Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Rachana प्रिन्ट माध्यम के फीचर Questions and Answers, Notes Pdf.
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फीचर क्या है?
समाचारपत्रों में समाचारों के अतिरिक्त अन्य अनेक प्रकार के सम्बन्धित लेखनों को स्थान मिलता है। इनमें 'फीचर' एक महत्वपूर्ण लेखन है। पत्रकारिता में फीचर शब्द का प्रयोग एक विशिष्ट अथ में किया जाता है। फीचर एक सुव्यवस्थित, सृजनपरक एवं आत्मनिष्ठ लेखन है। इसका उद्देश्य एक विशिष्ट शैली में पाठकों को सूचना देना और उनका मनोरंजन व ज्ञानवर्द्धन करना है।
समाचार और फ़ीचर दो भिन्न लेखन हैं। समाचार में तात्कालिक घटनाक्रम का तथ्यपरक और वस्तुनिष्ठ वर्णन रहता है। समाचार-लेखक को अपने विचार या दृष्टिकोण सम्मिलित करने की स्वतन्त्रता नहीं होती जबकि फीचर लेखक पर ऐसा कोई बन्धन नहीं होता।
फ़ीचर की प्रमुख विशेषताएँ -
फीचर के प्रकार - फीचर की कोई विषय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। फ़ीचर का चित्र-फलक बहुत व्यापक है। छोटे-बड़े, साधारण-विशिष्ट, सामयिक-ऐतिहासिक आदि हर प्रकार के विषय फ़ीचर लेखन का आधार बन सकते हैं। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं
घटनापरक फ़ीचर - इन फ़ीचरों में किसी घटना विशेष यथा-प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, युद्ध, दंगा, आन्दोलन आदि को विषय बनाया जाता है।
समाचार पृष्ठभूमि वाले फ़ीचर - इन फ़ीचरों में किसी समाचार को आधार बनाकर फीचर प्रस्तुत किया जाता है।
खोजपरक फीचर - इस प्रकार के फीचर में लेखक किसी व्यक्ति, स्थान या धारणा आदि पर खोजपूर्ण तथ्य प्रस्तुत करता है।
साक्षात्कार फीचर - किसी विशिष्ट व्यक्ति से किए गए साक्षात्कार को इस प्रकार के फीचर में विषय बनाया जाता है।
सामाजिक गतिविधि-आधारित फ़ीचर - उत्सव, सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन, मेले, तीर्थस्थल आदि इस वर्ग में आते हैं।
यात्रा-फीचर - किसी व्यक्तिगत अथवा सामूहिक यात्रा का परिचय और वृत्तान्त इस वर्ग में आते हैं।
व्यक्तिचित्र फ़ीचर - इसमें किसी क्षेत्र के विशिष्ट व्यक्ति का शब्द-चित्रात्मक परिचय होता है। यह बहुत कुछ रेखाचित्र शैली में लिखा जाता है।
सम्पादकीय फ़ीचर - समाचारपत्रों में किसी विशिष्ट सामयिक विषय पर सम्पादक द्वारा प्रस्तुत लेखन 'सम्पादकीय' कहा जाता है। इसे भी फीचर शैली में प्रस्तुत किया जाता है।
प्रकृतिपरक फीचर - इनमें किसी प्राकृतिक स्थल, दृश्य अथवा अंग विशेष को लेखन का विषय बनाया जाता है।
इन प्रकारों के अतिरिक्त और भी फ़ीचरों के प्रकार हो सकते हैं।
फीचर-लेखन में कुछ स्मरणीय बातें - फीचर लेखक को एक बात सदा ध्यान रखनी चाहिए कि प्रस्तुतीकरण ही। वह विशिष्टता है जो फीचर को अन्य लेखनों से भिन्न और सार्थक सिद्ध करती है। अतः उसे फ़ीचर का शीर्षक तथा आमुख रोचक बनाना चाहिए। पात्रों को पृष्ठभूमि में न डालकर उनसे कथ्य के विकास में कौशलपूर्ण सहयोग लेना चाहिए।
भाषा और शैली का प्रभावशाली उपयोग करते हुए पाठकों से सहज तादात्म्य स्थापित करना चाहिए।
इन सबके साथ-साथ यह न भूलना चाहिए कि मात्र मनोरंजन फ़ीचर का लक्ष्य नहीं होता, उसे सूचनापरक भी होना चाहिए।
फीचर का रचना-विधान - यदि विषयों की विविधता पर अधिक बल न दिया जाये तो फ़ीचर को दो स्थूल प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है - (1) समाचार आधारित फीचर तथा (2) विशिष्ट विषय पर आधारित फीचर। अतः फीचर की रचना में इन दोनों प्रकारों की विशेषताओं पर ध्यान दिया जाना आवश्यक होता है।
फीचर लेखन के तीन चरण -
(अ) समाचार फ़ीचर
समाचार : अर्थ और व्यापकता- समाचार' शब्द का निर्माण 'आचार' भाववाचक संज्ञा में 'सम्' उपसर्ग जोड़कर किया गया है। इसका शाब्दिक अर्थ है-सम्यक् (निर्दोष) आचरण (व्यवहार)। वस्तुतः वे सूचनाएँ (खबरें) जो मानव के सम्यक् आचरण को बताती हैं, समाचार कहलाती हैं। किन्तु आज समाचार शब्द का अर्थ इससे कहीं अधिक व्यापक अर्थ को व्यक्त करता है। अंग्रेजी में समाचार के लिए NEWS शब्द का प्रयोग होता है जो वस्तुत: North, East, West, South का छोटा रूप है। चारों दिशाओं में जो कुछ हो रहा है, उसकी सूचना जनता तक पहुँचाना समाचार है।
कुत्ते ने आदमी को काट लिया, यह सामान्य बात है। अतः इसे समाचार नहीं कह सकते, किन्तु आदमी ने कुत्ते को काट लिया, यह निश्चय ही असामान्य बात है, अत: समाचार के अन्तर्गत आएगी।
समाचार के प्रमुख तत्त्व - एक अच्छा समाचार वही होता है जिसमें निम्नलिखित गुण (तत्व) विद्यमान हों -
समाचार की भाषा - समाचार-पत्र की भाषा आम आदमी की भाषा होती है तथा उसकी शब्दावली में विविध होती है। समाचार-पत्रों में प्रयुक्त होने वाली हिन्दी को हम साहित्यिक हिन्दी न मानकर आम बोलचाल की ऐसी हिन्दी कह सकते हैं जिसकी शब्दावली संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी, फारसी, उर्दू से प्रचलित शब्दों को अपने में समेटे रहती है।
वस्तुतः यह मानक हिन्दी का वह रूप है जो समाचार-पत्रों की भाषा के रूप में जाना जाता है। इसमें बोलियों के शब्द भी हो सकते हैं तो लोकभाषा के प्रचलित शब्दों को लेने से भी परहेज नहीं किया जाता। कहने का तात्पर्य यह है कि समाचार-पत्र में प्रयुक्त होने वाली भाषा ऐसी होनी चाहिए जो आम पाठक की समझ में आ जाएं और उसे किसी शब्द का अर्थ जानने के लिए कोई सहारा न लेना पड़े। मिली-जुली भाषा समय की माँग है, जिसका प्रयोग संचार भाषा के रूप में समाचार-पत्र में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हो रहा है।
समाचार लेखन - समाचार लेखन की आवश्यकता पत्रकारों को बराबर पड़ती रहती है। अपने क्षेत्र में घटित घटनाओं के समाचार को संवाददाता रोचक शैली में प्रस्तुत कर पठनीय बनाते हैं। संवाददाताओं के द्वारा भेजे गए समाचारों को सम्पादन विभाग इस दृष्टि से जाँच-परखकर करता है कि इसमें से कितने समाचार छपने योग्य हैं तथा वे समाचार-पत्र के किस पृष्ठ पर छपेंगे? भेजे गए समाचार में आवश्यकतानुसार काट-छाँट का अधिकार सम्पादन विभाग को होता है। समाचार लेखन एक कला है, जो निरन्तर अभ्यास से निखरती है।
समाचार लेखन की प्रमुख विशेषताएँ - समाचार लिखते समय संवाददाता को यह ध्यान रखना चाहिए कि समाचार है जो समाचार की विषय-वस्तु से सम्बन्धित होता है। घटना का स्थान, समय, मुख्य पात्र, घटना की प्रकृति का विवरण समाचार में होना चाहिए। यदि सम्भव हो तो घटना की सूचना का स्रोत भी देना चाहिए। समाचार लेखक को पूर्ण तटस्थ एवं निष्पक्ष होकर घटना का प्रस्तुतीकरण करना चाहिए। किसी घटना को जान-बूझकर अतिरंजित करना या उसके कुछ तथ्यों को छिपा देना ठीक नहीं होता।
समाचार लेखन के प्रमुख बिन्दु - समाचार लेखन के प्रमुख बिन्दु निम्न प्रकार हैं -
शीर्षकीकरण - शीर्षकीकरण का अभिप्राय है-समाचार पर शीर्षक लगाना। प्रत्येक समाचार के ऊपर मोटे अक्षरों में जो हैडिंग दिया जाता है, उसे शीर्षक कहते हैं। हैडिंग को पढ़कर ही पाठक को यह ज्ञात हो जाता है कि यह घटना या समाचार किससे सम्बन्धित है।
एक अच्छे. शीर्षक की निम्न विशेषताएँ होती हैं -
समाचार लेखन की शैली-समाचार लेखन की शैली उलटा पिरामिड शैली कहलाती है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात समाचार के प्रारम्भ में लिखी जाती है, उसके बाद समाचार का घटनाक्रम दिया जाता है और सबसे कम महत्वपूर्ण बात सबसे बाद में लिखी जाती है।
समाचार लेखन के छ: 'ककार' अथवा पाँच 'W'- किसी भी समाचार में पूर्णता तभी आती है जब उसमें इन छ: प्रश्नों का उत्तर समाविष्ट हो-कौन, कब, कहाँ, क्या, कैसे और क्यों? इन छ: प्रश्नों को ही 'छः ककार' कहते हैं क्योंकि इनका प्रारम्भ 'क' से होता है।
अंग्रेजी में इने पाँच w कहते हैं; यथा - Who, When, Where, What, Why ?
समाचार का मुखड़ा-किसी भी समाचार की प्रारम्भिक पंक्तियाँ 'इंट्रो' (या मुखड़ा) कहलाती हैं। क्या हुआ, कब हुआ, कहाँ हुआ, कौन इससे जुड़ा था? इन प्रश्नों का उत्तर समाचार के इंट्रो में होता है।
समाचार फीचर के विभिन्न उदाहरण
प्रश्न 1.
डी. ए. वी. इण्टर कॉलेज, जयपुर के वार्षिकोत्सव का समाचार निम्न सूचनाओं के आधार पर तैयार कीजिए -
विषय - डी. ए. वी. सीनियर सैकण्ड्री कॉलेज, जयपुर का वार्षिकोत्सव
दिनांक - 20 मार्च, 20....
कहाँ हुआ - कॉलेज परिसर में
विशिष्ट अतिथि - प्रसिद्ध उद्योगपति आर. के. बिड़ला
कार्यक्रम - सरस्वती वन्दना (छात्राओं द्वारा), विशिष्ट अतिथि का स्वागत, छात्रों का काव्यपाठ, धन्यवाद ज्ञापन. (प्रधानाचार्य द्वारा) प्रधानाचार्य द्वारा प्रगति विवरण, विशिष्ट अतिथि का सम्बोधन, राष्ट्रगान से समारोह का समापन।
उत्तर :
डी.ए.वी. कॉलेज, जयपुर का वार्षिकोत्सव
जयपुर, 20 मार्च, 20_ _, डी. ए. वी. कॉलेज का वार्षिकोत्सव विद्यालय परिसर में धूमधाम एवं हर्षोल्लास से सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रबन्ध समिति के चेयरमैन श्री पी. के. मित्तल ने की, समारोह के विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रातः 9 बजे विशिष्ट अतिथि द्वारा सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। कॉलेज के प्रधानाचार्य द्वारा अध्यक्ष एवं विशिष्ट अतिथि का माल्यार्पण किया गया। छात्राओं ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। छात्र-छात्राओं के देशभक्ति से ओत-प्रोत समूह गान को सुनकर हॉल तालियों से गूंज उठा।
दो छात्रों ने काव्यपाठ भी किया। तत्पश्चात् प्रधानाचार्य राजकुमार शर्मा ने कॉलेज का प्रगति-विवरण प्रस्तुत किया। इसके उपरान्त प्रत्येक कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को विशिष्ट अतिथि द्वारा प्रमाण-पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किए गए। . विशिष्ट अतिथि ने कॉलेज परिवार की प्रशंसा करते हुए वर्तमान में गुरु-शिष्य के बीच बिगड़ते माहौल को सुधारने पर बल दिया।
उन्होंने कहा कि आप सबको एक अच्छा नागरिक एवं एक अच्छा इंसान बनकर कॉलेज का नाम रोशन करना है। देश के लिए सब कुछ बलिदान करने की भावना नौजवान छात्र-छात्राओं में होनी चाहिए। अन्त में सबकी मंगलकामना का आशीष देकर उन्होंने वाणी को विराम दिया। प्रधानाचार्य ने सभी आगन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया। समारोह का समापन राष्ट्रगान से हुआ।
प्रश्न 2.
जोधपुर सिविल लाइंस में चोरी की एक घटना का समाचार नीचे दी गई सूचनाओं के आधार पर बनाइए।
विषय - सिविल लाइंस में पन्द्रह लाख की चोरी।
किसके यहाँ - कपड़ा व्यवसायी रमेश कुमार गुप्ता।
कब - 20 अगस्त, 20_ _ रात 12 से 3 के बीच।
क्या गया - 2 लाख नकद, 10 लाख के जेवर, 30 हजार के कपड़े, अन्य सामान।
कैसे - सभी लोग दिल्ली शादी में गए थे, चौकीदार के हाथ-पाँव बाँध दिए थे, मुँह में कपड़ा ठुँसा था।
पुलिस की कार्यवाही - पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई, फिंगर प्रिन्ट एक्सपर्ट की टीम मौके पर पहुँची, चौकीदार से पूछताछ।
सन्देह - पुलिस को कई गिरोहों पर सन्देह है।
आश्वासन - घटना के खुलासे का एक सप्ताह का आश्वासन सी. ओ. प्रेमकुमार शुक्ला ने दिया है। माल बरामद करने का भी आश्वासन उन्होंने दिलाया।
उत्तर :
सिविल लाइंस में पन्द्रह लाख की चोरी जोधपुर, 20 अगस्त, 20-- नगर के सिविल लाइंस क्षेत्र में बीती रात को पन्द्रह लाख की चोरी की बड़ी वारदात को चोरों ने अंजाम दिया। सिविल लाइंस में रहने वाले कपड़ा व्यवसायी रमेश कुमार गुप्ता परिवार सहित दिल्ली में एक शादी समारोह में भाग लेने गए थे। घर पर केवलं एक चौकीदार था। रात में लगभग 12 बजे चोरों ने कोठी की बाउण्ड्रीवाल फलाँग कर प्रवेश किया और चौकीदार को बेहोश करने के लिए उसे क्लोरोफार्म सुंघाकर हाथ-पैर बाँधकर बाथरूम में बन्द कर दिया और फिर निर्द्वन्द्व होकर लूटपाट की। घर में रखी दो अलमारियों को उन्होंने तोड़ दिया। अलमारी में रखी 2 लाख की नकदी, 10 लाख के जेवर और लगभग 30 हजार के कपड़े एवं अन्य सामान चोर पार कर ले गये।
सुबह होश आने पर किसी प्रकार चौकीदार ने बन्धन-मुक्त होकर गृहस्वामी को चोरी की सूचना फोन पर दी। वे शाम तक वापस आए और उन्होंने चोरी की रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई। फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट की टीम मौके पर पहुँची तथा जाँच अधिकारी ने चौकीदार से भी पूछताछ की। पुलिस को नगर क्षेत्र में वारदात करने वाले कई बाबरिया गिरोहों पर सन्देह है। सी.ओ. प्रेमकुमार शुक्ला ने चोरी की घटना का खुलासा तथा एक सप्ताह में चोरी का माल बरामद करने का आश्वासन सम्बन्धित गृह स्वामी को दिया है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर समाचार का प्रारूप तैयार कीजिए।
शीर्षक - विभिन्न हादसों में वृद्ध सहित दो की मौत,
घटना-स्थल - भरतपुर एवं आसपास के थानाक्षेत्र का स्थान,
विवरण - ट्रैक्टर से गिरकर युवक की मौत, रात में लघुशंका के लिए उठे व्यक्ति की छत से गिरकर मौत।
उत्तर :
विभिन्न हादसों में वृद्ध सहित दो की मौत भरतपुर। अलग-अलग स्थानों पर हुए हादसों में एक वृद्ध सहित दो लोगों की मौत हो गई और तीन लोग घायल हो गए। घायलों को उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
भरतपुर थानान्तर्गत करकौली निवासी प्रहलाद सिंह का ट्रैक्टर बालू की खदान में लगा है। ट्रैक्टर पर गाँव का ही छोटेलाल प्रजापति (17) पुत्र प्रीतम सिंह अन्य साथियों के साथ मजदूरी करता है। गुरुवार दोपहर यमुना की खादरों से बालू लादकर ट्रैक्टर से लौट रहे थे। पहली चढ़ाई पर पानी की बोतल के साथ छोटेलाल गिर गया, जिससे ट्राली का पहिया उसके ऊपर से निकल गया।
छोटेलाल को बाइक पर बैठाकर जिला अस्पताल लाया गया। जहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया। एक अन्य घटना में घना थानान्तर्गत कछियान गली निवासी अशोक कुमार (51) रात्रि को नित्य की भाँति छत पर सोने चला गया था। छत पर रात 12 बजे लघुशंका के लिए उठकर चला था। अचानक असन्तुलित होकर मकान की छत से बगल से बह रहे नाले में गिर गया। जिससे अशोक की मौत हो गई। राजपुर थानान्तर्गत बाईपास मार्ग पर टेम्पो बाइक को, टेम्पो सवार चरन सिंह (35) निवासी मढ़ा थाना फरिहा घायल हो गए। अन्य हादसे में वीनू (10) पुत्री मोहरमन निवासी गौछ थाना नारखी घायल हो गई।
प्रश्न 4.
होली पर कवि सम्मेलन के आयोजन का समाचार प्रस्तुत कीजिए। वांछित सूचनाएँ निम्न प्रकार हैं
शीर्षक - अजमेर, जैन सभागार,
दिनांक - 22 मार्च, 20_ _
कार्यक्रम - होली पर कवि सम्मेलन का आयोजन,
आयोजक - साहित्यिक संस्था, मनीषा सँयोजक - सचिव, मोहनलाल, कविगण . - राजेश जोशी, चेतना शर्मा, प्रवीण आर्य, श्रीप्रकाश सरल, मोहनलाल, वटुकनाथ। भोजन व्यवस्था - रात्रि 11 बजे समापन के बाद भोजन व्यवस्था।
उत्तर :
होली पर कवि सम्मेलन का आयोजन . अजमेर, 22 मार्च 20_ _ नगर की साहित्यिक संस्था मनीषा के सचिव मोहनलाल के संयोजन में होली के उपलक्ष्य में स्थानीय जैन.सभागार में एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय कवियों के अलावा बाहर से पधारे कवियों बटुकनाथ, राजेश जोशी, चेतना शर्मा, प्रवीण आर्य, श्रीप्रकाश सरल ने भाग लिया, जिसका आनन्द नगर के सम्भ्रान्त 200 श्रोताओं ने लिया। चेतना शर्मा की. गजल, बटुकनाथ के वसन्त और होली के गीत तथा राजेश जोशी की हास्य कविताओं ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। कवियों ने अपनी कविताओं पर श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। रात्रि 11 बजे तक कवि सम्मेलन चला। उसके बाद सभी कवियों एवं श्रोताओं के लिए भोजन की व्यवस्था भी संस्था की ओर से की गई थी।
प्रश्न 5.
कोहरे के कारण हुई सड़क दुर्घटना पर एक समाचार निम्न सूचनाओं के आधार पर तैयार कीजिए स्थान - आगरा रोड, जयपुर, समय - सुबह 6 बजे, घटना - सैन्ट्रो कार राजस्थान रोडवेज की बस से टकराई, जनहानि - कार सवार की मृत्यु, घायल - रोडवेज बस की तीन यात्री घायल, मामूली चोटें, प्रतिक्रिया - भीड़ एकत्र, रोड जाम किया। पुलिस ने जाम खुलवाया।
उत्तर :
कोहरे के कारण सड़क दुर्घटना जयपुर, 28 जनवरी। घने कोहरे के कारण आज सुबह 6 बजे आगरा रोड पर जयपुर से 10 किलोमीटर पहले एक भीषण भिड़न्त में कार चालक की मौके पर ही मौत हो गई । बस के चालक को भी चोटें आई हैं। पर वह खतरे से बाहर है। रोडवेज बस में सवार सबसे अगली सीट पर बैठे यात्रियों को भी घायलावस्था में सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों के अनुसार चोटें ज्यादा खतरनाक नहीं हैं। एक-दो दिन बाद घायलों को छुट्टी दे दी जाएगी।
भीड़ ने पुलिस के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुए जाम लगा दिया किन्तु थानाध्यक्ष ने सूझबूझ से काम लेते हुए रोडवेज के चालक के खिलाफ लापरवाही से बस चलाने का मामला दर्ज कर लिया, जिससे जनता का आक्रोश कुछ शान्त हुआ। कार के मालिक की जेब से मिले ड्राइविंग लाइसेंस के आधार पर उसके घरवालों को दुर्घटना की सूचना दे दी गई। मृतक आगरा का निवासी है, जो एक व्यापारिक कार्य से जयपुर आया था और घर लौट रहा था। समाचार लिखे जाने तक उसके परिवार का कोई व्यक्ति घटनास्थल पर नहीं पहुंचा था।
प्रश्न 6.
निम्न सूचनाओं के आधार पर समाचार फ़ीचर तैयार कीजिए।
स्थान - कुल्लू
रिपोर्ट - सत्य महेश शर्मा
समाचार - हिमालय के ग्लेशियारों के पिघलने की सम्भावना नहीं।
स्रोत - जे. एन. यू. एवं आई. आर. डी. फ्रांस के वैज्ञानिकों का निष्कर्ष
सम्भावना - ग्लेशियर है हैल्दी-वैल्दी
उत्तर :
जे.एन.यू. और आई.आर.डी. फ्रांस के वैज्ञानिकों के अध्ययन का निष्कर्ष कुल्लू। ग्लोबल वार्मिंग से हिमालय में स्थित ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर पश्चिमी देशों के हौवे से घबराने की जरूरत नहीं है। अगले 30-35 वर्ष में हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलकर खत्म हो जाने की चेतावनी को कई विशेषज्ञ निराधार और अफवाह बता रहे हैं। फ्रांस के प्रतिष्ठित संस्थान आईआरीडी और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) दिल्ली के वैज्ञानिक मॉनीटरिंग और शोध के बाद इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि फिलहाल मिालय के ग्लेशियर जल्दी खत्म होने वाले नहीं हैं। इनका अस्तित्व बना रहेगा। हालांकि, इस स्तर पर वे पयावरण को लेकर एहतियात बरतने की सलाह भी दे रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में स्थित छेटा शिगरी समेत कई ग्लेशियरों की दस साल से की जा रही मानीटरिंग में यह बात सामने आई है कि पिछले एक दशक में ग्लेशियरों की स्थिति में कुछ खास बदलाव नहीं आया है, वे जस के तस हैं। ग्लेशियरों की मानीटरिंग और शोध के लिए लाहौल पहुँचे जेएनयू के वैज्ञानिक डॉ. फारुक और परमानन्द शर्मा, आईआरडी फ्रांस के डॉ. पीजी जोशी और डॉ. पिदारी ने 'दैनिक भास्कर' के साथ बातचीत में हिमालयी ग्लेशियरों की स्थिति पर चर्चा की।
ग्राउण्ड पैडलिंग रेडार टेस्ट तकनीक अपनाते हुए मानीटरिंग और शोध के जरिए ये वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि खासकर पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार सामान्य रूप से ही चल रही है। लाहौलस्पीति के केन्द्रीय बिन्दु में पड़ने वाले छेटा शिगरी ग्लेशियर की स्थिति दस वर्ष में बिल्कुल भी नहीं बदली है। लाहौलस्पीति के केन्द्रीय बिन्दु में पड़ने वाले छोटा शिगरी ग्लेशियर की स्थिति दस वर्ष में बिल्कुल भी नहीं बदली है। वर्ष 2005 और 2009 में तो छोटा शिगरी ग्लेशियर काफी पुष्ट नजर आया है।
प्रतिष्ठित संसीनों जेएनयू और आईआरडी के वैज्ञानिक 'हिमनद पर बदली जलवायु का दबाव' विषय पर एक दशक से हिमाचल और उत्तराखण्ड के ग्लेशियरों पर शोध कर रहे हैं। डॉ. फारुक का कहना है कि हिमालयी ग्लेशियरों के अगले 20 से 30 वर्षों में पिघलकर नष्ट हो जाने की चेतावनी देने वाले लोग अंधेरे में तीर मारने के सिवाय कुछ नहीं कर रहे हैं। उन्हें हिमाचल के लाहौल घाटी में आकर देखना चाहिए कि दूसरों के मुकाबले में यहाँ के ग्लेशियर कितने हैल्दी-वैल्दी हैं।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर समाचार फ़ीचर तैयार कीजिए स्थान - नई दिल्ली समाचार - शेयर में किए इन्वेस्टमेंट से बेहतर रिटर्न सोने और ब्राण्ड में किए रिटर्न से परिणाम - गतवर्ष पूँजी बाजार से मिला रिटर्न 6.3% ए आरबीआई बॉण्ड से मिला रिटर्न 28%, सोने से मिला रिटर्न 88% प्रतिक्रिया - मन्दी की मार झेलने के बाद शेयर बाजार में सुधार की प्रक्रिया शुरू
उत्तर :
पूँजी बाजार से नहीं, सोना और बांड से बेहतर रिटर्न
नई दिल्ली, पूँजी बाजार में निवेश अब पहले की तरह बम्पर मुनाफे का सौदा नहीं रहा। साल दर साल शेयर बाजार की चमक कम होती जा रही है। जबकि इसके उलट सोना और रिजर्व बैंक के जोखिम मुक्त बांड बेहतर रिटर्न दे रहे हैं। एसोचैम और एसएमसी कैपिटल की संयुक्त रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है।
पिछले तीन साल में ग्राहकों को पूँजी बाजार से महज 6.3 फीसदी का रिटर्न मिला है जबकि ग्राहकों ने सोने में निवेश कर 88 फीसदी और जोखिम मुक्त आरबीआई बांड से 28 प्रतिशत ज्यादा रिटर्न हासिल किया है। यानी ग्राहकों को एक साल में शेयर बाजार में निवेश से महज 2.1 फीसदी मुनाफा हुआ है जबकि सोने के जरिए 29 फीसदी और बांड से 9 फीसदी ज्यादा लाभ मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 20_ _ से अब तक देश के सकल घरेलू विकास दर (जीडीपी) में । जिस रफ्तार से बढ़ोत्तरी हुई है उस तुलना में पूँजी बाजार की स्थिति में सुधार नहीं हुआ है।
संगठन के महासचिव डी एस रावत का कहना है कि तीन साल पहले शेयर बाजार सूचकांक रॉज नई ऊँचाइयों को लगभग हर क्षेत्र की कम्पनियाँ आईपीओ ला रही थीं। विदेशी निवेशकों का रुख देश की ओर तेजी से बढ़ रहा था, लेकिन अभी परिस्थितियाँ ऐसी नहीं हैं। हालांकि मंदी की मार झेलने के बाद अब शेयर बाजार में सुधार की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। .
प्रश्न 8.
निम्न सूचनाओं के आधार पर समाचार तैयार कीजिए।
स्थान - नई दिल्ली
समाचार - नशे में धुत आठ पायलटों की छुट्टी
स्रोत - नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के द्वारा दिया गया जवाब
किसने माँगी थी जानकारी - अभिषेक शुक्ला ने आर. टी. आई. आवेदन में यह जानकारी मांगी थी
सजा - शराब पीकर ड्यूटी पर आए आठ पायलटों को बर्खास्त किया, शेष दोषियों को निलम्बित किया या छुट्टी पर भेजा गया।
उत्तर :
नशे में धुत आठ पायलटों की छुट्टी
नई दिल्ली, दिल्ली के पायलटों के नशे में धुत होने के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। पिछले साल पायलटों के शराब पीकर ड्यूटी पर आने के जितने भी मामले उजागर हुए उनमें से आधे मामले दिल्ली के थे। यह जानकारी नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने दी।
पायलटों के नशे में धुत होकर ड्यूटी पर आने की 42 घटनाएँ सामने आईं, जिनमें से 21 मामले दिल्ली हवाई अड्डे पर पकड़े गए। मुम्बई हवाई अड्डे पर 11 पायलट नशे में धुत होकर ड्यूटी पर आए। अभिषेक शुक्ला के एक आरटीआई आवेदन के जवाब में डीजीसीए ने इन पायलटों के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई का खुलासा किया है। शराब पीकर ड्यूटी पर आए आठ पायलटों को बर्खास्त कर दिया गया और बाकी को या तो निलम्बित कर दिया गया या उन्हें 30 दिन से तीन माह के लिए फ्लाइंग ड्यूटी से हटा दिया गया।
(ब) सम्पादकीय फ़ीचर
'सम्पादकीय' का स्वरूप - प्रत्येक दैनिक समाचार-पत्र में 'सम्पादकीय' लेख के अन्तर्गत सम्पादक अपनी टिप्पणी प्रस्तुत करता है। वास्तव में सम्पादकीय लेख का लेखन सम्पादक द्वारा किया जाना चाहिए, किन्तु यथार्थ में यह कार्य किसी उपसम्पादक या सहसम्पादक के ही जिम्मे होता है। अतः प्रत्येक पत्रकार को 'सम्पादकीय' लेखन आना चाहिए। सम्पादकीय लेख में व्यक्त विचार किसी सामाजिक प्रश्न या ज्वलन्त समस्या पर समाचार-पत्र की नीति को प्रकट करते हैं। सम्पादकीय टिप्पणी वह आइना है जिसमें अखबार का नजरिया (दृष्टिकोण) झलकता है। प्रसिद्ध पत्रकार खुशवन्त सिंह के अनुसार,
"The only part of the paper on which an editor can impose his personal stamp is on the edit page. The rest is at the mercy of the news editor who presides over the desk."
अर्थात् सम्पादकीय पृष्ठ पर ही सम्पादक के व्यक्तित्व की छाप होती है अन्यथा अखबार के अन्य पृष्ठों पर तो समाचार सम्पादक का अधिकार रहता है और वे उसकी कृपा के मोहताज रहते हैं।
सम्पादकीय लेख की प्रमुख विशेषताएँ-सम्पादकीय लेख की विशेषताएँ निम्न हैं -
सम्पादकीय टिप्पणी के लेखक के लिए आवश्यक गुण-सम्पादकीय लेख लिखने वाले में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक माना गया है -
सम्पादकीय फीचरों के उदाहरण -
प्रश्न 1.
नई दिल्ली से पटना जा रही ट्रेन के एसी कोच में महिला यात्री के साथ रेलवे पुलिस के डी. आई. जी. की छेड़छाड़ विषय को दृष्टिगत रखकर 'असुरक्षित महिलाएँ' विषय पर एक सम्पादकीय लेख लिखिए।
उत्तर
असुरक्षित महिलाएँ .. नई दिल्ली से पटना जा रही एक ट्रेन के एसी कोच में दो महिला यात्रियों के साथ सोमवार की रात हुई छेड़छाड़ की घटना ने असुरक्षित होती जा रही स्त्रियों की ओर फिर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। विडम्बना यह कि उन महिलाओं के साथ कथित अशोभनीय हरकत करने वाला रेलवे सुरक्षा बल का डी. आई. जी. है। डी. आई. जी. पर आरोप है कि शराब के नशे में उन्होंने वर्थ पर सो रही दो महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की। इस पर उन महिलाओं ने डी. आई. जी. को न सिर्फ थप्पड़ रसीद किए, बल्कि उनका मोबाइल भी छीन लिया।
हालांकि अपने पद और पहुँच का इस्तेमाल कर डी. आई. जी. साहब ने इस मामले को रफा-दफा करने की बहुतेरी कोशिश की, लेकिन उनकी दाल नहीं गली। उनकी बदनीयती का शिकार हुई दोनों महिलाओं में से एक आई. ए. एस. अफसर है और दूसरी उसकी बहिन, जिसका पति आई. पी. एस. अफसर है। उन दोनों ने पटना पहुँचकर बिहार के गृह सचिव के पास मामले की शिकायत दर्ज करा दी। दरअसल, यह समाज में व्याप्त पुरुषवादी मानसिकता का परिचायक है। इसी मानसिकता के कारण महिलाओं से छेड़छाड़ के ज्यादातर मामलों में कोई रिपोर्ट ही दर्ज नहीं होती है।
अगर रिपोर्ट दर्ज भी हो गई, तो अदालत में यह साबित करने की कोशिश की जाती है कि पीड़ित महिला का चाल-चलन अच्छा नहीं है। इसलिए अक्सर महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वाले कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं। शायद यही वजह है कि छेड़छाड़ की शिकार ज्यादातर महिलाएँ लोक-लाज के भय से रिपोर्ट दर्ज कराने के बजाय चुप रहना बेहतर समझती हैं। अगर आरोपी रसूक वाला हुआ तो आमतौर पर पीड़ित पक्ष को ही अपने कदम पीछे खींचने पड़ते हैं। हालांकि महिलाएँ अब पहले से ज्यादा जागरूक हुई हैं और आक्रामक भी।
लेकिन उनकी इस जागरूकता और आक्रामकता को कानून की धार भी चाहिए। सबसे पहले तो डेढ़ सौ साल पुराने उन कानूनों को बदलना जरूरी है, जो अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। लेकिन उससे ज्यादा जरूरी है महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को कानून के मुताबिक सजा दिलवाना। खासकर उन अपराधियों को, जो अपने पद, पैसे या प्रतिष्ठ के बल पर हर कानून को ठेंगा दिखाते हुए नजर आते हैं। महिलाएं ठान लें, तो सब मुमकिन है।
प्रश्न 2.
टी. बी. पर दिखाए जाने वाले पाश्चात्य सभ्यता एवं अश्लील कार्यक्रमों के बारे में एक सम्पादकीपका प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर :
विष उगलता इलेक्ट्रॉनिक मीडिया फिल्मी पर्दे पर एक नायक या खलनायक नारी शरीर की सुन्दरता पर आकर्षित होकर घर-परिवार, समाज से बगावत करता हुआ देखा जाता है। ऐसे चित्रों को देखने के बाद युवाओं का मन भ्रमित होकर इस कदर चलायमान हो जाता है कि वह पर्दे वाले जीवन को निजी जिन्दगी में जीने का प्रयास करने लगते हैं। अज्ञान के अन्धकार के कारण वह सत्य-असत्य को पहचान नहीं पाता।
वह भूल जाता है कि पर्दे पर तो सिर्फ नाटक था, वास्तविकता नहीं। फिल्मी दुनिया का अनुसरण करने के चक्कर में अपनी खुशनुमा जिन्दगी को बर्बाद कर लेता है। ये सब दृश्य देखने के बाद उसमें वासनाएँ जाग्रत होती हैं और इसी का परिणाम आज हम लूटपाट, हत्याएँ बलात्कार आदि के रूप में देख रहे हैं। इस सबके लिए दोषी है हमारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। आज टीवी हमारे समाज में जहर परोस रहा है।
हमारे भारतीय समाज पर पश्चिमी सभ्यता छा गई है। टीवी कार्यक्रमों में अश्लीलता परोसी जाती है। सेंसर बोर्ड, सरकारें, समाजसेवी संगठन सबके सब मूक बनकर देश, समाज के आध्यात्मिक पतन को देख रहे हैं। जहर उगलते इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर जब तक सेंसर बोर्ड का प्रतिबन्ध कड़ाई से लागू नहीं होगा तब तक पश्चिमी संस्कृति ये चैनल परोसते रहेंगे तथा हिंसा, अश्लीलता से भरे कार्यक्रम हमारी नई पीढ़ी को दिग्भ्रमित करते रहेंगे।
प्रश्न 3.
भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जा सकता है? इस विषय पर एक सम्पादकीय तैयार कीजिए।
उत्तर :
भारत की राजनीति में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है लेकिन हैरत की बात यह है कि उसका कोई ठोस इलाज नहीं दिखा रहा। नेता माफी माँग लेते हैं और विपक्षी दल के नेता उन्हें तुरन्त माफ कर देते हैं। जाँच कमेटियाँ बैठती हैं पर निरर्थक जाती हैं। अदालतें सजा तो तभी दे सकती हैं. जब कोई भ्रष्ट आचरण सिद्ध हो।
बोफोर्स घोटाले का क्या हुआ। 60 करोड़ रुपये के घोटाले की जाँच में 250 करोड़ रुपये खर्च हो गए। 25 साल बाद रो-धोकर सरकार ने सारे मामले पर ढक्कन दबा दिया। किसी भी घोटाले में नाम तो एक व्यक्ति का आता है और असली चेहरे दूसरे ही होते हैं। इसीलिए किसी भी घोटाले को दबा दिया जाता है या जो भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलते हैं उल्टा उन्हीं पर ही दूसरे तरीके से लांछन लगा दिया जाता है।
हमारे नेताओं को पता है कि संसदीय कमेटियों और एजेंसियों की जाँच तो बहाना मात्र है। जाँच के नतीजे आने तक लोग सब कुछ भूल जाते हैं। यदि ये कमेटियाँ और एजेंसियाँ किसी भी घोटाले के अपराधियों और उनके सहायकों की चल और अचल सम्पत्ति जब्त करके ऐसा माहौल बना दें जिससे भावी अपराधियों की हड्डियों में कंपकंपी दौड़ जाए तो इस भ्रष्टाचार से निजात मिल सकती है।
नेताओं और सरकारी अफसरों की चल-अचल सम्पत्तियों का ब्यौरा केवल चुनाव के समय ही नहीं, हर साल सार्वजनिक किया जाना चाहिए। यह छोटा-सा कानून-प्रावधान भारत की राजनीति की जबर्दस्त सफाई कर देगा और जो पैसा बनाने के लिए राजनीति में प्रवेश करते हैं वह भाग खड़े होंगे। ब्यौरे का यह कानून मुख्य पात्रों के अलावा उनके रिश्तेदारों पर भी लागू होना चाहिए। गलत ब्यौरे भरने वाले तथा तथ्यों को छिपाने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। व्यापारियों की तरह नेताओं और अफसरों के यहाँ भी छापे पड़ने चाहिए।
व्यापारियों का पैसा तो मेहनत का होता है, इसीलिए कर-चोरी करते हैं। नेताओं और सरकारी अफसरों का पैसा तो रिश्वत का होता है जिसे विदेशी बैंकों में छिपाया जाता है। समय आने पर यही पैसा तस्करी, आतंकवाद या चुनावी भ्रष्टाचार में लगाया जाता है। यदि चुनावी खर्च को कम किया जा सके तो यह भी भ्रष्टाचार को खत्म करने का एक रास्ता है। अन्त में भ्रष्टाचार की निगरानी के लिए हम चाहें कितनी भी सी. बी. आई. सीबीसी और न्यायपालिकाएँ या कमेटियाँ बनायें लेकिन जब तक जनता स्वयं को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं करेगी तो शासन भी भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं होगा।
इसके लिए हमें संकल्प लेना होगा कि हम अपने कार्य के लिए कभी रिश्वत नहीं देंगे। थोड़ा नुकसान भरेंगे, परेशानी झेलेंगे, थोड़ी लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन भ्रष्टाचार के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। साथ में यह भी जरूरी है कि भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाले बहादुर लोगों की सुरक्षा और सम्मान का पीड़ा जनता खुद उठाए और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध अहिंसक प्रतिकार की अलख जगाए। आज बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे महान् व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख की ज्योति जलाए हुए है। हमें इस ज्योति को जलते रखना है।
प्रश्न 4.
भारत में बाघों की संख्या में अचानक बढ़ोत्तरीई।इस विषय पर एक सम्पादकीय लिखिए।
उत्तर :
बढ़ते बाप यह अच्छी खबर है कि भारत में बाघों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन अफसोस की बात है कि देश में इतने बापों के लिए जंगल नहीं है। बाघों के संरक्षण के लिए 30 वर्ष पहले अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से 'प्रोजेक्ट टाइ फिर भी ऐसी स्थिति आ गई कि कुछ बरस पहले सरिस्का जैसे अभयारण्य में एक भी बाघ नहीं बचा था। इस मुद्दे पर जब प्रश्न उठा तो नए सिरे से बाघों को बचाने का अभियान शुरू हुआ और सफल भी हुआ।
इस सफलता पर खुश नहीं रहा जा सकता, क्योंकि जिस कारण बाघों की संख्या कम हुई थी वह अब भी बरकरार है। बाघों को अकेलापन अच्छा लगता है। एक वयस्क नर बाघ अपने इलाके में दूसरे बाघ की उपस्थिति मंजूर नहीं होती। जब 'प्रोजेक्ट टाइगर' की स्थापना हुई थी तब से अब तक जंगलों की संख्या बहुत कम हो गई है। अब बाघों की संख्या बढ़ती है तो जंगल कहाँ से आएँगे क्योंकि जंगल तो इन्सान की जरूरत और लालच की भेंट चढ़ गए हैं। 'प्रोजेक्ट टाइगर' अभियान का एक उद्देश्य यह भी था कि टाइगर के बहाने जंगल भी सुरक्षित रहेंगे।
इस चुनौती को अब हम अवसर में बदल सकते हैं। भारत की आबादी का घनत्व काफी ज्यादा है फिर भी हम योजनाबद्ध तरीके को अपनाएँ तो जंगलों को बचाया जा सकता है, उनका क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है और अपनी पूर्ति के लिए शहरों और कस्बों की जमीन सदुपयोग करें जिससे ज्यादा आबादी कम जगह में रह सके। दूसरी समस्या बाघों के अवैध शिकार की है। इसके लिए जंगल विभाग के सुरक्षा तन्त्र को मजबूत होना चाहिए।
पर्यटन से होने वाली आय के अतिरिक्त स्थानीय लोगों को भी जंगल और जीवों के संरक्षण के लिए सहायता करनी चाहिए। इन्सान को अपनी जरूरतों के साथ-साथ प्रकृति के सन्तुलन चक्र की भी रक्षा करनी चाहिए। भारत को दुनिया का 'जीन बैंक' कहा जाता है, क्योंकि जितनी जैविक प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं उतनी दुनिया में कहीं नहीं हैं। इस सुरक्षा को अगली पीढ़ी तक सौंपने की हमारी जिम्मेदारी
प्रश्न 5.
महँगाई की समस्या पर एक सम्पादकीय तैयार कीजिए।
उत्तर
महँगाई की समस्या देश का आम आदमी आजकल बढ़ती हुई महँगाई से त्रस्त है। सच तो यह है कि मूल्यवृद्धि ने आम आदमी का जीना। दूभर कर दिया है। बाजार में आज उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें रातों-रात बढ़ जाती हैं, ऐसी स्थिति में सामान्य व्यक्ति के लिए परिवार का भरण-पोषण करना भी कठिन हो रहा है। सीमित आमदनी वाले नौकरी-पेशा व्यक्तियों, छोटे-छोटे दुकानदारों एवं श्रमिकों पर इस महँगाई की मार सबसे ज्यादा पड़ती है।
मध्यमवर्ग में परिवार टूटने का एक मूल कारण बेतहाशा बढ़ती हुई महँगाई भी है। पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई के बीच में होने वाले मनमुटाव का मूल कारण आर्थिक होता है। महँगाई ने आज आर्थिक रूप से व्यक्ति की रीढ़ तोड़ दी है, ऐसी स्थिति में वह अपने खर्चों में कटौती करने को बाध्य हो गया है, साथ ही अपने सीमित उत्तरदायित्व का निर्वाह करने हेतु परिवार से अलग हो रहा है। बढ़ती हुई महंगाई ने व्यक्ति को अनैतिक बनने के लिए विवश कर दिया है। बढ़ती हुई महँगाई ने एक ओर तो व्यक्ति में तनाव, कुण्ठा, असुरक्षा, संत्रास जैसे भावों को जन्म दिया है तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है।
मूल्यवृद्धि का सबसे प्रमुख कारण है-जनसंख्या विस्फोट। इस देश की जनसंख्या जिस अनुपात में बढ़ रही है, उस अनुपात में उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो पाता। बाजार में वस्तुओं की मांग अधिक होती है तथा आपूर्ति कम होती है, परिणामतः मांग-पूर्ति के सिद्धान्त के अनुसार वस्तु की कीमत बढ़ जाती है। आज तेजी से बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास जुटा पाना कठिन काम है, परिणामतः मकान किरायों में वृद्धि हो गई है। सरकारी नीतियाँ भी महंगाई के लिए उत्तरदायी है। सब जानते हैं कि चुनाव-व्यवस्था में सरकार को पर्याप्त धन व्यय करना होता है, साथ ही उम्मीदवार भी बेतहाशा धन खर्च करते हैं।
यह धन वस्तुतः बिना हिसाब-किताब वाला काला धन होता है, यह जितना अधिक प्रचलन में होगा, उतनी ही मूल्यवृद्धि करेगा। विगत दो चुनावों ने सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्य में लगभग 50% वृद्धि कर दी है। लोकतन्त्र एक महँगी व्यवस्था है। अत: सरकार को इस सम्बन्ध में पुनर्विचार करते हुए ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि चुनाव के कारण महँगाई न बढ़ सके। जमाखोरी एवं मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति से भी महंगाई बढ़ जाती है। कभी-कभी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव व्यापारी उत्पन्न कर देते हैं और जब बाजार में चीजें गायब हो जाती हैं तब वे मुंहमांगी कीमत पर अपना जमा किया हुआ सामान बेचने लगते हैं।
सीमेण्ट, चीनी, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल आदि आम उपभोग की वस्तुओं में होने वाली मूल्यवृद्धि का मूल कारण इनकी जमाखोरी एवं ब्लैक मार्केटिंग ही है। बढ़ती हुई महँगाई का एक प्रमुख कारण काले धन का प्रचलन भी है। काले धन का अभिप्राय उस पैसे से होता है, जिस पर कर अदा न किया गया हो। आज व्यापारियों, उद्योगपतियों, फिल्म अभिनेताओं, सरकारी कर्मचारियों एवं अंशधारियों तथा डॉक्टरों, वकीलों आदि पर बेशुमार काला धन है। इसका उपयोग प्रायः विलासिता के साधनों को क्रय करने में किया जाता है। काले धन का प्रचलन बाजार में जिस मात्रा में होगा, उसी मात्रा में मूल्यवृद्धि भी होगी।
चुनाव व्यवस्था में भी अपेक्षित सुधार करके उसे कम खर्चीला बनाने की आवश्यकता है। सरकार को जनहित में कठोर निर्णय लेने होंगे एवं आम जनता को राहत देने के लिए अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देना होगा। कृषि-क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाकर, औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन की गति तीव्र करके एवं आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं का आयात करके भी मूल्यवृद्धि को एक सीमा तक रोका जा कता है।
प्रश्न 6.
इण्डियन प्रीमियर लीग (IPL) में रॉयल चैलेंजर्स बंगलौर के प्ले-ऑफ पर सम्पादकीय फीचर लिखिए।
उत्तर :
बंगलौर। किंग्स इलेवन पंजाब के हाथों पिछले मैच में 111 रन से मिली करारी शिकस्त के बाद रॉयल चैलेंजर्स बंगलौर के पास प्ले-ऑफ से पहले अपनी खामियों को दूर करने का आखिरी मौका था। चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ बंगलौर का होमवर्क साफ झलक रहा था। हर डिपार्टमेंट में शानदार प्रदर्शन करते हुए बंगलौर ने न सिर्फ आठ विकेट से यह मैच जीता बल्कि 19 अंकों के साथ अंक तालिका में टॉप पर भी काबज हुई। 'मैन ऑफ द मैच' बने गेल की इस पारी से बंगलौर ने 129 रन के आसान लक्ष्य को 198 ओवर में दो विकेट खोकर हासिल कर लिया।
गेल ने टूनामेंट में सर्वाधिक 511 रन बनाकर औरेंज कैप भी हासिल कर ली। इससे पहले चेन्नई सुपर किंग्स की टीम आठ विकेट पर महज 128 रन ही जोड़ सकी। टॉस जीतकर बंगलौर के कप्तान डेनियल विटोरी ने पहले फील्डिंग करने का फैसला किया। जहीर खान ने चेन्नई के शीर्षक्रम को ध्वस्त करते हुए माइकल हसी (04) और सुरेश रैना (04) को पेवेलियन लौटाया। जल्दी ही मुरली विजय (06) और एस. बद्रीनाथ खाता खोले बिना ही आउट हो गए और चेन्नई का स्कोर चार विकेट पर 22 रन हो गया। यहाँ से कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी और रिद्धिमान साहा (22) ने हालात सँभाले और पाँचवें विकेट के लिए 42 रन जोड़े। आखिर में धोनी ने अकेले मोर्चा संभाला और 40 गेंदों में 70 रन की नाबाद पारी खेली।
प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा पर एक सम्पादकीय लिखिए।
उत्तर :
हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 35 शहरों में महिलाओं की स्थिति पर जारी रिपोर्ट में यह खुलासा किया कि विवाहिताओं के उत्पीड़न में हैदराबाद के बाद दिल्ली का स्थान आता है। दिल्ली. तो देश की राजधानी है और हैदराबाद बड़ा शहरं है, इन दोनों में भी यह हालत तब है, जब घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिनियम पारित हुए कई वर्ष हो चुके हैं। इन बीते वर्षों में देश की महिलाओं की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया।
हैरानी की बात तो यह है कि आर्थिक तौर पर सक्षम और शिक्षित महिलाएँ भी उसी तादाद में घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, जिस अनुपात में अशिक्षित और आर्थिक तौर पर निर्भर महिलाएँ । बंगलुरु में एक शोध में पाया गया कि लगभग 80 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को बेरोजगार महिलाओं के मुकाबले घरेलू मोर्चे पर ज्यादा शोषण का शिकार होना पड़ा।
तक पहुँच बढ़ रही है, हमें इसके सम्भावित सामाजिक नतीजों को भी पहचान करनी होगी। क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को और साफ कर रहे हैं कि भौतिक आधुनिकता के पीछे जरूरी नहीं है कि खुली सोच के लोग भी रहते हैं। बकौल समाजशास्त्री आईपी मोदी, 'घरेलू हिंसा के पीछे जो मूल कारण है वह है 'पुरुष का अहं', जो हर कीमत पर स्त्री को अपने वर्चस्व में रखना चाहता है और इसका सबसे सीधा और सहज रास्ता है महिला की शारीरिक कमजोरी पर चोट करना।' वह स्त्री जो जननी है, संरक्षक है, उसका अपने ही घर के पुरुष सदस्यों द्वारा प्रताड़ित किया जाना लज्जा का विषय है परन्तु हैरानी की बात यह है कि इसे सामान्य तौर पर लिया जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने स्त्रियों की स्थिति को जानने के लिए देश के 29 राज्यों का सर्वेक्षण करवाया। सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में विवाहित महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा (37.2 प्रतिशत) अपने जीवन में कभी-न-कभी अपने जीवनसाथी के हाथों शारीरिक या यौन शोषण का शिकार होता है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि घरेलू हिंसा के पीछे कारण है-पति से बहस, बच्चों का ख्याल न रखना, खाना समय पर नहीं बनाना, पराये पुरुष से बात करना जैसी छोटी-मोटी चीजें। ये कारण बनावटी हैं।
मूलतः तो घरेलू हिंसा की जड़ है, वह है पुरुष का कथित 'दंभ'। जयपुर की डॉ. शारदा बताती हैं कि 'मेरे हॉस्पिटल में काम करने वाली नर्स को आए दिन उसका पति मारता था। शरीर पर जगह-जगह चोट के निशान दिखाई देते । मैंने जब उससे उसके पति के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करने के लिए कहा, तो वह बोली यह कैसे हो सकता है, 'घर की बात थाने में गई, तो क्या फिर हम साथ रह पाएंगे।' यह व्यथा घरेलू हिंसा से पीड़ित होने वाली हर महिला की है। यह सच है कि कानून की शरण में जाने पर एक महिला का अपने जीवनसाथी या अन्य परिजनों से भावनात्मक सम्बन्ध को कायम रखना मुश्किल है, पर ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? भावनात्मक सुरक्षा आवश्यक है, परन्तु इससे भी कहीं अधिक आवश्यक है स्वयं की रक्षा।
यह भी कहा जाता है कि कई महिलाएँ घर में रहना सिर्फ इसलिए बेहतर मानती हैं कि घर में यदि घरेलू हिंसा है तो बाहर का समाज कोई कम क्रूर नहीं। यह सच है कि स्वयं के अस्तित्व को समाप्त कर भावनात्मक रिश्तों को जीवित रखने की चेष्टा की जाएगी, तो ऐसे भावनात्मक रिश्ते सिवाय छल के कुछ और साबित नहीं होंगे। लेकिन समाज में ऐसी व्यवस्था भी जरूरी है कि उत्पीड़ितऔरतों के लिए घर से बाहर आने पर उनके स्वतन्त्र अस्तित्व और प्रगति का आश्वासन समाज में मौजूद हो।
प्रश्न 8.
टी. वी. के बढ़ते प्रभाव एवं इससे फैलती अपसंस्कृति पर एक फ़ीचर लिखिए।
उत्तर :
टी.वी. - अपसंस्कृति का प्रचारक आज से तीस-चालीस वर्ष पहले कौन यह सोच सकता था कि टी. वी. का इतना प्रभाव हमारे समाज पर होगा। सैकड़ों चैनल और बटन दबाते ही आपके मनपसन्द प्रोग्राम। कहीं अंग्रेजी पिक्चर में बोल्ड सीन दिखाए जा रहे हैं, तो कहीं फैशन टी.वी. फैशन के नाम पर अश्लीलता परोस रहे हैं, कहीं नाच का धमाल है तो कहीं सास-बहू या विदाई जैसे सीरियल समाज का सच्चा चित्र प्रस्तुत कर रहे हैं।
टी. वी. ने हमारे घरों में ऐसा स्थान बना लिया है कि अब उससे मुक्त होना सम्भव नहीं रहा। बच्चों को टी. वी. के सामने से हटा पाना बहुत कठिन कार्य है, उनकी पढ़ाई चौपट हो रही है। पहले समाज के लोग आपस में मिल-बैठकर बातें करते थे पर अब टी.वी. ने सामाजिक समरसता समाप्त कर दी है। जो कुछ थोड़ा-बहुत समय हमारे पास होता है, वह टी. वी.
दूरदर्शन अपसंस्कृति परोस रहा है, जिस पर रोग लगाने का कोई ठोस उपाय हमारे पास नहीं है। आखिर क्या दिखाना चाहते हैं, इन सीरियलों के प्रोड्यूसर एवं निर्देशक ? क्या इनसे हमारे समाज में कोई सकारात्मक सन्देश मिलता है? शायद नहीं । इनका उद्देश्य दर्शकों को किसी भाँति अपने में उलझाए रखना, नये फैशन को बढ़ावा देना, पुराने नैतिक मूल्यों की खिल्ली उड़ाना, बुजुर्गों का उपहास करना रह गया है।
नवयुवतियाँ और नवयुवक अपने उत्तरदायित्व को भूलकर मस्ती भरे जीवन को ही अपने जीवन का उद्देश्य मान रहे हैं। आज जिस प्रकार की नारियाँ टी. वी. पर दिखाई जा रही हैं क्या वे हमारी श्रद्धा की पात्र बन सकती हैं? आज टी.वी. के माध्यम से जो अश्लीलता, हिंसा, फैशन एवं नैतिक मूल्यों में जो गिरावट आ रही है उसे समय रहते रोकने के कारगर उपाय न किए गए तो हमारे सामाजिक मूल्यों में निश्चय ही घोर गिरावट आ जाएगी और फिर समस्या इतनी गम्भीर हो जाएगी कि जिसका उपचार सम्भव नहीं हो सकेगा।
प्रश्न 9.
तनावपूर्ण जीवन-शैली परएक फ़ीचर तैयार कीजिए।
उत्तर :
आज की तनावपूर्ण जीवन शैली
एक बार मैं अपने मित्र से मिलने दिल्ली गया और उसके आग्रह पर वहाँ रुक गया। अपनी रोज की आदत के अनुसार मैं तो सुबह पाँच बजे जग गया पर वह नौ बजे तक सोता रहा। सुबह-सुबह बालकनी पर खड़े होकर जब मैंने नीचे सड़क की ओर झाँका तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे पूरा शहर दौड़ रहा है। हर किसी को अपने गन्तव्य पर पहुँचने की जल्दी थी। स्कूल दौड़ रहे थे। किसी को एक मिनट की फरसत नहीं। सबके चेहरे पर तनाव, शीघ्रता एवं बेचैनी साफ झलक रही थी। लगता था जैसे कहीं आग लग गई है और सारा शहर दौड़ रहा है।
मैं तो यह देखकर भौचक्का था। कहाँ हमारे गाँव की सुकनभरी जिन्दगी और कहाँ यह महानगर की भागमभाग? किसी को एक मिनट की फुरसत नहीं। सब लोग समय की कमी का अनुभव कर रहे हैं और उनके पास जो समय है उसे 'धन' में बदल रहे हैं अर्थात् कम से कम समय में अधिक से अधिक धन कमाना ही आज इनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।
आज के जीवन में सर्वत्र तनाव है। बच्चों का बचपन छिन गया है। नौनिहालों को 2-3 वर्ष की अवस्था में ही भारी-भारी बस्तों के बोझ से लदे-पड़े स्कूल जाते देखा जा सकता है। अच्छे स्कूल में प्रवेश दिला पाना हर माता-पिता के लिए सम्भव नहीं है और फिर कम्पटीशन के इस जमाने में कक्षा में प्रथम स्थान पाने का तनाव माँ-बाप के साथ-साथ बच्चे में भी रहता है।
अधिक आमदनी का तनाव माता-पिता दोनों को नौकरी करने को विवश करता है। इस कारण बच्चों का पालन-पोषण प्रभावित होता है। और उन्हें माँ के आँचल की वह सुरक्षा नहीं मिल पाती जो उन बच्चों को मिलती है जिनकी माताएँ नौकरी नहीं करती। घर का तनाव, जीवन शैली के लिए धन जुटाने का तनाव, आफिस का तनाव, नौकरी बचाये रखने का तनाव, पारिवारिक समस्याएँ सुलझाने का तनाव, अपनी अस्मिता को सुरक्षित रखने का तनाव और सामाजिक सम्बन्धों को निभाने का तनाव।
इतने तनावों से हमारा जीवन घिरा रहता है कि उसका प्रभाव हमारे जीवन पर स्पष्ट झलकता है। हम छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाने लगते हैं, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जैसी बीमारियाँ हमारे जीवन में घर कर गई हैं। पारिवारिक जीवन भी आज तनावग्रस्त है। पहले संयुक्त परिवार होते थे जहाँ आपस में सुख-दुःख बँट जाते थे और हर व्यक्ति को सुरक्षा की अनुभूति होती थी; किन्तु अब एकल परिवार होने से व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित अनुभव करता है और अनेक प्रकार के तनावों को दिन-प्रतिदिन के जीवन में झोलता है।
कोई किसी तनाव को झेल रहा है तो कोई किसी तनाव को ! आज एक भी आदमी 'टेंशन फ्री' दिखाई नहीं देता। बच्चों को पढ़ने का तनाव है, तो युवकों को अच्छी नौकरी पाने का तनाव, बुजुर्गों को अपने बुढ़ापे की चिन्ता है तो कुछ लोग रोजमर्रा की बीमारियों से तनावग्रस्त हैं। कोई कार्यस्थल पर तनाव झेल रहा है तो कोई पारिवारिक तनावों से ग्रस्त है। जीवन के इस चक्रव्यूह में फंसा हर व्यक्ति अभिमन्यु की तरह प्राण-पण से जूझ रहा है कि किसी प्रकार इस तनाव भरी जिंदगी को सामान्य जिन्दगी में बदलना असम्भव-सा लगता है। तनावों के साथ जीना आज आम इन्सान की नियति बन गई है।