RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा

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RBSE Class 11 Geography Chapter 6 Notes मृदा

→ परिचय (Introduction):

  • प्राकृतिक संसाधनों में मिट्टी सबसे मूल्यवान तथा आधारभूत संसाधन है जिसने समस्त जीव जगत् के अस्तित्व को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आधार प्रदान किया है।
  • यदि पृथ्वी पर मिट्टी की उपस्थिति न हो तो पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • • मृदा शैल मलवा व जैव सामग्री का सम्मिश्रण है।
  • किसी क्षेत्र की मिट्टी का निर्माण उस क्षेत्र में हो रहे भौतिक, रासायनिक तथा जैविक परिवर्तनों के फलस्वरूप होता है।
  • मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों में उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति, अन्य जीव रूप एवं समय आदि प्रमुख हैं।
  • मृदा के घटक खनिज कण, ह्यूमस, जल एवं वायु होते हैं।
  • मृदा में मिलने वाली परतों को संस्तर कहा जाता है तथा परतों की यह व्यवस्था मृदा परिच्छेदिका कहलाती है।
  • धरातल के नीचे मृदा की तीन परतें या संस्तर होते हैं। 'क' संस्तर सबसे ऊपर, मध्य में 'ख' संस्तर तथा सबसे नीचे 'ग' संस्तर होता है। इन तीनों संस्तरों के नीचे एक चट्टान होती है जिसे आधारी चट्टान कहा जाता है। 

→ मृदा वर्गीकरण (Classification of Soil):

  • प्राचीनकाल में मृदा को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया था
    • उपजाऊ मिट्टी,
    • अनुपजाऊ मिट्टी।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो ने भारत की मृदाओं पर अनेक अध्ययन किए।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय मृदाओं को उनकी प्रकृति एवं उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है।
  • यह वर्गीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग के मृदा वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार भारतीय मिट्टियों का वर्गीकरण
    • इंसेप्टीसोल्स,
    • एंटीसोल्स,
    • एल्फीसोल्स,
    • वर्टीसोल्स,
    • एरीडोसोल्स,
    • अल्टीसोल्स,
    • मॉलीसोल्स,
    • अन्य मिट्टियाँ।
  • उत्पत्ति, रंग, संयोजन तथा अवस्थिति के आधार पर भारत की मिट्टियों को निम्नलिखित आठ प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है
    • जलोढ़ मृदाएँ.
    • काली मृदाएँ,
    • लाल और पीली मृदाएँ,
    • लैटेराइट मृदाएँ,
    • शुष्क मृदाएँ,
    • लवण मृदाएँ,
    • पीटमय मृदाएँ,
    • वन मृदाएँ। 

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा 

→ जलोढ़ मृदाएँ (Alluvial Soils) :

  • उत्तरी मैदानी भाग तथा नदी घाटियों में विस्तृत ये मृदाएँ देश के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर मिलती हैं।
  • ये निक्षेपण मृदाएँ हैं। जिनको नदियों व सरिताओं ने वाहित व निक्षेपित किया है।
  • राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई ये मृदाएँ गुजरात के मैदानों तक फैली मिलती हैं।
  • गठन में यह बलुई दुमट से चिकनी मिट्टी के रूप में मिलती हैं। इनमें पोटाश की मात्रा अधिक तथा फॉस्फोरस की मात्रा कम मिलती है।
  • खादर व बांगर क्षेत्र जलोढ़ मृदाओं के ही क्षेत्र हैं।
  • जलोढ़ मृदाओं का रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है। इनमें गहन कृषि की जाती है।

→ काली मृदाएँ (Black Soils) :

  • ये मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकांश भाग पर मिलती हैं।
  • इन मृदाओं को रेगर तथा कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है।
  • गीले होने पर ये मदाएँ फूल जाती हैं जबकि सूखने पर इन मिट्टियों में दरारें पड़ जाती हैं।
  • इन मिडिया में नमी लम्बे समय तक बनी रहती है।
  • रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशियम तथा एल्यूमिना के तत्व काफी मात्रा में मिलते हैं, लेकिन फॉर नाइट्रोजन तथा जैव पदार्थों की कमी होती है।

→ लाल और काली मृदाएँ (Red and Yellow Soils):

  • इन सटाओं का विकास दक्कन के पठार के पूर्वी व दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले आग्नेय चट्टानों की प्रधानता वाले क्षेत्रों में हुआ है।
  • लाल और पीली मृदाएँ उड़ीसा राज्य, छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के दक्षिणी भागों में मिलती हैं।
  • इस मद का लाल रंग इनमें उपस्थित लोहांश के कारण होता है, जबकि जलयोजित होने पर यह पीली दिखायी देती है।
  • इन ममताओं में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की कमी होती है। 

→ लैटेगइट 'टाएँ (Laterite Soils) :

  • लेटाइट भृदाएँ उच्च तापमान व भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।
  • ये मिट्टियाँ कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती हैं।
  • भारी वर्षा के कारण मृदाओं में निक्षालन क्रिया होने से चूना तथा सिलिका तो निक्षालित हो जाते हैं तथा लौह ऑक्साइड, पोटाश तथा एल्यूमिनियम के यौगिक शेष रह जाते हैं।
  • ये मृदा मुख्यतः प्रायद्वीपीय पठार के ऊँचे क्षेत्रों में मिलती हैं।

→ शुष्क मृदाएँ (Dry Soils):

  • ये पटा पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय भागों में मिलती हैं।
  • इन पदों में नमक पर्याप्त मात्रा में होता है जबकि ह्यूमस और जैव पदार्थों की कमी होती है।
  • इन मदाओं में नीचे की ओर चूने की मात्रा बढ़ते जाने के कारण निचली परतों में कंकड़ मिलते हैं।
  • इन मृदाओं में सिंचाई की अधिक आवश्यकता पड़ती है।

→ लवण मृदाएँ (Saline Soils) :

  • इन्हें ऊसर मृदा भी कहते हैं। शुष्क जलवायु व खराब अपवाह के कारण बनती है।
  • यह मिट्टी पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाई भाग तथा पश्चिमी बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्रों में मिलती है।
  • इस मिट्टी में सोडियम, पोटेशियम तथा मैग्नीशियम तत्वों की प्रधानता होती है।
  • यह एक अनुर्वर मिट्टी है, इसमें किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती है। जिप्सम डालकर इन्हें उपजाऊ बना सकते

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा

→ पीटइट Peaty Soils) :

  • उच्च आर्द्रता से इस मृदा का निर्माण होता है।
  • उत्तरी भागों, उत्तराखण्ड के दक्षिणी भागों, पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों, उड़ीसा तथा तमिलनाडु में मिलने वाला ये मृदाएँ भारी वर्षा व उच्च आर्द्रता वाले वनस्पति युक्त क्षेत्रों में मिलती हैं।
  • पर्याप्त मात्रा में जैव तत्व 40 से 50 प्रतिशत तक मिलते हैं।

→ वन मृदाएँ (Forest Soils):

  • पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में इस प्रकार की मृदाएँ मिलती हैं।
  • घाटियों में मिट्टी दोमट, गादयुक्त तथा उपजाऊ होती है, जबकि ऊपरी ढालों पर मोटे कणों वाली होती है।

→मृदा अवकर्षण (Soil Degradation):

  • मृदा की उर्वरता में ह्रास को मृदा अवकर्षण कहा जाता है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है।
  • मृदा अवकर्षण की दर भू-आकृति, पवनों की गति व वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion):

  • मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है। बहता हुआ जल, पवन की अपरदनात्मक प्रक्रियाएँ तथा मानवीय गतिविधियाँ मृदा अपरदन के लिए प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
  • शुष्क और अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में पवन तथा भारी वर्षा वाले खड़े ढालों पर बहता जल प्रभावशाली मृदा अपरदन के कारक हैं।
  • जल अपरदन परत अपरदन व अवनालिका अपरदन के रूप में होता है।
  • वनोन्मूलन भी मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों में से एक है।

→ मृदा संरक्षण (Soil Conservation):

  • मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता कायम रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन तथा क्षय का आता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
  • भारत सरकार के केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने मृदा संरक्षण के लिए देश के विभिन्न भागों में कई योजनाएँ, चना रखी हैं।

→ मृदा (Soil)-पृथ्वी की भूपर्पटी की वह सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण का बनी होती है और पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।

→ भू-पर्पटी (Crust)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जो भंगुर होती है। स्थलमंडल इसी का भाग होता है:

→ संसाधन (Resource)-पृथ्वी पर अथवा अन्य ग्रहों एवं उपग्रहों पर पाया जाने वाला प्रत्येक पदा जो मनुष्य के लिए उपयोगी है।

→ अपक्षय (Weathering)-प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा अपने स्थान पर ही शैलों के विघटन तथा वियोजन की क्रिया।

→ शैल (Rocks)-खनिज कणों के संगृहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।

→ उच्चावच (Relief)-पृथ्वी की ऊपरी सतह की भौतिक आकृति कहते हैं।

→ वनस्पति (Vegetation)-किसी प्रदेश का समस्त पादप जीवन, इसके अंतर्गत शैवाल से लेकर घासे झाड़ियाँ,

→ खनिज (Minerals)-एक ऐसा प्राकृतिक कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्व जिसकी एक क्रमवह पारमाणविक संरचना तथा निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्म होते हैं।

→ ह्यूमस (Humus)-अपक्षय व अपरदन के कारक भूपृष्ठ की चट्टानों को तोड़कर उसका चूर्ण बना देते हैं। इस चूर्ण में वनस्पति व जीव-जन्तुओं के सड़े-गले अंश भी सम्मिलित हो जाते हैं, जिसे ह्यूमस कहते हैं।

→ संस्तर (Layers)-मिट्टी की तीन परतों का संस्तर।

→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)-भू-सतह एवं नीचे स्थित मूल चट्टानों के ऊपरी भाग के मध्य स्थित समस्त भाग के लम्बवत् संस्तरों को सामूहिक रूप से मृदा परिच्छेदिका कहते हैं।

→ जनक चट्टान (Parent Rock)-मृदा का निर्माण करने वाली मूल चट्टान।

→ भू-आकृति (Land Form)-भूतल पर अनाच्छादन तथा निक्षेपण के प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा उत्यः किसी विशिष्ट स्थलीय तथ्य की आकृति, स्वरूप एवं प्रकृति।।

→ कृषि (Agriculture)-वह क्रिया जिसके द्वारा मिट्टी से फसलों का उत्पादन किया जाता है। वह शाक-सब्जी, फल-फूल बागवानी की एक कला होती है।

→ जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)-जलोढ़कों के निक्षेप से निर्मित मिट्टी।

→ काली मृदा (Black Soil)-काले रंग की मिट्टी जैसे चरनोजम, काली कपास मिट्टी आदि।

→ लैटेराइट मृदा (Laterite Soil)-लाल रंग का शैल पदार्थ या मिट्टी जो शैलों के अपक्षय से प्राप्त होती है और मूल शैल के ऊपर स्थित होती है।

→ लवण मृदा (Saline Soil)-अंतराकटिबंधीय मिट्टी जिसमें घुलनशील लवण अधिक मात्रा में विद्यमान होता है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा

→ पीटमय मृदा (Peaty Soil)- भारी वर्षा व उच्च आर्द्रता वाले वनस्पति युक्त क्षेत्रों की मिट्टियाँ।

→ मैदान (Plain)-एक विस्तृत समतल भू-क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सामान्यत: कम होती है। सामान्यतः सागर तल से 150 मीटर तक ऊँचे तथा समतल विस्तीर्ण भूखण्ड मैदान कहलाते हैं।

→ त्रिक्षेपण (Deposit)-अपेक्षाकृत छोटे-छोटे पदार्थ, शैलखण्डों या अवसादों का किसी स्थान पर संचय या जमाव।

→ प्रायद्वीप (Peninsula)-किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिक ओर से जल से घिरा होता है।

→ डेल्टा (Delta)- नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि। 

→ खादर (Khadar)-नई जलोढ़ मिट्टी (बलुई) का क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आती है।

→ बांगर (Bhangar)-पुरानी जलोढ़ मिट्टी (मृत्तिका युक्त) का क्षेत्र जहाँ बाढ़ें नहीं आती हैं।

→ बाढ़ (Flood)-सामान्यतः किसी शुष्क भूमि पर आकस्मिक रूप से अत्यधिक जलराशि के पहुँच जाने से उत्पन्न धरातलीय जल प्रवाह जिससे विस्तृत भूक्षेत्र जलाच्छादित हो जाता है।

→ पठार (Plateau)-सपाट या लगभग सपाट भूमि वाला विस्तृत ऊँचा क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सागर तल से सामान्यत: 300 मीटर से अधिक होती है।

→ रेगर मृदा (Regur soil)-काली मृदा को रेगर मृदा कहा जाता है। इस मृदा का निर्माण लावा के ठोस होकर ठण्डा होने एवं उसके अपक्षय से होता है।

→ आग्नेय चट्टान (Igneous Rocks)-Igneous शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्नस शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है-अग्नि। इससे बनने वाली चट्टान आग्नेय कहलाती हैं।

→ दुमटी मृदा (Loam Soil)-वह मिट्टी जिसमें बलुई मिट्टी और चिकनी मिट्टी का मिश्रण होता है।

→ कायांतरित चट्टान (Metamorphic Rocks)-किसी शैल के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप निर्मित शैल या चट्टान।

→ उष्ण कटिबंधीय वर्षा (Tropical Rain)-भूमध्यरेखीय क्षेत्र में होने वाली वर्षा।

→ निक्षालन (Leaching)-निक्षालन वह प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्व भारी वर्षा के कारण बह जाते हैं।

→ प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Pleatau)-ऐसा पठार जिसके तीन ओर पानी भरा हो।

→ शुष्क जलवायु (Dry Climate)-इस प्रकार की जलवायु में वर्षा की तुलना में वाष्पीकरण अधिक होता है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा

→ वाष्पीकरण (Evaporation)-एक प्रक्रम जिसके द्वारा कोई पदार्थ तरलता से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होता है।

→ सिंचाई (Irrigation)-शुष्क मौसम में फसलों को उगाने तथा उत्पादन वृद्धि के लिए खेतों पर जल पहुँचाने की कृत्रिम व्यवस्था।

→ अपवाह (Drainage)-किसी क्षेत्र या प्रदेश में धरातलीय जल के प्रवाहन व उससे सम्बन्धित क्रिया।

→ जलाक्रांत (Water Logged)-निम्न भूमिक्षेत्र जहाँ से जल निकास की व्यवस्था नहीं होती व पानी भरा रहता है।

→ मानसून (Monsoon)-पृथ्वी के निचले वायुमंडल में चलने वाली पवनें जिनकी दिशा में ऋतुवत् परिवर्तन होता है।

→ पर्यावरण (Environment)- भौतिक, जैविक, रासायनिक दशाओं का योग जिसकी अनुभूति किसी प्राणी या प्राणियों को होती है।

→ हिमाच्छादित (Glaciation)-यह एक वृहद प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के अत्यधिक कम होने से भूतल पर हिमानियों या हिमचादरों का विस्तार हो जाता है। यह क्रिया विभिन्न हिमयुगों में होती है।

→ अनाच्छादन (Denudation)- अपक्षय व अपरदन संयुक्त रूप से अनाच्छादन कहलाते हैं। 

→ मृदा अवकर्षण (Soil degradation)-मृदा की उर्वरता में ह्रास होना। 

→ मृदा अपरदन (Soil erosion)-मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।

→ परत अपरदन (Sheet erosion)-जब बहते हुए जल के साथ विस्तृत क्षेत्र की मृदा की ऊपरी परत बह जाती है तो उसे परत अपरदन कहते हैं।

→ अवनालिका अपरदन (Gully erosion)-जब बहता हुआ जल मृत्तिका युक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है तो उसे अवनालिका अपरदन कहते हैं।

→ मूसलाधार वर्षा (Heavy Rain)-कम समय में अत्यधिक वर्षा होने की प्रक्रिया।

→ उत्खात भूमि (Bad land)- ऐसी भूमि जो अवनालिकाओं के कारण कृषि योग्य नहीं रहती, उत्खात भूमि कहलाती है।

→ बीहड़ (Bad-land)- नदियों के प्रवाहन के कारण बनने वाली उबड़-खाबड़ स्थलाकृति जो प्राय: कगारों के रूप में मिलती है।

→ वनोन्मूलन (Deforestation)-वनों या वन भूमि में निरन्तर कमी करने की प्रक्रिया।

→ हरितक्रान्ति (Green Revolution)-फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों, उन्नत बीजों व उन्नत विधियों के प्रयोग की प्रक्रिया।

→ संरक्षण (Conservation)- भविष्य के लिए प्राकृतिक पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना जिससे उन्हें भावी पीढ़ी को उपलब्ध कराया जा सके।

→ मृदा संरक्षण (Soil conservation)-मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है मिट्टी के अपरदन व क्षय को गंका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशा को सुभारः जाता है।

→ दाब प्रवणता (Pressure Gradient)- भूतल पर दो बिन्दुओं के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब-प्रवणता कहते हैं।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा

→ सीढ़ीदार खेती (Terrace farming)-पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी सीढ़ियां बनाकर की जाने वाली कृषि।

→ स्थानांतरी कृषि (Shifting cultivation)-यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ व झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला दिया जाता है तथा उससे प्राप्त राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इस भूमि पर कुछ वर्षों तक कृषि की जाती है। भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाने पर किसी दूसरी जगह यही प्रक्रिया दुहरायी जाती है। इसे झूमिंग या श्लेश और वन कृषि भी कहते हैं।

→ मिश्रित खेती (Mixed Agriculture)-कृषि व पशुपालन दोनों साथ-साथ करना।

→ शस्यावर्तन (Crops Rotation)-फसलों में हेरफेर करने की प्रक्रिया।

→ बाँध (Dam)-किसी नदी के जल मार्ग के सम्मुख अथवा उसके पार्श्व में उसके जल को रोकने, प्रवाह-दिशा बदलने या प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए मिट्टी-पत्थर या कंकरीट से निर्मित चौड़ी एवं ऊँची दीवार ।

→ रक्षक मेखला (Shelter Belts)-फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।

→ मानचित्र (Map)-किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 11:20 a.m.
Published Aug. 4, 2022