RBSE Class 11 Geography Practical Notes Chapter 1 मानचित्र का परिचय

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RBSE Class 11 Geography Practical Notes Chapter 1 मानचित्र का परिचय

→ मानचित्र परिचय (Introduction of Maps) :

  • पृथ्वी का आकार जीऑयड (त्रिविम) होता है। ग्लोब के द्वारा पृथ्वी के आकार को प्रदर्शित किया जाता है।
  • ग्लोब के जीऑयड आकार में होने के कारण ही हम विश्व के मानचित्र को ग्लोब पर एक बार में नहीं देख सकते हैं।
  • सम्पूर्ण विश्व के आकार को कागज पर व्यक्त करने के लिए मापनी का प्रयोग किया जाता है।
  • मानचित्र त्रिविम पृथ्वी की द्विविम प्रस्तुति है।
  • मानचित्र संपूर्ण पृथ्वी या उसके या उसके किसी भाग का समतल पृष्ठ पर समानीत मापनी द्वारा वरणात्मक, प्रतीकात्मक व व्यापकीकृत निरूपण करता है। 

→ मानचित्र बनाने की अनिवार्यताएँ (Neccesities of Map Drawing) : 

  • मापनी,
  • मानचित्र प्रक्षेप,
  • मानचित्र व्यापकीकरण,
  • मानचित्र अभिकल्पना,
  • मानचित्र निर्माण तथा उत्पादन।

मापनी का चयन मानचित्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।

  • प्रक्षेप चयन, उपयोग व निर्माण मानचित्र बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है।
  • मानचित्र की विषयवस्तु को व्यापीकृत करना मानचित्रकार का प्रमुख कार्य है।
  • मानचित्र अभिकल्पना आलेखी विशेषताओं को योजनाबद्ध करना है।
  • मानचित्र निर्माण व उत्पादन अंतिम कार्य होता है।

RBSE Class 11 Geography Practical Notes Chapter 1 मानचित्र का परिचय 

→ मानचित्रण का इतिहास (History of Maps):

  • सबसे प्राचीन मानचित्र 2,500 ईसा पूर्व का बना, मेसोपोटामिया में पाया गया था, जो कि चिकनी मिट्टी की टिकिया से बना है।
  • पृथ्वी की परिधि की माप तथा मानचित्र बनाने में भौगोलिक निर्देशांक की पद्धति के उपयोग के द्वारा अरब तथा यूनानी भूगोलवेत्ताओं ने आधुनिक मानचित्र कला की नींव रखी।
  • 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में तकनीकी के विकास के कारण मानचित्र की परिशुद्धता अधिक हो गयी है जिसमें वायव फोटोग्राफी तथा आँकड़ों के कम्प्यूटरीकृत मानचित्र सम्मिलित हैं।
  • भारत में मानचित्र बनाने का कार्य 1767 ई. में सर्वे ऑफ इंडिया की स्थापना के साथ किया गया। 1785 में हिन्दुस्तान का मानचित्र बनकर तैयार हुआ। 

→ मापनी के अनुसार मानचित्रों के प्रकार (Types of Maps According to Scale):

  • मापनी के आधार पर मानचित्र दो प्रकार के होते हैं
    • बृहत् मापनी मानचित्र,
    • लघु मापनी मानचित्र।
  • बृहत् मापनी मानचित्रों को दो भागों में बाँटा जा सकता है
    • भू-सम्पत्ति मानचित्र,
    • स्थलाकृति मानचित्र।
  • भूसम्पत्ति मानचित्र कैडेस्ट्रल मानचित्र भी कहलाते हैं। इससे गाँवों व शहरों के मानचित्र बनते हैं।
  • स्थलाकृतिक मानचित्र में आकृति, अपवाह, कृषिभूमि, वन, बस्ती, परिवहन सम्बन्धी मानचित्र शामिल होते हैं।
  • लघु मापनी मानचित्र दो प्रकार के होते हैं
    • भित्ति मानचित्र,
    • एटलस मानचित्र।
  • भित्ति मानचित्र बड़े आकार के कागज या प्लास्टिक पर बनाए जाते हैं। एटलस मानचित्र लघुमान मानचित्र होते हैं।
  • प्रकार्य के आधार पर मानचित्र दो प्रकार के होते हैं
    • भौतिक मानचित्र,
    • सांस्कृतिक मानचित्र।
  • भौतिक मानचित्रों में उच्चावच, भूगर्भीय स्वरूप, जलवायु व मृदा जबकि सांस्कृतिक मानचित्रों में राजनीतिक, जनसंख्या, आर्थिक व परिवहन मानचित्र शामिल होते हैं। 

RBSE Class 11 Geography Practical Notes Chapter 1 मानचित्र का परिचय

→ मानचित्रों का उपयोग (Use of Maps) :
भूगोलवेत्ता, नियोजक तथा अन्य संसाधन अध्ययनवेत्ता मानचित्रों का उपयोग करते हैं। ऐसा करने में वे दूरी, दिशा तथा क्षेत्र को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रकार के मापन करते हैं।

→ मानचित्र-किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित, संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।

→ ग्लोब-पृथ्वी का छोटा प्रतिरूप या नमूना ग्लोब कहलाता है।

→ जिऑयड-एक लघ्वक्ष गोलाभ, जो पृथ्वी के वास्तविक आकार के अनुरूप हो, जिऑड कहलाता है।

→ पृथ्वी-सौरमंडल का एक सदस्य ग्रह जिस पर जीवन मिलता है।

→ रेखाचित्र-बिना मापनी के खींची गई रेखाओं को रेखाचित्र कहा जाता है।

→ मानचित्र प्रक्षेप-गोलाकार सतह को समतल कागज पर प्रदर्शित करने की प्रणाली को मानचित्र प्रक्षेप कहते हैं।

→ मानचित्रकला-मानचित्र, चार्ट, खाका एवं अन्य प्रकार के ग्राफ बनाने की कला, विज्ञान एवं तकनीक का अध्ययन व उपयोग मानचित्रकला कहलाता है।

→ मापनी-एक मानचित्र, खाका या छायाचित्र पर दी गई दूरी एवं वास्तविक दूरी के बीच के अनुपात को मापनी कहते हैं। दूसरे शब्दों में, मानचित्र पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी एवं धरातल पर उन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी के अनुपात को मापक या मापनी कहते हैं।

→ मानचित्र व्यापकीकरण-मानचित्र के उद्देश्य को ध्यान में रखकर उसकी विषयवस्तु का नियोजन मानचित्र व्यापकीकरण कहलाता है।

→ मानचित्र अभिकल्पना-मानचित्रों की आलेखी विशिष्टताओं को योजनाबद्ध करना मानचित्र अभिकल्पना कहलाता है।

→ उच्चावच-पृथ्वी तल पर मिलने वाले उत्खात भौतिक स्वरूप जिन्हें प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के उच्चावचों में बाँटा गया है।

→ अपवाह-किसी क्षेत्र या प्रदेश में धरातलीय जल के प्रवाहन व उससे सम्बन्धित क्रिया।

→ वनस्पति-पृथ्वी तल पर मिलने वाली घास-झाड़ियों, पेड़-पौधों, वृक्षों एवं शैवाल रूपी स्वरूप को वनस्पति कहा जाता है।

→ बस्ती-भूतल पर मानव निर्मित आवासों का समूह।

→ परिवहन-मानव एवं वस्तुओं का विभिन्न माध्यमों से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर होने वाला स्थानान्तरण।

→ जनसंख्या घनत्व-किसी प्रदेश या क्षेत्र के प्रति इकाई क्षेत्रफल में निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या ।

→ उद्योग-आर्थिक उत्पादन के लिए किया जाने वाला कोई कार्य।

RBSE Class 11 Geography Practical Notes Chapter 1 मानचित्र का परिचय

→ रूढ़ चिह्न-मानचित्रों में विभिन्न दशाओं को दर्शाने के लिए जिन संकेतों का प्रयोग किया जाता है उन्हें रूढ़ चिह्न कहते हैं।

→ द्वीप-जल से घिरा हुआ स्थल खण्ड जिसकी स्थिति किसी महासागर, सागर, झील अथवा नदी में हो सकती है।

→ वृहत मापनी मानचित्र-इसमें भूसम्पति मानचित्र व स्थलाकृतिक मानचित्र शामिल किए जाते हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 10:23 a.m.
Published Aug. 4, 2022