These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 अपवाह तंत्र will give a brief overview of all the concepts.
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→ अपवाह तंत्र (Drainage System) :
→ जलसंभर (Watershad):
→ हिमालयी अपवाह तन्त्र (Himalayas Drainage System):
→ हिमालय अपवाह तन्त्र की प्रमुख नदियाँ (Major Rivers of Himalaya's Drainage System) :
हिमालय अपवाह तन्त्र की नदियों के तीन प्रमुख नदी तन्त्र हैं
→ प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र (Peninsular Drainage System):
प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र की नदियाँ एक सुनिश्चित मार्ग पर प्रवाहित मिलती हैं। इस अपवाह तन्त्र में पश्चिमी घाट एक जल विभाजक का कार्य करता है। भ्रंश घाटियों में प्रवाहित नर्मदा तथा तापी (ताप्ती) इसके अपवाद हैं।
प्रारम्भिक टर्शियरी काल के दौरान प्रायद्वीप के पश्चिमी पार्श्व का अवतलन हुआ। हिमालय के उत्थान के कारण प्रायद्वीप के उत्तरी भाग का अवतलन, दरार घाटियों का निर्माण तथा प्रायद्वीपीय भाग का उत्तर-पश्चिमी दिशा से दक्षिणी-पूर्वी भाग की ओर झुक जाने के कारण प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भाग का अपवाह बंगाल की खाड़ी की ओर उन्मुख हो गया।
→ प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र के प्रमुख नदी तन्त्र (Major River's of Peninsular Drainage System):
प्रायद्वीपीय अपवाह तन्त्र में निम्नलिखित नदी तन्त्र सम्मिलित हैं
→ पश्चिम तथा पूर्व की ओर बहने वाली छोटी नदियाँ (Small River's Flow Towards East and West)
→ नदी बहाव प्रवृत्ति (River Regime):
→ नदी जल उपयोग की सीमा (Limitation of River Water Utilisation) :
→ अपवाह (Drainage): निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं।
→ अपवाह तंत्र (Drainage System): वाहिकाओं के ढाल को नदी या अपवाह तंत्र कहते हैं।
→ वर्षा (Rain): एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा की मात्रा जिसे वर्षामापी यंत्र से मापा जाता है।
→ ऋतु (Season): वर्ष की वह अवधि जिसमें क्रान्तिवृत्तीय तल के साथ पृथ्वी के अक्षीय झुकाव तथा पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण विशिष्ट मौसमी दशायें पायी जाती हैं।
→ चट्टान (Rock): खनिज कणों के संग्रहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।
→ वृक्षाकार प्रतिरूप (Dendritic Pattern): जो अपवाह प्रतिरूप पेड़ की शाखाओं के अनुरूप होता है।
→ अरीय प्रतिरूप (Radical Pattern): जब नदियाँ किसी पर्वत से निकलकर सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो उसे अरीय प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है!
→ जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप (Trellis Pattern): मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानान्तर प्रवाहित होती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा प्रतिरूप कहते हैं।
→ अभिकेन्द्री प्रतिरूप (Centripetal Pattern): सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी एक झील या गर्त में विसर्जित होती हैं तो ऐसे अपवाह प्रतिरूप को अभिकेन्द्री प्रतिरूप कहते हैं।
→ अपवाह क्षेत्र (Drainage Area): वह क्षेत्र जो एक मुख्य नदी और उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित होता है।
→ नदी द्रोणी (River Basin): बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहा जाता है।
→ जल ग्रहण क्षेत्र (Catchment Area): एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे 'जल ग्रहण क्षेत्र' (Catchment area) कहा जाता है।
→ घाट (Wharf): किसी नदी या अन्य जलाशय के किनारे नौका ठहरने का स्थान, जहाँ भारी नावों व जलयानों को सामान उतारते-चढ़ाते समय बाँधा जाता है।
→ खाड़ी (Gulf or Bay): स्थलीय भाग में भीतर की ओर घुसा हुआ विस्तृत सागरीय भाग अथवा विस्तृत निवेशिका जिसके तीन ओर विस्तृत तटरेखा पायी जाती है।
→ अपवाह द्रोणी (Drainage Basin): नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को 'अपवाह द्रोणी' कहते हैं।
→ द्रोणी (Trough): सागरीय लहर में दो क्रमिक शीर्षों के मध्य का निचला भाग।
→ जल विभाजक (Water shed or Water diveder): एक अपवाह द्रोणी को दूसरी द्रोणी से अलग करने वाली सीमा को 'जल विभाजक' या 'जल संभर' कहते हैं।
→ खड्ड (Ravine): अवनालिका से बड़ी और कैनियन से छोटी ढालू पार्श्व वाली छोटी और तंग घाटी को खड्ड या रेवाइन कहते हैं।
→ सागर (Sea): महासागर का लघु भाग जो सामान्यतः स्थल से अंशतः घिरा होता है। (20) कटक (Ridge)- तीव्र ढाल वाली लम्बी तथा सँकरी पहाड़ी।
→ पर्वत (Mountain): अपने समीपवर्ती भू-सतह से अधिक ऊँची भूमि जिसका शीर्षतल या शिखर क्षेत्र अत्यन्त संकुचित होता है।
→ महाखड्ड (Canion): नदी अपरदनजन्य एक लम्बी गहरी व सँकरी स्थलाकृति।
→ अपरदन (Erosion): विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूतल या शैलों का कटाव होना जो मुख्यतः वायु प्रवाहित जल, सागरीय तरंगों और हिमानी से स्थानान्तरित होने का परिणाम होता है।
→ क्षिप्रिका (Rapids): नदी मार्ग के वे भाग जहाँ ऊपर उठी कठोर शैलों के कारण नदी उछलती हुई बहती है, क्षिप्रिका कहलाती है।
→ जलप्रपात (Water Falls): अकस्मात ऊर्ध्वाधर ढाल पर जल की तीव्र गति से गिरने पर जलप्रपात निर्मित होता है।
→ गोखुर झील (Oxbow-Lake): जब नदी विसर्पित मार्ग छोड़कर सीधी बहती है एवं उसके वक्राकार भाग जलपूर्ण होकर गोखुरनुमा छाड़न झील का निर्माण करते हैं।
→ डेल्टा (Delta): नदी के मुहाने पर पर्याप्त जलोढ़ के निक्षेप से निर्मित त्रिभुजाकार या पंखाकार निचली भूमि।
→ जलोढ़ (Alluvial): जलोढ़कयुक्त या जलोढ़क से सम्बन्धित ।
→ निक्षेप (Deposit): अपेक्षाकृत छोटे-छोटे पदार्थ, शैलखण्डों या अवसादों का किसी स्थान पर संचय या जमाव होना।
→ घाटी (Valley): भूतल पर अपेक्षाकृत लम्बी किन्तु सँकरी द्रोणी जिसका ढाल मंद तथा नियमित होता है।
→ पूर्ववर्ती नदी (Antecedent river): वर्तमान भू-आकृति के बनने से पूर्व उस स्थान पर बहने वाली नदी। इस प्रकार का अपवाह तब विकसित होता है जब कोई नदी अपने मार्ग में आने वाली भौतिक बाधाओं को काटते हुए अपनी पुरानी घाटी से ही प्रवाहित होती है। उदाहरण के लिए; ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज व कोसी नदी।
→ हिमनद (Glaciers): गतिशील विशाल हिमपिण्ड को हिमानी या हिमनद कहते हैं।
→ प्रायद्वीप (Peninsula): किसी महाद्वीप या मुख्य स्थल का वह भाग जो जलाशय या सागर की ओर निकला रहता है और तीन या अधिकांश ओर से जल से घिरा होता है।
→ संरक्षण (Conservation): किसी प्राकृतिक संसाधन के विवेकपूर्ण उपयोग की प्रक्रिया जिससे उसका बचाव होता है।
→ जैव विविधता (Bio-Diversity): किसी क्षेत्र में मिलने वाली जीवों की विविधता।
→ सिंचाई (Irrigation): शुष्क मौसम में फसलों के उगाने तथा उत्पादन वृद्धि के लिए खेतों पर जल पहुँचाने की कृत्रिम व्यवस्था।
→ नहर (Canal): मानव निर्मित जलमार्ग जिसका उपयोग जल यातायात अथवा सिंचाई के लिए किया जाता है।
→ भ्रंश (Fault): पृथ्वी के अन्तर्जात बल द्वारा उत्पन्न तनावमूलक संचलन के कारण जब भूपटल में एक तल के सहारे चट्टानों का एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर स्थानान्तरण हो जाता है।
→ विसर्प (Meander): बाढ़ के मैदान में नदी का टेढ़ा-मेढ़ा या सर्पिल मार्ग।
→ भ्रंश द्रोणी (Trough faults): चट्टान में दरार पड़ने पर उसके दोनों खंडों में आमने-सामने खिसकाव होता है तथा एक शैल खंड के ऊपर दूसरा शैल खंड चढ़ जाता है तो भ्रंश द्रोणी का निर्माण होता है।
→ ज्वारनदमुख (Estuary): नदी का जलमग्न मुहाना; जहाँ स्थल से आने वाले जल और सागरीय खारे जल का मिलन होता है।
→ मानचित्र (Map): किसी मापनी से लघुकृत हुए आयामों के आधार पर सम्पूर्ण पृथ्वी या उसके किसी भाग का चयनित संकेतात्मक एवं सामान्य प्रदर्शन मानचित्र कहलाता है।
→ नदी बहाव प्रवृत्ति (River regime): एक नदी के चैनल में वर्षभर जल प्रवाह के प्रारूप को नदी बहाव प्रवृत्ति कहा जाता है।
→ मानसून (Monsoon): ये वे हवाएँ हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा में परिवर्तन करती हैं।
→ बाढ़ (Flood): किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना, बाढ़ कहलाता है।
→ सूखा (Drought): एक लम्बा एवं निरन्तर शुष्क मौसम सूखा कहलाता है।
→ जल प्रदूषण (Water Pollution): मुख्यतः मानवीय कारणों से जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाला परिवर्तन जिसके परिणामस्वरूप जल जनस्वास्थ्य, मनुष्यों तथा पशुओं के पीने के लिए और उद्योग, कृषि एवं अन्य विविध उपयोगों के लिए अयोग्य, हानिकारक तथा रोगजनक बन जाता है। .
→ जल विवाद (Water dispute): जल के बँटवारे से सम्बन्धित विवाद।
→ प्रदूषण (Pollution): हमारी भूमि, वायु, जल की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विशिष्टताओं में अनचाहा परिवर्तन जिसके कारण मानव एवं अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है।