These comprehensive RBSE Class 11 Geography Notes Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ will give a brief overview of all the concepts.
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→ वायुदाब (Air Pressure) :
→ वायुदाब का ऊ र्ध्वाधर वितरण (Vertical Distribution of Air pressure) :
→ वायुदाब का क्षैतिज वितरण (Horizontal Distribution of Air pressure) :
वायुदाब का क्षैतिज वितरण समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। धरातल पर वायुदाब वितरण पर तापमान तथा
पृथ्वी की घूर्णन गति का विशेष प्रभाव पड़ता है। समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा समदाब रेखा कहलाती है।
→ वायुदाब पेटियाँ (Air Pressure Belt) :
वायुदाब पेटियाँ स्थायी नहीं होती बल्कि सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन होने के साथ-साथ उत्तर व दक्षिण की ओर खिसकती जाती हैं। भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी, उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटी, उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी व ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटियाँ प्रमुख हैं।
→ पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले बल (Forces Affecting Direction and Speed of Winds):
→ वायु का सामान्य परिसंचरण (General Circulation of Winds) :
→ मौसमी पवनें (Seasonal Winds) :
वे पवनें जो मौसम के अनुसार अपनी दिशाओं में परिवर्तन कर देती हैं, उन्हें मौसमी पवनें कहा जाता है। मानसूनी हवाएँ भी मौसमी पवनें हैं। स्थानीय पवनें स्थान विशेष में चलती हैं। स्थल व समुद्री समीर तथा पर्वतीय व घाटी समीर भी एक प्रकार से स्थानीय पवनें हैं।
→ वायुराशियाँ (Air Masses) :
वायुराशि वायुमण्डल के उस विस्तृत क्षेत्र को कहते हैं, जिससे विभिन्न ऊँचाइयों पर क्षैतिज अवस्था में जलवायु सम्बन्धी विशेषताओं अर्थात् तापक्रम एवं आर्द्रता में समानता मिलती है। उद्गम क्षेत्र के आधार पर वायुराशियों को पाँच भागों में विभाजित किया गया है, जो निम्न हैं
→ वाताग्र (Fronts) :
→ मौसम (Season)-किसी स्थान विशेष की लघु समय की औसत मौसमिक दशाओं के योग को उस स्थान का मौसम कहते हैं।
→ वायुमण्डलीय दाब (Atmospheric Pressure)-माध्य समुद्र तल से वायुमण्डल की अन्तिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु स्तम्भ के भार को वायुमण्डलीय दाब कहते हैं।
→ आर्द्रता (Humidity)-किसी निश्चित तापमान पर वायु में विद्यमान नमी की मात्रा। आर्द्रता को सामान्यतः प्रतिशत में मापा जाता है।
→ वर्षा (Rain)-एक निश्चित समयावधि में किसी स्थान पर होने वाली वर्षा जिसे वर्षामापी यन्त्र द्वारा मापा जाता
→ वायु विक्षोभ (Air Turbulence)-वायु की अनियमित तथा बाधित प्रवाह या गति जिससे गौण भँवरें उत्पन्न हो जाती हैं।
→ वायुराशि (Air Mass)-वायुराशि, वायुमण्डल के उस विस्तृत क्षेत्र को कहते हैं जिनमें विभिन्न ऊँचाइयों पर क्षैतिज अवस्था में जलवायु सम्बन्धी दशाओं, तापक्रम एवं आर्द्रता में समानता मिलती है।
→ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)-कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाला चक्रवात।
→ मिलीबार (Milibar)-वायुदाब को मापने की इकाई।
→ वायुदाबमापी (Barometer)-वायु दाब को मापने का यंत्र।
→ दाब प्रवणता (Pressure Gradient)-वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। अतः दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता कहलाती है।
→ समदाब रेखाएँ (Isobar)-समान दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ।
→ मानचित्र (Map)-किसी समतल सतह या पृष्ठ पर पृथ्वी के सम्पूर्ण भाग अथवा उसके किसी अंश का रेखाचित्रीय प्रदर्शन।
→ विषुवत वृत्त (Equator)-ग्लोब पर दोनों ध्रुवों के मध्य से गुजरने वाला काल्पनिक वृत्त जो ग्लोब को दो समान भागों में विभक्त करता है।
→ अक्षांश (Latitude)-भूमध्य रेखा से उत्तर या दक्षिण भूतल पर किसी बिन्दु की पृथ्वी के केन्द्र से मापी गई कोणिक दूरी।
→ घूर्णन (Rotation)-पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना जिससे दिन-रात बनते हैं।
→ कॉरिऑलिस बल (Coriolis Force)-पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाला बल। इस बल के कारण भूतल पर गतिशील कोई वस्तु उत्तरी गोलार्द्ध में अपने मार्ग से दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर निक्षेपित हो जाती है।
→ भू-विक्षेपी पवनें (Geostrophic Winds)-जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो तो दाब प्रवणता कॉरिआलिस बल से संतुलित हो जाता है। जिससे पवनें समदाब रेखाओं के समानान्तर प्रवाहित होती हैं। इनको भू-विक्षेपी पवनें कहा जाता है।
→ चक्रवाती परिसंचरण (Cyclonic Circulation)-निम्न दाब क्षेत्रों के चारों ओर पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।
→ महाद्वीप (Continent)-सागर तल से ऊपर उठे हुए पृथ्वी के विशाल भूभाग जो चारों ओर से अथवा अधिकांश ओर से महासागरों के जल से घिरे होते हैं।
→ महासागर (Ocean)-पृथ्वी स्थित अति विशाल खुला जलीय भाग जिनमें अत्यन्त खारा या लवणीय जल अत्यधिक मात्रा में भरा रहता है।
→ जलवायु (Climate)-यह किसी विस्तृत क्षेत्र की दीर्घकालीन मौसमी दशाओं के औसत तथा उन दशाओं में पायी जाने वाली विभिन्नताओं को प्रकट करती है।
→ क्षोभमंडल (Troposphere)-पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल की सबसे निचली परत जिसका विस्तार भूतल से औसतन 13 किमी. ऊँचाई तक है।
→ कोष्ठ (Bent)-पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण तथा इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ कहते हैं।
→ ध्रुवीय कोष्ठ (Polar Bent)-ध्रुवों पर ठण्डी सघन वायु का अवतलन होता है तथा मध्य अक्षांशों की ओर ध्रुवीय पवन के रूप में प्रवाहित होती है। इस कोष्ठ को ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है।
→ पछुआ पवनें (Westerly Winds)-उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्ध में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली स्थायी हवाएँ।
→ ध्रुवीय पवनें (Polar Winds)-ध्रुवीय उच्च दाब पेटी से शीतोष्ण निम्न वायु दाब पेटी की ओर चलने वाली अत्यधिक शीतल पवनें।
→ जलवाष्प (Water Vapour) वायुमण्डल में वाष्प की दशा में स्थित जल।
→ मौसमी पवनें (Seasonal Winds)-मौसम या समय के साथ जिन पवनों की दिशा में परिवर्तन पाया जाता है उन्हें सामयिक या कालिक अथवा मौसमी पवनें कहते हैं।
→ स्थानीय पवनें (Local Winds)-स्थानीय धरातलीय बनावट, तापमान एवं वायुदाब की विशिष्ट स्थिति के कारण स्वभावतः प्रचलित पवनों के विपरीत प्रवाहित होने वाली पवनें।
→ समुद्र समीर (Sea Breeze)-दिन के समय में स्थल भाग जल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाता है जबकि समुद्री भागों के ठण्डे बने रहने के कारण उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलने लगती हैं, इन्हें ही समुद्र समीर कहते हैं।
→ घाटी पवनें (Valley Winds)-दिन के समय पर्वतीय भागों में घाटियों के किनारों के ढाल गर्म हो जाते हैं। उनके सम्पर्क में आने वाली वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। इस स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से ऊपर आती है। इन पवनों को ही घाटी पवनें कहते हैं।
→ पर्वतीय पवनें (Mountain Winds)-रात्रि के समय घाटियों के ढाल जल्दी ठण्डे हो जाते हैं। इनके सम्पर्क में आने वाली वायु ठण्डी हो जाती है। यह ठण्डी और भारी हवा नीचे घाटी में उतरती है। इसे पर्वतीय पवनें कहते हैं।
→ स्थल समीर (Land Breeze)-रात्रि में स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठण्डा हो जाता है और वहाँ उच्च वायुदाब बन जाता है। अतएव पवनें स्थल से जल की ओर चलने लगती हैं, जिन्हें स्थलीय समीर कहा जाता है।
→ वायुराशि (Airmass)-यह वायु राशि तापमान के आधार पर ध्रुवीय अथवा उष्ण कटिबन्धीय तथा आर्द्रता के आधार पर समुद्री और महाद्वीपीय कहलाती है।
→ वाताग्र (Front)-दो भिन्न प्रकार की वायु-राशियों के मध्य सीमा क्षेत्र।
→ वाताग्र जनन (Origin of Front)-वातारों के बनने की प्रक्रिया को वाताग्र जनन कहते हैं।
→ शीत वाताग्र (Cold Front)-भूतल पर चलने वाली शीतल वायुराशि तथा पीछे लौटती हुई उष्ण वायुराशि के मध्य निर्मित वाताग्र जिसके नीचे शीतल वायु वेग की भाँति ऊपर उठती है।
→ उष्ण वाताग्र (Warm Front)-भूतल के ऊपर की ओर उठती हुई गर्म राशि और उसके नीचे स्थित शीतल वायुराशि के मध्य स्थित तिरछा सीमातल (रेखा)।
→ अधिविष्ट वाताग्र (Occluded Front)-जब शीत वाताग्र अपनी तीव्र गति के कारण उष्ण वाताग्र तक पहुँचकर उससे मिल जाता है, तब अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण होता है।
→ चक्रवात (Cylone)-एक निम्न वायुदाब क्षेत्र जहाँ बाहर से हवाएँ भीतर केन्द्र की ओर चक्कर काटती हुई चलती हैं।
→ प्रतिचक्रवात (Anticyclone)-वायुमण्डल में स्थित उच्च दाब क्षेत्र से संबद्ध पवन प्रवाह प्रणाली।
→ हरीकेन (Hurricane)-सामान्यत: 120 किमी. घंटा से अधिक औसत गति वाली पवन जिसकी शक्ति ब्यूफोर्ट मापनी पर 12 होती है।
→ टाइफून (Typhoon)-पश्चिमोत्तर प्रशान्त महासागर तथा चीन सागर में उत्पन्न होने वाला उष्ण कटिबंधीय चक्रवात जिसमें हवाएँ अत्यधिक तेजी से बाहर से केन्द्र की ओर चलती हैं।
→ टारनेडो (Tornado)-एक प्रकार की उष्ण कटिबंधीय चक्रवात जो आकार की दृष्टि से छोटा किन्तु अति प्रबल एवं अत्यधिक विनाशकारी होता है।