RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास will give a brief overview of all the concepts.

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RBSE Class 11 Geography Chapter 2 Notes पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

→ पृथ्वी की उत्पत्ति (Origin of the Earth): 

  • पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए मानव एक लम्बे समय से प्रयत्नशील रहा है।
  • पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न वैज्ञानिकों एवं दार्शनिकों ने समय-समय पर अनेक मतों का प्रतिपादन किया है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। यद्यपि ये पूर्ण सत्य नहीं हैं।
  • जर्मन दार्शनिक इमैनुअल कान्ट ने 1755 ई. में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियमों पर आधारित अपनी वायव्य राशि परिकल्पना के माध्यम से पृथ्वी सहित अन्य ग्रहों की उत्पत्ति को समझाने का प्रयास किया।
  • सन् 1796 ई. में फ्रांसीसी ज्योतिषी व गणितज्ञ लाप्लेस ने कान्ट की परिकल्पना में संशोधन प्रस्तुत किया जो कि 'निहारिका परिकल्पना' के नाम से जानी जाती है। लाप्लेस की निहारिका परिकल्पना के अनुसार ग्रहों की उत्पत्ति धीमी गति से घूमते हुए पदार्थों के बादल से हुई है।
  • सन् 1900 में चेम्बरलेन व मोल्टन ने बताया कि पृथ्वी की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड में एक अन्य भ्रमणशील तारे के सूर्य के निकट से गुजरने के परिणामस्वरूप हुई है। सर जेम्स जींस व सर हैरोल्ड जैफरी ने इस मत का समर्थन किया।
  • दो तारों से पृथ्वी की उत्पत्ति सम्बन्धी मत द्वैतारक सिद्धान्त कहलाता है।
  • सन् 1950 में रूस के ऑटो शिमिड व जर्मनी के कार्ल वाइजास्कर ने निहारिका परिकल्पना में संशोधन कर अपना मत प्रस्तुत किया। 

→ ब्रह्मांड की उत्पत्ति (Origin of the Universe) :

  • वर्तमान समय में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सर्वमान्य सिद्धान्त 'बिग बैंग सिद्धान्त' है। इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना के नाम से भी जाना जाता है।
  • बिग बैंग सिद्धान्त प्रतिपादन का श्रेय एडविन हब्बल को जाता है जिसने 1920 ई. में यह बताया कि ब्रह्माण्ड का निरन्तर विस्तार हो रहा है तथा समय बीतने के साथ-साथ आकाशगंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड का विस्तार तीन अवस्थाओं में हुआ, जो कि निम्न प्रकार से हैं।
    • प्रथम अवस्था में ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाले तत्व एकाकी परमाणु के रूप में अत्यन्त सूक्ष्म अवस्था में एक ही स्थान पर स्थित थे, जिनका तापमान व घनत्व अनंत था।
    • द्वितीय अवस्था में एकाकी परमाणु में भीषण विस्फोट होने से ब्रह्माण्ड का विस्तार हुआ जो आज भी जारी है। बिग बैंग की घटना आज से 13.7 अरब वर्ष पूर्व हुई थी। 
    • तृतीय अवस्था में तापमान अत्यन्त कम हो गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ तथा ब्रह्माण्ड पारदर्शी हो गया।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास 

→ तारों का निर्माण/उत्पत्ति (Origin of Stars) :

  • ब्रह्माण्ड विस्तार के संदर्भ में हॉयल ने स्थिर अवस्था संकल्पना प्रतिपादित की।
  • आकाशगंगा असंख्य तारों का समूह होती है।
  • आकाश गंगा का निर्माण हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के संचयन से हुआ है। इसे निहारिका कहा गया।
  • निहारिका में गैस समूहों के एकत्रीकरण से लगभग 5-6 अरब वर्ष पूर्व तारों का निर्माण हुआ।
  • प्रकाश वर्ष दूरी का माप है। एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूरी तय करता है, उसे एक प्रकाश वर्ष कहा जाता है।

→ ग्रहों का निर्माण (Origin of Planets):

  • ग्रहों के विकास की तीन अवस्थाएँ मानी जाती हैं।
  • प्रारम्भ में गैसीय बादल में क्रोड के निर्माण फिर गैसीय बादल के संघनन व अन्त में हो ग्रहाणुओं के बढ़ने से बने बड़े पिंडों से ग्रहों का निर्माण हुआ है।

→ सौरमण्डल (Solar System):

  • हमारा सौरमण्डल सूर्य, 8 ग्रहों, 63 उपग्रहों, लाखों छोटे पिण्डों, धूमकेतु एवं वृहत् मात्रा में धूलिकण एवं गैसों से निर्मित
  • सूर्य के निकटतम चार ग्रह—बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल भीतरी एवं पार्थिव ग्रर तथा चार अन्य ग्रह बृहस्पति, शनि, अरुण व वरुण बाह्य या जोवियन ग्रह कहलाते हैं। 

→ चन्द्रमा (The Moon):
चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है जिसकी उत्पत्ति लगभग 4.44 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी व एक बड़े आकार के पिंड के टकराने से मानी जाती है। इस टकराव को 'द बिग स्प्लैट' कहा गया है। 

→ पृथ्वी की उत्पत्ति (Origin of Earth) :

  • पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य से अलग हुए पदार्थ के शीतलन व संकुचन से मानी गयी है।
  • पृथ्वी के सतह से इसके भीतरी भाग तक अनेक मंडल हैं।
  • पृथ्वी के धरातल से क्रोड तक कई परतें पायी जाती हैं; जैसे—पर्पटी, प्रावार, बाह्य क्रोड व आन्तरिक क्रोड।
  • पृथ्वी के ऊपरी भाग से लेकर आन्तरिक भाग तक पदार्थ का घनत्व बढ़ता चला जाता है। 

→ वायुमंडल व जलमंडल का विकास (Origin of Atmosphere and Hydrosphere):

  • पृथ्वी के वायुमण्डल की वर्तमान संरचना में नाइट्रोजन एवं ऑक्सीजन गैसों का प्रमुख योगदान है।
  • प्रारम्भिक वायुमण्डल में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की अधिकता थी। यह सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया।
  • पृथ्वी के ठंडा होने एवं विभेदन के दौरान पृथ्वी के आन्तरिक भाग से अनेक गैसें व जलवाष्प बाहर निकले जिससे वर्तमान वायुमण्डल का जन्म हुआ।
  • पृथ्वी के ठण्डा होने के साथ-साथ जलवाष्प के संघनित होने से अत्यधिक वर्षा होने लगी, फलस्वरूप वर्षा का जल गों में एकत्रित होने से महासागरों का निर्माण हुआ।

→ जीवन की उत्पत्ति (Origin of Life):

  • पृथ्वी की उत्पत्ति का अन्तिम चरण जीवन की उत्पत्ति एवं विकास से सम्बन्धित है।
  • पृथ्वी पर जीवों का विकास लगभग 380 करोड़ वर्ष पूर्व माना जाता है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

→ पृथ्वी (Earth): सौरमण्डल का एक सदस्य ग्रह, जिस पर मानव का निवास है और जो अपने अक्ष पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाता है। चन्द्रमा इसका एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।

→ तारे (Stars): गैसीय द्रव्य से बने दीप्तिमान ब्रह्माण्डीय पिंड तारे कहलाते हैं। ब्रह्माण्ड में लगभग 5000 तारे हैं। पृथ्वी के सबसे निकट का तारा सूर्य है।

→ परिकल्पना (Hypotheses): प्राकृतिक विश्व के सम्बन्ध में एक अनुमान, जिसे परीक्षण एवं प्रयोगों के द्वारा स्वीकारा या नकारा जा सकता है। परिकल्पना या अवधारणा या संकल्पना कहलाती हैं।

→ नीहारिका (Nebula): धूलि एवं गैसों का बादल नेबुला या निहारिका कहलाता है।

→ ब्रह्माण्ड (Universe) ब्रह्माण्ड वह अनन्त आकाश है जिसमें असंख्य तारे, ग्रह, सूर्य, पृथ्वी एवं चन्द्रमा आदि सम्मिलित हैं। ब्रह्माण्ड को आंग्ल भाषा में कॉसमास (Cosmos) कहा जाता है।

→ गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force): विश्व में समस्त वस्तुएँ चाहे वे छोटी हों या बड़ी हों, एक-दूसरे के ऊपर बल लगाती हैं। यह गुरुत्वाकर्षण बल कहलाता है।

→ सूर्य (Sun): यह आकाश में स्थित असंख्य तारों में से एक तारा है तथा सौरमण्डल का प्रमुख सदस्य है। सूर्य से ही सौरमण्डल के ग्रहों एवं उपग्रहों की उत्पत्ति हुई है। यह एक धधकता हुआ आग का गोला है। इसकी सतह का औसत तापमान 6000° सेन्टीग्रेड है।

→ द्वैतारक सिद्धान्त (Binary Theories): पृथ्वी की उत्पत्ति से सम्बन्धित वह सिद्धान्त जो सौर परिवार की उत्पत्ति - दो तारों से मानता है। इस सिद्धान्त के अनुसार ग्रहों का निर्माण सूर्य के समीप एक दूसरे भ्रमणशील तारे के गुजरने से हुआ है।

→ आकाशगंगा (Galaxy): तारों के विशाल समूह को आकाश गंगा या मंदाकिनी कहते हैं। इसमें प्रत्येक तारा अपना स्वतन्त्र परिवार रखता है।

→ प्रकाश वर्ष (Light year): यह दूरी मापने की एक बड़ी इकाई है। प्रकाश की गति 3 लाख किमी. प्रति सैकण्ड है। एक वर्ष में प्रकाश जितनी दूरी तय करेगा, वह एक प्रकाश वर्ष होगा। यह 9.461 x 1012 किमी. के बराबर है।

→ ग्रह (Planet): यह एक ऐसा आकाशीय पिण्ड होता है जो किसी तारे के चारों ओर चक्कर लगाता है तथा उससे छोटा होता है। सौरमण्डल में ऐसे ही गर्य से छोटे आठ ग्रह हैं।

→ ग्रहाणु (Planetesimal): ग्रहों की उत्पत्ति से पूर्व ब्रह्माण्ड में बिखरे छोटे-छोटे धूलिकणों जैसी आकृति वाले कण। ग्रहाणुओं से एकत्रित होने से ही पृथ्वी की रचना हुई।

→ ससंजन (Cohesion): अणुओं में परस्पर आकर्षण की प्रक्रिया ससंजन कहलाती है।

→ संघट्टन (Collision) छोटे-छोटे पिण्डों से बड़े पिण्ड बनने की प्रक्रिया है।

→ सौरमण्डल (Solar System): सूर्य एवं इसके परिवार को सौरमण्डल कहा जाता है, इसमें तारे, धूमकेतु, क्षुद्रग्रह आदि शामिल होते हैं।

→ उपग्रह (Satellite): ग्रहों के चारों ओर चक्कर लगाने वाले प्राकृतिक आकाशीय पिण्ड।

→ क्षुद्र ग्रह (Asteroids): सूर्य का परिक्रमण करने वाले मंगल तथा बृहस्पति की कक्षाओं के मध्य के छोटे-छोटे ग्रहों को क्षुद्रग्रह कहते हैं। सभी क्षुद्र ग्रह अनियमित आकार के होते हैं। इनकी संख्या लगभग 4500 है।।

→ धूमकेतु (Comets): आकाश में कभी-कभी एक सिर एवं एक पूँछ के आकार का एक तारा दिखाई पड़ता है। इसे धूमकेतु अथवा पुच्छल तारा कहते हैं। वे आकाशीय धूल, बर्फ व गैस के पिण्ड जो सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, धूमकेतु या पुच्छल तारे कहलाते हैं।

→ पार्थिव ग्रह (Terrestrial Planet); बुध, शुक्र, पृथ्वी व मंगल पार्थिव या भीतरी ग्रह कहलाते हैं। ये ग्रह सूर्य व क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के मध्य स्थित हैं।

→ जोवियन ग्रह (Jovian Planet): बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण ग्रह जोवियन ग्रह कहलाते हैं। ये ग्रह गैस से बने विशाल आकार में हैं।

→ वायुमण्डल (Atmosphere): पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किमी. की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं।

→ खगोलीय पिंड (Celestial Objects): तारे, ग्रह, चन्द्रमा एवं आकाश के बहुत से अन्य पिंड खगोलीय पिंड कहलाते हैं।

→ चन्द्रमा (Moon): पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह जो पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगा रहा है। यह पृथ्वी से लगभग 3,84,000 किमी. दूर है तथा इसकी घूर्णन व परिक्रमण की अवधि 27.32 दिन है।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

→ प्राकृतिक उपग्रह (Natural Satellite): किसी ऐसे पिंड को जो किसी अन्य मुख्य पिंड की परिक्रमा करता है, उपग्रह कहते हैं। दूसरे शब्दों में वे आकाशीय पिण्ड जो ग्रहों के चारों ओर परिक्रमा करते हैं, उपग्रह या प्राकृतिक उपग्रह कहलाते हैं। उदाहरण—चन्द्रमा जो पृथ्वी का प्राकृतिक उपग्रह है।

→ डंबल (Dumb-bell): मध्य से पतले एवं किनारों से मोटी आकृति वाले पिंड।

→ द बिग स्प्लेट (The big Splat): वर्तमान वैज्ञानिक पृथ्वी के उपग्रह के रूप में चन्द्रमा की उत्पत्ति एक बड़े टकराव से मानते हैं जिसे 'द बिग स्प्लेट' कहा जाता है।

→ वातावरण (Environment): पृथ्वी के चारों ओर फैले हुए आवरण को वातावरण कहते हैं जिसमें जैविक, अजैविक व सांस्कृतिक घटक शामिल होते हैं।

→ क्रोड (Core): पृथ्वी का केन्द्रीय भाग। क्रोड को दो भागों में विभाजित किया गया है

  • बाह्य क्रोड
  • आन्तरिक क्रोड।

→ स्थलमंडल (Lithosphere): भूपर्पटी का सबसे उपरी भाग।

→ उल्का (Meteor): अन्तरिक्ष में घूमते हुए धूल व गैस पिंड पृथ्वी के वायुमण्डल में आने के बाद घर्षण के कारण चमकने लगते हैं तथा पृथ्वी पर पहुँचने से पहले जलकर राख हो जाते हैं। उन्हें उल्का कहते हैं।

→ गुरुत्व बल (Gravity Force): एक आकर्षण बल जिसके द्वारा समस्त वस्तुएँ पृथ्वी के केन्द्र की ओर संचलन की प्रवृत्ति रखती हैं।

→ संहत (Density): सघनता, ठोसपन, घनापन, घनत्व।

→ भूपर्पटी (Crust): पृथ्वी का ठोस सबसे बाहरी भाग।

RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास

→ प्रावार (Mantle): भूगर्भ में पर्पटी के नीचे का भाग प्रावार कहलाता है। इसी से ज्वालामुखी उद्गार होता है।

→ विभेदन (Differentiation): हल्के एवं भारी घनत्व वाले पदार्थों के अलग होने की प्रक्रिया को विभेदन कहते हैं। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत भारी पदार्थ पृथ्वी के केन्द्र की ओर चले गये तथा हल्के पदार्थ पृथ्वी की सतह पर ऊपरी भाग की ओर आ गये।

→ जैवमण्डल (Biosphere): स्थलमण्डल, जलमंडल व वायुमंडल में मिलने वाला जीवों से सम्बन्धी मंडल।

→ प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया (Photosynthesis Process): पौधों में जल, प्रकाश, पर्णहरित एवं कार्बन डाई ऑक्साइड की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स के निर्माण की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा पौधे अपना भोजन बनाते हैं।

→ सौर पवन (Solar wind): सूर्य द्वारा उत्सर्जित गैसों का आवेशित बादल, जोकि सूर्य से सभी दिशाओं में गमन करता है।

→ गैस उत्सर्जन (Degassing): पृथ्वी के आन्तरिक भाग से धरातल पर गैसों के आने की प्रक्रिया गैस उत्सर्जन कहलाती है।

→ महासागर (Ocean): भूमण्डलीय भाग को घेरे हुए उपस्थित लवणीय जल की विशाल जल संहति को महासागर कहते हैं।

→ अणु (Molecules): यह किसी पदार्थ की सबसे छोटी इकाई है, जिसमें उस पदार्थ के गुण निहित होते हैं।

→ शैवाल (Blue green algae): सामान्य जीवों की तरह पादपों का एक ऐसा समूह जो प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाते हैं, शैवाल कहलाते हैं। यह प्रायः भूरे, हरे अथवा लाल रंग के होते हैं तथा मुख्यतः जल अथवा आर्द्र क्षेत्रों में पाए जाते हैं। यह एक जलीय पौधों का समूह है। इन पौधों में न फूल आते हैं और न ही पत्तियाँ होती हैं।

→ जीवाश्म (Fossils): भूगर्भ में दबे हुए जीव-जन्तुओं के प्राचीनकालीन अंश।

→ महाकल्प (Era): भौगोलिक समय की सबसे बड़ी इकाई।

→ कल्प (Period): भू-वैज्ञानिक काल का एक उपविभाग जो अनेक युगों के समेकन से बनता है।

→ युग (Epoch): कल्प का एक भाग युग कहलाता है।

Prasanna
Last Updated on Aug. 4, 2022, 12:38 p.m.
Published Aug. 4, 2022