These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 6 मृदा will give a brief overview of all the concepts.
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→ परिचय (Introduction):
→ मृदा वर्गीकरण (Classification of Soil):
→ जलोढ़ मृदाएँ (Alluvial Soils) :
→ काली मृदाएँ (Black Soils) :
→ लाल और काली मृदाएँ (Red and Yellow Soils):
→ लैटेगइट 'टाएँ (Laterite Soils) :
→ शुष्क मृदाएँ (Dry Soils):
→ लवण मृदाएँ (Saline Soils) :
→ पीटइट Peaty Soils) :
→ वन मृदाएँ (Forest Soils):
→मृदा अवकर्षण (Soil Degradation):
→ मृदा अपरदन (Soil Erosion):
→ मृदा संरक्षण (Soil Conservation):
→ मृदा (Soil)-पृथ्वी की भूपर्पटी की वह सबसे ऊपरी परत जो बारीक विखण्डित चट्टान चूर्ण का बनी होती है और पेड़-पौधों के लिए उपयोगी होती है, मृदा कहलाती है।
→ भू-पर्पटी (Crust)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जो भंगुर होती है। स्थलमंडल इसी का भाग होता है:
→ संसाधन (Resource)-पृथ्वी पर अथवा अन्य ग्रहों एवं उपग्रहों पर पाया जाने वाला प्रत्येक पदा जो मनुष्य के लिए उपयोगी है।
→ अपक्षय (Weathering)-प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा अपने स्थान पर ही शैलों के विघटन तथा वियोजन की क्रिया।
→ शैल (Rocks)-खनिज कणों के संगृहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।
→ उच्चावच (Relief)-पृथ्वी की ऊपरी सतह की भौतिक आकृति कहते हैं।
→ वनस्पति (Vegetation)-किसी प्रदेश का समस्त पादप जीवन, इसके अंतर्गत शैवाल से लेकर घासे झाड़ियाँ,
→ खनिज (Minerals)-एक ऐसा प्राकृतिक कार्बनिक एवं अकार्बनिक तत्व जिसकी एक क्रमवह पारमाणविक संरचना तथा निश्चित रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्म होते हैं।
→ ह्यूमस (Humus)-अपक्षय व अपरदन के कारक भूपृष्ठ की चट्टानों को तोड़कर उसका चूर्ण बना देते हैं। इस चूर्ण में वनस्पति व जीव-जन्तुओं के सड़े-गले अंश भी सम्मिलित हो जाते हैं, जिसे ह्यूमस कहते हैं।
→ संस्तर (Layers)-मिट्टी की तीन परतों का संस्तर।
→ मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)-भू-सतह एवं नीचे स्थित मूल चट्टानों के ऊपरी भाग के मध्य स्थित समस्त भाग के लम्बवत् संस्तरों को सामूहिक रूप से मृदा परिच्छेदिका कहते हैं।
→ जनक चट्टान (Parent Rock)-मृदा का निर्माण करने वाली मूल चट्टान।
→ भू-आकृति (Land Form)-भूतल पर अनाच्छादन तथा निक्षेपण के प्राकृतिक प्रक्रमों द्वारा उत्यः किसी विशिष्ट स्थलीय तथ्य की आकृति, स्वरूप एवं प्रकृति।।
→ कृषि (Agriculture)-वह क्रिया जिसके द्वारा मिट्टी से फसलों का उत्पादन किया जाता है। वह शाक-सब्जी, फल-फूल बागवानी की एक कला होती है।
→ जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)-जलोढ़कों के निक्षेप से निर्मित मिट्टी।
→ काली मृदा (Black Soil)-काले रंग की मिट्टी जैसे चरनोजम, काली कपास मिट्टी आदि।
→ लैटेराइट मृदा (Laterite Soil)-लाल रंग का शैल पदार्थ या मिट्टी जो शैलों के अपक्षय से प्राप्त होती है और मूल शैल के ऊपर स्थित होती है।
→ लवण मृदा (Saline Soil)-अंतराकटिबंधीय मिट्टी जिसमें घुलनशील लवण अधिक मात्रा में विद्यमान होता है।
→ पीटमय मृदा (Peaty Soil)- भारी वर्षा व उच्च आर्द्रता वाले वनस्पति युक्त क्षेत्रों की मिट्टियाँ।
→ मैदान (Plain)-एक विस्तृत समतल भू-क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सामान्यत: कम होती है। सामान्यतः सागर तल से 150 मीटर तक ऊँचे तथा समतल विस्तीर्ण भूखण्ड मैदान कहलाते हैं।
→ त्रिक्षेपण (Deposit)-अपेक्षाकृत छोटे-छोटे पदार्थ, शैलखण्डों या अवसादों का किसी स्थान पर संचय या जमाव।
→ प्रायद्वीप (Peninsula)-किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिक ओर से जल से घिरा होता है।
→ डेल्टा (Delta)- नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।
→ खादर (Khadar)-नई जलोढ़ मिट्टी (बलुई) का क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ आती है।
→ बांगर (Bhangar)-पुरानी जलोढ़ मिट्टी (मृत्तिका युक्त) का क्षेत्र जहाँ बाढ़ें नहीं आती हैं।
→ बाढ़ (Flood)-सामान्यतः किसी शुष्क भूमि पर आकस्मिक रूप से अत्यधिक जलराशि के पहुँच जाने से उत्पन्न धरातलीय जल प्रवाह जिससे विस्तृत भूक्षेत्र जलाच्छादित हो जाता है।
→ पठार (Plateau)-सपाट या लगभग सपाट भूमि वाला विस्तृत ऊँचा क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सागर तल से सामान्यत: 300 मीटर से अधिक होती है।
→ रेगर मृदा (Regur soil)-काली मृदा को रेगर मृदा कहा जाता है। इस मृदा का निर्माण लावा के ठोस होकर ठण्डा होने एवं उसके अपक्षय से होता है।
→ आग्नेय चट्टान (Igneous Rocks)-Igneous शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के इग्नस शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है-अग्नि। इससे बनने वाली चट्टान आग्नेय कहलाती हैं।
→ दुमटी मृदा (Loam Soil)-वह मिट्टी जिसमें बलुई मिट्टी और चिकनी मिट्टी का मिश्रण होता है।
→ कायांतरित चट्टान (Metamorphic Rocks)-किसी शैल के रूप परिवर्तन के फलस्वरूप निर्मित शैल या चट्टान।
→ उष्ण कटिबंधीय वर्षा (Tropical Rain)-भूमध्यरेखीय क्षेत्र में होने वाली वर्षा।
→ निक्षालन (Leaching)-निक्षालन वह प्रक्रिया है जिसमें मृदा के तत्व भारी वर्षा के कारण बह जाते हैं।
→ प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Pleatau)-ऐसा पठार जिसके तीन ओर पानी भरा हो।
→ शुष्क जलवायु (Dry Climate)-इस प्रकार की जलवायु में वर्षा की तुलना में वाष्पीकरण अधिक होता है।
→ वाष्पीकरण (Evaporation)-एक प्रक्रम जिसके द्वारा कोई पदार्थ तरलता से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होता है।
→ सिंचाई (Irrigation)-शुष्क मौसम में फसलों को उगाने तथा उत्पादन वृद्धि के लिए खेतों पर जल पहुँचाने की कृत्रिम व्यवस्था।
→ अपवाह (Drainage)-किसी क्षेत्र या प्रदेश में धरातलीय जल के प्रवाहन व उससे सम्बन्धित क्रिया।
→ जलाक्रांत (Water Logged)-निम्न भूमिक्षेत्र जहाँ से जल निकास की व्यवस्था नहीं होती व पानी भरा रहता है।
→ मानसून (Monsoon)-पृथ्वी के निचले वायुमंडल में चलने वाली पवनें जिनकी दिशा में ऋतुवत् परिवर्तन होता है।
→ पर्यावरण (Environment)- भौतिक, जैविक, रासायनिक दशाओं का योग जिसकी अनुभूति किसी प्राणी या प्राणियों को होती है।
→ हिमाच्छादित (Glaciation)-यह एक वृहद प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के अत्यधिक कम होने से भूतल पर हिमानियों या हिमचादरों का विस्तार हो जाता है। यह क्रिया विभिन्न हिमयुगों में होती है।
→ अनाच्छादन (Denudation)- अपक्षय व अपरदन संयुक्त रूप से अनाच्छादन कहलाते हैं।
→ मृदा अवकर्षण (Soil degradation)-मृदा की उर्वरता में ह्रास होना।
→ मृदा अपरदन (Soil erosion)-मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।
→ परत अपरदन (Sheet erosion)-जब बहते हुए जल के साथ विस्तृत क्षेत्र की मृदा की ऊपरी परत बह जाती है तो उसे परत अपरदन कहते हैं।
→ अवनालिका अपरदन (Gully erosion)-जब बहता हुआ जल मृत्तिका युक्त मृदाओं को काटते हुए गहरी वाहिकाएँ बनाता है तो उसे अवनालिका अपरदन कहते हैं।
→ मूसलाधार वर्षा (Heavy Rain)-कम समय में अत्यधिक वर्षा होने की प्रक्रिया।
→ उत्खात भूमि (Bad land)- ऐसी भूमि जो अवनालिकाओं के कारण कृषि योग्य नहीं रहती, उत्खात भूमि कहलाती है।
→ बीहड़ (Bad-land)- नदियों के प्रवाहन के कारण बनने वाली उबड़-खाबड़ स्थलाकृति जो प्राय: कगारों के रूप में मिलती है।
→ वनोन्मूलन (Deforestation)-वनों या वन भूमि में निरन्तर कमी करने की प्रक्रिया।
→ हरितक्रान्ति (Green Revolution)-फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रासायनिक उर्वरकों, उन्नत बीजों व उन्नत विधियों के प्रयोग की प्रक्रिया।
→ संरक्षण (Conservation)- भविष्य के लिए प्राकृतिक पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना जिससे उन्हें भावी पीढ़ी को उपलब्ध कराया जा सके।
→ मृदा संरक्षण (Soil conservation)-मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है मिट्टी के अपरदन व क्षय को गंका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशा को सुभारः जाता है।
→ दाब प्रवणता (Pressure Gradient)- भूतल पर दो बिन्दुओं के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब-प्रवणता कहते हैं।
→ सीढ़ीदार खेती (Terrace farming)-पहाड़ी ढलानों को काटकर कई चौड़ी सीढ़ियां बनाकर की जाने वाली कृषि।
→ स्थानांतरी कृषि (Shifting cultivation)-यह कृषि का सबसे आदिम रूप है। कृषि की इस पद्धति में वन के एक छोटे टुकड़े के पेड़ व झाड़ियों को काटकर उसे साफ कर दिया जाता है। इस प्रकार से कटी हुई वनस्पति को जला दिया जाता है तथा उससे प्राप्त राख को मिट्टी में मिला दिया जाता है। इस भूमि पर कुछ वर्षों तक कृषि की जाती है। भूमि की उर्वरता समाप्त हो जाने पर किसी दूसरी जगह यही प्रक्रिया दुहरायी जाती है। इसे झूमिंग या श्लेश और वन कृषि भी कहते हैं।
→ मिश्रित खेती (Mixed Agriculture)-कृषि व पशुपालन दोनों साथ-साथ करना।
→ शस्यावर्तन (Crops Rotation)-फसलों में हेरफेर करने की प्रक्रिया।
→ बाँध (Dam)-किसी नदी के जल मार्ग के सम्मुख अथवा उसके पार्श्व में उसके जल को रोकने, प्रवाह-दिशा बदलने या प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए मिट्टी-पत्थर या कंकरीट से निर्मित चौड़ी एवं ऊँची दीवार ।
→ रक्षक मेखला (Shelter Belts)-फसलों के बीच में वृक्षों की कतारें लगाना रक्षक मेखला कहलाता है।
→ मानचित्र (Map)-किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।