RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 संरचना तथा भूआकृति विज्ञान will give a brief overview of all the concepts.

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RBSE Class 11 Geography Chapter 2 Notes संरचना तथा भूआकृति विज्ञान

→ परिचय (Introduction):

  • पृथ्वी सौरमण्डल का एक अंग है। सौरमण्डल के साथ ही इसका जन्म हुआ है।
  • वर्तमान अनुमान के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 46 करोड़ वर्ष है।
  • पृथ्वी के धरातल पर चट्टानों तथा मिट्टियों में भिन्नता धरातलीय स्वरूप के अनुसार पाई जाती है।
  • अन्तर्जात और बहिर्जात शक्तियों ने पृथ्वी की धरातलीय व अध:स्थलीय आकृतियों को निर्धारित किया है।
  • करोड़ों वर्ष पहले 'इंडियन प्लेट' भूमध्य रेखा के दक्षिण में स्थित थी तथा आकार में काफी विशाल थी और आस्ट्रेलियन प्लेट इसी का भाग थी।
  • करोड़ों वर्षों के दौरान यह प्लेट काफी हिस्सों में टूट गई और 'आस्ट्रेलियन प्लेट' दक्षिण-पूर्व तथा इंडियन प्लेट उत्तर दिशा में खिसकने लगी।
  • इंडियन प्लेट का खिसकना अब भी जारी है और ये भारतीय उपमहाद्वीप के भौतिक पर्यावरण को प्रभावित करती है।
  • भूगर्भिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत में निम्नलिखित तीन भू-वैज्ञानिक खण्ड मिलते हैं
    • प्रायद्वीपीय खण्ड,
    • हिमालय तथा अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ,
    • सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान। 

→ प्रायद्वीपीय खण्ड (Peninsular Part) :

  • इसकी उत्तरी सीमा कटी-फटी है जो कि कच्छ से प्रारम्भ होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक तथा फिर यमुना व गंगा नदी के समानान्तर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा के डेल्टा तक विस्तारित है। इसके अतिरिक्त उत्तर-पूर्व में कर्बी ऐंगलांग व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इसी प्रायद्वीपीय खण्ड का एक भाग है। 
  • प्रायद्वीपीय खण्ड मुख्यतया प्राचीन नाइस व ग्रेनाइट चट्टानों से बना हुआ है।
  • कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखण्ड एक कठोर खण्ड के रूप में खड़ा हुआ है।
  • यह भूखण्ड इण्डो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट का एक हिस्सा है।
  • इस प्रायद्वीपीय खण्ड की बड़ी घाटियाँ उथली एवं उनकी प्रवणता कम होती है।
  • इस खण्ड की प्रमुख नदियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि हैं। 

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→ हिमालय तथा अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पवर्तमालाएँ (Himalaya and Other Peninsular Mountain) :

  • इस भाग की भूगर्भिक संरचना नवीन, कमजोर तथा लचीली मिलती है।
  • बहिर्जनित तथा अन्तर्जनित बलों की अन्तक्रियाओं से प्रभावित इस क्षेत्र में वलन, भ्रंश तथा क्षेप क्षेत्र मिलते हैं।
  • यहाँ की पर्वतमालाओं में तीव्र प्रवाही नदियाँ, गॉर्ज, वी-आकार की घाटियाँ तथ जलप्रपात मुख्यतः पाये जाते हैं।

→ सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान (Sindhu-Gangatic Plain) :

  • यह मूलतः एक भू-अभिनति गर्त है। इसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वत निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था।
  • तबसे यहाँ हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादों को बिछा रही हैं।
  • इस जलोढ़ मैदान की औसत गहराई 1000 से 2000 मीटर है।

→ भू-आकृति (Geomorphology):

  • भारत धरातलीय दृष्टि से विभिन्नताओं वाला देश है।
  • यहाँ पर पर्वत, पहाड़ियाँ, पठार एवं मैदान समस्त प्रकार के भूदृश्य पाये जाते हैं।
  • उत्तर में हिमालय पर्वत व दक्षिण में पठार के बीच विशाल मैदानी भाग मिलता है।
  • भारत को निम्नलिखित छ: भू-आकृतिक खण्डों में विभक्त किया जाता है
    • उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी पर्वतमाला;
    • उत्तरी भारत का मैदान,
    • प्रायद्वीपीय पठार;
    • भारतीय मरुस्थल;
    • तटीय मैदान;
    • द्वीप समूह। 

→ उत्तर तथा उत्तर-पूर्वी पवर्तमाला (North and North-east Mountain Range) :

  • इस भू-आकृतिक खण्ड में हिमालय पर्वत तथा उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियाँ सम्मिलित हैं।
  • इसमें वृहत् हिमालय, पार हिमालय श्रृंखलाएँ, मध्य हिमालय और शिवालिक प्रमुख श्रेणियाँ हैं।
  • भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित हिमालय की ये श्रेणियाँ उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर लगभग 2500 किमी. लम्बाई एवं 160 से 400 किमी. चौड़ाई में फैली हुई हैं।
  • हिमालय पर्वत श्रेणियाँ भारतीय उपमहाद्वीप एवं मध्य व पूर्वी एशिया के देशों के मध्य एक मजबूत लम्बी दीवार के रूप में खड़ी हैं। हिमालय को निम्नलिखित उपखण्डों में विभाजित किया जा सकता है
    • कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय,
    • हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय,
    • दार्जिलिंग तथा सिक्किम हिमालय,
    • अरुणाचल हिमालय,
    • पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।
  • कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग एक ठंडा मरुस्थल है।
  • वृहत हिमालय व पीरपंजाल के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी व डल झील मिलती है।
  • कश्मीर हिमालय करेवा के लिए भी प्रसिद्ध है यहाँ जाफरान की खेती होती है।
  • श्रीनगर झेलम नदी के किनारे स्थित है। हिमाचल हिमालय रावी व काली नदियों के बीच स्थित है।

→ उत्तरी भारत का मैदान (North Plain of India) :

  • सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाये गये जलोढ़ निक्षेपों से उत्तरी भारत के मैदान का निर्माण हुआ है।
  • उत्तर की पर्वत श्रृंखलाओं के दक्षिण में यह जलोढ़ मैदान पूर्व से पश्चिम दिशा में लगभग 3200 किमी. की लम्बाई तथा 150 से 300 किमी. की औसत चौड़ाई में विस्तृत है।
  • जलोढ़ निक्षेप की अधिकतम गहराई 1000 से 2000 मीटर है।
  • उत्तर से दक्षिण दिशा में इस मैदान पर तीन धरातलीय स्वरूप देखने को मिलते हैं-
    • भाभर,
    • तराई,
    • जलोढ़ मैदान। 
  • जलोढ़ मैदानों में पुराने जलोढ़ से निर्मित मैदान बांगर तथा नये जलोढ़ से निर्मित मैदान खादर कहलाते हैं। भाभर 8 से 10 किमी. चौड़ाई की एक पतली पट्टी है जो कि शिवालिक गिरिपाद के समानान्तर फैली हुई है। यहाँ सरन्ध्रता इतनी अधिक है कि यहाँ पर समस्त नदियाँ लुप्त सी हो जाती हैं।
  • भाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र स्थित है जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किमी. है। भाभर प्रदेश में लुप्त हुयी नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं।
  • हरियाणा व दिल्ली राज्य गंगा व सिन्धु नदी तंत्र के बीच जल विभाजक का कार्य करते हैं। 

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→ प्रायद्वीपीय पठार (Peninsular Plateau) :

  • उत्तरी भारत के मैदान के दक्षिण में भारत के प्रायद्वीपीय भाग पर 600 से 900 मीटर ऊँचाई वाला कंटा-फटा पठारी भूखण्ड स्थित है। प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएँ पायी जाती हैं। प्रमुख उच्चावचीय लक्षणों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में विभक्त किया गया है
  • दक्कन का पठार-पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट, सतपुड़ा की उच्छिष्ट श्रेणियाँ, मैकाल तथा महादेव इसमें सम्मिलित प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। इनकी औसत ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है, जो कि उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती जाती हैं।
  • प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) है।
  • मध्य उच्च भूभाग-अरावली, सतपुड़ा की उच्छिष्ट श्रेणियाँ, विंध्याचल, कैमूर, राजमहल की पहाड़ियाँ तथा छोटा
  • नागपुर पठार इस भू-भाग में प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।
  • उत्तर-पूर्व पठार- मेघालय पठार तथा कार्बी ऐंगलोंग पहाड़ियाँ इसमें सम्मिलित हैं। यह पठारी क्षेत्र माल्दा भ्रंश के कारण मुख्य पठारी भाग से अलग हुआ है।

→ भारतीय मरुस्थल (Indian Desert) :

  • अरावली पहाड़ियों से उत्तर-पूर्व में रेतीले टीलों का एक शुष्क व वनस्पति रहित क्षेत्र विस्तृत है; यहाँ बरखान पाये जाते हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा 150 मिलीमीटर से भी कम होती है। इसे विशाल भारतीय मरुस्थल के नाम से जाना जाता है।
  • मेसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था।
  • ढाल के आधार पर यह मरुस्थलीय भाग दो भागों में विभक्त किया जाता है
    • सिन्धु की ओर ढाल वाला उत्तरी भाग,
    • कच्छ के रन की ओर ढाल वाला दक्षिणी भाग। 

→ तटीय मैदान (Costal Plain) :
स्थिति तथा सक्रिय भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के आधार पर प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिमी व पूर्वी किनारों पर विस्तृत तटीय मैदानों को दो भागों में बाँटा जाता है

  • पश्चिमी तटीय मैदान-यह जलमग्न तटीय मैदान, पत्तनों एवं बंदरगाहों के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियाँ प्रदान करता है। इस तटीय मैदान में प्रवाहित होने वाली नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं। मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति कयाल है।
  • पूर्वी तटीय मैदान-पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में यह मैदान चौड़ा और उभरे हुए तट का उदाहरण है। 

→ द्वीप समूह (Island Groups) :

  • भारत के दो प्रमुख द्वीप समूह हैं
    • बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह-इसमें लगभग 572 द्वीप हैं।
    • अरब सागर के द्वीप समूह-इसमें लगभग 36 द्वीप हैं। प्रमुख द्वीपों में लक्षद्वीप और मिनिकॉय द्वीप शामिल हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की प्रमुख पर्वत चोटियों में सैडल चोटी, माउण्ट डियोवॉली, माउण्ट कोयोब तथा माउंट थुईल्लर आदि सम्मिलित हैं।
  • बैरन भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी है, जो निकोबार द्वीप समूह में स्थित है।

→ भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology): वह विज्ञान जिसमें भू-आकृति के उद्भव, विकास, आकार, वर्गीकरण एवं वितरण आदि का अध्ययन किया जाता है।

→ मिट्टी (Soil): भू-पृष्ठ पर स्थित ढीले तथा महीन कणों से निर्मित एक पतली परत जिसमें विभिन्न खनिजों के कण, ह्यूमस, आर्द्रता, वायु आदि संयुक्त होते हैं।

→ चट्टान (Rock): खनिज कणों के संग्रहीत होने से निर्मित ठोस पदार्थ जिससे भूपर्पटी की रचना हुई है।

→ पृथ्वी (Earth): सौरमण्डल का एक सदस्य ग्रह, जिस पर मानव का निवास है और जो अपने अक्ष पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है।

→ अन्तर्जात बल (Endogenetic force): पृथ्वी के आन्तरिक भाग से उत्पन्न होने वाला बल।

→ बहिर्जात बल (Exogenetic force): धरातल पर समानता स्थापित करने वाला बल।

→ अधःस्तल (Subsurface): धरातल के नीचे।

→ विवर्तनिक हलचल (Tectonic activity): भू-पृष्ठ में होने वाली हलचलें।

→ प्लेट (Plate): स्थल खण्ड के दृढ़ व कठोर पिण्डों को प्लेट कहा जाता है।

→ इंडियन प्लेट (Indian Plate): विश्व की मुख्य प्लेटों में से एक प्लेट। यह प्लेट भूमध्य रेखा की ओर खिसक रही है।

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→ भूमध्य रेखा (Equator): ग्लोब के मध्य से गुजरने वाली काल्पनिक रेखा जो ग्लोब को दो समान भागों में विभक्त करती है।

→ आस्ट्रेलियन प्लेट (Australian Plate): इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट का एक भाग।

→ पर्यावरण (Environment): हमारे चारों ओर व्याप्त आवरण जो भौतिक, रासायनिक तथा जैविक दशाओं का योग होता है।

→ प्रायद्वीप (Peninsula): वह क्षेत्र जो कि तीनों ओर से समुद्र से घिरा होता है।

→ डेल्टा (Delta): ऐसा निक्षेपित मैदान, जो झील या समुद्र में नदी के मिलने या प्रवेश बिन्दु पर बनता है।

→ पठार (Plateau): लगभग समतल शिखर वाली ऊपर उठी भूमि जिसके चारों ओर तीव्र ढाल होता है।

→ भ्रंश (Fault): जब तनावमूलक संचलन अत्यधिक तीव्र गति से क्रियाशील होता है और विभंग तल के सहारे बड़े पैमाने पर चट्टानों का स्थानांतरण हो जाता है, तब इस क्रिया से उत्पन्न संरचना को भ्रंश कहते हैं।

→ खण्ड भ्रंश (Block faulting): एक प्रकार का सामान्य भ्रंशन जिसमें भूपर्पटी का कोई भाग अनेक छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त हो जाता है तथा विभिन्न दिशाओं में छितरा जाता है।

→ मरुस्थल (Desert): वह स्थान जहाँ वाष्पोत्सर्जन की दर वर्षा की दर से अधिक होती है तथा जो मृतप्राय स्थल होते हैं।

→ रिफ्ट घाटी (Rift valley): जब किसी स्थल खण्ड के मध्य का भाग नीचे फँस जाता है तो उसके दोनों ओर दो ब्लॉक पर्वत बन जाते हैं। मध्य के धंसे हुए भाग को दरार घाटी या रिफ्ट घाटी कहते हैं।

→ ब्लॉक पर्वत (Block mountain): पृथ्वी की आन्तरिक हलचलों के कारण तनाव अथवा खिंचाव की शक्तियों से धरातल के किसी भाग में भ्रंश या दरार पड़ जाने से निर्मित पर्वत।

→ अवशिष्ट पहाड़ियाँ (Residual mountains): उच्च पर्वतीय भागों पर अपरदन के कारकों के अधिक प्रभावी रहने के कारण कालान्तर में उनका स्वरूप परिवर्तित हो जाता है तथा वे एक अवशेष के रूप में बचे रह जाते हैं, अवशिष्ट पहाड़ियाँ कहलाती हैं।

→ प्रवणता (Gradient): किसी ढालयुक्त धरातल की तीव्रता, जिसे क्षैतिज तल के सन्दर्भ में निर्मित कोण द्वारा व्यक्त किया जाता है।

→ खाड़ी (Bay): तीन ओर स्थल से घिरा हुआ जल का भाग खाड़ी कहलाता है।

→ वलन (Folds): पृथ्वी की विवर्तनिक प्रक्रिया के कारण उत्पन्न सम्पीडनात्मक बल से चट्टानों में पड़ने वाले मोड़ को वलन कहते हैं।

→ अपरदन (Erosion): विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों द्वारा भूतल या शैलों का कटाव होना।

→ क्षिप्रिकाएँ (Rapids): नदी के जिस भाग में जलधारा का प्रवाह सामान्य वेग से अधिक होता है और वह सीढ़ीनुमा सपाट ढाल के साथ प्रवाहित होता है, उसे क्षिप्रिका कहते हैं।

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→ जलप्रपात (Water fall): नदी के मार्ग में जब चट्टानों की क्षैतिज परतें कठोर एवं कोमल चट्टानों के क्रम में बिछी होती हैं तो जल अपने अपरदन कार्यों द्वारा कोमल चट्टानों को काट देता है तथा खड़े ढाल का निर्माण कर ऊपर से नीचे अत्यधिक वेग से गिरता है, इसे जल प्रपात कहते हैं।

→ भू अभिनति (Geosynclines): भू अभिनति लम्बे किन्तु सँकरे व उथले भाग होते हैं, जिनमें तलछटीय जमाव के साथ-साथ तली में धंसाव होता रहता है।

→ क्षेप (Thrust): वह क्रिया जो अत्यन्त निम्न कोण के व्युत्क्रमित भ्रंश के निर्माण का कारण बनती है।

→ गर्त (Deeps): महासागरीय तली का अधिकतम गहरा भाग जो सागरीय तली के सीमित क्षेत्र में पाया जाता है जिसके किनारे तीव्र ढाल वाले होते हैं।

→ अवसाद (Sediment): अपक्षय तथा अपरदन क्रियाओं द्वारा प्राप्त शैल चूर्ण अथवा अन्य शैल पदार्थ।

→ जलोढ़ (Alluvial): पर्वतीय भागों से निकलने वाली नदियों द्वारा अपने साथ बहाकर लाए गए निक्षेपों का जमाव।

→ गार्ज (Gorge): सामान्यतया नदी की गहरी एवं सँकरी घाटी को गार्ज कहते हैं। इस प्रकार की नदी की घाटियों के किनारे बहुत ही तेज ढाल बने होते हैं। इन्हें महाखड्ड भी कहते हैं।

→ द्वीप (Island): जल के द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ स्थल खंड जिसकी स्थिति किसी महासागर, झील अथवा नदी में हो सकती है।

→ उपमहाद्वीप (Sub-continent): किसी महाद्वीप के अन्दर अत्यधिक विविधताओं वाला भू-भाग।

→ जलवायु (Climate): यह किसी विस्तृत क्षेत्र की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के औसत को प्रकट करती

→ अपवाह (Drainage): निश्चित वाहिकाओं के माध्यम से हो रहे जल प्रवाह को अपवाह कहते हैं।

→ भू-आकृति (Physiographic): किसी स्थान की संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम।

→ उच्चावचों (Allignment): पर्वत श्रेणियों के सन्दर्भ में उनको काल्पनिक रूप से सटाकर देखने से है।

→ घाटी (Valley): धरातल पर स्थित तृतीय श्रेणी के उच्चावचों-पर्वतों, पठारों एवं मैदानों के मध्य विभिन्न प्रकार की भूसन्नतियों एवं नदी, हिमानी आदि द्वारा निर्मित निम्न क्षेत्रों को घाटी कहा जाता है।

→ झील (Lake): धरातल पर उपस्थित जलपूर्ण भागों को झील कहा जाता है।

→ हिमानी (Glacier): एक सतत् हिमराशि जो एक नियत मार्ग से गुरुत्व शक्ति के कारण भूमि के ढाल के सहारे ऊपर से नीचे की ओर अग्रसर होती है।

→ करेवा (Karewa): कश्मीर घाटी के करेवा वे झील निक्षेप हैं जिनमें हिमानी के मोटे निक्षेप एवं हिमोढ़ों के अन्तःस्थापित अन्य पदार्थ पाए जाते हैं।

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→ दर्रा (Pass): किसी पर्वत श्रेणी में स्थित अनुप्रस्थ संकीर्ण द्रोणी या निचला भाग जिससे होकर स्थल मार्ग जाता है।

→ विसर्प (Meander): मैदानी क्षेत्र में ढाल न्यून होने के कारण नदी अपने साथ अपरदन करके लाए जलोढ़क पदार्थ को घुमावदार रास्तों (विसर्पो) के किनारे पर जमा कर देती है। इन विसरों का क्रमिक विस्तार होता है।

→ दून (Duns): हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में मिलने वाली संकीर्ण एवं अनुदैर्ध्य घाटियों को दून कहा जाता है। जैसे-देहरादून।

→ सहायक नदी (Tributary river): एक बड़ी नदी से निकलने या बड़ी नदी में गिरने वाली सरिता।

→ खानाबदोश लोग (Nomadic people): एक स्थान से दूसरे स्थान पर भोजन की खोज में संचरण करने वाले लोग।

→ बुग्याल (Bugyals): मध्य हिमालय के दक्षिणी ढलानों पर पाये जाने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को उत्तराखण्ड में बुग्याल कहते हैं।

→ जनजाति (Tribe): जनजाति समान नाम-धारित करने वाले परिवारों का एक समुदाय होता है जो समान बोली बोलते हैं तथा एक ही भूखण्ड पर आधिपत्य करने का दावा करते हैं।

→ झूम कृषि (Jhuming): भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में जनजातियों द्वारा की जाने वाली स्थानान्तरी कृषि। इसे स्थानान्तरी कृषि एवं स्लेश और बर्न कृषि भी कहते हैं।

→ जैव-विविधता (Biodiversity): किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाये जाने वाले जीवों की संख्या और उनकी विविधता जैव विविधता कहलाती है।

→ संरक्षण (Conservation): भविष्य के लिए प्राकृतिक पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा।

→ भाभर (Bhabar): शिवालिक की पदस्थली पर स्थित है। यहाँ सरन्ध्रता अधिक होने पर समस्त नदियाँ प्रायः लुप्त हो जाती हैं।

→ तराई (Tarai): एक ऐसा क्षेत्र जिसमें नदियाँ भाभर से निकलकर पुनः धरातल के ऊपर आती हैं। यह अत्यधिक नमी वाला क्षेत्र होता है।

→ जलोढ़ मैदान (Alluvial Plane): नदियों द्वारा लाए गए अवसाद से निर्मित मैदान।

→ बाँगर (Bhangar): पुराने जलोढ़ से निर्मित मैदान का वह ऊँचा भाग जहाँ सामान्यतया नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुँचता है।

→ खादर (Khadar): नवीन जलोढ़ से निर्मित मैदान का वह भाग जहाँ प्रतिवर्ष नदियों की बाढ़ का पानी पहुँचता रहता है।

→ बालूरोधिका (Sand Bar): बालू के निक्षेप से बाँध की आकृति के जमाव ।

→ गोखुर झील (Oxbow lake): नदी के विसर्पित मार्गों में बहते समय जब अचानक जल की मात्रा में वृद्धि होती है तब नदी अपने विसर्पित मार्ग का अनुसरण न करके सीधी बहने लगती है। ऐसी स्थिति में नदी से एक विसर्पित टुकड़ा अलग होकर झील के रूप में परिवर्तित हो जाता है। चूँकि इस झील की आकृति गाय के खुर के समान होती है इसलिए इसे गोखुर झील कहते हैं।

→ गुम्फित नदी (Braided channel): ऐसी नदी जिसका जल कई अंतर्ग्रन्थित शाखाओं में बहता है और पुनः ये शाखाएँ आपस में आगे जाकर मिल जाती हैं, गुम्फित नदी कहलाती है।

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→ बाढ़ (Flood): किसी विस्तृत भू-भाग का लगातार कई दिनों तक अस्थायी रूप से जलमग्न रहना, बाढ़ कहलाता है।

→ जलविभाजक (Water Divide or Divide): दो अपवाह बेसिनों के मध्य स्थित उच्चभूमि जिसके दोनों ओर भिन्न अपवाह क्षेत्र पाये जाते हैं।

→ जनसंख्या घनत्व (Population Density): किसी क्षेत्र की निश्चित इकाई में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या।

→ कटक (Ridge): तीव्र ढाल वाली लम्बी तथा सँकरी पहाड़ी।

→ पश्चिमी घाट (Western Ghats): भारत के पश्चिमी भाग में मिलने वाली सह्याद्रि की पहाड़ियों को पश्चिमी घाट कहते हैं।

→ अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountain): वह पर्वत या स्थलरूप जो अनाच्छादन क्रियाओं द्वारा कट कर अधिक नीचा तथा सपाट शिखर वाला हो गया हो।

→ सागर (Sea): सामान्यतः पृथ्वी तल पर खारे पानी के विस्तृत क्षेत्र को समुद्र कहा जाता है।

→ नदीय द्वीप (Riverine island): ऐसा स्थलीय भाग जो चारों ओर से नदी के जल से घिरा हुआ हो। .

→ जीवाश्म (Fossil): भूपर्पटी की शैलों में लम्बी अवधि तक दबा हुआ तथा परिरक्षित प्राणियों व पादपों के अवशेष।

→ वाष्पीकरण (Evaporation): एक प्रक्रम जिसके द्वारा कोई पदार्थ तरल से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होता

→ अन्तःस्थलीय अपवाह (Internal or Interior Drainage): अपवाह का एक प्रकार जिसमें नदियों का जल किसी आंतरिक बेसिन या झील में एकत्रित होता है, जहाँ से जल का निकास नहीं हो पाता है और इस कारण से जल सागर तक नहीं पहुंच पाता है।

→ बन्दरगाह (Port): समुद्र तट के सहारे जलयानों के आकर रुकने व ठहरने का स्थान जहाँ से सामान व मानव का उतार-चढ़ाव होता है।

→ बरखान (Barkhan): एक विशेष प्रकार का बालू का टीला जिसका अग्रभाग अर्द्धचन्द्राकार होता है तथा उसके दोनों छोरों पर आगे की ओर नुकीली सींग जैसी आकृति निकली हुई होती है।

→ पत्तन (Port): जहाजों पर यात्रियों को चढ़ाने व उतारने, माल के लदान एवं उतरान के साथ-साथ नौवहन भार के भण्डारण की कुछ सुविधाओं से युक्त पोताश्रय का एक वाणिज्यिक भाग, पत्तन या बन्दरगाह कहलाता है।

→ कयाल (Back waters): जल को उसके मार्ग में बाँध बनाकर आबद्ध किया जाना तथा बाँध के पीछे के एकत्रित जल को पश्च जल या कयाल कहते हैं।

→ पोताश्रय (Harbour): गहरे जल का एक विस्तृत भाग जहाँ जहाज, सागरों में उत्पन्न प्राकृतिक लक्षणों अथवा कृत्रिम कार्यों से उत्पन्न विशाल तरंगों से सुरक्षा प्राप्ति हेतु लंगर डालते हैं, पोताश्रय कहलाता है।

→ ज्वालामुखी (Volcano): ज्वालामुखी वह छिद्र है जिसमें होकर गैस, राख, तरल, चट्टानी परतें व लावा पृथ्वी तल पर पहुँचता है।

→ प्रवाल निक्षेप (Coral deposits): समुद्र की तली में पाये जाने वाले मूंगा नामक जीव के निक्षेप।

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→ पुलिन (Beach): सागरीय तट के किनारे मलबे के निक्षेप से बने स्थल रूप को पुलिन कहते हैं।

→ संवहनीय वर्षा (Convectional rain):  एक प्रकार की वर्षा जिसमें पृथ्वी की सतह पर विद्यमान वायु जब गर्म होकर ऊपर उठती है तो ऊपर जाकर यह ठण्डी हो जाती है तथा संघनन के कारण यह हल्की बूंदों में परिवर्तित हो जाती है। इसके बाद वर्षा होने लगती है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 10:58 a.m.
Published Aug. 4, 2022