RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

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RBSE Class 11 Geography Chapter 4 Notes महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

→ परिचय (Introduction):

  • धरातल पर महाद्वीप एवं महासागर ऐसी भू-आकृतियाँ हैं जिनका निर्माण सबसे पहले हुआ। अतः इन्हें प्राथमिक भू-आकार या प्रथम श्रेणी के उच्चावच भी कहा जाता है।
  • पृथ्वी के 29 प्रतिशत भाग पर महाद्वीप एवं शेष 71 प्रतिशत भाग पर महासागर फैले हुए हैं।
  • महाद्वीप एवं महासागरों की अवस्थिति हमेशा एक समान नहीं रही है। इनकी अवस्थिति में समय-समय पर परिवर्तन हुआ है, यह क्रम आज भी जारी है।

→ महाद्वीपीय प्रवाह (Continental Drift):

  • अटलांटिक महासागर के दोनों तटों में पर्याप्त समानता देखने को मिलती है। अतएव वैज्ञानिकों की मान्यता है कि किसी समय दक्षिणी व उत्तरी अमेरिकी तथा यूरोप व अफ्रीका महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
  • महाद्वीपों की समानता के इस विचार का सर्वप्रथम प्रतिपादन सन् 1596 में डच मानचित्रकार अब्राहम ऑरटेलियस ने किया था। यही विचार एन्टोनियो पैलेग्रीनी ने भी व्यक्त किये।
  • सन् 1912 में जर्मनी के मौसम वैज्ञानिक अल्फ्रेड वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका यह सिद्धान्त महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से ही सम्बन्धित था।
  • वेगनर ने अपने इस सिद्धान्त में बताया कि प्राचीनकाल में सभी महाद्वीप पैंजिया (सम्पूर्ण पृथ्वी) के रूप में जुड़े हुए थे जिसके चारों ओर विशाल महासागर (पैंथालासा) था।
  • वेगनर के अनुसार लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व 'पैंजिया' का विभाजन हुआ तथा महाद्वीपों के प्रवाह द्वारा वर्तमान स्थिति प्राप्त हुई।
  • पैंजिया सर्वप्रथम अंगारालैण्ड व गोण्डवानालैण्ड के रूप में विभाजित हुआ, जिनके मध्य टेथीज भूसन्नति का विकास हुआ था।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण 

→ महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में प्रमाण (Evidences in Support of Continental Drift) :
वेगनर ने अपने सिद्धान्त के समर्थन में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए जिनमें महाद्वीपों में साम्यता, महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता, टिलाइट, प्लेसर निक्षेप एवं जीवाश्मों का वितरण आदि हैं। 

→ प्रवाह सम्बन्धी बल (Force for Drifting) :

  • वेगनर ने महाद्वीपों के विस्थापन के दो बल बताये हैं। यथा-ध्रुवीय फ्लीइंग बल व ज्वारीय बल।
  • ध्रुवीय बल पृथ्वी के घूर्णन से जबकि ज्वारीय बल सूर्य व चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति से सम्बन्धित है।

→ संवहन धारा सिद्धान्त (Convectional Current Theory):

  • 1930 के दशक में आर्थर होम्स ने इसी सम्बन्ध में संवहन धारा का सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
  • आर्थर होम्स के अनुसार संवहन धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैंटल भाग में उत्पन्न होती हैं।
  • होम्स ने सम्पूर्ण मैंटल में संवहनीय धाराओं को विद्यमान माना है। 

→ महासागरीय उच्चावच (Oceanic Reliefs) :

  • महाद्वीपों की भाँति ही महासागरीय तल पर भी विभिन्न उच्चावच पाए जाते हैं।
  • गहराई व उच्चावच के प्रकार के आधार पर महासागरीय तल के तीन भाग होते हैं
    • महाद्वीपीय सीमा,
    • वितलीय मैदान,
    • मध्य महासागरीय कटक।
  • महाद्वीपीय सीमा में मग्नतट, मग्न ढाल, उभार व खाइयाँ शामिल हैं।

→ भूकंप व ज्वालामुखियों का वितरण (Distribution of Earthquakes and Volcanoes) :

  • विश्व में भूकम्प एवं ज्वालामुखी के क्षेत्रीय वितरण में लगभग समानता देखने को मिलती है। इसकी एक प्रमुख शाखा मध्य महासागरीय कटकों के सहारे एवं दूसरी शाखा परि-प्रशांत महासागरीय तटों तथा अल्पाइन-हिमालय श्रेणियों के सहारे फैली हुई है।
  • प्रशांत महासागर के किनारों पर सक्रिय ज्वालामुखियों का क्षेत्र स्थित है। जिस कारण इस क्षेत्र को 'रिंग ऑफ फायर' कहा जाता है।

→ सागरीय अधस्तल का विस्तार (Sea Floor Spreading) :

  • चट्टानों के पुराचुम्बकीय अध्ययन एवं महासागरीय तल के मानचित्रण के आधार पर अनेक तथ्य प्रकाश में आए हैं।
  • महासागरीय तल के विस्तार के सम्बन्ध में 'हेरी हेस' नामक वैज्ञानिक ने सन् 1961 में 'सागरीय अधस्तल विस्तार' सिद्धान्त प्रस्तुत किया। ।
  • हेरी हेस के अनुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर निरन्तर ज्वालामुखी उद्भेदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ एवं नया लावा इस दरार को भरकर पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है। जिस कारण सागरीय अध:स्तल का विस्तार हो रहा है।

→ प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) :

  • सन 1967 में मैक्कैंजी, पारकर व मोरगन ने महाद्वीपों एवं महासागरों के वितरण के अध्ययन से सम्बन्धित एक समन्वित अवधारणा प्रस्तुत की जिसे 'प्लेट विवर्तनिकी' कहा गया।
  • प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य प्लेटों एवं कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। ये प्लेट सदैव गतिशील रहती हैं।
  • प्रमुख प्लेटें हैं-अंटार्कटिक प्लेट, उत्तरी अमेरिकी प्लेट, दक्षिणी अमेरिकी प्लेट, प्रशांत महासागरीय प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रेलियन- न्यूजीलैंड प्लेट, अफ्रीकी प्लेट तथा यूरेशियाई प्लेट।
  • महत्वपूर्ण छोटी प्लेटे हैं-कोकोस प्लेट, नजका प्लेट, अरेबियन प्लेट, फिलीपीन प्लेट, कैरोलिन प्लेट एवं फ्यूजी प्लेट आदि।
  • प्लेटों के गतिशील रहने से तीन प्रकार की प्लेट सीमाओं का निर्माण होता है
    • अपसारी सीमा,
    • अभिसरण सीमा,
    • रूपान्तर सीमा।
  • प्लेटों के प्रवाह की दरें बहुत भिन्न रही हैं। आर्कटिक कटक की प्रवाह दर सबसे कम एवं पूर्वी प्रशांत महासागरीय उभार की प्रवाह दर सर्वाधिक है।
  • भूगोलवेत्ताओं के अनुसार दृढ़ प्लेटों के नीचे दुर्बल व उष्ण मैंटल है जो प्लेटों को प्रवाहित करता है।

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→ भारतीय प्लेट का संचलन (Movement of the Indian Plate):

  • भारतीय प्लेट में प्रायद्वीपीय भारत व ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपीय भाग शामिल है।
  • भारतीय व आर्कटिक प्लेट की सीमा महासागरीय कटक से निर्धारित होती है।
  • भारतीय प्लेट का समय के साथ-साथ संचलन हुआ। इसके उत्तर की ओर खिसकने से हिमालय की उत्पत्ति हुई। यह प्रक्रिया आज भी जारी है और हिमालय की ऊँचाई अब भी बढ़ रही है।

→ महासागर (Ocean): भूमण्डलीय भाग को घेरे हुए उपस्थित लवणीय जल की विशाल जल संहति (water mass) को महासागर कहते हैं। धरातल पर पाँच महासागर स्थित हैं; यथा-प्रशांत महासागर, अन्ध महासागर, हिन्द महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर, दक्षिणी ध्रुव महासागर

→ महाद्वीप (Continent): एक बड़ा सूखंड जो 20 से 60 किलोमीटर तक मोटा होता है एवं मुख्यतया ग्रेनाइट की चट्टानों से मिलकर बना होता है। महाद्वीप सागर तल को ऊपर उठे हुए पृथ्वी के विशाल भूभाग हैं, जो चारों ओर या कई-कई ओर से महासागरों से घिरे होते हैं। सामान्यतयाः विश्व में सात महाद्वीपों की पहचान की गई है; यथा-अफ्रीका, एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं अण्टार्कटिका।

→ मानचित्र (Map): पृथ्वी के धरातल अथवा उसके भाग को समतल कागज या अन्य किसी जगह पर चित्रण करना मानचित्र कहलाता है।

→ अवस्थिति (Location): भूगोल की एक आधारभूत अवधारणा जो पृथ्वी की सतह पर विद्यमान लोगों, स्थान तथा वस्तुओं की सापेक्ष व पूर्ण स्थिति से सम्बन्धित होती है।

→ पुराकाल (Past): बीता हुआ काल अथवा समय।

→ सममिति (Symmetry): समरूपता, सन्तुलन।

→ महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift): पृथ्वी के धरातल पर महाद्वीपों का एक-दूसरे के सम्बन्ध में संचलन महाद्वीपीय विस्थापन कहलाता है। यद्यपि यह विषय अनेक वैज्ञानिकों की कल्पना का विषय रहा है, किन्तु सर्वप्रथम जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड वैगनर ने सन् 1912 में महाद्वीपों एवं महासागरों की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्त 'महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त' प्रस्तुत किया।

→ पैंजिया (Pangaea)-पैंजिया का अर्थ है-सम्पूर्ण पृथ्वी। कार्बोनीफेरस कालीन एक विशाल महाद्वीप, जिसमें सभी स्थलीय भाग सम्मिलित थे तथा यह एक विशाल स्थलखंड के रूप में पाया जाता था। इसे वैगनर ने पैंजिया नाम दिया।

→ पैंथालासा (Panthalassa)-पैंथालासा का अर्थ है-जल ही जल। पैंजिया के चारों ओर फैले समुद्र को वैगनर द्वारा दिया गया नाम।

→ लारेशिया (Laurasia)-एक प्राचीन महाद्वीपीय भूभाग, जिसके सम्बन्ध में यह मान्यता है कि इसका विखण्डन हो गया तथा इसी से आगे चलकर यूरोप, उत्तरी एशिया, उत्तरी अमेरिका व ग्रीनलैंड का निर्माण हुआ। यह पैंजिया का उत्तरी भाग था जो पैंजिया से विभाजन के पश्चात् उससे अलग हो गया।

→ गोंडवानालैंड (Gondwanaland)-पैंजिया से अलग हुआ दक्षिणी भाग जिसमें वर्तमान में अलग हुई भूखण्ड इकाइयाँ अफ्रीका, मेडागास्कर, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अमेरिका, अण्टार्कटिका एवं प्रायद्वीपीय भारत का अविच्छिन्न क्षेत्र आदि की गोंडवानालैंड के रूप में पहचान की जाती है।

→ तटरेखा (Shoreline)-भूमि एवं जल के मध्य की सम्पर्क रेखा।

→ जुरेसिक काल (Jurassic age)-मीसोजोइक काल का एक मध्यवर्ती समय, जिसकी अवधि आज से लगभग 190 से 136 मिलियन वर्ष पूर्व थी।

→ निक्षेपण (Deposit)-सामान्यतया अवसाद का जमाव या एकत्रण।

→ टिलाइट (Tillite)-हिमानी निक्षेपण से निर्मित अवसादी चट्टानों को टिलाइट कहते हैं।

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→ अवसादी चट्टान (Sedimentary rock)- वह शैल जिसका निर्माण उन प्राचीन चट्टानों एवं खनिजो के टुकड़ों से होता है जो कि पूर्णतया संगठित हो जाते हैं तथा परतों में जम जाते हैं।

→ हिमानी (Glacier)-भूमि पर सरकता हुआ हिम का पुंज, हिमानी या हिमनद कहलाता है। जब घाटी में पर्याप्त मात्रा में हिम का जमाव हो जाता है तथा हिमनद आगे की ओर सरकना प्रारम्भ करता है।

→ तलछट (Sediments)-बजरी, बालू, पंक एवं चूना जैसे पदार्थ जिनका पवन, जल, हिमानी या गुरुत्व के द्वारा परिवहन व निक्षेपण होता है तथा ये किसी स्थान पर जाकर एकत्रित हो जाते हैं, तलछट या अवसाद कहलाते हैं।

→ हिमाच्छादन (Glaciation)-यह एक वृहद प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान के अत्यधिक कम होने से भूतल पर हिमानियों या हिमचादरों का विस्तार हो जाता है। यह क्रिया विभिन्न हिमयुगों में होती है। इसे हिमनदन या हिम आवरण भी कहते हैं। अन्तिम हिमनदन प्लीस्टोसीन युग में आया था।

→ प्लेसर निक्षेप (Placer Deposits)-एक खनिज निक्षेप, जिसका निर्माण जल की लघुकरण या धावन क्रिया द्वारा होता है। प्लेसर में अधिकांशतया भारी खनिजों का निक्षेपण होता है; जैसे-सोना। दूसरे शब्दों में, मूल्यवान खनिजों विशेषकर स्वर्ण-कण जो नदियों द्वारा शैल शिराओं को धोकर लाए जाते हैं, के सहित रेत अथवा बजरी के निक्षेप प्लेसर निक्षेप कहलाते हैं।

→ जीवाश्म (Fossils)--पूर्व में जीवित जीवों के अंगों का चट्टानों में संरक्षित ठोस अवशेष जैसे कि कंकाल आदि।

→ लैमूर (Lemurs)-एक प्रकार का जंतु जो भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलता है।

→ मैसोसारस (Mesosaurus)-बेटे रेंगने वाले एवं खारे पानी में रहने वाले जीव।

→ ध्रुवीय फ्लीइंग बल (Polar Fleeing Force)-पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित बल 

→ ज्वारीय बल (Tidal force)-सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध बल। इस बल के कारण महासागरों में ज्वार पैदा होता है।

→ भूमध्यरेखा (Equator)-ग्लोब पर मिलने वाली 0° अक्षांश वृत्त रेखा।

→ ज्वार (Tide)-समुद्र का जल स्तर एक-सा नहीं रहता। यह नियमित रूप से दिन में दो बार ऊपर उठता है तथा नीचे उतरता है। समुद्री जल स्तर में इसी बदलाव के कारण ज्वार व भाटा की उत्पत्ति होती है। इस जल स्तर के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे उतरने को भाटा कहते हैं।

→ मैंटल (Mantle)-पृथ्वी की आन्तरिक संरचना में मिलने वाली दूसरी परत जिसमें पदार्थ तरल अवस्था में मिलते हैं।

→ संवहन धारा (Convectional Current)-जब किसी तरल को गर्म किया जाता है तो निचले भाग में गर्म होने पर उसके अणुओं में ताप के कारण प्रसार होता है तथा उसका घनत्व भी कम हो जाता है। इससे वह तरल ऊपर उठता है तथा उसके स्थान पर शीतल जल पहुँच जाता है। यह क्रिया तब तक जारी रहती है, जब तक कि सम्पूर्ण जल समान रूप से गर्म नहीं हो जाता है। वायु में भी इसी प्रकार का गुण पाया जाता है। संवहनीय धाराएँ वायुमंडल, जल एवं पृथ्वी सभी जगह पायी जाती हैं। प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त में यह माना गया है कि मैंटल में होने वाले संवहन से ही विवर्तनिक प्लेटों में गमन होता है।

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→ उच्चावच (Relief)-पृथ्वी पर मिलने वाले असमतल या ऊबड़-खाबड़ भाग उच्चावच कहलाते हैं।

→ महासागरीय अधस्तल (Ocean Floor)-वह सम्पूर्ण महासागरीय भाग जो निम्न जलचिह्न से नीचे स्थित होता है, महासागरीय अधस्तल या समुद्री नितल कहलाता है। दूसरे शब्दों में, निम्न जल स्तरांक (Low water mark) से नीचे सागर का समस्त तल महासागरीय अधस्तल या महासागर सतह कहलाता है।

→ कटक (Ridges)-पहाड़ियों एवं पर्वतों की एक लम्बी श्रृंखला कटक कहलाती है।

→ महाद्वीपीय शेल्फ (Continental Shelf)-किसी महाद्वीप का क्रमशः ढलवाँ होता हुआ भाग, जो पानी में डूबा होता है तथा ग्रेनाइट परतों से निर्मित होकर तलछट से ढंका होता है, महाद्वीपीय शेल्फ या महाद्वीपीय मग्न तट कहलाता

→ महाद्वीपीय ढाल (Continental Slope)-महाद्वीपीय मग्न तट से समुद्र की ओर वितल क्षेत्र के गहरे तल तक का ढाल वाला भाग महाद्वीपीय ढाल कहलाता है।

→ महासागरीय बेसिन (Ocean Basin)-महासागरीय तल पर स्थित वे निम्नस्थल जो बड़े धंसाव के रूप में मिलते हैं, महासागरीय बेसिन या द्रोणी कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, महासागर का बड़ा धसाव (great Depression) महासागरीय बेसिन या द्रोणी कहलाते हैं।

→ गंभीरतम महासागर (Deepest Ocean)-महासागरीय वितल पर पाये जाने वाले गर्त।

→ खाइयाँ (Trench)-महासागरीय तली पर पाये जाने वाला दीर्घ गर्त जिसका विस्तार लम्बाई में अधिक एवं चौड़ाई में कम होता है। इसके पार्श्व तीव्र ढाल वाले होते हैं।

→ महाद्वीपीय सीमा (Continental margins)-महाद्वीपीय किनारों एवं गहरे समुद्री बेसिन के मध्य का भाग महाद्वीपीय सीमा कहलाता है।

→ वितलीय मैदान (Abyssal Plains)-महाद्वीपीय तटों एवं मध्य महासागरीय कटकों के मध्य पाये जाने वाले विस्तृत मैदान।

→ मध्य महासागरीय कटक (Mid-oceanic ridges)-महासागरीय जल में डूबी हुई पहाड़ियों एवं पर्वतों की एक लम्बी श्रृंखला।

→ रिफ्ट (Rift)-एक ऐसी घाटी जिसके दोनों ओर तीव्र ढाल वाली समानान्तर श्रेणियाँ हों, जिनका निर्माण बीच के भूपृष्ठ के धंसाव से हुआ हो, रिफ्ट या रिफ्टघाटी कहलाती है।

→ प्रभाजक पठार (Fractionated Plateau)-विभिन्न भागों में बँटा हुआ पठार ।

→ पाश्र्व मंडल (Flank zone)-किनारे का घेरा या कटिबन्ध ।

→ सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano)-ऐसे ज्वालामुखी जिनसे निरन्तर उद्गार होता रहता है।

→ भूकंप (Earthquake)-पृथ्वी का हिलना-दुलना। पृथ्वी में कंपन उत्पन्न होने की प्रक्रिया।

→ उद्गम केन्द्र (Focus)-जहाँ से भूकम्प की उत्पत्ति होती है।

→ रिंग ऑफ फायर (Ring of fire)-प्रशान्त महासागर के किनारे फैला हुआ सक्रिय ज्वालामुखी के क्षेत्र।

→ विभेदन (Rupture)-टूटना।।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

→ प्लेट (Plate)- भूपृष्ठ का कठोर चण्ड जो भारी अर्ध पिघली शैल में आर-पार तैर सकता है, प्लेट कहलाता है। प्लेट्स से महाद्वीप बने हैं। दूसरे शब्दों में, स्थलखण्ड के दृढ़ व कठोर पिण्डों को प्लेट कहा जाता है।

→ प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics)-भूआकृति विज्ञान का एक नवीन सिद्धान्त, जो प्लेटों की आकृति, प्रवाह एवं प्रवाह से उत्पन्न स्थलाकृतियों की व्याख्या करता है। इस सिद्धान्त के प्रवर्तक हेस (Hess) हैं। जिनके अनुसार स्थलखण्ड आंतरिक रूप से दृढ़ प्लेट का बना हुआ है तथा महाद्वीप व महासागरीय तली विभिन्न प्लेटों के ऊपर हैं। ये प्लेटें निरन्तर गतिशील एवं प्रवाहित होती रहती हैं जिसके कारण महाद्वीप एवं महासागरीय तली भी विस्थापित होती रहती है।
दूसरे शब्दों में, प्लेटों के उद्भव, प्रकृति व गतियों की सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ व परिणाम प्लेट विवर्तनिकी कहलाती हैं।

→ विवर्तनिक प्लेट (Tectonic Plates)-ठोस चट्टान का विशाल एवं अनियमित आकार का वह खंड जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलखण्डों से बना है, विवर्तनिक प्लेट या लिथोस्फेरिक प्लेट कहलाता है!

→ दुर्बलता मंडल (Asthenosphere)- भूपर्पटी के नीचे एक कमजोर पट्टी, जिसमें शैलों के तरल एवं प्लास्टिक रूप में होने का अनुमान है। भूतल में इसकी सीमा 70 से 200 किमी. तक होती है। इस मंडल में भूकंपीय तरंगों की गति कम हो जाती है।

→ स्थलमंडल (Lithosphere)-पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत के रूप में मिलने वाला 200 किमी. तक का भाग।

→ महाद्वीपीय प्लेट (Continental Plate)-महाद्वीप से सम्बद्ध प्लेट। जिस प्लेट का सम्पूर्ण या अधिकांश भाग स्थलीय होता है, वह महाद्वीपीय प्लेट कहलाती है।

→ महासागरीय प्लेट (Oceanic Plate)-महासागर से सम्बद्ध प्लेट। जिस प्लेट का पूर्णरूपेण अथवा अधिकांश भाग महासागरीय तली के अन्तर्गत होता है, वह महासागरीय प्लेट कहलाती है।

→ वलित पर्वत (Folded mountain)-भू-अभिनतियों में तलछट जमा होने से दबाव एवं संपीडन के परिणामस्वरूप निर्मित पर्वत। इन्हें मोड़दार पर्वत भी कहते हैं।

→ प्रायद्वीप (Peninsula)-तीन ओर से जल से घिरा हुआ स्थलीय भाग।

→ सुपर महाद्वीप (Super Continent)-प्राचीनकाल में एक बड़े भूभाग के लिए प्रयुक्त शब्द जिसे वैगनर ने पैंजिया कहा था। यह महाद्वीप वर्तमान में विभिन्न स्थानों में वितरित सात प्रमुख महाद्वीपों का सम्मिलित भाग था। इसे सुपर . महाद्वीप भी कहा गया।

→ पुराचुंबकीय (Palaeomagnetic)-पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र एक वृहद् चुम्बक के समान होता है जिसमें दो ध्रुव होते हैं। यह पृथ्वी के केन्द्र में स्थित होता है तथा पृथ्वी के परिभ्रमण अक्ष के समान दिशा में ही होता है। पृथ्वी का यही चुम्बकीय क्षेत्र जो निरन्तर स्थापित रहता है, पुराचुम्बकत्व कहलाता है।

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→ अपसारी सीमा (Divergent boundaries)-जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं एवं नई पर्पटी का निर्माण होता है, उन्हें अपसारी सीमा (अपसारी प्लेट) कहते हैं। 

→ अभिसरण सीमा (Convergent boundaries)- जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है तथा जहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण सीमा कहलाती है।

→ रूपांतर सीमा (Transform boundaries)-वह स्थान जहाँ न तो नवीन पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, उसे रूपान्तर सीमा कहते हैं।

→ रूपांतर भ्रंश (Transform faults)-एक विशेष प्रकार का भ्रंश जो दो गतिमान प्लेटों के मध्य सीमा का निर्धारण करता है। दूसरे शब्दों में, दो प्लेटों को अलग करने वाला तल है जो सामान्यतः मध्य महासागरीय कटकों से लम्बवत् स्थिति में पाए जाते हैं।

→  उत्क्रमण चुम्बकीय क्षेत्र (Reverse magnetic field)-विपरीत चुम्बकीय क्षेत्र।

→ संवहन प्रवाह (Convection flow)-ऐसा माना जाता है कि दृढ़ प्लेट के नीचे चलायमान चट्टानें वृत्ताकार रूप में चल रही हैं। उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, फैलता है और धीरे-धीरे ठण्डा होता है और फिर गहराई में जाकर नष्ट हो जाता है। यह चक्र लगातार चलता रहता है जिसे वैज्ञानिकों ने संवहन प्रवाह कहा है।

→ प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction zone)-ऐसा क्षेत्र जहाँ दो भूपृष्ठीय प्लेट टकराती हैं तथा अधिक सघन सामूहिक भूपृष्ठीय प्लेट कम सघन प्लेट के नीचे चली जाती हैं।

→ अभिसरण (Convergence)-प्लेटों का एक-दूसरे के निकट आना अभिसरण कहलाता है।

→ द्वीप (Island)- भूमि का एक ऐसा भाग जो चारों ओर से पूरी तरह जल से घिरा हुआ हो, द्वीप कहलाता है।

→ टेथीस सागर (Tethys)-लारेंशिया तथा गोंडवानालैंड के मध्य में स्थित एक लम्बी व उथली भू-अभिनति। इसे वैगनर ने टेथीस सागर कहा। इससे ही हिमालय पर्वत श्रृंखला का उद्भव हुआ है।

→ हिमालय (Himalayas)-भारत की उत्तरी-पूर्वी सीमा पर स्थित मोड़दार पर्वत श्रृंखला। हिमालय पर्वत की उत्पत्ति सात करोड़ वर्ष पूर्व महाजीवी महाकल्प में हुई थी, जब इसके स्थान पर टेथीस सागर नामक भू-अभिनति थी जिसके उत्तर में लारेंशिया तथा दक्षिण में गोंडवानालैंड नामक स्थलीय भाग स्थित थे। महाजीवी कल्प के अन्त में भूगर्भिक हलचलों के कारण उपयुक्त दोनों भूखण्ड परस्पर एक-दूसरे के निकट आये जिस कारण टेथीस सागर की तलछट में सम्पीडन हुआ तथा वलित होकर वर्तमान हिमालय निर्मित हुआ।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 12:31 p.m.
Published Aug. 4, 2022