RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

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RBSE Class 11 Geography Chapter 7 Notes प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

→ प्रकृति व परिवर्तन (Nature and Changes) :

  • परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जो विभिन्न तत्वों में अनवरत रूप से चलती रहती है तथा हमारे प्राकृतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण को प्रभावित करती है।
  • ये परिवर्तन मन्द गति से भी आ सकते हैं; जैसे-स्थलाकृतियों और जीवों में। ये बदलाव तीव्रता से भी आ सकते हैं; जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकम्प और तूफान इत्यादि।

→ आपदा (Disaster):

  • आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है जो ऐसी ताकतों द्वारा घटित होती है जो मानव के नियन्त्रण में नहीं हैं।
  • आपदा अल्प समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध होते हैं तथा बड़े पैमाने पर जन-धन की हानि होती है।
  • आपदाएँ मुख्यतः प्राकृतिक होती है किन्तु वर्तमान में मानवकृत आपदाओं का स्वरूप भी देखने को मिल रहा है। भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसें वायुमंडल में छोड़ना, ग्रीन हाउस गैसें, ध्वनि, वायु, जल एवं मिट्टी सम्बन्धी प्रदूषण आदि प्रमुख मानवकृत आपदाएँ हैं।
  • अनेक स्तर पर ऐसी घटनाओं से बचने के भरसक प्रयास किये जा रहे हैं जिनमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना, जून 1992 में रियो-डी-जेनरो सम्मेलन, ब्राजील में भू-शिखर सम्मेलन और मई 1994 में योकोहामा जापान में आपदा प्रबन्धन पर विश्व संगोष्ठी आदि प्रमुख हैं।

→ प्राकृतिक सकंट (Natural Hazard's):

  • प्राकृतिक संकट, प्राकृतिक पर्यावरण के वातावरण के वे तत्व हैं जिनमें धन-जन की हानि की सम्भावना होती है।
  • जैसे-महासागरीय धाराएँ, हिमालय में तीव्र ढाल तथा अस्थिर संरचनात्मक आकृतियाँ अथवा रेगिस्तानों तथा हिमाच्छादित क्षेत्रों में विषम जलवायु आदि।
  • प्राकृतिक संकट की तुलना में प्राकृतिक आपदाएँ अपेक्षाकृत तीव्रता से घटित होती हैं तथा वृहद् स्तर पर जन-धन की हानि होती है तथा इन आपदाओं पर मानव का नियन्त्रण नहीं होता।
  • वस्तुतः प्राकृतिक संकट तथा प्राकृतिक आपदा एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े होते हैं तथा कभी-कभी ये एक-दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं।
  • प्राकृतिक कारक ही प्राकृतिक आपदाओं का एकमात्र कारण नहीं है। कुछ आपदाओं की उत्पत्ति मानवीय क्रियाकलापों से भी होती है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ 

→ आपदाओं का वर्गीकरण (Classification of Natural Disaster) :

  • प्राकृतिक आपदाओं को प्रमुख रूप से चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है
  • वायुमण्डलीय आपदा-जैसे बर्फीले तूफान, तड़ित झंझा, टॉरनेडो, उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात, करकापात, पाला, सूखा, लू, शीत लहर आदि। भौमिकी आपदा-जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी, भूस्खलन, हिमघाव, अवतलन तथा मृदा अपरदन।
  • जलीय आपदा-जैसे बाढ़, ज्वार, महासागरीय धाराएँ, सुनामी, तूफान महोर्मि आदि।
  • जैविक आपदा-जैसे टिड्डियाँ, कीट, बर्ड फ्लू, डेंगू, कोरोना, बैक्टीरिया आदि।
  • भारत के विशाल भौगोलिक आकार, पर्यावरणीय व सांस्कृतिक विविधताओं के कारण भारत में आपदाओं की स्थिति भी अलग-अलग देखने को मिलती है।

→ भारत में प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disaster's in India) :
प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं में निम्नलिखित महत्वपूर्ण हैं- भूकम्प, सुनामी, उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात, बाढ़, सूखा, भूस्ख लन। 

→ भूकम्प (Earthquakes):

  • भूकम्प की उत्पत्ति भूगर्भिक हलचलों से सम्बन्धित है। यह सबसे ज्यादा विध्वंसक प्राकृतिक आपदा है।
  • भूकम्प विवर्तनिक क्रियाओं, ज्वालामुखी विस्फोट, चट्टानों के गिरने, भूस्खलन, अवतलन, जलीय रिसाव आदि का परिणाम होते हैं।
  • इण्डियन प्लेट प्रतिवर्ष उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में एक सेमी. खिसक रही है, जबकि उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट इसके लिए अवरोध उत्पन्न कर रही है जिसके कारण प्लेटों के किनारों पर तनाव बढ़ने से हिमालय के चाप के साथ भूकम्प आने की सम्भावना बनी रहती है।
  • प्रायद्वीपीय भारत में लातूर और भीमा (कृष्णा) नदी के साथ-साथ एक भ्रंश रेखा विकसित हुई है, जिसके कारण प्रायद्वीपीय भारत के कुछ भागों में भूकम्प आते हैं।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ने भारत को निम्नलिखित पाँच भूकम्पीय क्षेत्रों में विभक्त किया है
    • अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र,
    • अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र,
    • मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र,
    • निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र,
    • अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र।
  • भूकम्प का प्रभाव सदैव विध्वंसक होता है। भूकम्प से वृहद् स्तर पर जन-धन की हानि होती है।
  • भूकम्प के प्रभाव को कम करने का सबसे अच्छा उपाय है, इसकी समय से पूर्व जनता तक जानकारी पहुँचाना, साथ ही भूकम्प की आशंका वाले क्षेत्रों में भूकम्परोधी भवनों का निर्माण करना। 

→ सुनामी (Tsunami):

  • भूकम्प या ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल में ऊर्ध्वाधर ऊँची तरंगें उत्पन्न होती हैं जिन्हें सुनामी या भूकम्पीय समुद्री लहरें कहा जाता है।
  • इनसे महासागरों के आन्तरिक भाग कम प्रभावित होते हैं, जबकि तटीय क्षेत्रों पर सुनामी लहरों के भारी विध्वंसात्मक प्रभाव देखे जाते हैं।
  • सुनामी सामान्यतः प्रशान्त महासागरीय तट जिसमें अलास्का, जापान, फिलीपाइन, दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे द्वीप, इंडोनेशिया और मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती हैं।
  • सुनामी जैसी विनाशकारी आपदा से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास करना आवश्यक है।
  • 26 दिसम्बर, 2004 को भारत में आयी सुनामी आपदा के बाद भारत अन्तर्राष्ट्रीय सुनामी चेतावनी तन्त्र में शामिल हो गया है।

→ उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Tropical Cyclone) :

  • 30° उत्तर तथा 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य कम दबाव वाले उग्र मौसम तन्त्र उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहलाते हैं।
  • उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में वायुदाब प्रवणता बहुत अधिक होती है।
  • चक्रवात का केन्द्र गर्म वायु व निम्न वायुदाब व मेघरहित क्रोड होता है। इसे तूफान की आँख कहा जाता है।
  • भारत में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में उत्पन्न होते हैं।
  • मानसूनी अवधि में अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में अधिक चक्रवात आते हैं। इसी प्रकार अक्टूबर से नवम्बर के मध्य भी बंगाल की खाड़ी में अधिक चक्रवात पैदा होते हैं।
  • भारत में आने वाले उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात तटीय क्षेत्रों में प्रायः 180 किमी. प्रति घण्टा की चाल से प्रवेश करते हैं तथा तटीय क्षेत्रों में भारी तबाही के दृश्य उत्पन्न करते हैं।
  • तूफानी क्षेत्र में समुद्रतट भी असाधारण रूप से ऊपर उठा होता है जिसे तूफान महोर्मि कहा जाता है। 

→ बाढ़ (Flood):

  • जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है तो जल बाढ़ के रूप में मैदानी भागों के निचले हिस्सों में भर जाता है।
  • प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ की उत्पत्ति तथा उसके क्षेत्रीय फैलाव में मानव की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
  • असम, पश्चिम बंगाल तथा बिहार भारत के सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्य हैं।
  • इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में बाढ़ें लाती रहती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तरी गुजरात तथा हरियाणा भारत के अन्य आकस्मिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं।।
  • बाढ़ों से फसलें नष्ट हो जाती हैं, लाखों लोग बेघर हो जाते हैं तथा बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की जलजनित बीमारियाँ फैलने की आशंका बढ़ जाती है।
  • दूसरी ओर हर वर्ष आने वाली बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी जमा कर देती है जो चावल की कृषि के लिये लाभदायक है।
  • तटबंध निर्माण, वनीकरण, बाँध निर्माण, जलग्रहण क्षेत्र में आवास निर्माण पर रोक बाढ़ नियंत्रण के प्रमुख उपाय हैं।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

→ सूखा (Drought):

  • दीर्घकालीन समय तक कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक प्रयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है ऐसी स्थिति सूखा कहलाती है। • सूखे के चार प्रकार होते हैं
    • मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा,
    • कृषि सूखा,
    • जल विज्ञान सम्बन्धी सूखा,
    • पारिस्थितिक सूखा।
  • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 19 प्रतिशत भाग और जनसंख्या का 12 प्रतिशत भाग प्रतिवर्ष सूखे से प्रभावित रहता है। भारत को सूखे की तीव्रता के आधार पर तीन भागों में विभक्त किया गया है
    • अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र,
    • अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र,
    • मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र।
  • भारत में जल अकाल, तृण अकाल, अन्न अकाल व कभी-कभी त्रिकाल की स्थिति भी देखने को मिलती है।
  • सूखा पड़ने पर अकाल की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। वृहद् स्तर पर मवेशियों की मौत, मानव प्रवास तथा पशु पलायन सूखाग्रस्त क्षेत्रों में प्रभावी हो जाते हैं। 

→ भूस्ख लन (Landslide): 

  • आधार चट्टानों या आवरण प्रस्तर (Regolith) का भारी मात्रा में तेजी से नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता
  • भूस्खलन प्रादेशिक स्तर पर अधिक सम्पन्न मिलते हैं। 
  • भूस्खलनों की बारम्बारता और इसके घटने को प्रभावित करने वाले कारकों (भू-विज्ञान, भू-आकृतिक, कारक, ढाल, भूमि उपयोग, वनस्पति आवरण) तथा मानवीय क्रियाकलापों के आधार पर भारत को चार भूस्खलन क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है
    • अत्यधिक सुभेद्यता क्षेत्र,
    • मध्यम और कम सुभेद्यता क्षेत्र,
    • अधिक सुभेद्यता क्षेत्र,
    • अन्य क्षेत्र।
  • भूस्खलन का प्रभाव स्थानीय स्तर पर होता है। सड़क मार्ग तथा रेल मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं तथा नदियों के मार्ग बदल जाते हैं।
  • वनीकरण को बढ़ावा, जल बहाव पर नियंत्रण, सीढ़ीनुमा खेती, ढाल नियंत्रण आदि भूस्खलन के संभावित उपाय होते हैं।

→ आपदा प्रबन्धन (Disaster Management) :

  • आपदा प्रबन्धन के अन्तर्गत विभिन्न आपदाओं के बारे में समय से पूर्व भविष्यवाणी करने के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का उपयोग कर इनसे होने वाले नुकसान को कम करने वाली सभी प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में आपदा को एक गंभीर संकट, दुर्घटना व विपत्ति बताया गया है।

→ संकट (Hazards):
आपदा से पूर्व की स्थिति जिसमें आपदा के आगमन का खतरा मौजूद रहता है। यह एक प्राकृतिक घटना है। 

→ आपदा (Disaster):
आपदा का अर्थ है-अचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना, जिससे व्यापक जन-धन की हानि होती है।

→ सुनामी (Tsunami):
सुनामी एक विशालकाय लहर है जो समुद्र में भूगर्भिक हलचल से उत्पन्न होती है। यह एक जापानी भाषा का शब्द है जो दो शब्दों ‘सू' अर्थात् बंदरगाह और नामी अर्थात् लहर से बना है।

→ भूस्खलन (Land slides)-किसी ढालू भू-भाग पर मिट्टी तथा चट्टानों के ऊपर से नीचे की ओर खिसकने, लुढ़कने व गिरने की प्रक्रिया को भूस्खलन कहते हैं।

→ पर्यावरण (Environment)- भौतिक, जैविक, रासायनिक दशाओं का योग जिसकी अनुभूति किसी प्राणी या प्राणियों को होती है।

→ ज्वालामुखी (Volcano)-ज्वालामुखी से आशय मात्र उस बिन्दु या दरार से होता है जिसके माध्यम से पृथ्वी के आंतरिक भाग में स्थित लावा तथा अन्य पदार्थ धरातल के ऊपर आते हैं।

→ तूफान (Squall)-भयंकर वायुमण्डलीय विक्षोभ जिसमें अत्यधिक वेग वाली प्रबल पवनें चलती हैं।

→ करकापात (Hailstorm)-शीत वाताग्र के मार्ग में कपासी मेघों द्वारा 5 मिमी. व्यास के बर्फीले पत्थर की वर्षा को करकापात या ओलावृष्टि कहते हैं।

→ टॉरनेडो (Tornadoes)- भूमि पर एक प्रचण्ड तूफान जिसमें अल्पकालिक झंझा होती है और प्रायः इसके द्वारा अल्प समय के लिए मूसलाधार वर्षा होती है।

→ भूमण्डलीय ऊष्मीकरण (Global Warming)-वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि के कारण पृथ्वी के ताप के बढ़ने की प्रक्रिया।

→ ओजोन परत (Ozone Layer)-वायुमण्डल में पृथ्वी की सतह से 20 और 50 किमी. की ऊँचाई के मध्य पायी जाने वाली परत जिसमें ओजोन गैस की प्रधानता है।

→ ऋतु (Season)-वर्ष की वह अवधि जिसमें क्रान्ति वृत्तीय तल के साथ पृथ्वी के अक्षीय झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण विशिष्ट मौसमी दशायें पायी जाती हैं।

→ वायुमण्डल (Atmosphere)-पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किमी. की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

→ पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pollution)- पर्यावरण को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रदूषित करने वाला प्रक्रम जिसके द्वारा पर्यावरण का कोई भाग इतना अधिक प्रभावित होता है कि वह नकारात्मक प्रभाव दिखाने लगता

→ चक्रवात (Cyclone)-चक्रवात एक प्रबल भँवर होता है, जिसमें उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त दिशा में तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त दिशा में तेज हवाओं के साथ मूसलाधार वर्षा होती है, समुद्र से ऊँची लहरें उठती हैं जिसके कारण तटवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।

→ बाढ़ (Flood)-किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक जलमग्न रहना बाढ़ कहलाता है। . (17) महासागरीय धाराएँ (Ocean currents)- महासागरों में चलने वाली धाराओं को महासागरीय धाराएँ कहते हैं। यह दो प्रकार की होती हैं-ठण्डी जलधाराएँ व गर्म जलधाराएँ।

→ रेगिस्तान (Desert)-मृतप्राय भूमि वाला क्षेत्र जहाँ भूमि की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है।

→ हिमाच्छादित (Glaciation)- यह एक वृहद प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के अत्यधिक कम होने से भूतल पर हिमानियों या हिमचादरों का विस्तार हो जाता है।

→ बन्दरगाह (Port)-पोताश्रय युक्त बन्दरगाह जहाँ जलयानों के ठहरने, सामान उतारने व चढ़ाने की सुविधा विद्यमान होती है।

→ प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disaster)-मानव पर दुष्प्रभाव डालने वाला प्राकृतिक परिवर्तन।

→ तड़ित झंझा (Thunder storms)- स्थानीय तूफान जिसमें तेज हवाएँ ऊपर उठती हैं तथा पूर्ण विकसित कपासी मेघों की रचना करती हैं। इससे बिजली कड़कती है तथा मेघ गर्जन के साथ तेज वर्षा होती है।

→ इंडियन प्लेट (Indian Plate)- पृथ्वी पटल पर मिलने वाली मुख्य प्लेटों में से इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट का भाग।

→ यूरेशियन प्लेट (Uresian Plate)--एक मुख्य प्लेट जिसमें यूरोप व एशिया का भाग शामिल होता है।

→ तनाव (Tenssion)-अन्तर्जात बलों की प्रक्रिया के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ने से उत्पन्न बल।

→ प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau)-एक ऐसा पठारी क्षेत्र जिसके तीन ओर जल मिलता है।

→ परिवहन (Transport)-वस्तुओं तथा व्यक्तियों को किसी साधन द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोने या ले जाने की क्रिया।

→ संचार (Communication)-विभिन्न स्थानों के बीच यातायात तथा यात्रा सम्पर्क।

→ पर्पटी (Crust)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत भंगुर होती है, स्थलमंडल इसी का भाग होता है।

→ महासागर (Ocean)-पृथ्वी पर स्थित अति विशाल खुले जलीय भाग जिनमें खारा जल भरा रहता है। 

→ जल तरंग (Water Waves)-सागरीय जल की दोलायमान की गति। 

→ जनसंख्या (Population)-किसी प्रदेश में एक निश्चित समयावधि में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या।

→ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone or Revolving Storm)-कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला चक्रवात।

→ मौसम (Season)-किसी स्थान पर किसी विशेष क्षण में मौसम के घटकों के सन्दर्भ में अल्पकालीन दशाओं के योग को मौसम कहते हैं।

→ प्रभंजन (Hurricane)- उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का एक प्रकार जो उत्तरी अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी तटों पर चलते हैं।

→ जलवाष्प (Water Vapour)-वायुमण्डल में वाष्प की दशा में स्थित जल।

→ संघनन (Condensation)-वह प्रक्रिया जिसके द्वारा कोई पदार्थ वाष्प से तरल अवस्था में बदलता है।

→ गुप्त ऊष्मा (Latent Heat)-किसी अवयव के रूप परिवर्तन से प्राप्त होने वाली ऊष्मा।

→ कोरियोलिस बल (Coriolis Force)-पृथ्वी सतह पर स्थित किसी गतिशील वस्तु पर भू-घूर्णन से उत्पन्न शक्ति का प्रभाव।

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→ क्षोभमण्डल (Troposphere)-पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल की सबसे निचली परत जिसका विस्तार भूतल से औसतन 13 किमी. ऊँचाई तक है। 

→ वायुदाब (Air Pressure)-भूतल के किसी क्षेत्रीय इकाई पर वायुमंडल की समस्त वायु परतों के पड़ने वाले दबाव को वायुदाब कहते हैं।

→ समदाब रेखा (Isobar)-किसी मानचित्र या चार्ट पर दिखाई गयी वह रेखा जो समान वायुमंडलीय दाब वाले स्थानों को मिलाती है।

→ प्रायद्वीप (Peninsula)-किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिकांश ओर से जल से घिरा होता है।

→ अक्षांश (Latitude)- भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण भूतल पर स्थित किसी बिन्दु की पृथ्वी के केन्द्र से मापी गयी कोणिक दूरी।

→ देशांतर (Longitude)- भूतल के किसी बिन्दु से गुजरने वाला मध्याह्न रेखा तथा प्रधान मध्याह्न रेखा के मध्य की कोणिक दूरी उक्त बिन्दु की देशांतर होती है।

→ डेल्टा (Delta)- नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।

→ वर्षा (Rain)-एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा की मात्रा जिसे वर्षामापी यंत्र से मापा जाता है।

→ झील (Lake)-स्थलीय भाग में स्थित विस्तृत गर्त जिनमें जल भरा रहता है।

→ तूफान महोर्मि (Storm surge)-तूफानी क्षेत्र में समुद्र तल के असाधारण रूप से ऊपर उठ जाने को तूफान महोर्मि कहते हैं।

→ अपरदन (Erosion)-विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूतल या शैलों का कटाव होना जो मुख्यतः वायु प्रवाहित जल, सागरीय तरंगों और हिमानी से स्थानान्तरित होने का परिणाम होता है।

→ जलाढ़ (Alluvial)-किसी जलाशय या नदी के जल में मिश्रित अथवा जल के साथ चलने वाले असंगठित पदार्थ जिसका निक्षेप नदी की तली, बाढ़ के मैदान, सागर तटीय भूमि तथा अन्य जलाशयों की तली पर होता है।

→ अपवाह तंत्र (Drainage System)-किसी क्षेत्र में प्रवाहित होने वाली मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियों का प्रवाह क्रम।

→ मानसून (Monsoon)-पृथ्वी के निचले वायुमंडल में चलने वाली पवनें जिनकी दिशा में ऋतुवत् परिवर्तन होता है।

→ तटबंध (Levee)- मैदानी भाग में नदी के किनारे जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित प्राकृतिक बाँध या कम ऊँचाई वाले कटक जिसे नदी के बाढ़ का जल प्रायः नहीं पार कर पाता है।

→ सूखा (Drought)-सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। यह वह अवस्था है जब किसी क्षेत्र में बहुत कम वर्षा के कारण पेयजल, खाद्यान्न एवं रोजगार की कमी हो जाती है।

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→ जल विज्ञान (Hydrology)-वह विज्ञान जो पृथ्वी पर स्थित जल का अध्ययन करता है।

→ पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System or Ecosystem)-किसी पर्यावरण में समस्त जीवित एवं अजीवित कारकों की पारस्परिक अंतक्रिया तथा उनके समाकलन से उत्पन्न तंत्र।

→ भूकम्प (Earthquakes)-सामान्यतया पृथ्वी के आंतरिक भाग की चट्टानों के हलचल के मूल केन्द्र से उठने वाले लहरदार कम्पनों को भूकम्प कहते हैं। यह तीव्र गति से बिना चेतावनी के आता है।

→ प्रवास (Migration)- मनुष्य, पशु, पक्षी अथवा अन्य जीवों का व्यक्तिगत अथवा समूह में अपना निवास स्थान छोड़कर अन्य स्थानों में स्थायी या अस्थाई निवास के लिए होने वाला स्थानांतरण।

→ लू (Loo)- उत्तर भारत में गर्मियों में उत्तर-पश्चिम से पूर्व की दिशा की ओर चलने वाली प्रचण्ड उष्ण व शुष्क हवा 'लू' कहलाती है।

→ पाला (Frost)-जब कभी धरातल पर तापमान हिमांक से भी कम हो जाता है तब वायुमंडल की जलवाष्प जल बूंदों के रूप में हिमकणों में बदल जाती है, जिसे पाला या तुषार कहते हैं। यह फसलों को बहुत नुकसान पहुंचाता है।

→ द्रोणी (Rift)-दो समानांतर भ्रंशों के मध्य का गहरा भाग जिसकी चौड़ाई अत्यल्प किन्तु लम्बाई अधिक होती

→ चट्टान (Rock)-खनिज कणों के संग्रहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।

→ हिमघाव (Avalanches)-ढीले हिम, मिट्टी आदि के ढेर का अचानक और तेजी से पर्वतों से फिसलकर नीचे आ जाना और बहुधा यह ढेर जैसे-जैसे ढाल पर नीचे आता है इसमें वृद्धि होती जाती है, इसे एवेलांश या अवघाव भी कहते हैं। हिम के ढेर से बने एवेलांश को हिमघाव कहा जाता है। '

→ अवतलन (Sub-sidence)-सामान्यतया नीचे तल में बैठना अथवा सामान्य अवस्था में आना अवतलन कहलाता है।

→ भूआकृतिक (Land Form)- भूतल पर अनाच्छादन तथा निक्षेपण के प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा उत्पन्न किसी विशिष्ट स्थलीय तथ्य की आकृति, स्वरूप एवं प्रकृति।

→ सुभेद्यता (Vulnerability)-जोखिम की वह सीमा जिससे एक व्यक्ति, समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, सुभेद्यता कहलाती है।

→ जलभृत (Aquifer)-जिन शैलों में होकर भूमिगत जल प्रवाहित होता है उसे जलभृत कहते हैं।

→ जल संकलन (Rain water harvesting)-वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीक जल संकलन या वर्षा जल संग्रहण कहलाती है।

→ ज्वारीय तरंग (Tidal waves)-सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से समुद्रों में उत्पन्न होने वाली सागरीय तरंगें, जो ज्वार के समय उत्पन्न होती हैं।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion)-मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ

→ आपदा प्रबंधन (Disaster management)-आपदा से पूर्व की जाने वाली तैयारी, आपदा आने पर उसके दुष्प्रभाव को कम करने एवं उसका सामना करने के लिए किए जाने वाले उपाय, राहत व पुनर्वास कार्यों के सम्मिलित प्रयासों को आपदा प्रबंधन कहा जाता है।

→ स्थानांतरी कृषि (Shifting Cultivation)-यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ व झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है तथा खेत तैयार किए जाते हैं।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 11:31 a.m.
Published Aug. 4, 2022