These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 3 पृथ्वी की आंतरिक संरचना will give a brief overview of all the concepts.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Geography in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Geography Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Geography Notes to understand and remember the concepts easily.
→ परिचय (Introduction):
→ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष स्रोत (Direct and Indirect Source):
→ भूकम्प (Earthquake):
→ भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves) :
→ भूकम्प के प्रकार (Types of Earthquakes):
→ भूकम्प की माप (Measurement of Earthquakes):
→ भूकम्प के प्रभाव व आवृत्ति (Effects and Frequency of Earthquakes):
→ पृथ्वी की संरचना (Interior of the Earth):
→ ज्वालामुखी (Volcano):
→ ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ (Volcanic Landforms):
→ पृथ्वी (The Earth): सौरमण्डल का वह ग्रह जिस पर जीवन संभव है। यह नीला ग्रह भी कहलाता है।
→ चट्टान (Rock): साधारण बोलचाल की भाषा में किसी ठोस पिंड को शैल या चट्टान कहा जाता है। भूगोल में चट्टान का पारिभाषिक अर्थ होता है स्वाभाविक निक्षेप का वह पिंड जिससे भू: पृष्ठ का ठोस भाग बना है, चट्टान कहलाता है।
→ स्थलमंडल (Lithosphere): भूपर्पटी का 200 किमी. तक का भाग। यह सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है।
→ ज्वालामुखी (Volcano): पृथ्वी की आन्तरिक परत मैंटल से जलवाष्प, गैस, धूलिकणों, धुओं आदि के नालीनुमा रूप में बाहर निकलने की प्रक्रिया।।
→ लावा (Lava): पृथ्वी के आन्तरिक भागों में स्थित मैग्मा जब धरातल पर आ जाता है तो इसके जमाव को लावा कहते हैं। इसके जमने से कठोर आग्नेय शैलों का निर्माण होता है।
→ मिट्टी (Soil) असंगठित चट्टानों का चूर्ण जो भूपर्पटी की ऊपरी सतह पर मिलता है।
→ मैग्मा (Magma): धरातल के नीचे तप्त, पिघली अवस्था में लाल रंग के तरल पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। जब यह मैग्मा धरातल के ऊपर आ जाता है तो इसे लावा कहते हैं।
→ बहिर्जात प्रक्रियाएँ (Exogenic Processes): पृथ्वी के धरातल पर अथवा उसके निकट होने वाली प्रक्रियाओं से सम्बन्धित एवं उन प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित भू: आकृतियों से सम्बन्धित क्रियाएँ बहिर्जात क्रियाएँ कहलाती हैं। इन प्रक्रियाओं से धरातल पर नवीन स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
→ अन्तर्जात प्रक्रियाएँ (Endogenic Processes): पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उत्पन्न होने वाली ये प्रक्रियाएँ धरातल पर असमानता उत्पन्न करती हैं। इन प्रक्रियाओं या बलों की उत्पत्ति चट्टानों के प्रसार तथा सिकुड़न के परिणामस्वरूप होती है। ये भूपटल के नीचे मैग्मा द्वारा संचालित होती हैं।
→ भूगर्भ (Interior): पृथ्वी का आन्तरिक भाग।
→ भूपर्पटी (Crust): पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जिसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों से हुआ है।
→ क्रोड (Core): पृथ्वी की सबसे आन्तरिक परत जो 2900 किमी. से पृथ्वी के केन्द्र तक मिलती है।
→ प्रवेधन (Drill): छेद करना।
→ महासागर (Ocean): जलराशि के विशाल संचयन स्थल।
→ उल्का (Meteorite): आकाश से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी की ओर गिरने वाले पिंड, इन्हें टूटते तारे या लूका भी कहते हैं।
→ भूमध्यरेखा (Equator): 0° अक्षांश रेखा को भूमध्य रेखा या विषुवत वृत्त कहते हैं।
→ गुरुत्व विसंगति (Gravity anomaly): पृथ्वी के अलग: अलग स्थानों पर मिलने वाली गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता को गुरुत्व विसंगति कहते हैं। यह हमें भूपर्पटी में पदार्थ के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है।
→ भूकम्प (Earthquake): साधारण भाषा में भूकम्प का अर्थ है-पृथ्वी का कम्पन। भू: पर्पटी की चट्टानों में अचानक संचरण होने के कारण भू: पर्पटी या प्रावार (mantle) में किसी बिन्दु पर लगने वाले झटके या झटकों के क्रम को भूकम्प कहते हैं।
→ भ्रंश (Fault): जब भूपटल के दो भागों के बीच ट्रटन एवं विखण्डन की क्रिया होती है तो उसे भ्रंश कहते हैं। यह कार्य सामान्यतया भूकम्प के कारण होता है।
→ भूकम्पीय तरंगें (Earthquake Waves): भूकम्प के उत्पत्ति केन्द्र से बाहर की ओर फैलने वाली तरंगों को भूकम्पीय तरंगें कहते हैं। जैसे: जैसे ये तरंगें केन्द्र से दूर होती जाती हैं, इनकी शक्ति व तीव्रता में कमी आती जाती है।
→ उद्गम केन्द्र (Focus): पृथ्वी के अन्दर जहाँ से भूकम्प की तरंगों का आविर्भाव होता है, वह स्थान भूकम्प का उद्गम केन्द्र कहलाता है। इसे अवकेन्द्र या भूकम्प मूल भी कहते हैं।
→ अधिकेन्द्र (Epicentre): उद्गम केन्द्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर का बिन्दु अधिकेन्द्र कहलाता है। दूसरे शब्दों में, भूतल पर स्थित वह स्थान जहाँ पर सर्वप्रथम भूकम्पीय तरंगों का अनुभव होता है, उसे अधिकेन्द्र या भूकम्प केन्द्र कहते हैं। अथवा भूतल पर वह बिन्दु जो उद्गगम केन्द्र के समीपतम होता है, अधिकेन्द्र कहलाता है।
→ भूकम्पमापी यंत्र (Seisomograph): प्रघाती (Shock) तरंगों को मापने वाले यंत्र को भूकम्प मापी यंत्र कहते हैं। भूकम्प की तीव्रता और परिमाप को रिक्टर पैमाने एवं संशोधित मरकेली पैमाने पर मापा जाता है।
→ प्रघात (Shock): भूकम्प के कारण जब धरातल पर कम्पन होता है तो उसे प्रघात कहते हैं।
→ भूगर्भिक तरंगें (Body Waves):वे तरंगें जो भूकम्प के उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान उत्पन्न होती हैं तथा पृथ्वी के आन्तरिक भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं, भूगर्भिक तरंगें कहलाती हैं।
→ धरातलीय तरंगें (Landscape Waves): भूगर्भिक तरंगें एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न नवीन तरंगों को धरातलीय तरंगें कहते हैं। इन तरंगों का भ्रमण पथ पृथ्वी का धरातलीय भाग ही होता है। अधिक गहराई पर ये तरंगें लुप्त हो जाती हैं। ये सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं।
→ परावर्तन (Reflection): भूकम्पीय तरंगों का मार्ग में आने वाले अवरोध या टकराव के कारण लौटने की प्रक्रिया।
→ आवर्तन (Refraction): किसी कारण से तरंगों के मार्ग की दिशा में परिवर्तन होना अथवा अन्य कोई ऊर्जा वहन करने वाली तरंग कम घने से अधिक घने माध्यम से तिरछी होकर गुजरती हैं तो इसे आवर्तन या अपवर्तन कहते हैं।
→ प्राथमिक तरंगें (Primary Waves): धरातल पर सर्वप्रथम पहुँचने वाली भूकम्पीय तरंगों को प्राथमिक तरंगें या 'P' तरंगें कहते हैं। ये ध्वनि तरंगों के समान होती हैं। ये तरंगें सबसे अधिक तीव्र होती हैं। ये गैस, ठोस व तरल तीनों प्रकार के पदार्थों से गुजर सकती हैं। इनकी औसत गति 8 किमी. प्रति सैकण्ड होती है।
→ द्वितीयक तरंगें (Secondary Waves): पृथ्वी के धरातल पर 'P' तरंगों के कुछ समय अन्तराल के बाद पहुँचने वाली भूकम्पीय तरंगों को द्वितीयक तरंगें या 'S' तरंगें कहते हैं। ये तरंगें जल तरंग या प्रकाश तरंग के समान होती हैं। ये तरंगें केवल ठोस पदार्थ में ही चलती हैं, इनकी गति प्राथमिक तरंगों की अपेक्षा कम होती है।
→ भूकम्पीय छाया क्षेत्र (Earthquake shadow zone): धरातल पर कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं जहाँ कोई भी भूकम्पीय तरंग अभिलेखित नहीं होती है। ऐसे क्षेत्र को भूकम्पीय छाया क्षेत्र कहा जाता है।
→ विवर्तनिक भूकम्प (Tectonic earthquake): पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाली हलचलों के कारण उत्पन्न होने वाले भूकम्प विवर्तनिक भूकम्प कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में 'भूपटल' में भ्रंशन के कारण शैलों में बदलाव से उत्पन्न भूकम्प विवर्तनिक भूकम्प या भ्रंशमूलक भूकम्प कहलाते हैं।
→ नियात भूकम्प (Collapse Earthquake): खनन क्षेत्रों में कभी: कभी अत्यधिक खनन करने से भूमिगत खानों की छत ढह जाती है। जिससे हल्के झटके महसूस किये जाते हैं। इन्हें नियात भूकम्प कहा जाता है।
→ विस्फोट भूकम्प (Explosion Earthquake): परमाणु एवं रासायनिक विस्फोटों के कारण भूमि में उत्पन्न होने वाले कम्पन को विस्फोट भूकम्प कहते हैं।
→ बाँधजनित भूकम्प (Reservoir induced Earthquake): जो भूकम्प बड़े: बड़े बाँध वाले क्षेत्रों में आते हैं, उन्हें बाँधजनित भूकम्प कहते हैं।
→ रिक्टर स्केल (Richter Scale): भूकम्प की तीव्रता की मापनी। रिक्टर पैमाने पर मापे गए 8 तीव्रता से अधिक के भूकम्प अत्यन्त विनाशकारी होते हैं। इस पैमाने का विकास सन् 1935 में डॉ. चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर ने किया था।
→ मरकैली स्केल (Mercalli Scale): भूकम्पीय आघात की तीव्रता/गहनता को मापने की इकाई। यह उपकरण संरचनात्मक ध्वनि के परिमाण पर आधारित है। इसमें भूकम्प की गहनता को । से 12 के बीच बाँटा गया है। इसका विकास इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली ने 1905 में किया था तथा सन् 1937 में रूपान्तरित किया था।
→ आपदा (Hazard): आपदा का अर्थ है: अचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना, जिससे व्यापक भौतिक क्षति होती है तथा जान: माल को इतना नुकसान पहुँचता है कि उपलब्ध सामाजिक एवं आर्थिक संसाधन सामान्य स्थिति को बहाल करने हेतु पर्याप्त नहीं होते हैं।
→ भूस्खलन (Land Slides): सामान्य अर्थ में पर्वतीय ढाल के सहारे किसी चट्टान का गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे की ओर खिसकना भूस्खलन कहलाता है। भूस्खलन या जमीन का खिसकना दुनिया की बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है। यह एक विनाशकारी आपदा है जिससे जान और माल का नुकसान होता है। दूसरे शब्दों में, मिट्टी तथा चट्टानों के ऊपर से नीचे की ओर खिसकने, लुढ़कने एवं गिरने की प्रक्रिया को भूस्खलन कहते हैं।
→ ज्वारीय लहर (Tidal wave): सूर्य और चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से समुद्रों में उत्पन्न होने वाली सागरीय तरंगें, जो ज्वार के समय उत्पन्न होती हैं।
→ पंक स्खलन (Mud Slides): समुद्रों में महाद्वीपीय ढालों पर मिलने वाले असंगठित शैलों के गादनुमा जमाव के खिसकने को पंक स्खलन कहते हैं।
→ मृदा द्रवण (Soil Liquefaction): मृदा को गलाने का कार्य/मृद्रा का द्रवीकरण।
→ हिमस्खलन (Avalanches): अधिक मात्रा में हिम के संचयन से जब हिम व मिट्टी आदि का ढेर अकस्मात् एवं तीव्र गति से पर्वतों से फिसलकर नीचे आ जाता है तो इसे हिमस्खलन या एवलांश कहते हैं। अनेक बार यह अत्यधिक विनाशकारी होती है।
→ विस्थापन (Displacement): भूपटल में उत्पन्न तनाव के कारण भ्रंश के दो किनारों का किसी निश्चित दिशा में सापेक्षिक संचलन विस्थापन कहलाता है।
→ बाँध (Dam): नदियों पर कृत्रिम संरचनाओं का निर्माण कर पश्चजल (Back water) को संग्रहित किया जाता है। इस प्रकार की संरचनाओं को बाँध कहते हैं। दूसरे शब्दों में बहते हुए जल को रोकने के लिए खड़ी की गई एक बाधा जो आमतौर पर जलाशय, झील अथवा जलभरण बनाती है, बाँध कहलाती है।
→ तटबंध (Levee): नदी के दोनों ओर के किनारों पर मिट्टी के जमावों द्वारा बने लम्बे बन्धों को जो कि कम ऊँचाई के कारक होते हैं, तटबंध कहलाते हैं। ये तटबंध बाढ़ के समय सुरक्षा करते हैं।
→ सुनामी (Tsunami): सुनामी (Tsunami) जापानी भाषा का शब्द है जो दो शब्दों 'सू' यानी बंदरगाह व नामी अर्थात् लहर से बना है। सुनामी एक विशालकाय लहर है जो समुद्र में भूगर्भिक हलचल से उत्पन्न होती है। यह लहर खुले सागरों में तीव्र गति (600 से 1000 किमी. प्रति घण्टे) से चलती है। इनकी तरंग ऊँचाई 15 मीटर तक होती है। दूसरे शब्दों में भूकम्प के कारण सागरीय जल में उठने वाली विशालकाय लहरों को सुनामी कहते हैं।
→ महाद्वीप (Continent): विशाल स्थलमंडलीय भाग महाद्वीप के रूप में जाने जाते हैं।
→ भंगुर (Brittle): भुरभुरा, नाजुक, सहज में टूटने योग्य।
→ मैंटल (Mantle): भू: पृष्ठ और क्रोड के मध्य उच्च घनत्व एवं मोटाई वाली अल्प सिलिक शैलों की परत को मैंटल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग मैंटल कहलाता है।
→ मोहो असातत्य (Moho's discontinuity): भूपर्पटी की निचली सतह पर तथा मैन्टल की ऊपरी सतह पर (दोनों के बीच) पायी जाने वाली असमानता को मोहो असांतत्य कहते हैं। यह असांतत्य या असंबद्धता या अन्तराल महाद्वीपों में 35 किमी. तक तथा महासागरों के नीचे 5 किमी. की गहराई पर पायी जाती है। इसकी खोज एण्ड्रीजा मोहोरोविसिक नामक क्रोशियन भूकम्प वैज्ञानिक ने की थी। जिन्होंने इसे सन् 1909 में प्रस्तुत किया। संक्षेप में इसे मोहो अथवा एम. असम्बद्धता भी कहते हैं।
→ दुर्बलतामंडल (Asthenosphere): मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलतामंडल के रूप में जाना जाता है।
→ बाहरी क्रोड (Outer core): 2900 किमी. से 5150 किमी. की गहराई पर मिलने वाला तरल अवस्था वाला भाग।
→ आन्तरिक क्रोड (Inner core): 5150 किमी. से पृथ्वी के केन्द्र तक मिलने वाला ठोस अवस्था वाला भाग।
→ निफे (Nife): सीमा परत के नीचे स्थित इस परत का नामकरण निफे (Niffe), निकिल तथा फेरियम के तत्वों के सम्मिश्रण के आधार पर हुआ है।
→ सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcano): जब किसी ज्वालामुखी से गैसें, राख, तरल चट्टानी पदार्थ, लावा आदि लगातार निकलता रहता है, वह सक्रिय ज्वालामुखी कहलाता है।
→ ज्वलखण्डाश्मि (Pyroclastic debries): ज्वालामुखी उद्गार द्वारा निकले खण्डमय शैल उत्पाद; जैसे: राख, ज्वालामुखी बम आदि को ज्वलखण्डाश्मि कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, लावा में जमे हुए टुकड़ों का मलवा ज्वलखण्डाश्मि कहलाता है।
→ ज्वालामुखी बम (Volcanic bomb): ये बड़े शिलाखण्ड होते हैं। इनका व्यास 32 मिमी. से अधिक होता है। ये लावा के गोलाकार जमाव से बनते हैं।
→ शील्ड ज्वालामुखी (Sheild Volcano): एक विशाल ज्वालामुखी जिसका आकार चपटे गुम्बद के समान होता है तथा जिसका निर्माण तरल बेसाल्टिक लावा के जमाव के कारण होता है। शील्ड ज्वालामुखी या गुम्बदी ज्वालामुखी अथवा परिरक्षक ज्वालामुखी कहते हैं। इस ज्वालामुखी का ढलान कभी: भी 100 डिग्री से अधिक नहीं होता है। इसी कारण यह शील्ड या गुंबद के आकार का दिखाई देता है। उदाहरण—हवाई द्वीप के ज्वालामुखी।।
→ सिंडर शंकु (Cindar Cone): ज्वालामुखी से नि:सृत राख, धूल एवं अन्य पदार्थों के जमाव से निर्मित लघु शंकु। इसकी ऊँचाई कम होती है तथा ढाल अवतल होता है। दूसरे शब्दों में, जब शील्ड ज्वालामुखी से लावा फव्वारे के रूप में बाहर आता है और निकास पर एक शंकु बनता है तो उसे सिंडर शंकु या राख या भस्म शंकु कहते हैं।
→ मिश्रित ज्वालामुखी (Composite Volcano): भीषण विस्फोट वाले ज्वालामुखी जिनमें लावा के साथ: साथ भारी मात्रा में ज्वलखण्डाश्मि पदार्थ व राख धरातल पर पहुँचती है तथा इनका जमाव परतों के रूप में निकास नली के आसपास हो जाता है, तो ऐसे ज्वालामुखी मिश्रित ज्वालामुखी कहलाते हैं।
→ ज्वालामुखी कुंड (Caldera): काल्डेरा स्पेन की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ 'कडाहा' होता है। ज्वालामुखी उद्गार के समय तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग उड़ जाने से अथवा क्रेटर (ज्वालमाखी के शीर्ष पर स्थित कीप के आकार का गर्त) के पास जाने से ज्वालामुखी कुंड (काल्डेरा) का निर्माण होता है। उदाहरण—विश्व का सबसे बड़ा काल्डेरा जापान का आसो है।
→ बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र (Flood Basalt Provinces): जब ज्वालामुखी से अत्यधिक मात्रा में तरल लावा निःसृस्त होता है तो उसका विस्तार एक बड़े क्षेत्र पर हो जाता है, ऐसे क्षेत्र को बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र कहते हैं। तरल लावा का यह प्रवाह सैकड़ों किमी. तक हो जाता है। उदाहरण—भारत का दक्कन ट्रैप।
→ पठार (Pleatue): धरातल पर मिलने वाली ऐसी ऊँची स्थलाकृति जो 600 मी. से अधिक ऊँची हो तथा जिसका शीर्ष चपटा हो।
→ कटक (Ridge): पहाड़ियों और पर्वतों की एक लम्बी श्रृंखला कटक कहलाती है।
→ आग्नेय शैल (Igneous rock): ऐसी शैलें जिनका निर्माण ज्वालामुखी के बाहर फेंके गए लावा से अथवा उष्ण मैग्मा के भूपर्पटी के नीचे ठंडा होने से होता है, आग्नेय शैल कहलाती हैं। उदाहरण—ग्रेनाइट।
→ ज्वालामुखी शैल (Volcanic Rocks): जब लावा धरातल पर पहुँचकर ठंडा होता है तो उससे निर्मित शैलें ज्वालामुखी शैल कहलाती हैं।
→ पातालीय शैल (Plutonic rocks): जब लावा धरातल के नीचे ही ठंडा होकर जम जाता है तो उससे निर्मित शैलें पातालीय शैल कहलाती हैं।
→ अंतर्वेधी आकृतियाँ (Intrusive forms): जब मैग्मा भू: पटल के भीतर ही ठंडा हो जाता है तो उससे कई आकृतियाँ बनती हैं, जिन्हें अन्तर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं।
→ बैथोलिथ (Batholith): जब मैग्मा का एक बड़ा पिंड भू: पर्पटी में अधिक गहराई पर ठंडा हो जाए तो यह एक गुम्बद के आकार में विकसित हो जाता है। ऐसी आकृति को बैथोलिथ कहते हैं।
→ अनाच्छादन (Denudation): : : अपक्षय व अपरदन के सम्मिलित रूप को अनाच्छादन कहते हैं।
→ लैकोलिथ (Lacolith): पृथ्वी की सतह के नीचे बने आग्नेय शैलों का एक वृहत टीला, जिसका निचला भाग प्रायः समतल एवं ऊपरी भाग गुंबद के आकार का होता है। जब पृथ्वी के गर्भ से गर्म मैग्मा ऊपर उठता है तो उसके दबाव से मैग्मा के ऊपर स्थित चट्टानें गुम्बद का आकार धारण करके ऊपर उठ जाती हैं तथा उनके खाली स्थल में तरल मैग्मा भर जाता है। यही मैग्मा बाद में ठंडा होकर लैकोलिथ में परिवर्तित हो जाता है।
→ अपपत्रित (Exfolliated): एक प्रकार का भौतिक अपक्षय जिसके द्वारा धरातल से शैलों की परतें उखड़ती हैं। यह क्रिया तापीय प्रभाव के कारण होती है। इसे अपदलन भी कहते हैं।
→ लैपोलिथ (Lapolith): लैपोलिथ जर्मन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है: एक छिछला बेसिन। जब लावा का जमाव धरातल के नीचे अवतल आकार वाली छिछली बेसिन में होता है तो तश्तरीनुमा आकार का निर्माण होता है। इस आकार को लैपोलिथ कहते हैं।
→ फैकोलिथ (Phacolith): ज्वालामुखी उद्गार के समय मोड़दार पर्वतों की अपनति तथा अभिनति में लावा का जमाव हो जाता है। इस प्रकार बनी आग्नेय शैल को फैकोलिथ कहते हैं।
→ सिल (Sill): सिल परत के रूप में आग्नेय शैल का समूह होती है। जब लावा का प्रवाह होता है तो लावा का जमाव परतदार अथवा रूपान्तरित शैलों की परतों के बीच हो जाता है। जब इस जमाव की मोटाई अधिक होती है तो इसे सिल कहते हैं परन्तु पतली सिल को शीट कहा जाता है।
→ अपनति (Anticline): भूपटल में अन्तर्जात बलों से उत्पन्न क्षैतिज सम्पीडन से शैल स्तर के उन्नतोदर अथवा ऊपर की ओर उठा भाग अपनति कहलाता है।
→ अभिनति (Syncline): भूतल में सम्पीडन द्वारा बनने वाला वलन का नतोदर अथवा नीचे की ओर वाला भाग अभिनति कहलाता है। जबकि इसके दोनों कटकनुमा भाग अपनति कहलाते हैं।
→ डाइक (Dykes): जब मैग्मा का जमाव दरारों में धरातल के लगभग समकोण पर होता है तो एक दीवार की भाँति संरचना बनती है जिसे डाइक कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, पृथ्वी के आन्तरिक भाग में जब मैग्मा का जमाव ऊर्ध्वाधर रूप में होता है तो उसे डाइक कहते हैं।