र की पैनल (a) में हमारे पास फर्म 1 का पूर्ति वक्र है जिसे S, द्वारा दर्शाया गया है। पैनल (b) में हमारे पास फर्म - 2 का पूर्ति वक्र है जो S, द्वारा दर्शाया गया है। रेखाचित्र की पैनल (c) बाजार पूर्ति वक्र दर्शाती है, जो s द्वारा दर्शाया गया है।
जब बाजार कीमत PM से कम है, तो दोनों फर्मे वस्तु की किसी भी मात्रा का उत्पादन नहीं करती हैं। अतः ऐसी सभी कीमत के लिए बाजार पूर्ति शून्य होगी। की तुलना में अधिक अथवा समान बाजार कीमत पर परन्तु P से कम बाजार कीमत पर केवल फर्म - 1 ही वस्तु की किसी सकारात्मक मात्रा का उत्पादन करेगी। अतः, इस श्रेणी में बाजार पूर्ति वक्र, फर्म - 1 के पूर्ति वक्र के संपाती है। P2 के बराबर अथवा उससे अधिक बाजार कीमत पर दोनों फर्मों के पास सकारात्मक निर्गत स्तर होंगे। उदाहरण के लिए, एक ऐसी स्थिति को लेते हैं जहाँ बाजार कीमत 3 मूल्य ग्रहण कर लेती है (P3, P2 से अधिक है)। दी हुई P3 पर, फर्म - 1 निर्गत की q1 इकाइयों की पूर्ति करती है, जबकि फर्म - 2 निर्गत की q1 इकाइयों की पूर्ति करती है। अतः कीमत P1 पर बाजार पूर्ति q1 है जहाँ q5 = q4, + q3। बाजार पूर्ति वक्र sm की पैनल (c) में इस प्रकार रचना की गई है जो हम बाजार की दो फर्मों के पूर्ति वक्रों S1 तथा S2 के समस्तरीय योग द्वारा Sm प्राप्त करते हैं।
बाजार पूर्ति वक्र, बाज़ार में फर्मों की एक स्थिर संख्या के लिए प्राप्त किया गया है। जैसे-जैसे फर्मों की संख्या में परिवर्तन आता है, बाजार पूर्ति वक्र में भी शिफ्ट होता है। विशेष रूप से, यदि बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि (गिरावट) होती है, बाजार पूर्ति वक्र में दाहिनी (बायीं) ओर शिफ्ट होता है। अब हम उपर्युक्त ग्राफीय विश्लेषण को संबंधित संख्यात्मक उदाहरण से देखते हैं। दो फर्मों, फर्म - 1 तथा फर्म - 2 वाले एक बाजार को लीजिए । फर्म - 1 का पूर्ति वक्र निम्नलिखित है।
\(S_{1}(p)=\left\{\begin{array}{lr} 0 & : p<10 \\ p-10 & : p \geq 10 \end{array}\right.\)
ध्यान दीजिए कि S1 ( p) इंगित करता है कि (1) फर्म - 1, 0 निर्गत का उत्पादन करती है यदि बाजार कीमत p, 10 से स्पष्ट रूप से कम है, तथा (2) फर्म - 1 (p - 10) निर्गत का उत्पादन करती है यदि बाजार कीमत (p, 10) से अधिक अथवा उसके बराबर है। मान लीजिए, फर्म - 2 का पूर्ति वक्र निम्नवत् है।
\(S_{2}(p)=\left\{\begin{array}{lr} 0 & : p<15 \\ p-15: p \geq 15 \end{array}\right.\)
S2(p) का निर्वचन S1(p) के निर्वचन के समान है। अतः इसे छोड़ दिया गया है। अब बाजार पूर्ति वक्र Sm(p), सरल रूप से दोनों फर्मों के पूर्ति वक्रों का. योग है। दूसरे शब्दों में,
Sm(p) = S1(p) + S2(p)
परन्तु इससे अभिप्राय है किSm(p) निम्नवत् है Sm(p) =
\(\begin{cases}0 & : p<10 \\ p-10 & : p \geq 10 \text { and } p<15 \\ (p-10)+(p-15)=2 p-25 & : p \geq 15\end{cases}\)
प्रश्न 10.
पूर्ति की कीमत लोच किसे कहते हैं? इसे मापने की विधियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति की कीमत लोच: एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच, वस्तु की कीमत में परिवर्तों के कारण वस्तु की पूर्ति की मात्रा की अनुक्रियाशीलता को मापती
पूर्ति की कीमत लोच की माप-पूर्ति की कीमत लोच को निम्न दो विधियों से मापा जा सकता है।
(1) प्रतिशत अथवा आनुपातिक विधि: पूर्ति की कीमत लोच को मापने की प्रतिशत अथवा आनुपातिक विधि में निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है
अथवा
\(\mathrm{e}_{s}=\frac{\frac{\mathrm{q}_{2}-\mathrm{q}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}}{\frac{\mathrm{P}_{2}-\mathrm{P}_{1}}{\mathbf{P}_{1}}}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{\Delta \mathrm{q} / \mathrm{q}_{1}}{\Delta \mathrm{P} / \mathrm{P}_{1}} \\ &=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}} \end{aligned}\)
यहाँ ∆q = पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन, ∆p = कीमत में परिवर्तन, q1 = प्रारम्भिक पूर्ति की मात्रा तथा P1 = प्रारम्भिक कीमत को दर्शाती है।
(2) ज्यामितीय विधि: पूर्ति की कीमत लोच को ज्ञात करने की ज्यामितीय विधि को रेखाचित्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र के पैनल (a) में एक सीधी रेखा पूर्ति वक्र को दर्शाती है। पूर्ति वक्र पर S एक बिन्दु है। यह कीमत - अक्ष को इसके धनात्मक भाग पर काटता है तथा जब हम सीधी रेखा को बढ़ाते हैं, यह मात्रा - अक्ष को M बिन्दु पर काटता है जो इसके ऋणात्मक भाग पर है। बिन्दु पर इस पूर्ति वक्र की कीमत लोच, Mqo /Oqo के अनुपात द्वारा दर्शायी गई है। ऐसे पूर्ति वक्र पर किसी भी बिन्दु s के लिए Mqo > Oqo है।
अतः ऐसे पूर्ति वक्र के किसी भी बिन्दु पर कीमत लोच 1 से अधिक होगी। अब हम पैनल (b) को देखते हैं। यहाँ पूर्ति वक्र उद्गम बिन्दु से होकर जाती है। कोई भी यह सोच सकता है कि यहाँ बिन्दु M तथा उद्गम बिन्दु एक ही हैं अर्थात् Mqo .Oqo के बराबर हो गया है। बिन्दु S पर इस पूर्ति वक्र की कीमत लोच Oqo /Oqo के अनुपात से प्राप्त होती है जो 1 के बराबर है। उद्गम से होकर जाने वाली सीधी रेखा पूर्ति वक्र के किसी भी बिन्दु पर कीमत लोच
रेखाचित्र : पूर्ति वक्रों एवं कीमत लोच में सम्बन्ध पैनल (c) में हम एक सीधी रेखा पूर्ति वक्र को लेते हैं तथा उस पर S एक बिन्दु है। यह मात्रा - अक्ष को M पर काटता है, जो इसके धनात्मक भाग पर है। पुनः इस पूर्ति वक्र के बिन्दु पर कीमत लोच Mqo / Oqo के अनुपात से प्राप्त होती है। अब Mqo / OQo तथा इस प्रकार e,< 1 पूर्ति वक्र पर S कोई भी बिन्दु हो सकती है तथा इस प्रकार ऐसे पूर्ति वक्र पर सभी बिन्दुओं के लिए e, < 1.
प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के साम्य को रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट कीजिए।
अथवा
उत्पादक के संतुलन की विधियाँ बताते हुए कुल आगम, कुल लागत विधि की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में फम क साम्य की रीतियाँ पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म के साम्य की स्थिति को दो रीतियों से स्पष्ट किया जा सकता है।
1. कुल आगम तथा कुल लागत रीति: इस विधि के अनुसार फर्म को अधिकतम लाभ उत्पादन के उस बिन्दु पर प्राप्त होगा जहाँ पर कि कुल आगम तथा कुल लागत का अन्तर अधिकतम होगा। इसे आगे दिये गये रेखाचित्र से स्पष्ट किया जा सकता है।
प्रस्तुत रेखाचित्र में TR कुल आगम तथा TC कुल लागत वक्र है। TR तथा TC रेखा की स्थितियों के अनुसार उत्पादन की मात्रा OQ2 पर TR और TC के बीच खड़ी दूरी EP सबसे अधिक है जो कि अधिकतम लाभ को बताती है। अतः फर्म उत्पादन की मात्रा OQ2, पर साम्य की स्थिति में है जबकि A तथा B सम विच्छेद बिन्दु हैं जहाँ पर फर्म को केवल सामान्य लाभ की प्राप्ति होगी।
2. सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत रीति: फर्म के साम्य की इस विधि के अनुसार फर्म के साम्य हेतु दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है
(i) फर्म की सीमान्त आगम व सीमान्त लागत बराबर होनी चाहिए, क्योंकि उत्पादन के उसी बिन्दु पर फर्म को अधिकतम लाभ होगा जहाँ MR = MC हो।
(ii) सीमान्त लागत वक्र, सीमान्त आगम वक्र को नीचे की ओर से काटना चाहिए। इन शर्तों की पूर्ति करते हुए फर्म के साम्य की स्थिति को चित्र - 2 में दिखाया गया है।
उपर्युक्त रेखाचित्र के अनुसार फर्म E बिन्दु पर साम्य की स्थिति में होगी तथा उसे अधिकतम लाभ की प्राप्ति होगी क्योंकि E बिन्दु पर फर्म साम्य की दोनों शर्तों को पूरा कर रही है, E बिन्दु पर MR = MC है तथा MC वक्र, MR वक्र को नीचे से काटता है। अत: फर्म QO1, उत्पादन की अवस्था में साम्य की स्थिति में होगी।
प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगिता फर्म की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन साम्य स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य कैसे निर्धारित होता है?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं? पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म के अल्पकालीन सन्तुलन की शर्तों की व्याख्या करें।
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल एवं।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता: यह बाजार की वह दशा होती है जिसमें किसी वस्तु के अत्यधिक क्रेता तथा विक्रेता बाजार में उपस्थित होते हैं तथा बाजार में सभी विक्रेता समान वस्तुओं का उत्पादन करते हैं तथा उन्हें समान कीमत पर बेचते हैं। पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का अल्पकालीन साम्य पूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में फर्म को असामान्य लाभ या सामान्य लाभ या हानि हो सकती है। इन तीनों स्थितियों की विस्तृत व्याख्या आगे की गई है।
(1) असामान्य लाभ की स्थिति: कोई फर्म अल्पकाल में असामान्य लाभ उस समय प्राप्त करती है जबकि संतुलन बिन्दु पर फर्म की औसत आय फर्म की औसत लागत से अधिक हो।
रेखाचित्र में PM फर्म का औसत तथा सीमान्त आय वक्र है। फर्म का अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र SMC है जो फर्म के सीमान्त आय वक्र (MR) को E बिन्दु पर काटता है। यही फर्म का साम्य बिन्दु है। जिस पर फर्म ON मात्रा का उत्पादन करेगी जिसकी औसत लागत OL. या NC है जबकि औसत आय OP या NE है। अत: फर्म को CE या LP के बराबर प्रति इकाई असामान्य लाभ मिल रहा है तथा फर्म LCEP के बराबर कुल लाभ कमा रही है। रेखाचित्र का छायादार भाग असामान्य लाभ को दर्शाता है।
(2) सामान्य लाभ की स्थिति: अल्पकाल में फर्म को सामान्य लाभ भी मिल सकता है, अर्थात् अल्पकाल में फर्म न लाभ न हानि की स्थिति में भी हो सकती है। जब साम्य बिन्दु पर फर्म की औसत आय तथा फर्म की औसत लागत दोनों बराबर होती हैं तो उस समय फर्म सामान्य लाभ की स्थिति में होती है।
रेखाचित्र में PM फर्म का औसत एवं सीमान्त आय वक्र है। फर्म का सीमान्त लागत वक्र (SMC) फर्म के सीमान्त आय वक्र (MR) को E बिन्दु पर काटता है, अत: E संतुलन बिन्दु है। इस साम्य बिन्दु पर फर्म ON मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय करेगी। E बिन्दु पर फर्म की औसत आय एवं औसत लागत बराबर है। फर्म केवल सामान्य लाभ कमा रही है।
(3) हानि की स्थिति: पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म हानि भी उठा सकती है। संतुलन बिन्दु पर फर्म की औसत आय यदि औसत लागत से कम है तो फर्म को हानि उठानी पड़ेगी।
चित्र में अधिकतम लाभ का बिन्दु E है जहाँ MR = SMC है। अत: फर्म 0Q मात्रा का उत्पादन करेगी, जिसकी औसत कीमत OP वसूल करेगी। उत्पादित मात्रा की प्रति इकाई औसत लागत OL है जो कीमत से अधिक है, अत: फर्म को प्रति इकाई हानि LP होगी एवं OQ उत्पादन की कुल हानि का क्षेत्र LPEB होगा। फर्म अल्पकाल में हानि की स्थिति में भी उत्पादन बन्द नहीं करती जब तक कि उसे औसत स्थिर लागत प्राप्त होती रहती है परन्तु यदि कीमत औसत परिवर्तनशील लागत से कम हो जाती है तो उत्पादक उत्पादन बन्द कर देते हैं। चित्र में बिन्दु A उत्पादन बन्द बिन्दु है.। यहाँ कीमत P. एवं औसत परिवर्तनशील लागत बराबर है। यदि फर्म की कीमत P. से कम हो जाती है तो फर्म उत्पादन बन्द कर देगी।
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में फर्म का साम्य: दीर्घकाल में फर्म के पास इतना समय होता है कि वह वस्तु की पूर्ति को घटा-बढ़ाकर मांग के अनुरूप समायोजित कर सकती है। अतः दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होगा। दीर्घकाल में यदि फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होगा तो नई फर्मे प्रवेश करेंगी, जिससे वस्तु की पूर्ति बढ़ जाएगी, कीमतें कम होंगी, जिससे लाभ घट जाएगा। तब सामान्य लाभ की स्थिति आ जाएगी। दीर्घकाल में हानि उठा रही फर्म उद्योग छोड़कर चली जाएगी, जिससे वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी, कीमतें बढ़ जाएंगी और मौजूद फर्मों को सामान्य लाभ की स्थिति प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म सामान्य लाभ प्राप्त करती है।
उत्पादन की मात्रा - चित्र में PL फर्म के दीर्घकालीन औसत आगम तथा - सीमान्त आगम वक्र हैं। LMC फर्म का दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र तथा LAC दीर्घकालीन औसत लागत वक्र है। LMC फर्म के LMR वक्र को E बिन्दु पर काटता है। इस साम्य बिन्दु पर फर्म OQ, मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय करेगी। इस उत्पादन स्तर पर फर्म की कीमत उसकी औसत लागत के बराबर है। अतः फर्म को दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है।
प्रश्न 13.
नीचे तालिका में एक फर्म की निर्गत मात्रा एवं कीमत स्तर को दर्शाया गया है। इसके आधार पर कुल संप्राप्ति की गणना कीजिए
कीमत |
निर्गत |
2 3 4 5 6 7 8 9 |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
उत्तर:
कीमत |
निर्गत |
कुल संप्राप्ति (कीमत x निर्गत की मात्रा) |
2 3 4 5 6 7 8 9 10 |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 3 8 15 24 35 48 63 80 |
प्रश्न 14.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्राप्ति का परिकलन कीजिए। यदि वस्तु की प्रति इकाई बाजार कीमत 8 रुपये है
निर्गत |
कुल |
औसत सीमान्त मात्रा संप्राप्ति - संप्राप्ति |
संप्राप्ति |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
|
|
|
उत्तर:
निर्गत मात्रा |
कुल संप्राप्ति |
औसत संप्राप्ति |
संप्राप्ति |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
8 8 8 8 8 8 8 8 8 |
0 8 16 24 32 40 48 56 64 |
0 8 8 8 8 8 8 8 8 |
कुल संप्राप्ति = कीमत x निर्गत
प्रश्न 15.
नीचे तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत को दर्शाया गया है।
बेची गई |
कुल मात्रा |
संप्राप्ति |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 10 20 30 40 50 60 70 80 |
10 14 20 27 37 48 59 63 75 |
उत्तर:
बेची गई |
कुल मात्रा |
संप्राप्ति |
लाभ (कुल संप्राप्ति - कुल लागत) |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 |
0 10 20 30 40 50 60 70 80 |
10 14 20 27 37 48 59 63 75 |
-10 -4 0 3 3 2 1 -3 -5 |
प्रश्न 16.
नीचे तालिका में एक फर्म प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी दी गई है। यदि वस्तु की कीमत 10 रुपये दी हुई है तो प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए।
इकाई कीमत |
कुल आगम लागत |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 |
6 16 23 28 32 39 50 64 82 97 109 |
उत्तर:
इकाई |
कीमत रु. |
कुल |
कुल आगम लागत |
लाभ (कुल आगम - कुल लागत) |
0 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 |
10 10 10 10 10 10 10 10 10 10 10 |
0 10 20 30 40 50 60 70 80 90 100 |
6 16 23 28 32 39 50 64 82 97 109 |
-6 -6 -3 2 8 11 10 6 -2 -7 -9 |
उपर्युक्त तालिका के अनुसार 5 इकाइयों पर लाभ अधिकतम है।
प्रश्न 17.
नीचे एक बाजार में दो फर्मों की पूर्तियों को दर्शाया गया है। इस तालिका के आधार पर बाजार पूर्ति का परिकलन कीजिए।
कीमत (P) |
फर्म 1 की पूर्ति (SS1) |
फर्म 2 की पूर्ति (SS2) |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
0 0 1 2 3 4 5 6 |
0 2 4 6 8 11 12 14 |
उत्तर:
कीमत (P) |
फर्म 1 की पूर्ति (SS1) |
फर्म 2 की पूर्ति (SS2) |
बाजार पूर्ति (SS1 + SS2) |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
0 0 1 2 3 4 5 6 |
0 2 4 6 8 11 12 14 |
0 2 5 8 11 15 17 20 |
प्रश्न 18.
यदि एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु की कीमत 10 रुपये निर्धारित की गई है, नीचे एक फर्म की लागत तालिका दी गई है जिसके आधार पर फर्म के विभिन, उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए तथा उत्पादन का स्तर बताइए, जहाँ लाभ अधिकतम है।
इकाई |
कुल लागत |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
7 16 20 26 34 47 62 77 |
उत्तर:
इकाई |
कीमत |
कुल आगम |
कुल लागत |
लाभ |
0 1 2 3 4 5 6 7 |
10 10 10 10 10 10 10 10 |
0 10 20 30 40 50 60 70 |
7 16 20 26 34 47 62 77 |
-7 -6 0 5 6 3 2 2 |
प्रश्न 19.
एक बाजार में तीन फर्मे हैं. नीचे तालिका में फर्म A तथा B की पूर्तियाँ एवं बाजार पूर्ति दे रखी है। इसके आधार पर फर्म c की पूर्ति ज्ञात कीजिए।
कीमत |
फर्म A |
फर्म B |
बाजार पूर्ति |
10 20 30 40 50 60 |
0 10 20 30 50 |
25 30 35 40 45 50 |
35 60 85 110 135 160 |
उत्तर:
कीमत |
फर्म c की पूर्ति |
10 |
35 – (0 + 25) = 10 |
प्रश्न 20.
यदि एक फर्म 4 रुपये पर अपने उत्पाद की 600 इकाइयाँ बेचने को तैयार है तथा यदि कीमत बढ़कर 5 रुपए हो जाती है तो यह फर्म अपने उत्पाद की 750 इकाइयाँ बेचने को तैयार है। फर्म की पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कीमत |
पूर्ति |
4 5 |
600 750 |
यहाँ ∆q = 750 - 600 = 150
∆ p = 5 - 4 - 1 P = 4
\(\begin{aligned} \mathrm{e}_{\mathrm{s}} &=\frac{\frac{\Delta \mathrm{q}}{\mathrm{q}_{1}}}{\frac{\Delta \mathrm{p}}{\mathrm{P}_{1}}} \\ &=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}} \\ &=\frac{150}{1} \times \frac{4}{600}=1 \end{aligned}\)
अतः पूर्ति की कीमत लोच इकाई के बराबर है।
प्रश्न 21.
नीचे एक फर्म की पूर्ति तालिका दी गई है,यदि कीमत 5 रुपये से कम होकर 3 रुपये हो जाती है, तो पूर्ति की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
कीमत (रु.) |
6 |
5 |
4 |
3 |
2 |
1 |
पूर्ति (इकाई) |
60 |
50 |
40 |
30 |
20 |
10 |
उत्तर:
कीमत |
पूर्ति |
5 3 |
50 70 |
\(=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
यहाँ ∆q = 50 - 30 = 20
∆ p = 5 - 3 = 2 P1 = 4
q1 = 5
\(\begin{aligned} &=\frac{20}{2} \times \frac{5}{50} \\ &=1 \end{aligned}\)
अत: पूर्ति की कीमत लोच इकाई के बराबर है।
प्रश्न 23.
एक वस्तु की पूर्ति की कीमत लोच 2.5 है। 5 रुपए प्रति इकाई पर किसी वस्तु की 300 इकाइयों की पूर्ति की जाती है। बतायें 4 रुपए प्रति इकाई पर उस वस्तु की कितनी मात्रा में पूर्ति की जाएगी?
उत्तर:
कीमत |
पूर्ति |
5 4 |
300 ? |
पूर्ति की लोच
\(=\frac{\Delta q}{\Delta p} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
\(\begin{aligned} &2.5=\frac{\Delta q}{1} \times \frac{5}{300} \\ &\frac{25}{10}=\frac{\Delta q}{60} \\ &\frac{25}{10}=\frac{\Delta q}{60} \end{aligned}\)
अतः
∆q = 1500
\(\begin{aligned} &\Delta q=\frac{1500}{10} \\ \end{aligned}\)
∆q = 150
अत: 4 रुपए प्रति इकाई पर 150 (300 - 150) इकाइयों की पूर्ति की जाएगी।
प्रश्न 24.
8 रुपए प्रति इकाई पर एक वस्तु की 400 इकाइयों की पूर्ति की जाती है। पूर्ति की लोच 2 है। बतायें किस कीमत पर 600 इकाइयों की पूर्ति की जाएगी?
उत्तर:
कीमत |
पूर्ति |
8 ? |
400 600 |
पूर्ति की लोच (e.) =
\(\begin{aligned} \left(\mathrm{e}_{\mathrm{s}}\right) &=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{\mathrm{t}}} \\ 2 &=\frac{200}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{8}{400} \\ 2 &=\frac{4}{\Delta \mathrm{p}} \\ \frac{2}{1} &=\frac{4}{\Delta \mathrm{p}} \end{aligned}\)
2∆p = 4
∆p = 2
अतः 10 रुपए (8 + 2) पर 600 इकाइयों की पूर्ति की जाएगी।
प्रश्न 25.
एक वस्तु की पूर्ति लोच का गुणांक 3 है। एक विक्रेता 8 रुपए प्रति इकाई पर इस वस्तु की 20 इकाइयों की पूर्ति करता है। बतायें वह विक्रेता उस वस्तु की कितनी इकाइयों की आपूर्ति करेगा यदि कीमत में 2 रुपए प्रति इकाई की वृद्धि हो जाए?
उत्तर:
कीमत |
पूर्ति |
8 8+2 =10 |
20 ? |
पूर्ति की कीमत लोच = \(\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}}\)
\(3=\frac{\Delta q}{2} \times \frac{8}{20}\)
अर्थात्
\(3=\frac{\Delta q}{5}\)
∆q = 15
नई पूर्ति = 20 + 15 = 35 इकाइयाँ होगी।
प्रश्न 26.
नीचे दी गई तालिका को पूरा करें
पूर्ति तालिका:
कीमत |
फर्म.A की पूर्ति |
फर्म B की पूर्ति |
फर्म c की पूर्ति |
बाजार (रु.) पूर्ति |
1 |
- |
20 |
45 |
100 |
2 |
37 |
30 |
50 |
- |
3 |
40 |
- |
55 |
135 |
4 |
44 |
50 |
- |
154 |
5 |
48 |
60 |
65 |
- |
उत्तर:
कीमत |
फर्म.A की पूर्ति |
फर्म B की पूर्ति |
फर्म c की पूर्ति |
बाजार (रु.) पूर्ति |
1 |
35 |
20 |
45 |
100 |
2 |
37 |
30 |
50 |
117 |
3 |
40 |
40 |
55 |
135 |
4 |
44 |
50 |
60 |
154 |
5 |
48 |
60 |
65 |
173 |
प्रश्न 27.
एक वस्तु की बाजार कीमत 10 रुपये से बदलकर 40 रुपये हो जाती है इसके फलस्वरूप फर्म की पूर्ति की मात्रा 30 इकाइयाँ बढ़ जाती है फर्म के पूर्ति वक्र की लोच 0.5 है। फर्म का आरम्भिक तथा अन्तिम निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच (e)
\(e_{s}=\frac{\frac{\Delta q}{q_{1}}}{\frac{\Delta \mathbf{P}}{P_{1}}}\)
\(\begin{aligned} \mathrm{e}_{\mathrm{s}} &=\frac{\Delta \mathrm{q}}{\Delta \mathrm{p}} \times \frac{\mathrm{P}_{1}}{\mathrm{q}_{1}} \\ 0.5 &=\frac{30}{30} \times \frac{10}{\mathrm{q}_{1}} \end{aligned}\)
\(\begin{aligned} &\frac{5}{10}=\frac{30}{30} \times \frac{10}{\mathrm{q}_{\mathrm{I}}} \\ &\frac{5}{10}=\frac{300}{30 q_{\mathrm{t}}} \end{aligned}\)
150q1 = 3000
q1 = 3000/150
q1 = 20
अतः जब प्रारम्भिक निर्गत = 20 इकाइयाँ हैं तथा पूर्ति में परिवर्तन 30 इकाइयाँ होने पर अन्तिम निर्गत निम्न प्रकार होगा
अन्तिम निर्गत = 20 + 30 = 50 इकाइयाँ
अतः प्रारम्भिक निर्गत = 20 इकाइयाँ
अन्तिम निर्गत = 50 इकाइयाँ