These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति will give a brief overview of all the concepts.
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→ भारत में वनस्पति (Vegetation in India) :
→ वनों के प्रकार (Types of Forest):
→ आर्द्र पर्णपाती वन-ये वन 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले उत्तर-पूर्वी राज्यों व हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों तथा उड़ीसा राज्य में मिलते हैं। सागवान, साल, शीशम, हर्रा, महुआ, आंवला, कुसुम और चन्दन आदि प्रजातियों के वृक्ष इन वनों में पाये जाते हैं।
→ शुष्क पर्णपाती वन-ये वन 70 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। ये वन प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भाग, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के मैदानी भागों में पाये जाते हैं।
→ उष्ण कटिबन्धीय काँटेदार वन-50 सेमी. से कम वर्षा वाले इन वनों में कई प्रकार की घासें, झाड़ियाँ तथा वर्ष-पर्यन्त पर्णरहित रहने वाले वृक्ष मिलते हैं।
→ दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य-प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश राज्यों के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में ये वन पाये जाते हैं।
→ पर्वतीय वन- हिमालय के गिरिपद क्षेत्र पर पर्णपाती वन मिलते हैं। 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र-शीतोष्ण कटिबन्धीय वन पाये जाते हैं।
→ भारत में वनावरण (Forest cover in India):
→ वन संरक्षण (Forest Conservation):
→ सामाजिक वानिकी (Social Forestry) :
(i) शहरी वानिकी-नगरों और उनके आस-पास निजी व सार्वजनिक भूमि; जैसे-हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के साथ जगह, औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष लगाना और उनका प्रबन्धन करना।
(ii) ग्रामीण वानिकी-ग्रामीण वानिकी में कृषि वानिकी और समुदाय कृषि वानिकी को बढ़ावा दिया जाता है।
(iii) कृषि वानिकी-कृषि वानिकी का अर्थ है-कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फसलें एक साथ लगाना जिससे खाद्यान्न, चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फसलों का उत्पादन एक साथ किया जा सके।
(iv) फार्म वानिकी-फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग इसके लिए छोटे तथा मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है।
→ वन्य प्राणी (Wild Life) :
→ भारत में वन्य प्राणी संरक्षण (Wild Life Conservation in India) :
→ राष्ट्रीय उद्यान (National parks)- ऐसे रक्षित क्षेत्र जहाँ वन्य प्राणियों सहित प्राकृतिक वनस्पति और प्राकृतिक सुन्दरता को एक साथ सुरक्षित रखा जाता है। ऐसे स्थानों की सुरक्षा को उच्च स्तर प्रदान किया जाता है। इसकी सीमा में पशुचारण पर प्रतिबन्ध होता है तथा किसी को भूमि का अधिकार नहीं मिलता है।
→ जीवमण्डल निचय (Biosphere Reserve):
→ वनस्पति (Vegetation)-पेड़-पौधों का समूह जिसमें घास, झाड़ियाँ, पेड़-पौधे वृक्ष आदि शामिल होते हैं।
→ प्राकृतिक वनस्पति (Natural vegetation)-वह पौधा समुदाय जो कि लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है।
→ प्रजाति (Race)-किसी प्राणी या मनुष्य की जातियों का उपविभाग जिसमें विशिष्ट भौतिक लक्षण पाये जाते
→ जलवायु (Climate)-यह किसी विस्तृत क्षेत्र की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के औसत को प्रकट करती है।
→ शीतोष्ण कटिबन्धीय वनस्पति (Temperate Vegetation)-टैगा तुल्य जलवायु प्रदेश में मिलने वाली वनस्पति।
→ द्वीप (Island)-जल से घिरा हुआ स्थलखंड जिसकी स्थिति किसी महासागर, सागर, झील अथवा नदी में हो सकती है।
→ उष्ण कटिबंध (Tropical Zone)-भूमध्य रेखा के दोनों ओर अयनवृत्तों के मध्य स्थित पृथ्वी का भाग।
→ वर्षा (Rain)-एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा की मात्रा जिसे वर्षामापी यंत्र से मापा जाता है।
→ उष्ण कटिबंधीय वन (Tropical Forest)-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाये जाने वाले वृक्षों जिनमें भूमध्य रेखीय वर्षा प्रचुर वन तथा मानसूनी वन प्रमुख हैं।
→ डेल्टा (Delta)-नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।
→ मैंग्रोव (Mangrove)-उष्ण कटिबन्धीय भागों में कीचड़युक्त ज्वारीय भागों में सागर तटवर्ती भागों के समीप प्राकृतिक रूप से पायी जाने वाली वनस्पति को मैंग्रोव कहते हैं। यह मुख्यतः गंगा, ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई क्षेत्र में मिलती है।
→ मरुस्थल (Desert)-वह वीरान क्षेत्र जहाँ नमी के अभाव में वनस्पतियों का विकास नहीं हो पाता है यद्यपि यत्र-तत्र छोटी घासें तथा छोटी-छोटी झाड़ियाँ पायी जाती हैं।
→ मिट्टी (Soil)-भूपृष्ठ पर स्थित ढीले तथा महीन कणों से निर्मित एक पतली परत जिसमें विभिन्न खनिजों के कण, ह्यूमस, आर्द्रता, वायु आदि संयुक्त होते हैं।
→ पर्णपाती वन (Decidious Forest)-शुष्क काल में नमी को बचाये रखने के लिए अपनी पत्तियाँ गिरा देने वाले वन।
→ अनूप वन (Anoop Forest)-सागरीय तट के समीप मिलने वाले दलदली वन।
→ बागान (Plantation)-बड़े-बड़े बागानों के रूप में की जाने वाली कृषि जिसमें एक बार वृक्षों के बागान लगा दिये जाते हैं और कुछ समय पश्चात् से कई वर्षों तक उनमें उत्पादन प्राप्त होता रहता है।
→ मानसूनी वन (Monsoon Forest)-मानसूनी जलवायु प्रदेशों में पाये जाने वाले ऊँचे-ऊँचे वृक्षों वाले वन जिनमें चौड़ी पत्ती वाले पर्णपाती वृक्ष उगते हैं जो वर्ष में एक बार अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं और उनके स्थान पर पुनः नवीन पत्ते निकलते हैं।
→ प्रायद्वीप (Peninsula)-किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिक ओर से जल से घिरा होता है।
→ टुण्डा (Tundra)-ध्रुवीय जलवायु वाला क्षेत्र।
→ अल्पाईन (Alpine)-आल्पस पर्वत से संबंधित या तत्युगीन पर्वत श्रृंखलाएँ तथा पर्वतीय वनों में 3500 मी. से अधिक ऊँचाई पर मिलने वाली वनस्पति।
→ शोलास (Sholas)-नीलगिरी, अन्नामलाई एवं पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबन्धीय वनों को शोलास कहा जाता है।
→ वेलांचली (Littora)-समुद्र तट से संलग्न क्षेत्र को वेलांचली कहते हैं। यह उच्च एवं निम्न ज्वार के मध्य का क्षेत्र होता है जहाँ का जल छिछला होता है तथा विस्तार 200 मीटर की गहराई तक माना जाता है।
→ पठार (Plateau)-सपाट या लगभग सपाट भूमि वाला विस्तृत ऊँचा क्षेत्र जिसकी ऊँचाई सागर तल से सामान्यतः 600 मी. से अधिक होती है।
→ झील (Lake)-स्थलीय भाग में स्थित विस्तृत गर्त जिसमें जल भरा रहता है।
→ ज्वारनदमुख (Estuary)-नदी का जलमग्न मुहाना जहाँ स्थल से आने वाले जल और सागरीय खारे जल का मिलन होता है और ज्वारीय नहरें क्रियाशील रहती हैं।
→ संरक्षण (Conservation)-किसी प्राकृतिक संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग की प्रक्रिया जिससे उसका बचाव होता है।
→ जनजाति (Tribes)-सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा जनसमूह।
→ पर्यावरण (Environment)- भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाओं का योग जिसकी अनुभूति किसी प्राणी या प्राणियों को होती है।
→ सतत् पोषणीय (Sustainable)-संसाधनों का विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग कर भावी पीढ़ियों तक उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करना।
→ संसाधन (Resource)-पृथ्वी पर अथवा अन्य ग्रहों एवं उपग्रहों पर पाया जाने वाला प्रत्येक पदार्थ जो मनुष्य के लिए उपयोगी है।
→ जैव विविधता (Bio-diversity)-पेड़-पौधों एवं प्राणि-जगत में जो विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं, जैव विविधता कहलाती है।
→ मृदा अपरदन (Soil-erosion)-मृदा के कटाव एवं उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं।
→ मरुस्थलीकरण (Desertification)-यह वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक एवं मानवीय क्रियाओं के कारण हरा-भरा भू-भाग मरुस्थलीय दशाओं में बदल जाता है।
→ बाढ़ (Flood)-सामान्यतः किसी शुष्क भूमि पर आकस्मिक रूप से अत्यधिक जलराशि के पहुँच जाने से उत्पन्न धरातलीय जल प्रवाह जिससे विस्तृत भूक्षेत्र जलाच्छादित हो जाता है।
→ सूखा (Drought)-असामान्य मौसम वाली समयावधि जिसमें वर्षा का पूर्ण या लगभग अभाव होता है। जिसमें वनस्पतियाँ सूखने लगती हैं।
→ जन-आन्दोलन (Public Movement)-सामाजिक मुद्दे के आधार पर किसी क्षेत्र के लोगों द्वारा किया जाने वाला प्रदर्शन/विरोध।
→ सामाजिक वानिकी (Social forestry)-पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबन्धन, सुरक्षा, संरक्षण तथा ऊसर भूमि पर वृक्षारोपण करना।
→ शहरी वानिकी (Urban-forestry)-शहरों एवं इनके आस-पास सार्वजनिक स्थानों तथा सड़क के दोनों ओर पार्कों में वृक्ष लगाना।
→ कृषि वानिकी (Agro-forestry)-कृषि योग्य बंजर भूमि पर पेड़ और फसलें एक साथ लगाना।
→ पारिस्थितिक पर्यटन (Ecological Tourism)-जैव विविधता, जीवों, पादपों की दशाओं के आधार पर सम्पन्न होने वाले पर्यटन की प्रक्रिया।
→ फार्म वानिकी (Farm forestry)-किसानों के द्वारा खेतों पर व्यापारिक महत्व वाले वृक्ष लगाना।
→ वन्य प्राणी अभयारण्य (Wild life sanctuaries)-ये वे रक्षित क्षेत्र हैं जहाँ कम सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए अन्य गतिविधियों की अनुमति होती है। इसमें किसी भी अच्छे कार्य के लिए भूमि का उपयोग हो सकता है। इन्हें वन्य प्राणी अभयारण्य भी कहते हैं।
→ जीवमण्डल निचय (Biosphere Reserve)-विशेष प्रकार के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तन्त्र।
→ जनसंख्या (Population)- धरातलीय क्षेत्र में निवास करने वाला मानवीय समूह या मानव की संख्या।
→ पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System or Ecosystem)-किसी पर्यावरण में समस्त जीवित एवं अजीवित कारकों की पारस्परिक अंतः क्रिया तथा उनके समाकलन से उत्पन्न तंत्र।
→ खाड़ी (Gulf or Bay)-स्थलीय भाग में भीतर की ओर घुसा हुआ विस्तृत सागरीय भाग।
→ प्रवाल द्वीप (Coral Island)- मुख्य स्थल से दूर स्थित प्रवाल भित्ति जिसका ऊपरी सागर तल के ऊपर दिखायी पड़ता है।