RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 अपवाह तंत्र

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RBSE Class 11 Geography Chapter 3 Notes अपवाह तंत्र

→ अपवाह तंत्र (Drainage System) :

  • भारतीय अपवाह तन्त्र को जल विसर्जन के आधार पर दो समूहों में विभक्त किया गया है
    • अरब सागर का अपवाह तन्त्र,
    • बंगाल की खाड़ी का अपवाह तन्त्र।
  • ये दोनों अपवाह तंत्र दिल्ली कटक, अरावली पर्वतमाला एवं सह्याद्रि पहाड़ियों द्वारा अलग किए गए हैं।
  • भारत के कुल अपवाह क्षेत्र के लगभग 77 प्रतिशत भाग में प्रवाहित नदियाँ (गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी तथा कृष्णा आदि)
  • अपना जल बंगाल की खाड़ी में डालती हैं, जबकि सिंधु, नर्मदा, तापी, माही, पेरियार नदियाँ देश के कुल अपवाह
  • क्षेत्र का लगभग 23 प्रतिशत भाग का जल अरब सागर में डालती हैं। 

→ जलसंभर (Watershad):

  • जल-संभर क्षेत्र के आकार के आधार पर भारतीय अपवाह द्रोणियों को तीन भागों में बाँटा गया है
    • प्रमुख नदी द्रोणी-जिनका अपवाह क्षेत्र 20 हजार वर्ग किमी. से अधिक है; जैसे- गंगा, ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, तापी, नर्मदा, माही, पेन्नार, साबरमती, बराक आदि। इसमें 14 नदी द्रोणियाँ शामिल हैं।
    • मध्यम नदी द्रोणी-जिनका अपवाह क्षेत्र 2 हजार से 20 हजार वर्ग किमी. के मध्य है; जैसे-पेरियार, कालिंदी व मेघना नदी द्रोणियाँ। इसमें 44 नदी द्रोणियाँ शामिल हैं।
    • लघु नदी द्रोणी-जिनका अपवाह क्षेत्र 2 हजार वर्ग किमी. से कम होता है। इसमें न्यून वर्षा के क्षेत्रों में बहने वाली बहुत-सी नदियाँ शामिल हैं।
  • उद्गम के प्रकार, प्रकृति व विशेषताओं के आधार पर भारत के अपवाह तंत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है
    • हिमालयी अपवाह तन्त्र,
    • प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र। 

→ हिमालयी अपवाह तन्त्र (Himalayas Drainage System):

  • इस अपवाह तन्त्र की नदियाँ प्रवाह की दृष्टि से बारहमासी हैं।
  • हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में इस अपवाह तंत्र की नदियाँ अपने मार्ग में महाखड्ड (Gorge), V आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल प्रपात निर्मित करती हैं।
  • इस अपवाह तंत्र की नदियाँ मैदानी भागों में अपने मार्ग में समतल घाटियाँ, गोखुर झीलें, बाढ़ निर्मित मैदान, गुंफित वाहिकाएँ तथा नदी के मुहाने पर डेल्टा जैसी निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ निर्मित करती हैं।
  • भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि मायोसीन कल्प में एक विशाल नदी हिमालय के सम्पूर्ण अनुदैर्ध्य विस्तार.के साथ असम से पंजाब तक प्रवाहित थी। इस नदी को इण्डो-ब्रह्म या शिवालिक कहा गया। यह नदी निचले पंजाब के निकट सिंध की खाड़ी में गिर जाती थी।
  • कालान्तर में इण्डो-ब्रह्म नदी प्लीस्टोसीन काल में हिमालय के पश्चिमी भाग का उत्थान होने से सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नामक तीन अपवाह तन्त्रों में विभक्त हो गयी।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 अपवाह तंत्र 

→ हिमालय अपवाह तन्त्र की प्रमुख नदियाँ (Major Rivers of Himalaya's Drainage System) :
हिमालय अपवाह तन्त्र की नदियों के तीन प्रमुख नदी तन्त्र हैं

  • सिन्धु नदी तन्त्र- यह विश्व की सबसे बड़ी नदी द्रोणियों में से एक है। सिन्धु नदी का सम्पूर्ण अपवाह तंत्र 11 लाख 65 हजार वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी कुल लम्बाई 2880 किमी. है।
    • पश्चिमी हिमालय क्षेत्र तथा मैदानी भाग पर विस्तृत इस नदी तन्त्र का भारत में क्षेत्रफल 3,21,289 वर्ग किमी. है। सिन्धु नदी का उद्गम तिब्बती क्षेत्र में कैलाश पर्वत श्रेणी में बोखर चू (Bokher chu) के निकट एक हिमनद (31°15' अक्षांश और 80°40' पू. देशान्तर) से होता है जिसकी ऊँचाई 4,164 मी. है।
    • सिन्धु नदी को तिब्बती क्षेत्र में सिंगी खंबान (Singi Khamban) या शेरमुख कहते हैं।
    • झेलम, चिनाव, रावी, व्यास तथा सतलज सिन्धु नदी की सहायक नदियाँ हैं।
  • गंगा नदी तन्त्र-गंगा नदी का उद्गम भागीरथी नदी के नाम से उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री हिमनद (3900 मीटर ऊँचाई) से होता है। देवप्रयाग में भागीरथी, अलकनंदा नदी में मिलती है और इसके बाद ये गंगा नदी कहलाती है। भारत में गंगा नदी का अपवाह तन्त्र 8.6 लाख वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर विस्तृत है, जो भारत में सबसे बड़ा है। यमुना, चम्बल, गंडक, बाघा, रामगंगा, दामोदर, शारदा, महानंदा तथा सोन आदि गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ
  • ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र-ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम कैलाश पर्वत श्रेणी में मानसरोवर झील के निकट चेमागुंगडुंग नामक हिमनद से है। मध्य हिमालय में नमचा बरवा (7755 मीटर) नामक स्थान पर गहरा महाखड्ड निर्मित करती हुई यह नदी तीव्र वाहिनी नदी के रूप में भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। ।
    • दिबांग तथा लोहित नदी से मिलने के बाद यह नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
    • असम घाटी में 750 किमी. की लम्बाई में प्रवाहित होने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है।

→ प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र (Peninsular Drainage System):
प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र की नदियाँ एक सुनिश्चित मार्ग पर प्रवाहित मिलती हैं। इस अपवाह तन्त्र में पश्चिमी घाट एक जल विभाजक का कार्य करता है। भ्रंश घाटियों में प्रवाहित नर्मदा तथा तापी (ताप्ती) इसके अपवाद हैं।
प्रारम्भिक टर्शियरी काल के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी पार्श्व का अवतलन हुआ। हिमालय के उत्थान के कारण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग का अवतलन, दरार घाटियों का निर्माण तथा प्रायद्वीपीय भाग का उत्तर-पश्चिमी दिशा से दक्षिणी-पूर्वी भाग की ओर झुक जाने के कारण प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भाग का अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।

→ प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र के प्रमुख नदी तन्त्र (Major River's of Peninsular Drainage System):
प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र में निम्नलिखित नदी तन्त्र सम्मिलित हैं

  • महानदी नदी तन्त्र-महानदी छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के सिहावा के निकट से निकलती है।
  • यह 851 किमी. लम्बाई में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इस नदी का अपवाह तन्त्र 1.42 लाख वर्ग किमी. है।
  • गोदावरी नदी तन्त्र-गोदावरी नदी महाराष्ट्र के नासिक जिले से निकलती है तथा 1465 किमी. लम्बाई में प्रवाहित होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
    • गोदावरी सबसे बड़ा प्रायद्वीपीय नदी तंत्र है। इसे दक्षिण की गंगा के नाम से भी जाना जाता है।
    • इस नदी तन्त्र का जलग्रहण क्षेत्र 3.13 लाख वर्ग किमी. है।
    • इसकी मुख्य सहायक नदियों में पेनगंगा, इंद्रावती, प्राणहिता और मंजरा हैं।
  • कृष्णा नदी तन्त्र-कृष्णा पूर्व दिशा में बहने वाली दूसरी बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है, जो सह्याद्रि में महाबलेश्वर के निकट से निकलती है।
    • यह नदी 1401 किमी. की लम्बाई में प्रवाहित होकर बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है।
    • कोयना, तुंगभद्रा और भीमा इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
  • कावेरी नदी तन्त्र-कर्नाटक राज्य में ब्रह्मगिरी पहाड़ियों से निकलने वाली कावेरी नदी की कुल लम्बाई 800 किमी. है।
    • इस नदी का अपवाह क्षेत्र 81,155 वर्ग किमी. क्षेत्रफल पर विस्तृत है।
    • इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ काबीनी, भवानी और अमरावती हैं।
  • नर्मदा नदी तन्त्र-नर्मदा नदी अमरकंटक पठार के पश्चिमी किनारे से लगभग 1,057 मी. की ऊँचाई से निकलती है।
    • दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में विन्ध्याचल श्रेणियों के मध्य यह भ्रंश घाटी से बहती हुई जबलपुर के निकट धुआँधर जल प्रपात बनाती है।
    • लगभग 1,312 किमी. दूरी तक बहने के बाद यह नदी भडौंच के दक्षिण में अरब सागर में मिल जाती है।
  • तापी (ताप्ती) नदी तन्त्र-मध्य प्रदेश में मुल्ताई नामक स्थान से निकलने वाली यह नदी भी पश्चिमोन्मुखी है तथा भ्रंश घाटी में 724 किमी. की लम्बाई में प्रवाहित मिलती है। इसके अतिरिक्त अरावली श्रेणियों के पश्चिम में लूनी नामक एक अल्पकालिक मौसमीय नदी तन्त्र भी मिलता है।

→ पश्चिम तथा पूर्व की ओर बहने वाली छोटी नदियाँ (Small River's Flow Towards East and West)

  • अरब सागर में अपना जल गिराने वाली अधिकांश नदियों की लम्बाई अधिक नहीं मिलती है। पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली प्रायद्वीपीय भारत की छोटी नदियों में गुजरात में शेतरूनीजी, भद्रा, ढाढर, साबरमती तथा माही नदियाँ, महाराष्ट्र में वैतरणा, कर्नाटक में कालिंदी, बेति तथा शरावती नदियाँ, गोवा में मांडवी तथा जुआरी नदियाँ तथा केरल में भरतपूझा, पेरियार तथा पांबा आदि प्रमुख हैं।
  • पूर्व की ओर बहने वाली प्रायद्वीपीय भारत की छोटी नदियों में स्वर्णरेखा, वैतरणी, ब्राह्मणी, वामसाधारा, पेंनर, पालार तथा वैगाई प्रमुख हैं। 

→ नदी बहाव प्रवृत्ति (River Regime):

  • एक नदी के चैनल में वर्षपर्यन्त जल प्रवाह के प्रारूप को नदी बहाव प्रवृत्ति कहा जाता है।
  • उत्तर भारत की नदियों के जल बहाव प्रवृत्ति की तुलना में दक्षिण भारत की नदियों की बहाव प्रवृत्ति में अधिक उतार-चढ़ाव देखा जाता है।
  • जल विसर्जन नदी में समयानुसार जल प्रवाह के आयतन का माप है।

→ नदी जल उपयोग की सीमा (Limitation of River Water Utilisation) :

  • भारत में वर्षाकाल में अधिकांश नदियों का जल बाढ़ में व्यर्थ होकर सागर में चला जाता है।
  • भारत की नदियों में जल उपलब्धता की समस्या न होकर समुचित जल प्रबन्धन की समस्या है।
  • भारत में नदी जल का प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया है जिसके अनेक कारण हैं।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 अपवाह तंत्र

→ अपवाह (Drainage): निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं।

→ अपवाह तंत्र (Drainage System): वाहिकाओं के ढाल को नदी या अपवाह तंत्र कहते हैं।

→ वर्षा (Rain): एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा की मात्रा जिसे वर्षामापी यंत्र से मापा जाता है।

→ ऋतु (Season): वर्ष की वह अवधि जिसमें क्रान्तिवृत्तीय तल के साथ पृथ्वी के अक्षीय झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण विशिष्ट मौसमी दशायें पायी जाती हैं।

→ चट्टान (Rock): खनिज कणों के संग्रहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।

→ वृक्षाकार प्रतिरूप (Dendritic Pattern): जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप होता है।

→ अरीय प्रतिरूप (Radical Pattern): जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो उसे अरीय प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है!

→ जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप (Trellis Pattern): मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानान्तर प्रवाहित होती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा प्रतिरूप कहते हैं।

→ अभिकेन्द्री प्रतिरूप (Centripetal Pattern): सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी एक झील या गर्त में विसर्जित होती हैं तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेन्द्री प्रतिरूप कहते हैं।

→ अपवाह क्षेत्र (Drainage Area): वह क्षेत्र जो एक मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित होता है।

→ नदी द्रोणी (River Basin): बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहा जाता है।

→ जल ग्रहण क्षेत्र (Catchment Area): एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे 'जल ग्रहण क्षेत्र' (Catchment area) कहा जाता है।

→ घाट (Wharf): किसी नदी या अन्य जलाशय के किनारे नौका ठहरने का स्थान, जहाँ भारी नावों व जलयानों को सामान उतारते-चढ़ाते समय बाँधा जाता है।

→ खाड़ी (Gulf or Bay): स्थलीय भाग में भीतर की ओर घुसा हुआ विस्तृत सागरीय भाग अथवा विस्तृत निवेशिका जिसके तीन ओर विस्तृत तटरेखा पायी जाती है।

→ अपवाह द्रोणी (Drainage Basin): नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को 'अपवाह द्रोणी' कहते हैं।

→ द्रोणी (Trough): सागरीय लहर में दो क्रमिक शीर्षों के मध्य का निचला भाग।

→ जल विभाजक (Water shed or Water diveder): एक अपवाह द्रोणी को दूसरी द्रोणी से अलग करने वाली सीमा को 'जल विभाजक' या 'जल संभर' कहते हैं।

→ खड्ड (Ravine): अवनालिका से बड़ी और कैनियन से छोटी ढालू पार्श्व वाली छोटी और तंग घाटी को खड्ड या रेवाइन कहते हैं।

→ सागर (Sea): महासागर का लघु भाग जो सामान्यतः स्थल से अंशतः घिरा होता है। (20) कटक (Ridge)- तीव्र ढाल वाली लम्बी तथा सँकरी पहाड़ी।

→ पर्वत (Mountain): अपने समीपवर्ती भू-सतह से अधिक ऊँची भूमि जिसका शीर्षतल या शिखर क्षेत्र अत्यन्त संकुचित होता है।

→ महाखड्ड (Canion): नदी अपरदनजन्य एक लम्बी गहरी व सँकरी स्थलाकृति।

→ अपरदन (Erosion): विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूतल या शैलों का कटाव होना जो मुख्यतः वायु प्रवाहित जल, सागरीय तरंगों और हिमानी से स्थानान्तरित होने का परिणाम होता है।

→ क्षिप्रिका (Rapids): नदी मार्ग के वे भाग जहाँ ऊपर उठी कठोर शैलों के कारण नदी उछलती हुई बहती है, क्षिप्रिका कहलाती है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 अपवाह तंत्र

→ जलप्रपात (Water Falls): अकस्मात ऊर्ध्वाधर ढाल पर जल की तीव्र गति से गिरने पर जलप्रपात निर्मित होता है।

→ गोखुर झील (Oxbow-Lake): जब नदी विसर्पित मार्ग छोड़कर सीधी बहती है एवं उसके वक्राकार भाग जलपूर्ण होकर गोखुरनुमा छाड़न झील का निर्माण करते हैं।

→ डेल्टा (Delta): नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।

→ जलोढ़ (Alluvial): जलोढ़कयुक्त या जलोढ़क से सम्बन्धित ।

→ निक्षेप (Deposit): अपेक्षाकृत छोटे-छोटे पदार्थ, शैलखण्डों या अवसादों का किसी स्थान पर संचय या जमाव होना।

→ घाटी (Valley): भूतल पर अपेक्षाकृत लम्बी किन्तु सँकरी द्रोणी जिसका ढाल मंद तथा नियमित होता है।

→ पूर्ववर्ती नदी (Antecedent river): वर्तमान भू-आकृति के बनने से पूर्व उस स्थान पर बहने वाली नदी। इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी से ही प्रवाहित होती है। उदाहरण के लिए; ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज व कोसी नदी।

→ हिमनद (Glaciers): गतिशील विशाल हिमपिण्ड को हिमानी या हिमनद कहते हैं।

→ प्रायद्वीप (Peninsula): किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिकांश ओर से जल से घिरा होता है।

→ संरक्षण (Conservation): किसी प्राकृतिक संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग की प्रक्रिया जिससे उसका बचाव होता है।

→ जैव विविधता (Bio-Diversity): किसी क्षेत्र में मिलने वाली जीवों की विविधता।

→ सिंचाई (Irrigation): शुष्क मौसम में फसलों के उगाने तथा उत्पादन वृद्धि के लिए खेतों पर जल पहुँचाने की कृत्रिम व्यवस्था।

→ नहर (Canal): मानव निर्मित जलमार्ग जिसका उपयोग जल यातायात अथवा सिंचाई के लिए किया जाता है।

→ भ्रंश (Fault): पृथ्वी के अन्तर्जात बल द्वारा उत्पन्न तनावमूलक संचलन के कारण जब भूपटल में एक तल के सहारे चट्टानों का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर स्थानान्तरण हो जाता है।

→ विसर्प (Meander): बाढ़ के मैदान में नदी का टेढ़ा-मेढ़ा या सर्पिल मार्ग।

→ भ्रंश द्रोणी (Trough faults): चट्टान में दरार पड़ने पर उसके दोनों खंडों में आमने-सामने खिसकाव होता है तथा एक शैल खंड के ऊपर दूसरा शैल खंड चढ़ जाता है तो भ्रंश द्रोणी का निर्माण होता है।

→ ज्वारनदमुख (Estuary): नदी का जलमग्न मुहाना; जहाँ स्थल से आने वाले जल और सागरीय खारे जल का मिलन होता है।

→ मानचित्र (Map): किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।

→ नदी बहाव प्रवृत्ति (River regime): एक नदी के चैनल में वर्षभर जल प्रवाह के प्रारूप को नदी बहाव प्रवृत्ति कहा जाता है।

→ मानसून (Monsoon): ये वे हवाएँ हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन करती हैं।

→ बाढ़ (Flood): किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना, बाढ़ कहलाता है।

→ सूखा (Drought): एक लम्बा एवं निरन्तर शुष्क मौसम सूखा कहलाता है।

→ जल प्रदूषण (Water Pollution): मुख्यतः मानवीय कारणों से जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाला परिवर्तन जिसके परिणामस्वरूप जल जनस्वास्थ्य, मनुष्यों तथा पशुओं के पीने के लिए और उद्योग, कृषि एवं अन्य विविध उपयोगों के लिए अयोग्य, हानिकारक तथा रोगजनक बन जाता है। .

→ जल विवाद (Water dispute): जल के बँटवारे से सम्बन्धित विवाद।

→ प्रदूषण (Pollution): हमारी भूमि, वायु, जल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशिष्टताओं में अनचाहा परिवर्तन जिसके कारण मानव एवं अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 9, 2022, 9:40 a.m.
Published Aug. 4, 2022